Sunday, 26 May 2019

अब गोळ लो, पहले नहीं गोळा तो!

जिस समाज की सामाजिक थ्योरी व् सरंचना धराशायी होनी शुरू हो जाए उस समाज को राजनीति करने से जरूरी अपनी इस सरंचना को दुरुस्त करना चाहिए| अख़बारों में देख ही रहे होंगे कि जाटलैंड पर फलानों का कब्जा, धकड़ों का कब्जा? पहले तो इनको कोई यह समझा दे कि जाट ने यूँ ही कब्जे करके सिर्फ अपने को ही ऊपर रखना होता तो अल्लाउद्दीन खिलजी के बाद सन 1300 से 1550 तक जब अधिकतर गामों के "दादा नगर खेड़े" बसाये तो जाट उसी जमाने से किसी अन्य को बसने नहीं देते और ना यह एरिया हिंदुस्तान का सबसे धनाढ्य व् हराभरा बन पाता|

कोई एक ऐसा गाम नहीं, जो जाट बाहुल्य हो व् उसमें बसने वाली अन्य जाति यह कह दे कि हम जाटों से पहले इस गाम में बसे| सब जाटों के पीछे-पीछे आये, जाट ने पहले गाम के "दादा नगर खेड़े" बांधे फिर अन्य कामगार-कास्तकार-मजदूर-व्यापारी वर्ग/जातियां आते गए और बसते गए| यह बसासती विरासत है मीडिया की परिभाषा में "जाटलैंड" कही जाने वाली इस धरती की| नवयुवा पीढ़ी के बालको भूलना मत इस बात को|

"बार्टर-सिस्टम", "सीरी-साझी वर्किंग कल्चर", "उदारवादी जमींदारी सभ्यता", "विधवा विवाह", "देहल-धाणी की औलाद माँ का गौत रखे", "शादी से पहले बाप के घर, शादी के बाद पति के यहाँ आजीवन सम्पत्ति अधिकार (पति पहले मर जाए तो भी, उसको पति की प्रॉपर्टी से बेदखल कर अन्यों की भांति विधवा आश्रमों में नहीं बैठाते जाट)" के विधानों के जनक हैं जाट| "धर्मस्थलों-पूजा में औरत को 100% लीडरशिप", "धर्मस्थलों में मर्दवाद वर्जित" रखने वाले हैं जाट| आज भी जाट को "दादा नगर खेड़ों पर धोक-पूजा इसके घर की औरतें लगवाती हैं, जबकि अन्य स्थलों पर मर्द खड़े होते हैं वह भी यह डंडा ले कर कि औरत कब इन धर्मस्थलों में घुसेगी और कब नहीं, यह उनके मर्द निर्धारित करेंगे| दुनिया की सबसे बड़ी व् पुरानी इंजीनियरिंग थ्योरी के जनक हैं जाट| कम्युनिटी गेदरिंग का इकलौता सिस्टम "परस-चौपाल-चुप्याड" जो सिर्फ जाटलैंड में पाई जाती हैं, पूरे इंडिया में, इस वर्ल्ड थ्योरी के भी जनक हैं जाट| अन्यथा जाटलैंड के बाहर पेड़ों के नीचे होती हैं कम्युनिटी सभाएं, जबकि जाटों के यहाँ इस फोर्ट्रेसनुमा हालों में| सबसे प्राचीन सोसाइटी मैनेजमेंट सिस्टम "बगड़" (जिसको मॉडर्न भाषा में RWA बोलते हैं) के जनक हैं जाट|

जाटों में जाटलैंड वाला गुरुर होता तो आज भी जाटलैंड, बिहार-बंगाल की भांति उजड़ी स्टेट होता वह भी बावजूद जाटलैंड की अपेक्षा बिहार-बंगाल की तरफ ज्यादा नदियां व् ज्यादा उपजाऊ जमीनें होने के| और जाटलैंड वाले बिहार-बंगाल जा रहे होते मजदूरी-दिहाड़ी-रोजगार करने ना कि वहाँ वाले यहाँ आ रहे होते|
तो सबसे पहले तो जाट इस मिथ्या प्रचार की अब कम-से-कम आलोचना करे जिसको पढ़-सुन-देख के यह फीलिंग आती है कि जैसे जाट तो यहाँ लठ के दम मात्र पर बसे हों व् इनके पास ना तो कभी कोई सोशल विज़न था, ना सोशल इंजीनियरिंग और ना जेंडर सेंसिटिविटी| इन चीजों को जिसको कि शायद आजतक जाट यह बोल के साइड करता आया है कि "के बिगड़े सै भोंकें जाएंगे"," कूण गोळे सै लिखे जांगे"; अब वक्त आ गया है कि इनकी आलोचना की जाए| वरना शर्म-शर्म में और "काका कहें काकड़ी नहीं मिला करती" वाली सूखी तर्ज की लय पर "भाईचारा-भाईचारा" चिल्लाते रहे तो ऐसे लिखने-बोलने-प्रचार करने वाले लोग तुम्हारे हारे की राख भी साहमर ले ज्यांगे|

यह वह लोग नहीं जिनके आगे तुम शर्म दिखाओ या चुप्पी साधो, तुम्हारी इस शर्म व् चुप्पी को ऐसे लोग "अगला शर्मांदा भीतर बड़ गया और बेशर्म जाने मेरे से डर गया" वाली लय पर अपनी जीत मानते हैं| और गंभीर समस्या यह है कि गाम तो गाम, शहरी व् एनआरआई जाट तक इन मुद्दों पर दड़ मारे चल रहा है| दड़ तोड़िये और हुई-हुई जायज बात पर तो कम से कम बोलिये, वर्ना क्या तो अपने बच्चों को दोगे कल्चरल विरासत के नाम पर और क्या ऊपर पुरखों को मुंह दिखाओगे?

मेरी विनती आरएसएस में बैठे जाटों से भी रहेगी कि वहां अपने सलूक-समीकरण-व्यवहार-संबंध का इस्तेमाल करें व् उनके जरिये मीडिया में बैठे अपने प्रभावशाली मित्रों से अनुरोध करवाएं कि जाट, जाटलैंड, जाट बनाम नॉन-जाट की यह बेवजह की छींटाकसी बंद करे मीडिया व् ऐसी मति के गैर-मीडिया लोग| आखिर हो तो आप भी उसी हिन्दू वर्ग का हिस्सा जिसके लिए आरएसएस दिनरात काम करने का दम भरती है? किसी भी सामाजिक-राजनैतिक संगठन में रह लो, अपनी जातीय पहचान से खुद को छुपा या बचा लोगे क्या? अंत दिन जाने तो जाट होने के नाम से ही जाओगे, चाहे बेशक आरएसएस में रहो या कहीं किसी अन्य संगठन में? और हर चीज राजनीति के लिए नहीं हुआ करती, कुछ समाज के लिए भी करना होता है|

मेरे से नहीं होगी राजनीती कभी ऐसे बिगड़े सामाजिक हालातों में, मैं तो इन बिगड़े हालातों को ही कुछ या पूरा ठीक कर जाऊं तो अगली पीढ़ियों में नामलेवा होऊं व् पुरखों को शक्ल दिखा सकूं| जाने कैसे हो चले हैं लोग जिनको ना आने वाली पीढ़ियों के प्रति अपनी जवादेही की चिंता ना पुरखों को मुंह दिखाने की फ़िक्र|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

Monday, 6 May 2019

बॉलीवुडिये गुंडे!

मोदी बाबू, जिन शौर्यपूर्ण हालातों में पूर्व पीएम राजीव गाँधी की शहादत हुई थी, आप तो उसका रिहर्शल यानि मॉक-ड्रिल भी करोगे तो पायजामा गीला कर बैठोगे! इतना तो छोडो आप राजीव गाँधी की तरह बिना सिक्योरिटी के दो ढंग ही पाड़ के दिखा दो अगर वास्तव में इतने लोकप्रिय हो तो? बताता चलूँ कि राजीव गाँधी ने बिना सिक्योरिटी के चलने का यह जज्बा ताऊ देवीलाल की शैली से प्रभावित होकर अख्तियार किया था| परन्तु ताऊ देवीलाल जी की हस्ती के बराबर जा बैठने की ललक में अपनी सिक्योरिटी हटवा बैठे और मानवबॉम्ब का शिकार हुए!

बाकी मोदी बाबू का इतना गिरा हुआ स्तर देखकर मुझे आज उस सवाल का जवाब मिल गया जो बॉलिवुड के विलेन्स को देखकर बचपन से जेहन में उठता था, कि आखिर यह ऐसे विलेन और ऐसे गुंडे वास्तव में होते कहाँ हैं| मुझे क्या पता था कि 1950 से यह बॉलिवुड वालों की कल्पना वाला गुंडा कच्छाधारी समाज तोड़ प्रयोगशाला में यूँ तैयार हो रहा था|

बाकी, जहाँ तक इसको या इस जैसों को ट्योटणे की बात है तो मेरे बचपन वाला हरयाणा अगर आज भी होगा तो उल्टे पैर लौटा देगा इनको|

बचपन वाला कैसे?: हुआ यूँ कि मेरे गाम का एक बणिया भैंस-व्यापारी बन गया| गाम के जाट-जमींदारों के रसूख की साख पर गाम-गुहांड की 30 के करीब भैंसे बिसाह ली, वह भी उधारी पर| दो भैंस म्हारी भी ले गया| बात 1990 के आसपास की हैं, उस वक्त दो भैंस के 24 हजार ठहरे थे, आज की कीमत में कम-से-कम 2.4 लाख| 30 भैसों का पैसा घुप्प करके गाम की उनकी दोनों हवेलियां छोड़ परिवार समेत पुणे जा बसा|

मेरे पापा पांच-छह बार गए परन्तु हर बार मन कर देता| एक बार तो पापा को पुणे से निडाना बीच रस्ते मरवाने तक की धमकी दे दी यह कहते हुए कि "अगर दोबारा आया तो ऐसा कर दूंगा"| हमारा परिवार नरमी खानिया परन्तु सारे थोड़े ही| एक और जाट जिसकी 4 भैंसे ले गया था, करीब 10 साल पैसे मिलने के इंतज़ार के बाद उन्होंने बणिये की एक हवेली पर कब्ज़ा कर लिया| पुणे में बनिये को पता लगा तो लेकर 4 मुम्बईया गुंडे आ गया हवेली खाली करवाने|

अमूमन हरयाणवी कल्चर ऐसा है कि ऐसी हालत में बणिया निर्दोष होता तो उसका साथ देता परन्तु किसी ने साथ नहीं दिया| वजह ऊपर वाले पहरों से आसानी से समझ सकते हो| जब गाम के युवकों को पता चली कि बणिया आया है वह भी मुंबईकर गुंडे लेकर तो सबने लठ और गंडास धर लिए निकाल के| ये जाटों के छोरे, जिनका खून इतना गाढ़ा कि खून दान देने जावें तो डॉक्टर की खून निकालने की सुई में ही न चढ़े, वजह अजी इसका तो खून गाढ़ा ही बहुत ज्यादा है| मेरे अंकल हैं गाम में, उनका तो आज भी इतना गाढ़ा है किसी डॉक्टर की सुई में चढ़ता ही नहीं|

तो जैसे ही बणिये के गुंडों ने कब्जा करने वाले परिवार पर हमला बोला, बालकों ने धरे चारों आगे ले के| छातों-छात चढ़ा दिए| एक गुंडा तो जान बचाता, छतों कूदता 20 घर दूर म्हारे घर की छात पर आ लिया| म्हारा घर तीन-मंजिला, आगे दो तरफ सदर गली, पीछे डॉक्टर की सुई में भी खून ना चढ़े इतने गाढ़े खून के उबाल में उसकी मौत बनके नाचता आ रहा म्हारा काका| गुंडा तो जान बचाने का मारा तीसरी मंजिल से सीधा गली में छलांग लगा गया| बेचारे की टांग टूट गई| बालकों ने चारों गुंडे और बणिया धर बंदी बनाये|

खैर, पंचायत हुई, बणिये को डांट लगी कि 30 तो भैंस ले कर भाज रह्या तू गाम-गुहांड की, 10 साल हो लिए एक की पाई ना लौटाई और ऊपर से यह गुंडे; दिखै पुणे में बॉलीवुड की घनी फ़िल्में देखण लाग गया? फिर भी पंचायत ने अपनी न्यायप्रियता दिखाते हुए कहा कि या तो 30 भैंस दे दे जिस-जिसकी ली हुई हैं या भैंसों की जो कीमत ठहरी थी उसका मूल ही दे दे, ब्याज नहीं भी देगा तो भी तेरी हवेली की सुरक्षा की गारंटी पंचायत की| 

बणिये ने वक्त माँगा, परन्तु मुड़ के फिर ना निडाना आया कभी|

अब उसी टाइप के गुंडे यह हैं, देखें हरयाणा वाले कितना झेलेंगे इनको|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक