Wednesday 29 September 2021

जाटां की मरोड़ लिकड़नी चाहिए, फेर म्हारी बेशक घस्स लिकड़ ज्याओ!

90% लोग तो किसान आंदोलन से फंडियों ने बस इस लाइन के पटे पे चढ़ा के रोक रखे हैं| और इनको पता है कि घस्स लिकड़ने से भी आगे की तसल्ली फंडी बैठा चुके इनकी, परन्तु मानसिक पिछड़ेपन व् दूसरे के कमाए पे बदनीयत का आलम यह है कि यह घस्स तो क्या गस खा के गिर भी जायेंगे तो भी यही कुकाएँगे, कि म्हारी चाहे दोनों आँख फोड़ दो, पर जाटों की एक जरूर फूटनी चाहिए|
ऐसे ही इनके फंडियों का पकड़ाया 35 बनाम 1 भी आज लग समझ नहीं आ लिया| ये सोचें हैं कि इसके जरिये फंडी इनको कीमें घणा बड्डा न्याय दिलवा रहे हैं जबकि इनको पता ही नहीं कि फंडी इसके जरिए धर्म की मार्किट (डेरे-मठ-मंदिर-आर्य समाज) से जाट को बाहर कर, इस मार्किट में साउथ इंडिया की तरह अपनी मोनोपॉली स्थापित करना चाहते हैं; वही साउथ इंडिया वाली मोनोपॉली जिसमें देवदासी कल्चर पलता है व् समाज के सबसे पिछड़े तबके की बेटियों का फंडी इनमें सामूहिक तौर पर शोषण करते हैं|
मतलब इनको आईडिया ही नहीं है कि थम चारों तरफ से कुचले (आर्थिक-आध्यात्मिक-सामाजिक-कल्चरली) जा रहे हो; जाट का औढ़ा ले के| जाट तो इनकी झलों से बच भी जाएंगे, आप वक्त रहते सोच लो अन्यथा घस्स लिकड़नी व् देवदासी कल्चर दोनों का जाल घिरा आ रहा आप लोगों पर|
यह बात भक्त जाट भी समझ लें वक्त रहते, नहीं तो जड़ तुम्हारी भी पट्टी जानी हैं फंडियों द्वारा|
जय यौधेय! - फूल मलिक

Tuesday 28 September 2021

चंद्रमोहन महंत, मुज़फ्फरनगर आप अपने वंश का पता ठीक से रखें इतना बहुत!

सभ्य इंसान ऐसी बातों के दूसरों के ठेके नहीं उठाया करते| और फिर भी उठाने हैं तो जिस चाहे समाज के उठाओ, परन्तु जाटों के मत उठाना; वरना हम थारे पिछोके व् वंश खोल के बैठ गए तो मुंह छुपाने को तो थमनें जगह नहीं मिलनी और ना थारे समाज में इतनी सहनशीलता व् सामाजिकता कि जैसे आप 26 सितंबर की रैली में बोल गए और समाज फिर भी सुन गया, ऐसे आप भी सुन और सह लोगे|


और अनुरोध है इन महाशय की जाति-बिरादरी से इनको सलीका सिखाएं अन्यथा जाट को किसी अन्य समाज की तरह ना लेवें, सारे बहम काढ़ दिए जाएंगे तथाकथित ज्ञानी व् बहमी होने के, वह भी आमने-सामने की डिबेट में|

सनद रहे, आजतक इस धरती पर कोई ऐसा चंद्रमोहन हुआ नहीं जो इन मामलों पे जाट से वाद-विवाद जीत जाए| इसलिए बेहतर है कि जो चीजें व्यक्तिगत होती हैं उनको व्यक्तिगत रहने दें| मेरा दादा कह गया था कि पोता, "वह जाट ही क्या हुआ; जिसके आगे कोई फंडी-फलहरी ज्ञान झाड़ जा| जाट वह थाह है जिसके आगे आ के बड़े-से-बड़े ज्ञानी के ज्ञान मुक जाते हैं"|

थमनें बड़े येन-प्राकेण करके समाज में तथाकथित सर्वज्ञानी होने की छवि बनाई हुई है, परन्तु इस धोखे में "खीर के भळोखे कपास खाने की गलती ना करें" कि लगे जाटों के भी वंश पब्लिक में बताने| मर्यादा रखें व् मर्यादा पाएं|

आमने-सामने मत आना वरना बड़ी खता खाओगे! थारा तथाकथित ज्ञान जाट समाज से इन मामलों में तभी तक सुरक्षित है जब तक राजकुमार सैनी व् रोशनलाल आर्यों जैसों के जरिए शाब्दिक हमले (कचोद) करवाते हो; आमने-सामने में नहीं ठहर पाओगे|

पहुंचा दी जाए यह पोस्ट इन महंत जी को; कि जब चाहें डिबेट कर लें मेरे से; सारे बहम क्लियर कर दिए जाएंगे|

जय यौधेय! - फूल मलिक

Thursday 23 September 2021

ना तो ये अंग्रेज हैं और ना आप गाँधी; जो आप यह सोचते हैं कि खुद को कष्ट देने के सत्याग्रह से यह पिघल जाएंगे!

आप सोचते हैं कि, "इनकी भाषा में शूद्र का कमाया बलात हर लेने को भी अपराध की जगह हक़ मानने की मनोवृति से पले-बढ़े यह फंडी" आप किसानों को जिस तरीके से सत्याग्रह कर रहे हो इससे आपके हक़ दे देंगे? इनके भळोखे चाहे आत्मदाह कर लो, 2018 में जैसे तमिलनाडु के किसानों ने नग्न हो के प्रदर्शन किया, सुनते हैं उन्होंने मूत्र तक भी पिया; भूख-हड़तालें करी; क्या यह पिघले उनपे?

और खुदा-ना-खास्ता अगर यह यूपी चुनाव फिर से जीत गए तो क्या राह व् हश्र होगा इस आंदोलन का?
तमाम तरह के सत्याग्रह करके भी "आर्थिक असहयोग" पर तो गाँधी को भी आना पड़ता था तो किसान को क्यों नहीं?
इन बातों को देखते हुए, क्या यह सही वक्त नहीं है कि "आंदोलन के अहिंसा से चलाने" के सिद्धांत को आगे बढ़ाते हुए व् यूपी इलेक्शन के नतीजों की बाट देखे बिना; अक्टूबर-नवंबर-दिसंबर 2021 में "आर्थिक असहयोग" लागू किया जाए? इससे यूपी इलेक्शन तक को और जबरदस्त तरीके से प्रभावित करने में मदद मिलेगी|
जय यौधेय! - फूल मलिक

Monday 13 September 2021

कल सारागढी दिवस की बधाईयों के साथ इसको ले के तंज भी चले!

कुछ यूं: अंग्रेजों के लिए लड़ने में काहे का विजय-दिवस, काहे की वीरता मनाते हो?

जवाब: अंग्रेजों में तुम में यही फर्क है कि अंग्रेजों ने मात्र 200 सालों में जाट-कौम की बारम्बार वीरता देख इनको "रॉयल ब्लड" कहा और तुम्हारे लिए हजारों साल भी ब्लड बहाने पर चांडाल, शूद्र, मोलड़, गंवार में लपेटते फिरते हो| वो अलग बात है जाटों के पुरखों ने कभी तुम्हारी यह नीच सोच ओढ़ी नहीं|
वह सारागढ़ी को लंदन के रॉयल पैलेस तक में मनाते हैं; 13 बार भरतपुर (लोहागढ़) में जाट सेना से हार खा कर उसको acknowledge करते हैं; क्या तुम कभी "बागडू", "3 बार की दिल्ली फतेह", "सर्वखापों द्वारा राणा सांगा से ले अनगिनत जीतों को कहीं काउंट भी करते हो?" तुम तो पृथ्वीराज चौहान के कातिल मोहम्मद गौरी को मारने वाले सर्वखाप चौधरी दादा रायसाल खोखर तक का क्रेडिट खा के यह बुलवाते हो कि गौरी को पृथ्वीराज ने अँधा होते हुए भी तीर से मारा था; वह भी खुद की मौत के 14 साल बाद?
क्रेडिट चोरो, इन महान योगदानों को तुम ऐसे खा गए, ऐसे में जो हमारी वीरता को याद रखते हैं हम उन्हें भी याद ना रखें, ना मनाएं ताकि तुम्हारी चांडाल, शूद्र, मोलड़, गंवार साबित हो जाएं? तुम तो स्कूल-यूनिवर्सिटियों में अब पूर्ण-रूपेण तथाकथित स्वधर्म की सरकारें होते हुए भी फलों से पैदा हुओं के किस्सों में वीरताएँ ढुँढ़वाते हो; कभी इन वास्तविक वीरों पे अध्याय जोड़ने की हिम्मत दिखा लो; उस दिन बात करना कि हम क्यों सारागढ़ी मनाने में गर्व करते हैं|
9 महीने में तो अंग्रेजों ने भी किसानों की मांगें मान ली थी, तुम किसान आंदोलन दसवें महीने में भी चला जाने पे टस-से-ंमस नहीं हो; झाँक लो अपने गिरेबान में विश्व के नीचतम वर्णवादी अलगाववादी मानसिक आतंकवादियों|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक

Friday 10 September 2021

जब किसान आंदोलन को अहिंसक रह कर ही चलाने की ठानी हुई है तो "आर्थिक असहयोग" भी तो अहिंसक तरीका ही है; इसको भी आजमा लिया जाए!

लगता है फंडियों की सरकार यह जो हद दर्जे की बेशर्मी दिखा रही है कि करनाल SDM के खिलाफ वीडियो में सबूत होने पर भी उसको ससपेंड नहीं कर रही; जबकि बंगाल में एक विवाह में covid गाइडलाइन्स पालन ना करने पर एक पुजारी को थप्पड़ मारने के वीडियो के आधार पर उस DM को ही ससपेंड कर दिया था तो इसका क्या संदेश लिया जाए?


संदेश साफ़ है कि अहिंसक रास्ते के अगले स्तर पर बढ़ा जाए| और अगला स्तर है "आर्थिक असहयोग"; जिसके लिए लगभग जनता तैयार खड़ी है अगर किसान संयुक्त मोर्चा इस तरीके की तैयारी करके इसका आह्वान कर दे, तो SDM तो क्या यह तो DC से ले CM तक को ससपेंड करेंगे| कैसी तैयारी:

जल्द-से-जल्द मान लो आज ही कॉल दी जाए कि करनाल एपिसोड पर सरकार के रूख को देखते हुए हम कॉल देते हैं कि, "2 हफ्ते बाद" न्यूनतम 3 महीने के लिए "सम्पूर्ण आर्थिक असहयोग" की कॉल दी जायेगी| तब तक इन 2 हफ्तों में हर किसान यूनियन अपने जिला-ब्लॉक-गाम स्तर पर इस आर्थिक असहयोग को चलाने के तरीके का किसानों-मजदूरों-छोटे व्यापारियों में इस प्रकार प्रचार करेगी:

"खाने-पीने के सामान को छोड़ कर और क्योंकि छोटा व् मंझला व्यापारी किसान आंदोलन का साथ दे रहा है व् यह व्यापारी 95% 25000 रूपये से कम के सामान में डील करता है; इसलिए 25000 रूपये से ऊपर का खाने-पीने के सामान को छोड़कर कोई भी सामान नहीं खरीदा जाएगा| शुरू में 3 महीने के लिए इसको चलाया जाएगा व् जरूरत लगी तो इसको एक्सटेंड किया जाएगा|"

इससे किसानों को आर्थिक लाभ से ले हर तरह के लाभ होंगे| क्योंकि "आर्थिक असहयोग" घरों, धरनों पर बैठ कर चलाना है जिसमें ना यह रोज-रोज कभी जिंद, कभी हिसार, कभी टोहाना, कभी रोहतक तो अब करनाल भागने के झंझट होंगे; ना इनमें लोगों की आर्थिक, शारीरिक व् मानसिक ऊर्जा व्यय होगी| आंदोलन की मानसिक ऊर्जा व् प्रेरणा कायम रहेगी|

यह करना इसलिए भी जरूरी हो रहा है क्योंकि फंडी सरकार, अब इस किसान आंदोलन में अमानवीय स्तर से भी पार जा कर जो जुल्म करने के रास्ते अख्तियार कर रही है इसको यह अब 35 बनाम 1 की इनकी नफरत-हेय की राजनीति को जिन्दा रखने की कवायद की तरह देखने लगे हैं| इनका मानना है कि 1 के खिलाफ निर्मम दिख कर हम 35 को अपने लिए मजबूत वोट में बदलते जाएंगे, खासकर हरयाणा में| हालाँकि इनको एक SDM को ससपेंड नहीं करने का साहस व् यह जुल्म करने का साहस इस बात से आ रहा है कि किसानों ने "अहिंसक" रहने की शपथ सी उठाई हुई है| तो ऐसे में यह लठ तो उठाएंगे नहीं तो 35 में 1 के प्रति निर्मम बन के अपनी हीरोगिरी चमका लो|

ऊपर से सितम यह है कि 35 में जो भी इनके प्रभाव में हैं वह यह भी नहीं देख रहे कि किसान सिर्फ उनके लिए नहीं लड़ रहे हैं अपितु तुम्हारे लिए भी लड़ रहे हैं| यह उल्टी मति कहिये या दूसरे के नुकसान में ख़ुशी देखने की पिछड़ेपन की सोच; परन्तु यह चर्चा है धरातल पर|

अत: अगर किसान संयुक्त मोर्चा चाहता है कि यह सरकार आपकी बातों पर एक्शन लेवे तो अब वहां चोट कीजिए जहाँ इनको सबसे ज्यादा दर्द होता है यानि "नोट की चोट" यानि "आर्थिक असहयोग"| "वोट की चोट" का रास्ता बहुत लम्बा भी है और अपेक्षित रिजल्ट्स देने में हरयाणा जैसी जगह में तो शायद ही कारगर साबित होवे| आप कितना ही शारीरिक कष्ट उठा कर "सत्याग्रह" करते रहिएगा यह फंडी लोग फिर भी लोगों के दिल आपके प्रति ना पसीजें इसके लिए दिनरात अनवरत काम पर हैं| तो ऐसे में लाजिमी है कि "आर्थिक असहयोग" की कॉल हो| इसके लिए हमारे जैसे आपके बालकों का जो भी सहयोग चाहिए हम आपके साथ हैं|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

Sunday 5 September 2021

खापलैंड का किसान भी गजब है; और वर्णवाद के काटे लोग यह सोचते हैं कि इनको गलत-सही दोनों में सर पर ही बैठा कर रखा जाए!

गज़ब क्योंकि, कल एक तरफ मुज़फ्फरनगर किसान महापंचायत की स्टेज से एक किसान खुद ही सीनियर पत्रकार अजित अंजुम के माथे का पसीना पोंछ रहा था (पोंछते हुए वजह भी बताई, वायरल वीडियो देखें) तो वहीँ दूसरी तरफ आजतक की पत्रकार चित्रा त्रिपाठी को ताड़े लगाए जा रहे थे (ताड़े लगाने की वजह भी बताई, वायरल वीडियो देखें)| ख़ास, बात दोनों एक ही बिरादरी के थे|

मुझे यह देख इतिहास की ऐसी ही नेगेटिव व् पॉजिटिव दो और हस्ती याद हो आई, जिनके साथ भी इस खापलैंड ने यही सलूक किया था|

एक सन 1761 की पानीपत की लड़ाई वाले पेशवा सदाशिवराव भाऊ: इन्होनें भी चित्र त्रिपाठी वाला सा किरदार अख्तियार करते हुए "खाप परिवेश" से निकले दादा महाराजा सूरजमल सुजान का "दोशालो पाट्यो भलो, साबुत भलो ना टाट; राजा भयो तो का भयो, रह्यो जाट-गो-जाट" कह कर अपमान किया था| व् उसी मद में चौड़ा हो पानीपत लड़ने चढ़ा था| इस पर जाट सेना ने सिर्फ साथ नहीं दिया (दुश्मन से नहीं जा मिले थे) तो अब्दाली के हाथों ना सिर्फ मुंह की खाई वरन वह बनी कि दो कहावतें एक साथ चली;

एक "जाट को सताया तो ब्राह्मण भी पछताया" व्
दूसरी "बिन जाट्टां किसने पानीपत जीते"|

और पुणे के इस पेशवे को जाट को सताए का श्राप इतना उल्टा पड़ा था कि हार जो हुई सो हुई; अंत में पूरे भारत में इसकी हारी हुई मरती-पड़ती घायल पिटी सेना को 14 जनवरी 1761 को उसी "खाप परिवेश" के महाराजा सूरजमल के यहाँ मरहम पट्टी व् अब्दाली से सुरक्षा मिली| इन घायलों को कंबल ओढ़ाने के इसी एपिसोड से ही "संक्रांत" में घर-पड़ोस में बुजुर्गों को "कंबल-चद्दर" ओढ़ाने के रूप में "खापलैंड की इस उदारता" को जीवित रखने का रिवाज भी चला| संक्रांत इसी तारीख से शुरू हुई थी इस बात का सबसे बड़ा सबूत यही है कि यह त्यौहार देशी नहीं अंग्रेजी महीनों के अनुसार 14 जनवरी को ही मनाया जाता है|

दूसरे महर्षि दयानन्द: अजित अंजुम वाले किरदार में चलते हुए आर्य समाज की गीता कहलाने वाले ग्रंथ "सत्यार्थ प्रकाश"में "जाट जी" व् "जाट देवता" बोल के जाटों की स्तुति मात्र क्या की कि बदले में इस खापलैंड के जाट समाज से इतना आदरमान मिला कि उत्तर भारत में आजतक भी इनसे बड़ा ब्राह्मण नहीं जाना जाता कोई|

तो अर्थ भी व् भेद भी दोनों साफ़ हैं कि हमसे बैर बिसाह के कहीं ना सुख पाओगे; प्यार-लिहाज-इज्जत दोगे व् लोगे तो प्रसिद्धि की बुलंदी थोक के भाव पाओगे| अब भी अपने बहम ठीक कर लो, खापलैंड है यह, तुम्हारे वर्णवाद को ना पहले कभी ओटा ना आज ओटती; उदाहरण एक ही बिरादरी के दो बंदे; मुज़फ्फरनगर में बिल्कुल विपरीत ट्रीटमेंट पाते हैं|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक


"वो तोड़ेंगे, हम जोड़ेंगे" - मुज़फ्फरनगर किसान महापंचायत का सबसे बड़ा संदेश!

वो यानि फंडी| एक नहीं कई वक्ताओं ने आज इस बात को दोहराया|

बात अगर हरयाणे की की जाए तो 2014 में आते ही इन्होनें उत्तरी भारत की सबसे बड़ी किसान बिरादरी से एक-एक करके कई किसान बिरादरियां दूर करी या आपस में खाई खड़ी करी; जिसकी कि इनकी कोशिशें आज भी जारी हैं:

1 - सिलसिला शुरू हुआ सैनी बिरादरी व् जाट बिरादरी में दूरियां करवाने से; हालाँकि अब आपस में वापिस भी बहुत जुड़ चुके हैं, शायद किसान आंदोलन की बदौलत|
2 - धीरे-धीरे बढ़ता हुआ यह सिलसिला यह ले गए गुज्जर व् यादव बिरादरियों में ट्राई करवाने पे; यहाँ भी इनको आंशिक सफलताएं मिली परन्तु अभी दूरियां घटती देखी जा रही हैं|
3 - इनके बाद विशाल जूड के जरिए इन्होनें रोड बिरादरी पर ट्राई किया, परन्तु टिकैत साहब ने नीरज चोपड़ा के ओलिंपिक में गोल्ड जीतने पर, नीरज के गाम जा नीरज के पिता जी व् दादा जी को अपने किसानी भाईचारे वाली बधाई दे; फंडियों की इस चाल पर भी काफी हद तक ठंडा पानी डालने में कामयाबी पाई|
4 - अभी मुज़फ्फरनगर महापंचायत से सिर्फ 2 दिन पहले ही इन्होनें "कम्बोज किसान" बिरादरी के नाम से कोई सम्मेलन करवाया व् उनको भी जाटों से तोड़ने हेतु वहां जहर उगलवाए| आशा है कि मुज़फ्फरनगर महापंचायत उन चंद जहर उगलने वाले साथियों को "असल हितैषी कौन समाज का" का व्यापक आयाम दिखाने में मदद करेगी|

इससे पहले मुज़फ्फरनगर 2013 के दंगे हों या 26 जनवरी 2021 की लाल किला घटना के जरिए सिख व् हिन्दू समाज फूट डालने की कुचेष्टा; यहाँ भी इनकी चालें कामयाब ना होने देना; इस किसान आंदोलन की बहुत बड़ी कामयाबी रही|

और आज तो मुज़फ्फरनगर में जैसे उत्तरी भारत के किसानों की न्यूनतम 115 सालों (सन 1906 से ले सन 2021) की सरदार अजित सिंह से शुरू हो सर छोटूराम-सर फ़ज़्ले हुसैन की जोड़ी से होते हुए चौधरी चरण सिंह व् सरदार प्रताप सिंह कैरों के वक्तों से होती हुई बाबा महेंद्र सिंह टिकैत के वक्त "अल्लाह-हू-अकबर, हर-हर महादेव" के नारों सवार होती आई यह लिगेसी सरदार बलबीर सिंह राजेवाल, चौधरी राकेश टिकैत, सरदार गुरनाम सिंह चढूनी व् पूरे किसान संयुक्त मोर्चे की अथक लग्न-मेहनत ने वापिस "अल्लाह-हू-अकबर, हर-हर महादेव" व् "जो बोले सो निहाल, शत श्री अकाल" के नारों पर चढ़ा दी है|

परन्तु हरयाणा में अभी भी ख़ास ध्यान देने की जरूरत है| फंडी को पता लग चुका है कि उनकी असलियत के ढोल फट चुके हैं; इसलिए वह आनन्-फानन में अपने काइयाँपन के नीचतम स्तर पर चलते हुए ना सिर्फ नई-नई किसान बिरादरियों को हरयाणा की सबसे बड़ी किसान बिरादरी से छिंटकने के हथकंडे चल रहे हैं अपितु अडानी-अम्बानी के प्रोजेक्ट्स भी बहुत तीव्र गति से आगे बढ़ा रहे हैं; जिसकी कि एक बानगी है पिछले हफ्ते हरयाणा विधानसभा में पास हुआ नया भूमि अधिग्रहण बिल|

अत: हरयाणवियों को "किसान संयुक्त मोर्चा" के साथ-साथ अपने प्रदेश में भी तीन और फ्रंट्स पर लड़ाई लड़नी है| एक फंडियों का यह किसानी जातियों को ना सिर्फ आपस में छींटकाने का फ्रंट अपितु ओबीसी व् दलित बिरादरी को भी सच्चे-झूठे मुगालतों में डाल इनको भी आपसे दूर रखने की कवायद का अंत (जहाँ-जहाँ जो-जो हथकंडा फंडी रहे हैं, वहीँ उसकी काट ढूंढ के आपसे तोड़ी जा सकने वाली कम्युनिटी को वापिस जोड़िए; इन फंडियों के साथ "तू डाल-डाल, मैं पात-पात" वाली कर दीजिए); दूसरा नया आया भूमि अधिग्रहण बिल (इस पर एक खाप पंचायत हो चुकी है रोहतक में; और की प्लानिंग चल रही है जो बड़े स्तर पर कामयाब कर हरयाणा सरकार को तगड़ी भड़क बिठवानी है व् कोर्ट के जरिए इस कानून पर न्यूनतम स्टे ले; इसको वापिस करवाने की मुहीम उठानी होगी) व् तीसरा इन फंडियों की छद्म manipulation व् polarisation की सोच को धरातल पर उतारने का काम|

बहुत हो गया है, आज के यूथ पर सबसे बड़ी जिम्मेदारी है| गाम-गाम पंचायतें कीजिए व् इस फंडियों के फैलाए इस विष का मलियामेट कीजिए| इस विष को वापिस इन फंडियों को ही पिलाना शुरू कीजिये; तभी आगे राहें आसान हो सकेंगी| क्योंकि इनकी सोच को नकेल डाले बिना; शक्तिप्रदर्शन भी इतने प्रभावी व् कारगर नहीं होंगे|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

Saturday 4 September 2021

कई बार लोग पूछते हैं कि आरएसएस लोकल स्तर पर लोकल लोगों की मदद से लोकल लोगों के चंदे से ही इवेंट्स करना कहाँ से सीखी?

वह लोग खापों/मिशलों व् खाप-मिशाल कल्चर से ही निकली विभिन्न किसान यूनियनों के द्वारा कल मुज़फ्फरनगर महापंचायत में लगने वाले 500 से ज्यादा लंगरों की व्यवस्था से जान लें| कोई-कोई इन लंगरों की संख्या 1000 तक पहुँचने आशंका जता रहा है| यह ऐसे ही लंगर 1925 से पहले भी लगते थे, जब आरएसएस नहीं थी| तब खापें व् मिशल यह करती थी; इन्हीं खापों की यह लोकल स्तर पर इवेंट मैनेजमेंट की कार्यप्रणाली आरएसएस ने कॉपी की है|


बस एक चीज, जिसमें आरएसएस, खापों से आगे निकल गई है वह है अपने-आप को गैर-राजनैतिक रख के; बाहर से अपना राजनैतिक दल पालना जैसे कि बीजेपी| यानि आरएसएस सीधा-सीधा सत्ता की राजनीति में शामिल नहीं होती|

और खापों ने अपनी यही लकीर यानि गैर-राजनैतिक रहने की परिपाटी जब से छोड़ी है; तब से खापों की सांझी पावर व् प्रभाव घटा है| अन्यथा पहले विरला ही कोई खाप चौधरी, सीधा राजनीति में जाता था और जाता भी था तो या तो सीधा एमएलसी बनता था अन्यथा तुरंत राजनीति छोड़ वापिस खापों में सामाजिक बन काम करता था|

जिस दिन फिर से खापों ने अपनी यह कमी दुरुस्त कर ली; उसी दिन से इनका प्रभाव पुरखों जैसा हो उभरेगा| हालाँकि "किसान आंदोलन" ने फिर से खापों को उभारा दिया है; यही वह उभारा है जहाँ से खापें पुरखों की लाइन ले जावें तो वापिस इतिहास बनेंगे|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

Thursday 2 September 2021

जब तक इस 35 बनाम 1 नाम के जिंक पर वॉकल हो कर इसको नहीं तोडा जाएगा!

तब तक फंडी इसके अतिरिक्त सभी वर्गों के लिए मुसीबत बना रहेगा| इसमें 1 फंडी के बिगोए इस जहर की किश्तें भरता रहेगा व् 35 में 34 को फंडी (इन्हीं में तो अपना बन के फंडी घुसा हुआ है) 1 से नफरत-द्वेष के नाम पर इन 34 को झाड़ पे टाँगे रख के इनका खून चूसता रहेगा| हालाँकि काफी सारी दलित बिरादरी तो इस 34 से निकलती जा रही हैं, जिसकी ख़ास वजहें बाबा साहेब अम्बेडकर व् गौतम बुद्ध हैं; परन्तु ओबीसी अभी फंडी के सबसे ज्यादा मोहपाश में चल रहा है|


गजब की बात यह है कि चाहे दलित हो या ओबीसी, यह सबसे ज्यादा 1 के साथ काम करते हैं, मिलके कमाते हैं| सरकारी नौकरियों को छोड़ दें तो इनकी मुख्य कमाई आपस में ही होती है 1 के साथ| सामाजिक-पारिवारिक-आर्थिक-व्यवहारिक-कल्चरल सब रिश्तों में यह 1 के साथ ही सबसे सहज होते हैं| परन्तु फिर भी पता नहीं या तो इन रिश्तों का इनके बीच प्रचार कम है या फंडी का मोहपाश इतना भारी है कि यह 35 बनाम 1 का जिंक नहीं टूट रहा|

इसके टूटने में इतनी देर ना हो जाए बस कि पता लगा तब तक फंडी कल्चर-सिस्टम-आध्यात्म सब चट कर गया| 1 तो कुछ ना कुछ हर हालत में ले मरे शायद परन्तु यह 1 भी क्यों नहीं अपनी अच्छाईयों को 34 के बीच सही से समझा पा रहा? क्या प्रचार की कमी है या फंडी की कान-फुंकाई साफ़ करने की जरूरत है?

यैस, फंडी की कान फुंकाई साफ़ करने की जरूरत है| मैंने व् हमारी टीमों ने हमारे गाम से ही उदाहरण ले के प्रक्टिकली इस बात को साबित व् इसका पटाक्षेप किया है कि फंडी एक तरफ दलित-ओबीसी के कान में फूंकता है कि "देखो, जाट तो दबंग है, हमें समाज के भले के काम भी नहीं करने देता"? और उधर वही फंडी जाट को कहता है कि, "जजमान, थारे बिना म्हारा कौन? म्हारा तो गुजारा ही थारे से चले है"|

और जब हमारी टीम ने जाट व् दलित-ओबीसी को इस पॉइंट पे इकट्ठा किया तो दोनों ने कहा कि बिल्कुल यही कहानी है जी| यहाँ हमारे वालों के कान भरते हैं जाटों के विरुद्ध व् उधर सन्मुख होने पर आप लोगों की चापलूसी करते हैं|

जब से इस बात का भंडाफोड़ किया है, तब से कम-से-कम जिन-जिन दलित-ओबीसी-जाट को इसका पता लगा वह फंडियों से दूर हुए व् आपस में नजदीकी व् अपनापन महसूस करने लगे| जिन गामों में जाट की जगह कोई अन्य कृषक वर्ग जैसे कि रोड़-गुज्जर-राजपूत आदि बहुलता में है तो फंडी वहां दलित-ओबीसी को इनके खिलाफ कान फूंक के रखता है| हालाँकि बहुतेरे ओबीसी-दलित ऐसे भी हैं जो इनके बहकावे में नहीं आते व् कृषक जातियों से अपनत्व को बारीकी से समझते हैं परन्तु फंडी दोनों तरफ फूंक के रखते हैं; दलित-ओबोसी के कृषक के विरुद्ध फूंक के व् कृषक की चापलूसी करके| अत: इनकी "कान फुंकाई" व् "चापलूसी" दोनों को सिरे से नकारिये|
आप भी अपने गामों में इसका प्रैक्टिकल कीजिए व् नतीजे हाथों-हाथ देखिए| कर लीजिए वरना फंडी ने आप लोगों को धरती में दफनाने-गाड़ने का पूरा इंतज़ाम किया हुआ है|

और आपको यह करना होगा, इसलिए नहीं कि यह आपकी आदत है अपितु इसलिए कि यह आपकी जरूरत है| आपकी जरूरत है क्योंकि फंडी तो लोगों के कान फूंकने से बाज आना नहीं और इसके कान फूंके को साफ़ किए बिना आपका काम चलना नहीं| लुगाइयां तो खामखा बदनाम ज्यादा की गई हैं दरअसल धरती के सबसे बड़े चुगलखोर तो यह फंडी हैं|

विशेष: फंडी का किसी जाति-समुदाय विशेष से कोई लेना देना नहीं है; वह कम-ज्यादा मात्रा में हर जाति में मिलता है|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

आईए, आपको बाबा चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत के कमरे से मिलवाते हैं!

चारों सलंगित फोटो में जो आप देख रहे हैं यह बाबा जी कमरा है, इससे जुडी ख़ास बातें जानते हैं|


1) अमरज्योत: इसमें जो "भूमिया खेड़ों", "दादा नगर खेड़ों" की भांति "ज्योत" जल रही है यह सन 1987 से अनवरत जलाई जाती है| सिसौली में जो बाबा के घर आता है, इस ज्योत के बराबर में रखी, स्टील की टंकी से घी की एक चमच ले कर श्रद्धावश ज्योत में डालता है| कई तो घी भी साथ ही ले आते हैं|
2) मात्र बाबा की फोटो: इस कमरे के अंदर सिवाए बाबा की एक फोटो के कोई अन्य फोटो नहीं है| यानि शुद्ध "किसानी धर्म" को समर्पित कमरा है; तमाम तरह के फंड-पाखंड, फंडियों के कॉन्सेप्ट्स से दूर| और कोई भी शक्ति इसमें सुप्रीम नहीं है, सिर्फ बाबा यानि म्हारा पुरख सुप्रीम है|
3) हर रोज बाबा को आंदोलन की रिपोर्टिंग की जाती है इस कमरे में बैठ|
4) बाबा का हुक्का व् बिस्तर: हुक्का हर रोज तरोताजा किया जाता है, बिस्तर हर रोज बदला जाता है|
5) चौधरी राकेश टिकैत के छोटे भाई चौधरी नरेंद्र टिकैत (फोटो में) कहते हैं कि 28 जनवरी की शाम ग़ाज़ीपुर बॉर्डर पर राकेश के मुंह से जो शब्द निकले थे; वह हमारे इन पुरख बाबा की आवाज थी, इनका संदेश था| इस स्तर तक बाबा आज भी हम से जुड़े हुए हैं|

"उज़मा बैठक" भी यही कहती है, चाहे जिस किसी को मानो; परन्तु इस कमरे की भांति अपनी शुद्ध जमींदारी की मान-मान्यताओं जैसे कि खेड़े-खाप-खेत को शुद्धतम इन्हीं पर रखो| जहाँ कहीं मिक्स होना है वहां होवो बेशक, परन्तु जब बात अपने आध्यात्म की हो, सभ्यता-कल्चर की हो तो वह शुद्धतम रखा जाए; जैसे कि म्हारे दादा नगर खेड़े, भूमिया खेड़े, लोकगीत, मान-मान्यता आदि|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक