Saturday 28 March 2015

जाट आरक्षण रद्द होने से मंडी-फंडी सीधे-सीधे यह निशाने साध रहा है!


1) इनकी दशकों से मन में दबी आरक्षण को टोटली ख़त्म करने की मंशा को हवा और पंख मिल रहे हैं, वो कैसे देखो दूसरे पॉइंट में|

2) एक भाई ने लेख लिखा "Many Undeserving, Why Target Jats?", यह लेख और कोई उद्देश्य हासिल करे ना करे परन्तु जाटों को भड़काने वाला जरूर है, जिसकी कि जाट को वाकई जरूरत नहीं है|

 3) राव इंदरजीत के बाद अब कुरुक्षेत्र के एमपी भी कह रहे हैं कि जाटों को आरक्षण नहीं मिलना चाहिए, यानी ओबीसी की जातियां स्वत: ही मंडी-फंडी का ओबीसी जातियों में फूट बढ़ाने की मंशा को साध रही हैं| जबकि इनको सोचना तो यह चाहिए कि कहीं जाटों के बाद अब अगला निशाना तुम होवो रिजर्वेशन से बाहर निकाले जाने का| लेकिन यह नादान चेतने और चेताने की बजाय अभी भी उलझे पड़े हैं वोट पॉलिटिक्स में|

 4) जाट को दबाने-कुचलने और कंगाल बनाने का इनका सर्वोपरि उद्देश्य तो खैर फसलों के कम दाम, यूरिया किल्लत, लैंड बिल (नुकसान बाकी किसान जातियों का भी हुआ इससे) और जाट आरक्षण रद्द के जरिये काफी लम्बा खींच ही लाये हैं यह लोग, अब तो इंतज़ार इसका है कि "What next"?

कौन कहता है कि "बांटों और राज करो" अंग्रेज भारत ले के आये थे, अरे खुद अंग्रेजों ने हमारे मंडी-फंडी से सीखा था| ना यकीन हो तो मनुस्मृति के काल से उठा के आजतक का इतिहास उघाड़ लो|

IBN Khabar Shame On You!


Friday 27 March 2015

तेरा कोई दोष नहीं, ओ नारी अनुष्का शर्मा!

तेरा कोई दोष नहीं, ओ नारी अनुष्का शर्मा,
यह भारत है इसने औरत को सदा ही भरमा,

इश्क करने चली सरूपण-खां तो नाक कटी,
सीता ने लांघी लक्ष्मण रेखा तो गई हरी|
जुआ खेले युधिष्टर, चीर द्रोपदी की फ़टी,
जुआ खेले नल बेचे सौदे में सती दमयंती||
बलात्कार इंद्र करे, अहिल्या को पत्थर का दिया बना|
यह भारत है इसने औरत को सदा ही भरमा|

आरएसएस कहती खेल अंग्रेजों का, आज भी क्यों ढोवें,
पर गुलामी जाती नहीं, जब तक दिमाग को ना धोवें|
विराट ने जुआ छोड़ क्रिकेट की तरफ तरक्की कर ली,
पर इसमें भी हारे तो राष्ट्रीय पनौती बोल तू धर ली||
ऑस्ट्रेलिया की धरती पे, तेरा बन्दर दिया बना|
यह भारत है इसने औरत को सदा ही भरमा|

तेरा कोई दोष नहीं, यह भारत है ना कि इंग्लैण्ड,
तेजपाल हो, आशाराम हो या भागवत का बैंड|
दोष इंडिया को ही देंगे, भारत अनटोल्ड स्टैंड,
दामिनी हो, कामिनी हो, तोलें सबको एक ट्रेंड ||
कभी कपड़े कभी मोबाइल, देवें तुझपे जाम बिठा|
यह भारत है इसने औरत को सदा ही भरमा|

पर बैलेंस तो तुझे भी कहीं ना कहीं धरना पड़ेगा,
विश्वामित्र का तप मेनका ने तोड़ा, कौन ना कहेगा?
क्या कहें जीवन और प्यार की हैं इतनी ही कठिन राही,
'फुल्ले भगत' नहीं समझ पाया, तू कौनसी खेली-खाई||
तुझको पनौती कहने के विरुद्ध, मैं लिखूं कलम उठा|
यह भारत है इसने औरत को सदा ही भरमा|

तेरा कोई दोष नहीं, ओ नारी अनुष्का शर्मा,
यह भारत है इसने औरत को सदा ही भरमा|

Author: Phool Malik

संघ में जाट मान-मान्यताओं, सभ्यता-संस्कृति का क्या स्थान?

संघी बने जाटों से मेरे कुछ सवाल!

कृपया इसको अन्यथा ना लेवें, दिल साफ़ है, दिमाग साफ़ है, सिर्फ मेरी उत्सुकता हेतु यह सवाल हैं:

A) जाट धर्म की 19 मान्यताओं {1. दादा खेड़ा (पर्यायवाची - बाबा जठेरा, बाबा भूमिया, दादा बड़ा बीर, दादा नगर खेड़ा, दादा बैया, दादा भैया, ग्राम खेड़ा आदि) को सबसे बड़ा देवता मानना, 2. घंटी की जगह थाली बजाना, 3. देवदासी विरोधी होना, 4. विधवा विवाह समर्थक होना, 5. सती-प्रथा विरोधी होना, 6. तलाक के बाद औरत को पहले पति से जीवन-यापन दिलवाना, 7. खाप सोशल इंजीनियरिंग सिस्टम, 8. जाटों का अपना मोर-ध्वज होना, 9. जाटों द्वारा हवेलियों पर मोरनी चढ़ाने की प्रथा (अब लुप्तप्राय), 10. जाटों में यौद्धा की जगह यौद्धेय होना, 11. अपनी अलग से जाटू (हरियाणवी) भाषा (पंजाबी और हिंदी के साथ-साथ) होना, 12. मूर्ती-पूजा के विरोधी होना, 13. स्व-गोत में विवाह की अनुमति नहीं होना, 14. गाम-गोत-गुहांड वाली संस्कृति होना, 15. मालिक-नौकर की जगह सीरी-साझी की सभ्यता होना, 16. किसी भी प्रकार की पशुबलि-नरबलि विरोधी होना, 17. सैद्धांतिक तौर पर शाकाहारी होना, 18. मठ से संबंधित कहावतें होना, 19. खेड़े के गोत को गाँव में प्राथमिकता होना} का संघियों के यहां क्या बखान और स्थान है?

B) इन 19 शुद्ध जाट मान्यताओं का कितने संघियों को पता है और वो इनको उनके तंत्र में कितना स्थान देते हैं? वह इनके संवर्धन और प्रचार बारे क्या सोचते हैं?

C) जाट महापुरुषों, महावीरांगनाओं, यौद्धेय/यौद्धेयाओं, राजा-महाराजाओं, स्वंत्रता सेनानियों, समाजसेवकों का संघ के साहित्य में क्या और कितना जिक्र आता है? कौनसे-कौनसे मौकों पर इनमें से किसी को भी याद किया जाता है और क्या सम्मान दिया जाता है?

D) जाट संस्कृति को बचाये और बनाये रखने के लिए संघ के पास क्या एजेंडा है?

E) धर्म के नाम पर कुर्बान होने वाले उदाहरणत: मुज़फ्फरनगर के दंगों में फंसे जाटों को छुड़वाने के लिए संघ क्या प्रयास कर रहा है? धर्म के नाम पर बलि देने वालों के पुनर्वास की संघ के पास क्या नीति है?

F) आपकी कितनी और किस स्तर की भागीदारी संघ में है, खैर यह सवाल तो इतना महत्वपूर्ण नहीं परन्तु फिर भी कोई रौशनी डालना चाहे तो इसपे भी डालें|

गैर-जाट संघी भी चाहे तो मेरे इन सवालों के जवाब दे सकता है| देखते हैं कौन संघी इन बातों के आशानुरूप जवाब दे पाता है|

बाकी गैर-संघी यानी मेरे जैसे जाट इस डिबेट में संयम और सौहार्द बनाएं रखें, ताकि एक शांतिपूर्ण और मैत्री माहौल में इन लोगों को हमारे इन बिन्दुओं पर सुना जा सके|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

Tuesday 24 March 2015

टैलेंट बनाम आरक्षण!


जैसे किसान के उत्पाद का दाम निर्धारित करने का आरक्षण व्यापारी जाति के पास है, जैसे किसान की भक्ति को हाईजैक करके लेबलिंग करने का आरक्षण पुजारी जाति के पास है, क्या ठीक वैसे ही व्यापारी के उत्पाद का दाम भी किसान को निर्धारित करने का आरक्षण नहीं होना चाहिए और पुजारी के दान का हिसाब-किताब करने का आरक्षण भी किसान-कमेरे को नहीं होना चाहिए?

अरे इतने सारे जाति पर आधारित आरक्षण पहले से लिए बैठे हो, और एक मात्र नौकरियों के आरक्षण पे रोते हो? नहीं शायद सही कहते हो, ...अब इस जाती आधारित आरक्षण को खत्म कर ही देना चाहिए, तो चलो पहले खत्म करो यह दोनों आरक्षण जो कि बाकी के तमाम आरक्षणों की जड़ हैं|

यह उन महानुभावों के लिए है जो यह कहते हैं कि जिसको जो काम आता है, उसको वही करना चाहिए|

अरे किसान को नहीं चाहिए व्यापारी के उत्पादों का दाम निर्धारित करने का आरक्षण या पुजारी के दान का हिसाब-किताब रखने का आरक्षण, किसान को उसके उत्पाद का दाम निर्धारित करने का आरक्षण दे दो, फिर हो जाने दो नौकरियों का आरक्षण खत्म, कोई परवाह नहीं|

अन्यथा नौकरियों में जातिगत अथवा किसी भी प्रकार का आरक्षण खत्म करने पे बोलने वाले, पहले अपना गिरेबान झांकें|

यह "तुम्हारा टैलेंट, टैलेंट, बाकियों का टैलेंट गोबर" वाली मत करो| जानते हैं नौकरियों में जैसा टैलेंट चलता है, 90% डोनेसन पे डिग्री ले, बाद में सिफारस और भाई-भतीजावाद के जरिये लगे हुए होते हैं|

और फिर आपको नौकरियों में ही आरक्षण खत्म क्यों चाहिए, आप खेतों में हल चलाने के लिए आरक्षण क्यों नहीं मांगते? आप लोग बोलो ना कि हमें भी हल चलाना है, इसलिए हमें हल चलाने का आरक्षण दो| तब पता लगे टैलेंट के दम का तो|

Monday 23 March 2015

जातीय और वर्णीय सेकुलरिज्म!

हिन्दू होते हुए जो मुस्लिम के लिए बोले, वो तो हो गया 'धार्मिक सेक्युलर'; और सिर्फ हिन्दू और हिन्दुइस्म की बात करने वाला हो गया 'तथाकथित राष्ट्रवादी'|

तो ऐसे ही हिन्दू की जाति या वर्ण का होते हुए जो अपने लिए बोलने से पहले बाकी की 35 कौमों या 4 वर्णों की बात करे वो भी तो 'जातीय या वर्णीय सेक्युलर' होना चाहिए ना; और जो सिर्फ अपनी और अपनी जाति की बात करे वो ही शुद्ध रूप से राष्ट्रवादी होना चाहिए, नहीं?

जैसे 'धार्मिक सेक्युलरलिस्म' है ऐसे ही 'जातीय और वर्णीय सेकुलरिज्म' है; फर्क सिर्फ इतना है कि वो धर्म के लेवल का है और यह जाति और वर्ण के लेवल का| इसलिए आज से अपने लिए बोलने से पहले बाकियों के लिए बोलने वाले 'जातीय और वर्णीय सेकुलरिज्म' को भी अब खत्म कर देना चाहिए| और सिर्फ उन नश्लों से सेकुलरिज्म बढ़ाना चाहिए जो आपको अपना समझती हों और जो आपके लिए कारोबारी तौर पर व् विचारात्मक तौर पर समकक्ष हों| इस अंधे 'जातीय और वर्णीय सेकुलरिज्म' को अब तिलांजलि हो| अब जमाना आ गया है सेकुलरिज्म के नाम पर धर्म के बाद इस 'जातीय और वर्णीय सेकुलरिज्म' के कीड़ों की भी केटेगरी डिफाइन करने का, और इनको तिलांजलि देने का|

जाट-दलित व् अल्पसंख्यकों के एक होने का दौर!


जाट पहले कट्टर बौद्ध थे। सम्राट कनिष्क और सम्राट हर्षवर्धन जाट थे और बहुत ही प्रसिद्ध बौद्ध सम्राट थे। लेकिन, फंडियों ने इन बौद्ध सम्राटों को अलग अलग षड्यंत्र करके नष्ट कर दिया। और इसी विखंडन का जोर था कि हरियाणा में तो आज भी "मार दिया मठ", "हो गया मठ", "कर दिया मठ" जैसी विनाश की धोतक कहावतें चलती हैं|

फंडियों को पता है कि जाट लोग प्राचीन बौद्ध है और तुम्हारे फंडों में कभी नहीं आएंगे| इसलिए फंडी लोग जाट आरक्षण के कट्टर विरोधी हैं। जाट अपना प्राचीन इतिहास भूले बैठे हैं और धूर्त फंडियों के बहकावे में आकर खुद को उच्चवर्णीय समझने की गफलत में डाले जा रहे हैं, जबकि वास्तविकता यह है कि हम इनकी बनाई किसी भी प्रकार की वर्ण-व्यवस्था और जाति-व्यस्था में आते ही नहीं हैं|

इनके बहकाये हुए जाट अपने काम-काज से ले के दुःख-सुख के साथी दलित भाईयों से द्वेष रखने लगे हैं और कहीं-कहीं तो उन पर अन्याय-अत्याचार कर रहे हैं। इनका फैलाया यह जहर इतना व्यापक है कि दलित भी जाट से द्वेष रखते हुए पाये जाने लगे हैं, जिसको कि तुरंत प्रभाव से खत्म करने के प्रयास होने चाहिए|

अगर हमें अपना विकास करना है तो पहले फंडियों के धार्मिक बंधनों में से बाहर आना पडेगा और दलित व धार्मिक अल्पसंख्याकों ( SC/ST/SBC/other OBC and converted minorities) के साथ एक COMMON FRONT बनाना होगा। ताकि मंडी और फंडी हमारी फूट के चलते हमारे जो अधिकार-साधन-सम्पदा-सम्पत्ति दबाये बैठे हैं, उनको इनसे लिया जा सके|

Sunday 22 March 2015

जाट आरक्षण रद्द होने के बाद अगला कौन?


जाट आरक्षण रद्द होना, ST/SC व् OBC के लिए जश्न मनाने का नहीं अपितु सचेत हो जाने का संकेत!

क्योंकि काफी पहले से आरक्षण के खिलाफ मंडी-फंडी जो विरोधी शुर अलापते आ रहे थे, अब 'जाट आरक्षण रद्द' होने को बेंचमार्क डिसिशन (benchmark decision) मान कर गुज्जर-यादव व् अन्य OBCs के आरक्षण के साथ-साथ दलितों के आरक्षण को भी ऐसे ही तर्क दिलवा के रद्द करवाने की कोशिश करेगा, ऐसे पूरे आसार बन गए हैं|
इसलिए आप लोग जाटों के आरक्षण रद्द होने की ख़ुशी मनाने से ज्यादा इस पर सोचिये कि मंडी-फंडी के निशाने पे आप में से अगला कौन?

और इस पर आगे बढ़ने से मंडी को रोकना है तो अब आप लोग इनसे आपके (खासकर किसानी जातियां) सदियों से आपकी फसलों व् उत्पादों के विक्रय दाम निर्धारित करने का आरक्षण जो यह लोग लिए बैठे हैं, इसको लेने की आवाज उठाना शुरू कीजिये|

और इस पर आगे बढ़ने से फंडी को रोकना है तो अब आप लोग इनसे मंदिरों में आपकी जाति के प्रतिशत के हिसाब से पुजारी-महंत बनने व् इसी प्रतिशत में मंदिरों की सम्पत्ति पर अपना आरक्षण मांगना शुरू कीजिये|
वरना कहीं ऐसा ना हो कि आप लोग जाटों का आरक्षण रद्द होने की ख़ुशी में डूबे रहो और कल को पता लगे आपमें से भी किसी का रद्द हो गया, और एक दिन पूरा आरक्षण ही खत्म हो गया|

और जिस प्रकार से जाट आरक्षण के रद्द होने की मंडी-फंडी (जिनको कि इससे कोई फायदा ही नहीं होना था) तक ख़ुशी मना रहा है, कहीं यह ख़ुशी आरक्षण को पूर्णत: खत्म करवाने के उनके मंसूबे की पहली चाल के सफल होने के आयोजन में ना हो, कि जाटों का रद्द करवा दिया तो बाकियों का चुटकियों में करवा देंगे, जाटों वाले केस को बेंचमार्क मानते हुए| इसलिए जाटों से बिखरा रहने की बजाय जुड़ने की सोचें|
 

Thursday 19 March 2015

"किसानों को आज़ाद कराएं, मस्ती में हम मस्ताने"


(लैंड-बिल 2015 यानी गुलाम किसान)

सर पे कफ़न बाँध कैं आये, हम आज़ादी के दीवाने,
किसानों को आज़ाद कराएं, मस्ती में हम मस्ताने|


इंकलाब और जिंदाबाद का, मिलकेँ लगा रहे नारा,
हे भगवान कौण दिन होगा, जब हो राज-काज म्हारा|
जमीं हो अपणी, आसमान पर चमकै किसानों का तारा,
मेळे लगें चिताओं पै म्हारी, हँसता रहै किसान सारा||
मुर्दाबाद जुल्म हो थारा, यें डह ज्यांगे चौकी-थाणे|
किसानों को आज़ाद कराएं, मस्ती में हम मस्ताने|

सर देणे की हमें तमन्ना, देखेंगें महाघोर तेरा,
वक्त आणे दे, गूँज उठैगा, पाप रूप का शोर तेरा|
चेहरे पै काळस पुत री है, खुद है मन म चोर तेरा,
चढ़-चढ़ कैं कितने गिरगे, के सदा रहगा जोर तेरा||
रळै रेत म्ह बोर तेरा, यें शमा पै जळ ज्याँ परवाने|
किसानों को आज़ाद कराएं, मस्ती में हम मस्ताने|

वतन की इज्जत ऊंचीं हो हम इसकी आस करणीया हैं,
मंडी-फंडी हुकूमत की जड़ पाडेँ, दाहूँ नाश करणीया हैं|
किसान-कौम की आज़ादी की, हम दरखास करणीया हैं,
जीणे से ज्यादा मरणे का, हम अभ्यास करणीया हैं|
धरती-माँ के लाल हमें हैं, अपने फर्ज पुगाणे|
किसानों को आज़ाद कराएं, मस्ती में हम मस्ताने|

झूंम-झूंम कैं गाण लगे अब, नहीं हमें गुलाम करो,
नहीं किसान झुकै कभी भी, चाहे तुम कितणा त्रास करो|
न्यूं ही किसान चलता जावैगा, जुल्म को जालिम ख़ास करो,
'फुल्ले-भगत' टिल्ले म जा कैं, खूब जोर से अभ्यास करो||
फांसी द्यो या जन्म-कैद, लिए पहर केसरी अब बाणे|
किसानों को आज़ाद कराएं, मस्ती में हम मस्ताने|

सर पे कफ़न बाँध कैं आये, हम आज़ादी के दीवाने,
किसानों को आज़ाद कराएं, मस्ती में हम मस्ताने|

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Tuesday 17 March 2015

हर जाट का अब "जाट-देवता" बनना जरूरी हो गया है!

("मेरा दान मेरी ताकत, मेरी कंजूमर-पावर मेरा कंट्रोल" का सूत्र अपनावें|)

जाट आरक्षण को रद्द करने के आये फैसले को वापिस करवाने का सबसे अचूल-मूल तरीका और इसकी जरूरत को कानून को समझाने का रास्ता अब यही है कि सारे जाट, पुजारियों-पुरोहितों से निम्न प्रकार का असहयोग शुरू कर देवें|

हालाँकि वैसे तो आप लोग पहले से ही भारत की उन जातियों में आते हो, जो नीचे बताई हुई चीजों को सबसे कम मात्रा में करती है, परन्तु अब वक्त आ गया है उस कम को और कम करके शून्य पे ले आने का या उससे स्वरोजगार योजनाएं शुरू करने का, और वो कैसे, वो ऐसे:

1) किसी भी जगराते वाले को अपनी गाँव-गली-मोहल्ले में मत फटकने दो, जितने जगराते बुक कर रखे हैं सारे कैंसिल कर दो या करवा दो|
2) कोई गाँव में जगराता करवाये तो करवाने वाले और जगराता पार्टी दोनों से गांव में जगराते के लिए मिली सुविधाओं के बदले उन पर टोटल चंदे (इनकी निजीभाषा में कमाई) का 50% सर्विस टैक्स चार्ज करना शुरू कर दो और उसको गाँव के विकास के लिए वहीँ के वहीँ रखवा लिया जावे| क्योंकि अब जाटों को और तो कहीं नौकरी मिलनी मुश्किल होंगी, इसलिए स्वरोजगार योजना के तहत यह काम शुरू किया जावे और अपने गाँव-गली-नगरी के विकास में सहयोगी बना जावे|
3) जब तक जाट आरक्षण वापिस नहीं होता, तब तक कोई भी जाट किसी भी मंदिर-धार्मिक संस्था में दान ना देवे| और अपने-अपने गाँवों में निर्माणाधीन मंदिरों का तुरंत प्रभाव से बहिष्कार करे| उनमें अनिश्चितकाल के लिए खुद भी जाना और अपनी औरतों को भी इनमें ना जाने बारे जागरूक बनावें|
4) टोने-टोटके वालों की दुकानों पे जाना बंद कर देवें|
5) ब्याह-शादी में फेरे सिर्फ जाटू भाषा (यानी हरियाणवी या हिंदी) में करवाने शुरू करवाएं| और अग्नि की जगह गाँव के खेड़े के सात फेरे लेवें, जिससे कि आपके पुरखों-बुजुर्गों का आपको डायरेक्ट आशीष तो मिलेगा ही, हमारी अपनी संस्कृति का संवर्धन भी होगा|
6) किसी भी प्रकार का नामकरण-गृहप्रवेश-पिंडदान अपने-आप कर लेवें अन्यथा इनसे ना करवावें| क्योंकि पहले ही फसलों के कम दाम, कर्ज में डूबे जाट, कहाँ से यह आलतू-फ़ालतू के नवाबी शौक पुगाया करेंगे, अब?

हाँ इन सबके मद्देनजर किसी भी प्रकार की तोड़-फोड़ ना होने पाये|

क्योंकि आप जाट होते हो, जिनको कि भारतीय इतिहास और संस्कृति ने खुद 'देवता' कहा है, याद रखिये हम 'जाट देवता' कहलाते हैं, तो देवता की पूजा अब यह लोग करें| हम इनकी कही, बताई चीजें क्यों करें? इसलिए आज से हर जाट अपने वास्तविक देव्य रूप में आ जावें और "जाट देवता" का अपना वास्तविक रूप धारण कर लेवें|

व्यापारियों से असहयोग के साथ अब पुजारियों से भी असहयोग का वक्त है और इसके लिए हर जाट का अब "जाट-देवता" बनना जरूरी हो गया है| और इस प्रकार मैं आज से 'जाट-देवता' हुआ! - फूल मलिक

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जाट आरक्षण खत्म करना 18 मार्च को दिल्ली में होने वाले किसान आंदोलन की कमर तोडना!


(यह मंडी और फंडी की किसान समाज को बाँटें रखने की साजिश के अलावा कुछ भी नहीं)

वर्तमान सरकार ने आते ही किसानों की फसलों के दाम गिराये, यूरिया के लिए किसानों की औरतों तक की थानों में लाईन-हाजिरी हुई, फिर काला लैंड आर्डिनेंस लाये, उस पर अभी हाल ही हुई प्रकृति की ओलावृष्टि और बेमौसम बरसात की मार; यह सब प्राकृतिक और कृत्रिम कारण मिलजुल कर, कल यानी 18 मार्च को जंतर-मंतर पर किसान की आवाज बनने जा रहे थे और 1991 से टूटी चली आ रही "अजगर" समेत तमाम किसान-कमेरा वर्ग की एकता का आगाज, कल के किसान आंदोलन से होता दिख रहा था, कि मंडी और फंडी के हाथ-पाँव फूल गए और उतार दिया ना सिर्फ इन मुद्दों से ध्यान बंटवाने अपितु किसान समाज को एक ना होने देने से रोकने हेतु 'जाट आरक्षण को रद्द करने का फैसला' वो भी सुप्रीम कोर्ट के रास्ते से|

इसलिए इस वक़्त जाट आरक्षण क्यों रद्द हुआ, जाट इसको छोड़ कर, बाकी सारे किसान समाज को जोड़ के कल के होने वाले किसान आंदोलन पर ही ध्यान केंद्रित रखें तो ही इन मंडी-फंडी की साजिशों का मुंहतोड़ जवाब दिया जा सकेगा| थोड़ा सा इतना जरूर लिख दूँ कि आज के सुप्रीम कोर्ट के फैसले से किसान आंदोलन कैसे प्रभावित होगा| होगा यह कि जो अजगर की 24 साल पुरानी फूट थी, उसको फिर से मंडी-फंडी गैर-जाट किसानी जातियों में ले के जायेगा और उनको बहका लेगा| और गैर-जाट किसान भी जाट की ही तरह इतना भोला है कि वो शायद जाट किसान से एकजुट हो वर्तमान में किसान पर मंडराएं काले बादलों को छांटनें हेतु लड़ने की अपेक्षा कहीं जाटों के आरक्षण रद्द होने के जश्न में ना डूब जाए| और यही चाहने और पाने के लिए मंडी-फंडी ने यह तुरुप का पत्ता आज चलवाया है|

फ़िलहाल इतना ही और कहूँगा कि इन तमाम तरह के षड्यंत्रों का एक ही अचूक इलाज है और वो है "दो महीने के लिए किसान जातियों द्वारा व्यापारिक जातियों से खाने-पीने के सामान को छोड़, बाकी सारे सामान के खरीदने-बेचने का बायकाट का असहयोग आंदोलन|" - my video on how to run this 'असहयोग आंदोलन' - https://www.youtube.com/watch?v=osGdn8hPXC4

और मेरा परसों लिया "मेरा दान मेरी ताकत, मेरी कंजूमर-पावर मेरा कंट्रोल" का फैसला ना सिर्फ सही है अपितु आजीवन के लिए और भी पक्का व् दुरुस्त हो गया है| - फूल मलिक

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Monday 16 March 2015

Paragraphic - प्रकरण-संबंधी

4) या तो हिन्दू धर्म मुझे बुद्ध की उपासना करने दे, अन्यथा बुद्ध को हिन्दू धर्म का दसवां अवतार लिखना और कहना बंद करे!

3) व्यापारियों की इस सरकार के दौर में किसान अपनी Consumer Power को पहचानें, यही एक शक्ति है जो आज किसान की दुर्गति होने से बचा सकती है|

2) फूल बनकर कभी मत जीना, जिस दिन खिलोगे टूटकर बिखर जाओगे! जीना तो पत्थर की तरह जीना, जिस दिन तराशे गए, खुदा कहलाओगे|

1) किसान से तो पशु की औकात भी ज्यादा: कोई पशु (गाय) को काटे तो उसपे 302 का मुकदमा, लेकिन कोई किसान ख़ुदकुशी कर ले तो उसके लिए 309 के तहत नामजदगी भी बंद|
 

Sunday 15 March 2015

NH10 Movie Review!


इस मूवी को ले के जिस इंसान का दिया review प्रस्तुत कर रहा हूँ, अक्सर मुझे ना तो इसकी बातें पसंद आती हैं और ना ही इसका व्यवहार| परन्तु शायद यह फिल्म ही इतनी बड़ी बकवास थी कि मुझे पहली बार कमाल खान का किया analysis इस फिल्म से ज्यादा पसंद आया आप भी देखें, क्यों?

A rightly and firmed slap on the makers of this totally nonsense flick!

धन्यवाद कमाल खान आपने मेरी मेहनत बचा दी, वर्ना मुझे मेरी स्टेट को इस बकवास फिल्म के विरुद्ध बचाने में एक लम्बा लेख लिखना पड़ता| मतलब एक ऐसी स्टेट जो 1947 में बॉर्डर के उस पार से आये से ले के (ध्यान दें, वो अधिकतर इसी NH10 पे बसे हैं), 1984 में सिख दंगों से तंग हो के पंजाब से हरियाणा के जीटी रोड पे आन बसे और अब तीन दशक से असमी-बिहारी-बंगाली सबको रोजगार दे रही है, वो इतनी खूंखार बना के पेश की जा रही है| और इसपे भी अचम्भा तो यह कि इस हरियाणा में इन्हीं लोगों के अनुसार इतने अत्याचारी लोग होने के बावजूद भी पूरे देश, यहां तक कि मुंबई-महाराष्ट्र छोड़ के भी लोग इधर ही क्यों रोजगार कमाना, बसना, आशियाना बनाना पसंद करते हैं? कमाल तो यह है कि इनमें (यहीं रोजी-रोटी पाने वाले) से कोई हरियाणा का कुछ पॉजिटिव बोलने को तैयार नहीं|

KRK Review:

मेरा दान मेरी ताकत, मेरी कंस्यूमर पावर मेरा कंट्रोल!



 ताकि मुझ किसान को कोई लूट ना सके, मुझे लूटने की सोच ना सके, मुझे गुलाम व् बंधुआ ना बना सके|

मैं, एक किसान वंशज भारतीय किसान इतिहास के सबसे काले लैंड-आर्डिनेंस 2015 व् कर्मकांड के नाम पर बढ़ते पाखंडों से बुरी हो चली किसान कौम की दुर्दशा के मद्देनजर आज दिनांक 15/03/2015 को आधिकारिक व् सार्वजनिक तौर पर निम्नलिखित ‘आजीवन संकल्प’ लेता हूँ कि:

मैं ताउम्र किसी भी ऐसी धार्मिक सभा-संस्था-आस्था में ना दान दूंगा, ना भाग लूंगा, जो:
1) मुझे मेरे दिए दान का हिसाब-किताब ना बताती हो|
2) उस दान को कहाँ और क्यों लगाया गया, इसकी जानकारी ना देती हो|
3) उस दान के पैसे से मेरी कौम-समाज-गांव-जिले-राज्य के इतिहास और विरासत लिखने-संजोनें पे कितना खर्च किया, यह ना बताती हो व् कितना खर्च करने का लक्ष्य रखती है यह निर्धारित ना करती हो|
4) उस दान के पैसे से मेरी कौम-समाज-गांव-जिले-राज्य की संस्कृति के संवर्धन-उत्थान-प्रचार के लिए कितना खर्च करती है, यह ना बताती हो व् ऐसा कोई लक्ष्य ना रखती हो|

मैं ताउम्र किसान समाज को प्रेरित व् जागृत करता रहूँगा कि:
1) वो अपनी औलाद को व्यापार जरूर सिखाये, अर्थात भावनात्मकता से पहले पैसा-उन्मुख (money oriented) बनना सिखाएं|
2) उसको त्रिभाषी (हिंदी, इंग्लिश व् अपनी जन्मज भाषा/बोली) बनाएं और इसको गलत बताने वालों की आलोचना करना सिखाएं|
3) अपने उत्पाद यानी फल-फसल-फूल का विक्रय मूल्य खुद निर्धारित करने का हक लेवे|
4) अपनी खेती का व्यापारीकरण कैसे किया जाए, इस पर तब तक चिंतन-मंथन करते रहें, जब तक कि एक दिन यह हासिल ना हो जाए|
5) साल में दो हफ्ते का "किसान उपवास" रखें; जिसमें दो हफ्ते तक बाजारों से सिवाय खाने के बाकी किसी भी प्रकार का सामान ना ही तो खरीदा जावे, और ना ही बेचा जावे|

अनियंत्रित और बिना निगरानी के दान से फंडी अनियंत्रित होता है और बिना सोची समझी स्वभिमान रिक्त खरीदारी से मंडी अनियंत्रित होता है| और इन दोनों बातों की अनुपस्थिति में यह दोनों इतना दुःसाहस पा जाते हैं कि किसान को भूमि अधिग्रहण आर्डिनेंस 2015 जैसे बिल और कटटरता-धर्मान्धता के नाम पर भटकाए व् गुलाम बनाये रखने के गौरख-धंधे बढ़ाते ही चले जाते हैं| यह दोनों किसान के बाड़े के वो खूंखार व् उन्मादी पशु हैं, जिनको अगर खूंटे से बाँध के ना रखा जाए, तो दूसरे शांत-शरीफ पशुओं को भी नुक्सान पहुंचाने से बाज ना आवें|

इसके साथ मैं हर किसान-कमेरे की संतान को भी इन संकल्पों को धारण करने का आग्रह करता हूँ| इन संकल्पों बारे आपके संदेह-सुझाव हेतु मैं आपसे चर्चा करने को उपलब्ध हूँ|


- फूल मलिक, निडाना नगरी, जिला जींद, हरियाणा!

जय यौद्धेय! जय माँ हरियाणवी! जय दादी भारती!

#jaikisaan #jaijawan #mannkibaat



Friday 13 March 2015

अपशकुनों की करेक्शन - 1 - "बिल्ली या काली बिल्ली का रास्ता काटना"!


"बिल्ली या काली बिल्ली का रास्ता काटना"!

पुराने जमाने में जब मोटर-कार की जगह लोग बैलगाड़ी से सफर करते थे तो रात के समय गाडी के नीचे लालटेन जला के रखते हुए चलते थे| लालटेन केरोसीन तेल से जलती थी, जिसकी रौशनी अगर बिल्ली की आँख की रेटिना पर पड़ जाए तो वो चमकने लग जाती थी और तीव्र गति की भड़कीली प्रकाश-ऊर्जा की किरणें विसर्जित करने लग जाती और इस चमक से बैल डर जाया करते थे, जिससे कि बैलों के बिदकने यानि भड़कने का भय रहता था| और बैल भड़के तो गाड़ीवान से ले गाडीस्वार और सामान को नुकसान का खतरा|

तो बिल्लियाँ रास्ता ना काटें, लोग ऐसा सिर्फ और सिर्फ इस वैज्ञानिक कारण की वजह से सोचते थे| लेकिन-क्योंकि-किन्तु-परन्तु फंडी और पाखंडी डेरों-मंडेरों में खाली बैठे हुआ करते थे, जो कि आज भी बैठे होते हैं और खाली दिमाग शैतान का घर होता ही है| इसलिए ऐसी चीजों को शुभ-अशुभ, होनी-अनहोनी में बदलने में ही इनके दिमाग ज्यादा चलते हैं| तो बस बना दिया इसको अपसकुन का ढकोसला और ऐसे वो बिल्ली जिसको कि फसल में छोड़ दो तो चूहे फसल के नजदीक ना आवें, साथ रखो तो सच्ची दोस्त बन जावे; वही बिल्ली बन गई समाज के अंधभक्त-अंधविश्वासी लोगों के लिए मनहूस-अपसकुनि|

और इसीलिए तो मेरे गाँव में फंडी-पाखंडी कोई सामूहिक दावा करने आवे तो, हर बार जूते खा के जावे है| - फूल मलिक

Thursday 12 March 2015

जख्म देने वाला मरहम लगाने आया है|

(An open letter to Ravish Kumar of N.D.T.V.)

लेख बाबत: कल (11/03/2015) एन. डी. टीवी पर रवीश कुमार की किसानों की ओलों व् बारिश की वजह से बर्बाद हुई फसल पर प्राइम-टाइम रिपोर्ट बारे|

निचोड़: रवीश कुमार जी आज से पहले क्या कभी ओले नहीं पड़े थे, या बेमौसम बारिशें नहीं हुई थी? आपकी इसपे रिपोर्टिंग इस बार ही क्यों आई; वो भी ऐन लैंड-आर्डिनेंस के पास होने की संध्या पे? मेरी नीचे प्रस्तुत खिन्नता का समाधान कीजियेगा अगर हो सके तो:

1) खिन्न-मन रवीश कुमार को धन्यवाद देने से ज्यादा उसके कान पकड़ के खींचने की कह रहा था| क्योंकि यह वही इंसान है जो किसानों के उस सामाजिक तंत्र की बख्खियां उधेड़ता है जिसको हम "खाप" यानी मोटे तौर पर किसानी कौम कहते हैं| यह खिन्नता सिर्फ इसलिए नहीं हो रही थी कि रवीश ने अपने पुराने के प्राइम-टाइमों में खाप को कोसा, अपितु इसलिए हो रही थी कि उसने किसानों के उस सामाजिक तंत्र को कोसा, जिसके दबाव के नीचे रहकर नेता किसानों के आर्थिक हितों को ऐसे जैसे आज लैंड-आर्डिनेंस के जरिये खुले में लुटवा रहे हैं, ऐसी हिम्मत नहीं कर पाया करते थे|

उदाहरण के तौर पर बाबा महेंद्र सिंह टिकैत जी का जमाना पढ़ लीजियेगा रविश कुमार जी| इस उदाहरण के साथ यह भी कह दूँ कि ऐसा नहीं कि आज के दिन ऐसे शेर नहीं किसानों के यहां, हैं परन्तु आप मीडिया वालों ने उनकी सामाजिक संस्थाओं पे एक तरफ़ा सिर्फ नकारात्मक हमला करके, उनके विश्वास को क्षीण किया हुआ है| और सामाजिक तंत्र को कोसना, यानी उसके प्रति नेताओं का डर-लिहाज शर्म - जिम्मेदारी मिटवा देना और नेताओं को खुला रास्ता दिलवा देना| क्योंकि नेता दो डर माना करता है, एक समाज की लिहाज-शर्म का और दूसरा भय-आक्रोश का| तो जैसा कि ऊपर कहा नेताओं की किसान के प्रति लिहाज-शर्म तो रविश कुमार आप पहले ही ख़त्म कर चुके, अब क्या किसान के उबल रहे आक्रोश को दबाने गए थे?

2) दूसरा मुझे ऐसा लग रहा था जैसे रविश कुमार लैंड-आर्डिनेंस, फसलों के कम दामों की मार और अब ओलों-बारिश से लुटे-पिटे किसान को ऐसे पुचकारने आये हों, जैसे बिल्ली चूहे को मारने से पहले पुचकारा करती है| मुझे यह महज एक राजनैतिक षड्यंत्र से ज्यादा कुछ नहीं लगा| वर्ना आज से पहले क्या ओले नहीं पड़े, या बारिशें नहीं हुई? मतलब साफ़ है ऐसे नाजुक वक्त पे ऐसे कार्यक्रम दिखा के आप लोग सरकार व् व्यापारियों के लैंड आर्डिनेंस के रास्ते को और सहज करना चाहते हैं; प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से, इसपे विवेचना हो सकती है| किसानों के हितैषी दिखना चाहते हैं, उन्हीं किसानों के जिनके सामाजिक संगठनों के सकारात्मक पहलुओं को छोड़, उनका हर तरह बलात्कार आप लोग आपके स्टूडियोज में करते हैं| श्रीमान रवीश कुमार, अगर "खापों" और तमाम तरह के दूसरे कृषक सामाजिक संघटनों की बुराई पे कोसने के साथ-साथ अच्छाई पे पीठ थपथपाई होती कभी, उनकी हौंसला अफजाई की होती तो इसकी नौबत नहीं आती जो आप आज करके लाये हैं| पहले तो किसानों के सामाजिक संगठनों को स्टूडियो में बैठा के उनकी "रे-रे माटी करी, और राजनैतिज्ञों को इनके प्रभाव से मुक्त कर दिया और अब चले हो इनके हमदर्द बनने| सॉरी ब्रदर, पर आपका यह कार्यक्रम किसी नेता वाले घड़ियाली आंसुओं से ज्यादा कुछ नहीं लगा|

3) भले ही आप या आपका चैनल आपके इस कार्यक्रम की सीरीज में इसके प्रभाव नाम से एक कार्यक्रम और यह कहते हुए दिखाते मिल जावें कि देखो एन. डी. टीवी की रिपोर्ट का असर, पटवारी फसल के नुकसान की गिरदावरी करने खेतों में पहुंचे, आदि-आदि; परन्तु इससे कुछ होने वाला नहीं| क्योंकि जब तक किसान के उस मान-सम्मान को वापिस नहीं दोगे, जिसका आप जैसे एंकर लोग अपने स्टुडिओज़ में बलात्कार कर चुके हैं, तब तक किसान खड़ा नहीं होगा, एक जुट नहीं होगा (और होगा तो बहुत संघर्ष करने के बाद)| इसलिए सरकार तो जो आर्थिक मार मार रही है वो तो है ही, लेकिन उससे पहले अगर आप मीडिया वाले किसानों के सही में हितैषी बनना चाहते हैं तो हमारे सामाजिक तंत्र के नकारात्मक पहलुओं पे जैसे एक-एक घंटे के सैंकड़ों कार्यक्रम किये हैं, ऐसे कुछ हमारे सामाजिक तंत्र के सकारात्मक पहलुओं पर कर दीजिये| और फिर देखिएगा कैसे आपकी यह हमारे आर्थिक पहलु दुरुस्त करने की प्रतीत सी होती टीस को हम अपने आप ही दुरुस्त कर लेते हैं|
अंत में सार यही है कि एक किसान, मीडिया से उसके आर्थिक पहलुओं बारे आवाज उठाने से ज्यादा उसके

सामाजिक संगठनों, सरोकारों और पैरोकारों को सहेजने, सम्मान देने और उनकी योग्यता को उठाने हेतु काम करने की अपेक्षा करता है| वरना ऐसे हमें सामाजिक तौर से हीन दिखा के हमारे यह आर्थिक मुद्दों की आवाज उठाओगे तो यह हमारे लिए एक दुःस्वप्न वाले मजाक से कम ना होगा| होनी-अनहोनी-किस्मत-सरकार-भगवान क्या कम थे हमारा मजाक उड़ाने को जो अब आप जख्म देने वाले भी मरहम लगाने आये हैं?

चलते-चलते, इन संदेहों और सवालों के साथ मानवीयता के आधार पर आपको धन्यवाद; याद रखियेगा मानवीयता के आधार पर, वरना मन तो खिन्न ही है आपसे| अब आपको मेरा यह लेख मिले तो यह मत सुनाने लग जाइयेगा कि एक तो इनके लिए रिपोर्टिंग करो और ऊपर से आलोचना सुनो| क्या है कि जनाब मुझे आपसे समुन्द्र के किनारे पड़ी सीप की नहीं, उस सीप के अंदर के मोती की आस है| और मोती कैसे दिला सकते हो किसानों को, उसका रास्ता ऊपर सुझाया है| - फूल मलिक

Source: http://khabar.ndtv.com/video/show/prime-time/prime-time-loss-due-to-rain-farmers-worried-359532  

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Wednesday 11 March 2015

इस वीडियो को रिकॉर्ड करने वालों के लिए कुछ प्रतिउत्तरात्मक सवाल!

1) शहीद-ए-आजम सरदार भगत सिंह के खिलाफ कोर्ट में गवाही देने वाला सरदार शोभा सिंह कौन था?

2) महाराजा नाहर सिंह को धोखा दे के अंग्रेजों से संधि के बहाने चांदनी चौक पे फांसी पे झुलवाने वाला पंडित गंगाधर कौल कौन था?

3) सिख धर्म के पांचवें गुरु चुने जाने में एक उम्र से पांच गुना छोटे अर्जुन देव जी को बाबा बुड्ढा जी की जगह गुरु बनाने की गन्दी राजनीती कर योग्यता और वीरता की बलि चढाने वाले कौन थे?

4) अभी 2005 में खुद एक सामाजिक प्राणी होते हुए खापों के खिलाफ कोर्ट में याचिका करने वाला पंचकुला का साहनी कौन है?


अब आती है इस वीडियो की आखिरी लाइन की बात, कि जट्टों के घरों में दस-के-दस सिख गुरु कौनसी जाति के है बारे कहने की| तो महानुभाव बात ऐसी है कि अगर आपको इससे ऐतराज है तो कोई नी आप ऐसे ही वीडियो रिकॉर्ड करते रहोगे तो एक दिन वो भी नहीं दिखेंगी|

मैंने कभी आपकी जाति को इस ढंग से देखा नहीं, वरना उदाहरण तो 4 की जगह 40 भी रख दूंगा, परन्तु फिलहाल आपसे इतनी ही दरख्वास्त है कि एक बहादुर ही बहादुर को सम्मान दे सकता है, एक महान ही दुसरे महान को सम्मान दे सकता है, इसलिए अगर तुम्हारे अनुसार तुम्हारी जाति के महापुरुषों को जट्ट या जाट अगर सम्मान देते हैं तो यह हमारी महानता है तुम्हारी नहीं| एक सिख ना होते हुए भी मेरे घर के आगे गुरु गोविन्द सिंह और अंदर दस-के-दस सिख गुरुवों की मूर्ती लगी है|

आप अपना ना सही परन्तु अपनी जाति और जाति में हुए महापुरुषों का अपमान जरूर कर रहे हैं| आपकी जाति के महापुरुषों को दूसरी जातियों से सम्मान मिलता है तो इससे आपको शिकायत और घमंड नहीं होना चाहिए, अपितु गर्व और दूसरों के प्रति आदर होना चाहिए|

अरे यार अजीब हो तुम भी, एक तुम हो जिसको उसकी जाति के महापुरुषों को बाहर वाले सम्मान देते हैं तो दिक्कत है; और एक हम जाट हैं जो अपने महापुरुषों के मान-सम्मान को खुद भी सहेजने की कोशिश करें तो लोग हमें जातिवादी ठहराने दौड़ पड़ते हैं|


Monday 9 March 2015

कोई भी जाति अपनी-कौम का भौगोलिक विस्तार और भीतरी भिन्नता कैसे मैनेज करे!

ब्राह्मण-बनियों से सीख के करे| दोनों ही जातियां देश की 3 से 5% हैं, परन्तु फैली हुई हैं पूरे भारत में और फिर भी कभी भी इनके यहां यह सुनने को नहीं मिलता कि भाई क्या करें हमारा तो फैलाव ही इतना ज्यादा हो रखा है कि कोई भी क्षेत्रवाद के नाम पे ही भिड़ा जाता है| क्षेत्रवाद के नाम पर कैसे, कि यह यू. पी. का ब्राह्मण, यह हरयाणा का, तो यह तमिलनाडु का| क्या कभी सुना है ब्राह्मण-बनिया को ऐसे चिंता व्यक्त करते हुए या इस बात की बोर/बखान मारते हुए?

हाँ, जाटों को जरूर सुना है; जो इनकी तरह पूरे भारत में नहीं बल्कि सिर्फ उत्तरी-भारत में ही ज्यादा घनत्व के साथ रहते हैं; परन्तु ब्राह्मण-बनिया जहां पूरे भारत में इनके फैलाव को मैनेज कर लेते हैं और कभी क्षेत्रवाद के नाम पर आपस में नहीं बंटते, वहीँ जाट यह तो औरों के बांटने से पहले खुद ही बोर मारते मिलेंगे|

क्या बोर, कि "के करां भाई म्हारा तो फैलाव ए इतना घणा सै, अक सम्भालना मुश्किल हो रखा!" या ऐसी ही दूसरी खुद को गुमराह करने की बातें| जबकि समस्या यह है कि जाट जाति इस बात को ले के ब्राह्मण-बनियों की तरह सीरियस ही नहीं है कि उनको देश-समाज-राज्य पे राज करना है| और यहीं समस्या पैदा हो रही है, जिस दिन जाट इस बात को सीरियसली लेना शुरू कर देगा; उस दिन यह बांगर का, यह बागड़ का, यह पंजाब का, यह खादर का, यह यमुना के इस या उस पार का, यह ब्रज का, यह दिल्ली का जाट, यह सिख जाट, यह हिन्दू जाट, यह मुस्लिम जाट की जगह, सब एक भाषा बोलेंगे|

हाँ इस धर्म वाले पॉइंट पे चौंकना मत, क्योंकि क्या ब्राह्मण-बनिए मुस्लिम नहीं? मुहम्मद अली जिन्ना बनिया था, नवाज शरीफ कश्मीरी ब्राह्मण, कश्मीर की अब्दुल्ला से ले मुफ़्ती फैमिली सब ब्राह्मण| तो यह कैसे बिना विवाद के रह लेते हैं जो एक हिन्दू या सिख जाट को मुस्लिम जाट नहीं भाता| यानी क्षेत्र के साथ-साथ धर्म के नाम पर भी बाँट| निसंदेह जाटों को इसपे सोचना चाहिए, और धर्म या क्षेत्र के आधार पर कोई भिन्नता या विवाद है तो उसको न्यूनतम साझा विचारों और आचारों के तहत सुलझाना चाहिए और इन आधार पर अगर एक दुसरे में कोई भिन्नता भी है तो उसको अपने में जगह देनी चाहिए, ठीक वैसे ही जैसे ब्राह्मण-बनिया कर रहे हैं| वरना कहने को तो द्रविड़ ब्राह्मण और उत्तर-भारतीय ब्राह्मण में क्या कम विवाद हैं, परन्तु ऐसे मैनेज करके रखे हुए हैं अपने भीतरी विवादों को कि पूरे देश पे राज करते हैं|

इसलिए युवा जाट से अपील है कि कृपया जब आप कॉलेज-स्कूल-शहर-मंडी-मंदिर-धर्मस्थल जाएँ तो देखें कि यह लोग पूरे भारत में फैले होने के बावजूद भी किन वजहों से आपस में एक रहते हैं|

जाट-ब्राह्मण-बनिया तो एक उदहारण था, यह सन्देश है हर जाति-कौम के लिए| - फूल मलिक

Non-cooperation Movement against Land Acquisition Ordinance 2014 - Part 1

भूमि अधिग्रहण अध्यादेश के विरुद्ध एक असहयोग आंदोलन की रूपरेखा ऑडियो में: Friends, I have recorded an audio for, "Non-cooperation Movement against Land Acquisition Ordinance 2014". Please listen it and share in your circle as much as possible from this link, so that it could reach up to right and capable persons! - Phool Malik ‪#‎landacquisitionordinance‬ ‪#‎landacquisitionbill‬ ‪#‎landact‬ ‪#‎landacquisition‬ ‪#‎landacquisitionbill2015‬ Non-cooperation Movement against Land Acquisition Ordinance 2014 - Era of "Jamindari Pratha" is about to reinduced in India; in this very shocking, shakening and shiverning situation of farmer, it become very imperative for farmers to recognize the power of their consumption i. e. their consumer power.  

भारत की गोल बिंदी वाली महिलाओं से याचना!

1) हरियाणा में विधवा विवाह होता है, जबकि जिन राज्यों से आप आती हैं वहाँ विधवाएं पतियों की सम्पत्ति से बेदखल कर विधवा आश्रमों में भेजी जाती हैं|

2) हरियाणा में देवदासी प्रथा नहीं है, जबकि जिन राज्यों से आप आती हैं वहाँ आज कानून बनने के बावजूद भी मंदिरों में देवदासियां पाली जा रही हैं; बेशक सबूत के लिए गूगल करके देख लेवें|

3) हरियाणा में सती-प्रथा नहीं पाई जाती, जबकि जिन राज्यों से आप आती हैं, उनके देहात में आज भी औरतों के सति होने के किस्से सामने आते हैं|

4) बेशक हरियाणा में आज दुल्हन खरीदने का नया रिवाज आ गया हो, परन्तु खरीदी हुई दुल्हनें होती वहीँ हैं, जिनको आपके पीछे के राज्यों के माँ-बाप बेचते हैं| तो आप सीधा समस्या की जड़ यानी आपके राज्यों पे हमला करने की बजाय उस हरियाणा पे हमला करती हैं कि जो एक पल को बहुएं खरीद के लानी बंद भी कर दे तो, वो लड़कियां यहां किसी के घर की बहु बनने की बजाय, मुंबई-हैदराबाद-दुबई के देह-व्यापार मंडियों में बिकेंगी| यहां कम से कम किसी के घर की बहु तो बन रही हैं, हालाँकि जिसको भी इस तरह के ब्याह करने हों, वो दुल्हन को ब्याह के लावें, खरीद के नहीं| परन्तु हरियाणा वाले ब्याह के लाने को तैयार भी हो जावें, पर आपके राज्यों के उन माँ-बापों को कैसे तैयार करोगी जो लड़की बेचते ही पैसे के लिए हैं? फिर वो बेचारी चाहे किसी के घर की बहु बने या किसी देह-व्यापार में जावे|

5) लिंगनुपात दर की सुधार में शीर्ष राज्यों में होने पर भी, आप लोग हरियाणा से अपनी कृपया दृष्टि नहीं हटाती?

6) पंजाब-चंडीगढ़-दिल्ली व् पूर्वी यू. पी., बिहार में सबसे ज्यादा हॉनर किलिंग होने पर भी, आपका हरियाणा नाम के शब्द में ऐसा क्या अटका हुआ है कि घूम-फिर के आपका हिया इसी से चिपकता है?

7) देश के शहरों में कन्याभ्रूण हत्या ज्यादा होने पर भी (एन. सी. आर. में तो आपके राज्यों से आये विस्थापित लोगों का भी बड़ा भाग होता है), आपको हरियाणा के गाँव ही इस मुद्दे पर बोलने हेतु ज्यादा पसंद क्यों हैं? और राज्यों की बात आये तो फिर तो हरियाणा के अलावा आपको कुछ दीखता ही नहीं|

8) देश के 99% मंदिरों के चबूतरों-चौकों-गर्भगृहों में महिला पुजारन नहीं है वो तो आपको दिखती नहीं, फिर आपको यह हरियाणा की खापों के चबूतरों पे कितनी महिलाएं हैं अथवा नहीं हैं, यह कैसे दिख जाती हैं?

9) हरियाणा में महादलित नहीं होने पर भी, आप हरियाणा को ऐसे क्यों दिखाती हो कि यहां ही दलितों पर सबसे ज्यादा अत्याचार होते हैं? गरीब-अमीर का सबसे कम अनुपात है हरियाणा में, फिर भी आपको सबसे पीड़ित (वो भी जाटों के सताए हुए बता के बताती हो) आपको हरियाणा में ही क्यों दीखते हैं? जबकि आपके राज्यों में तो महादलित भी हैं, यानी दलितों से भी नीचे एक और केटेगरी महादलित?

10) हरियाणा में 95% दलित-जाट के झगडे कारोबारी होते हैं, जबकि पूरे देश में 95% दलित-स्वर्ण के झगड़े धर्म की वजह से दलितों से होने वाले भेदभाव जैसे कि किसी को मंदिर में प्रवेश नहीं तो किसी को उच्च-वर्ग के साथ बैठ के खाना खाने का अधिकार नहीं, आदि की वजह से होते हैं| और इनमें आप जिन राज्यों से आती हैं, वहाँ सबसे ज्यादा होते हैं; परन्तु फिर भी किसी जाट-दलित के मुद्दे को आपको ज्यादा उछलना क्यों भाता है? आपको पता है जाट और दलित जब खेतों में काम करते हैं तो एक साथ बैठ के और बहुत बार तो एक बर्तन में खाना खाते हैं, यह चीजें क्यों नहीं दिखती आपको हरियाणा के दलित और जाटों की? आपको पता है धर्म के नाम पे भेदभाव के मामले में हरियाणा सबसे नीचले स्तर के राज्यों में है?

हरियाणा से इतना लगाव है और हरियाणा को इतना सुधारना चाहती हो तो यह जहर उगलना बंद करो और पहले हरियाणा की पॉजिटिव चीजों को सराहने का माद्दा रखो|

यह पोस्ट रंजना कुमारी, एडवोकेट कीर्ति, कविता कृष्णमूर्ति, किरण खेर, जगमती सांगवान जैसी तमाम गोल-बिंदी वाली व् बड़ी सिद्दत से इन मामलों में हरियाणा पे जहर उगलने वाली अंजना ओम कश्यप, नगमा सहर, कादम्बिनी शर्मा जैसी तमाम लम्बे टीके वाली टीवी एंकर तक सम्मान पहुंचें| ऐसा करने में सहायता करने वाले का कोटि-कोटि धन्यवाद| - फूल मलिक

Friday 6 March 2015

टी.वी./मीडिया पे किसी एक्टर/सोशल एक्टिविस्ट द्वारा किसी भी संस्कृति की आलोचना करने का मतलब!

"It is all about 'Negative Marketing' for earning business and perhaps identity too."

1) अगर एक्टर/एक्ट्रेस ऐसा कर रही है तो उसको अपनी फिल्म/टी.वी. सीरियल के लिए मार्किट चाहिए|
2) अगर सोशल एक्टिविस्ट या एन.जी.ओ. वाला ऐसा कर रहा है तो उसको उसकी एन.जी.ओ. और घर चलाने के लिए सरकार से फण्ड हासिली की सुनिश्चितता चाहिए|

एक्टर/एक्ट्रेस तो बेचारे अपनी कमाई को ले के इतने डरे होते हैं हैं कि किसी भी टी.वी. सीरियल या फिल्म के आगे उसके "काल्पनिक होने व् उसमें दिखाए किरदारों का वास्तविक समाज से कोई-लेना देना नहीं होने" की तख्ती लगा के रखते हैं| तो बताइये जो अपने प्रोडक्ट की गारंटी अथवा जिम्मेवारी नहीं ले सकते, वो किसी संस्कृति का क्या भला कर सकते हैं?

और एन.जी.ओ. वाले मामले में तो ऐसा होता है कि 95% लोगों द्वारा उनकी संस्कृति को छोड़ बाकी किसी की भी संस्कृति की रक्षा की ठेकेदारी उठाई होती है, फिर चाहे उस संस्कृति का अ. ब. स. द. भी ना पता हो| कोई खत्री पंजाबी हरयाणवी भाषियों को सुधारने की एन.जी.ओ. खोले होता है; तो कोई धर्म के जरिये जहर फैलाने वाला समाज में एकता और समरसता की| कोई बिहारी-बंगाली खापलैंड सुधारने का ठेका उठाये फिरता है तो कोई आसामिया टी.वी. एंकर जाटों पे ललित निबंध सुना रहा होता है| वही पी.के. फिल्म वाली बात, सब के सब wrong connection.

वास्तव में होता क्या है कि बिज़नेस में एक परिभाषा होती है, जिसको कहते हैं "नेगेटिव मार्केटिंग" (Negative Marketing), जिसका मतलब होता है कि सामने वाले की चीज को छोटा, तुच्छ, यहां तक कि घिनौना बता के अपना माल बेचना, अपना आईडिया बेचना| उस सांस्कृतिक ग्रुप में अपना माल बिक गया यानी फिल्म/टी.वी. सीरियल चल गया, या एन.जी.ओ. का एजेंडा चल गया तो हो गया, उसके बाद भाड़ में जाए जनता|

और 'भाड़ में जाए जनता' बात को साबित करना है तो आप देख लीजिये कि कितनों ने इनकी गतिविधियों अथवा प्रोडक्टों से आजतक हरियाणवी संस्कृति या किसी भी अन्य संस्कृति को कितना सहेजा है? तो संस्कृतियों को बिगाड़ने में अपनी संस्कृति को छोड़ दूसरों की का ठेका उठाने वालों का सबसे बड़ा हाथ है, वर्ना अगर हर कोई अपनी-अपनी संस्कृति के ठेका उठाये रखे तो इतनी बड़ी दिक्क्त ही ना हो, और ना ही 'नेगेटिव मार्केटिंग' की जरूरत पड़े| यहां कभी यह भी जांच के देखिएगा आप लोग की संस्कृति के मामले में 'पॉजिटिव मार्केटिंग' कौन लोग और कैसे करते हैं; ताकि दोनों का अच्छे से फर्क समझ आ जाए|

खैर इस लेख को लिखने का जो मकसद है उस बिंदु पर आता हूँ| होता यह है कि इनकी तो नेगेटिव मार्केटिंग हो जाती है और पैसा कमा के फुर्र हो जाते हैं; परन्तु पीछे छोड़ जाते हैं लोगों में अपनी ही संस्कृति के प्रति असमन्झस, अविश्वास व् दोषयुक्त होने की हीनभावना| और जहां हीनभावना शुरू वहाँ इंसान का अपनी संस्कृति-वस्तु के पक्ष में बोलना खत्म, उसके पक्ष में बोलना खत्म तो उसकी रक्षा खत्म और रक्षा खत्म तो उसको सहेज के रखना खत्म और सहजना ख़त्म तो संस्कृति खत्म| यानी संस्कृति इसलिए खत्म नहीं होती कि कोई आपको उसे सहेजने से रोक रहा है अपितु वो आपके अंदर उसके प्रति अविश्वास पैदा करके जा रहा है; फिर उसको खत्म करने का काम तो उसके लिए बोलना छोड़ देने से आप खुद ही करते हैं|

इसलिए इस मीडिया/टी.वी./बॉलीवुड व् एन.जी.ओ. वालों की इस "नेगेटिव मार्केटिंग" के फंडे को समझें| इनके प्रोडक्ट्स आपको समझ आएं तो देखें अन्यथा इनकी नेगेटिव मार्केटिंग के प्रभाव में आ के तो बिलकुल ना देखें और देखें तो तुरंत उसमें जो गलत था उसकी आलोचना करें| अपने ब्लॉग पे, अपनी सोशल मीडिया पेजों पे इनकी आपकी संस्कृति के खिलाफ दिखाई गई हर नेगेटिव चीज पर खुल के लिखें और खुल के उसको लोगों को बताएं; खासकर अपनी संस्कृति वालों को तो बताएं ही बताएं| परन्तु उनके द्वारा आपके खिलाफ परोसा गया नेगेटिव बताते-बताते, खुद के नेगेटिव को छुपाने की आदत बस इतनी ही डालना कि वो बाहरी समाज से छुपे, आप से नहीं; क्योंकि आपको तो उसको उखाड़ना है| निचोड़ यही है कि अपनी सभ्यता-संस्कृति को इस नेगेटिव मार्केटिंग की भेंट ना चढ़ने देवें| - फूल मलिक