Friday 26 April 2019

जाट मतदाता को ब्राह्मण मतदाता से सीखना चाहिए कि कौम-प्रेम क्या होता है व् उससे भी जरूरी कैसे संभाल के रखा जाता है!

पोस्ट का सार: एक सीट पर एक से अधिक सजातीय उम्मीदवार आ जाने की स्थिति में ब्राह्मण हैवीवेट और जिताऊ को जिताता है, वह कैसे उसके लिए पूरी पोस्ट पढ़ें|

हर ब्राह्मण को पता है कि ताऊ रमेश कौशिक ने भाड़ नी फोड़ा सोनीपत लोकसभा में विकास के नाम पर| हर ब्राह्मण को पता है कि ताऊ अरविन्द शर्मा ने रोहतक की तरफ लखाणा भी नहीं था अगर टिकट न मिलती तो, शायद वापिस कांग्रेस या बसपा में भी जा लेता| हरयाणा में जमींदार से ले खिलाडी तक भी हैं ब्राह्मण और बीजेपी सरकार ने दोनों की उतनी ही बराबर से बिरान माट्टी करी है जितनी कि अन्य जाति वालों की|

लेकिन क्या इसके बावजूद किसी एक भी ब्राह्मण ने सोशल मीडिया या धरातल पर कौशिक या शर्मा का विरोध किया? यह बात अब आम है कि अंदरखाते खुद ब्राह्मण दोनों को पसंद नहीं कर रहे| लेकिन फिर भी इनके प्रचार प्रसार में ब्राह्मण कोई कोर-कसर नहीं छोड़ रहे| सोशल मीडिया पर रोज ब्राह्मण लड़कों की कौशिक और शर्मा के पॉजिटिव प्रचार की धड़ाधड़ पोस्टें देखता हूँ| और बावजूद इसके कि दोनों सीटों पर 7-8% ही वोट हैं ब्राह्मण के| परन्तु लग्न क्या है कि चाहे जैसे भी हैं जिताने हैं|

हाँ, एक बात जरूर नहीं हुई कि एक सीट पर दो-दो नहीं हैं, एक ही है| करनाल व् सोनीपत पर संभावना थी कि दो की टक्कर होती; तब शायद एक नया अध्याय देखने को मिलता कि ब्राह्मण किस पर ज्यादा झुक रहे हैं| परन्तु ऐसी सीटों व् स्थितियों पर इनकी मैनेजमेंट देखी-सुनी है मैंने| जिस भी सीट पर एक से ज्यादा ब्राह्मण आ जाते हैं वहाँ सिर्फ दो ही स्ट्रेटेजी होती हैं इनकी| एक तो यह देखते हैं कि कौनसे वाला कितना हैवीवेट है यानि कितना सीनियर है, स्टेट या सेण्टर का न्यूनतम मिनिस्टर प्रोफाइल है या नहीं| और दूसरी बात कहते हैं कि जिताऊ यानि सीट निकालू है कि नहीं, यानि दो ब्राह्मण के अलावा जो अन्य जाति वाले खड़े हैं उनपर कौनसा भारी पड़ रहा है व् सीट निकाल सकता है|

उदाहरणार्थ: नरेश दुहन भाई बताते हैं कि हरयाणा का पुण्डरी विधानसभा हल्का, रोड समुदाय बाहुल्य है| हर बार दो-तीन ब्राह्मण खड़े होते हैं और पूरा इलेक्शन रोड बनाम नॉन-रोड पर लड़ा जाता है| परन्तु दो-तीन ब्राह्मण उम्मीदवार होने पर भी अंत में सारे चढ़ते एकमुश्त हैवीवेट व् जिताऊ पर हैं|

और हर प्रकार की स्थिति में इनकी आपस की खटास या नापसंदगी यह कौम से बाहर शायद ही जाने देते हों, कम-से-कम मैंने तो कभी ऐसी तू-तू-मैं-मैं नहीं सुनी जैसे अन्य जातियों में सुन जाती है| जिसको भी जिताना या हराना होता है हैवीवेट और जिताऊ के आधार पर जिताते-हराते हैं और रोहतक-सोनीपत की भांति हो ही जाति का एक कैंडिडेट तो योग्यता-मान्यता को साइड रखते हुए उसको ही जिताते हैं|

और क्योंकि हरयाणा में यह एक सीट पर एक से अधिक सजातीय कैंडिडेट होने की समस्या सबसे ज्यादा जाट फेस करते हैं तो इस बारे में कैसे यह चीजें मैनेज की जाएँ ऊपर दिए उदाहरणों व् व्याख्याओं से सीखा व् समझा जा सकता है| यादव भी गुड़गाम्मा सीट पर इस समस्या से जूझ रहे हैं, गुज्जर फरीदाबाद पर, दलित अम्बाला व् सरसा पर| जाट सबसे ज्यादा रोहतक-सुनपत-कुलछेत्र-हिसार-भ्याणी-महेंद्रगढ़ पर|

इन सबमे भी सोशल मीडिया पर अपनी ही कौम वाले परन्तु दूसरी पार्टी वाले उम्मीदवार के लत्ते उतारने में जाट ही सबसे ज्यादा मशगूल हैं| शायद 10% भी सोशल मीडिया सिपाहियों को फरवरी 2016 याद हो, कैसे इनकी लुगाई खाद के कट्टों के लिए थानों में लाइन लगवा दी थी याद हो, कैसे फसल बीमा योजना के तहत दसियों हजार करोड़ का किसान की जेब लूट का सीधा घोटाला अकेले हरयाणा में हुआ याद हो, कैसे झूठे केसों में बच्चे आज भी जेलों में सड़ रहे याद हो, कौम-स्टेट को आगे ले जाने इसके मान-सम्मान को सहेजे रखने की 10 साल की दूरगामी सोच कोई से पे हो; हरयाणा को 35 बनाम 1 बना रख छोड़ने वालों से बच वापिस 36 को एक बनाने की चिंता हो, जबकि यह अहसास लगभग हर एक को है कि बीजेपी दोबारा आ गई तो 36 तो क्या 35 में भी राड़ लगवायेगी|

कोई बदले की राजनीति का एजेंडा प्रचारित कर रहा है, कोई बेहड्डा लिख के किसी को कोस रहा है; जबकि सब कहूँ या 99% इस बात पर तो सहमत हैं कि बीजेपी से मुक्ति चाहिए परन्तु आपसी लेग-पुल्लिंग इस मुक्ति की राह में कितनी घातक है शायद ही कोई विचार रहा हो|

20 दिन के लिए यह लेग-पुल्लिंग छोड़ के ब्राह्मण की तरह कौम भक्त (अपना मुंह मत चिढ़ाना या चढ़ाना, परन्तु यह सच है आज के दिन 95% जाटों में ब्राह्मण की आधे जितनी भी कौम व् स्टेट भक्ति नहीं) बनो और जो हैवीवेट और जिताऊ हो उस पर जुटो| तुम-हम इधर इस तू-तू-मैं-मैं उलझे हैं और उधर ब्राह्मण को देखो प्रतिशत में इकाई का आंकड़ा होते हुए भी, खुद को एक करके दूसरी जातियों से कैसे अपनी जाति वाले पर वोट चढ़वानी हैं उसकी पूरी स्ट्रेटेजी में जुटे हैं| भाईयो सोशल मीडिया पर इस आपस की जंग को बंद करो, ओवर-कॉन्फिडेंस से बचो, बदले व् नफरत की राजनीति के एजेंडों से बचो और जिताऊ की तरफ खुद भी बढ़ो और अन्य जातीय दोस्तों का एक-दो-चार-पांच जितने भी वोट हों उस पर फोकस करो|

विशेष: यह पोस्ट एक ही जाति के भीतर एक या एक से ज्यादा उम्मीदवार को कैसे मैनेज करें, उस पर है| आउट ऑफ़ सेम कास्ट, लाइक माइंडेड जातियों समूहों जैसे कि 'अजगरम' आदि को इस परिवेश में कैसे मैनेज करें; इस पर अगली बार लिखूंगा|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक