Sunday 31 January 2021

छोटे बाबा चौधरी राकेश टिकैत जी व् "संयुक्त किसान मोर्चा" के 40-42 अग्गुओं से सावधानी भरी मार्मिक अपील!

छोटे बाबा से अपील इसलिए कि 28 जनवरी की शाम को ग़ाज़ीपुर पर उनको जो संदेशा भरा आशीर्वाद आया वह प्रकृति-परमात्मा-पुरखे तीनों का आया, वैसे अपील संयुक्त किसान मोर्चा से है|
इनकी कोई मजबूरी नहीं है जिसकी वजह से इनको कृषि बिल्स वापिस ले MSP पे गारंटी कानून बनाने में कोई परेशानी होवे| हालाँकि अच्छी बात है पूछियेगा आप भी परन्तु यह मजबूरियां निम्नलिखित मिलेंगी इनकी:
1) कि देश की अर्थव्यवस्था बैठ जाएगी, बाजार बैठ जायेंगे|
2) देश में आर्थिक सुधार रुक जायेंगे|
कुछ नहीं होने वाला ऐसा, क्योंकि:
1) जब माल्या, चौकसी, 3-3 मोदी देश की जनता के पैसे पे खड़े बैंकों का हजारों करोड़ ढ़कार के इन्हीं की शय में देश के भाग जाते हैं, तब नहीं होती देश अर्थव्यस्था खराब?
2) जब कॉर्पोरेट जगत के एक-एक साल में 3-3, 5-5 लाख करोड़ के NPA खाते-बट्टे डाल दिए जाते हैं, तब नहीं होती अर्थव्यवस्था खराब?
3) जब हर सरकारी विभाग को ओने-पोने दामों में प्राइवेट के हाथों में देते हैं तब नहीं होती देश की अर्थव्यस्था खराब?
तो उस किसान के लिए ही काम करके देने के वक्त क्यों खराब होती है इनकी व्यवस्थाएं? यह सिर्फ इनके घड़ियाली आँसूं होंगे; आपसे व् तमाम 40-42 सदस्यों वाली "सयुंक्त-किसान-मोर्चा" कमेटी से अनुरोध है कि अपनी यह लाइन मेन्टेन रखें कि "बिल वापसी तो घर वापसी" व् MSP के गारंटी कानून| इनको कहियेगा कि आप यह काम करें, हम उठा के दिखाएंगे आपकी इकॉनमी को| और भी बड़े स्तर के व्यापार देंगे, रोजगार देंगे कृषि से| इतना मजमा बार-बार नहीं जुड़ता, आप पर 28 जनवरी की रात प्रकृति-परमात्मा-पुरखे तीनों की मैहर व् कॉल थी वह जो आपसे यह बात कहलवाई कि, "मर जाऊंगा परन्तु धरना छोड़ के नहीं जाऊंगा"| यह इशारा भी समझिये कि इस वक्त प्रकृति-परमात्मा-पुरखे भी आप लोगों के साथ हैं व् सिद्द्त से आप लोगों को आपके हक दिलवाने के लिए इनकी हर चालों को पलट दे रहे हैं|
हमें कोई परेशानी नहीं, आंदोलन बेशक 6 महीने और चलाना पड़े; हम सरदार अजित सिंह के भी वंशज हैं, जिन्होनें सन 1907 में अंग्रेजों के खिलाफ ऐसे ही 3 ही काले कृषि कानूनों के खिलाफ 9 महीने तक आंदोलन करके तब कानून वापिस करवाए थे| हम उन्हीं सर्वखाप चौधरी गॉड गोकुला जी महाराज के वंशज हैं, जिन्होनें सन 1669 में औरंगजेब के खिलाफ 7 महीने नाजायज कृषि टैक्सों के खिलाफ युद्धभेरी की थी|

यह खुद को बड़ा कहता है ना कि मेरे तो खून में ही व्यापार है, तो इससे किसी भी भावुकता के ग्राउंड पर बात ना करें; इसकी इसी बात को तोलें कि दिखा कितना व्यापार है तेरे खून में? कितना बड़ा नेगोसिएटर है तू| हम भी उस सर छोटूराम के वंशज हैं जो अंग्रेजों से ले गाँधी-नेहरू-जिन्नाह-मुखर्जी सबको उनकी नेगोसिएशन स्किल्स में अकेला मात दे देता था| आज किसान आंदोलन उसी स्तर की नेगोसिएशन स्किल्स दिखाते हुए बात करने के लेवल पर आन पहुंचा है, बस इतना ही कहना था|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक

Wednesday 27 January 2021

ओबीसी व् एससी/एसटी के मन से फंडी का डाला द्वेष निकालते रहना व् सीधे तौर पर डाइलॉगिंग रखना, जाट यह दो काम निरंतर करता रहे तो इनके बीच से फंडी खत्म:

ओबीसी व् एससी/एसटी जातियों को जाट/जट्ट से तोड़े रखने के लिए इनको भरमाने/भड़काने/बिदकाने के जितने प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष प्रयास फंडी करता है, जाट अगर इसके आधे प्रयास भी इन वर्गों के अंदर से यह भरम/भड़क/बिदक दूर करने के करता रहे तो फंडी पैर भी ना मार पाए जाट व् ओबीसी/एससी/एसटी के बीच| और इसका प्रैक्टिकल हमारी टीम ने मेरे गाम में करके देखा है, जिसके दो तरीके के रिजल्ट आए|
एक तो फंडियों ने एससी/एसटी में जाट की व्यर्थ की दबंग/बेरहम/क्रूर की जो छवि बना रखी थी वह उनको समझ आई व् उनके मन के अंदर इस वजह से जाट के प्रति जमी गरद साफ़ हुई|
दूसरा हमने उनको एससी/एसटी के फंडी के साथ रहने के फायदे/नुकसान दिखाए (जो कि वह जानते तो पहले से ही थे परन्तु फंडियों ने जाटों बारे गलत जो फैला रखा था, उस गरद के चलते देख नहीं रहे थे) व् जाट के साथ रहने के फायदे/नुकसान दिखाए तो उनको तस्वीर इतनी साफ़ हुई कि वह इनसे आज उतने ही दूर रहते हैं, जितने फंडियों ने जाटों को इनसे दूर कर दिया था| इसी दौरान एससी/एसटी की जाटों के प्रति शिकायतें/गिले-शिकवे भी जानने को मिले जो कि 90% तो ऐसे मिले जो सिर्फ और सिर्फ इसलिए बने हुए थे कि किसी जाट ने उनसे इन पहलुओं पर कभी बात ही नहीं की थी|
निचौड़ यह निकला कि कोई ओबीसी/एससी/एसटी, फंडी को फूटी आँख पसंद नहीं करता जबकि जाट के साथ ख़ुशी-ख़ुशी रहना चाहता है बशर्ते कि जाट उनसे डाइलॉगिंग बना के रखे| क्योंकि उनका यही कहना था कि जाट तो हमें एक थाली में साथ बैठा कर भी खिला लेता है (इक्का दुक्का को छोड़ कर जो अलगावादी वर्णवादी सोच से ग्रसित होता है) परन्तु फंडी तो 100% हमसे बिदकता है इन मसलों पर| वह हमको जाट के खिलाफ सिर्फ इसलिए कर पाता है क्योंकि जाट हमसे डाइलॉगिंग नहीं रखता जबकि फंडी, हमें जाट से तोड़े रखने हेतु ही डाइलॉगिंग रखता है, ना कि हमारे किसी भले के लिए|
तो फंडियों का क्लेश कटा चाहिए तो अपनी इन साथी बिरादरियों से समाज के स्तर पर डाइलॉगिंग बना के रखिये, इतना ही बहुत फंडी को "जाट बनाम नॉन-जाट" नहीं कर पाने से रोके रखने हेतु|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
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Friday 22 January 2021

माणसो को तरस चुकी गामों की परस-चौपाल-चुपाड़ों में किसान आंदोलन की बदौलत लौटा "सीरी-साझी" कल्चर का सैलाब!

रामायण-महाभारत, ये कथा, फलां पुराण की मनघढ़ंत माईथोलोजियों से भरे परिवार तोड़क व् हद से ज्यादा मैं-का-बहम-भरक टीवी सीरियलों व् काल्पनिक साहित्य पढ़-पढ़ बंद हो चले लोगों के दिमाग खोल दिए इस किसान आंदोलन ने|

दशक से ज्यादा हो चला था लोग बैठकों में खुल के बैठना-बतलाना छोड़ते जा रहे थे| माणसो को तरस चुकी गामों की परस-चौपाल-चुपाड़-नोहरे-दरवाजे-हवेली-बैठकों में जो किसान आंदोलन की स्ट्रेटेजी बनाते भाईचारे के सैलाब मुड़े हैं, यह निसंदेह उस सीरी-साझी कल्चर की वापसी है जो हमारी उदारवादी जमींदारी सभ्यता की बुनियाद है| इसको अब खोने मत देना बालको-गाभरूओं-वयस्कों!
और समझना और समझाना कि असली व् व्यवहारिक ज्ञान इन काल्पनिक गपोड़-कथाओं में नहीं, अपितु आपके दादा खेड़ाई आध्यात्म व् खापों के लोकतान्त्रिक विधानों में हैं; जिनके तुम में अभी भी बहते अंशों की बदौलत ही यह आंदोलन परवान चढ़ता जा रहा है| वरना कोई ना इन माईथोलोजियों वाला अभी तक एक लंगर तक लगाने आया तुम्हारे किसान धरनों पर और आया हो तो बता दो|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक

यह महज किसान आंदोलन नहीं, अपितु मैनेजमेंट, प्लानिंग, स्ट्रेटेजी व् कोऑपरेशन के अध्यायों की पूरी किताब है!

कहते हैं कि दूध का जला छाज को भी फूंक-फूंक कर पीता है, जून 1984 व् फरवरी 2016 में फंडवाद व् वर्णवाद की सड़ांध मारती धधकती ज्वाला झेल चुके क्रमश: पंजाबी व् हरयाणवी किसान की वर्तमान किसान आंदोलन में भागीदारी कुछ इसी लाइन पर नजर आती है| यूथ-मेच्योर-वृद्ध किसान सचेत है, होश में है, फंडी जैसे धूर्त दुश्मन की हर चाल से वाकिफ व् अनुभवी है| जिसके लिए तमाम किसान जत्थेबंदियों को बारम्बार सलाम है|

बड़े-बड़े प्रोफेस्सोर्स, ह्यूमन साइंटिस्ट्स, रिसर्चर्स, बिज़नेसमैन्स, मैनेजर्स, डायरेक्टर्स, CEO तक अचम्भित हैं कि जिनको अक्सर मनुवाद-वर्णवाद के घमंड में सड़ती हुई भारतीय वर्णव्यवस्था के स्वघोषित ज्ञान के कीड़े ढंग से इंसान बराबर भी नहीं समझते, वह हर प्रकार के MBA, CA, PhD, IAS, IPS की डिग्रियों व् ओहदों वालों और तथाकथित गुरुओं को भी अचम्भे में डाले हुए हैं व् उस कहावत को साबित कर रहे हैं कि, "पढ़े हुए से कढ़ा हुआ, ज्यादा कामयाब कारगर होता है"| यह कोरी मिथ्या है कि अक्षरी ज्ञान वाला पढ़ालिखा या विद्वान् होता है; विद्वत्ता अनुभव व् सालीन सभ्यता से आती है; जो कि आज 57 दिन के हो चले इस किसान आंदोलन के जर्रे-जर्रे से बोल रही है|
परन्तु यह ध्यान रहे कि मुकाबला धूर्तता की हद से आगे जा के ओछे-हथकंडों वाली गुंडई मानसिकता से है, जिसका एक नमूना आज रात सिंघु बॉर्डर पर किसान जत्थेबंदियों के ठीकरी-पहरेदारों की मुस्तैदी की बदौलत हाथ लगे उस लड़के के ब्यानों से देखने को मिली जिसने देशभर की मीडिया के सामने स्वीकारा कि कैसे कई दस्ते ना सिर्फ किसान आंदोलन को हिंसक बनाने हेतु उतारे गए हैं अपितु कई स्नाइपर्स भी कई किसान नेताओं को गोली मारने हेतु छोड़े गए हैं, जिनमें से कि 4 किसान नेताओं की तो इस लड़के ने फोटो देख के पहचान भी करी| सनद रहे कि आपका मुकाबला आप के तथाकथित धर्म की कहे जाने वाली सरकारों से है, ना अंग्रेजों से न मुग़लों व् ना किन्हीं अन्य विदेशियों से; सर छोटूराम बताए दुनिया के धूर्त्तंम फंडियों से है|
मैं समझता हूँ कि पंजाब से ज्यादा हरयाणा व् वेस्टर्न यूपी के युवाओं के कंधे पर इस 26 जनवरी के ट्रेक्टर मार्च को 7 जनवरी वाले मार्च की तरह सफल बनाने की जिम्मेदारी है तो अवश्य ही अपना फरवरी 2016 के दंश के अनुभव व् सीख का इसमें इस्तेमाल करें व् आपके विरुद्ध आपके बीच हो सकने वाले हर षड्यंत्र व् षड़यंकारी को बाज की भांति वहीँ-की-वहीँ दबोच दें| आपस में इतना तालमेल बना के चलें कि साथ-की-साथ इस बात पर भी आपकी पैनी नजर रहे कि आपके साथ चले रहे ट्रेक्टर वाला कौन है, कहाँ का है| किसी भी अनजान को बीच में ना आने दें, आवे तो परिचय करें-करवाएं व् यकीन होने पर ही स्थान दें, अन्यथा जत्थेबंदियों द्वारा बनाई गई सुरक्षा चैन के तहत बात जिम्मेदार लोगों को तुरंत पहुंचाएं| आपको सिर्फ परेड ही नहीं करनी अपितु अपनी जासूसी कला व् सूझबूझ का भी परिचय देना है|
दुनियां भर के देशों, संसंदों-सांसदों व् किसानों की नजर है आप पर; 26 जनवरी की सलफता से यह लोग बहुत कुछ सीखने को टकटकी लगाए देख रहे हैं| आपकी नियत व् उद्देश्य दोनों इतने सच्चे हैं कि प्रकृति और परमात्मा भी आप किसान लोगों के जरिये जैसे दुनिया के ना सिर्फ किसानों अपितु मजदूरों-व्यापारियों को भी इतने विशालकाय आंदोलनों को सफलतापूर्वक करना सिखाना चाहते हैं, तभी तो सरकार हो या कोई संघ या कोई अन्य एजेंसी के षड्यंत्र आपकी मुस्तैदी इनको हरकत करने से पहले ही दबोच ले रही है| सलाम है आप लोगों की मैनेजमेंट व् कोऑपरेशन को|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक

Sunday 17 January 2021

किसान आंदोलन के जरिये पंजाब व् यूपी में भी 35 बनाम 1 टाइप की खाई खोदना चाह रहे फंडियों की पार्टी व् संघठन!

2022 में पंजाब व् यूपी विधानसभा चुनावों को देखते हुए फंडियों की पार्टी व् संघठन चाहते हैं कि किसान आंदोलन जल्दी खत्म ना हो ताकि 2014 का जाट बनाम नॉन-जाट यूपी में व् सिख बनाम नॉन-सिख व् सिखों में जट्ट सिख बनाम नॉन-जट्ट सिख को वोट कैश करने के लिए आजमाया जा सके| यह चाहते हैं कि यह आंदोलन तब तक खींचा जाए जब तक इस आंदोलन में सिरकत करने वाली सबसे बड़ी कम्युनिटी यानि जाट-जट्ट को जिद्दी-दबंग दिखा के यह पंजाब व् यूपी के हर ओबीसी-दलित-स्वर्ण के कानों में अपना जहर फूंक, उनको इनको वोट देने को कन्विंस ना कर लेवें|

इस तथ्य की मैंने पंजाब से मेरे दलित साथियों व् संगठनों से पुष्टि करवाई तो पता लगा कि इनकी कोशिशें तो युद्ध स्तर पर चल रही हैं परन्तु दलित कम-से-कम इनको घास नहीं डाल रहा| दलितों पर इनकी कोशिशें ठीक वैसे ही फ़ैल हो रही हैं जैसे केंद्र सरकार की किसान आंदोलन को फ़ैल करने की हर कोशिश फ़ैल हो रही है| अकेले लुधियाना व् अमृतसर से 26 जनवरी किसान ट्रेक्टर परेड में शामिल होने 250 बसें दलितों की भर कर जा रही हैं| अमूमन यही लब्बोलबाब ओबीसी जातियों का है, जिनमें खासकर सैनी-गुज्जर बिरादरियाँ तो जट्टों के बाद सबसे ज्यादा तादाद में दिल्ली बॉर्डर्स पर ही डटी हुई है; व् अन्य ओबीसी भी या तो किसानों की अनुपस्तिथि में किसानों के खेतों में सहयोग करवा रहे हैं या सीधे-सीधे भाग ले रहे हैं|
परन्तु फंडियों का जूनून व् आत्मविश्वास देखिये कि फिर भी इनकी कोशिशें निरंतर जारी हैं| जारी हों भी क्यों नहीं, यह वह लोग हैं जो "एक झूठ को 100 बार तक भी समाज में फ़ैलाने से पीछे नहीं हटते क्योंकि यह मानते हैं कि 100 बार बोला झूठ भी सच स्थापित हो जाता है"|
खैर, इन सब बातों से अश्वासन तो मिलता है परन्तु एक सोच भी निकलती है कि क्या इंडिया के लोग वाकई में इतने बेवकूफ मान लिए हैं इन्होनें कि यह इतनी आसानी से जनता का बेवकूफ बनाते रहेंगे और मात्र जाति-लाइन पे लोग बिना कोई अन्य आर्थिक-सामाजिक-मानसिक पहलु, आपसी सामाजिक योगदान-भाईचारा देखे बिना, इनको वोट देते रहेंगे? अगर ऐसा हो रखा है तो निसंदेह इस देश को विनाश से शायद ही कोई बचा पाए| खैर यह पोस्ट लिखने का उद्देश्य यह था कि आप यह पहलु अपने-अपने यहाँ चेक करें व् फंडियों की धूर्तताओं का मुंह-थोबने टाइप में जवाब जरूर देवें व् ऐसे इरादों को सिरे ना चढ़ने दें| आप-हमको 360° फ्रंट्स पर निगरानी रखते हुए चलना होगा, तब जा के यह आंदोलन कामयाब होगा|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक

फंडी लोग, ओबीसी व् एससी/एसटी जातियों में किसान आंदोलन को सिर्फ "जाट-आंदोलन पार्ट 2" बता कर करवा रहे दुष्प्रचार!

किसान आंदोलन में शामिल हर शख्स अपने-अपने गाम स्तर पर इस बात का संज्ञान लेवे कि फंडी आपके ही खेत-काम-कल्चर की साथी जातियों में इस बात को किस स्तर तक ले जा रहे हैं| हालाँकि वैसे तो यह बिरादरियां भी अपना-पराया परखने में हर लिहाज से सक्षम हैं परन्तु फिर भी फंडी के जहर की काट को काटने के लिए, फंडी की बिगोई बात के स्तर के अनुसार आप इन भ्रांतियों को ऐसे दूर करें/करवाएं:

1) सबसे पहले जो-जिस कारोबार से है उसके कारोबार का किसान से संबंध बतलाएं| जैसे छिम्बी/धोबी/टेलर को बोलें कि आपको सबसे ज्यादा कपड़े सीने का कारोबार कौन देता है? अवश्यम्भावी जवाब होगा - किसान| कुम्हार के मिटटी के बर्तन सबसे ज्यादा कौन लेता है? अवश्यम्भावी जवाब होगा - किसान| लुहार को औजार बनाने का काम सबसे ज्यादा किस से आता है? अवश्यम्भावी जवाब होगा - किसान| सीरी-साझी वाला वर्किंग कल्चर दलित के साथ कौन सबसे ज्यादा बरतता है? - अवश्यम्भावी जवाब होगा - उदारवादी जमींदार, जिसकी मुख्य व् सबसे बड़ी जाति ही जाट किसान है|
2) आज भी ओबीसी-दलित में ब्याह-शादी तक की भीड़ पड़ी में पूरे-के-पूरे ब्याह-वाणे के खर्चे सबसे ज्यादा कौन ओट लेता है? अवश्यम्भावी जवाब होगा - किसान| फंडी ने ओटा है आज तक, शायद ही कोई उदाहरण मिले|
3) आपको सबसे ज्यादा अपने खेत-पारवारिक-समारोह-दुःख-सुख में कौन शामिल करता व् होता है? अवश्यम्भावी जवाब होगा - किसान|
4) आपको धर्म-कर्म-कांड आदि के नाम पर सबसे ज्यादा मानसिक-आर्थिक-सामाजिक तौर पर कौन लूटता है व् लूट के बदले कुछ भी नहीं देता? यहाँ तक कि आपसे ही ले कर आपको ही वर्ण-व्यवस्था में शूद्र लिखता-बताता-गाता-फैलाता है व् आपको अछूत-मलिन तक बोलता है? - जवाब होगा फंडी|
4) साथ ही किसान आंदोलन से संबंधित यह तथ्य भी देवें कि कैसे किसान आंदोलन सिर्फ किसान नहीं अपितु आपके मुद्दों से भी जुड़ा है, खासकर इसका "खाद्दान भंडारण पर से लिमिट" हटा देने का तीसरा कानून, जो कालाबाजारी को बेइंतहा बढ़ा देगा|
5) इसके साथ ही 1 अप्रैल 2021 से नए "लेबर-लॉ" के बारे भी इन साथी बिरादरियों को बताएं, कि इस तारीख के बाद मजदूरी के तय घंटों की लिमिट 8 घंटे प्रतिदिन बढ़ाकर 12 घंटे हो जाएगी व् सारे तरह के भत्ते-बोनस लगभग-लगभग खत्म हो रहे हैं अन्यथा घटाए तो शर्तिया जा रहे हैं| और क्योंकि सबसे ज्यादा लेबर ओबीसी व् दलित समुदायों से आती है तो यह कानून इन्हीं बिरादरियों को सबसे ज्यादा प्रभावित करेगा|
तो इस बात से यह बात समझाई जाए कि वैसे तो लेबर बिल, कृषि बिलों से भी पहले बन चुका परन्तु क्योंकि इस सरकार ने सारी लेबर यूनियनों की कमर तोड़ रखी थी तो कोई भी आंदोलन खड़ा नहीं कर पाया| अब किसान यूनियन कर रही हैं तो असल तो इनका साथ दीजिये, अन्यथा फंडियों के बहकावे में आ के इससे तटस्थ ना होवें क्योंकि इसी आंदोलन की कामयाबी तय करेगी कि कल को लेबर लॉ पर आंदोलन हो सके, जिसमें कि किसान बिरादरियां सदा की तरह आपको भरपूर साथ देंगी| बल्कि साथ अभी भी दे रही हैं जैसे कि कृषि बिलों का तीसरा कानून, किसान से ज्यादा आम उपभोक्ता (जिसमें आप भी शामिल हो) को प्रभावित करने वाला है क्योंकि इसके लागू होने पे कालाबाजारी बढ़ेगी व् सभी खाद्य वस्तुएं कई गुणा महंगे दामों में खरीदनी पड़ा करेंगी|
अनुरोध: सभी किसान-जवान-मजदूर-व्यापारी पुत्र-पुत्रियों से अनुरोध है कि यह पोस्ट या इसके अनुसार आपके अपने शब्दों में बनाई पोस्ट, सिर्फ सोशल मीडिया तक फ़ैलाने तक में सिमित ना रखें, अपितु इसमें चर्चित पहलुओं को हर किसान-दलित-ओबीसी की शहर-शहर, गाम-गाम बैठकों-हुक्कों-परस-चुपाडों में पहुंचाएं, इन पर चर्चा करवाएं|
उद्घोषणा: इस पोस्ट में चर्चित धूर्त "फंडी" का किसी भी जाति-समुदाय विशेष से कोई लेना-देना नहीं है, ऐसे लोग किसी भी जाति-समुदाय में हो सकते हैं|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक

Tuesday 12 January 2021

फंडी का नश्लवादी सामंतवाद व् आपका मानवतावादी उदारवाद!

फंडी का नश्लवादी सामंतवाद: फंडी की सबसे बड़ी ताकत होती है उसका अति-घनिष्ठ आंतरिक लोकतंत्र व् उतनी ही घनिष्ट नफरत के साथ दूसरों के आंतरिक लोकतंत्र को तहस-नहस करने के प्रोपगैण्डे| किसानी की भाषा में समझो तो कुछ यूँ कि ऐसा किसान जो आवारा जानवरों से अपने खेत की तो जबरदस्त बाड़ करता ही है साथ-की-साथ यह भी सुनिश्चित करता है कि पड़ोसी के खेत में आवारा जानवर पक्के घुसाए जाएँ| अब क्योंकि खेत का ऐसा पड़ोसी हुआ तो नुकसान तुरंत दिख जाता है व् ऐसे पड़ोसी किसान को रोका जाता है| ऐसे ही यह जो धर्म-कर्म-राष्ट्रवाद के नाम पर फंडी होते हैं इनको देखना शुरू कर लीजिये, बस अगले ही दिन सारी ही तो समस्या खत्म|

आपका मानवतावादी उदारवाद: आप आंतरिक व् बाह्य दोनों लोकतंत्र चाहते हो, वह भी बराबरी से| बस यही सबसे बड़ा अंतर् है आप में और फंडी में| आपकी थ्योरी लचीली की सीमा से भी आगे जा के अति-लचीली वाली केटेगरी है जिसमें आप बाड़ करने की जेहमद नहीं उठाना चाहते| परन्तु जब पड़ोसी आपकी फसल को उजाड़ने या उजड़वाने की नियत का हो तो वह आपके लचीलेपन को आपकी खूबी नहीं अपितु खामी की तरह लेगा| तो लाजिमी है कि ऐसे संवेदनाहीन लोगों से अपनी फसल-नश्ल-अश्ल सबकी बाड़ करके रखिये| इसलिए इनको "just avoid/ignore them " केटेगरी में भी डाल लोगे तो काफी होगा| आप हो "जिओ और, जीने दो" की फिलोसॉफी के लोग परन्तु फंडी है "खुद जियो, औरों को उजाड़ो" फिलोसॉफी के लोग| अब या तो इनको पड़ोस से निकालिये अगर आंतरिक व् बाह्य दोनों लोकतंत्र चाहियें तो अन्यथा इनसे बाड़ कीजिये अपनी|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक

Wednesday 6 January 2021

किसानों-मजदूरों पर जुल्म ढाने वालों को "काले अंग्रेज" ना कहिये, ऐसे narratives ठीक रखिये और यह जो हैं वो कहिये यानि "वर्णवादी फंडी"!

क्योंकि यह जो मानसिकता 3 कृषि बिलों के तहत अपने ही धर्म-देश के किसानों-मजदूरों पर जुल्म ढाह रही है यह वर्णवाद की फिलोसॉफी की वह घोर नश्लवादी थ्योरी है जो पहले दोनों (आप व् फंडी) का एक धर्म उछालती है और फिर आपको आर्थिक-मानसिक-शारीरिक हर प्रकार से  गुलाम बनाती है| वर्ना ऐसा क्या सितम कि जहाँ हर अमेरिका-जापान-इंग्लैंड-फ्रांस आदि जैसे विकसित देश उनके यहाँ कॉर्पोरेट खेती होते हुए भी अगर किसान को MSP टाइप का कुछ नहीं दे पाते हैं तो इंडिया की तुलना में 500 से ले 734 गुणा ज्यादा तक सब्सिडियां दे, किसानों के नुकसान की भरपाई करती हैं| इंडिया में 1 रुपया सब्सिडी के ऐवज में अमेरिका में 734 रूपये मिलते हैं किसान को एक वित्-वर्ष में| 


और यह अपने तथाकथित ग्रंथ-पुराण-पोथों में यह लिखने वाले कि, "स्वर्ण को चाहिए कि शूद्र का कमाया बलात हर ले" बलात हर ले और तब भी वह किसी दंड-पाप या अमानवता का भागी नहीं| सोचिये आप कैसे घोर अमानवतावादी लोगों को धर्म के नाम पर सर पर बैठाये हुए हैं| इन वर्णवादी फंडियों को सर से नीचे पटकना शुरू कीजिये, बराबर खड़ा करना तक बंद कीजिये; तब यह सरकार ज्यादा जल्दी झुकेगी|  


विशेष: वर्णवादी फंडी किसी भी जाति-समुदाय में हो सकता है, इसलिए इसको किसी जाति-वर्ग-वर्ण विशेष से जोड़ के ना देखा जाए| 


जय यौद्धेय! - फूल मलिक 

Monday 4 January 2021

हरयाणवी कभी मंदिर के भीतर की भाषा क्यों नहीं हुई?

ईसाई धर्म, भारत में अंग्रेजी में सब कुछ - लिटरेचर-प्रार्थना-संगीत सब| 

सिख धर्म, भारत में पंजाबी में सब कुछ - लिटरेचर-प्रार्थना-संगीत सब| 

इस्लाम धर्म, भारत में उर्दू में सब कुछ - लिटरेचर-प्रार्थना-संगीत सब| 


परन्तु हिन्दू धर्म में भारत में:

लिटरेचर संस्कृत में, 99% को पढ़नी-लिखनी-बोलनी ही नहीं आती|  

मंदिर के अंदर प्रार्थना हिंदी में, वो भी 99% बॉलीवुड की फ़िल्मी वाली आरतियां|  


सड़कों पे चौकी वाली प्रार्थना - हरयाणवी संगीत में, माता का जगराता टाइप| कूल्हे मटकाने व् पागलों की तरह गात हिलाने के अलावा इनमें कुछ हासिल होता हो तो?


यानि कितनी ही झक मार लो, हरयाणवी कभी मंदिर के भीतर की भाषा नहीं हुई, क्यों? जबकि दान-चंदा इनको सुबह-शाम चाहिए? एक तो गलती खुद तुम्हारी, उसपे बदनीयत इनकी; जो हरयाणवी सिर्फ सड़कछाप चौकियों की भाषा मात्र बन के रहती जा रही है तो ऐसे में इसके प्रति आदर-सद्भाव-प्रेम कहाँ से बनेगा?


जय यौद्धेय! - फूल मलिक

Sunday 3 January 2021

सुनी है फरवरी महीने में हरयाणा के सभी गामों में फंडी आ रहे हैं एक भव्य धर्मघर के नाम पर चंदा मांगने?

पहली तो बात फंडी क्यों?: सवा महीने से कड़ाके की ठंड में लाखों-लाख किसान सड़कों पे बैठा है, 60 से ज्यादा जान गँवा चुके; ऐसे में उनके साथ संवेदना होने की बजाए इनको अभी भी चंदे की ही पड़ी है; इसलिए यह फंडी हैं| एक तो गुरुद्वारे-मस्जिदों की भांति किसानों का साथ नहीं दे रहे उसपे इतना भी नहीं कि जब तक किसान आंदोलनरत है, तब तक उनके सम्मान में इस चंदा प्रोग्राम को स्थगित ही रखो?

तो ऐसे बेशर्मों क्या इलाज हो सकता है?: जब चंदा मांगने आवें तो इनसे गुहार लगाओ कि चंदा देने लायक हमारी हस्ती बची रहे, इसलिए आरएसएस व् तमाम हिन्दू परिषदों-सभाओं-संगठनों से कह के पहले यह तीनो काले कृषि कानून वापिस करवाओ व् MSP पर कानून बनवाओ; जिससे हमारे बच्चे पालने के ब्योंत भी बचे रहें व् तुम्हें भी कुछ दे सकें|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक

बचो सृष्टि पर श्राप नाम के इस कोढ़ 'फंडी' से!

लेख का उद्देश्य: आईये जानें फंडी क्या है, कौन है?

उद्घोषणा: लेखक हर परिधान, भाषा, कल्चर व् "ऐसा धर्म व् आध्यात्म जो वाकई में उसके मानने वालों के निष्पक्ष मानव कल्याण के लिए 90% तक भी काम करता है" उसका बराबरी से आदर करता है; इस लेख में जो लिखा है फंडी की बेईमान व् गैर-जिम्मेदाराना एप्रोच को आपको समझाने हेतु लिखा है| इसलिए इसको कदापि भी अन्यथा ना लिया जावे| हाँ, अगर इस लेख में लिखी कोई भी बात सच ना हो तो मुझे उजागर करें, माफ़ी समेत वह बात वापिस ली जाएगी|
दूसरे के सर दोष धर के तुम्हारे कल्चर-कस्टम-भाषा-आध्यात्म को निगलने वाला व् 3 कृषि बिलों को वापिस करवाने में समर्थन देने की बजाए अपने धर्म घरों के लिए चंदे पे ही ढीठ बेशर्मों वाली सवेंदनहीनता से जो चलता जाता हो; वह फंडी होता है| वह कैसे भला, इन उदाहरणों से समझिये:
1) वेस्टर्न कल्चर हमारा पहरावा खा गया; जबकि हरयाणवी दामण-कुडता व् सलवार-सूट की जगह सबसे ज्यादा क्या आता जा रहा है? जवाब है साड़ी|
2) वेस्ट की इंग्लिश तुम्हारी भाषा खा गई, जबकि हरयाणवी भाषा की जगह सबसे ज्यादा क्या आती जा रही है? जवाब है हिंदी व् संस्कृत|
3) मुस्लिम्स व् ईसाई तुम्हारा धर्म नष्ट कर देंगे, जबकि मूर्ती पूजा नहीं करने वाले आर्यसमाजियों व् दादा नगर खेड़ा धोकने वालों को सबसे ज्यादा मूर्तिपूजा में कौन धकेलता जा रहा है? जवाब है सनातनी|
4) मुस्लिम्स व् ईसाई रीति-रिवाज तुम्हारी सभ्यता नष्ट कर देंगे, जबकि सबसे ज्यादा ढोंग-आडंबर-पाखंडों में कौन घुसाता जा रहा है? जवाब है स्वघोषित राष्ट्रवादी|
5) खुद के धर्म का किसान सवा महीने से सड़कों पर अपनी फसलों नश्लों के अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है और इनको ऐसे में भी किसान का साथ देने की बजाए चंदे इकट्ठे करने के प्लान्स कौन ला रहा है? यह तथाकथित धर्म के ठेकेदार|
यही तो रोना है कि यह तुमसे कोई चीजे सीधे-सीधे नहीं मांगते, ना मिल-बैठ के इन चीजों पर तुमसे सलाह करके चलते, ना तुम्हें इनकी किसी भी गतिविधि में शामिल करते; क्यों? क्योंकि इनकी बदनीयती में तुमको वापिस देने के नाम पर होता है "ठेंगा"| जिसकी समाज से लेने के बदले कुछ देने की नियत होगी वही तो key decisions से ले हर कदम में तुमको बराबर से शामिल करेगा; परन्तु नहीं करते तो काहे के चंदे-चढ़ावे? यही फंड है, यही फंडी है|
इलाज सीधा सा है: इनके नाम के मूक-बधिर बन जाओ| इनको "Just avoid them" मोड में डाल लो| वरना यह तो भाई, "just kill them" से नीचे तो मामला नक्की करते ही नहीं| kill them emotionally, spiritually, intellectually; और जो इन तीन बिंदुओं पे मार दिया; फिर चाहे उसकी प्रॉपर्टी पे कब्जा करो, पैसे पे करो या घर-समाज की बहु-बेटी पर| इनके तरीके से मारे गए को फिर अहसास भी नहीं होता कि प्रॉपर्टी गई, पैसा गया या बहु-बेटी लूट ली गई|
बचो सृष्टि पर श्राप नाम के इस कोढ़ 'फंडी' से|
उद्घोषणा को फिर से दोहरा रहा हूँ: लेखक हर परिधान, भाषा, कल्चर व् "ऐसा धर्म व् आध्यात्म जो वाकई में उसके मानने वालों के निष्पक्ष मानव कल्याण के लिए 90% तक भी काम करता है" उसका बराबरी से आदर करता है; इस लेख में जो लिखा है फंडी की बेईमान व् गैर-जिम्मेदाराना एप्रोच को आपको समझाने हेतु लिखा है| इसलिए इसको कदापि भी अन्यथा ना लिया जावे| हाँ, अगर इस लेख में लिखी कोई भी बात सच ना हो तो मुझे उजागर करें, माफ़ी समेत वह बात वापिस ली जाएगी|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक