अपने कल्चर के मूल्यांकन का अधिकार दूसरों को मत लेने दो अर्थात अपने आईडिया, अपनी सभ्यता और अपने कल्चर के खसम बनो, जमाई नहीं!
Friday, 30 July 2021
जिसकी जितनी विधवा औरतें, विधवा आश्रमों में सड़ती हैं, वह जाति, वह वर्ण, वह वर्ग उतना ही बड़ा स्वर्ण व् कुलीन!
Wednesday, 28 July 2021
कोई राजनैतिक लालच भी देवे तो चिंता ना करियो; बस महाराजा सूरजमल गेल फंडियों ने क्या करी थी उसको स्मरण कर लीजियो!
किसान आंदोलन को पार उतारने हेतु सरदार अजित सिंह, सर छोटूराम व् चौधरी चरण सिंह जैसी फंडी की चाल को पहले भाँप लेने वाली कुशाग्र कुटिलता से चलना होगा हर किसान लीडर को| अन्यथा इन फंडियों के प्रति थोड़ा सा भी अपनापन टाइप के भाव में आये और इन्होनें आपको ठीक उसी तरह पटकनी दी जैसे महाराजा सूरजमल के सर से दिल्ली का ताज ठीक उसी दिन दूर कर दिया था, जिस दिन उनकी दिल्ली के तख्त पर ताजपोशी थी यानि 25 दिसंबर 1763 को| सोण-कसोण के नाम पर फंडियों ने महाराजा सूरजमल को ताजपोशी से पहले निहत्थे हो यमुना में स्नान करके आने की कह दी व् उन्होंने मान ली और उधर इन्हीं फंडियों के घात पे बैठाये मुस्लिम सैनिकों ने निहत्थे महाराजा की गर्दन उड़ा दी| अगर धर्म के नाम पर इन फंडियों के लिए किसी का हेज पाटता हो तो यह घटना याद कर लेना, फिर भी समझ ना आवे तो शाहदरा में महाराज सूरजमल की समाधि पर हो आना| तुम्हारा सबसे बड़ा दुश्मन ना मुसलमान है, ना ईसाई; सिर्फ यह फंडी है जो तुम्हारा बन के तुम्हारे धर्म का कुहा के, तुम्हारे बीच बैठ तुम्हारी गोभी खोदता है| अभी यूपी एलेक्शंस सर पे हैं तो यूपी को बचाने हेतु अभी अलग ओहदे के फंडी तुम्हारे चक्कर काटने पर लगाए जायेंगे; सौं तुम्हें तुम्हारे पुरखों की जो इनकी बहकाई में आए तो|
Monday, 26 July 2021
अनाज को पत्थरों पर चढ़ाते फिरते हो, इसलिए मंडियों/बाजारों में यथोचित दाम पर नहीं बेच पाते व् हताश हो सड़कों पर फेंक के आते हो!
एक कहावत चलती आई है उत्तरी भारत की सबसे बड़ी जमींदार/किसान बिरादरी पर कि, "जाट भेल्ली दे दे, पर गन्ना/गंडा ना दे"|
Sunday, 25 July 2021
"दादा नगर खेड़ों" पर सिर्फ ज्योत लगाई जाती है, प्रसाद रुपी अनाज-फल-दूध या "गुड़ की भेली" चढ़ा अनाज की बेअदबी नहीं की जाती; बल्कि उसको इंसानों में ज्योत लगाने वाली ही स्वत: वितरित करती है!
जिसने अपनी कष्ट कमाई की बेअदबी करनी सीख ली या सहज मंजूर कर ली, उससे खाली दिमाग कौन होगा? बस आप इस कष्ट-कमाई को कदमों-पत्थरों पर रुलवा सकते हो या नहीं; यह पत्थरों पर चढ़वा के बाकायदा पहले चेक किया जाता है|
Thursday, 22 July 2021
फंडी की manipulation व् polarisation थ्योरियों से बचना व् बचाना क्यों जरूरी है व् कैसे यह आपकी सांझा व्यापार-कारोबार की संभावनाओं को कुंध कर रहा है?
हमारे अंदर चार इंटरनल पावर एम्पायर (आंतरिक शक्ति साम्राज्य) होते हैं:
Tuesday, 20 July 2021
हिंडवा / हिंडी / इंडवा / इंडि से बना दूँ क्या इंडिया?
पाड़ ल्यो पूंझड़ मेरा, वो सनकी लेखक/फंडी जो मात्र शब्दों के मिलाप के आधार इतिहासकार बने फिरते हैं| जो यह समझने को ही रेडी नहीं कि इतिहास सिर्फ शब्दों के मिलाप के आधार पर नहीं लिखे जाते वरन जेनेटिक्स, शिलालेख, आर्कियोलॉजिकल दस्तावेज भी साथ में रखने होते हैं|
Friday, 16 July 2021
फंडियों के इशारे पर "ठगपाल एंड कंपनी" की लगवाई हुई है "पंजाब में चुनाव लड़ने की बात" किसान आंदोलन में!
याद रखना इससे पहले इस कंपनी को खापों में दो-दो चौधरी बनवा इनको धड़ों में बाँट इनकी ताकत कम करने का काम दिया गया था, जिसमें यह काफी जगह कामयाब भी हुए| भला हो इस किसान आंदोलन का कि खाप-चौधरी तो फिर से एक हो गए हैं व् एकमुश्त किसान आंदोलन में जी-जान व् चट्टान जैसी ढाल की तरह संयुक्त किसान मोर्चे के पीछे खड़े हैं| जो कि किसान आंदोलन को एक अप्रत्याशित शक्ति प्रदान करता है|
Wednesday, 14 July 2021
वर्तमान किसान आंदोलन की सफलता के उस पार "राष्ट्रीय किसान राजनीति का आगे का स्वर्णिम भविष्य" मुंह बाए बाट जोह रहा है; इसको स्टेट पॉलिटिक्स में ना ही रोळा जाए तो बेहतर!
सन 1907 में सरदार अजित सिंह के "पगड़ी संभाल जट्टा" किसान आंदोलन से शुरू हो सर छोटूराम व् सर फज़ले हुसैन की जोड़ी से होती हुई सरदार प्रताप सिंह कैरों व् चौधरी चरण सिंह (साउथ-ईस्ट इंडिया से भी बड़े नाम जोड़ लीजिये) से होते हुए 2011 में बाबा महेंद्र सिंह टिकैत के जाने के वक्त से जो "राष्ट्रीय किसान राजनीति" रुपी नाव इसके खेवनहार की जो बाट जोह रही है, उस खेवनहार/ उन खेवनहारों को देने का माद्दा रखती है वर्तमान किसान आंदोलन की सफलता|
फ्रांसीसी क्रांति का दिन है आज, 14 July, 1789 कुछ ऐसे ही हालात व् वजहें थी फ्रांस में जिनके चलते आज इंडिया में दिल्ली बॉर्डर्स पर किसान आंदोलन है!
आगे बढ़ने से पहले कहता चलूँ:
Monday, 12 July 2021
स्याणे थारे पुरखे थे या थम हो?
यूपी में चुनी हुई महिला पार्षदों के साथ व् हांसी में आंदोलनरत किसान महिलाओं (वो भी दोनों जगह हिन्दू धर्म की ही) के साथ बीजेपी व् संघ के लोगों (विनोद भयाणा व् मनीष ग्रोवर) द्वारा मारपीट से ले अश्लील इशारे व् हरकतें करना इनकी 'देवदासी व् वर्णवादी मानसिकता' का खुला परिचय है| सबूत है कि इनके लिए "हिन्दू एकता व् बराबरी", "भाईचारा" टाइप की इमोशनल बातें व् हवाले, आपको अपने झांसे में फंसा के आपका दिमाग-सोच-वोट-नोट हड़पने का प्रपंच मात्र होते हैं|
Friday, 9 July 2021
क्या वाकई में ऋग्वेद मात्र 550 साल पुराना है?
हम अक्सर धार्मिक विद्वानों से सुनते आए हैं कि वेद, रामायण-महाभारत पुराण-उपनिषद आदि सबसे पुराने हैं| और नीचे सलंगित वीडियो ने कुछ सबूतों समेत दावा किया है कि सबसे पुराना ग्रंथ कहे जाने वाले ऋग्वेद की सबसे पुरानी पाण्डुलिपी यानि मैनुस्क्रिप्ट सिर्फ 550 साल पुरानी है|
Thursday, 8 July 2021
साम (चाटुकारिता, प्रसंशा), दाम (लालच), भेद (भय, नफरत), दंड (वर्णवाद)!
फंडी तुम्हारे बीच साम (चाटुकारिता, प्रसंशा) के साथ उतरता है, तुम में दाम (लालच) पैदा करता है, इन दोनों से उसको तुम्हारे बीच रह के खेलने का मौका मिल जाता है व् वह अपने अल्टीमेट गोल भेद (भय, नफरत) व् दंड (वर्णवाद) पर इस तरह उतर आता है कि तुम्हारा सम्पूर्ण (कल्चर-सोशलिज्म-आध्यात्म) सर्वनाश होने तक तुम्हें सोधी ही नहीं आने देता|
साम के वक्त वह इसमें सबसे ज्यादा अपनी औरतों का प्रयोग करता है, उनको तुम्हारे यहाँ नौकरानी तक बना के भेजता है| जो बड़े-ठाड्डे जमींदार रहे हैं उनके यहाँ असल तो आज भी अन्यथा एक-दो पीढ़ी पीछे जा के देखोगे तो इनकी लुगाइयां चूल्हा-चौका (रोटी-टूका-बर्तन-बुहारी) करती थी|
दाम का मतलब यह मत मानों कि यह तुम्हें कोई रुपया-पैसा दे के रिझाते हैं; नहीं अपितु तुम्हें पदों-ओहदों-चाहतों-आदतों के लालच पलवाते हैं|
भेद का मतलब तुम्हारे घरों-समाजों के आपसी मनमुटाव साम-दाम के रास्ते तुम्हारे भीतर घुस के देखते हैं और फिर निर्धारित करते हैं कि 35 बनाम 1 किस एरिया में तो जाट के खिलाफ किया जाए, किसमें ओबीसी यादव आदि के खिलाफ किया जाए, किसमें दलित के खिलाफ किया जाए व् कहाँ मुस्लिम या सिख के खिलाफ किया जाए|
दंड, अब जो चल रहा है इंडिया में वह यह स्तर आया हुआ है| यानि वर्णवाद को लागू करने की आखिर परन्तु सबसे जोरदार कोशिश|
इस कोशिश का विशेलषण:
मोदी की कैबिनेट के नए विस्तार की परिपाटी में किसान आंदोलन के अगुआ वर्गों के नुमाइंदों (जैसे कि उत्तर-पश्चिमी भारत से कोई भी सिख,मुस्लिम, दलित, जाट, रोड़ व् गुज्जर नहीं लिया गया; ना लोकसभा के रास्ते से ना राजयसभा के रास्ते से) को सिरे से दरकिनार किया जाएगा यह लोगों को अंदेशा रहा होगा, मुझे तो पूर्ण विश्वास था| ख़ाक राजनीति नहीं ये इनकी, कूटनैतिक दबाव व् अन्य बिरादरियों को यह संदेश देने की कि हमारे तलवे चाटोगे व् मनमाने कानून मानोगे (चाहे उनको ढोने में तुम्हारी कमर टूट जाए) तो तुम हमारे अन्यथा 'तुम नहीं लागते हमारे तलाकी भी'| इनकी "हिन्दू एकता व् बराबरी" का नारा यही है कि, "वर्णवादी व्यवस्था के तहत हमारे आगे झुक के चलोगे तो तुम इस नारे में फिट हो अन्यथा शिट हो"|
यह तो है इनका सोचना| आम समझदार किसान-मजदूर तर्कशीलता से सोचेगा तो इनकी हालत कुछ यूं पाएगा:
बुद्धि की धार खत्म कर दी है किसान आंदोलन ने तथाकथित चाणक्यों की! और अगर फ़ोक्के नुमाइंदे कैबिनेट में शामिल कर लिए जाने से कोई यह सोचता हो कि उनके हक़-हलूल की रक्षा हो गई तो इससे बड़ा पिछड़ापन कुछ नहीं| और इस बात को हर वह व्यक्ति समझता है जो अपने हक-हलूल को लेकर संजीदा है, वह चाहे जिस किसी वर्ग-वर्ण से आता हो वह इनसे कतई प्रभावित नहीं होने वाला क्योंकि इनके दंड (वर्णवाद) की नीतियां क्या ओबीसी, क्या दलित, क्या किसान, क्या मजदूर, क्या छोटा व् मंझला व्यापारी सबकी जेब व् नौकरी दोनों पर डाका डाल रही हैं|
किसान आंदोलन करने वाले वर्गों को ही कल के हीरो लिखा जाएगा, फिर चाहे उसमें किसान शामिल हो, मजदूर हो, दलित हो, ओबीसी हो या व्यापारी हो| क्योंकि अब यह लड़ाई फंडियों के लिए जहाँ सत्ता व् बड़े व्यापारियों का धंधा बचाने की है वहीँ यह बाकी सब के फसल-नस्ल-असल बचाने की लड़ाई है|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
Monday, 5 July 2021
और फंडियों ने फ्रांस-ब्राज़ील में उसी "भारत माता" को नंगा कर दिया, जिसके जप कर-कर इनके टेंटवे नहीं सूखते!
विशेष: यह एक केस स्टडी है, जो विधार्थियों के लिए जाननी बहुत जरूरी है; ताकि वह इन फंडियों के प्रपंचों से बच अपने करियर की ऊंचाइयों को सीधे-सीधे छुएं|
फंडियों का हिन्दू एकता व् बराबरी और राष्ट्रवाद सिर्फ इतना है कि इससे यह मुस्लिम्स को मार्किट से हटा के, मुस्लिम की दुकानों को मिलने वाले ग्राहक फंडियों की दुकानों को मिल सकें| और ऐसा हो भी रहा है और भक्त टाइप यह समझे के जिंदगी व् दिमाग खपाए जा रहे हैं कि वह इनके दिखाए रास्ते पे चल के कोई बहुत ही बड़ी स्वर्ग हासिल करने वाले काम कर रहे हैं| वो कैसे, जरा विगत दो दिन में ही एक के बाद एक आई इन चार प्रमुख खबरों से पढ़िए:
1) मोहन भागवत, मुस्लिम सम्मेलन में बोलता है कि, "हिन्दू-मुस्लिम एक DNA हैं"|
2) मुकेश अम्बानी अरब सम्मेलन में बोलता है कि, "उसका बाप उसको अरब का खून बताता था"|
3) फ्रांस ने इंडिया के साथ हुई राफेल डील में "क्रिमिनल केस ओपन किया है"|
4) ब्राज़ील में इंडिया के साथ हुई कोरोना दवाइयों की डील में भारी घूसखोरी की शंका के चलते वहां की पुलिस ने वहां के राष्ट्रपति पर केस दर्ज कर जांच शुरू की है"|
पहला पॉइंट इनके झूठे हिंदुत्व की पोल खोलता है| दशकों लगा के जो मुस्लिम नफरत की राजनीति करी, कांग्रेस-लेफ्ट-रालोद सब पार्टियों को सेक्युलर होने के लिए कोस-कोस के लोगों को अपने पाले में जोड़ा; और अब अंत में खुद ही मुस्लिम प्रेम के राग अलापने लगे? भक्त, इसी को कहते हैं| भक्त मानसिक गुलाम होता है, दिमागी तौर पर बंधुआ मजदूर को कहते हैं; क्योंकि एक की भी प्रतिक्रिया नहीं आई कि हम क्या फद्दू थे फिर जो इनके कहे पे इतने दंगे-फसाद किये? मुकेश अम्बानी को क्या इसलिए हिन्दू के नाम पे उसका सामान खरीद-खरीद सबसे अमीर बनाया कि वह एक दिन खुद को "अरब का खून" बताएगा? राष्ट्रवादियों की सरकार होते हुए अमेरिका-यूरोप में इनके इंटरनेशनल घोटालों पे देश की जलालत हो रही है, क्या यह कोई इनकी ही भाषा वाले देशद्रोही मुल्लाप्रेमी कांग्रेस, रालोद या लेफ्ट वालों की सरकार है; जो इतना प्रगाढ़ राष्ट्रप्रेम होते हुए भी इन्होनें यह घोटाले कर दिए वह भी इंटरनेशनल लेवल? क्या एक बार भी झिझक नहीं हुई कि हम तो गूढ़ राष्ट्रप्रेमी हैं, एक भी गलत कदम से हमारे राष्ट्र की किरकिरी हुई तो क्या जवाब देंगे उस "भारत माता" को जिसके घड़ियाली जप करते-करते हमारे टेंटवे नहीं सूखते? भक्त पता नहीं इनको कौनसे आसमान से उतरे मानते हैं और यह भक्तों को चिपकाने वाली "भारत माता" के ही चीथड़े उतार आते हैं विदेशों में? क्या आरएसएस को संज्ञान नहीं था रफाल डील या ब्राजील वैक्सीन डील का? सब था, परन्तु जो वास्तव में नहीं था, वह था राष्ट्रप्रेम, धर्मप्रेम|
समझ लीजिए इन चारों उदाहरणों से व् इनको सपोर्ट करने की धर्मप्रेम व् राष्ट्रप्रेम के अलावा कोई और वजहें ढूंढिए| क्योंकि ऊपर की चारों खबरें चीख के बता रही हैं कि इनके मुख से निकली "धर्मप्रेम व् राष्ट्रप्रेम" की बातें मात्र और मात्र मार्किट व् कस्टमर्स हथियाने के षड्यंत्र होते हैं| मुस्लिमों से नफरत इसलिए फैलवाई जाती है ताकि भक्त टाइप अल्पज्ञानी केटेगरी मुस्लिमों की दुकानों से सामान खरीदने की बजाए इनसे खरीदे| वरना जरा बताओ, इनके चरित्र इन चारों खबरों के बिल्कुल विपरीत होने का क्या तुक है? अगर भक्तों की भांति, मुस्लिम इनकी चिकनी-चुपड़ी बातों में आएंगे तो फिर यह वाकई में उसी के लायक हैं जो इन पर ही विश्वास करने वाले भक्तों के साथ कर रहे हैं|
और यही लड़ाई फंडियों की जाट जैसे समाज के साथ है, जिसके साथ यह 35 बनाम 1 करते हैं| इस लड़ाई में इनको उदारवाद व् विश्व की सबसे पुराणी सोशल जूरी सिस्टम सर्वखाप को खत्म करना है|
विशेष: यह पोस्ट किसी से नफरत के चलते या किसी को एक्सपोज करने के चलते नहीं लिखी गई है; अपितु धर्मप्रेम-राष्ट्रप्रेम के नाम पर अनैतिक तरीकों से आपके धंधे चौपट कर 2-4% लोगों को कैसे कब्जवाने हैं यह उसके तौर-तरीके होते हैं| आप हिन्दू-मुस्लिम, जाट बनाम नॉन-जाट में उलझे रहो, बस; इससे ही बन जाएगा इंडिया विश्वगुरु|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
Saturday, 3 July 2021
जो चीज फंडी के काबू की नहीं होती, वह उसको स्थितप्रज्ञ पाळी की तरह बाई-पास के रास्ते से नियंत्रित करता है!
विशेष: इस लेख को एक Case Study की तरह पढ़ें| पढ़िए कि पंजाब के जून 1984, हरयाणा के फरवरी 2016 व् दिल्ली में चल रहे किसान आंदोलन में क्या समानता है व् किस फ्रंट पर किसान आंदोलन इस लेख के लिखे जाने के वक्त तक फंडी को मुद्धे-मुंह मार रहा है|
फंडी को निर्धारित है कि उसको खुद को जमाए रखने या जमाने के लिए उदारवाद नहीं चाहिए, इसलिए वह उदारवादी ताकतों को खत्म करने हेतु बाई-पास के रास्ते ले के लड़ाई लड़ता है| कुछ इस तरह से कि जैसे गाय-भैंसों का स्थितप्रज्ञ पाळी गाय-भैंसों के भागते झुंड को रोकने के लिए उनके पीछे दौड़ने की बजाए, भागते झुंड से थोड़ी दूरी रखते हुए, उनके आगे निकल के, आगे आ के रोकता है| इसका अर्थ यह कदापि नहीं है कि उदारवाद आधारित इंसान स्थितप्रज्ञ पाळी की तरह काम नहीं करना जानता; जानता होता है बशर्ते उसको दुश्मन सही से पहचाना जाए| तीन उदाहरणों से समझते हैं:
1) 1984 के दंगे, तथाकथित आतंकवाद व् खालिस्तान: संत भिंडरावाला जी ने "आनंदपुर साहिब रिजोलुशन" लागू करवाने हेतु मुहीम शुरू की तो फंडी को पहले से ही निर्धारित था कि यह "सेण्टर की बजाए राज्यों को ज्यादा राइट्स देने वाला अमेरिका-यूरोप के उदारवाद पर आधारित रिजोलुशन" इंडिया में स्वीकृत होने दिया तो उनकी "वर्णवाद आधारित अलगाववाद वाली सामंती सोच" को फिर कोई नहीं पूछेगा| इसलिए संत भिंडरावाला को रोकने हेतु, इन्होनें जगजीत सिंह चौहान के जरिए "खालिस्तान" की स्थापना करवा कर, खालिस्तान का हवाई मुद्दा इस युद्धस्तर पर शुरू करवाया कि जनता को संदेश गया जैसे संत भिंडरावाला ही खालिस्तान मांग रहे हों| यानि स्थितप्रज्ञ पाळी की तरह असल मुद्दा ही खत्म करवा दिया व् एक संत जैसे बंदे व् उदारवाद पर आधारित पूरे सिख धर्म को ही कुछ सालों के लिए तो खुड्डे-लाइन ही लगा दिया था| अन्यथा खोजने पर चलता है कि संत भिंडरावाला के ना किसी भाषण में, ना किसी लेखन में, ना किसी कोर्ट-कचहरी-थाने में; कहीं ऐसा जिक्र नहीं है कि उन्होंने "आनंदपुर साहिब रिजोलुशन" के सिवाए कहीं खालिस्तान की मांग उठाई हो| यह मांग शुद्ध रूप से फंडी के खड़े किये मोहरे जगजीत सिंह चौहान व् ग्रुप की थी|
2) "जाट (आर्य-सिख-मुस्लिम-बिश्नोई) -रोड़-त्यागी आरक्षण मुहीम" व् फरवरी 2016 के हरयाणा दंगे: उदारवाद की नजर से सबको बराबर तोलना इसको बोलते हैं कि सन 2012 के इर्दगिर्द हरयाणा के तब के मुख्यमंत्री चौधरी भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने जनरल केटेगरी के गरीब तबके को आरक्षण देने हेतु उसके दो ग्रुप बना दिए, एक "बनिया, गैर-त्यागी-ब्राह्मण, अरोड़ा-खत्री, राजपूत" व् एक में "जाट (आर्य-सिख-मुस्लिम-बिश्नोई), रोड़, त्यागी ब्राह्मण" और दोनों को 10-10% आरक्षण दे दिया| परन्तु पक्षपाती फंडियों की सरकार आते ही हूबहू पैमानों पर बने इस आरक्षण फार्मूला की पहली केटेगरी का आरक्षण तो आज भी जारी है परन्तु दूसरी केटेगरी का खत्म कर दिया या करवा दिया| जिसको ले कर हरयाणा में आरक्षण के खत्म हो चुके मुद्दे का जिन्न फिर से बाहर निकलता है| क्योंकि फंडी को निर्धारित है कि उदारवाद को आगे या बराबर नहीं आने देना है, (वजह वही ऐसा होने दिया तो उनकी "वर्णवाद आधारित अलगाववाद वाली सामंती सोच" को फिर कोई नहीं पूछेगा) इसलिए जब यह आरक्षण मुद्दा हरयाणा में फिर से उठा तो फंडियों ने वही स्थितप्रज्ञ पाळी वाला रास्ता लिया व् जैसे 1984 में संत भिंडरावाला के सामने जगजीत सिंह चौहान व् ग्रुप को खड़ा किया था, ऐसे ही हरयाणा में राजकुमार सैनी, रोशनलाल आर्य, मनीष ग्रोवर, अश्वनी चोपड़ा समेत खुद मनोहरलाल खटटर "कंधे से नीचे मजबूत, ऊपर कमजोर" सरीखे बयानों के साथ उतार दिए गए| 10 दिन से रोड जाम किये बैठे जाट (आर्य-सिख-मुस्लिम-बिश्नोई) -रोड़-त्यागी समेत समाज के किसी भी हिस्से से रोडसाइड खड़े किसी भी ट्रक-कार वाले से एक सुई तक छीनने की भी कोई घटना नहीं हुई तो संघी गैंग के 400 के करीब हरयाणा से बाहर वाले नंबरों वाले गुंडे व् राजकुमार सैनी द्वारा बनाई गई तथाकथित "ओबीसी ब्रिगेड" ने उत्पात मचाना शुरू कर दिया व् शांतिपूर्ण तरीके से चल रहे प्रदर्शन को ही derail कर दिया| आंदोलन जहाँ रोड़ व् त्यागियों के लिए भी अंत में सारी किरकिरी व् बदनामी फूटी जाट समाज के सर| यानि ना फंडी आगे आया ना फ्रंट लिया परन्तु इस आवाज की दोबारा उठने की संभावना रखने वाले जाट समाज के मत्थे ही भूंड जड़वा दी|
3) तीन काले कृषि कानून व् 2020-21 का किसान आंदोलन: लगता है कि जून 1984 व् फरवरी 2016 की सीखें व् अनुभव अपना काम कर रहे हैं| तभी इस आंदोलन का भी 1984 व् 2016 जैसा हाल करने की फंडी की दर्जनों कोशिशें मुद्धे-मुंह गिरती आ रही हैं| क्योंकि इस तीसरे केस के आप सभी साक्षी हैं तो इसमें फंडी के खड़े किये जगजीत सिंह, राजकुमार, रोशनलाल, मनीष, अश्विन व् मनोहरलाल कौन-कौन हैं; आप भलीभांति पकड़ पा रहे होंगे| बस इनको ऐसे ही पकड़ के defuse करने हेतु सरजोड़ के चलते रहिए, तो अबकी बार फंडी के सामंतवाद पर आपका उदारवाद अवश्यम्भावी जीतेगा|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक