tag:blogger.com,1999:blog-29452302116195158192024-03-28T03:34:53.115-07:00Sanjrann (सांजरण)अपने कल्चर के मूल्यांकन का अधिकार दूसरों को मत लेने दो अर्थात अपने आईडिया, अपनी सभ्यता और अपने कल्चर के खसम बनो, जमाई नहीं!Unknownnoreply@blogger.comBlogger1292125tag:blogger.com,1999:blog-2945230211619515819.post-7628336594614123692024-03-27T00:29:00.000-07:002024-03-27T00:29:57.710-07:00खेड़े के गौत की सूचिता - एक micro-management है पुरखों का; हर समूह को अपने ध्वज का गणराज्य होने का गौरव देने का|<p> यानि निडाना खेड़ा है मलिक गौत के जाट का, या गर्ग गौत के बनिया का, या "रंगा" गौत के रविदासी का या "भारद्वाज गौत " के बाह्मण का तो यह इनको इस बात का गौरव लेने-देने के लिए है कि कहीं तुम्हारा खुद का भी नाम है| और यही वजह है कि खापलैंड पे लगभग हर गौत का खेड़ा मिलता ही मिलता है| </p><p><br /></p><p>micro-management इसलिए कि आज वाले जहाँ जातीय-समरसता तक रखने में लटोपीन हुए जाते हैं, म्हारे बूढ़े उससे भी एक कदम भीतर यानि जाति के भीतर गौत तक कैसे शांत रख के बसाने हैं; उस तक का सिस्टम बांधे हुए थे| इसीलिए गौत इतना संजीदा विषय रहता है हमारे लिए| आखिर कौन नहीं चाहेगा कि ऐसा सिस्टम हो जिसमें उसको जितना सम्भव हो उतने micro स्तर तक बराबर के मान-सम्मान से देखा-बरता जाए? </p><p><br /></p><p>क्या ही मुकाबला करेंगे यह आज तथाकथित एकता-बराबरी लाने के नाम पे जाति तक मिटा देने का राग अलापने वाले| ये म्हारे पुरखे इनके फूफे, जाति तो छोडो, गौत तक की micro-management करते थे व् ख़ुशी-ख़ुशी रहते थे, अपने-अपने खेड़ों में, अपने-अपने गौत के साथ</p><p><br /></p><p>Jai Yaudheya! - Phool Malik</p>Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2945230211619515819.post-68674889192763875242024-03-26T05:51:00.000-07:002024-03-26T05:51:32.377-07:00दोहलीदार, बूटीमार, भोंडेमार और मुकरारीदार भूमि अधिनियम 2010 पर मुहर लगाने के लिए हाईकोर्ट का आभार!<p> प्रेस विज्ञप्ति</p><p><br /></p><p>सिर्फ चेहरे बदलने में लगी बीजेपी, सरकार बदलने के मिशन पर चल रही कांग्रेस- हुड्डा</p><p><br /></p><p>•<span style="white-space: pre;"> </span>दोहलीदार, बूटीमार, भोंडेमार और मुकरारीदार भूमि अधिनियम 2010 पर मुहर लगाने के लिए हाईकोर्ट का आभार- हुड्डा </p><p>•<span style="white-space: pre;"> </span>2010 के कानून से ब्राह्मण, ओबीसी व एससी समाज को मिला जमीनों का मालिकाना हक- हुड्डा </p><p><br /></p><p>रोहतक, 26 मार्चः बीजेपी ने पहले अपने मुख्यमंत्री का चेहरा बदला और अब लोकसभा के पांच सांसदों का चेहरा बदल डाला। यानी भाजपा सिर्फ चेहरे बदलने में लगी हुई है जबकि, कांग्रेस और हरियाणा की जनता सरकार बदलने के मिशन पर सफलतापूर्वक आगे बढ़ रही है। ये कहना है पूर्व मुख्यमंत्री व नेता प्रतिपक्ष भूपेंद्र सिंह हुड्डा का। हुड्डा रोहतक में पत्रकार वार्ता को संबोधित कर रहे थे।</p><p><br /></p><p>इस मौके पर उन्होंने माननीय उच्च न्यायालय का आभार व्यक्त किया और हरियाणा के ब्राह्मण, ओबीसी व एससी समाज को बधाई दी। क्योंकि, उच्च न्यायालय ने कांग्रेस सरकार द्वारा बनाए गए भूमि सुधार कानून को मान्यता दी है। हाईकोर्ट ने इसे पूरी तरह संवैधानिक करार देते हुए इसकी सराहना भी की है। </p><p> </p><p>दरअसल, बरसों पहले हरियाणा के अलग-अलग गांवों में अन्य स्थान से आकर कई वर्ग बस गए थे। उन वर्गों को पंचायतों व अन्य किसी ने जमीन दान में दी थी। इन वर्गों को दोहलीदार, बूटीमार, भोंडेमार और मुकरारीदार कहा जाता है। इनमें ब्राह्मण, पुरोहित, पुजारी, जांगड़ा ब्राह्मण, नाई, प्रजापत, लोहार, वाल्मिकी, धानक, गोस्वामी, स्वामी, बड़बुजा, धोबी, तेली अन्य कारीगर आदि वर्गों के लोग शामिल थे। बरसों से उस जमीन पर रहने, बसने व खेती करने के बावजूद इन वर्गों को जमीन का मालिकाना हक नहीं मिल पाया था। इसलिए, ना वो इस जमीन को आगे बेच सकते थे और ना ही किसी तरह का लोन ले सकते थे। इन तमाम वर्गों को मालिकाना हक दिलवाने के लिए कांग्रेस सरकार ने भूमि अधिनियम 2010 लागू किया था। </p><p><br /></p><p>लेकिन, 2018 में बीजेपी सरकार ने उस कानून को निरस्त कर दिया। कांग्रेस ने इस मुद्दे को बार-बार विधानसभा में भी उठाया। लेकिन बहुमत के जोर पर बीजेपी ने 2010 के कानून में संशोधन करके लाभार्थियों से जमीन वापिस लेने का कानून पास कर दिया। बीजेपी ने लाभार्थियों से जमीन खाली करवाने की कार्रवाई भी शुरू कर दी। इसके बाद ये पूरा मामला कोर्ट पहुंच गया। </p><p><br /></p><p>अब माननीय न्यायालय ने ना सिर्फ हमारी सरकार द्वारा बनाए गए कानून को वैधानिक करार दिया है बल्कि इसकी प्रशंसा भी की है। हुड्डा ने न्यायालय के निर्णय पर खुशी का इजहार किया और प्रदेश में कांग्रेस सरकार बनने पर सर्वसमाज के हित में कार्य करने की प्रतिबद्धता भी जताई। </p><p><br /></p><p>पत्रकारों से बातचीत में राजकुमार सैनी को लेकर पूछे गए सवाल के जवाब में हुड्डा ने कहा कि 32 दलों द्वारा दिल्ली में एआईसीसी ऑफिस जाकर इंडिया गठबंधन को बाहर से समर्थन देने की पेशकश की गई है। जहां तक हरियाणा का विषय है, लोकतंत्र सुरक्षा पार्टी या उसके प्रमुख राजकुमार सैनी का कांग्रेस में शामिल होने का सवाल ही नहीं है। क्योंकि, ना तो वो कांग्रेस में शामिल हुए, ना ही कांग्रेस के सदस्य बने। इसलिए किसी गैर-कांग्रेसी नेता के कांग्रेस पार्टी से चुनाव लड़ने की बात कोरी अफवाह है। कांग्रेस 36 बिरादरी की पार्टी है और वो कभी जात-पात की राजनीति नहीं करती। कांग्रेस में जात-पात और जातिवादी मानसिकता की कोई जगह नहीं है।</p><p><br /></p><p>प्रदेश में बढ़ते अपराध पर टिप्पणी करते हुए भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने कहा कि प्रदेश के सामने आज यह सबसे विकराल समस्या है। अपराधी बेखौफ वारदातों को अंजाम दे रहे हैं और आमजन डर के साये में जी रहा है। ऐसा लगता है कि प्रदेश में सरकार नाम की कोई चीज नहीं है। रेलवे रोड पर दो दुकानों को तोड़े जाने के मसले पर भी हुड्डा ने अधिकारियों को निष्पक्ष रहने की नसीहत देते हुए कानूनी कार्रवाई की मांग की। उन्होंने कहा कि रात को 3 बजे कुछ लोगों ने दुकानों को तोड़ डाला, जो कि पूरी तरह गैर-कानूनी है।</p><p>***</p>Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2945230211619515819.post-55495797443221369912024-03-23T08:06:00.000-07:002024-03-23T08:06:56.260-07:00NRI जाटों को विदेशों में फंडियों यानि आरएसएस से जुड़ने का फंडियों द्वारा इन जाटों को दिया जाने वाला हास्यास्पद तर्क!<p>कई NRI जाट साथियों से बातें होती हैं तो बताते हैं कि फंडी यानि आरएसएस वाले हमें आ के कहते हैं कि देखो बेशक हमारे-तुम्हारे लाख मतभेद व् मनभेद हैं परन्तु अंत में तुमको ईसाई हों, सिख हों या मुस्लिम; सभी जोड़ के तो हम से ही देखते हैं? जब दंगे होंगे या कुछ भी उल्टा होगा तो तुम भी उतने ही इनके अटैक पे रहोगे, जितने कि हम| इसलिए बेहतर है मिलके साथ रहा जाए| यही NRI जाट साथी इनके ऐसे तर्कों पे हँसते हुए बताते हैं कि यह इतना सब कहेंगे परन्तु </p><p> इनके साथ रहने के आपसी give and take, जाटों को यह कभी नहीं बताते; बल्कि अपना भय और छुपा जाते हैं, हमें ऐसी बेतुकी बातों के तर्क दे के|</p><p><br /></p><p>इसपे एक NRI जाट साथी ने तो इनकी इस एप्रोच को ठीक उस ऐतिहासिक कल्चरल चुटकुले से जोड़ के बताया मुझे, जो हम बचपन में बहुत सुनते-सुनाते थे| सुनते-सुनाते थे कि एक बार काली अँधेरी तूफानी रात में दो जाट व् एक बनिया, कहीं से गमिणे हो आने की बाट चलते आ रहे थे| बिजलियाँ कड़क रही थी, कच्चे रास्ते थे, झाड़-बोझड़े गमे के दोनों तरफ; इससे बनिये का हिया व् जिया बैठा जाए| परन्तु उसको अपना भय भी जाटों को नहीं दिखाना था, वरना वो उसको डरपोक बोल के उसकी हंसी उड़ाते| तो बनिए ने कहा, "ऐड भाई, दिखे मैंने तो डर लगता नहीं; हड थमनें लागता हो तो एक मेरे आगे हो लो और एक मेरे पाछै"| </p><p><br /></p><p>बल्या, इन्नें तो आडै विदेशों में आ के भी यह बाण नहीं छोड़ी; इनको जाटों का साथ भी चाहिए, परन्तु सच्चाई बता के साथ नहीं लेंगे| ऊपर से सितम यह कि यह यूँ सोचते हैं कि हम जाट, इनके इस डर को पकड़ नहीं पाते हैं| अरे भाई जब इतना ही अपना मानते हो तो फिर "give and take" पे क्यों नहीं एकता करते हो? तुम इंडियन मीडिया द्वारा जाट-खाप-हरयाणा की मीडिया-ट्रायल्स रुकवाने; किसानों को MSP दिलवाने, अग्निवीर हटवा के रेगुलर फ़ौज शैड्यूल लगवाने व् पहलवान बेटियों को न्याय दिलवा दो, बीजेपी-आरएसएस को बोल के; हम बदले में तुम्हें सुरक्षा भी देंगे व् तुम्हें खुद के साथ यह दो जाट व् एक बनिया वाले चुटकुला वाली करने की भी जरूरत नहीं पड़ेगी| </p><p><br /></p><p>जय यौधेय! - फूल मलिक </p>Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2945230211619515819.post-90776799445654416992024-02-23T23:30:00.000-08:002024-02-23T23:30:36.361-08:0021वीं सदी में खट्टर-मोदी की "रोष-प्रकट हेतु सड़कों पर ट्रैक्टर नहीं ले के चलने" की बात!<p><b>21वीं सदी में खट्टर-मोदी की "रोष-प्रकट हेतु सड़कों पर ट्रैक्टर नहीं ले के चलने" की बात बनाम 7वीं सदी के दाहिर-चच द्वारा "जाटों पर हथियार रखने व् घोड़ों पर चलने" का प्रतिबंध दिखाता है कि इन लोगों की मानसिक मंदबुद्धि आज भी उस 7वीं सदी की हीनभावना से पार नहीं पा सकी है:</b></p><p><br /></p><p>सातवीं-आठवीं सदी में दो बाप-बेटा राजा हुए, चच व् दाहिर| उन्होंने धोखे से हथियाए अल्पकालिक राज (क्योंकि दाहिर, कासिम से लड़ाई में मारा गया था, फिर कासिम को जाटों ने कूटा था) को निष्कंटक बनाने हेतु, सबसे डेमोक्रेटिक परन्तु सबसे लड़ाकू सामाजिक समूह यानि जाट जाति पर कोई भी हथियार ले कर चलना व् घोड़ों पर चलना, दोनों पर प्रतिबंध लगा दिया था| शायद उसको खामखा के सपने आते थे, कि जाट आते ही होंगे किसी भी वक्त घोड़ों पर सवार हो तेरा राज छीनने| जबकि कोई सच्ची नियत से इनसे पेश आए तो इन जितना डेमोक्रेटिक कोई नहीं| </p><p><br /></p><p>अब यही हाल मोदी-खटटर का है| ट्रेक्टर ना हो गए, 7वीं सदी वाले घोड़े हो गए; कि जो सड़कों पर ट्रैक्टर्स नहीं ला सकते| इतिहास मत दोहराओ अपितु 7वीं सदी से आज भी तुम में कायम अपनी इस हीनभावना से पार पाओ; वरना चच-दाहिर की भांति इस देश को ऐसे झंझाल में छोड़ जाओगे कि फिर "इन ट्रेक्टर वाले किसानों" पे ही आ के बात टिकेगी|</p><p><br /></p><p>मोदी ना सही, खट्टर आप तो इतना रहम करो, अपनी इस स्टेट पे जहाँ तुमने मुसीबत पड़ी में 2-2 बार शरण पाई है; एक बार 1947 में व् दूसरी बार 1984 से 1992 तक वाले काल में| कोई समझाओ व् इन "स्वघोषित कंधे से ऊपर भारी अक्ल के बोझ में भोझ मरते" परन्तु इस ऊपर बताई ऐतिहासिक हीनभावना से ग्रस्त इंसानों को कि थोड़ी बहुत करुणा-मर्यादा बरतें| क्या यह "हरयाणा एक, हरयाणवी एक" के नारे का यही यथार्थ है जो कल खेड़ी-चौपटा में तुमने बरपवाया है या हरयाणा के बॉर्डर्स सील करके हमारे बड़े भाई पंजाब के किसानों पे बरपा रहे हो? आखिर रहेंगे तो यह भी यहीं ना, या इनको कोई अलग देश के मान लिए हो? </p><p><br /></p><p>जय यौधेय! - फूल मलिक</p><div><br /></div>Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2945230211619515819.post-53515019616076630582024-02-19T21:14:00.000-08:002024-02-19T21:14:01.270-08:00सिर्फ पंजाब हरियाणा वाले ही क्यों कर रहें हैं?<p><span style="background-color: white; color: #050505; font-family: "Segoe UI Historic", "Segoe UI", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; white-space-collapse: preserve;">इस बात का जवाब समझने के लिए मजदूरी के रेट का उदाहरण ले लो। पुरबिए मजदूरी के लिए पंजाब हरियाणा में ही क्यों आते हैं? क्योंकि यहां मजदूरी 500-600₹ है तो वहां 300-400₹ है। पर उन लोगों ने कभी भी अपने राज्यों में इसके लिए आवाज नहीं उठाई। आवाज उठाने के लिए जागरूकता और हिम्मत चाहिए। एक और उदाहरण, हमारे भिवानी में मध्यप्रदेश के रीवा और उसके आसपास के जिलों से कुछ परिवार आए हुए हैं। मजदूरी करने नहीं, भीख मांगने। जब उनसे पूछा कि भीख क्यों </span><span style="color: #050505; font-family: inherit; font-size: 15px; white-space-collapse: preserve;"><a style="color: #385898; cursor: pointer; font-family: inherit;" tabindex="-1"></a></span><span style="background-color: white; color: #050505; font-family: "Segoe UI Historic", "Segoe UI", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; white-space-collapse: preserve;">मांगते हो, मजदूरी ही कर लो, और भीख ही मांगनी है तो अपने वही मांग लेते? तो उनका जवाब था कि बाऊ जी मजदूरी जितना तो भीख मांगने से ही मिल जाता है, और अपने वहां भीख मांगने में शर्म आती है क्योंकि वहां लोग जानते हैं, यहां कोई जानता नहीं, छह महीने यहां भीख मांगते हैं और उसके बाद वापिस छह महीने अपने गांव जा आते हैं। जबकि मध्यप्रदेश में पिछले पच्चीस साल से श्री राम के बच्चों की सरकार है और इन बेचारों की हिम्मत नहीं कि अपनी सरकार से आंख उठा कर सवाल कर लें। वैसे भी अगर इन्होने सवाल किया भी, तो इन पर वो पेशाब कर देंगे!? हरियाणा पंजाब में किसी की भी सरकार रही हो, यहां आंदोलन होते रहते हैं, यहां ये बहाना नहीं कि फलाने के ग्राफ से लोगों को दिक्कत है इसलिए आंदोलन हो रहा है। यहां किसी फलाने के ग्राफ से नहीं खुद के ग्राफ की फिक्र पहले है और इसी कारण ये राज्य बाकियों की तुलना में समृद्ध हैं। हरियाणा में बुढ़ापा पेंशन जितनी है एमपी, यूपी में उसकी आधी भी नहीं है। ये तो यहां श्री राम वाले इस पेंशन पर वादाखिलाफी कर गए वरना ये पांच हजार के आसपास होती। यूपी एमपी वालों ने तो इसके लिए भी कभी अपनी सरकार से सवाल तक नहीं किया। जो लड़ेगा वो ले रहेगा, वरना छुप छुप कर भीख मांगनी पड़ेगी। वैसे हरियाणा में भी आंदोलन एक जाति विशेष के क्षेत्र में ही होता है बाकी के तो फ्री में ही उसी का फायदा ले जाते हैं। बंसी लाल सरकार रही हो या चौटाला सरकार, बिजली बिलों को लेकर जाति विशेष वाले क्षेत्र के किसानों ने ही आंदोलन किए थे, बाद में उसका फायदा सभी को मिला। और आज हरियाणा में वह लोग भी कहते मिल जायेंगे कि इनको तो फलां सीएम से दिक्कत है। दिक्कत नहीं, इसे हिम्मत कहते हैं, जो अपनों के विरुद्ध भी खड़े होने की रखते हैं।</span></p><p><span style="background-color: white; color: #050505; font-family: "Segoe UI Historic", "Segoe UI", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; white-space-collapse: preserve;">By: Rakesh Sangwan</span></p>Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2945230211619515819.post-13596998416741180222024-02-18T00:23:00.000-08:002024-02-18T00:23:26.444-08:00"अन्नदाता" शब्द सुनने की फंडियों की लगाई बुरी लत से दूर रहो!<p>जैसे एक किसान, खेत में अन्न उगाकर समाज का पेट भरता है, ठीक ऐसे ही दुनियाभर के औजार-हथियार-मकान, खाती-बढ़ई-लोहार-मिस्त्री-मैकेनिक बनाते हैं; यह उनका अभिमान व् स्वाभिमान है| उनको यह अभिमान है कि किसान अन्न उगाता है तो क्या, रहता तो मेरे बनाए मकान में है, चलता तो मेरी बनाई गाड़ी में है, खेत-खलिहान से चारा-अनाज लाता तो मेरी बनाई बुग्गी में है; मेरे बिना किसान क्या? </p><p><br /></p><p>यही अभिमान एक नाई को है कि मैं बाल ना काटूं तो यह सब असभ्य, जंगली-जानवर लगें| वह इस बात में अभिमान लेता है कि संसार के प्राणियों में सुदंरता तो मैं ही भरता हूँ| </p><p><br /></p><p>ऐसे ही एक चर्मकार को यह अभिमान है कि यह अन्न पैदा करते हैं तो क्या, मैं जूतियां ना बनाऊं तो इनके पैर छिल जाएं| झोटे-बैल के पैरों में नाळ लगाने वाला, उनके सींग-खुर्र रेतने वाला इस बात में अभिमान लेता है कि हम यह काम ना करें तो इनके जानवर दो दिन, दो कदम ना चल सकें; बैल हल ना जोत सके; झोटा बुग्गी ना खींच सके| </p><p><br /></p><p>व् ऐसे ही अन्य तमाम काम व् कारीगर गिन लीजिये| </p><p><br /></p><p>इसीलिए किसान जो करता है, माना वह मूल है सभी का| माना कि आदमी बाल कटवाए बिना जी सकता है, माना कि आदमी बिना मकान के भी रह सकता है; परन्तु फिर संसार से "लक्सरी" शब्द "सेवा" शब्द खत्म हो जाएगा| इसलिए किसान "भूख की लक्ज़री" देता है तो बाकी सब भी अपने-अपने तरीके से संसार को "सर्विस-सेवा की लक्ज़री" देते हैं| </p><p><br /></p><p>व् यही एक उदारवादी जमींदार का, खाप-खेड़े-खेत का ऐतिहासिक विज़न रहा है, समाज को, व्यक्तियों को, उनकी सेवाओं को, उनके सहयोग को समान देखने का नजरिया है| </p><p><br /></p><p>इसी बात को थोड़ा और विस्तार से रख देता हूँ: "अन्नदाता" शब्द किसान की श्रुति-शुश्रुषा हेतु "निट्ठले-ठाली, पैर-से-पैर भिड़ा के फिरने वाले फंडी -फलहरियों" की ईजाद रही है, क्योंकि उनको ऐसा बोल के आप से अनाज-रोटी चाहिए होती थी| परन्तु फंडी के अलावा आप बाकी किसी और के आगे इस शब्द के साथ जाओगे तो यह उसके अभिमान-स्वाभिमान को लगता है| और यही बात किसान को समझनी चाहिए| वैसे भी आप फंडी-फलहरी-बाबा-मोड्डे के अलावा किसी को भी फ्री में अनाज नहीं देते हो, जो वह आपको अन्नदाता कहेंगे; अपितु वह भी आपको बदले में सर्विस देते हैं| अत: यह अन्नदाता शब्द सुनने की फंडियों की लगाई बुरी लत से दूर रहे किसान व् उदारवादी जमींदार| </p><p><br /></p><p>जय यौधेय! - फूल मलिक</p>Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2945230211619515819.post-56747424578972812712024-02-17T07:19:00.000-08:002024-02-17T07:19:08.861-08:00राजनीति का अपना आर्थिक दर्शन भी होना चाहिए।<p> <span style="background-color: white; color: #0f1419; font-family: TwitterChirp, -apple-system, BlinkMacSystemFont, "Segoe UI", Roboto, Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 17px; white-space-collapse: preserve;">गांधी का ग्राम स्वराज, नेहरू का औद्योगीकरण, मनमोहन का "ईज आफ बिजनेस" माडल वही आर्थिक दर्शन है।</span></p><span style="background-color: white; color: #0f1419; font-family: TwitterChirp, -apple-system, BlinkMacSystemFont, "Segoe UI", Roboto, Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 17px; white-space-collapse: preserve;">
दर्शन पूरा होने मे वक्त लगता है, एक्शन मे नही ...कोई महज सात साल की सत्ता मे पूरी कौम की आर्थिकी बदल दे, ये चमत्कार बस रामवृक्ष पाल के बस मे था।
जिन्हे कोई रहबरे आजम कहता, कोई दीन बंधु ...
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अंग्रेज उन्हे सर छोटूराम कहते।
9 जनवरी 1945 को रोहतक रेल्वे स्टेशन पर उनकी देह उतारी गई। 4 किलोमीटर उनका जनाजा चला। हजारो किसान बिलखते, क्या हिंदू, क्या मुसलमान, क्या सिख ...
सब उन्हे सलाम देने आए थे। किसान टोकनियों मे भरकर घी लाए थे। पंजाब के सदर खिज्र हयात खान भी कंधा दे रहे थे।
पंजाब तब सचमुच पंचनद प्रदेश था। इसमे भारतीय पंजाब, पाकिस्तानी पंजाब, हिमाचल प्रदेष और हरियाणा शामिल थे। देश का सबसे बड़ा सूबा, जमीन सोना उगलती..
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पर किसानों के लिए नहीं।
छोटूराम के पिता भी किसान थे। थोड़े पैसों के पास महाजन के पास गए, जिसने उन्हे बेइज्जत किया। छोटे पुत्र, छोटू ने वो मंजर देखा, और जेहन मे जज्ब कर लिया।
झज्झर मे पैदा हुए छोटूराम, रोहतक मे पढे, फिर दिल्ली सेंट स्टीफेंस काॅलेज मे। इस महंगे कालेज मे उनका खर्च, जाटो के भामाशाह- सेठ छज्जूराम ने उठाया।
आगे वकालत पढ़ी। प्रेक्टिस भी करते, स्कूल मे पढाते। तब पंजाब उथल पुथल मे था, देश की चेतना जाग रही थी। छोटूराम कांग्रेस के जिला प्रेसीडेट रहे। किसानों के भले के मुद्दे उठाते, अखबार निकालते।
असहयोग आंदोलन मे भाग लिया, पर जब गांधी ने आंदोलन रोक दिया, वे निराश हो गये।
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वे किसानी, ऋणग्रस्तता पर काम करते रहे। फिर 1923 मे सिंकंदर हयात खान के साथ मिलकर जमीदारां लीग बनाई जो किसान हित मे लडती।
यह लीग ही, यूनियनिस्ट पार्टी बनी। इसका आधार जाट थे - जो हिंदू थे, मुसलमान भी, और सिख भी। पंजाब कांग्रेस मे लाला लाजपतराय के अलावे बड़ा नाम नही था।
कांग्रेस ने इलेक्शन लड़ा नही, छोटूराम और कई साथी चुनकर असेम्बली मे आए। उन्हें कई महत्वपूर्ण कानून बनवाने का श्रेय दिया जाता है।
इनमें से एक पंजाब रिलीफ इंडेब्टनेस 1934 और दूसरा द पंजाब डेब्टर्स प्रोटेक्शन एक्ट 1936 था। इन कानूनों में कर्ज का निपटारा किए जाने, उसके ब्याज और किसानों के मूलभूत अधिकारों से जुड़े हुए प्रावधान थे।
कर्जा माफी अधिनियम. 1934 कानून को भी पारित करवाया। उन्हे अंग्रेेज भी सम्मान देते। 1936 मे उन्हे नाइटहुड मिली।
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जब 1937 मे चुनाव हुए, यूनियनिस्ट पार्टी जीत गई। सिंकदर हयात मुख्यमंत्री बने, छोटूराम रेवेन्यू मंत्री।
1938 में साहूकार रजिस्ट्रेशन एक्ट, गिरवी जमीनों की मुफ्त वापसी एक्ट 1938, कृषि उत्पाद मंडी अधिनियम. 1938, व्यवसाय श्रमिक अधिनियम- 1940 आए।
ये दशा बदलने वाले कानून थे।
किसानों की गिरवी रखी जमीनें लौटाई गई। ऐसे कर्ज जिसका दोगुना मूल्य वसूला जा चुका हो, खत्म कराये।
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मशहूर किस्सा है, कि एक किसान लाहौर हाइकोर्ट गया। वो कर्ज चुकाने मे अक्षम था। कुर्की होनी थी।
अर्जी लिखी कि कम से कम मेरे बैल और झोपड़ी को नीलाम न किया जाए। जज शादीलाल ने उपहास किया, कहा कानून मे ऐसा नही है। हां, एक छोटूराम नाम का आदमी है, वही ऐसे उल-जलूल कानून बनवाता है। उसके पास जाओ।
किसान सर छोटूराम के पास आया। छोटूराम ने डेब्टर्स प्रोटेक्शन एक्ट बनाया, कि जीवन के न्यूनतम साधनो को कर्ज वसूली के लिए नीलाम करना बैन हो गया।
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दूसरा किस्सा जिन्ना से भिड़ने का है।
एक समय मे यूनियनिस्ट और जिन्ना मे अच्छे रिश्ते थे। बल्कि लीग को पैर रखने की जगह, जिन्ना-सिंकदर पैक्ट से मिली। पर 44-45 मे जिन्ना जहर उगलने लगे, पंजाब को अपने भावी पाकिस्तान का अभिन्न हिस्सा बताने लगे।
मुस्लिमों से सीधे अपील करने लगे। सर छोटूराम ने जिन्ना को हड़का दिया। कहा- 24 घण्टे मे पंजाब छोड़ दे, नही तो गिरफ्तार कर लूंगा। जिन्ना सर पर पांव रखकर भागे, और छोटूराम के देहावसान के बाद ही पंजाब जाने की हिम्मत जुटा सके।
भारत का दुर्भाग्य है, अगर छोटूराम कुछ बरस जी जाते, तो शायद पंजाब की शक्ल कुछ और होती।
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आज जो किसानों का दम है, गुरूर है, जो ट्रेक्टर और रेंज रोवर है, जिससे आप जलते है, वो छोटूराम की देन है।
पंजाब का मंड़ी स्ट्रक्चर देश भर मे पहला है, यूनिक है। हरित क्रांति ने उपज और भी प्रदेश मे बढाई, फसल का दाम तो पंजाब की मंड़ी देती है। वह कर्ज भी देती है, सड़के भी बनवाती है।
सच है कि कुछ दशको मे वहां भी समस्याऐं पनपी, जो माॅडल छोटूराम का था, कारगर है, जनोन्मुख है, ताकतवर है।
जहां 10 साल से बैठे लोग, कुछ करने सीखने के लिए 2047 तक वक्त मांग रहे है, वहा छोटूराम महज 7 साल मंत्री रहकर इतिहास बना गए।
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राजनीति का अपना आर्थिक दर्शन होना चाहिए। मौजूदा सरकार का भी है, जिसे वह,अपने खास साथियों के हक मे उतारने को बेताब है।
लेकिन सर छोटूराम का माॅडल रोड़ा बना हुआ है।
देश ने उनके जैसा दूरदर्शी नेतृत्व कम देखा। उस दौर मे हर राज्य मे एक छोटूराम होता, तो आज देश भर के किसान के गले मे आवाज होती। रहबरे आजम छोटूराम आज जीवित होते ...
तो लोहे की कीलो पर चलकर इस तानाशाही को ललकार रहे होते।</span><div><span style="background-color: white; color: #0f1419; font-family: TwitterChirp, -apple-system, BlinkMacSystemFont, "Segoe UI", Roboto, Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 17px; white-space-collapse: preserve;"><br /></span></div><div><span style="background-color: white; color: #0f1419; font-family: TwitterChirp, -apple-system, BlinkMacSystemFont, "Segoe UI", Roboto, Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 17px; white-space-collapse: preserve;">By Manish Reborn</span></div>Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2945230211619515819.post-60357021959509595002024-02-17T03:20:00.000-08:002024-02-17T03:20:47.795-08:00Questions and rumour about "Kisan-Andolan" answered!<p><b>Questions and rumour about "Kisan-Andolan" answered, Question-1: </b>किसानों को दिल्ली जाना है तो ट्रैन या बस से जाएं, ट्रेक्टर-ट्राली से नहीं - हरयाणा सीएम खट्टर</p><p><b>सीधा-जवाब:</b> बिल्कुल जनाब, किसानों को कोई शौक थोड़े ही है इतना तेल-टायर फूंक के ट्रैक्टर्स से जाने का| आप ऐसा करो, जितने भी दिन किसानों को अपनी मांगें मनवाने हेतु, दिल्ली में रुकना पड़े; उतने दिन के लिए उनके रहने व् खानेपीने का प्रबंध कर दो वहां दिल्ली में; नहीं जाएंगे ट्रेक्टर-ट्रॉली से| दिखा तो ऐसे रहे हो जैसे "दिल्ली तक दौड़ के वहां हाथ लगा के वापिस आने तक जितनी बात है"| </p><p><br /></p><p><b>खटटर की बदनीयत वाला जवाब:</b> जितना सीधा चीजों को पब्लिक को दिखाने की कोशिश करते हो, इतने सीधे थम और थारी सरकार मानने वाली होती तो 10 साल होने के आए अब तक MSP लागू कर चुके होते| और पिछली बार क्यों 13 महीने लगा दिए थे, अगर इतना ही आम पब्लिक को तकलीफ ना होने देने का ही ख्याल है तो? तुम्हारी नियत व् नीति भलीभांति जानते हैं किसान व् उनकी मजबूरी में ही निकले हैं व् यह इसको देख-समझ के ही निकले हैं वो| </p><p><br /></p><p>जय यौधेय! - फूल मलिक </p>Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2945230211619515819.post-41616552848779626542024-02-16T23:40:00.000-08:002024-02-16T23:40:25.725-08:00MSP क्यों चाहिए के कुछ जुगासू सवाल और उसके जवाब <p>Protection of any business, or product is against basic economics and market.</p><p><br /></p><p>खेती मूल है मेरे भाई। </p><p>देश की सारी ईकोनामी और मार्किट खेती पर ही टिकी हुई है। बाजारों में यदि लोग नहीं जायेंगे तो दुकानदार अपने सामान और सर्विस को भला किसे बेचेंगे। </p><p><br /></p><p>रही बात प्रोटेक्शन की व्यवस्था ने 16 लाख करोड़ रुपये के कर्जे/ देनदारियाँ बैंकों के माध्यम से इंडस्ट्रियल सेक्टर की माफ़ की हैं। ताकि इंडस्ट्री चलती रहे और लोगों की व्यवस्था बनी रहे। </p><p><br /></p><p>यहाँ कोई प्रोटेक्शन नहीं मांग रहा है यहाँ बात वैल्यूएशन की है जिसपर सभी कंपनियां टिकी हुई हैं और उसी के लिए दिन रात खटती और मरती हैं। </p><p><br /></p><p>उत्पादक भी यही कह रहा है कि मेरे उत्पाद की मिनिमम कीमत तो तय कर दो। जैसे टमाटर की कीमत पांच रुपये किलो, दूध की चालीस रुपये किलो तय कर दो और उसे लीगल बना दो। </p><p><br /></p><p>सरकार शराब की कीमतों को भी तो इंफोर्स करती है। एक तय सीमा से नीचे नहीं आने देती। </p><p><br /></p><p>How many farmers govt will protect??milk? Poultry? Vegetables??</p><p><br /></p><p>सभी उत्पादकों को प्रोटेक्शन नहीं उनके उत्पादों का उचित मूल्य मिलना ही चाहिए ताकि देश की ईकोनामी का सर्कल पूरा घूमे। उसमें सभी लोग शामिल हों। </p><p><br /></p><p><br /></p><p>Why others working class is secondary citizen then... protect my factory also if it goes to less?? Where to stop??</p><p><br /></p><p>किसने कहा मेरे भाई वर्किंग क्लास सेकेंडरी सिटीजन है। क्या उत्पादक देश की नॉन वर्किंग क्लास है। सरकार नौकरी पेशा व्यक्तियों को DC रेट, EPF, ESI, बोनस, आदि देकर प्रोटेक्शन ही तो देती है। इंप्लॉयर कंट्रीबयूशन के बराबर सरकार ही तो जमा करवाती है। फिर मैटरनिटि लीव के पैसे भी तो सरकार देती है। EPF का पूरा कानून देखो और समझो मेरे भाई देश के सभी वर्किंग क्लास में कवर्ड है। </p><p><br /></p><p>शॉप एंड एस्ताब्लिशेमेंट एक्ट में एम्प्लॉयी को कंप्लसरी पेड़ लीव का प्रावधान भी तो सरकारी प्रोटेक्शन है मेरे भाई। </p><p><br /></p><p>रोहतक में दंगे हुए थे दुकाने जला दी गयी थी सरकार ने एक एक दुकानदार दो उसके नुक्सान के मुताबिक पैसे दिये थे। वो भी तो सरकारी प्रोटेक्शन ही है मेरे भाई। </p><p><br /></p><p>A labor on the road(India has many more in number and will have many in number till the country is developed)needs more social security than these farmers .</p><p>EPF और ESI में सारी इंडस्ट्रियल लेबर कवर्ड है मेरे भाई। </p><p>यहाँ तक कि घर में काम करने वाली बाई के लिए भी पोस्टल डिपार्टमेंट की इंश्योरेंस की स्कीम है जिसमें साल के तीन सौ रुपये प्रीमियम पर पाँच लाख तक का रिस्क कवर मिलता है। इसको पॉपुलर बनाने के लिए PM साहेब खुद अपील कर चुके हैं लोग जिनके घरों में महिलाएं झाड़ू चौका बर्तन करती हैं उन्हें वो इंश्योरेंस पॉलिसी गिफ्ट करें। </p><p><br /></p><p>Why we need so many farmers ?? when the economy is growing from agrarian to service and manufacturing . </p><p>सोनू मेरे भाई खेती प्रोफेशन नहीं लाइफ स्टाइल है। जहाँ से किसान और जवान दोनों पैदा होते जो देश का स्टील हैं। पचास लाख के लगभग जो फौज और पैरा मिलिट्री में हैं 99% के लगभग किसानों के घरों के ही बच्चे हैं। </p><p><br /></p><p>जिस ग्रोविंग इकोनामी की बात आप कर रहे हैं ना वो सिर्फ झाग है एक मिनट में ढुसस हो जाती है। करोना काल में हमें रोटी सब्जी सही समय पर तभी मिल पा रही थी जब खेती किसानी और उसके सिस्टम ठीक से काम कर रहे थे। </p><p><br /></p><p>किसानी आज भी सबसे बड़ा इंप्लॉयमेंट देने वाला सेक्टर है जो लोगों को एंगेज किये हुए है। </p><p><br /></p><p>Gdp contribution I quite less vs their number. </p><p><br /></p><p>ईब GDP की सुन ले मेरे भाई। एक पेड़ जो फल ऑक्सीजन पानी छाया जीवन सब दे रहा होता है तो हमारे इकॉनॉमिस्ट GDP में उसका कोई कांट्रीबयूशन नहीं मानते। लेकिन जब वो काट दिया जाता है तो उसकी लकड़ी को GDP का हिस्सा मान लेते हैं। </p><p><br /></p><p>मेरे भाई हमारे फार्मूले गलत हैं इसीलिए हमारे उतर भी गलत निकल रहे हैं। </p><p><br /></p><p>They don't want capital, technology to come in this field, which in short term may feel them in secure but actually is the only way to increase productivity and income. One can improve on numbers ,quality and efficiency too.</p><p><br /></p><p>मेरे भाई वो MSP के माध्यम से कैपिटल ही तो मांग रहे हैं। प्रोडक्विटी से इनकम लिंक नहीं है मेरे भाई। इनकम का लिंक रेट से है। साढ़े ग्यारह टन प्रति हेक्टेयर का उत्पादन है पंजाब में गेहूं और धान सालाना और इससे आगे जाना प्रकृति से खिलवाड करना ही होगा। </p><p><br /></p><p>ये नम्बर्स वाली बात आपकी सही है सोनू भाई, MSP को लीगल बाइंडिंग करवा के नम्बर ही इंप्रूव करने की कोशिश है। </p><p><br /></p><p>कवालिटि वाली बात भी आपकी ठीक है। </p><p><br /></p><p>Every one has to compete in market economy and that's only way of survival.</p><p><br /></p><p>ये हो हल्ला जो हो रहा है, बातें चल रही हैं, आप भी सोच रहे हैं TV रेडियो सब जगह विमर्श चल रहे हैं। Yeh सभी कम्पीटिशन का ही हिस्सा है। </p><p><br /></p><p>खेती किसानी जीवन शैली को बचाने का कंपिटीशन। हमारे देश में जो शांति का स्वभाव है उसके मूल आधार में सात्विकता है जो खेती किसानी की जीवन शैली से आती है। </p><p><br /></p><p>अन्यथा शराबी कबाबी जीवन शैली तो पूरी दुनिया में क्या गुल खिला रही है आंकड़े सभी के सामने ही हैं। </p><p><br /></p><p>एक बात मैं और रखना चाहता हूँ सोनू भाई इस दुनिया में जितनी भी जगमग है उसका करंट खेतों से ही आता है उसका बिल किसान और उसका सहायक ही भरता है। मैंने खूब अच्छे से स्टडी की हुई है। </p><p><br /></p><p>उदहारण के तौर पर जींद जिले का ईग्राह गाँव सुबह सात बजे से पहले पहले बीस हजार रुपये की तो बस बीड़ी बीड़ी पी जाता है। बाकी दिन का हिसाब आप लगा लिजिये। </p><p><br /></p><p>एक एक गाँव करोड़ों रुपये का उपभोग सुबह से शाम तक कर देता है। </p><p><br /></p><p>खूब घणे सारे सवाल पूछने के लिए सोनू भाई का हार्दिक धन्यवाद।</p>Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2945230211619515819.post-76983557621256650682024-02-15T23:55:00.000-08:002024-02-15T23:55:08.792-08:00"दो जाट और एक लाला" वाले चुटकुले की तर्ज पर जोड़ता है फंडी, खापलैंड के किसान बिरादरी के NRIs को इसके साथ!<p>NRI बन गए हो तो बहुत तरक्की भी कर गए हो, ज्ञान भी अर्जित किया होगा; तो क्या विदेशों में फंडी इनको यह कह के जोड़ते हैं कि आइए हमें आपके ज्ञान का आदर है, आपके ज्ञान की जरूरत है, आप हमारे बराबर के भाई हो? नहीं, अपितु यह कह के जोड़ते है कि देखो, देश के बाहर काउंट तो तुम हम में ही होते हो, बेशक देश में हमारी बिरादरियों के आपसी झगड़े हों, बेशक वहां हम ऊंच-नीच में बंटे हों; लेकिन यहाँ हम अलग-अलग रहे तो देखो ईसाई एक है यहाँ, मुस्लिम एक है, सिख एक है; जब बात इनसे लड़ाई की आती है तो यह सब भी एक हैं, तो तुम भी हमारे साथ जुड़ के रहो| अलग-अलग रहोगे तो हम भी पिटेंगे व् तुम भी पिटोगे| </p><p><br /></p><p>यानि वही अमितशाह वाली घिसी-पिटी डरा के अपने इर्द-गिर्द रखने के थ्योरी| वो बचपन में एक चुटकुला बहुत सुना था ना कि एक बार दो जाट और एक लाला आधी रात कच्चे रास्ते कहीं जावें थे व् लाला का हिया भय से पाट-पाट आवै था; तो लाला ने क्या तरकीब लगाई? यही कि हड भाई चौधड़ियो ड़ड़ लाग्दा हो तो एक मेरे आगै हो ल्यो और एक पाछै| हालाँकि यह तो चुटकुला हुआ करता था परन्तु 90% से ज्यादा ऊपर बताई पृष्ठभूमि के लोग NRI हो के भी इन फंडियों की नजर में, अपना डर भगाने के गॉर्डस से ज्यादा कुछ नहीं| जब यह देखता हूँ तो समझ आता है कि "किनशिप ट्रांसफर" कितना जरूरी है| कितना जरूरी है इनको सर छोटूराम, सरदार अजीत सिंह, सरदार भगत सिंह, चौधरी चरण सिंह आदि को समझना व् समझाना कि तुम्हारा अस्तित्व, तुम्हारी बुलंदी तभी है, जब इनकी धौण पे खड़ा हो के अपनी राजनीति, अपना साम्राज्य खड़ा करोगे| और इन फंडियों के साथ या तो बराबरी के दर्जे पे चलो या प्रोफेशनल तरीके से अन्यथा इनके साथ धर्म-किनशिप की बराबरी के चक्र में ज्वाइन करते हो तो भूल जाओ; जो इनके साथ सदियों के इतिहास में कभी तुम्हारे बुजुर्गों ने ही नहीं होने दिया, किया या कहो इनको इस लायक ही नहीं समझा तो तुम इनको इस लायक बना के क्या निकालोगे? "दो जाट, एक लाला" जैसे चुटकुले बना के इनके ऐसे "भय" दिखा के साथ रखने के फॉर्मूले जब तुम्हारे पुरखों ने ही चुटकुलों में उड़ा दिए तो तुम क्या हासिल कर लोगे? </p><p><br /></p><p>इनके छोटे-मोटे काम करवाते हैं परन्तु बदले में इनकी ताकत व् तथाकथित धर्म के नाम पे पैसा उड़ा ले जाते हैं; जबकि इससे ज्यादा तो हमारे NRI लोग ऊपर बताई थ्योरी को समझ के चलें तो तब अकेले अपने दम पे कर लें| सर छोटूराम व् चौधरी चरण सिंह, जिन्होनें डंके के चोट पे हिन्दू-मुस्लिम की राजनीति करी, उनके वंशज, सिर्फ इतने से डर के फंडियों को ज्वाइन कर जा रहे हैं, या इनसे साइड हो ले रहे हैं या इनके बहकावे में आ के चुप हो जा रहे हैं, जितना ऊपर बताया| सितम इसपे तब होता है कि आदर्श सर छोटूराम व् चौधरी चरण सिंह में ढूढेंगे परन्तु होक्का जा के इन फंडियों का ही भरेंगे| </p><p><br /></p><p>लाला: किसी भी जाति-धर्म का हो सकता है, इसको विशेष जाति से ना जोड़ा जाए, जब इस लेख को पढ़ा जाए तो!</p><p><br /></p><p>जय यौधेय! - फूल मलिक</p>Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2945230211619515819.post-65879289594065558762024-02-13T20:52:00.000-08:002024-02-13T20:52:03.861-08:00यह बार-बार किसान आंदोलन उत्तर-पश्चिमी भारत से ही क्यों उठते हैं?<p>क्योंकि यहाँ का खेती करने का कल्चर यूरोपियन परिपाटी का है (Global Standard, you know) यानि "जमींदार ही खेत में किसान का काम करता है अपने सीरी-साझी के साथ मिल के"| जिसको कि उदारवादी जमींदारी कहते हैं| यह कल्चर 'खाप-खेड़ा-खेत व्यवस्था' से निकल के आता है| क्योंकि यह जमींदार खेत में काम करने से नहीं डरता, व् ना ही शर्माता इसलिए यह इसी कल्चर की वजह से अन्यों से अपेक्षाकृत ज्यादा डेमोक्रेटिक व् स्वछंद नीत का होता है, जो इसको अन्याय नहीं सहने का एक्स्ट्रा जज्बा व् मनोबल देता है| इसके "दादा खेड़ों के कोर सिद्धांतों में वर्ण-धर्म-जाति सब बराबर हैं"| और सिख हों या खाप-खेड़ा-खेत (3ख) को मानने वाले लोग, सिखी से पहले यह सभी "खाप-खेड़ा-खेत" से ही हुए हैं| इसीलिए आप पाओगे कि सिखी के अधिकतर सिद्धांत 3ख से मिलते हैं, कल्चर-रीत-रिवाज-स्वभाव सभी कुछ; सिर्फ भाषा पंजाबी व् हरयाणवी छोड़ के| इसमें भी पाओगे कि पंजाबी-हरयाणवी का 60 से 70% शब्दकोश कॉमन है| </p><p><br /></p><p>यह बाकी के भारत में पाई जाने वाली सामंती जमींदारी से बिल्कुल विपरीत है| सामंती जमींदार में खेत का मालिक खुद खेती ना करके, मजदूरों से करवाता है; जिसको कि 'नौकर-मालिक' कल्चर बोलते हैं| यह कल्चर वर्णवादी व्यवस्था से निकल के आता है| व् वर्णवादी व्यवस्था में सहना, नीचे बने रहना सिखाया जाता है| यानि स्वर्ण-शूद्र कांसेप्ट इसका मूल है| इस कल्चर में पला-बड़ा व्यक्ति, डरा-दबा के बड़ा किया जाता है, स्वर्ण-शूद्र समझा-बता-थोंप के पाला जाता है| इसलिए यह उदारवादी जमींदारी वालों से अपेक्षाकृत कम डेमोक्रिटिस व् कम निर्भय होता है| </p><p><br /></p><p>बस यह मूल-कल्चरल भिन्नता ही इसकी सबसे बड़ी वजह है कि उत्तर-पश्चिम भारत में इतने किसान आंदोलन क्यों होते हैं| और फंडियों की असल लड़ाई इस 3ख की फिलॉसोफी को ही मिटाने की है; जो कि मारनी सम्भव नहीं है| यह मारते रहे, परन्तु यह और ज्यादा अंतर्राष्ट्रीय स्तर तक ख्याति पाती चली जा रही है| और यही फंडियों की असल कुंठा है| यह कल्चर-किनशिप का मूल-अंतर् अपनी पीढ़ियों को बता के रखिए, साथ ही यह भी समझा के रखिए कि फंडियों को आदर-भाव का भरम-बहम देते हुए, अपने कल्चर-किनशिप को कैसे निरतंरता में रखना है| यह बहम के ही तो भूखे हैं, आदर का बहम, सम्मान का बहम; तो जब यह बहम में खुश हैं तो इनको बहम ही देते चलो व् अपनी कल्चर-किनशिप पे कायम रहो| क्यों किसी को रूसाना!</p><p><br /></p><p>जय यौधेय! - फूल मलिक</p>Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2945230211619515819.post-82681405418384071482024-02-13T06:42:00.000-08:002024-02-13T06:42:17.319-08:00 ★ "C2" में क्या क्या है और उद्योगपतियों को C2 मिलता है या नहीं?<p><span style="white-space-collapse: preserve;">1. फैमिली लेबर : उद्योगपतियों को अपनी कंपनी से "सैलरी" मिलती है..पूरा परिवार डायरेक्टर रहता है..करोड़ो की सैलरी मिलती है..यही फैमिली लेबर है..</span></p><span style="white-space-collapse: preserve;">C2 में किसान परिवार के जो लोग खेत में काम करते हैं उनका मेहनताना भी बताया गया है..</span><br /><span style="white-space-collapse: preserve;">2. ज़मीन का किराया : उद्योगपतियों को ज़मीन मुफ़्त मिलती है..उद्योगपतियों को ज़मीन 100 साल की लीज़ पर मिलती है जो लगभग मालिकाना ही है..</span><br /><span style="white-space-collapse: preserve;">ज़मीन पर बने कारख़ानों पर "डेप्रिसिएशन" भी मिलता है..यही सब ज़मीन का किराया है..</span><br /><span style="white-space-collapse: preserve;">3. लागत पर ब्याज : उद्योगपतियों को अपनी हिस्सेदारी पर सैलरी के 'अलावा डिविडेंड भी मिलता है..यह लागत पर ब्याज है..</span><br /><span style="white-space-collapse: preserve;">ऐसे भी समझ सकते है कि अगर किसान 100₹ बैंक में ब्याज पर रखता है तो उसे सालाना 7% ब्याज के हिसाब से 7₹ मिलते है..यही लागत का ब्याज है जिसे C2 में शामिल किया गया है..</span><br /><span style="white-space-collapse: preserve;">#कृष्णनअय्यर </span>Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2945230211619515819.post-26101161876910145322024-02-12T19:26:00.000-08:002024-02-12T19:26:00.160-08:00On the occasion of birth anniversary (13 Feb 1707) of Maharaj Surajmal Sujan Ji<p><span style="white-space-collapse: preserve;">He is revered upon as Asian Plato, Jat Odysseus by various historians and intellectuals of global arena.</span></p><br /><span style="white-space-collapse: preserve;">बागडु के युद्ध में माधोसिंह की ओर मल्हारराव होल्कर, गंगाधर तांतिया, मेवाड़ के महाराणा जगतसिंह, जोधपुर नरेश, कोटा तथा बूंदी के राजा थे। ईश्वरीय सिंह इस युद्ध में अकेले पड़ गए थे। ईश्वरीय सिंह की ओर से भरतपुर रियासत के सूरजमल उनके साथ थे। बागडु के इस युद्ध में ईश्वरीय सिंह की जीत हुई और इन सभी सात राजाओं को हार का मुँह देखना पड़ा। </span><br /><span style="white-space-collapse: preserve;">प्रतापी जाट की प्रतिष्ठा के प्रति द्वेष दिखाए बिना बूंदी का राजपूत कवि सूर्यमल्ल मिश्रण इस स्मरणीय अवसर पर सूरजमल के शौर्य का वर्णन काव्यात्मक शैली में इस प्रकार करता है -</span><br /><span style="white-space-collapse: preserve;">सह्यो भलैंही जट्टनी, जय अरिष्ट अरिष्ट।</span><br /><span style="white-space-collapse: preserve;">जिहिं जाठर रविमल्ल हुव आमैरन को इष्ट॥</span><br /><span style="white-space-collapse: preserve;">बहुरि जट्ट मल्लार सन, लरन लग्यो हरवल्ल।</span><br /><span style="white-space-collapse: preserve;">अंगद ह्वै हुलकर अरयो, मिहिरमल्ल प्रतिमल्ल॥</span><br /><span style="white-space-collapse: preserve;">(वंश भास्कर, पृ० 3518)</span><br /><span style="white-space-collapse: preserve;">“अर्थात् जाटनी ने व्यर्थ ही प्रसव पीड़ा सहन नहीं की। उसके गर्भ से उत्पन्न सन्तान सूरज (रवि) मल शत्रुओं के संहारक और आमेर का शुभचिन्तक था। पृष्ठभाग से वापस मुड़कर जाट ने हरावल में मल्हार से युद्ध शुरु किया। होल्कर भी अंगद की भांति अड़ गया, दोनों की टक्कर बराबर की थी।”</span><br /><span style="white-space-collapse: preserve;">:- कवि ने ज़ट्ट शब्द इस्तेमाल किया है। वैसे असल शब्द भी ज़ट्ट ही है, ज़ट्ट से जाट बोला जाने लगा। आज भी काफ़ी गाँव ऐसे हैं जिनके नाम के साथ ज़ट्ट शब्द ही बोलने में आता है, जैसे कि शाहपुर ज़ट्ट, ख़ेड़ी ज़ट्ट...</span><br /><br /><span style="white-space-collapse: preserve;">By: Rakesh Sangwan </span><br /><br />Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2945230211619515819.post-33807935972309560722024-02-09T05:06:00.000-08:002024-02-09T05:06:35.169-08:00Dr. Ramdhan Hooda and his crops breed inventions!<p>B.R to Dr MSS.PL GO to Illustrated weekly,titles gene piracy of 1970/71,he was trying for this since nineties.late agriculture minister C.Subramanium made comment on his file ,he gave rice germplasm to irri, joined director,</p><p>It's wrong to call him father of green revolution.as a scientist he gave no technology,as science administrator,he, didn't differentiate between a performer/non performer,his partially led to suicide of Dr.vinod Shah in iari, after that ARS system was created.he manipulated the content of lysine in wheat variety sarbati Sonora to help Dr Austin,who was related to P.C.Alexander,close to Indira Gandhi, promoted,Dr Kaul, related to kaul family close to Indira it was all done to get B.R.</p><p>Borlaug during first visit to India went to sonipat,to get blessings of Rao Ramdhan ji, I am witness to it.the dwarf varieties were rejected by Rao saheb because in the absence of irrigation and fertilizers these were low yielder compare to tall varieties.rao saheb gave 38 varieties of different crops,his wheat varieties were popular in Australia, Mexico Asia and Latin America.In terms of quality even today there is no substitute for basmati 370 and C.306.during sixties 59% area under wheat in the country was occupied by varieties developed by Ramdhan ji . C.306 was progeny of cross from Rao saheb material,he also helped in selection of this variety at Hisar farm,pt dhani Ram was associated with it </p><p>Though MSS super intelligent man but to call him father of green revolution in the country is exaggeration.The real heroes of green revolution in the country are</p><p>Wheat:::mr mathur</p><p>Sorghum::N.G.P.Rao</p><p>Rice:G S Khush</p><p>Maize: Dhawan/Joginder Singh</p><p>The recognition </p><p>of scientists in the country is very late,not respected.</p><p>When B S.Hooda was CM haryana we met him many times to install a statue of Rao saheb in Rohtak.but no action it's our culture,we don't recognise our own people</p><p>Dr. Bhim Singh Dahiya</p>Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2945230211619515819.post-26363112575179583272024-02-03T03:46:00.000-08:002024-02-03T03:46:49.984-08:00 क्या हैं छत्तीस बिरादरी! <p><span style="background-color: white; color: #050505; font-family: inherit; font-size: 15px; white-space-collapse: preserve;">छत्तीस जात! </span></p><div class="x11i5rnm xat24cr x1mh8g0r x1vvkbs xtlvy1s x126k92a" style="background-color: white; color: #050505; font-family: "Segoe UI Historic", "Segoe UI", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; margin: 0.5em 0px 0px; overflow-wrap: break-word; white-space-collapse: preserve;"><div dir="auto" style="font-family: inherit;">छत्तीस बिरादरी का साथ!</div><div dir="auto" style="font-family: inherit;">पैंतीस बनाम एक! <span class="x3nfvp2 x1j61x8r x1fcty0u xdj266r xhhsvwb xat24cr xgzva0m xxymvpz xlup9mm x1kky2od" style="display: inline-flex; font-family: inherit; height: 16px; margin: 0px 1px; vertical-align: middle; width: 16px;"><br /></span></div><div dir="auto" style="font-family: inherit;"><br /></div><div dir="auto" style="font-family: inherit;">ये <span style="font-family: inherit;"><a style="color: #385898; cursor: pointer; font-family: inherit;" tabindex="-1"></a></span>कुछ ऐसे जुमले हैं जिनके कारण मुझे इन छत्तीस बिरादरियों के बारे में जानने की उत्सुकता हुई! <span style="font-family: inherit;">कौनसी हैं ये छत्तीस बिरादरी? </span><span style="font-family: inherit;"> किस धर्म ग्रंथ या ऐतिहासिक ग्रंथ में है इन छत्तीस बिरादरियों का जिक्र? </span><span style="font-family: inherit;">काफी शोध करने के बाद भी कोई भी ऐसा स्रोत नहीं मिला जहां इन छत्तीस बिरादरियों का जिक्र हो!</span><span style="font-family: inherit;"> इनकी सूची दी गई हो!</span></div><div dir="auto" style="font-family: inherit;"><br /></div><div dir="auto" style="font-family: inherit;">हां! <span style="font-family: inherit;"> 1435 ईसवी के आचार्य जमदग्नि द्वारा रचित कुमार प्रबंध में छत्तीस राजकुलों ,राजवंशों का जिक्र जरूर है जिन्होंने मध्य भारत व उत्तर भारत में ,विशेषकर राजस्थान,गुजरात,पंजाब,सिंध और सिंध नदी पार प्रदेश अफगानिस्तान तक राज्य किया! </span></div><div dir="auto" style="font-family: inherit;"><br /></div><div dir="auto" style="font-family: inherit;">इन्हीं राजवंशों की सूची का विवरण अंग्रेज इतिहासकार कर्नल जेम्स टॉड द्वारा 1829 में लिखित"राजस्थान का इतिहास" में भी दिया गया है! <span style="font-family: inherit;">ये सभी राजवंश सूर्यवंश या चंदर वंश या अग्निकुल कुल से अपनी उत्पति मानते है! </span><span style="font-family: inherit;">इनकी सूची इस प्रकार से है;</span></div><div dir="auto" style="font-family: inherit;">1.गहलोत 2.यदुवंश 3.तोमर 4.राठौर 5.कुशवाहा <span style="font-family: inherit;">6.परमार 7.चौहान 8.चालुक्य या सोलंकी 9.प्रतिहारा या परिहार( क्रम 6 से 9 तक के वंश अग्निकुल से उत्पति मानते हैं) </span><span style="font-family: inherit;">10.चावड़ा 11.तक्षक 12. जिट या जाट 13. हूण 14.कट्टी 15.बल्ला 16. झाला मकवाना 17.जैतवा, जेतवा या कैमारी </span><span style="font-family: inherit;">18.गोहिल 19. सरव्या या सरियास्पी 20 .सुल्लर 21. डाबी </span><span style="font-family: inherit;">22. गौर 23. डोर या डोडा 24.घेरवाल 25. बड़ गुज्जर 26.सेंगर </span><span style="font-family: inherit;">27. सिकरवाल 28. बैंस 29. दाहिआ 30.जोहिया 31. मोहिल 32. निकुंपा 33.राजपाली 34. दाहिरिया 35.दाहिमा 36.आदिवासी कबीले जैसे कि मीणा,भील, थोरी, खांगर इत्यादि!</span></div></div><div class="x11i5rnm xat24cr x1mh8g0r x1vvkbs xtlvy1s x126k92a" style="background-color: white; color: #050505; font-family: "Segoe UI Historic", "Segoe UI", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; margin: 0.5em 0px 0px; overflow-wrap: break-word; white-space-collapse: preserve;"><div dir="auto" style="font-family: inherit;"><br /></div><div dir="auto" style="font-family: inherit;">इसके अलावा टॉड ने कृषक जातियों एवं 84 व्यवसायिक जातियों का भी जिक्र किया है जिनमें से कई बनिया समाज से हैं!</div><div dir="auto" style="font-family: inherit;"><br /></div><div dir="auto" style="font-family: inherit;">कह नही सकता लंबे इतिहास में क्या कुछ बीता होगा! <span style="font-family: inherit;">पर एक बात जाहिर है कि जाट,राजपूत,गुज्जर, अहीर इन सभी जातियों की उत्पति,उद्भव की कहानी एक ही रही है!खेती,पशुपालन,आवश्यकता पड़ने पर युद्ध,और समय के साथ एक दूसरे पर प्रभुत्व स्थापित करने की होड़ में सामाजिक वर्गीकरण! </span><span style="font-family: inherit;"> ये समझ पाया हूं छत्तीस बिरादरियों के बारे में! </span><span style="font-family: inherit;">कोई प्रबुद्ध बंधु अगर इस पर प्रकाश डाल सकें तो स्वागत है!</span></div><div dir="auto" style="font-family: inherit;"><span style="font-family: inherit;"><br /></span></div><div dir="auto" style="font-family: inherit;">कुलबीर मलिक!</div></div>Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2945230211619515819.post-60873424853968613472024-01-24T07:32:00.000-08:002024-01-24T07:32:22.014-08:001905 में एक काल्पनिक पात्र चाणक्य को इतिहास में क्यूँ और कैसे सेट किया गया ???<p> <span style="background-color: white; color: #050505; font-family: inherit; font-size: 15px; white-space-collapse: preserve;">भारत में प्रचलित धार्मिक किताबों के नए नए और अलग अलग संस्करण उपलब्ध हैं. लेकिन रहस्य का विषय ये हैं कि किसी भी किताब का मूल आधार स्त्रोत उपलब्ध ही नहीं हैं. अगर किसी का आधार स्त्रोत उपलब्ध भी हैं तो वो नए प्रकाशित संस्करणों से बिल्कुल अलग। नए संस्करणों में सब कुछ संशोधित किया गया हैं। ऐसा करने से विषय के अर्थों का अनर्थ हो जाता हैं। इसलिए उपलब्ध भारतीय दर्शन बहुत ही निराधार और सतही हो गया </span><span style="background-color: white; color: #050505; font-family: inherit; font-size: 15px; white-space-collapse: preserve;"><a style="color: #385898; cursor: pointer; font-family: inherit;" tabindex="-1"></a></span><span style="background-color: white; color: #050505; font-family: inherit; font-size: 15px; white-space-collapse: preserve;">हैं।। ज्ञान चेतना को जाग्रत करता हैं लेकिन यहां पाठकों के सामने समस्या यह हो जाती है कि वो अनेकों भ्रम के शिकार हो जाते हैं। उसका कारण हैं कि मुख्य विषयो का उपलब्ध ना होना या अनुचित तरीके से संशोधित करना।।</span></p><div class="x11i5rnm xat24cr x1mh8g0r x1vvkbs xtlvy1s x126k92a" style="background-color: white; color: #050505; font-family: "Segoe UI Historic", "Segoe UI", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; margin: 0.5em 0px 0px; overflow-wrap: break-word; white-space-collapse: preserve;"><div dir="auto" style="font-family: inherit;">कबीर वर्षा तक लोगों में प्रचलित रहा उनके कुछ दोहे लोगों की जुबान पर चढ़ गए। लेकिन उन्होंने अपने जिवन काल में कभी कुछ नहीं लिखा ना लिखवाया। फिरभी उनके नाम से अनेकों काल्पनिक दोहे और कहानियाँ प्रकाशित हैं। कबीर कटाक्ष कि भाषा बोलते थे।। लेकिन उनके साथ कहीं कोई गुरु तो कहीं राम को जोड़ कर उनके कटाक्ष के वेग को रोका गया।। कबीर उपदेशक नहीं उन्हें उपदेश से मतलब ही नहीं। बस वो व्यंग्य करते हैं वो मुर्ख के संग मुर्ख और विद्वान के संग विद्वान हो जाते। लेकिन वो हिन्दू और मुस्लमान के पाखण्ड पर नग्न कटाक्ष करते हैं।</div></div><div class="x11i5rnm xat24cr x1mh8g0r x1vvkbs xtlvy1s x126k92a" style="background-color: white; color: #050505; font-family: "Segoe UI Historic", "Segoe UI", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; margin: 0.5em 0px 0px; overflow-wrap: break-word; white-space-collapse: preserve;"><div dir="auto" style="font-family: inherit;">कबीर एक अलग किस्म के दार्शनिक हैं जो सत्य को उपदेश में लपेट कर नहीं कहते वो उसे कोई धार्मिक कपड़े नहीं पहनाना चाहते। उनका सत्य बिल्कुल नग्न हैं। वो बस वास्तविकता में स्थिर हैं।। </div></div><div class="x11i5rnm xat24cr x1mh8g0r x1vvkbs xtlvy1s x126k92a" style="background-color: white; color: #050505; font-family: "Segoe UI Historic", "Segoe UI", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; margin: 0.5em 0px 0px; overflow-wrap: break-word; white-space-collapse: preserve;"><div dir="auto" style="font-family: inherit;">ऐसे ही किसी भी विषय का कोई भी मुल ग्रंथ उपलब्ध नहीं. बहुत से विषय जो पांडुलिपियों के रूप मे उपलब्ध हैं। यह सभी बहुत ज्यादा प्राचीन नहीं और ना ही ये स्पष्ट रूप से यह दर्शाते हैं कि वह क्या हैं। शोधकर्ताओ ने अपने अपने हिसाब से इनका नामकरण किया हुआ हैं।। किसी भी विषय के लेखक की जानकारी ना होने पर ,किसी काल्पनिक नाम से या किसी नाम के सामने महर्षि लगाकर उन्हें आगे बढ़ाया हैं।। वेदव्यास के नाम से अनेकों ग्रंथ प्रचलित हैं जबकि वेदव्यास नामक व्यक्ती का कोई भी प्रमाण किसी भी स्त्रोत में उपलब्ध नहीं हैं।। अनेकों लेखकों ने तलाशने की कोशिश की लेकिन मुल स्त्रोतों में यह तलाश आज भी अधूरी हैं। लेकिन धार्मिक लोगों को वास्तविकता से कोई लेना देना नहीं होता इसलिए वो झूठ को लपेट लपेट कर फेंकते रहते हैं l</div></div><div class="x11i5rnm xat24cr x1mh8g0r x1vvkbs xtlvy1s x126k92a" style="background-color: white; color: #050505; font-family: "Segoe UI Historic", "Segoe UI", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; margin: 0.5em 0px 0px; overflow-wrap: break-word; white-space-collapse: preserve;"><div dir="auto" style="font-family: inherit;">1905 से पहले चाणक्य नाम का कोई भी पात्र किसी कहानी मे नहीं था, फिर अचानक मैसूर की अंग्रेजों द्वारा स्थापित एक लाइब्रेरी से ऐसा ही एक ग्रंथ मिलने की घोषणा की और 1919 में अनेकों शोध करके चाणक्य को लॉन्च कर दिया गया। हालांकि अभी तक यह संस्करण अधूरा था जो बादमें 1929 के बाद से नए संशोधनों के साथ चोथा संस्करण प्रकाशित किया गया।। इस नए संस्करण में चाणक्य को इतिहास में अच्छे से सेट किया गया।। इसके लिए अंग्रेजों ने एक व्यक्ती रुद्रपट्टणशामा के द्वारा यह कार्य सिद्ध करवाया। </div></div><div class="x11i5rnm xat24cr x1mh8g0r x1vvkbs xtlvy1s x126k92a" style="background-color: white; color: #050505; font-family: "Segoe UI Historic", "Segoe UI", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; margin: 0.5em 0px 0px; overflow-wrap: break-word; white-space-collapse: preserve;"><div dir="auto" style="font-family: inherit;">अंग्रेजी भाषान्तर का यह चतुर्थ संस्करण (1929 ई.) प्रामाणिक माना जाता है. इसमें सबकुछ ठीक ठाक स्थापित कर लिया गया था ताकि चाणक्य (रुद्रपट्टणशामा शास्त्री) इतिहास में फिट किये जा सके. </div><div dir="auto" style="font-family: inherit;">पुस्तक के प्रकाशन के साथ ही स्थानीय लोगो में इसे चर्चा का विषय बनाया गया और अंग्रेजो ने इसका भरपूर प्रचार किया। लेखकों के बीच चर्चा का विषय बना दिया गया था - क्योंकि इसमें अद्भुत तत्त्वों का वर्णन पाया गया, जिनके सम्बन्ध में अभी तक ऐसा कोई संकलन प्राप्त नहीं हुआ था. पाश्चात्य विद्वान फ्लीट, जौली आदि ने इस पुस्तक को एक ‘अत्यन्त महत्त्वपूर्ण’ ग्रंथ बतलाया और इसका प्रचार भी किया और इसे भारत के प्राचीन इतिहास के निर्माण में परम सहायक साधन स्वीकार करते हुए इसे अब इतिहास में स्थापित किया जा चूका हैं. </div></div><div class="x11i5rnm xat24cr x1mh8g0r x1vvkbs xtlvy1s x126k92a" style="background-color: white; color: #050505; font-family: "Segoe UI Historic", "Segoe UI", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; margin: 0.5em 0px 0px; overflow-wrap: break-word; white-space-collapse: preserve;"><div dir="auto" style="font-family: inherit;">आखिर अंग्रेज क्यूँ ऐसे काल्पनिक पात्रों को इतिहास में शामिल कर रहें थे। इसके पीछे क्या योजना रहीं होगी यह रहस्य अंग्रेजों के साथ ही चला गया।। लेकिन ऐसे ही अनेकों प्रचलित पात्र आज के भारत मे प्रचलित हैं जो कभी थे ही नहीं।। </div></div><div class="x11i5rnm xat24cr x1mh8g0r x1vvkbs xtlvy1s x126k92a" style="background-color: white; color: #050505; font-family: "Segoe UI Historic", "Segoe UI", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; margin: 0.5em 0px 0px; overflow-wrap: break-word; white-space-collapse: preserve;"><div dir="auto" style="font-family: inherit;">धन्यवाद - by Rajesh Dhull</div></div>Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2945230211619515819.post-66406423531026252942024-01-22T21:48:00.000-08:002024-01-22T21:48:03.997-08:00कैसे 1857 के विद्रोह के बाद ही 1860 में एक अंग्रेज अधिकारी द्वारा अयोध्या का ये सारा इतिहास गड़ा गया!<p> <a href="https://www.bbc.com/hindi/podcasts/p09ds7zx">राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा: कितनी आस्था कितनी राजनीति? - दिनभर: पूरा दिन,पूरी ख़बर (Dinbhar) - Hindi - BBC News हिंदी</a></p><p><br /></p><p>👆 कैसे 1857 के विद्रोह के बाद ही 1860 में एक अंग्रेज अधिकारी द्वारा अयोध्या का ये सारा इतिहास गड़ा गया क्योंकि हिंदूं मुस्लिम मिलकर उस विद्रोह में सामिल हुए थे और वहीं से ये कहानी शुरु होते हुए आज़ादी के बाद एक स्थानीय नेता को हराने के लिए चुपके से वहां पर मूर्ति रख दी और अफवा फैला दी की रामल्ला प्रकट हो गए</p><p>कैसे संघ को मथुरा काशी अयोध्या में कभी वोट नही मिल पाते थे</p><p>उसके बाद राजीव गांधी ने 1986 में हिंदुओं को खुश करने के लिए इसके ताले खुलवाए और पास में राम मंदिर का सिल्यानाश भी किया</p><p>लेकिन आडवाणी की रथ यात्रा के बाद सब कुछ अपनी तरफ खींच लिया</p><div><br /></div>Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2945230211619515819.post-34370230573910107422024-01-22T21:33:00.000-08:002024-01-22T21:33:55.568-08:00आज के "पीठ पीछे से छुरा नहीं घोंपने की अवधारणा वाले समाजों पर, पीठ-पीछे से छुरा घोंपने वाले समाज हावी पड़ रहे हैं"!<p>पीठ-पीछे से छुरा घोंपने वाले यानि वह लोग जो मार्शल फील्ड व् आर्ट में कमजोर हैं व् आमने-सामने की लड़ाई नहीं लड़ सकते| </p><p>पीठ-पीछे से छुरा नहीं घोंपने वाले यानि वह लोग जो तथाकथित युद्ध-कौमें कहलाती हैं; वह इन पीठ पीछे से छुरा घोंपने की अवधारणा वालों से इसी फ्रंट पर पिछड़ रही हैं; क्योंकि यह इस कार्य को सही नहीं मानती| परन्तु यह कौमें ही यह बात भूल रही हैं कि जब-जब जुर्म-अन्याय की प्रकाष्ठा होती आई; तब-तब इन्हीं कौमों ने छापेमार युद्ध नीतियां भी अपनाई; सिख जैसी कौम तो रात को 12 बजे हमले करती थी| </p><p><br /></p><p>तो बस यही "छापामार वॉर" चलेगी तभी जा के यह पीठ पीछे से छुरा घोंपने की अवधारणा वाले काबू आएँगे| अन्यथा यह बंद कमरों में आपके कत्लों का कारवां सजाते रहेंगे व् आप कत्ल होते ही चले जाओगे| </p><p><br /></p><p>तो इस बात को गलत ना मानो कि किसी को पीठ-पीछे छुरा नहीं घोंपना चाहिए; जब धर्म-कर्म में हर जगह बढ़चढ़कर भी दान-दहेज से सब आदर-मान दिखाने पर भी कोई आपको आपका यथोचित सम्मान ना देवे तो यह रास्ते अख्तियार करना ही नीति है व् यह नीति "छापेमार युद्धों" के लम्बे इतिहास के रूप में आपके पुरखों ने स्थापित की हुई है| </p><p><br /></p><p>जय यौधेय!</p>Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2945230211619515819.post-91645354952821773182024-01-22T21:09:00.000-08:002024-01-22T21:09:37.559-08:00किसी भी कल्चर में कोई शब्द वास्तव में कितना प्रचलित होता है, इसका अध्ययन उसके लोककलाकारों के सम्बोधनों व् अभिव्यक्तियों से सबसे सहजता से लगाया जाता है|<p>किसी भी कल्चर में कोई शब्द वास्तव में कितना प्रचलित होता है, इसका अध्ययन उसके लोककलाकारों के सम्बोधनों व् अभिव्यक्तियों से सबसे सहजता से लगाया जाता है| जैसे इस वीडियो में देखें ; हरयाणवी लोक-कलाकार आज से करीब 15-17 साल पहले एक रागनी की प्रस्तुति दे रही हैं, एक हरयाणवी रागनी कार्यक्रम में| व् नोट करें वह अपने पब्लिक-सम्बोधन में पब्लिक को नमस्कार बोल रही हैं, "राम-राम" या कुछ अन्यथा नहीं| व् ऐसे ही अन्य तमाम ऐसे कलाकारों के आज से इतने ही पुराने सम्बोधन नोट किए जाने चाहिएं; तो पता लगेगा कि "हरयाणवी भाषा में "राम" का अर्थ "आराम" व् "आकाश" रखने वाले शब्द की एक पौराणिक चरित्र से समानता होने के चलते; उसकी बेहताशा मार्केटिंग करके उस शब्द को इस शब्द के साथ बदलने की कोशिश हुई है| व्यक्तिगत तौर पर मेरे दादा जी, मरने मर गए परन्तु जब भी दादा जी से फ़ोन पे बात करता था, या छुट्टियों में घर जाता था तो कभी भी "राम-राम" शब्द उनके मुंह से अभिन्दन-स्वरूप नहीं सुना; हमेशा आगे से "नमस्ते फूल", "नमस्ते बेटा/पोता फूल" ही सुना| </p><p><br /></p><p>यहाँ यह किसी पौराणिक चरित्र के विरोध-अवरोध की बात नहीं है; अपितु अपने कल्चर-किनशिप की शुद्धता को सही से जानने व् समझने की बात है| समझना इसलिए कि अगर नहीं चाहते कि कोई खटटर जैसा हरयाणवियों को "कंधे से नीचे मजबूत व् ऊपर कमजोर न बतावे" तो| आप लोग इन बातों को सहजता में ऊड़ा देते हो; इसलिए आज आपकी कल्चर व् भाषा की यह दुर्गति हुई पड़ी है व् हर बौद्धिक स्तर से घिरे बैठे हो| </p><p><br /></p><p><br /></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><iframe allowfullscreen='allowfullscreen' webkitallowfullscreen='webkitallowfullscreen' mozallowfullscreen='mozallowfullscreen' width='320' height='266' src='https://www.blogger.com/video.g?token=AD6v5dxDMxII9noaJlKzavRQ7TU9o2QbYdspsM5CDqJOdFONBQMpF-pp4YRexYGn8MvwT5spYM9ELv0_USbHoodtyQ' class='b-hbp-video b-uploaded' frameborder='0'></iframe></div><br /><p><br /></p>Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2945230211619515819.post-39508518383077059912024-01-22T00:16:00.000-08:002024-01-22T00:16:33.951-08:00मूल रामायण को बाल्मीकि रामायण क्यों कहा जाता है ?<p><span style="background-color: white; color: #050505; font-family: "Segoe UI Historic", "Segoe UI", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px;">असल में कोई बाल्मीकि नमक महर्षि ने इसे नहीं लिखा इसके मूल लेखक निषाद जनजाति के एक विभाजित जाती समूह "कायस्य बाल्मीकि" श्री श्रीकर के पुत्र श्रीगोपति हैं.</span></p><br style="background-color: white; color: #050505; font-family: "Segoe UI Historic", "Segoe UI", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px;" /><span style="background-color: white; color: #050505; font-family: "Segoe UI Historic", "Segoe UI", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px;">वर्तमान देश के सम्परदायिक संगठनों की एकता और उनके एकजुट सहयोग से इस साम्प्रदायिक लड़ाई के संघर्ष, इस विजय के लिए बहुत बहुत शुभकामनाए. मूर्तिकार ने बहुत ही उत्तम कला के प्रयोग से एक जीवंत मूर्ति का निर्माण किया हैं उनकी कला को नमन.</span><br style="background-color: white; color: #050505; font-family: "Segoe UI Historic", "Segoe UI", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px;" /><br style="background-color: white; color: #050505; font-family: "Segoe UI Historic", "Segoe UI", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px;" /><span style="background-color: white; color: #050505; font-family: "Segoe UI Historic", "Segoe UI", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px;">रामायण के जो संस्करण बाजार में उपलब्ध है, वह बहुत पुराना नहीं है. छपी हुई पुस्तकों में से जो सबसे पुरानी है वह 1806 ई. की है, यानी आज से मात्र 214 साल पुरानी है. यह मूल बाल्मीकि रमायुन की पांडुलिपियों, इसकी एक पाण्डुलिपि 1020 ई. की है, जो नेपाल दरबार लाइब्रेरी में सुरक्षित है, से प्रकाशित की गई है. इस पाण्डुलिपि में राम के पात्र को भगवान की तरह नहीं बल्कि इस रमायुन (नेपाली शब्द ) काव्य का जनजातीय विशेष शौर्य पात्र बनाया गया. कहानी का प्लॉट बहुत ही सार्थक और रचनात्मक हैं. लेकिन वर्तमान में छापी गई रामायणो के सभी संस्करण अतिश्योक्तिपूर्ण हैं और मूल कहानी के साथ अनेको प्रकरण जोड़ दिए गए हैं. इसके कारण राम के पात्र को एक दैवीय पात्र बना दिया गया हैं जबकि मूल रामायण ज्यादा प्रभावी और नैतिकता के साथ उत्तम रचना हैं. आस्चर्य की बात तो ये है - जो मुंबई संस्करण- वर्तमान में गीता प्रेस से प्रकाशित है और उसमे श्रीलंका में लंका को दर्शाया जाता है. वो लंका आज के श्री लंका स्थान पर कहीं नहीं हैं. इन संस्करणों में राम और रावण के अनेको प्रसंगो को बदल दिया गया हैं इसलिए ये मूल रामायण से बिलकुल विपरीत हो जाते हैं.</span><br style="background-color: white; color: #050505; font-family: "Segoe UI Historic", "Segoe UI", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px;" /><br style="background-color: white; color: #050505; font-family: "Segoe UI Historic", "Segoe UI", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px;" /><span style="background-color: white; color: #050505; font-family: "Segoe UI Historic", "Segoe UI", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px;">अभी सबसे पुरानी पाण्डुलिपि जो उपलब्ध है, वह नेपाल में उपलब्ध है। इसकी पाण्डुलिपि तिरहुत में आज से 1000 वर्ष पहले 1020 ई.मे लिखी गयी थी. इस पाण्डुलिपि में लिखा हैं - 1020 ई. में आषाढ़ चतुर्थी तिथि को महाराजाधिराज, पुण्यावलोक, चन्द्रवंशी, गरुडध्वज उपाधिधारी राजा गांगेयदेव के द्वारा शासित तिरहुत में कल्याणविजय राज्य में, नेपाल देश के पुस्तकालयाध्यक्ष श्रीआनन्द के लिए गाँव के एक टोला ( समूह ) में रहते हुए कायस्थ श्री श्रीकर के पुत्र श्रीगोपति ने इसे लिखा ”</span><br style="background-color: white; color: #050505; font-family: "Segoe UI Historic", "Segoe UI", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px;" /><br style="background-color: white; color: #050505; font-family: "Segoe UI Historic", "Segoe UI", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px;" /><span style="background-color: white; color: #050505; font-family: "Segoe UI Historic", "Segoe UI", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px;">यह तालपत्र में लिखित 800 पत्रों का ग्रन्थ नेवारी लिपि में है, जिसमें सातों खंड हैं. यह काठमाण्डू के वीर पुस्तकालय (राजकीय अभिलेखागार) में है, जिसकी फोटोप्रति बड़ौदा में ग्रन्थ सं-14156 है. इसके अन्तमें एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण पुष्पिका (समाप्तिसूचक लेखीय वाक्य) है.</span><br style="background-color: white; color: #050505; font-family: "Segoe UI Historic", "Segoe UI", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px;" /><br style="background-color: white; color: #050505; font-family: "Segoe UI Historic", "Segoe UI", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px;" /><span style="background-color: white; color: #050505; font-family: "Segoe UI Historic", "Segoe UI", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px;">इसक अर्थ - संवत् 1076=1020ई., आषाढ़ मास में कालपक्ष की चतुर्थी तिथि में महाराजाधिराज पुण्यावलोक (पुण्य दृष्टि वाला) चन्द्रवंश में उत्पन्न गरुडयुक्त ध्वजा वाले श्रीमान् गांगेयदेव के द्वारा भोग किये जाने वाले देश तिरहुत (मिथिला)) में, प्रजा के कल्याण के लिए विजित राज्य में, नेपालदेश के भाण्डागारिक (भण्डारपाल) श्रीआनन्दकर के लिए, पाटक नामक गाँव में स्थित कायस्य श्री श्रीकर के पुत्र श्रीगोपति ने इसे लिखा.</span><br style="background-color: white; color: #050505; font-family: "Segoe UI Historic", "Segoe UI", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px;" /><br style="background-color: white; color: #050505; font-family: "Segoe UI Historic", "Segoe UI", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px;" /><span style="background-color: white; color: #050505; font-family: "Segoe UI Historic", "Segoe UI", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px;">इसे एक कायस्थ (बाल्मीकि) जाती के व्यक्ति ने लिखा इसलिए इसे बाल्मीकि रामायण कहते हैं. साहित्यकारों ने यह छुपा लिया कि यह एक कायस्थ श्रीकर ने लिखी हैं और बाल्मीकि शब्द का महर्षि लगाकर प्रचार कर झूठ परोसा गया. जनजातियों में भी गजब के रचनाकार हुए हैं - लेकिन इन्हे इनकी जातियों कि वजह से साहित्य में स्थान नहीं दिया गया और कपोल कल्पनाओ के लेप लगाकर पाठको को गुमराह किया जाता रहा हैं.</span><br style="background-color: white; color: #050505; font-family: "Segoe UI Historic", "Segoe UI", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px;" /><br style="background-color: white; color: #050505; font-family: "Segoe UI Historic", "Segoe UI", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px;" /><span style="background-color: white; color: #050505; font-family: "Segoe UI Historic", "Segoe UI", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px;">इससे भी पुरानी एक पांडुलिपि छटी शताब्दी की है जो बंगला भाषा में हस्त लिखित हैं, यह Asiatic Society of Bengal कोलकाता में सुरक्षित हैं. इसमे भी राम को एक सामन्य पात्र की तरह दर्शाया गया गया हैं, यह राम के एक वनवासी से राजा बनने की कहानी के साथ समाप्त होती है. इसमे लेखक यह बताना चाहता है कि जब एक जनजाति का व्यक्ती संघर्ष करता हैं तो वो राजा बन सकता हैं. यह कहानी एक सामन्य व्यक्ति से विशेष उपलब्धियों को प्राप्त करने की प्रेरणा से भरी हुई हैं.</span><br style="background-color: white; color: #050505; font-family: "Segoe UI Historic", "Segoe UI", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px;" /><br style="background-color: white; color: #050505; font-family: "Segoe UI Historic", "Segoe UI", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px;" /><span style="background-color: white; color: #050505; font-family: "Segoe UI Historic", "Segoe UI", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px;">गीता प्रेस वालो ने जो अनर्थ किये है - वो देश का दुःर्भाग्य है.</span><br style="background-color: white; color: #050505; font-family: "Segoe UI Historic", "Segoe UI", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px;" /><br style="background-color: white; color: #050505; font-family: "Segoe UI Historic", "Segoe UI", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px;" /><span style="background-color: white; color: #050505; font-family: "Segoe UI Historic", "Segoe UI", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px;">Sorce - Asiatic Society of Bengal</span><br style="background-color: white; color: #050505; font-family: "Segoe UI Historic", "Segoe UI", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px;" /><span style="background-color: white; color: #050505; font-family: "Segoe UI Historic", "Segoe UI", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px;">Publication date 1806</span><br style="background-color: white; color: #050505; font-family: "Segoe UI Historic", "Segoe UI", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px;" /><span style="background-color: white; color: #050505; font-family: "Segoe UI Historic", "Segoe UI", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px;">Publisher Serampore</span><br style="background-color: white; color: #050505; font-family: "Segoe UI Historic", "Segoe UI", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px;" /><span style="background-color: white; color: #050505; font-family: "Segoe UI Historic", "Segoe UI", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px;">Collection Americana</span><br style="background-color: white; color: #050505; font-family: "Segoe UI Historic", "Segoe UI", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px;" /><span style="background-color: white; color: #050505; font-family: "Segoe UI Historic", "Segoe UI", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px;">Book from the collections of Harvard University</span><br style="background-color: white; color: #050505; font-family: "Segoe UI Historic", "Segoe UI", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px;" /><span style="background-color: white; color: #050505; font-family: "Segoe UI Historic", "Segoe UI", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px;">Language English</span><br style="background-color: white; color: #050505; font-family: "Segoe UI Historic", "Segoe UI", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px;" /><span style="background-color: white; color: #050505; font-family: "Segoe UI Historic", "Segoe UI", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px;">Volume 2</span><br style="background-color: white; color: #050505; font-family: "Segoe UI Historic", "Segoe UI", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px;" /><br style="background-color: white; color: #050505; font-family: "Segoe UI Historic", "Segoe UI", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px;" /><span style="background-color: white; color: #050505; font-family: "Segoe UI Historic", "Segoe UI", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px;">~Rajesh Dhull</span><span style="background-color: white; color: #050505; font-family: "Segoe UI Historic", "Segoe UI", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px;"> </span><div><span style="background-color: white; color: #050505; font-family: "Segoe UI Historic", "Segoe UI", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px;"><br /></span></div><div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgiVinLl6RVFZNJd2lMNz6pXJMGBBIirnNF6tK-LJwpvEOqXUoTKdP4omg2PjtbxAtG7vDTErgT_SdDhf4xjlUj6o5OiPjdbWm5PxMhe_dhAOKliR7GB2NWrFWkjXHcrAJahdsDv2u7p68sWZrkaHUr68CWIgO7HZXh9TrrihhZduOh4MhDKhOqejYiUh7-/s516/oldest-written-ramayan%20-%20Copy.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="516" data-original-width="369" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgiVinLl6RVFZNJd2lMNz6pXJMGBBIirnNF6tK-LJwpvEOqXUoTKdP4omg2PjtbxAtG7vDTErgT_SdDhf4xjlUj6o5OiPjdbWm5PxMhe_dhAOKliR7GB2NWrFWkjXHcrAJahdsDv2u7p68sWZrkaHUr68CWIgO7HZXh9TrrihhZduOh4MhDKhOqejYiUh7-/s320/oldest-written-ramayan%20-%20Copy.jpg" width="229" /></a></div><br /><span style="background-color: white; color: #050505; font-family: "Segoe UI Historic", "Segoe UI", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px;"><br /></span></div>Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2945230211619515819.post-69282702569947963342024-01-17T21:31:00.000-08:002024-01-17T21:31:48.760-08:00कुएँ का पाणी <p> कुएँ का पाणी </p><p>अर बिराणी बीरबानी बिन झुकें हासिऴ नहीं होया करर।</p><p><br /></p><p>छात की नीचाई</p><p>अर सुथरई ऴुगाई घरबारी न घुटन दिया करर।</p><p><br /></p><p>माँ का ऴाडऴा </p><p>अर झोटा गाम साझऴा अपणा अपणा भरयां करर।</p><p><br /></p><p>बाऴक अऴबादी </p><p>अर बेमेऴ शादी दुख दिया करर।</p><p><br /></p><p>चूऴेह की आग </p><p>अर कुत्ते का भाग कद्ए भी बूझ जाया करर।</p><p><br /></p><p>ऴूच्चा आदमी</p><p>अर बोदा गात पिटण प रहया करर।</p><p><br /></p><p>बेइमान हऴवाई </p><p>अर ज़िद्दी ऴूगाई सवाद खराब करया करर।</p><p><br /></p><p>सूख्खआ पंचाती</p><p>अर अनाड़ी खाती बएढंगई कीऴ ठोकया करर।</p><p><br /></p><p>राह की बडबेरी</p><p>अर कुंवारी छोरी हर आता जाता ऴहा करर।</p><p><br /></p><p>छोटी साऴी </p><p>अर जंग ऴागी ताऴी फेंकण की होया करर।</p><div><br /></div>Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2945230211619515819.post-6619675316307810972024-01-17T08:39:00.000-08:002024-01-17T08:39:15.080-08:00 कोई 300 साल पुराना जाटो का इतिहास मांगे तो ये साझा कर देना।<p><br /></p><div class="x11i5rnm xat24cr x1mh8g0r x1vvkbs xtlvy1s x126k92a" style="background-color: white; color: #050505; font-family: "Segoe UI Historic", "Segoe UI", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; margin: 0.5em 0px 0px; overflow-wrap: break-word; white-space-collapse: preserve;"><div dir="auto" style="font-family: inherit;">1000 साल पहले अलबरुनी भारत आता है और कृष्णा को जाट लिखकर जाता है।</div></div><div class="x11i5rnm xat24cr x1mh8g0r x1vvkbs xtlvy1s x126k92a" style="background-color: white; color: #050505; font-family: "Segoe UI Historic", "Segoe UI", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; margin: 0.5em 0px 0px; overflow-wrap: break-word; white-space-collapse: preserve;"><div dir="auto" style="font-family: inherit;">सिंध में कैकान की पहाड़ियों के जाट मोहम्द बिन कासिम से लड़ते है।</div><div dir="auto" style="font-family: inherit;"><span style="font-family: inherit;"><a style="color: #385898; cursor: pointer; font-family: inherit;" tabindex="-1"></a></span>कर्नल टॉड को 5वी सदी के जाट राजा शैलेन्द्र का शिलालेख मिलता है।</div></div><div class="x11i5rnm xat24cr x1mh8g0r x1vvkbs xtlvy1s x126k92a" style="background-color: white; color: #050505; font-family: "Segoe UI Historic", "Segoe UI", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; margin: 0.5em 0px 0px; overflow-wrap: break-word; white-space-collapse: preserve;"><div dir="auto" style="font-family: inherit;">5वी सदी के जाट राजा का बूंदी से शिलालेख मिलता है।</div><div dir="auto" style="font-family: inherit;">1हजार साल पहले रणथंभौर किले का निर्माण नागिल जाट करवाते है। जो अखबारों में भी कई बार आ चुका है ।</div></div><div class="x11i5rnm xat24cr x1mh8g0r x1vvkbs xtlvy1s x126k92a" style="background-color: white; color: #050505; font-family: "Segoe UI Historic", "Segoe UI", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; margin: 0.5em 0px 0px; overflow-wrap: break-word; white-space-collapse: preserve;"><div dir="auto" style="font-family: inherit;">पृथ्वीराज की मौत 1192 में हुई है और 1206 में मोहम्मद गोरी की गर्दन काटकर खोखर जाट मारते है । </div></div><div class="x11i5rnm xat24cr x1mh8g0r x1vvkbs xtlvy1s x126k92a" style="background-color: white; color: #050505; font-family: "Segoe UI Historic", "Segoe UI", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; margin: 0.5em 0px 0px; overflow-wrap: break-word; white-space-collapse: preserve;"><div dir="auto" style="font-family: inherit;">रज़िया सुल्तान को जाटो में मारा था।कुतुबुद्दीन ऐबक के समय जाटवान मलिक लड़ रहा था।</div></div><div class="x11i5rnm xat24cr x1mh8g0r x1vvkbs xtlvy1s x126k92a" style="background-color: white; color: #050505; font-family: "Segoe UI Historic", "Segoe UI", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; margin: 0.5em 0px 0px; overflow-wrap: break-word; white-space-collapse: preserve;"><div dir="auto" style="font-family: inherit;">पृथ्वीराज रासो में जाट राजा सारंगदेव का जिक्र है ।</div></div><div class="x11i5rnm xat24cr x1mh8g0r x1vvkbs xtlvy1s x126k92a" style="background-color: white; color: #050505; font-family: "Segoe UI Historic", "Segoe UI", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; margin: 0.5em 0px 0px; overflow-wrap: break-word; white-space-collapse: preserve;"><div dir="auto" style="font-family: inherit;">महमूद ग़ज़नी जब सोमनाथ मंदिर लूटकर ले जा रहा था तो सिंध के जाटो में उसे लूट लिया था।जिस वजह से उसका आखरी हमला जाटो के खिलाफ ही था।</div></div><div class="x11i5rnm xat24cr x1mh8g0r x1vvkbs xtlvy1s x126k92a" style="background-color: white; color: #050505; font-family: "Segoe UI Historic", "Segoe UI", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; margin: 0.5em 0px 0px; overflow-wrap: break-word; white-space-collapse: preserve;"><div dir="auto" style="font-family: inherit;">जिसमे महमूद ग़ज़नी के गवर्नर की गर्दन जाटो ने काट दी थी और इसके लिए जाटों ने 500,000 दिरम की सुपारी ली थी।</div></div><div class="x11i5rnm xat24cr x1mh8g0r x1vvkbs xtlvy1s x126k92a" style="background-color: white; color: #050505; font-family: "Segoe UI Historic", "Segoe UI", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; margin: 0.5em 0px 0px; overflow-wrap: break-word; white-space-collapse: preserve;"><div dir="auto" style="font-family: inherit;">कासिम के हमले के बाद बगदाद में जाटों ने 6 महीने रास्ता बंद कर दिया था।</div></div><div class="x11i5rnm xat24cr x1mh8g0r x1vvkbs xtlvy1s x126k92a" style="background-color: white; color: #050505; font-family: "Segoe UI Historic", "Segoe UI", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; margin: 0.5em 0px 0px; overflow-wrap: break-word; white-space-collapse: preserve;"><div dir="auto" style="font-family: inherit;">14वी सदी की कास्थानागर(काठा) जाटो की रियासत जो जमुना के किनारे थी। जिसका राज 300 साल तक चला । जिसका मुख्य केंद्र आज का काठा गांव बागपत में है। जहाँ किले के कुछ खंडर अभी भी दिख जाते है।</div></div><div class="x11i5rnm xat24cr x1mh8g0r x1vvkbs xtlvy1s x126k92a" style="background-color: white; color: #050505; font-family: "Segoe UI Historic", "Segoe UI", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; margin: 0.5em 0px 0px; overflow-wrap: break-word; white-space-collapse: preserve;"><div dir="auto" style="font-family: inherit;">जांगल देश में 1488 तक जाट सत्ता कायम थी।</div></div><div class="x11i5rnm xat24cr x1mh8g0r x1vvkbs xtlvy1s x126k92a" style="background-color: white; color: #050505; font-family: "Segoe UI Historic", "Segoe UI", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; margin: 0.5em 0px 0px; overflow-wrap: break-word; white-space-collapse: preserve;"><div dir="auto" style="font-family: inherit;">ये सब तो उस तथाकथित 300 साल से पुराना इतिहास है वो भी अभी पूरा नही बताया। अभी सिख और मौले जाट का रुतबा बाकि है ।</div></div><div class="x11i5rnm xat24cr x1mh8g0r x1vvkbs xtlvy1s x126k92a" style="background-color: white; color: #050505; font-family: "Segoe UI Historic", "Segoe UI", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; margin: 0.5em 0px 0px; overflow-wrap: break-word; white-space-collapse: preserve;"><div dir="auto" style="font-family: inherit;">जो भी बात बताई है।उनके सबके सबूत मौजूद है।</div></div><div class="x11i5rnm xat24cr x1mh8g0r x1vvkbs xtlvy1s x126k92a" style="background-color: white; color: #050505; font-family: "Segoe UI Historic", "Segoe UI", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; margin: 0.5em 0px 0px; overflow-wrap: break-word; white-space-collapse: preserve;"><div dir="auto" style="font-family: inherit;">बात यह है कि आप अपने इतिहास का जिक्र किसी को नीचा दिखाने के लिए न करे। बल्कि खुद को भरोसा दिलाए कि आप दुनिया का कोई भी मुश्किल काम करने की क्षमता रखते है। </div></div><div class="x11i5rnm xat24cr x1mh8g0r x1vvkbs xtlvy1s x126k92a" style="background-color: white; color: #050505; font-family: "Segoe UI Historic", "Segoe UI", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; margin: 0.5em 0px 0px; overflow-wrap: break-word; white-space-collapse: preserve;"><div dir="auto" style="font-family: inherit;">और भविष्य बायोटेक्नोलॉजी का है। तो सारा इतिहास जेनेटिक पर शिफ्ट हो रहा है। दूसरे समूहों से ऐतिहासिक बहस करके टकराव न करे।हर फील्ड में वर्तमान को बेहतर करने के लिए मेहनत,लगन,मजबूत माइंडसेट से जुट जाए।</div><div dir="auto" style="font-family: inherit;">वास्तविक जट्ट - Dinesh Singh Behniwal</div></div>Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2945230211619515819.post-56969485228861154922024-01-16T02:35:00.000-08:002024-01-16T02:35:26.733-08:00ANCIENT EGYPTIAN RELIGION AND INDIA'S CONSPIRATORIAL HISTORY: INDIAN INTELLECTUALS HAVE WRITTEN WRONG HISTORY<p> </p><p>तु अभी रह गुज़र में है क़ैद मुक़ाम से गुज़र </p><p>मिस्र व हेजाज़ से गुजर, पारस व शाम से गुज़र (इक़बाल) </p><p>हेजाज़ किसी देश का नाम नहीं है बल्कि हेजाज़ सऊदी अरब के जद्दह, मक्का, मदीना और तायफ के एलाक़ा को कहते है।इसी हेजाज़ से सातवी (7वी) शताब्दी के इस्लाम की तारीख़ वाबिस्तह है। </p><p>भारत मे सब से पहला मंदिर आठवी (8वी) शताब्दी मे बना जिस मे बोध गया का महाबोधी मंदिर (726 AD) है, जो आज नज़र आता है।अशोक के वक्त का वैशाली विरान है केवल "अशोक के लाट" के। अशोक के तक्षशिला और नालंदा विश्वविद्यालय का खंढर नज़र आता है। </p><p>जो भी पहला हिन्दू मंदिर भारत मे बना जैसे महाराष्ट्रा का अजंता-ऐलोरा (756-773) वह सब आठवीं शताब्दी के आखिर मे बना। उड़ीसा का कोणार्क या भुवनेश्वर का मंदिर जो आज नज़र आता है वह सब 12वी या 13वी शताब्दी मे बना। </p><p>दुनिया का सब से पुराना मंदिर मिस्र में 7000-8000 साल पहले बना जो आज भी मौजूद है।मिस्र का सब से पुराना मंदिर 2000 साल तक बनता रहा, जो नया राजा बनता था वह मंदिर का विस्तार करवाता था। </p><p>ईजिप्ट के राष्ट्रपति जमाल अबदूल नासीर ने जब 1956 मे मिस्र के आसवान मे नील नदी पर दुनिया का सब से बडा डैम बनाने का काम शुरू किया तो बनाते समय यह पता चला के 7,000 से भी पूराना कुछ संरचना (Structure) पानी मे चला जाये गा जिस मे सब से "विशाल संरचना" (huge structure) अबू सिम्बेल का मंदिर (Abu Simbel Temple) भी पानी के नज़र हो जाये गा। </p><p>राष्ट्रपति नासीर ने ग्रीस और मिस्र के इंजीनियर को बोला कर कहा हम हर किमत पर इस मंदिर (Structure) को बचाना चाहते हैं। इंजीनियर लोगो ने इस को वहॉ से किसी दूसरी ऊँची जगह पर स्थानांतरित (relocate at higher place) करने की सलाह दी।</p><div class="x11i5rnm xat24cr x1mh8g0r x1vvkbs xtlvy1s x126k92a" style="background-color: white; color: #050505; font-family: "Segoe UI Historic", "Segoe UI", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; margin: 0.5em 0px 0px; overflow-wrap: break-word; white-space-collapse: preserve;"><div dir="auto" style="font-family: inherit;">1964-68 मे करोड़ों डॉलर खर्च कर पूरी मंदिर को स्थानांतरित कर दिया गया जो आज भी "विशाल संरचना" के साथ आसवान डैम के करोड़ों विदेशी पर्यटक का मशहूर दार्शनिक जगह है (देखे नीचे पहली तसवीर)। </div></div><div class="x11i5rnm xat24cr x1mh8g0r x1vvkbs xtlvy1s x126k92a" style="background-color: white; color: #050505; font-family: "Segoe UI Historic", "Segoe UI", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; margin: 0.5em 0px 0px; overflow-wrap: break-word; white-space-collapse: preserve;"><div dir="auto" style="font-family: inherit;">मुस्लिम मंदिर 20वी सदी मे भी नही तोडा तो मुग़ल कैसे 17वी शताब्दी मे मंदिर तोड़ता? यह सच्चाई शोध का विषय है न की आस्था का।</div></div><p>By: <span style="color: var(--primary-text); font-family: inherit; font-size: 1.25rem; font-weight: 700;">Mohammed Seemab Zaman</span></p>Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2945230211619515819.post-3858645626034416082024-01-14T08:33:00.000-08:002024-01-14T08:33:08.643-08:00100 facts about Jats<p>स्वयं को महान् कहने से कोई महान् नहीं बनता । महान् किसी भी व्यक्ति व कौम को उसके महान् कारनामे बनाते हैं और उन कारनामों को दूसरे लोगों को देर-सवेर स्वीकार करना ही पड़ता है। देव-संहिता को लिखने वाला कोई जाट नहीं था, बल्कि एक ब्राह्मणवादी था जिसके हृदय में इन्सानियत थी उसने इस सच्चाई को अपने हृदय की गहराई से शंकर और पार्वती के संवाद के रूप में बयान किया कि जब पार्वती ने शंकर जी से पूछा कि ये जाट कौन हैं, तो शंकर जी ने इसका उत्तर इस प्रकार दिया -</p><p>महाबला महावीर्या महासत्यपराक्रमाः |</p><p>सर्वांगे क्षत्रिया जट्टा देवकल्पा दृढ़व्रताः ||15||</p><p>(देव संहिता)</p><p><br /></p><p>अर्थात् - जाट महाबली, अत्यन्त वीर्यवान् और प्रचण्ड पराक्रमी हैं । सभी क्षत्रियों में यही जाति सबसे पहले पृथ्वी पर शासक हुई । ये देवताओं की भांति दृढ़ निश्चयवाले हैं । इसके अतिरिक्त विदेशी व स्वदेशी विद्वानों व महान् कहलाए जाने वाले महापुरुषों की जाट कौम के प्रति समय-समय पर दी गई अपनी राय और टिप्पणियां हैं जिन्हें कई पुस्तकों से संग्रह किया गया है लेकिन अधिकतर टिप्पणियां अंग्रेजी की पुस्तक हिस्ट्री एण्ड स्टडी ऑफ दी जाट्स से ली गई है जो कनाडावासी प्रो० बी.एस. ढ़िल्लों ने विदेशी पुस्तकालयों की सहायता लेकर लिखी है -</p><p><br /></p><p>1. इतिहासकार मिस्टर स्मिथ - राजा जयपाल एक महान् जाट राजा थे । इन्हीं का बेटा आनन्दपाल हुआ जिनके बेटे सुखपाल राजा हुए जिन्होंने मुस्लिम धर्म अपनाया और ‘नवासशाह’ कहलाये । (यही शाह मुस्लिम जाटों में एक पदवी प्रचलित हुई । भटिण्डा व अफगानिस्तान का शाह राज घराना इन्हीं के वंशज हैं - लेखक) ।</p><p><br /></p><p>2. बंगला विश्वकोष - पूर्व सिंध देश में जाट गणेर प्रभुत्व थी । अर्थात् सिंध देश में जाटों का राज था ।</p><p><br /></p><p>3. अरबी ग्रंथ सलासीलातुत तवारिख - भारत के नरेशों में जाट बल्हारा नरेश सर्वोच्च था । इसी सम्राट् से जाटों में बल्हारा गोत्र प्रचलित हुआ - लेखक ।</p><p><br /></p><p>4. स्कैंडनेविया की धार्मिक पुस्तक एड्डा - यहां के आदि निवासी जाट (जिट्स) पहले आर्य कहे जाते थे जो असीगढ़ के निवासी थे ।</p><p><br /></p><p>5. यात्री अल बेरूनी - इतिहासकार - मथुरा में वासुदेव से कंस की बहन से कृष्ण का जन्म हुआ । यह परिवार जाट था और गाय पालने का कार्य करता था ।</p><p><br /></p><p>6. लेखक राजा लक्ष्मणसिंह - यह प्रमाणित सत्य है कि भरतपुर के जाट कृष्ण के वंशज हैं ।</p><p><br /></p><p>इतिहास के संक्षिप्त अध्ययन से मेरा मानना है कि कालान्तर में यादव अपने को जाट कहलाये जिनमें एकजुट होकर लड़ने और काम करने की प्रवृत्ति थी और अहीर जाति का एक बड़ा भाग अपने को यादव कहने लगा । आज भी भारत में बहुत अहीर हैं जो अपने को यादव नहीं मानते और गवालावंशी मानते हैं ।</p><p><br /></p><p>7. मिस्टर नैसफिल्ड - The Word Jat is nothing more than modern Hindi Pronunciation of Yadu or Jadu the tribe in which Krishna was born. अर्थात् जाट कुछ और नहीं है बल्कि आधुनिक हिन्दी यादू-जादु शब्द का उच्चारण है, जिस कबीले में श्रीकृष्ण पैदा हुए।</p><p><br /></p><p>दूसरा बड़ा प्रमाण है कि कृष्ण जी के गांव नन्दगांव व वृन्दावन आज भी जाटों के गांव हैं । ये सबसे बड़ा भौगोलिक और सामाजिक प्रमाण है । (इस सच्चाई को लेखक ने स्वयं वहां जाकर ज्ञात किया ।)</p><p><br /></p><p>8. इतिहासकार डॉ० रणजीतसिंह - जाट तो उन योद्धाओं के वंशज हैं जो एक हाथ में रोटी और दूसरे हाथ में शत्रु का खून से सना हुआ मुण्ड थामते रहे ।</p><p><br /></p><p>9. इतिहासकार डॉ० धर्मचन्द्र विद्यालंकार - आज जाटों का दुर्भाग्य है कि सारे संसार की संस्कृति को झकझोर कर देने वाले जाट आज अपनी ही संस्कृति को भूल रहे हैं ।</p><p><br /></p><p>10. इतिहासकार डॉ० गिरीशचन्द्र द्विवेदी - मेरा निष्कर्ष है कि जाट संभवतः प्राचीन सिंध तथा पंजाब के वैदिक वंशज प्रसिद्ध लोकतान्त्रिक लोगों की संतान हैं । ये लोग महाभारत के युद्ध में भी विख्यात थे और आज भी हैं ।</p><p><br /></p><p>11. स्वामी दयानन्द महाराज आर्यसमाज के संस्थापक ने जाट को जाट देवता कहकर अपने प्रसिद्ध ग्रंथ सत्यार्थप्रकाश में सम्बोधन किया है । देवता का अर्थ है देनेवाला । उन्होंने कहा कि संसार में जाट जैसे पुरुष हों तो ठग रोने लग जाएं ।</p><p><br /></p><p>12. प्रसिद्ध राजनीतिज्ञ तथा हिन्दू विश्वविद्यालय बनारस के संस्थापक महामहिम मदन मोहन मालवीय ने कहा - जाट जाति हमारे राष्ट्र की रीढ़ है । भारत माता को इस वीरजाति से बड़ी आशाएँ हैं । भारत का भविष्य जाट जाति पर निर्भर है ।</p><p><br /></p><p>13. दीनबन्धु सर छोटूराम ने कहा - हे ईश्वर, जब भी कभी मुझे दोबारा से इंसान जाति में जन्म दे तो मुझे इसी महान् जाट जाति के जाट के घर जन्म देना ।</p><p><br /></p><p>14. मुस्लिमों के पैगम्बर हजरत मुहम्मद साहब ने कहा - ये बहादुर जाट हवा का रुख देख लड़ाई का रुख पलट देते हैं । (सलमान सेनापतियों ने भी इनकी खूब प्रतिष्ठा की इसका वर्णन मुसलमानों की धर्मपुस्तक हदीस में भी है - लेखक) ।</p><p><br /></p><p>15. हिटलर (जो स्वयं एक जाट थे), ने कहा - मेरे शरीर में शुद्ध आर्य नस्ल का खून बहता है । (ये वही जाट थे जो वैदिक संस्कृति के स्वस्तिक चिन्ह (卐) को जर्मनी ले गये थे - लेखक)।</p><p><br /></p><p>16. कर्नल जेम्स टॉड राजस्थान इतिहास के रचयिता ।</p><p>(i): उत्तरी भारत में आज जो जाट किसान खेती करते पाये जाते हैं ये उन्हीं जाटों के वंशज हैं जिन्होंने एक समय मध्य एशिया और यूरोप को हिलाकर रख दिया था ।</p><p>(ii): राजस्थान में राजपूतों का राज आने से पहले जाटों का राज था ।</p><p>(iii): युद्ध के मैदान में जाटों को अंग्रेज पराजित नहीं कर सके ।</p><p>(iv): ईसा से 500 वर्ष पूर्व जाटों के नेता ओडिन ने स्कैण्डेनेविया में प्रवेश किया।</p><p>(v): एक समय राजपूत जाटों को खिराज (टैक्स) देते थे ।</p><p><br /></p><p>17. यूनानी इतिहासकार हैरोडोटस ने लिखा है</p><p>(i) There was no nation in the world equal to the jats in bravery provided they had unity अर्थात्- संसार में जाटों जैसा बहादुर कोई नहीं बशर्ते इनमें एकता हो । (यह इस प्रसिद्ध यूनानी इतिहासकार ने लगभग 2500 वर्ष पूर्व में कहा था । इन दो लाइनों में बहुत कुछ है । पाठक कृपया इसे फिर एक बार पढें । यह जाटों के लिए मूलमंत्र भी है – लेखक )</p><p>(ii) जाट बहादुर रानी तोमरिश ने प्रशिया के महान राजा सायरस को धूल चटाई थी ।</p><p>(iii) जाटों ने कभी निहत्थों पर वार नहीं किया ।</p><p><br /></p><p>18. महान् सम्राट् सिकन्दर जब जाटों के बार-बार आक्रमणों से तंग आकर वापिस लौटने लगे तो कहा- इन खतरनाक जाटों से बचो ।</p><p><br /></p><p>19. एक पम्पोनियस नाम के प्राचीन इतिहासकार ने कहा - जाट युद्ध तथा शत्रु की हत्या से प्यार करते हैं ।</p><p><br /></p><p>20. हमलावर तैमूरलंग ने कहा - जाट एक बहुत ही ताकतवर जाति है, शत्रु पर टिड्डियों की तरह टूट पड़ती है, इन्होंने मुसलमानों के हृदय में भय उत्पन्न कर दिया।</p><p><br /></p><p>21. हमलावर अहमदशाह अब्दाली ने कहा - जितनी बार मैंने भारत पर आक्रमण किया, पंजाब में खतरनाक जाटों ने मेरा मुकाबला किया । आगरा, मथुरा व भरतपुर के जाट तो नुकीले काटों की तरह हैं ।</p><p><br /></p><p>22. एक प्रसिद्ध अंग्रेज मि. नेशफील्ड ने कहा - जाट एक बुद्धिमान् और ईमानदार जाति है ।</p><p><br /></p><p>23. इतिहासकार सी.वी. वैद ने लिखा है - जाट जाति ने अपनी लड़ाकू प्रवृत्ति को अभी तक कायम रखा है । (जाटों को इस प्रवृत्ति को छोड़ना भी नहीं चाहिए, यही भविष्य में बुरे वक्त में काम भी आयेगी - लेखक)</p><p><br /></p><p>24. भारतीय इतिहासकार शिवदास गुप्ता - जाटों ने तिब्बत,यूनान, अरब, ईरान, तुर्कीस्तान, जर्मनी, साईबेरिया, स्कैण्डिनोविया, इंग्लैंड, ग्रीक, रोम व मिश्र आदि में कुशलता, दृढ़ता और साहस के साथ राज किया । और वहाँ की भूमि को विकासवादी उत्पादन के योग्य बनाया था । (प्राचीन भारत के उपनिवेश पत्रिका अंक 4.5 1976)</p><p><br /></p><p>25. महर्षि पाणिनि के धातुपाठ (अष्टाध्यायी) में - जट झट संघाते - अर्थात् जाट जल्दी से संघ बनाते हैं । (प्राचीनकाल में खेती व लड़ाई का कार्य अकेले व्यक्ति का कार्य नहीं था इसलिए यह जाटों का एक स्वाभाविक गुण बन गया - लेखक)</p><p><br /></p><p>26. चान्द्र व्याकरण में - अजयज्जट्टो हूणान् अर्थात् जाटों ने हूणों पर विजय पाई ।</p><p><br /></p><p>27. महर्षि यास्क - निरुक्त में - जागर्ति इति जाट्यम् - जो जागरूक होते हैं वे जाट कहलाते हैं ।</p><p>जटायते इति जाट्यम् - जो जटांए रखते हैं वे जाट कहलाते हैं ।</p><p><br /></p><p>28. अंग्रेजी पुस्तक Rise of Islam - गणित में शून्य का प्रयोग जाट ही अरब से यूरोप लाये थे । यूरोप के स्पेन तथा इटली की संस्कृति मोर जाटों की देन थी ।</p><p><br /></p><p>29. अंग्रेजी पुस्तक Rise of Christianity - यूरोप के चर्च नियमों में जितने भी सुधार हुए वे सभी मोर जाटों के कथोलिक धर्म अपनाये जाने के बाद हुए, जैसे कि पहले विधवा को पुनः विवाह करने की अनुमति नहीं थी आदि-आदि । मोर जाटों को आज यूरोप में ‘मूर बोला जाता है – लेखक ।</p><p><br /></p><p>30. दूसरे विश्वयुद्ध में जर्मनी की हार पर जर्मन जनरल रोमेल ने कहा- काश, जाट सेना मेरे साथ होती । (वैसे जाट उनके साथ भी थे, लेकिन सहयोगी देशों की सेना की तुलना में बहुत कम थे</p><p>- लेखक)</p><p><br /></p><p>31. सुप्रसिद्ध अंग्रेज योद्धा जनरल एफ.एस. यांग - जाट सच्चे क्षत्रिय हैं । ये बहादुरी के साथ-साथ सच्चे, ईमानदार और बात के धनी हैं ।</p><p><br /></p><p>32. महाराजा कृष्णसिंह भरतपुर नरेश ने सन् 1925 में पुष्कर में कहा - मुझे इस बात पर अभिमान है कि मेरा जन्म संसार की एक महान् और बहादुर जाति में हुआ ।</p><p><br /></p><p>33. महाराजा उदयभानुसिंह धोलपुर नरेश ने सन् 1930 में कहा- मुझे पूरा अभिमान है कि मेरा जन्म उस महान् जाट जाति में हुआ जो सदा बहादुर, उन्नत एवं उदार विचारों वाली है । मैं अपनी प्यारी जाति की जितनी भी सेवा करूँगा उतना ही मुझे सच्चा आनन्द आयेगा ।</p><p>34. डॉ. विटरेशन ने कहा - जाटों में चालाकी और धूर्तता,योग्यता की अपेक्षा बहुत कम होती है ।</p><p><br /></p><p>35. मेजर जनरल सर जॉन स्टॉन (मणिपुर रजिडेंट) ने अपने एक जाट रक्षक के बारे में कहा था - ये जाट लोग पता नहीं किस मिट्टी से बने हैं, थकना तो जानते ही नहीं ।</p><p><br /></p><p>36. अंग्रेज हर प्रकार की कोशिशों के बावजूद चार महीने लड़ाई लड़कर भी भरतपुर को विजय नहीं कर पाये तो लार्ड लेकेक ने लिखा है - हमारी स्थिति यह है कि मार करने वाली सभी तोपें बेकार हो गई हैं और भारी गोलियाँ पूर्णतः समाप्त हो गई हैं । हमारे एक तिहाई अधिकारी व सैनिक मारे जा चुके हैं । जाटों को जीतना असम्भव लगता है ।</p><p>उस समय वहाँ की जनता में यह दोहा गाया जाता था-</p><p><br /></p><p>यही भरतपुर दुर्ग है, दूसह दीह भयंकार |</p><p>जहाँ जटन के छोकरे, दीह सुभट पछार ||</p><p><br /></p><p>37. बूंदी रियासत के महाकवि ने महाराजा सूरजमल के बारे में एक बार यह दोहा गाया था -</p><p>सहयो भले ही जटनी जाय अरिष्ट अरिष्ट |</p><p>जापर तस रविमल्ल हुवे आमेरन को इष्ट ||</p><p>अर्थात् जाटनी की प्रसव पीड़ा बेकार नहीं गई, उसने ऐसे प्रतापी राजा तक को जन्म दिया जिसने आमेर व जयपुर वालों की भी रक्षा की (यह बात महाराजा सूरजमल के बारे में कही गई थी जब उन्होंने आमेर व जयपुर राजपूत राजाओं की रक्षा की) ।</p><p><br /></p><p>38. इतिहासकार डॉ० जे. एन. सरकार ने सूरजमल के बारे में लिखा है - यह जाटवंश का अफलातून राजा था ।</p><p><br /></p><p>39. इतिहासकार डी.सी. वर्मा:- महाराजा सूरजमल जाटों के प्लेटो थे।</p><p><br /></p><p>40. बादशाह आलमगीर द्वितीय ने महाराजा सूरजमल के बारे में अब्दाली को लिखा था - जाट जाति जो भारत में रहती है, वह और उसका राजा इतना शक्तिशाली हो गया है कि उसकी खुली खुलती है और बंधी बंधती है ।</p><p><br /></p><p>41. कर्नल अल्कोट - हमें यह कहने का अधिकार है कि 4000 ईसा पूर्व भारत से आने वाले जाटों ने ही मिश्र (इजिप्ट) का निर्माण किया ।</p><p><br /></p><p>42. यूरोपीयन इतिहासकार मि० टसीटस ने लिखा है - जर्मन लोगों को प्रातः उठकर स्नान करने की आदत जाटों ने डाली । घोड़ों की पूजा भी जाटों ने स्थानीय जर्मन लोगों को सिखलाई । घोड़ों की सवारी जाटों की मनपसंद सवारी है ।</p><p><br /></p><p>43. तैमूर लंग - घोड़े के बगैर जाट, बगैर शक्ति का हो जाता है । (हमें याद है आज से लगभग 50 वर्ष पहले तक हर गाँव में अनेक घोडे, घोड़ियाँ जाटों के घरों में होती थीं । अब भी पंजाब व हरयाणा में जाटों के अपने घोड़े पालने के फार्म हैं - लेखक)</p><p><br /></p><p>44. भारतीय सेना के ले० जनरल के. पी. कैण्डेय ने सन् 1971 के युद्ध के बाद कहा था - अगर जाट न होते तो फाजिल्का का भारत के मानचित्र में नामोनिशान न रहता ।</p><p><br /></p><p>45. इसी लड़ाई (सन् 1971) के बाद एक पाकिस्तानी मेजर जनरल ने कहा था - चौथी जाट बटालियन का आक्रमण भयंकर था जिसे रोकना उसकी सेना के बस की बात नहीं रही । (पूर्व कप्तान हवासिंह डागर गांव कमोद जिला भिवानी (हरयाणा) जो 4 बटालियन की इस लड़ाई में थे, ने बतलाया कि लड़ाई से पहले बटालियन कमाण्डर ने भरतपुर के जाटों का इतिहास दोहराया था जिसमें जाट मुगलों का सिहांसन और लाल किले के किवाड़ तक उखाड़ ले गये थे । पाकिस्तानी अफसर मेजर जनरल मुकीम खान पाकिस्तानी दसवें डिवीजन के कमांडर थे ।)</p><p><br /></p><p>46. भूतपूर्व राष्ट्रपति जाकिर हुसैन ने जाट सेण्टर बरेली में भाषण दिया - जाटों का इतिहास भारत का इतिहास है और जाट रेजिमेंट का इतिहास भारतीय सेना का इतिहास है । पश्चिम में फ्रांस से पूर्व में चीन तक ‘जाट बलवान्-जय भगवान्’ का रणघोष गूंजता रहा है ।</p><p><br /></p><p>47. विख्यात पत्रकार खुशवन्तसिंह ने लिखा है - (i) "The Jat was born worker and warrior. He tilled his land with his sword girded round his waist. He fought more battles for the defence for his homestead than other Khashtriyas" अर्थात् जाट जन्म से ही कर्मयोगी तथा लड़ाकू रहा है जो हल चलाते समय अपनी कमर से तलवार बांध कर रखता था। किसी भी अन्य क्षत्रिय से उसने मातृभूमि की ज्यादा रक्षा की है । (ii) पंचायती संस्था जाटों की देन है और हर जाटों का गांव एक छोटा गणतन्त्र है ।</p><p><br /></p><p>48. जब 25 दिसम्बर 1763 को जाट प्रतापी राजा सूरजमल शाहदरा में धोखे से मारे गये तो मुगलों को विश्वास ही नहीं हुआ और बादशाह शाहआलम द्वितीय ने कहा - जाट मरा तब जानिये जब तेरहवीं हो जाये । (यह बात विद्वान् कुर्क ने भी कही थी ।)</p><p><br /></p><p>49. टी.वी History Channel ने एक दिन द्वितीय विश्वयुद्ध के इतिहास को दोहराते हुए दिखलाया था कि जब सन् 1943 में फ्रांस पर जर्मनी का कब्जा था तो जुलाई 1943 में सहयोगी सेनाओं ने फ्रांस में जर्मन सेना पर जबरदस्त हमला बोल दिया तो जर्मन सेना के पैर उखड़ने लगे । एक जर्मन एरिया कमांडर ने अपने सैट से अपने बड़े अधिकारी को यह संदेश भेजा कि ज्यादा से ज्यादा गुट्ठा सैनिकों की टुकड़ियाँ भेजो । जब उसे यह मदद नहीं मिली तो वह अपनी गिरफ्तारी के डर में स्वास्तिक निशानवाले झण्डे को सेल्यूट करके स्वयं को गोली मार लेता है । याद रहे जर्मनी में जाटों को गुट्टा के उच्चारण से ही बोला जाता है । - (लेखक)</p><p><br /></p><p>50. एक बार अलाउद्दीन ने देहली के कोतवाल से कहा था - इन जाटों को नहीं छेड़ना चाहिए । ये बहादुर लोग ततैये के छत्ते की तरह हैं, एक बार छिड़ने पर पीछा नहीं छोड़ते हैं ।</p><p><br /></p><p>51. इतिहासकार मो० इलियट ने लिखा है - जाट वीर जाति सदैव से एकतंत्री शासन सत्ता की विरोधी रही है तथा ये प्रजातंत्री हैं ।</p><p><br /></p><p>52. संत कवि गरीबदास - जाट सोई पांचों झटकै, खासी मन ज्यों निशदिन अटकै । (जो पाँचों इन्द्रियों का दमन करके, बुरे संकल्पों से दूर रहकर भक्ति करे, वास्तव में जाट है ।</p><p><br /></p><p>53. महान् इतिहासकार कालिकारंजन कानूनगो -</p><p>(क) एक जाट वही करता है जो वह ठीक समझता है । (इसी कारण जाट अधिकारियों को अपने उच्च अधिकारियों से अनबन का सामना करना पड़ता है - लेखक)</p><p>(ख) जाट एक ऐसी जाति है जो इतनी अधिक व्यापक और संख्या की दृष्टि से इतनी अधिक है कि उसे एक राष्ट्र की संज्ञा प्रदान की जा सकती है ।</p><p>(ग) ऐतिहासिक काल से जाट बिरादरी हिन्दू समाज के अत्याचारों से भागकर निकलने वाले लोगों को शरण देती आई, उसने दलितों और अछूतों को ऊपर उठाया है । उनको समाज में सम्मानित स्थान प्रदान कराया है। (लेकिन ब्राह्मणवाद तो यह प्रचार करता रहा कि शूद्र वर्ग का शोषण जाटों ने किया - लेखक)</p><p>(घ) हिन्दुओं की तीनों बड़ी जातियों में जाट कौम वर्तमान में सबसे बेहतर पुराने आर्य हैं।</p><p><br /></p><p>54. महान् इतिहासकार ठाकुर देशराज - जाटों को मुगलों ने परखा, पठानों ने इनकी चासनी ली, अंग्रेजों ने पैंतरे देखे और इन्होंने फ्रांस एवं जर्मनी की भूमि पर बाहदुरी दिखाकर सिद्ध किया कि जाट महान् क्षत्रिय हैं ।</p><p><br /></p><p>55. पं० इन्द्र विद्यावाचस्पति- जाटों को प्रेम से वश में करना जैसा सरल है, आँख दिखाकर दबाना उतना ही कठिन है ।</p><p><br /></p><p>56. कवि शिवकुमार प्रेमी -</p><p>जाट जाट को मारता यही है भारी खोट ||</p><p>ये सारे मिल जायें तो अजेय इनका कोट ||</p><p>(कोट का अर्थ किला)</p><p>इसीलिए तो कहा जाता है - जाटड़ा और काटड़ा अपने को मारता है । (लेखक)</p><p><br /></p><p>57. विद्वान् विलियम क्रूक -</p><p>(i) जाट विभिन्न धार्मिक संगठनों व मतों के अनुयायी होने पर भी जातीय अभिमान से ओतप्रोत हैं । भूमि के सफल जोता, क्रान्तिकारी, मेहनती जमीदार तथा युद्ध योद्धा हैं ।</p><p>(इसीलिए तो जाटों या जट्टों के लड़के अपनी गाड़ियों के पीछे लिखवाते हैं - ‘जट्ट दी गड्डी’, ‘जाट की सवारी’ ‘जहाँ जाट वहाँ ठाठ’, ‘जाट के ठाठ’ तथा ‘Jat Boy’ आदि-आदि - लेखक ।</p><p><br /></p><p>(ii) स्पेन, गाल, जटलैण्ड, स्काटलैण्ड और रोम पर जाटों ने फतेह कर बस्तियां बसाई ।</p><p><br /></p><p>58. विद्वान् ए.एच. बिगले - जाट शब्द की व्याख्या करने की आवश्यकता नहीं है । यह ऋग्वेद, पुराण और मनुस्मृति आदि अत्यन्त प्राचीन ग्रन्थों से स्वतः सिद्ध है । यह तो वह वृक्ष है जिससे समय-समय पर जातियों की उत्पनि हुई ।</p><p><br /></p><p>59. विद्वान् कनिंघम - प्रायः देखा गया है कि जाट के मुकाबले राजपूत विलासप्रिय, भूस्वामी गुजर और मीणा सुस्त अथवा गरीब, कास्तकार तथा पशुपालन के स्वाभाविक शोकीन, पशु चराने में सिद्धहस्त हैं, जबकि जाट मेहनती जमीदार तथा पशुपालक हैं ।</p><p><br /></p><p>60. विख्यात इतिहासकार यदुनाथ सरकार - जाट समाज में जाटनियां परिश्रम करना अपना राष्ट्रीय धर्म समझती हैं, इसलिए वे सदैव जाटों के साथ कन्धे से कन्धा मिलाकर कार्य करती हैं । वे आलसी जीवन के प्रति मोह नहीं रखती ।</p><p><br /></p><p>61. प्राचीन इतिहासकार मनूची - जाटनियां राजनैतिक रंगमंच पर समान रूप से उत्तरदायित्व निभाती हैं । खेत में व रणक्षेत्र में अपने पति का साथ देती हैं और आपातकाल के समय अपने धर्म की रक्षा में प्रोणोर्त्सग (प्राणत्याग) करना अपना पवित्र धर्म समझती हैं ।</p><p><br /></p><p>62. जैक्मो फ्रांसी इतिहासकार व यात्री लिखता है – महाराजा रणजीतसिंह पहला भारतीय है जो जिज्ञासावृत्ति में सम्पूर्ण राजाओं से बढ़ाचढ़ा है । वह इतना बड़ा जिज्ञासु कहा जाना चाहिए कि मानो अपनी सम्पूर्ण जाति की उदासीनता को वह पूरा करता है । वह असीम साहसी शूरवीर है । उसकी बातचीत से सदा भय सा लगता है। उन्होंने अपनी किसी विजययात्रा में कहीं भी निर्दयता का व्यवहार नहीं किया ।</p><p><br /></p><p>63. यूरोपीय यात्री प्रिन्सेप - एक अकले आदमी द्वारा इतना विशाल राज्य इतने कम अत्याचारों से कभी स्थापित नहीं किया गया । अद्भुत वीरता, धीरता, शूरता में समकालीन सभी भारतीय नरेशों के शिरमौर थे । दूसरे शब्दों में पंजाबकेसरी महाराजा रणजीतसिंह भारत का नैपोलियन था।</p><p><br /></p><p>64. महान् इतिहासकार उपेन्द्रनाथ शर्मा - जाट जाति करोड़ों की संख्या में प्रगितिशील उत्पादक और राष्ट्ररक्षक सैनिक के रूप में विशाल भूखण्ड पर बसी हुई है। इनकी उत्पदाक भूमि स्वयं एक विशाल राष्ट्र का प्रतीक है ।</p><p><br /></p><p>65. विद्वान् सर डारलिंग - ‘‘सारे भारत में जाटों से अच्छी ऐसी कोई जाति नहीं है जिसके सदस्य एक साथ कर्मठ किसान और जीवंत जवान हों।’’</p><p><br /></p><p>66. महान् इतिहासकार सर हर्बट रिसले - जाट और राजपूत ही वैदिक आर्यों के वास्तविक उत्तराधिकारी हैं ।</p><p><br /></p><p>67. फील्ड मार्शल माउंट गुमरी - “Jat is true soldier. I will be happy to die with dignity amongst Jats Regt. My soul will be bless with peace.” अर्थात् ‘‘जाट एक सच्चा सैनिक है । मुझे खुशी होगी यदि मैं जाटों के बीच रहकर इज्जत से मर जांऊ ताकि मेरी आत्मा को शान्ति मिल सके ।”</p><p><br /></p><p>68. अंग्रेज प्रमुख जनरल ओचिनलैक (बाद में फील्ड मार्शल) - ‘‘If things looked back and danger threatened I would ask nothing better than to have Jats beside me in the face of the enemy” अर्थात “हालात बिगड़ते हैं और खतरा आता है तो जाटों को साथ रखने से बेहतर और कुछ नहीं होगा ताकि मैं दुश्मन से लड़ सकूं ।”</p><p><br /></p><p>69. क्रान्तिदर्शी राजा महेन्द्रप्रताप - “हमारी जाति बहादुर है । देश के लिए समर्पित कौम है । चाहे खेत हो या सीमा । धरतीपुत्र जाटों पर मुझे नाज़ है ।”</p><p><br /></p><p>70. पं. जवाहरलाल नेहरू - ‘‘दिल्ली के आसपास चारों ओर जाट एक ऐसी महान् बहादुर कौम बसती है, वह यदि आपस में मिल जाये और चाहे तो दिल्ली पर कब्जा कर सकती है ।”</p><p>(यह पंडित नेहरू ने सन् 1947 से पहले कहा था, लेकिन पंडित जी देश आजाद होने के बाद जाटों को भूल गये और उन्होंने अपने जीते जी कभी किसी हिन्दू जाट को केन्द्रीय सरकार में किसी भी मंत्री पद पर फटकने नहीं दिया - लेखक)</p><p><br /></p><p>71. स्वामी ओमानन्द सरस्वती तथा वेदव्रत्त शास्त्री - (देशभक्तों के बलिदान ग्रंथ में) - ‘‘ईरान से लेकर इलाहाबाद तक जाटों के वीरत्व व बलिदानों का इतिहास चप्पे-चप्पे पर बिखरा पड़ा है । क्या कभी कोई माई का लाल इनका संग्रह कर पाएगा ? काश ! जाट तलवार की तरह कलम का भी धनी होता।”</p><p><br /></p><p>72. डॉ० बी.एस. दहिया ने अपनी पुस्तक Jats- The Ancient Rulers अर्थात्- ‘‘जाट प्राचीन शासक हैं’’ में लिखा है -‘‘There is no battle worth its name in The World History where the Jat Blood did not irrigate The Mother Earth’’ अर्थात्- ‘‘विश्व में ऐसी कोई भी लड़ाई नहीं हुई, जिसमें जाटों ने अपनी मातृभूमि के लिए खून न बहाया हो ।”</p><p>(काश ! यह देश और इस देश के इतिहासकार इसे समझ पाते- लेखक)</p><p><br /></p><p>73. विद्वान् इतिहासकार डॉ० धर्मकीर्ति -</p><p>(i) आगरा के ताजमहल और लाल किले को लूट ले जाना, सिकन्दरा में अकबर की कब्र के भवन और एत्माद्दौला की कब्र के ऐतिहासिक भवन में भूसा भरकर आग लगा देना, जिसके परिणामस्वरूप इन भवनों के काले पड़े हुए पत्थर आज भी (बौद्ध) जाटों के शौर्य की वीरगाथा गा रहे हैं ।</p><p>(ii) “वर्तमान जाट जाति को इस बात का गर्व से अनुभव करना चाहिए कि उनके पूर्वज बौद्ध नरेश असुवर्मा नेपाल के प्रसिद्ध राजा हो चुके हैं।” (इन्हीं विद्वान् ने सम्राट् कनिष्क से लेकर सम्राट् विजयनाग तक 17 बौद्ध जाट राजाओं का उनके काल तथा संसार में उनके राज्य क्षेत्र का वर्णन किया है - लेखक)</p><p><br /></p><p>74. विद्वान् मोरेरीसन - “The Jats and Rajputs of the Doab are descendents of the late Aryans” अर्थात् दोआबा के जाट और राजपूत आर्यों के वंशज हैं।</p><p><br /></p><p>75. विद्वान् नेशफिल्ड - “जाटों से राजपूत हो सकते हैं परन्तु राजपूतों से जाट कभी नहीं हो सकते हैं ।”</p><p><br /></p><p>76. प्रो० मैक्समूलर - “सारे भूमण्डल पर जाट रहते हैं और जर्मनी इन्हीं आर्य वीरों की भूमि है ।”</p><p><br /></p><p>77. इतिहासकार बलिदबिन अब्दुल मलिक - “अरब की हिफाजत के लिए हमने जाटों का सहारा लिया ।”</p><p><br /></p><p>78. सुल्तान मोहम्मद - “जाट कौम का डर मेरे ख्वाब में भी रहता है । इन्होंने मुझे कभी खिराज नहीं दिया ।”</p><p><br /></p><p>79. प्रो० बी. एस. ढिल्लों - “मोहम्मद गजनी ने जाटों को खुश करने के लिए साहू जाटों से अपनी बहिन का विवाह किया था ।” (पुस्तक - ‘हिस्ट्री एण्ड स्टडी ऑफ दी जाट’- मूलस्रोत - सर ए. कनिंघम) ।</p><p><br /></p><p>80. कैप्टन फॉलकॉन - (i) “The Jats are throughly independent in character and assert personal and indivisual freedom as against communal or tribal control more strongly than other people.” अर्थात् जाट चारित्रिक रूप से पूर्णतया आजाद होते हैं जो निजी तौर पर दूसरों की तुलना में साम्प्रदायिक विरोधी होते हैं । (ii) गोत्र प्रथा को कैनेडा, अमरीका व इंग्लैण्ड में बसने वाले जाट भी मानते हैं ।</p><p><br /></p><p>81. प्रो० पी.टी. ग्रीव - “जाट केवल भगवान के सामने ही अपने घुटनों को झुकाता है क्योंकि वह नेता होता है, अनुयायी नहीं ।”</p><p><br /></p><p>82. विद्वान् टॉलबोट राईस - “याद रहे चीन ने 1500 मील लम्बी और 35 फिट ऊंची दीवार जाटों से बचने के लिए ही बनाई थी ।”</p><p><br /></p><p>83. इतिहासकार जे.सी. मोर - “जाट वास्तव में हिन्दुओं की जाति नहीं है, यह एक नस्ल है।”</p><p><br /></p><p>84. विद्वान् डॉ० वाडिल - “गुट, गोट, गुट्टी, गुट्टा, गोटी और गोथ आदि जाटों के नाम के ही शाब्दिक उच्चारण के विभिन्न रूप हैं, जो मध्यपूर्व में महान् शासक हुए हैं ।”</p><p><br /></p><p>85. विद्वान् जनरल सर मैकमन - (i) जाट बहुत ताकतवर और कठिन परिश्रमी किसान हैं जो हाथ में हल लेकर पैदा होता है । (ii) जाटों ने हमेशा अपनी लड़ने की योग्यता को कायम रखा, इसी कारण प्रथम विश्वयुद्ध में केवल जाटों की छटी रेजीमेंट को रॉयल की उपाधि मिली ।</p><p><br /></p><p>86. विद्वान् लेनेन पूले - “गजनी ने अपने कमांडर नियालटगेन को पंजाब में तैनात किया तो जाट उसका सिर काट ले गए और वही सिर उन्होंने गजनी को चांदी के सैकड़ों-हजारों सिक्कों के बदले वापिस किया ।”</p><p><br /></p><p>87. विद्वान् ब्री० सर साईक्स - “आठवीं सदी के आरम्भ में बसरा-बगदाद की लड़ाई में जाटों ने खलीफा को हराया तो वहां के प्रसिद्ध जाट कवि टाबारी ने पर्सियन भाषा में इस प्रकार गाया-</p><p>(अंग्रेजी से हिन्दी में अनुवाद)</p><p>ओह ! बगदाद के लोग मर गए,</p><p>तुम्हारा साहस भी हमेशा के लिए ।</p><p>हम जाटों ने तुम्हें हराया,</p><p>हम तुम्हें लड़ने के लिए मैदान में घसीट लाए ।</p><p>हम जाट तुम्हें ऐसे खींच लाए,</p><p>जैसे पशुओं के झुंड से कमजोर पशु को ।</p><p><br /></p><p>88. विद्वान् मेजर बरस्टो - “जाटों की विशेषता है कि वे अपने गोत्र में शादी नहीं करते चाहे वह हिन्दू जाट हो या पंजाबी । क्योंकि जाट इसे व्यभिचार मानते हैं ।”</p><p><br /></p><p>89. डॉ० रिस्ले - “When Jat runs wild it needs God to hold him back अर्थात् यदि जाट बिगड़ जाए तो उसे भगवान ही काबू कर सकता है ।”</p><p><br /></p><p>90. रूसी इतिहासकार के.एम. सेफकुदरात ने अगस्त 1964 में मास्को में एक भाषण दिया जो भारतीय समाचार पत्रों में भी छपा था और उसने कहा “I studied the histories of various sects before I visited India in 1957. It was found that Jats live in an area extending from India to Central Asia and Central Europe. They are known by different names in different countries and they speak different languages but they are all one as regards their origin.”</p><p>अर्थात् “मैंने 1967 से पहले भारत की यात्रा करने से पहले इतिहास के विभिन्न पहलुओं का अध्ययन किया और पाया कि जाट भारत से मध्य एशिया और मध्य यूरोप तक रहते हैं वे अलग-अलग देशों में अलग-अलग नामों से जाने जाते हैं और वे भाषाएं भी अलग बोलते हैं । लेकिन उन सभी का निकास एक ही है ।” इसलिए जाट कौम एक ग्लोबल नस्ल है ।</p><p><br /></p><p>91. इतिहासकार डॉ० सुखीराम रावत (पलवल) - “राजा गज ने गजनी के पास वर्तमान में अफगानिस्तान में बामियान के पास बुद्ध का विश्वप्रसिद्ध स्तूप बनवाया जिसे तालिबानियों ने सन् 2001 में संसार के सभी देशों की परवाह न करते हुए डाइनामाइट से उड़वा दिया ।”</p><p><br /></p><p>92. इतिहासकार महीपाल आर्य (मतलौडा) - “चित्तौड़, उदयपुर, नेपाल तथा महाराष्ट्र में गहलौत जाटों का राज था । बप्पारावल, महाराणा प्रताप, छत्रपति शिवाजी तथा नेपाल के राणावंश नरेश सभी जाट योद्धा थे ।”</p><p><br /></p><p>93. चौ० ओमप्रकाश पत्रकार (रोहतक) - “मकौड़ा, घोड़ा और जठोड़ा पकड़ने पर कभी छोड़ते नहीं ।”</p><p><br /></p><p>94. चौ० ईश्वरसिंह गहलोत (विख्यात जाट गायक) - “आज भी काबुल चिल्ला रहा है, बंद करो फाटक रणजीत आ रहा है ।”</p><p><br /></p><p>95. पंजाब केसरी पत्र ने अपने धारावाहिक सम्पादकीय दिनांक 25.09.2002 को झूठा इतिहास - झूठे लोग में लिखा - “जाटों का इतिहास देख लें ! बड़ा ही गौरवपूर्ण इतिहास है ! इतना गौरवपूर्ण कि वैसा इतिहास खोजना मुश्किल हो जाए । इतिहासकारों</p><p>ने इसे इतना तरोड़-मरोड़ कर लिखा है कि जिसे शब्दों में व्यक्त करना मुश्किल है । क्या यह सब महज इत्तिफाक है ?”</p><p>(यह इतिफाक नहीं था, जाटों के इतिहास के साथ इसलिए हुआ कि पहले जाट बौद्धधर्मी थे और भारत का ब्राह्मणवाद बौद्ध धर्म का दुश्मन रहा जो स्वयं इतिहासकार थे, इसलिए ऐसा करना ही था । क्योंकि यदि भारत का सच्चा इतिहास सामने आयेगा तो ऐसे लोगों का गर्व-खर्व होना निश्चित है - लेखक) ।</p><p><br /></p><p>96. बी.बी.सी. लंदन (जयपुर संवाददाता) “जाट जब अपने असली रूप में आ जाये तो वह हिमालय को भी चीर सकता है । हिन्दमहासागर को भी पार कर सकता है । थार के रेगिस्तान में बसे करोड़ों धरतीपुत्रों ने रैली को रैला बनाकर हिन्दुस्तान की सत्ता को थर्रा दिया था और आज 20 अक्तूबर 1999 को राजस्थान सरकार को जाटों को ओ. बी. सी. का आरक्षण देना ही पड़ा ।” (क्या शेष भारत के जाट, जाट नहीं हैं ? रोजाना रैलियों में दौड़ते भागते रहते हैं अपने हक के लिए (आरक्षण के लिए) नहीं लड़ सकते हैं ? - लेखक)</p><p><br /></p><p>97. राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुधंरा राजे सिधिंया ने दिनांक 07.05.2004 को हांसी में संसद चुनाव में वोट मांगते हुए कहा- “मैं बहादुर जाटों की बहू हूँ इसलिए उनसे वोट मांगने का मेरा अधिकार है ।”</p><p><br /></p><p>98. गुर्जर इतिहास (पेज नं० 3, लेखक राणा अली हसन चौहान, पाकिस्तान) - “जाट शुद्ध आर्यों की जाति है ।”</p><p><br /></p><p>99. विख्यात फिल्म अभिनेता धर्मेन्द्र ने सन् 2005 में बिजनौर (उत्तर प्रदेश) की एक जनसभा में कहा- “मैं जाट जाति में पैदा होकर गौरव का अनुभव करता हूँ ।”</p><p><br /></p><p>100. लेखक - “जाट इतिहास कोई भंगेड़ियों, भगोड़ों व भाड़े का इतिहास नहीं, यह सच्चे वीरों का इतिहास है।” इन टिप्पणियों से यह स्पष्ट हो जाता है कि जाट जाति का चरित्र कैसा रहा है तथा यह कितनी महान् जाति रही ।</p><div><br /></div>Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2945230211619515819.post-60262136806935409182024-01-13T10:54:00.000-08:002024-01-13T10:54:22.924-08:00लोहड़ी दी बधाई<p> </p><div class="x11i5rnm xat24cr x1mh8g0r x1vvkbs xtlvy1s x126k92a" style="background-color: white; color: #050505; font-family: "Segoe UI Historic", "Segoe UI", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; margin: 0.5em 0px 0px; overflow-wrap: break-word; white-space-collapse: preserve;"><div dir="auto" style="font-family: inherit;">आज हम बात करते है <span style="font-family: inherit;"><a class="x1i10hfl xjbqb8w x6umtig x1b1mbwd xaqea5y xav7gou x9f619 x1ypdohk xt0psk2 xe8uvvx xdj266r x11i5rnm xat24cr x1mh8g0r xexx8yu x4uap5 x18d9i69 xkhd6sd x16tdsg8 x1hl2dhg xggy1nq x1a2a7pz xt0b8zv x1fey0fg xo1l8bm" href="https://www.facebook.com/hashtag/%E0%A4%A6%E0%A5%81%E0%A4%B2%E0%A5%8D%E0%A4%B2%E0%A4%BE_%E0%A4%AD%E0%A4%9F%E0%A5%8D%E0%A4%9F%E0%A5%80_%E0%A4%9C%E0%A4%9F%E0%A5%8D%E0%A4%9F?__eep__=6&__cft__[0]=AZW3BGohdjIjLpq6LK84heVbyMjlAhIQ-G_yepOJzgwp52_C7LLpiDAUMR8INSMjTz1YfITme_kEcqWs14-y6pwn6jiQnE2twFCU7dy5sVrmcJDY9ingM-pzw6pHJ-IOOXQ4vgNqtoKe4FwnI8UdzVFbwWL_l_QZUNyvbvPw9eQxxeKokB8DjWmbFkP6l9ct3pk&__tn__=*NK-R" role="link" style="-webkit-tap-highlight-color: transparent; background-color: transparent; border-color: initial; border-style: initial; border-width: 0px; box-sizing: border-box; cursor: pointer; display: inline; font-family: inherit; list-style: none; margin: 0px; outline: none; padding: 0px; text-align: inherit; text-decoration-line: none; touch-action: manipulation;" tabindex="0">#दुल्ला_भट्टी_जट्ट</a></span> की</div><div dir="auto" style="font-family: inherit;">जिसे <span style="font-family: inherit;"><a style="color: #385898; cursor: pointer; font-family: inherit;" tabindex="-1"></a></span>पंजाब के रॉबिनहुड्ड के नाम से जाना जाता है!</div></div><div class="x11i5rnm xat24cr x1mh8g0r x1vvkbs xtlvy1s x126k92a" style="background-color: white; color: #050505; font-family: "Segoe UI Historic", "Segoe UI", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; margin: 0.5em 0px 0px; overflow-wrap: break-word; white-space-collapse: preserve;"><div dir="auto" style="font-family: inherit;">दुल्ला भट्टी न होते तो लाहौर, लाहौर न होता. सलीम कभी जहांगीर न हो पाता. अकबर को भांड न बनना पड़ता. मिर्जा-साहिबा के किस्सों में संदल बार न आता. पंजाब वाले दुल्ले दी वार न गाते और जानो कि लोहड़ी भी न होती.</div><div dir="auto" style="font-family: inherit;">वाघा बॉर्डर से लगभग 200 किलोमीटर पार, पाकिस्तान के पंजाब में पिंडी भट्टियां है. (पिंडी भट्टिया जट्ट-मुस्लमानों का गांव हैं) वहीं लद्दी और फरीद जट्ट के यहां 1547 में हुए राय अब्दुल्ला खान, जिन्हें दुनिया अब दुल्ला भट्टी बुलाती है. जट्ट दुल्ला भट्टी के पैदा होने से चार महीने पहले ही उनके दादा संदल भट्टी और बाप को हुमायूं ने मरवा दिया था. खाल में भूसा भरवा के गांव के बाहर लटकवा दिया. वजह ये कि मुगलों को लगान देने से मना कर दिया था.</div><div dir="auto" style="font-family: inherit;">आज भी पंजाब वाले हुमायूं की बर्बरता के किस्से कहते हैं.</div><div dir="auto" style="font-family: inherit;">तेरा सांदल दादा मारया,</div><div dir="auto" style="font-family: inherit;">दित्ता बोरे विच पा,</div><div dir="auto" style="font-family: inherit;">मुगलां पुट्ठियां खालां ला के,</div><div dir="auto" style="font-family: inherit;">भरया नाल हवा</div><div dir="auto" style="font-family: inherit;">संदल भट्टी वो जिनके नाम पर नाम पड़ा था, संदल बार का. संदल बार जिसका जिक्र मिर्जा-साहिबा के किस्सों में आता है, पंजाब के लोकगीतों में आता है.</div><div dir="auto" style="font-family: inherit;">सुलतान बलाया साहिबां</div><div dir="auto" style="font-family: inherit;">ऐ की कीती कार,</div><div dir="auto" style="font-family: inherit;">गरम रजाइयां छोड़ के</div><div dir="auto" style="font-family: inherit;">तूं मिली संदल बार</div><div dir="auto" style="font-family: inherit;">तूं आख जबानी साहिबां</div><div dir="auto" style="font-family: inherit;">तैनू मारां कहरे तकरार</div><div dir="auto" style="font-family: inherit;">दुल्ला भट्टी उस जमाने के रॉबिनहुड थे. अकबर उन्हें डकैत मानता था. वो अमीरों से, अकबर के जमीदारों से, सिपाहियों से सामान लूटते. गरीबों में बांटते. अकबर की आंख की किरकिरी थे. इतना सताया कि अकबर को आगरे से राजधानी लाहौर शिफ्ट करनी पड़ी. लाहौर तब से पनपा है, तो आज तक बढ़ता गया. पर सच तो ये रहा कि हिंदुस्तान का शहंशाह दहलता था जट्ट दुल्ला भट्टी से.</div><div dir="auto" style="font-family: inherit;">जब कम उम्र के थे तब दुल्ला भट्टी को बाप-दादा का हश्र न पता था, कुछ बड़े हुए तो पता चला. पता न चलने की दो वजह बताते हैं. पहली ये कि मां ने नहीं बताई. दूसरी ये कि अकबर का बेटा जब पैदा हुआ. तो मरचुग्घा सा था. अकबर ने नजूमी बुलाए, उसने कहा कि इसे ऐसी किसी औरत का दूध पिलाओ जिसका बेटा सलीम की पैदाइश के दिन पैदा हुआ हो. वो औरत थी जट्टी लद्दी. सलीम की परवरिश लद्दी करती, सलीम और दुल्ला साथ ही रहते, इसलिए तब नहीं बताया. जब वापस लौटी तब बताया.</div><div dir="auto" style="font-family: inherit;">एक बार सलीम थोड़े से सैनिकों के साथ भटक रहा था. दुल्ला भट्टी ने पकड़ लिया. पर कुछ किया नहीं यूं ही छोड़ दिया. ये कहकर कि दुश्मनी बाप से है, बेटे से नहीं.</div><div dir="auto" style="font-family: inherit;">पाकिस्तान के पंजाब में कहानियां चलती हैं कि पकड़ा तो दुल्ला ने अकबर को भी था. जब पकड़ा गया तो अकबर ने कहा ‘भईया मैं तो शहंशाह हूं ही नहीं, मैं तो भांड हूं जी भांड.’ दुल्ला भट्टी ने उसे भी छोड़ दिया ये कहकर कि भांड को क्या मारूं, और अगर अकबर होकर खुद को भांड बता रहा है, तो मारने का क्या फायदा?</div><div dir="auto" style="font-family: inherit;">लोहड़ी का किस्सा-</div><div dir="auto" style="font-family: inherit;">ब्राह्मण सुंदरदास किसान था, उस दौर में जब संदल बार में मुगल सरदारों का आतंक था. उसकी दो बेटियां थीं सुंदरी और मुंदरी. गांव के नंबरदार की नीयत लडकियों पर ठीक नहीं थी. वो सुंदरदास को धमकाता बेटियों की शादी खुद से कराने को. सुंदरदास ने दुल्ला भट्टी से बात कही . दुल्ला भट्टी नंबरदार के गांव जा पहुंचा. उसके खेत जला दिए. लडकियों की शादी वहां की जहां ब्राह्मण सुंदरदास चाहता था. शगुन में शक्कर दी. वो दिन है और आज का दिन, लोहड़ी की रात को आग जलाकर लोहड़ी मनाई जाती है. जब फसल कट कर घर आती है. गेंहू की बालियां आग में डालते हैं. गाते हैं.</div><div dir="auto" style="font-family: inherit;">सुन्दर मुंदरिए </div><div dir="auto" style="font-family: inherit;">तेरा कौन विचारा</div><div dir="auto" style="font-family: inherit;">दुल्ला भट्टीवाला</div><div dir="auto" style="font-family: inherit;">होये!</div><div dir="auto" style="font-family: inherit;">जट्ट दुल्ला भट्टीवाला</div><div dir="auto" style="font-family: inherit;">दुल्ले दी धी व्याही</div><div dir="auto" style="font-family: inherit;">सेर शक्कर पायी</div><div dir="auto" style="font-family: inherit;">कुड़ी दा लाल पताका</div><div dir="auto" style="font-family: inherit;">कुड़ी दा सालू पाटा </div><div dir="auto" style="font-family: inherit;">सालू कौन समेटे</div><div dir="auto" style="font-family: inherit;">मामे चूरी कुट्टी</div><div dir="auto" style="font-family: inherit;">जिमींदारां लुट्टी</div><div dir="auto" style="font-family: inherit;">जमींदार सुधाए </div><div dir="auto" style="font-family: inherit;">गिन गिन पोले लाए</div><div dir="auto" style="font-family: inherit;">इक पोला घट गया</div><div dir="auto" style="font-family: inherit;">ज़मींदार वोहटी ले के नस गया</div><div dir="auto" style="font-family: inherit;">इक पोला होर आया</div><div dir="auto" style="font-family: inherit;">ज़मींदार वोहटी ले के दौड़ आया</div><div dir="auto" style="font-family: inherit;">सिपाही फेर के ले गया</div><div dir="auto" style="font-family: inherit;">सिपाही नूं मारी इट्ट</div><div dir="auto" style="font-family: inherit;">भावें रो ते भावें पिट्ट</div><div dir="auto" style="font-family: inherit;">साहनूं दे लोहड़ी </div><div dir="auto" style="font-family: inherit;">तेरी जीवे जोड़ी</div><div dir="auto" style="font-family: inherit;">साहनूं दे दाणे तेरे जीण न्याणे</div><div dir="auto" style="font-family: inherit;">सुन्दर मुंदरिए </div><div dir="auto" style="font-family: inherit;">तेरा कौन विचारा</div><div dir="auto" style="font-family: inherit;">दुल्ला भट्टीवाला</div><div dir="auto" style="font-family: inherit;">होये!</div><div dir="auto" style="font-family: inherit;">जट्ट दुल्ला भट्टीवाला</div><div dir="auto" style="font-family: inherit;">आपको बता दुँ! अकबर दुल्ला भट्टी को नीचा दिखाना चाहता था, मारना चाहता था, एक बार दरबार में बुलाया. ये कहकर कि बातें करेंगे, पर साजिश ये थी कि दुल्ला भट्टी का सिर अकबर के सामने झुकवा सकें. दुल्ला के आने का रास्ता ऐसा बनाया कि सिर झुका कर आना पड़े. पर दुल्ला भट्टी सिर काहे को झुकाएं? जहां सिर घुसाना था, वहां पहले पैर डाल दिए. अकबर की जगहंसाई हुई अलग.</div><div dir="auto" style="font-family: inherit;">कहते हैं अकबर की 12 हजार की सेना दुल्ला भट्टी को न पकड़ पाई थी, तो सन 1599 में धोखे से पकड़वाया. लाहौर में दरबार बैठा. आनन-फानन फांसी दे दी गई. कोतवाली में पूरे शहर के सामने.</div><div dir="auto" style="font-family: inherit;"> लोहड़ी तेहवार किसानों का प्रकृती खेत फसल के गुण गाये जाते है</div><div dir="auto" style="font-family: inherit;">Copied</div></div>Unknownnoreply@blogger.com0