Thursday 23 February 2023

10 Points formula to keep you happy and satisfied with your life-journey!

  1. How to stop over thinking - by Journaliing (Write down you thoughts, take them out of your head).
  2. How to think clearly - by meditation (It removes clutter out of your mind)
  3. How to improve your mood - by exercising (Physical activities release your mental and physical stress)
  4. How to expand your mind - by reading (Read psychological books in leisure times for your instinct strengthening and make you more rational)
  5. How to understand something better - by teaching others and surveying (It reinforeces your understanding and keeps you rational)
  6. How to overcome self-doubts - by self-talk (Practice affirmation, be your own cheerleader first then to world)
  7. How to feel good - by expressing gratitude (It shall put you on positivity and more enthusiastic)
  8. How to recharge mind - by praying to purakh-parmatma-prakriti (Connecting to greater than you from your kinship brings the purpose to your life)
  9. How to recharge body - by sleeping (7-8 hrs sound sleep, discharge the tiredness and reshape your internal ecosystem)
  10. How to improve your focus - make phone use and social media time-bound; switch off them whenever you can (specially when you are doing something put them completely off)

Wednesday 22 February 2023

Andy Haryanvi Learning Course - 173 Vocabs:

  1. Single----राण्डा
  2. Boy-------छोरा
  3. Desi boy---मोल्लड़
  4. Girl-------छोरी
  5. Dirty girl-सुगली
  6. Child----बाळक
  7. Young----गाबरु/मलंग
  8. Rope---जेवङी 
  9. Friend ----ढब्बी
  10. Girlfriend-ढब्बण
  11. Beautiful---सुथरी
  12. Women---बिरबान्नी
  13. Handsome--सुथरा
  14. Biceps---कब्जे
  15. Shoulders--खोवा
  16. Bone---हाड
  17. Enemy---बैरी
  18. Noise---खुड़का/रोळा
  19. Gussa ----छो
  20. Majak----मखोल
  21. Bakwas--अळबाद
  22. Love---लाड
  23. Brother---बीर
  24. Sister---भाण/बेब्बे
  25. Back---पाछै
  26. Thread---ताग्गा
  27. Winter---जाड्डा 
  28. Cold air---शीळी बाळ
  29. Fever---ताप
  30. Blue-लील्ला
  31. White---चिट्टा/धौळा 
  32. We----आप्पा
  33. Waiting---बाँट देखणा 
  34. Please wait--थम जा / थ्यावस कर
  35. Deny--नाटणा 
  36. Different---न्यारा
  37. Drama--खड़दू करना
  38. Near---नेड़े / लौवै सी 
  39. Money---पीसे
  40. Complain--उलहाणा
  41. To remove---काढ़णा
  42. With--गैल/गैल्ला
  43. Strong---ठाड्डा
  44. Bad----भुंडा
  45. Weak-----माड़ा
  46. Rutba/hisab-टोहरा
  47. Excuse me - हाड्डे सुण 
  48. Stair case---पैड़काळा
  49. Eraser---मिटा दे 
  50. Hair----लटूर
  51. Garbage---अड़ंगा
  52. Cloth---लत्ते
  53. Jewellery---टूम ठेकरी
  54. Dung cake--गोस्से/थेपड़ी
  55. Rain---मीहं
  56. Milk---डोक्का
  57. Tea---चा
  58. Boild gram(चने)--बाकळी
  59. Butter milk---छा/शीत/लास्सी
  60. Onion---गंठा
  61. Garlic--लसण
  62. Soap---साब्बण
  63. Hot-------तात्ता
  64. what-------के 
  65. Wall----भीत
  66. Blanket/रजाई--श्यौड
  67. why--------क्या त/क्यूं
  68. Naughty-----ऊत
  69. Very naughty-अल्बादी/खपित्तर/कुब्बादी
  70. How---क्यूक्कर
  71. really - -----अरे हम्बै
  72. Station------टेशन
  73. Village-----गाम
  74. Footwear---खौंसड़ा/छित्तर
  75. whats up- --के होग्या
  76. Fast fast-सैड सैड
  77. Amazing---कसूत्ता//आखर/एंडी
  78. Fast----तावली/तग्गाजे त
  79. Front----शाहम्मी
  80. Allmost done - कत्ती होग्या
  81. Landlord----लम्बरदार/नम्बरदार
  82. Bilkul---निरोळ/जमा
  83. Copy_/रीस
  84. Round ---गेड़ा
  85. Let him go - जान्न दै उसनै
  86. i dont know--बेरा नी
  87. More- -घणा
  88. Smooth ---- चीकणा
  89. Tight---कैड़ा/करड़ा
  90. Lady ------ लुगाई
  91. कसूर----खोट
  92. Ladai---रौला/खाड़े/राड़
  93. Shout loud---रुक्के/किलकी
  94. Pain----भड़क
  95. Father----- बाब्बू/बाप्पू
  96. Drunked---भंड
  97. To see---लखाना
  98. Less---घाट
  99. Mad---बावळा
  100. mother ---- माँ री
  101. Slapping --- जड़ दिया
  102. Use less --गाड्डण जोग्गा
  103. run away --- भाज जा
  104. stay here --- याहडे/ थमजा
  105. now -------- इभे
  106. Meet/milna---फेटणा
  107. not now-----इभी नी
  108. Down---तलै
  109. Body---गात
  110. Ball---गिंड्डूं
  111. Street----गॉल
  112. Pond---जोहड़
  113. never------- कधे भी नी
  114. Morning---तड़की/तड़के
  115. AfterNoon---दपैेहरी
  116. Wife -------- बहू
  117. Fullfill demand-माँग पुगाणा
  118. Husband----- बटेऊ/लोग/भर्तार/खसम
  119. Sunlight ------ घाम/चौंधा 
  120. salt --------- नूण
  121. very--------- भतेरा/घणा
  122. gate-------- कुवाड 
  123. Corner---कुण
  124. Knee-------- गोड्डा
  125. Please Stop--थम जा /डट जा
  126. Bat(चमगादड़)----चामचड़ी
  127. मुधुमखी-----भिरड्ड
  128. Finger ------ अंगली
  129. animal- ------डांगर
  130. ox- ----------बळद
  131. Crow---काग
  132. Buffalo son----कटड़ा/काटडा
  133. Human being---मानष
  134. Happy----राज्जी
  135. Hide----लुकणा
  136. Return something---उल्टा मोड़ देना
  137. Key---ताली
  138. rat----------मूसा
  139. Throw------बगाणा
  140. Put-------टेक / धर
  141. Like that ---उसके बरगा
  142. Hard work--खुभैेत
  143. Type (तरह)----जु/ढाल
  144. Time---टेम/बखत
  145. Somethimg went wrong---साक्का होगा
  146. Inside----भीत्तर
  147. Skin---बक्कल
  148. Tail---पुंजड़
  149. जैसा------कैसा
  150. Kasam--सूं
  151. बात मान लेना---हम्बी भरना
  152. रास्ता---राह
  153. स्टाइल मारना-गिरकाणा
  154. ज्यादा बनना -एंडी पाकना/माचणा
  155. कीचड़----चोड़ा
  156. घूंघट---ओल्हा
  157. कुछ---किम्मे
  158. Stone---टोरड़ा
  159. कितना---कतेक
  160. रोटी----टिक्कड़
  161. जैसे--जणू/जुक्कर
  162. किस टाइम---कोड़ बर
  163. पिल्ला--कुतरु
  164. Pagal है क्या---बावळी बूच है के
  165. कम---घाट
  166. ज्यादा--घणा
  167. परेशान---बिराण
  168. To cover face with cloth--- ढाट्टा मारना
  169. Dont be over smart---घणा चौधरी ना बण
  170. Pareshan kar dena---बिराणमाट्टी
  171. Person not doing according you---झकोई
  172. Gazab kar diya----चाले पाड़ दिए
  173. To enjoy -------काच्चे काटणा

By: Sh. Harvinder Malik from Andy Haryana; अपणा कल्चर अपणा चैनल

Monday 20 February 2023

The cruel customs of Manuwad, which Britishers banned!

 >-1819 से पहले तक शूद्र पुरुष की शादी के बाद उसकी दुल्हन पहले तीन दिन तक ब्राह्मण शुद्धीकरण के नाम पर अपने पास रखता था,अंग्रेजों ने इस निर्लज्जता को 1819 में समाप्त किया,

>- कुछ सनातनी समुदायों(ब्राह्मण, राजपूत आदि)में पति के मरने पर उसकी चिता पर उसकी पत्नी को सती होने के नाम पर स्वमेव ही आत्महत्या करनी पड़ती थी।अंग्रेजों ने इस क्रूरता को1829 में बंध कराया,

>- धार्मिक आयोजनों पर सवर्ण नर बली के नाम पर शूद्रों की नर बलि दी जाती थी, इस क्रूरता को अंग्रेजों ने 1830 में प्रतिबंध कराया,

>- शूद्रों(दलित, पिछड़ों) को सवर्णों के सामने कुर्सी पर बैठने का अधिकार नही था, अंग्रेजों ने 1835 में ये अधिकार दिया।

>- सार्वजनिक भवन और पुल बनाने पर चरक प्रथा के नाम पर शूद्रों की नर बलि दी जाती थी, यह नीचता अंग्रेजों ने 1863 में बंद कराई,

>- त्रावणकोर(केरल)के ब्राह्मण राजा ने दलित महिलाओं को सार्वजनिक क्षेत्र में खुले स्तन जाना अनिवार्य था, यदि कोई दलित महिला स्तन ढकती थी तो टैक्स देने पड़ता था।

दलित महिला नागेली टैक्स देने के बदले में राजा के लठैतों को अपने दोनों स्तन काटकर दिये,इस कारण अधिक खून रिसाव से मृत्यु होने के दर्दनाक हादसे के बाद अंग्रेजों ने 26 जुलाई 1859 को दलित औरतों को स्तन ढकने का अधिकार दिया।

>- ब्राह्मण जजों की न्यायप्रियता पर प्रश्न खड़े होने पर अंग्रेजों ने 1919 में ब्राह्मणों को जज बनने पर रोक लगा दी थी,

>- ब्राह्मणों का प्रशासनिक सेवाओं में 100% आरक्षण/कब्ज़ा देखकर अंग्रेजों ने इनका 2.5% आरक्षण कर दिया था।

>- शूद्र समाज की जवान लड़कियों को मंदिर देव दासी के रूप रखी जाती थी,मंदिर के मठाधीश इनके साथ अय्याशी करते थे,इनकी  अय्याशी से जो बच्चे पैदा होते थे,उन्हें हरि(ईश्वर) के भोग से उत्पन्न संतान बता उन्हें हरि के जन कहते थे,इसी शब्द से हरिजन जाति बनाई गई। इस नारि अपमान को भी अंग्रेजों बंद कराया था।

अंग्रेजों के अलावा मेरी क़ौम के महान पुरखों के साथ अन्य क़ौमों के महा पुरूषों ने धार्मिक,आर्थिक और राजसिक व्यवस्था के मालिकों की नीचताओं पर अंकुश लगवाया था।

सनातन/वैदिक/हिंदू आदि के लंबरदारी करने वालों पर घमंड करने वालों मैंने ये बहुत थोड़ा सा ही लिखा है।इनकी ऐसी नीचताओं के हज़ारों क्रूर से क्रूर प्रसंगों से अतीत और वर्तमान भरा पड़ा है।

इनकी इन्हीं नीचताओं के कारण भारत भूमि, धर्म,नारि, सभ्यता और सम्पदा को आक्रांताओं ने लूटा भी और हज़ार वर्षों से अधिक समय तक ग़ुलाम भी रखा था।

इन आक्रांताओं से संघर्ष अगर किसी ने किया तो उनमें सर्वाधिक मेरी नस्ल के पुरखों ने किया था और इनसे मुक्ति में बलिदान भी 94%मेरी नस्ल ने दिया है।

🙏जितेंद्र सहरावत🙏

Saturday 18 February 2023

Jat Genetics DNA

The Jat genetic heritage has two main and equally important factors: L1a2 Y haplogroup (30-45%) and Steppe MLBA autosomal ancestry (30-45%), which is a unique combination in the contemporary world. Both of these two factors must be taken into consideration to judge or decide whether or not another population group is genetically related to the Jat.

For instance, the Gujjar is not related to the Jat because they lack both of these two factors, even though they look like the Jat, due to their elevated Iran Neolithic autosomal ancestry. Similarly, the Brokpa, Burusho, and others are not related to the Jat even though they have a higher frequency of L1a2 Y haplogroup (50% plus) because their Steppe MLBA autosomal ancestry is very low.

There exists a population called the Ghrit or Choudhary, residing in Himachal Pradesh, whose primary Y haplogroup is L1a2 (40% or greater). However, to establish their genetic relationship to the Jat, it is essential to confirm that their Steppe MLBA autosomal ancestry falls within the range of 30-45%.

N.B. Azad Siddhu suggests I should add another important factor to the Jat genetic heritage, that is, the proportion of AASI ancestry being less than 20% of the total genome. - by: Shivatva Beniwal

Friday 17 February 2023

दादे नगर खेड़ों/भैयों/भूमियों की फिलॉसोफी से सिंचित खाप-खेड़ा-खेत की किनशिप बारे आप कुछ सोचो व् उसके लिए रास्ता खेड़े रुपी पुरख खुद देते हैं!

 पिछले हफ्ते मैंने ग्रुप में डाला था कि "प्रस्तावित ऑनलाइन हरयाणवी डिक्शनरी" लांच करने से पहले, हम इसके फोनेटिक्स पर काम चाहते हैं तो इसी सिलसिले में आज सर डॉक्टर रामफळ चहल जी से बातें हुई व् उन्होंने स्वर्गीय डॉ. जगदेव सिंह ढुल, गाम भगवतीपुर, रोहतक की लिखी "हरयाणवी की प्रस्तावित लिपि" की पुस्तक का कवर पेज शेयर किया| और बताया कि आज तक जितने भी कार्य इस दिशा में हुए हैं, यह उन सब में सबसे उत्तम है| व् इसको आधार बनाकर कर हम गौर-ए-काबिल आने वाले सुधारों के साथ इस काम को अंजाम दे सकते हैं| 


इसमें अनूप लाठर सर के जरिये जुड़े पाकिस्तानी सोर्सेज बारे भी बात हुई कि वहां हरयाणवी लिपि का कार्य हमसे ज्यादा एडवांस स्टेज पर जा चुका है तो हमें उनके अपडेट्स समेत, एक साझा मंथन के तहत यह किया जायेगा तो ज्यादा बड़ा व्यापक व् सफल शुद्ध रूप इसी लिपि का निकल के आएगा| डॉ. संतराम देसवाल जी, हरविंद्र मलिक भाई साहब व् डॉ. महासिंह पूनिया जी से भी इस पर वार्ता हो चुकी है व् आप तीनों भी इस प्रोजेक्ट की "मींह ज्यूँ बाट देख रहे हैं"| एक तो बात हुई यह! लेकिन यह अहम की नहीं अपितु मर्म की बात है कि इंडिया साइड डॉ. जगदेव सिंह ढुल का इस क्षेत्र में कार्य, अब तक का सबसे उम्दा है|


दूसरी यह कि: सर ने बताया कि जयनारायण कौशिक जी ने एक हरयाणवी डिक्शनरी बना रखी है जिसमें कि करीब 5000 हरयाणवी शब्द हैं; जो कि 3000 के लगभग डॉ. चहल के खुद के दिए हुए हैं व् 2000 सर राजकिशन नैन जी के दिए हुए हैं| लेकिन इसमें त्रुटियां काफी हुई हैं व् हमारे दिए 2000 के करीब ठेठ हरयाणवी शब्द छोड़ दिए गए हैं| यह बात सच भी है, क्योंकि इसकी कॉपी अनिल राठी भाई, सुरेश देसवाल जी व् प्रोमिला चौधरी मैडम के जरिए मुझ तक आ चुकी है व् मैं सारी को खंगाल चुका हूँ और पाया है कि कौशिक जी ने करीब 500 शब्द तो माइथोलॉजी के नामों के इसमें चढ़ा रखे हैं; खैर इनको तो हम निकालेंगे ही या फिर रखेंगे तो "विदेशज केटेगरी" में रखेंगे| व् ऐसे ही अभी तक आई 2-4 अन्य हरयाणवी डिक्शनरियों का किस्सा है| इस पर हमारी दोनों की बातों से यह सुझाव निकल कर आया है कि क्यों ना इन मिसिंग 2000 शब्दों समेत और भी सम्भव शब्दों को संजोती लगभग 10000 शब्दों का टारगेट रखती हुई एक बड़ी हरयाणवी डिक्शनरी लाई जाए| इस पर फाइनेंस बारे, मैंने सर को प्रपोजल दे दिया है कि इस डिक्शनरी के पूरे फाइनेंस के लिए मैं अपनी "उज़मा बैठक" से प्रस्ताव पास करवा सकता हूँ; जिस पर मुझे आशा ही नहीं बल्कि विश्वास है कि उज़मा बैठक सहर्ष अपनी स्वीकृति दे देगी| 


तीसरा, यह निर्धारित हुआ है कि मेरी अगली इंडिया विजिट पे, "हरयाणवी भाषा लिपि, फॉनेटिक्स, व्याकरण व् शब्दावली" पर एक वर्कशॉप आयोजित की जायेगी; जो कि जरूरत व् कंटेंट के अनुसार एक दिन, दो दिन, तीन दिन या जितना जरूरत पड़ेगी; उतने दिन की हो सकती है| साथ ही, आगामी खापरतों '28 फ़रवृर से 8 मार्च) में भी एक या दो दिन इसी विषय पर चर्चा करवाई जा सकती है; जिसके लिए हम देखेंगे कि पहले से निर्धारित कार्यक्रम में इसके लिए कितना स्कोप रहेगा या खापरतों के बाद इस पर स्पेशल ऑनलाइन चर्चा ऑर्गनाइज़ की जाए| 


तो उज़मा के साथी, आप तैयार रहें; इन बिंदुओं के लिए व् इनमें यथासम्भव सहयोग करने  के लिए भी| 


जय यौधेय! - फूल मलिक




Jats Landholding and Royalty 1595

 कुछ भाईओ कौ गलतफहमी है कि जाट 300 साल पुराने या 250 साल पुराने जमीनदार है तो जब मुगलो नै जब भारत मे पैर रखा तो उनके सामने उतरभारत मे जमीनदार और राजा एक ही कौम थी वो थी जाट. राजस्थान मे भी जाट बडे जमीनदार थे और राजा 1490 तक थे जो खाप स्टाईल मे शासन करते थे पर खाप नही थे. उस समय जगलादेश मे राजपुत भुमिहिन थे और फिर अकबर ने उनको पहले जमीनदार बनाया फिर जागीर का राजा पर वो जागीरदार आजाद स्टेट कभी नही बना पाये. बिकानेर से झुनझुनु तक का इलाका जाटो ने आपस मे लडकर राजपुत शासको को एक गोदारा जाट राजा ने दिया और बाकि राजस्थान के बहुत इलाको मे जमीन राजपुतो को अकबर ने दी.

क्योकि पंजाब हरयाणा दिल्ली पशचिम युपी मे जाट खापो का राज था वहा अकबर ने समझौता कर लिया और इस इलाके कि जमीन और प्रशासन जाटो के पास रहा. भुस्वामी और जमीनदार अलग अलग थे. बडे भुस्वामी थे यह जमीनदार और आम जाट भुस्वामी से बडा था और जमीनदार के पास सैनिक थे और खेतीबाड़ी वाले भुस्वामी और व्यापारी से tax लेने के अधिकार था और सजा भी देता था. जाटो का अफगानिस्तान के सीमा से गवालियर तक राज चलता था और हर जाट परिवार भुस्वामी था और फिर जाट एक जमीनदार प्रशासक भी थे.
यह दिल्ली और हरयाणा युपी के कुछ इलाको का 1595 का मुगलो का बनाया जमीन का रिकार्ड है जिसमे सिर्फ जाट ही जमीनदार है एक दो इलाको मे राजपुत गुजर है. यह रिकार्ड तब का है जब राजपुतो को मुगल जमीनदार बना चुके थे उसके बाद भी खापलैड मे दुसरे किसान जैसै राजपुत जाटो के सामने कही नही . इस तरह के रिकार्ड हर जिले के है अगर उन सबका हिसाब लगाये तो 1595 मे जाट भारत के पंजाब हरयाणा दिल्ली पशचिम युपी और पाक पंजाब मे 50% जमीन के अकेले मालिक है. यह रिकार्ड भारत सरकार के पास भी है और हर university मे भी है जब जाटो ने कौटा मागा तो पिछडा समाज ने यह रिकार्ड का हवाला देकर जाटो का सबसे बडे जमीनदार और राजा घौषित कर दिया था.
जाट विरोधी प्रोफेसर यह नही बतायेगा ना धर्म के दुशमन क्योकि इससे उनका झुठ पकडा जायेगा. इस तरह कै सैकडो रिकार्ड है सब नही डाल सकते हमारे पास दस दस किलो के रिकार्ड है. बाकि जाट आरक्षण के मामलै मे supreme court का judgement है और पिछडा आयोग की रिपोर्ट भी है जिसमे जाट कौन है कितने बडे थे सब लिखा है
Kunwar Parveer Nagil



Thursday 16 February 2023

कम्प्टीटर्स तो तुम्हारी कमजोरी पर अपना खेल खेलेंगे ही, फिर उसको 'विदेशी हमला' या 'राष्टवाद पर हमला" कह के क्यों खिसिया रहे हो?

निचौड़: यह गोलवलकर की थ्योरी व् अधिनायकवाद का सबसे बड़ा असफल एक्सपेरिमेंट है, "अडानी को उभारना व् फिर उसका ताश के पत्तों की तरह ढह जाना"|

यह गोलवलकर की 'बंच-ऑफ़-थॉट्स' में लिखी थ्योरी कि "देश की सारी सम्पत्ति अपने एक-दो विश्वस्त लोगों को चढ़ा दो, व् इस तरह राष्ट्रवाद स्थापित कर लो"| पिछले नौ साल से देश में अधिनायकवाद ही तो लागू किया जा रहा था व् है; लोग डरते हुए या अपने निज-स्वार्थवश बोल नहीं रहे, वह एक अलग बात है|
लेकिन जब किला ढहना शुरू हुआ तो ऐसा ढहा कि $127 बिलियन से आज गौतम अडानी $52 बिलियन पर आ फिसले हैं| चलो मान लिया कि गोलवलकर वाला फार्मूला सही था (कम-से-कम वह लोग तो कहेंगे ही जो इन विचारों के समर्थक हैं); लेकिन unethical तरीके से इसको बनाने को किसने कहा था? अगर यही दो-चार सौ लोगों में बराबर से फैला के विस्तृत किया होता तो क्या हिम्मत थी हिंडनबर्ग रुपी काटडे की कि, "खा ज्या, माळ कसाइयाँ का?" चलो, इन नौ साल के बहाने यह गोलवलकर की थ्योरी भी देख ली, वरना बहम रहता कि पता नहीं कितना ही तो बड़ा जादू है इस थ्योरी में|
व्यापारी हो, सेठ हो व् मार्किट का नियम नहीं जानते? कम्प्टीटर्स तो तुम्हारी कमजोरी पर अपना खेल खेलेंगे ही, फिर उसको 'विदेशी हमला' या 'राष्टवाद पर हमला" कह के क्यों ढांप रहे हो? विदेशी मार्किट में खेलने के इतने ही कच्चे थे तो क्या बाबा जी ने कही थी, वर्ल्ड मार्किट में उतरने की? जो अब लोगों का 127-52 = $75 बिलियन डुबवा के कभी मीडिया पे सख्ती के जरिये तो कभी आम जनता पर और महंगाई व् टैक्सों की मार के जरिये "खिसियानी बिल्ली" ज्यूँ खीज निकाल रहे हो? चल पड़ते हो पल में विश्वगुरु बनने या बिना बने ही विश्वगुरु की फीलिंग लेने व् जनता को खामखा उसी में डुबा के रखने; इतना सीखे नहीं कि यह विश्व है, तुम्हारी भक्तमंडली नहीं|
अच्छा, मतलब वर्ल्ड मार्किट वाले तुम्हें सिर्फ इस बात पर अपना खेल खेलने देवें कि तुम unethical कैपिटलिज्म की प्रैक्टिसेज की हर सीमा पार करते जाओ व् बाकी वर्ल्ड मार्किट की मछलियां तुम्हें, बैठे- बिठाये रास्ता देती जावें? क्यों, वो क्या मार्किट में भुजिया तलने को बैठे हैं बस? मान लिया, "व्यापारी को कभी ना कभी दो नंबर गेम करना पड़ता है; परन्तु क्या इतना दो नंबर की बेसिक्स का कोई ख्याल ही नहीं व् धड़ाम से सब खल्लास"?
यही सच्चाई है अधिनायकवाद की व् गोलवलकर की, फंडियों की थ्योरी की| जनता 2024 में जागी तो जागी वरना तैयार रहें, "गले में काठ की हांडी व् कमर पर झाड़ू लटका के" चलने वाले दिनों की ओर लौटने को| इतना बड़ा भी गेम नहीं है इन नौसिखियों से पैंडा छुड़वाने का, बस सरजोड़ करना शुरू कर लो तो व् इनकी गपोड़ों भरे तथाकथित धार्मिक व् राष्ट्रवादी जुमलों से निकल, अपने वास्तविक आध्यात्म व् धर्म को पहचान के इनसे किनारा करना शुरू कर लो तो| लेकिन अभी तो यह भी सम्भव नहीं लगता; लगता है लोगों ने विनाश काल को इतना ज्यादा पीठ पर लाद लिया है कि चुप रहने को ही भला चातुर्य मानने लगे हैं; यहाँ तक कि ख़ामोशी से भी इनसे छिंटकने की नहीं सोचने लगे हैं; बल्कि हालात ऐसे है कि हम जैसे यह सब लिखे हुए बदबुद्धि व् राष्ट्रद्रोही दीखते हैं बहुतों को तो|
जय यौधेय! - फूल मलिक

यूपी के एक यादव साहब जो अनेक इतिहास खोजते रहते हैं उनकी एक पोस्ट ज्यों की त्यों शेयर कर रहा हूँ!

 

👇
जाटों का इतिहास कहाँ है..?
इतिहास गवाह है जब तुर्की लुटेरा महमूद भारत आया तो बड़े बड़े क्षत्रिय महाराजा दुम दबाये यहां वहां भागे घूम रहे थे या इस्लाम कबूल कर रहे थे वहां जाटों ने महमूद गज़नी के नाक में दम कर रखा था. एक छोटा सा प्रजातांत्रिक कबीला और उसके सरदारों ने अपनी जान की कीमत चुकाकर वह खौफ पैदा किया कि आगे आने वाले तमाम लुटेरों के दिल में इस काबिल का खौफ बना रहा. जैसा आप जानते हैं कि जाटों ने महमूद गजनवी को भारत से लौटते वक्त लूट लिया था और उसे बहुत तंग किया था। क्योंकि वे उसके ऊपर भटिंडा राज नष्ट करने के कारण तथा देव-मन्दिरों को लूटने के कारण चिढ़े हुए बैठे थे। महमूद उस समय तो जान बचाकर भाग गया था, किन्तु 1027 ई. में उसने बड़ी तैयारी के साथ जाटों को नेस्तनाबूद करने के इरादे से चढ़ाई की। जदु के डूंग में उनका राज्य था, जो अभी तक प्रजातंत्री सिद्धान्तों पर चल रहा था।
लेखक फरीश्ता ने बहुत बाद में इस युद्ध के बारे में लिखा जो कहीं न कहीं पक्षपातपूर्ण था. तार्किक विश्लेषण से उसके द्वारा लिखी गईं गयीं बातें केवल महमूद की महानता सिद्ध करना दिखाई देतीं हैं.कर्नल टॉड ने लिखा है कि महमूद गज़नी के साथ युद्ध में जाटों को बहुत क्षति हुई थी लेकिन इसके साथ ही तुर्कों में एक खौफ फैल गया था. महमूद और उसके साथियों के जाटों ने ऐसे दांत खट्टे किये कि फिर वे हिन्दुस्तान पर चढ़ाई करने की हिम्मत न कर सके.
महमूद ही क्या, उसके उत्तराधिकारी तक उस रास्ते से नहीं आये जिस रास्ते जाट पड़ते थे। जाट महमूद को ही नहीं तैमूर तक के होशों को बिगाड़ते रहे हैं। “वाकए राजपूताना” का लेखक लिखता है - यकीन है कि महमूद से सैकड़ों वर्ष बाद सन 1203 ई. उसके उत्तराधिकारी कुतुब को मजबूरन उत्तरी जंगल के जाटों से बजात खुद लड़ना पड़ा क्योंकि उन्होंने हांसी को स्वतन्त्र राज्य करना चाहा था और फिरोज आजम की लायक वारिस रजिया बेगम ने शत्रु डर से जाटों की शरण ली थी तो उन्होंने रजिया की सहायता के लिए गकरों की फौज जमा करके रजिया की सहायता में उसके शत्रु पर चढ़ाई की थी। वहां दुश्मनों पर विजय पाई गई। जाट इस युद्ध में वीरता के साथ मारे गए। जब 1397 ई. में तैमूर ने भारत पर आक्रमण किया था तो मुल्तान-युद्ध के समय जाटों ने उसे भारी अड़चन और कष्ट पहुंचाये। इसी बात से चिढ़कर तैमूर ने भटनेर पर हमला किया था।
जाटों का इतिहास भारत के इतिहास के लिए राजपूतों से कहीं ज्यादा कुर्बानियों से भरा हुआ रहा है लेकिन न जाने क्या कारण रहा कि इतिहासकारों ने इस वीर कौम का इतिहास कभी उजागर नहीं होने दिया....
देशी-विदेशी सभी इतिहासकारों ने इस बात के लिए स्वीकार किया है कि 600 ई. में पहले का पर्याप्त इतिहास नहीं मिलता और 600 ई. से 1000 तक का जो इतिहास प्राप्त होता है, वह भी अपूर्ण है।
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एक कहानी जो बहुत प्रचलित है उसका उल्लेख करना इस पोस्ट में बहुत जरूरी हो जाता है कि जाटों के गांव के पड़ौस में राजपूतों का बापोड़ा नामक गांव था। बापोड़ा वालों ने शाह दिल्ली को खिराज देना स्वीकार कर लिया था और जब धणाणा के जाटों के सामने यही प्रस्ताव पेश हुआ, तब उन्होंने कहा
घनघस जाटों के 900 सैनिक हर समय हैं तैयार- गाजे बाजे के संग लड़ने को,, युद्ध की पोशाक और पगड़ी सहित मारने मरने को..
किलों के बीच युद्ध के बाजे बजते रहते हैं -अपनी मेहनत का खाते हैं,न किसी का लेते हैं न किसी को डर के कुछ देते हैं
“बापूड़ा मत जाणियो, है यह गांव धणाणा।”
""हरियाणा के बीच में एक गांव धणाणा।
सूही बांधे पागड़ी क्षत्रीपण का बाणा।
नासे भेजे भड़कते घुड़ियान का हिनियाना।
तुरइ टामक बाजता बुर्जन के दरम्याना।
अपनी कमाई आप खात हैं नहिं देहिं किसी को दाणा।
बापोड़ा मत जाणियो है ये गांव धणाणा।”"

Thursday 9 February 2023

मोहन भागवत "जाति, पंडितों ने बनाई" के साथ यह भी बता देते कि यह नार्थ-इंडिया में हाथ जोड़ के नमस्ते करने व् पाँव छूने किसने आळ लाये लोग; खासकर खापलैंड पे?

मेरे बाबू नैं कदे उसके बाबू-दादों के पाँव छुए ना; म्हारे दादे नैं कदे उनके बाबू-दादों के पाँव छुए ना और ना कदे हाथ जोड़ नमस्ते करी| 


यह सब जो यह पिछली एक-डेड पीढ़ी शहरों में ज्यादा गडी ना, इसमें 80% शुद्ध जाट-बुद्धि छोड़ के शूद्र-बुद्धि में जो तब्दील होते गए व् गाम वालों पे अपने आपको श्रेष्ठ-ज्ञानी व् तथाकथित सभ्य (कल्चर्ड) दिखाने हेतु फंडियों ने जो अड़ंगा इनके पल्ले मढ़ा सारा फैलाते गए. उसकी मचाई खुरगाई है| और इसीलिए फरवरी 2016 तक आते-आते यह तथाकथित जाट-बुद्धि छोड़ शूद्र-मति बने सभ्य इतने बिरान हुए कि जो कदे इनके बाबू-दादे-पड़दादों को "जाट देवता" व् "जाट जी" लिखते-गाते-बिगोते नहीं थका करते, उन्हीं के हाथों 35 बनाम 1 में आन घिर बैठे| 


मेरे दादा ने कभी इन पहलुओं पर मुझे दादा होने वाला दम्भ नहीं दिखाया| इंडिया में था तो किसी शहर में पढ़ा या जब विदेश आया, कभी नहीं| जब भी फ़ोन करता था और दादा से बात होती थी तो मेरे बोलने से पहले आगे से रटी-रटाई सी आवाज आती थी दादा की, कि, "नमस्ते फूल, ठीक सै बेटा (कभी-कभी भाई या पोता)"| मतलब मेरे भले पुरख दादे नैं कदे इस बात की बाट ना देखी फ़ोन-कॉल पे अक मैं आगे तैं पहले नमस्ते करूँगा तो ही अगला नमस्ते करेगा| इतने ओपन-माइंड थे म्हारे बूढ़े; ऐसी बातों से ही समझा देते थे कि कोई उम्र, नाते या ओहदे में बड़ा है, उसको सिर्फ इसलिए नमस्ते नहीं करी जाती; बड़ा भी पहले कर सकता है| आह्मा-स्याह्मी भी क़दे हाथ जोड़ के नमस्ते नहीं करी, दादा को; सलूट करने वाली नमस्ते होती थी (थैंक्स टू मिल्ट्री-कल्चर ऑफ़ खापलैंड) व् आगे से दादा का हाथ सीधा सर पे होता था| और यह रीत सिर्फ मेरे सगे दादा की नहीं थी, उस पीढ़ी के सारे बूढ़ों की थी; चाहे वो गाम-गुहांड के थे या रिश्तेदारियों के|


यह देखा-देखी भतेरी हो ली इब; इस देखा-देखी में अपने कल्चर की "गधी आळी लीदरी" सी कढ़वा ली| इसीलिए मोहन भागवत ने जैसे उसकी बात में सुधार किया है, आज से मैं भी कर रहा हूँ; और वह यह कि "अपने कल्चर-किनशिप वाले किसी को भी ना हाथ जोड़ के नमस्ते करूँगा और ना पाँव छुऊंगा; सिर्फ सलूट वाली नमस्ते हुए करेगी| हाँ, कल्चर से बाहर किसी का कल्चर इसकी मांग करता है तो उनके कर देंगे; जो शरीफ होंगे उनके शराफत के साथ व् जो डेड-सयाने होंगे उनको इस भरम में रखने हेतु कि हम उनके भुकाये में ही चलते हैं आज भी हाहाहाहा; ताकि वो इसी भरम में राजी रहें| 


वैसे भी म्हारे कल्चर में पांवों की तरफ हाथ ल्फाणे का मतलब होता है अगले को टांगों से उलाणना!


जय यौधेय! - फूल मलिक

Monday 6 February 2023

6 फरवरी 1858: वह तारीख जिस दिन हरयाणा देस यानि खापलैंड के दो टुकड़े कर दिए गए थे!

एक टुकड़ा यानि आज का हरयाणा, पंजाब में मिल दिया गया था|

दूसरा टुकड़ा यानि आज का वेस्ट-यूपी उस वक्त के अवध प्रान्त यानि लखनऊ में मिल दिया गया था|
यह तोड़ना दरअसल सर्वखाप की उस ताकत को तोड़ना था, जिसने 1857 की क्रांति करी थी व् सबसे ज्यादा अंग्रेजों को नाकों चने चबवाये थे| कहते हैं कि इस ताकत को इस हद तक बिखेर दिया था कि यमुना के आर-पार ब्याह-रिश्तों तक पर बैन लग गया था| हालाँकि छुपते-छुपाते ब्याह-रिश्ते होते रहे, जो कि अब फिर से ज्यादा स्तर पर होने शुरू हुए हैं| उम्मीद है कि यह उसी स्तर तक जायेंगे जिस पर 1858 से पहले हुआ करते थे|
वैसे एक तीसरा टुकड़ा और हुआ यानि दिल्ली सन 1911 में देश की राजधानी बनाई गई, कलकत्ता से उठा कर| ताकि दुनिया की सबसे क्रन्तिकारी व् डेमोक्रेटिक कौम बाहुल्य इस इलाके पर नजदीक से कण्ट्रोल रखा जा सके|
जय यौधेय! - फूल मलिक

सन 1881 के रोहतक गजटियर के अनुसार रोहतक में निम्नलिखित शहर/नगर होते थे!

बेरी, कलानौर, महम, काहनौर, सांघी, झज्जर, बहादुरगढ़, खरखौदा, बुटाना, गोहाना, बरोदा, मुंडलाना| 


इनमें काहनौर, सांघी, बुटाना, बरोदा, मुंडलाना आज गाँव कहलाते हैं; कौन जिम्मेदार है इस डिग्रडेशन का? 


और यही वजहें होती थी कि हमारे दादा खेड़े, "दादा नगर खेड़े" कहलाते आये हैं| अब सोचो तुमसे इसमें "नगर" शब्द हटवा सिर्फ "दादा खेड़ा" कहने की आदत किसने डाली? 


कभी सोचा करो इन बातों पर| शहरी मिजाज व् अंदाज के लोग थे थारे पुरखे, थम ग्रामीण कैसे बन गए? 


जब इन पे सोचना शुरू करोगे तो 35 बनाम 1 जैसे ड्रामे के सारे तार खुलते नजर आएंगे| व् जो धक्के से खुद को कबीला-कबीला करके सभ्यता के नाम पर जंगलों तक में धकेलने को उतारू हैं; उनको भी शायद कुछ समझ आये| वैसे भी कबीलों में गाम-गौत-गुहांड के नियम नहीं होते; तो ब्याह लो आपने बालक गाम-गौत में ही, के दिक्क्त सै? 


शुक्र है, यह अंग्रेज भले वक्तों में इन बातों को डॉक्यूमेंट कर गए, नहीं तो लोगों को उनके अतीत का सही आभास करवाना कितना मुश्किल काम होता; इन फंडियों की भरी गप-गपोड़ वाली पोथियों के बीच| 


आज की पीढ़ी की सोच की पंगुता का आलम इतना हो चुका हैं कि आगे तो क्या ही सभ्यता जोड़ेंगे; जो पुरखे खड़ी करके गए थे, उसी को संगवा लो तो गनीमत| 


जय यौधेय! - फूल मलिक