पहली तो बात इन्होनें पूरे इतिहास को ही उलझा के रखा है; रामायण-महाभारत
के रचयिताओं, संरक्षकताओं और प्रचारकों व् इनको वैधानिक तौर पर सत्य बताने
वाली पीठों-सीटों-संस्थाओं (वैसे मुझे आजतक यही ही नहीं पता चला कि इन
मामलों पर सत्यता की मोहर लगाने वाली "फाइनल अथॉरिटी" है कौन हमारे धर्म
में) तक में एक मत नहीं कि इनका सही-सही काल रहा कौनसा| कोई इनको 5000 साल
तो कोई 100000 साल तो कोई 2000 साल तो कोई मेरे जैसा इनको मानवरचित कल्पना बताते हुए सातवीं-आठवीं सदी के इर्द-गिर्द लिखी हुई बताता है|
परन्तु राखी-गढ़ी में मिले यह नर-कंकाल इन दावों को और पेचीदा ही करने वाले हैं| क्योंकि कंकाल तो दफनाए हुए के मिला करते हैं, जबकि हिन्दू धर्म में तो मृत-शरीर को जलाने की रीत है और वो भी आज से नहीं महाभारत और रामायण के काल से| पांडव के संग उनकी दूसरी पत्नी माद्री का सति-प्रथा के तहत उनके साथ चिता में जलना, जैसे उदाहरण इसका प्रमाण हैं|
अभी हाल में स्टार-प्लस पर प्रसारित हुई महाभारत में घटोत्कच के शरीर को गोबर-उपलों की चिता पे रख के जलाया दिखाया जाना, निसंदेह महाभारत की उस कॉपी की तरफ इशारा करता है जिसको रिफरेन्स बना के यह सीन दर्शाया गया; जो कि अभी कुछ ही दिन पहले सोशल मीडिया पर वायरल हुए हिमाचल प्रदेश में मिले एक दानवरूपी कंकाल को घटोत्कच का बताये जाने से विरोधाभास खड़ा करता है| क्योंकि घटोत्कच तो हिन्दू था और उसको जलाया जाता है, दफनाया नहीं| अब कोई महामूर्ख यह तर्क लेते हुए मत आ जाना कि हिन्दू धर्म में मानवों को जलाया जाता था और दानवों को दफनाया| फिर मैं उसको रावण (एक राक्षस) की चिता में विभीषण द्वारा मुखाग्नि देने का उदहारण उठा लाऊंगा|
बुद्ध धर्म में भी इसके स्थापनकाल से मृत शरीर को जलाने की ही रीत है| तो फिर ऐसे में सवाल खड़ा होता है कि या तो इन मृत-कंकालों के खोजकर्ताओं ने इनको हड़प्पाकालीन बताने में जल्दबाजी की है अथवा यह कंकाल जरूर मुग़लों के भारत आने के बाद किन्हीं मुग़लों के होंगे| अन्यथा यह कंकाल वास्तव में हड़प्पाकालीन हैं तो क्या उस वक्त भी यहां मुस्लिम जैसा कोई धर्म था? कम से कम इनका दफनाया हुआ पाया जाना, हिन्दू, सनातन, आर्यसमाजी, बुद्धिज़्म व् सिखिस्म धर्मों के अनुरूप तो है नहीं|
तो फिर यह हड़प्पा-मोहनजोदड़ो किसकी सभ्यता है जिसको हम अपनी बता के, खुद को प्राचीनतम मानवजाति व् सभ्यता बताने का दम्भ भरते आये हैं? - फूल मलिक
reference source: http://www.bbc.co.uk/hindi/india/2015/04/150415_hisar_harappan_civilisation_skeleton_found_sr.shtml
परन्तु राखी-गढ़ी में मिले यह नर-कंकाल इन दावों को और पेचीदा ही करने वाले हैं| क्योंकि कंकाल तो दफनाए हुए के मिला करते हैं, जबकि हिन्दू धर्म में तो मृत-शरीर को जलाने की रीत है और वो भी आज से नहीं महाभारत और रामायण के काल से| पांडव के संग उनकी दूसरी पत्नी माद्री का सति-प्रथा के तहत उनके साथ चिता में जलना, जैसे उदाहरण इसका प्रमाण हैं|
अभी हाल में स्टार-प्लस पर प्रसारित हुई महाभारत में घटोत्कच के शरीर को गोबर-उपलों की चिता पे रख के जलाया दिखाया जाना, निसंदेह महाभारत की उस कॉपी की तरफ इशारा करता है जिसको रिफरेन्स बना के यह सीन दर्शाया गया; जो कि अभी कुछ ही दिन पहले सोशल मीडिया पर वायरल हुए हिमाचल प्रदेश में मिले एक दानवरूपी कंकाल को घटोत्कच का बताये जाने से विरोधाभास खड़ा करता है| क्योंकि घटोत्कच तो हिन्दू था और उसको जलाया जाता है, दफनाया नहीं| अब कोई महामूर्ख यह तर्क लेते हुए मत आ जाना कि हिन्दू धर्म में मानवों को जलाया जाता था और दानवों को दफनाया| फिर मैं उसको रावण (एक राक्षस) की चिता में विभीषण द्वारा मुखाग्नि देने का उदहारण उठा लाऊंगा|
बुद्ध धर्म में भी इसके स्थापनकाल से मृत शरीर को जलाने की ही रीत है| तो फिर ऐसे में सवाल खड़ा होता है कि या तो इन मृत-कंकालों के खोजकर्ताओं ने इनको हड़प्पाकालीन बताने में जल्दबाजी की है अथवा यह कंकाल जरूर मुग़लों के भारत आने के बाद किन्हीं मुग़लों के होंगे| अन्यथा यह कंकाल वास्तव में हड़प्पाकालीन हैं तो क्या उस वक्त भी यहां मुस्लिम जैसा कोई धर्म था? कम से कम इनका दफनाया हुआ पाया जाना, हिन्दू, सनातन, आर्यसमाजी, बुद्धिज़्म व् सिखिस्म धर्मों के अनुरूप तो है नहीं|
तो फिर यह हड़प्पा-मोहनजोदड़ो किसकी सभ्यता है जिसको हम अपनी बता के, खुद को प्राचीनतम मानवजाति व् सभ्यता बताने का दम्भ भरते आये हैं? - फूल मलिक
reference source: http://www.bbc.co.uk/hindi/india/2015/04/150415_hisar_harappan_civilisation_skeleton_found_sr.shtml
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