Tuesday, 4 April 2017

यह उनके लिए, जिनको सर छोटूराम और सरदार भगत सिंह के रिश्तों को ले के चुरणे हुए रहते हैं!

चुरणे, इसलिए क्योंकि ऐसे-ऐसे सवाल वही घाघ करते हैं जो बस इसी उधेड़-बुन में रहते हैं कि कैसे इन दोनों हस्तियों के बीच कुछ तकरार सा मिले और सिख व् हिन्दू जाटों में दरार डालने का कुछ और मसाला मिले|
इस पोस्ट में सलंगित कटिंग "Sir Chhoturam - A saga of Inspirational Leadership" - लेखक बलबीर सिंह जी की पुस्तक से ली है| इसमें साफ़ लिखा है कि सर छोटूराम ने सरदार भगत सिंह द्वारा उठाये कदमों को देशभक्ति की पराकाष्ठा में उठाये कदम बताते हुए, उनको क्रिमिनल नहीं माने जाने की दरख्वास्त की थी| सनद रहे कि इस मामले में गांधी ने यह कहा था, "अगर इन बच्चों को मरने का शौक चढ़ा है तो मैं क्या करूँ, दे दो फांसी!"

यह दूसरा ऐसा किस्सा है जब सरदार भगत सिंह व् सर छोटूराम के बीच के भावनात्मक रिश्ते का पता चलता है| इससे पहले जब काकोरी काण्ड के बाद सरदार भगत सिंह भेष बदल कर कलकत्ता चले गए थे तो उनका वहाँ दो महीने अज्ञातवास में रहने का प्रबन्ध सर छोटूराम ने ही अपने धर्म पिता व् उस जमाने में कलकत्ता के जूट किंग सेठ छाजूराम जी को कहके करवाया था|

इन दोनों में एक देशभक्ति का भगवान था तो दूसरा किसानी का भगवान था| सो अपने दोनों भगवानों के रिश्ते बड़े ही भावुक थे, निश्चिन्त होकर कहो| और जिनको चुरणे हैं, वो रेतीली मिटटी में घिसणी कर लें|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

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