Sunday 29 October 2023

निडाणा गाम, जिला जींद के ठोळे-ढूंग व् नंबरदारों की सूची!

सांजरण पान्ना: 

राहतस ठोळा:

1 - घरद्याला ढूंग - दादा लछमन नंबरदार परिवार|

2 - उन्ह्यान ढूंग - दादा स्वरुप सिंह नम्बरदार परिवार| 

  1. भजन, रुलिया, हरपत
  2. बालू
  3. गड़गे, मुंशी, प्रह्लाद, स्वरुप सिंह, मुकन्दी
  4. भानू, ठोईया, जुगला
  5. ज्वाला (बेऔलादा)

मलवा ठोळा:

1 - हेतम ढूंग - दादा झुन्डा सिंह नंबरदार

  1. लाक्के - दादा बाऊ, मांगा, श्योदयाल, सूधन, तास्से 
  2. आस्सा - कुंदन, मुंशी टुण्डलिया

2 - मनोहर ढूंग: 

  1. दादा जागर - जिन्होनें स्कूल में दान दिया था, चत्तर सिंह, फतेह सिंह
  2. गिरधारी

लखमीर पान्ना:

चेतू ठोळा – दादा रामफल बांडा नम्बरदारी परिवार

  1. शद्दा ढूंग: धूपल, शेरा बांगा (सतपाल), मखा, सहीराम (स्वामी रतन देव), दादी घसो आली परिवार
  2. कल्लू ढूंग: नन्नू बाबडिया, बुल्ला
  3. मुकन्दी, बोहना ढूंग
  4. जाती - पल्ला ढूंग
  5. तोता (बेऔलादा – चेतु के आधे का हकदारी) ढूंग
  6. बदलू (सेठ के दादा), मोखा (मान्ना के दादा), चुनी (चन्दर – खलड़ीए) ढूंग

रघुनाथ ठोळा - दादा मन्नी नंबरदार

  1. गंडे ढूंग: दुन्नी, द्योला, मनफूल, हवा
  2. मन्नी ढूंग: देशा (श्योकरण बोली)
  3. भैड़े ढूंग
  4. फ़ाददु ढूंग

गड्डू ठोळा - दादा शेर सिंह नम्बरदार

  1. दादा श्योजी (सबसे बड़ा नाता), जैला, दरिया, ठकुरिये

भंता ठोळा - दादा भरथा नंबरदार (मास्टर रतन सिंह परिवार)

  1. गुलाब
  2. ज्ञानी, ह्रदया, लालू
  3. मेदा, जयकरण, सुल्तान, नाथू
  4. भोले (नजदीकी)

कटारु ठोळा - दादा इन्दर सिंह नम्बरदार - हरजस परिवार

 काले ठोळा - दादा महा सिंह नंबरदार

  1. कूड़ा: महा सिंह
  2. बेल सिंह: पाल्ले, इंद्र (रण सिंह), मीठिया (बलवान-महावीर)

मंदरूप ठोळा - दादा संता नंबरदार

  1. रत्ना सरपंच
  2. बनी सिंह
  3. मड़कन - बीर सिंह (पूनिया के)
  4. कुंदा
  5. दैया/दात्ता: झुर्री, लाँडै के (जागर बूटी, जहाज), रामचंद, दयोकराम
  6. राठी 

शोभा नम्बरदार - दादा हरद्वारी परिवार (ब्राह्मणों में)

  1. मोहनलाल
  2. कोकोबगडी
  3. कोड़ा

नम्बरदारी रविदासियों में दादा चतरा के परिवार में|

इनफार्मेशन सोर्स: स्वर्गीय दादा चतर सिंह, भंता पन्ना - निडाणा व् बबला मलिक

शोध व् संकलनकर्ता: फूल कुमार मलिक

Saturday 28 October 2023

भारत की खापलैंड व् मिसललैंड के खेती-किसानी मॉडल का सामाजिक-कल्चरल पहलू यूरोप-अमेरिका के खेती-किसानी मॉडल जैसा ही है!

1 - दोनों ही जगह खेत का मालिक, खुद खेत में काम करता/करती है; अपने सीरी-साझी (सामंती जमींदारों की भाषा में नौकर) के साथ

2 - दोनों उदारवादी जमींदारी के मॉडल हैं

3 - दोनों में सामूहिक परवार परम्परा है, परवार का मुखिया होता है

4 - दोनों के बच्चे उच्च शिक्षा के लिए शहरों में जाते हैं

5 - दोनों के बच्चे, बच्चों के बच्चे छुट्टियों में अपने गाम-खेतों में दादा-दादी, नाना-नानी के यहाँ छुट्टियां बिताते हैं


इसके साथ ही और भी कई सारी समानताएं हैं| 


और यह भारत के खापलैंड व् मिसललैंड से बाहर के राज्यों में पाए जाने वाले सामंती-जमींदारी मॉडल से उल्ट हैं| 


जय यौधेय! - फूल मलिक

Tuesday 24 October 2023

जरूरी पुरखाई आत्मविश्वास भरता उज़मा बैठक का "सांझी अंतर्राष्ट्रीय मेळा"!

सन 1986 या 1988 में हरयाणवी इंडस्ट्री के दादा चौधरी सर रघुवेन्द्र मलिक जी ने राजकीय सांझी डलवाई थी| उसके बाद सन:-सन: हालत यह आन पहुंची थी कि सन 2020, जब कोई विरला सांझी को इसके शुद्ध खाप-खेड़ा-खेत रूप में मनाने की परिपाटी से इसको मनाता दीखता था; कोई विरला डालता भी था तो निराशाओं के अँधेरे में टिमटिमाती परंपरा को जारी रखने की आदत से, शायद| आज 2023 की तरह नहीं था 2020 में कि इसके 5-6 तो स्टेट स्तर के आयोजन व् गाम-गाम, शहर-विदेश में फैलना-डलना एक नए जोश व् जुनूनी वादे के साथ उठ खड़ा हुआ है| बात यह भी नहीं है कि सांझी का डलना जरूरी था, बात यह है कि इसका वास्तविक अर्थ व् "पुरख-किनशिप वाला कल्चरल रूप, उससे जुड़े आर्थिक-पारिवारिक व् एथनिक-स्वाभिमान ज्यादा चर्चा में चल निकले हैं| और यही तो उज़मा बैठक ले के चली थी यानि "उदारवादी जमींदारों के दर्शनशास्त्र से भरे पुरख-कल्चर को थके-हारे-टूटे हुए से हौंसलों से नहीं अपितु उसी पुरखी-अणख व् शानो-शौकत से मनाएं; जिसकी वजह से खाप-खेडा-खेत जाने गए"; और यह तपस्या प्रस्तुत करी 2020 में लग के उज़मा बैठक ने| 2020 में 21 टीम, 2021 में 54 टीम, 2022 में 80 टीम व् 2023 में 94 टीमों ने क्वालीफाई किया और उसपे वरदान सोशल मीडिया; जिसने इसने इसको उन मानसिक गलियारों में उतार दिया जहाँ पुरखों वाले अणखी आत्मविश्वास डूब चले थे| तो जिनको वह पुरखों वाले अणखी आत्मविश्वास व् सरजोड़ वापिस चाहियें, वह जुड़ें उज़मा से| बाबा नानक वाली बात, "जुड़े, बसें व् उजडें"| कहोगे कि उजडें क्यों, क्योंकि बाबा नानक कहते थे उजड़ोगे तभी तो दूर-दूर तक फैलो व् फैलाओगे|  


आज इस जुड़ने-उजड़ने का यह शिला रहा कि लोग एक ही समय में आने वाले 5-6 त्यौहारों में फर्क करना सीख गए हैं; हरयाणा सीएम खट्टर जैसों द्वारा "कंधे से ऊपर कमजोर, नीचे मजबूत" के ब्यानों के मायने, इन कल्चरल चीजों को कॉपी-पेस्ट तरीके से मनाने में पाने लगे हैं| पाने लगे हैं कि अगर हम अपने कल्चर की शुद्धता नहीं रखेंगे तो कितने ही उदारवादी बन के जिस किसी को छाती से चिपका लें, वह उसको आपका अपनापन, आपका दर्शशास्त्र, आपकी हृदयविशालता समझने की बजाए, आपकी मंदबुद्धि समझेगा; आपको कंधे से ऊपर कमजोर समझेगा| यह निष्ठुर दुनिया है बाबू, इसके समाज में अपना अस्तित्व समझाये रखने हेतु जरूरी है कि इधर-उधर का कुछ भी उठा के अपने "पुरख-त्योहारों' का रूप बिगाड़ लेने की बजाए उसकी शुद्धता पर अडिग रहेंगे तो ही लोग आपकी मानसिक मजबूती समझेंगे अन्यथा अपने प्रारूपों को अलानी-फलानी में मिक्स करके देखो-दिखाओगे तो वही खटटर वाली बात| 


यहाँ समझने की बात यह भी है कि कल्चर की शुद्धता को कल्चर को मात्र धंधे के तौर पर ले के चलने वाले कायम नहीं रख पाते हैं; वह तो 2-4 रुपये और फ़ालतू कमाने को इसमें दूसरी मूर्त भी घुसा देते हैं, अलानी-फलानी भी जोड़े लेते हैं; जैसे कि आपकी शुद्ध हरयाणवी भाषा में हिंदी घुसा देंगे; कारण देंगे कि इससे ज्यादा लोगों तक चीज जाएगी; परन्तु हद तब हो जाती है जब उस ज्यादा यानि क्वांटिटी बढ़ाने के चक्कर में क्वालिटी कहीं पीछे छूट जाती है वह क्वालिटी जो आती है 'पुरख-किनशिप कॉन्सेप्ट्स' पर कायम रहने से; जो कल्चर के वास्तविक पैशन (passion) वाले ही दे पाते हैं| अगर इस बात पे ऐसे लोग थोड़ा सा ध्यान दे लेवें तो हम मिलके "खाप-खेड़ा-खेत किनशिप" को जो पुरखों ने जिसकी बुलंदी बनाई थी; उससे भी कहीं आगे चढ़ा देवें| 


इसी के साथ आप सभी को सांझी की फिर से बधाई; उज़मा से सीखी यह सीख थामे रखिएगा कि "सांझी कोई अवतार या माया नहीं अपितु सांझी आपकी सांझी बेटी है'| शाब्दिक अर्थों के मेल से भाषाई तौर के तुक्कों से इसको मत समझना, क्योंकि भाषाई शब्दों के तुक्कों से तो मैं भी कह दूंगा कि हरयाणवी शब्द इंडि से इंडिया निकला है| इसलिए देश के अन्य राज्यों में इसकी शाब्दिक समानता भर से हमारी सांझी का दार्शनिक रूप नहीं बदल जायेगा; वह हमेशा वही रखना है जो हमारी पुरख किनशिप से निकलता है और वो है कि, "गाम की बेटी, सबकी सांझी बेटी"| 


बधो-लधो-बसो-उजड़ो!


सलंगित फोटो है उज़मा सांझी कम्पटीशन की "दीदी पूनम गिल नेहरा, कनाडा टीम" की!


जय यौधेय! - फूल मलिक




Wednesday 18 October 2023

एक साथी ने पूछा कि क्या दुर्गा व् सांझी एक हैं?

 जवाब कुछ यूँ था, Shared Culture व् Copyright Culture वाला फर्क है भाई साहब:


सांझी म्हारा Copyright Culture है जबकि इन्हीं दिनों मनाए जाने वाली रामलीला, डांडिया, दुर्गा पूजा, नवरात्रे हमारे लिए Shared Culture हैं| 


Shared Culture इसलिए, क्योंकि: 


अगर आप कहने लगो कि नवरात्रे हमारे हैं तो अरोड़ा/खत्री बोल पड़ेंगे कि यह तो हमने दिए हुए हैं, तुम्हारे कैसे हुए? 

अगर आप कहने लगो कि डांडिया डांस हमारा है तो गुजराती बोल पड़ेंगे कि यह तो हमने दिया हुआ है, तुम्हारा कैसे हुआ? 

अगर आप कहने लगो कि दुर्गा-पूजा हमारी है तो बंगाली बोल पड़ेंगे कि यह तो हमने दी हुई है, तुम्हारी कैसे हुई? 

अगर आप कहने लगो कि रामलीला व् दशहरा हमारा है तो अवधि यानि पूर्वी-यूपी बोल पड़ेंगे कि यह तो हमने दिए हुए हैं, तुम्हारे कैसे हुए?


यह कोई भी आपको हाथ नहीं रखने देगा, अपना क्लेम करने के नाम पर| और ना आप ऐसी रेफरेन्सेस दे पाओगे जिससे आप इसको अपने लिए क्लेम कर सको; जैसे कि इनको मनाने का आपके यहाँ इतिहास कितना पुराना है अथवा यह आपकी कल्चरल मान्यताओं से निकलते हैं तो कैसे?  


तो ऐसे में इन्हीं के समकक्ष इन्हीं दिनों में मनने वाला आपका क्या है फिर, जो ऊपर की बातों को भी पूरा करे व् आप उसपे अपना हाथ भी रख सको? आपकी है सांझी| 


अत: Shared Culture यानि जो दूसरी स्टेटस-कल्चर के सधर्मी migrants मनाते हैं व् अपने साथ हमारे यहाँ ले आए; व् Copyright Culture जो इतिहास व् कल्चरल मान-मान्यताओं व् ages-old practices से हमारे पुरखे करते-बरतते आये| 


अगर इन दोनों का अंतर् सही से जान के, अपने Copyright Culture को सहेज के नहीं चलो तो फिर migrants आपको "कंधे से ऊपर कमजोर व् नीच मजबूत" के ताने देते मिलते हैं; जैसे खटटर ने 2015 में गोहाना के एक कार्यक्रम में कहा था कि "हरयाणवी कंधे से ऊपर कमजोर व् नीचे से मजबूत होते हैं"| इसलिए यह ताने नहीं सुनने तो अपने Copyright Culture पे खड़ा होना सीखें व् अगली पीढ़ियों को सिखाएं| 


एक खापलैंड वाले के लिए यह फर्क है, इन बाकियों व् सांझी में| 


जय यौधेय! - फूल मलिक

Saturday 14 October 2023

एक प्रयास ... 234 बच्चों ने लिया "हिंदी-इंग्लिश सुलेख प्रतियोगिता में भाग"!

दादा नगर खेड़ा लाइब्रेरी -निड़ाना की टीम द्वारा 14 अक्टूबर 2023 को सुलेख प्रतियोगिता का आयोजन किया गया। जिसका उद्घाटन गाँव के माननीय सरपंच श्री भूपसिंह ने किया। जिसमें 10 स्कूलों के कक्षा एक से बारहवीं व कॉलेज के विधार्थियों समेत कुल 234 विद्यार्थियों ने भाग लिया व् हिंदी-इंग्लिश में से अपनी स्वेच्छित भाषा में सुलेख लिखा।


विषय रहा - “मेरा गाँव, मेरी शान" 


इससे बच्चों को अपने गाँव का इतिहास जानने का मौक़ा मिला। बच्चों ने अपनी तैयारी के लिए अपने-अपने दादा-दादी, अपने अभिभावकों, गाँव के अन्य बुज़र्गो से बातचीत करके अपने गाँव का इतिहास जानने में अपनी रुचि दर्शाई। साथ ही बच्चों ने www.nidanaheights.com की website को भी बार-बार देखा, जहाँ पर गाँव के इतिहास के बारे में बेहतरीन जानकारी उपलब्ध है।


इस कार्यक्रम को बेहतर बनाने के लिए सभी ग्रामवासीयों, सभी स्कूलों, सभी सहयोगियों व टीम - दादा नगर खेड़ा लाइब्रेरी का बहुत बहुत साधुवाद; व विशेष धन्यवाद भाई दलबीर सिंह चहल जी जो रधाना से आए व बहन शुभम् का जिसने गाँव की लाइब्रेरी में पढ़कर पोस्टऑफिस विभाग में सरकारी नौकरी प्राप्त की; जिसने स्वयं भी परीक्षा दी व परीक्षा लिवाने में भी सहयोग किया, व आप सभी प्यारे-प्यारे बच्चों का, जिनके बिना इस कार्यक्रम को कर पाना संभव नहीं था।


अभी सभी के सुलेख हिंदी-इंग्लिश के विशिष्ट अध्यापकों को मार्किंग के लिए भेज दिया गया है; अंदाजा है कि अगले 10-12 दिन में प्रतियोगिता के नतीजे तैयार हो जाएंगे।


ऊपर शेयर किये गए हैं प्रतियोगिता के कुछ फोटोज!


आपकी भवदीय,

मैनेजमेंट टीम, 

दादा नगर देखा लाईब्रेरी निडाना, जींद










Thursday 12 October 2023

जाट कल्चर

 जिन्द जट्ट दी, वजूद जट्टी दा

जमीन जट्ट दी ,सन्दूक जट्टी दा,

जंगल जट्ट दा, चौबारा जट्टी दा,

पसीना जट्ट दा ,दुपट्टा जट्टी दा,

अन्न जट्ट दा, निवाला जट्टी दा,

ईंधन जट्ट दा, धुँआ जट्टी दा,

मिटटी जट्ट दी, चूल्हा जट्टी दा,

अग्ग जट्ट दी, तवा जट्टी दा,

चारा जट्ट दा ,दुद्ध जट्टी दा,

मेहनत जट्ट दी, फल जट्टी दा,

गुस्सा जट्ट दा, प्यार जट्टी दा,

आँख जट्ट दी, आँसू जट्टी दा,

मेहमान जट्ट दा, रिश्ता जट्टी दा,

दादका जट्ट दा, नानका जट्टी दा,

बैठक(घेर) जट्ट दी, वक्खल(घर)जट्टी दा,

डांट जट्ट दी, लाड़ जट्टी दा,

ललकार जट्ट दी, गीत जट्टी दा,

अकड़ जट्ट दी, दामन जट्टी दा,

खून जट्ट दा, दूध जट्टी दा,

शर्म जट्ट दी, लिहाज जट्टी दा,

मर्यादा जट्ट दी, संस्कार जट्टी दा,

हिम्मत जट्ट दी, एतवार जट्टी दा,

दुनिया जट्ट दी, चक्कर जट्टी दा,

जख्म जट्ट दा, मरहम जट्टी दा

कर्म जट्ट दा, धर्म जट्टी दा,

जाटिज्म सबका

#jat_jatni

Haryana Caste-wise Population Ratio

हरियाणा वालों के मन में भी बिहार में हुए जातीय सर्वेक्षण के बाद हरियाणा के जातीय आंकड़ों को जानने की उत्सुकता पैदा हुई है | अभी यह भविष्य के गर्भ में है कि हरियाणा में जातीय जनगणना होगी या नहीं और उसके बाद क्या आंकड़े निकलकर सामने आएंगे | भाई आशीष राणा के मन में भी जिज्ञासा पैदा हुई है| इसलिए मैं प्रवीन कुमार भाई आशीष राणा के लिए थोड़ा अभ्यास करके आंकड़ों को इकट्ठा कर रहा हूं |लेकिन फिलहाल पुरानी जनगणनाओं और विभिन्न सर्वेक्षणों के आधार पर हम एक मोटा मोटी अनुमान लगा सकते हैं | भविष्य में जब भी जनगणना होगी तो इन आंकड़ों में थोड़ा बहुत ही परिवर्तन हो सकता है | 

              हरियाणा की आबादी को आधिकारिक तौर पर चार वर्गों में बांटा गया है जिनमें अलग अलग संख्या में जातियां शामिल हैं| | सबसे पहले अनुसूचित जाति वर्ग (SC), दुसरा पिछड़ावर्ग- ए (BC-A) , तीसरा पिछड़ावर्ग-बी (BC-B), और अंत में सामान्य (General) या अनारक्षित वर्ग| अगर धार्मिक आंकड़ों की बात की जाए तो  जनगणना 2011 के अनुसार हरियाणा में 87.46% हिंदू,7.03% मुस्लिम, 4.91% सिख , 0.21%जैन, 0.2% इसाई,0.03%बौद्ध, 0.18% अन्य धर्मों के लोग निवास करते हैं| हर धर्म की आबादी एक से अधिक वर्गों में विभाजित है | इसके अलावा कयी जातियां एक से अधिक धर्मों में आस्था रखती हैं| हरियाणा के विभिन्न वर्गों,जातियों के साथ साथ उनके प्रतिशत और धर्म (अगर हिन्दू से अलग है तो आवश्यक रूप से) का विस्तार से वर्णन नीचे कर रहा हूं|


A. अनुसूचित जाति वर्ग:- हरियाणा में अनुसूचित जाति वर्ग के अंदर लगभग 37 जातियां आती हैं| जिनकी कुल संख्या 2011 की जनगणना के अनुसार 20.17%  है |  इस वर्ग में चमार और उसकी 15 उपजातियां (चमार,जटिया चमार,रैगर, रायगर,रामदासी, रविदासी, बलाई, बटोई,भटोई, भाम्बी, चमार-रोहिदासी, जाटव ,जाटव ,मोची, रामदासिया सिख )मिलकर सबसे बड़े समूह का निर्माण करती है|  SC वर्ग में आने वाली जातियां हैं :-

1.चमार -9.58% 

2.बाल्मीकि -3.69%

3.धानक -2.29%

4.ओढ़ -0.65%

5.मजहबी सिख- 0.55%

6.बाजीगर -0.54%

7.कोरी/कोली- 0.39% 

8. शेष 30 जातियां - 2.44%  (जिनके नाम  हैं आदधर्मी, बंगाली, बेरार, बटवाल, बावरिया, भंजरा ,चनल ,दागी,डरेन, ढेहा, धांगरी, डूम(मुस्लिम), गांगरा , गंधीला, कबीरपंथी जुलाहा , खटीक, मरीजा ,मेघ , नट/बादी, पासी ,पेरना, फरेरा, सनहाई, सनहाल, सांसी, सपेरा, सरेरा, सिकलीगर सिख ,सिकरीबंद सिख )|

 

B.पिछड़ा वर्ग -ए (BC-A) :-हरियाणा में पिछड़ा वर्ग ए में आने  वाली कुल 72 जातियां जिनकी कुल आबादी लगभग 16.33% है | पिछड़ा वर्ग-ए में आने वाली जातियां:-

1. कुम्हार -1.9 लगभग (हिन्दू और मुस्लिम)

2.झींवर/कहार -1.7 लगभग (हिन्दू और मुस्लिम)

3.खाती- 1.7 लगभग (हिन्दू और सिख)

4.नाई-1.2 लगभग (हिन्दू, मुस्लिम)

5.कंबोज-1.1 लगभग (हिंदू और सिख)

6.शेष 67 जातियां- 9.4% लगभग        ( जिनके नाम हैं नायक,बेररा,हेशीर,बगरिया,बरवार,तम्बोली,बैरागी/साध, बटेरा, भड़भूजा,भाट,भुबलिया,चांगल,चिडी़मार,चांग,छिप्पी/दर्जी हिन्दू व मुस्लिम, डेहा, धोबी मुस्लिम,डाकौत,धोसली, फकीर मुस्लिम, गवारिया,घोसी मुस्लिम,गोरखा,गवाला, गड़रिया,गाड्डेलुहार ,,बड्डी मुस्लिम,जोगी/नाथ,कंजर, कुर्मी,खांगेंरा, कुचबंद, लबाना सिख, मनिहार हिन्दू और मुस्लिम, लोहार हिन्दू व मुस्लिम,मदारी,मोची मुस्लिम,मिरासी मुस्लिम,नार,नूणगर,नलबंद,पैंजा/ पिंजा,रेहड़ा,रायगर मुस्लिम,रायसिख,रेचबंद,शोरगीर,सोई,सिंगीवाला,ठठेरा, 

तेली मुस्लिम, बंजारा, जुलाहा मुस्लिम,चारण,चाराज, उदासी,नीलगर मुस्लिम,सोनी,राजभर,नट मुस्लिम,जंगम )|


C.  पिछड़ा वर्ग -बी (BC-B) :-हरियाणा में पिछड़ा वर्ग-बी में आने वाली कुल 6 जातियां हैं जिनकी कुल आबादी लगभग 12.5% है| पिछड़ा वर्ग -बी में आने वाली जातियां:-

1.अहीर/यादव:-4.9% लगभग

2.मेव:-2.9% लगभग (मुस्लिम)

3.गुर्जर:-2.4% लगभग (हिंदू व मुस्लिम)

4.सैनी/माली:-2.2% लगभग (हिंदू व सिख)

5.लोध व 6.गुसाईं :- 0.2 लगभग 


D. सामान्य या अनारक्षित वर्ग :- हरियाणा में सामान्य या अनारक्षित वर्ग जिसकी कुल जनसंख्या 51% के लगभग है जिसमें में मुख्य रूप से 10 से15 जातियां हैं जो निम्नलिखित हैं:-

1.जाट:-24% लगभग

2.सिख जाट:-3% लगभग

3.मुस्लिम जाट:-0.2% लगभग

4.ब्राह्मण:-7.3% लगभग

5.अरोड़ा+खत्री:-7%(5+2) लगभग

6.बनिया:-4% लगभग

7.राजपूत:-3% लगभग

8.रोड़:-1% लगभग

9.बिश्नोई :-0.6% लगभग

10.अन्य जातियां:- 0.9% लगभग (त्यागी ,सिख अरोड़ा खत्री,पठान, कायस्थ आदि )

      हरियाणा राज्य का बड़ा क्षेत्र एनसीआर क्षेत्र के अंतर्गत आता है | वर्तमान समय में यहां एक अच्छी खासी संख्या में प्रवासी भी बसे हैं | इन प्रवासियों के आने से उन जातियों की प्रतिशत संख्या में कोई  अंतर नहीं आएगा जिनका विस्तार भारत के बड़े भूभाग में हैं| लेकिन वे जातियां जो केवल हरियाणवी क्षेत्रों में ही बस्ती हैं उनकी संख्या प्रतिशत जरूर कम होगी | इसके अलावा एक बात और ध्यान देने कि बहुत सी प्रवासी जातियों को भी हरियाणा में SC,BC-A,BC-B का दर्जा मिला है | इसलिए इन वर्गों की संख्या में कमी आने की कम ही सम्भावना है | हरियाणा में बीसी-ए  में आने वाली क्रमांक 50 रायसिख और क्रमांक 1हेड़ी/नायक नामक जातियों को अब अनुसूचित जाति सूची में शामिल कर दिया गया है जिससे बीसी- ए (BC-A)की संख्या कम और एस.सी.(SC)वर्ग संख्या में बढ़ोतरी होगी | मैंने अपनी तरफ से पूर्ण प्रयास किया है कि आंकड़ों में कोई ग़लती ना हो | अगर आपको कोई ग़लती लगती है तो तथ्यों सहित अवगत करा सकते हैं | सही तथ्यपूर्ण सूचना स्वीकार करके सुधार कर दिया जाएगा | धन्यवाद | 🙏🙏🙏

लेखक :- प्रवीन कुमार | तहसील- बादली | जिला - झज्जर|

Friday 6 October 2023

मनोवैज्ञानिक युद्ध कैसे जीतते हैं फंडी एशियन-गेम्स 2023 के नतीजे इसकी बानगी हैं!

इस बार एशियन-गेम्स में कुश्ती में 18 खिलाडी गए हैं, 6 महिला व् 6 पुरुष ग्रीको रोमन में व् 6 पुरुष फ्री-स्टाइल में| पिछले वर्षों में जहाँ 18 में से न्यूनतम 10 से ऊपर मेडल आने का ट्रेंड चला हुआ था; वह इस बार बुरी तरह धराशायी होता दिख रहा है| 12 खिलाडी पूरा खेल चुके, सिर्फ 2 मेडल्स मिले हैं वह भी ब्रॉन्ज़| ग्रीको पुरुष के नतीजे आज आ जायेंगे, उसमें भी टॉप स्टार बजरंग का प्रदर्शन देखते हुए 1-2 ब्रॉन्ज़ ही और आता दिख रहा है; गोल्ड-सिल्वर शायद ही आए अबकी बार कुश्ती में| 


यही हाल बॉक्सिंग का बॉक्सिंग पुरुष में 7 में से सिर्फ 1 मेडल आया है| महिलाओं में फिर भी 4 आए हैं, परन्तु गोल्ड एक भी नहीं| 


इंडिया में खिलाडियों पर यूँ सामूहिक साइकोलॉजिकल गेम्स भी खेले जाते हैं; यह समझ इन खिलाडियों के कल्चर-किनशिप वालों को अब तो समझनी होगी; असल तो सुशील कुमार बनाम नरसिंह जाधव वाले रियो ओलंपिक्स वाले एपिसोड से ही समझ लेनी चाहिए थी; 7 साल हो गए उस घटना को भी| समझना होगा कि इंडिया में फंडी सिस्टम जब तक जिन्दा है, तब तक आपके बच्चे सिर्फ एकल मेहनत व् पारिवारिक सपोर्ट से ही मेडल नहीं ला सकते; उनको फंडियों के साइकोलॉजिकल वॉर गेम से बचाने हेतु, समाज के कल्चर-किनशिप वालों की भी मजबूत सरजोड़ लॉबी होनी चाहिए| 


जनवरी में जब पहलवान आंदोलन पड़ा, मुझे तो उसी वक्त से संशय हो गया था| 


आगे, ऐसा ना हो; इसके लिए खाप-खेड़ा-खेत कल्चर-किनशिप वालों को आंतरिक तौर पर सरजोड़ने सीखने व् अपने ऐसे बच्चों जो जब इंटरनेशनल स्तर के खिलाडी-टेक्नोक्रैट्स-पॉलिटिशियन आदि बनने लगते हैं तो उसी वक्त से उनका मानसिक कवर बनना शुरू करना होगा| 


उज़मा बैठक जैसा ग्रुप इस जरूरत को भली-भांति समझे हुए तो है व् प्रयासरत भी है कि समाज में सरजोड़ कल्चर वापिस आये; परन्तु व्यापाक स्तर पर इसका फैलाव कब तक होगा, अभी दूर की कौड़ी है; परन्तु प्रयास जारी रहेंगे|  


बाकी अबकी बार एथेलटिक्स में अच्छा प्रदर्शन चल रहा है, खापलैंड के बच्चे अबकी बार बेहतर रिजल्ट्स दिए हैं; परन्तु कब तक? इन पर भी फंडी की काली नजर साथ-की-साथ पड़ चुकी होगी व् खापलैंड वालों की "मनोवैज्ञानिक वॉर गेम्स" को टैकल करने की कोई "सरजोड़ लॉबी" अभी तक भी नहीं बनने की अवस्था में; एथलेटिक्स वाले भी कब फंडियों के मानसिक गेम का शिकार हो जायेंगे; कोई कुछ नहीं जानता| 


जय यौधेय! - फूल मलिक