Thursday 31 March 2016

अभिभावक प्राइवेट स्कूलों में अपने बच्चे के दाखिले के वक्त ध्यान देवें!

 

बहुत से प्राइवेट स्कूलों में मनुवाद चल रहा है|

आपके बच्चों के दाखिले का महीना आ गया है| मान लो एक क्लास विशेष में विद्यार्थियों की संख्या इतनी है कि चार सेक्शन बनते हों तो इस तरह से सेक्शन बनाते पाये गए हैं यह लोग:

1) सेक्शन A - 90 से 100% "ब्राह्मण-बनिया-अरोड़ा/खत्री" के बच्चे - 20000 महीने या इससे ऊपर की तनख्वाह वाले अध्यापक - यूँ समझ लो जैसे मनुवाद का ब्राह्मण व् वैश्य वर्ण - जबकि बच्चे की फीस एक ही|
2) सेक्शन B - 90 से 100% अग्रणी किसानी जातियों के बच्चे - 12000 से 15000 महीने की तनख्वाह वाले अध्यापक - यूँ समझ लो जैसे मनुवाद का क्षत्रिय व् शुद्र वर्ण - जबकि बच्चे की फीस एक ही|
3) सेक्शन C - 90 से 100% ओबीसी जातियों के बच्चे - 8/9000 से 12000 की तनख्वाह वाले अध्यापक - यूँ समझ लो जैसे मनुवाद का काश्तकार शुद्र वर्ण - जबकि बच्चे की फीस एक ही|
4) सेक्शन D - 90 से 100% एससी-एसटी के बच्चे - 5/6000 से 7/8000 की तनख्वाह वाले अध्यापक - यूँ समझ लो जैसे मनुवाद का दलित शुद्र वर्ण - जबकि बच्चे की फीस एक ही|

यह पोस्ट अप्रैल-फूल नहीं है, इसको सीरियसली लेवें| और हाँ जो पत्रकार बन्धु निष्पक्ष और निडर पत्रकारिता करते हों, उनके लिए इसमें बहुत बड़ा शोध कहें या जासूसी से ले भंडाफोड़ का स्कोप है|

माँ-बाप चुप ना रहें, अपने बच्चों के दाखिले के वक्त स्कूल की मैनेजमेंट से सीधे पूछें कि हमारे बच्चे का सेक्शन कौनसा है और क्यों?

जैसे कई डेड-सयाने स्कूल वाले सेक्शन "बी" में दाखिले पे जवाब देंगे कि आपका बच्चा अच्छा खिलाडी बन सकता है इसलिए इस सेक्शन में है| यानि पहली-दूसरी-तीसरी-चौथी कक्षा में होते हुए ही इन्होनें उस बच्चे के लिए यह भी निर्धारित कर दिया कि यह तो पुलिस-फ़ौज-खिलाडी क्षेत्र में ही जायेगा और उसी हिसाब से पढ़ाया जायेगा। मतबलब उसके डॉक्टर-इंजीनियर-प्रोफेसर-अफसर बनने के स्कोप यह लोग शुरू से मिटा के चल रहे हैं। ऐसे जवाबों पे आपने क्या जवाब देना है और क्या कार्यवाही करनी है, आप मेरे से बेहतर जानते होंगे|

विशेष: यह बीमारी नीचे से ले मध्यम दर्जे के प्राइवेट स्कूलों में ज्यादा नहीं देखी गई है; लेकिन हाँ शहरों में जो अव्वल दर्जे के प्राइवेट स्कूल हैं, उनमें यह "द्रोणाचारी" नीति का भेदभाव धड़ल्ले से चल रहा है|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

Tuesday 29 March 2016

जिन जाटों को सनातनी और मनुवादी बनने का चस्का चढ़ा हुआ है, वो जरा अपने पुरखों के बारे यह कटिंग पढ़ें:

कटिंग इंग्लिश में है, इसको पूरी पढियेगा| इसके कुछ मुख्य बिंदु यहां हिंदी में लिख रहा हूँ:

1) ब्राह्मण ने जाट को शुद्र कहा क्योंकि जाट ने उसकी बनाई जाति व्यवस्था नहीं स्वीकारी और स्वछन्द रहा|
2) ब्राह्मण व्यवस्था की मनाही के बावजूद भी जाट विधवा विवाह करते रहे|
3) जाट कभी भी "कन्या भ्रूण हत्या" नहीं करते थे, जो दूध के कड़ाहों में कन्या को डुबो के मारने की प्रथा थी वो ब्राह्मणवाद की थी और राजपूत इसका अनुसरण करते थे|
4) जाट के यहां बेटी के जन्म का आनंद-उत्सव मनाते थे, मातम नहीं|
5) जाट, जातियाता कहलाए क्योंकि इन्होनें जातिव्यवस्था बनाने वालों को ठिकाने लगाया और उनको मात दी|


अब सोचे आज की जाट पीढ़ी कि आखिर यह कन्या भ्रूण हत्या करने या लड़की को मनहूस मानने की प्रथा आपमें कब से और कैसे आई? खोजोगे तो उत्तर एक ही मिलेगा, जब से आपने मनुवाद का अनुसरण करना शुरू किया, यह कुरीतियां आपमें प्रवेश कर गई| क्या इस लिहाज से देखा जाए तो आपके पुरखे आपसे ज्यादा स्वछन्द, खुले दिमाग के व् मानवीय सोच के नहीं थे?

Source:
a) "A social history of India" book by Mr. S.N. Sadashivan and
b) "Punjab Census Report of 1883" by Sir Denzil Ibbetson

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

 

Saturday 26 March 2016

भरतपुर के डीग पैलेस में शोभायमान है दिल्ली की मुस्लिम-बेगम नूरजहाँ का आलीशान झूला!

महाराजा भारतेंदु जवाहर सिंह के नेतृत्व में जाटों ने जब दूसरी बार दिल्ली तोड़ी थी, यह तब की निशानी है| सलंगित चित्र देखें| इसके अलावा चित्तौड़गढ़ का "अष्टधातु" द्वार भी जाट साथ ले आये थे, जो कि आज भी भरतपुर के "दिल्ली द्वार" में जड़ित है|

एक राज की बात बताऊँ जब जाटों को दिल्ली में सुस्ताते हुए महिनाभर हो गया था तो जाटों की मानमनुहार करके जाटों से दिल्ली को वापिस मुग़लों को दिलवाने वाले उसी विचारधारा के लोग थे जो आजकल तथाकथित राष्ट्रवाद का झंडा उठाये फिर रहे हैं| तब इन्होनें जाटों के गुस्से को शांत करने के लिए मुगल राजकुमारी को भी जाट भारतेंदु से ब्याहने का ऑफर मुग़लों से रखवाया था, लेकिन भारतेंदु ठहरे अपने सिद्धांतों के पक्के, इसलिए अपने फ्रेंच सेनापति व् मित्र सप्रू से उस मुग़ल राजकुमारी का ब्याह करवा दिया था| इन्होनें यह कहते हुए दिल्ली मुग़लों को वापिस दिलवाई थी कि "दिल्ली तो जाटों की बहु है!" जब चाहे कब्जा लें|

जाट को नकारात्मक छवि में दिखाने हेतु इस मति के लोग आज भी यदकदा दिल्ली के तोड़ने के इन वाक्यों को "जाटगर्दी" व् "जाटों की लूट" का नाम देते हैं| बताओ चित्तौड़गढ़ जैसी रियासत का मान-सम्मान बचा लाना, मुग़लों को हरा देना भी 'लूट' कैसे कही जा सकती है, यह तो 'विजय' कही जानी चाहिए, नहीं?

ये जाट गुस्से या जिद्द में आने पे वाकई में पौराणिक चरित्र शिवजी भोले जैसे होते हैं| औरंगजेब के वक्त में तो इन्होनें अकबर की कब्र खोद के उसकी हड्डियों की चिता बना के ही फूंक डाली थी| और ताजमहल, बताओ इतनी खूबसूरत, ऐतिहासिक और यादगार जगह को अपनी भैंसों के चारा रखने हेतु, उसमें तूड़ा-भूसा भर दिया था| लेकिन यह तथाकथित राष्ट्रवादी सोच वाले 'जाट जी, जाट जी' करते हुए फिर आ धमकते थे, समझौते करवा इन जगहों को खाली करवाने को|

ऐसे ही जाट अंग्रेजों के साथ करते थे, क्या भरतपुर, क्या लाहौर और क्या बल्ल्भगढ़, ऐसी रियासतें थी जिन्होनें अंग्रेजों को तेरह-तेरह बार हराया और अजेय रहे|

फिर एक सर छोटूराम हुए| तब के यूनाइटेड पंजाब में अंग्रेज बोले कि गेहूं का एमएसपी (MSP) सिर्फ 6 रूपये प्रतिक्विंटल देंगे| सर छोटूराम अड़ गए कि 10 लूंगा| अंग्रेज नहीं माने तो सर छोटूराम बोले कि देखो मेरे किसान जमीन की 'माल-दरखास' यानि टैक्स नियमित रूप से भर रहे हैं, अगर गेहूं का एमएसपी 10 नहीं किया गया तो सब बंद करवा दूंगा और अनाज की बिक्री भी रुकवा दूंगा| तब अंग्रेज बोले कि ठीक है 10 ले लो| परन्तु जब तक अंग्रेज 10 पे माने, तब तक सर छोटूराम किसानों की रैली कर चुके थे| तो उधर आंदोलन स्थल से ही बोले कि अब मामला मेरे हाथ में नहीं, अब तो जो किसान तय करेंगे वही देना होगा| इस पर बताते हैं कि किसान बोले कि 11 का शगुन शुभ होता है, इसलिए 10 की बजाये 11 दो, और अंग्रेजों को देना पड़ा था|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

 

Friday 25 March 2016

जाट हमेशा से शांति का पुजारी रहा है!

जो लोग यदाकदा यह कहते देखे जाते हैं कि इतिहास में जाट मुस्लिमों के डर के चलते मुस्लिम बने थे, उनके लिए छारा, जिला झज्जर में 200 युवकों द्वारा धर्म-परिवर्तन करने की बात वाली घटना काफी होनी चाहिए यह समझने के लिए कि जाट किसी के डर से नहीं, अपितु मनुवादियों के आज जैसे जाट बनाम नॉन-जाट और पैंतीस बनाम एक बिरादरी वाले माहौलों व् हालातों से निजात पाने हेतु ऐसा किया करते थे। वर्ना जाटों में तब भी वो ताकत होती थी और आज भी है कि जिस अंदाज में चाहें इनको मुंहतोड़ जवाब दे देवें, फिर चाहे सामने कोई खड़ा हो, तथाकथित ब्रिगेड खड़ी हो, ट्रैंड-कबुतर मंडली खड़ी हो, पुलिस-फ़ौज-सीआरपीएफ कुछ भी खड़ा हो।
किये होंगे किसी या किन्हीं के डरों के चलते किन्हीं ने धर्मपरिवर्तन; परन्तु जाट ने जब-जब ऐसा किया यह तब ही किया जब इन मनुवादियों ने जाट की मानसिक शांति व् संतुष्टि छीननी या रौंदनी चाही।

जाट हमेशा से शांति का पुजारी रहा है और जब उसको यह मनुवादियों से नहीं मिली तो बुद्ध, सिख, इस्लाम, जैन, ईसाई धर्मों में ढूंढी। और जिस भी धर्म में गए वहाँ सर्वोच्च सम्मान पाया। ईसाईयों ने जाटों को 'रॉयल रेस' कह के सम्मान दिया, मुस्लिमों ने चौधरी कह के तो सिखों ने सरदार जी कह के। और यह मनुवादी क्या-क्या कहलवा के सम्मान दिलवा रहे हैं यही इसकी वजह है कि जाट क्यों फिर से धर्म बदलने या अलग धर्म बनाने की सोच रहे हैं।

चला तो सिख धर्म में जाना था सारे जाट को उन्नीसवीं सदी में ही, यह तो अगर 1875 में मनुवादी बॉम्बे में इकठ्ठे हो जाटों को दयानन्द सरस्वती द्वारा सत्यार्थ प्रकाश लिखवा उसमें "जाट जी" कह के आदर ना देते तो। तब तो जाट रुक गए थे, परन्तु इन्होनें फिर से वही हालात ला खड़े किये हैं। आखिर इनको कब अक्ल आएगी। पहले भिड़ते हैं और फिर बाद में "जाट जी" कहते/लिखते आगे पीछे फिरते हैं।

लेकिन अबकी बार तो इसका कुछ ऐसा हल हो ही जाए कि या तो यह अपनी हरकतों से बाज आवें या फिर जाट इस धर्म को ही खाली कर जावें। बेशक "जाट धर्म" घोषित कर लिया जावे।

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

Thursday 24 March 2016

राष्ट्रीय शहीदी दिवस (23 March, 1931) पर कोटि-कोटि प्रणाम-शहीदां-नूं!

शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर वर्ष मेले,
कि वतन पर मिटने वालों का यही बाकी निशाँ होगा!

सरफ़रोशी की तमन्ना, अब हमारे दिल में है।
देखना है ज़ोर कितना, बाज़ु-ए-कातिल में है?

करता नहीं क्यूँ दूसरा कुछ बातचीत,
देखता हूँ मैं जिसे वो चुप तेरी महफ़िल में है|
ऐ शहीदे-ए-मुल्क-ओ-मिल्लत, मैं तेरे ऊपर निसार,
अब तेरी हिम्मत का चर्चा, ग़ैर की महफ़िल में है||
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है|

वक़्त आने पर बता देंगे तुझे ए-आसमाँ,
हम अभी से क्या बताएँ क्या हमारे दिल में है|
खेँच कर लाई है सबको क़त्ल होने की उम्मीद,
आशिक़ोँ का आज जमघट कूचा-ए-क़ातिल में है||
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है।

है लिये हथियार दुश्मन, ताक में बैठा उधर,
और हम तैय्यार हैं; सीना लिये अपना इधर।
खून से खेलेंगे होली, गर वतन मुश्किल में है,
सरफ़रोशी की तमन्ना, अब हमारे दिल में है।

हाथ, जिन में हो जुनूँ, कटते नही तलवार से,
सर जो उठ जाते हैं वो, झुकते नहीं ललकार से।
और भड़केगा जो शोला, सा हमारे दिल में है,
सरफ़रोशी की तमन्ना, अब हमारे दिल में है।

हम तो निकले ही थे घर से, बाँधकर सर पे कफ़न,
जाँ हथेली पर लिये लो, बढ चले हैं ये कदम।
जिन्दगी तो अपनी महमाँ, मौत की महफ़िल में है,
सरफ़रोशी की तमन्ना, अब हमारे दिल में है।

यूँ खड़ा मक़्तल में क़ातिल, कह रहा है बार-बार,
क्या तमन्ना-ए-शहादत, भी किसी के दिल में है?
दिल में तूफ़ानों की टोली और नसों में इन्कलाब,
होश दुश्मन के उड़ा देंगे हमें रोको न आज।|
दूर रह पाये जो हमसे, दम कहाँ मंज़िल में है|
सरफ़रोशी की तमन्ना, अब हमारे दिल में है।

जिस्म वो क्या जिस्म है, जिसमें न हो खूने-जुनूँ,
क्या लड़े तूफाँ से, जो कश्ती-ए-साहिल में है।
सरफ़रोशी की तमन्ना, अब हमारे दिल में है,
देखना है ज़ोर कितना, बाज़ु-ए-कातिल में है।

दिल से निकलेगी न मरकर भी वतन की उल्फ़त,
मेरी मिट्टी से भी खुशबु-ए-वतन आएगी|
हमें यह शौक है देखें सितम की इंतहा क्या है,
दहर (दुनिया) से क्यों ख़फ़ा रहें|
चर्ख (आसमान) से क्यों ग़िला करें,
सारा जहां अदु (दुश्मन) सही, आओ मुक़ाबला करें|

शहीद-ए-आजम भगत सिंह 1924 में जो लिख गए वो शायद 2016 के लिए ही था!


जहाँ तक देखा गया है, इन दंगों के पीछे सांप्रदायिक नेताओं और अख़बारों का हाथ है । इस समय हिन्दुस्तान के नेताओं मे ऐसी लीद की है कि चुप ही भली । वही नेता जिन्होंने भारत को स्वतंत्र कराने का बीड़ा उठाया था और जो ” समान राष्ट्रीयता” और ” स्वराज-स्वराज” के दमगजे मारते नहीं थकते थे, वही या तो अपने सिर छिपाये चुपचाप बैठे हैं या इसी धर्मांन्धता के बहाव में बह चले हैं । सिर छिपाकर बैठने वालों की संख्या भी क्या कम है और सांप्रदायिकता की ऐसी प्रबल बाढ़ आयी हुई है कि वे भी इसे रोक नहीं पा रहे । ऐसा लग रहा है कि भारत में नेतृत्व का दिवाला पिट गया है ।

दूसरे सज्जन जो सांप्रदायिक दंगों को भड़काने में विशेष हिस्सा लेते रहे हैं वे अख़बार वाले हैं ।

पत्रकारिता का व्यवसाय, जो किसी समय बहुत ऊँचा समझा जाता था, आज बहुत ही गन्दा हो गया है । ये लोग एक-दूसरे के विरुद्ध बड़े मोटे-मोटे शीर्षक देकर लोगों की भावनाएँ भड़काते हैं और परस्पर सिर-फुटौव्वल करवाते हैं । एक दो जगह ही नहीं, कितनी ही जगहों पर इसलिए दंगे हुए हैं कि स्थानीय अख़बारों ने बड़े उत्तेजनापूर्ण लेख लिखे हैं । ऐसे लेखक, जिनका दिल व दिमाग ऐसे दिनों में भी शान्त रहा हो, बहुत कम हैं ।
अख़बारों का असली कर्तव्य शिक्षा देना, लोगों से संकीर्णता निकालना, सांप्रदायिक भावनाएँ हटाना, परस्पर मेल-मिलाप बढ़ाना और भारत की साझी राष्ट्रीयता बनाना था लेकिन इन्होंने अपना मुख्य कर्तव्य अज्ञान फैलाना, संकीर्णता का प्रचार करना, सांप्रदायिक बनाना, लड़ाई-झगड़े करवाना और भारत की साझी राष्ट्रीयता को नष्ट करना बना लिया है । यही कारण है कि भारतवर्ष की वर्तमान दशा पर विचार कर आँखों से रक्त के आँसू बहने लगते हैं और दिल में सवाल उठता है कि भारत का बनेगा क्या ?

( यह लेख शहीदे आज़म भगत सिंह ने 1924 में लिखा था ‘ किरती’ में छपा था । भगत सिंह और उनके साथियों के संपूर्ण उपलब्ध दस्तावेज़ से लिया है जिसे लखनऊ के राहुल फ़ाउंडेशन ने छापा है। हमने सांप्रदायिक दंगे और उनका इलाज का कुछ हिस्सा आपके लिए पेश किया है )

यही सोशल मीडिया तो सही मायनों में ग्लोबलाइजेशन है!

फेसबुक पे लिखने से क्रांति नहीं आती! - बोलने वालों के लिए!

तुम क्रांति की बात करते हो, आज मोदी-खटटर जो पीएम और सीएम बन हरयाणा के भाईचारे की तार-तार बिखेर रहे हैं वो इसी फेसबुक की बदौलत तो है| अंधभक्तों की पूरी फ़ौज ने जो सोशल मीडिया के जरिये माहौल खड़ा किया उसी ने आज यह दिन दिखा रखे हैं देश को| हाँ वो अलग बात है कि इन्होनें इसका प्रयोग समाज को तोड़ने और नफरत फ़ैलाने हेतु किया| परन्तु ऐसे भी बहुत हैं जो जागरूकता फ़ैलाने हेतु कर रहे हैं और लोग उनको पसंद भी कर रहे हैं|

क्योंकि लेखनी और सोशल मीडिया विचारधारा को चलाती है, लोगों को नहीं| कभी-कभी लोगों को बहम हो जाता है कि उनको कोई इंसान चला रहा है, जी नहीं आपको इंसान नहीं उसकी विचारधारा चला रही होती है| कभी कई लोगों को बहम हो जाता है कि उनको ऊपर के लोग दबा रहे हैं, जबकि वास्तविकता यह होती है कि ऐसे लोगों को ऊपर के लोग नहीं उनकी अपनी हीनता वाली सोच मार रही होती है| भले ही फिर वो विचारधारा किसी धरातल पर बैठे हुए की हो या मेरी तरह विदेशों में बैठ के भी धरातल की लिखने वालों की हो| मेरी क्रेडिबिलिटी ऐसे मामलों में थोड़ी ज्यादा इसलिए बढ़ जाती है क्योंकि विदेश में बैठ के भी धरातल से जुड़ा रहता हूँ, परन्तु हीनभावना से ग्रस्त लोग इस बात को नहीं समझ पाते|

यही सोशल मीडिया तो सही मायनों में ग्लोबलाइजेशन है| इसको आत्मसात करो और इसको समझो कि इस सोशल मीडिया के युग में अपनी विचारधारा से लोगों में जागरूकता फ़ैलाने के लिए धरातल पर होना जरूरी नहीं; परन्तु हाँ विचार धरातलीय होने बहुत जरूरी हैं|

मुझे आज भी याद हैं वो 19-20-21-22 फ़रवरी की जाटों पे गोलियां चलवाने और हमलों की काली रातें और जो मेरे साथ इन काली रातों में पल-पल की खबर आपस में भाईयों को पास कर रहे थे, वो इसके साक्षी भी हैं| बहुत से साथी तो अपने मुंह से मेरे को यह कह के गए कि भाई मैदान छिड़ा बेशक हरयाणा में हो परन्तु इस लाइव कास्ट हो फ्रांस से रहा है| 4 की 4 रात ऑफिस-रिसर्च के काम छोड़ के एकटक टीवी और सोशल मीडिया पे बैठा था, ताकि सही खबर को आगे भाईयों तक पहुँचाऊँ और अफवाहों को ना फैलने देने में सहयोग दूँ|

जिससे सोशल मीडिया के माध्यम से हो पा रहा था, उससे सोशल मीडिया पे अन्यथा फोनों पे वार्तालापें चलती रही| ऑस्ट्रेलिया वाली कृष्णा चौधरी आंटी जी तो मेरे लाड लड़ाते हुए मेरी तन्मयता देख यूँ भी चुटकी ले जाती थी कि 'छोरे तुझे आरएसएस और बीजेपी वाले डिपोर्ट करवा लेंगे इंडिया, कित का मंड रह्या सै बावलों की ढाल|" और हँसते हुए आंटी जी को मैं यही जवाब देता कि आंटी फेर आप किस दिन खातर हो, छुड़ा लाईयो|

क्या जींद, क्या रोहतक, क्या गोहाना, क्या झज्जर, क्या सोनीपत, क्या करनाल, क्या भिवानी, क्या हिसार और क्या पानीपत; हर जगह से कोई आंदोलन-स्थल से तो कोई जाट-धर्मशालाओं से मेरे से जुड़ा हुआ था| हर कोई एकटक देख रहा था कि फूल भाई की खबर आएगी तो उसको ही सच्ची मानेंगे|

तो जो भाई अपरिपक्व सोच के हैं या मेरे को अपने लिए खतरा मानते हैं तो वह मुझे खतरा ना मानें| क्योंकि इंसान तो एक निश्चित समय के सफर के बाद आगे बढ़ जाता है, जो जिन्दा रहती है वो है उसकी विचारधारा| मेरे को होने का या अपनों में सम्मान पाने का कोई चीज जरिया है तो वह मैं नहीं अपितु मेरी सोच, विदेश में हो के भी धरातल से जुड़ा होना और एक निस्वार्थ कौम-समाज की सेवा-भावना| और विश्व में सबसे ताकतवर कोई सेवा है तो वो है विचारधारा की सेवा|

इसलिए फेसबुक से या कागजों पर लिखने से क्रांतियाँ नहीं होती, ऐसा सिर्फ वो लोग बोलते हैं जो एक बंद सोच में जीते हैं| सोच खुली करो और ग्लोबल बनो| यह दुनिया आपकी है सिर्फ जिला-राज्य या देश ही नहीं और ना ही सिर्फ इसके अंदर बैठे लोग, इससे बाहर की जियोग्राफी के लोग भी आपके ही हैं| आपके अपने हैं आपके शुभचिंतक हैं|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

दलितों ने ऐसे दिया था सर छोटूराम को 'दीनबंधु' का टाइटल!


सन 1938 में सर चौधरी छोटूराम जी यूनाइटेड पंजाब के कृषि-मंत्री थे| उन्होंने भूमिहीन दलितों को खाली पड़ी सरकारी कृषि भूमि योग्य 4 लाख 54 हजार 625 एकड़ (किल्ले) जो मुल्तान व् इसके लगते जिलों में थी, उसको भूमिहीन दलितों को रु. 3 रुपये प्रति एकड़ के रेट पर 12 वर्षों में तक बिना ब्याज व् प्रतिवर्ष चार आने किश्तों पर चुकाने की शर्तों सहित अलॉट कर दलितों को भू-स्वामी बनाया।

उनकी इस महानता पर दलितों ने सर छोटूराम को "दीनबंधु" का टाइटल देकर उन्हें हाथी पर चढ़ा कर ढोल-नगाड़ों से जुलूस निकालकर जलसा किया| और ऐसे और तब से सर छोटूराम, सर व् रहबर-ए-आज़म के साथ-साथ "दीनबंधु" भी कहलाये|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

Thursday 17 March 2016

SYL को ले के पंजाब में जो हो रहा है, इसपे मुझे चौधरी बंसीलाल का मुहंतोड़ जवाब देने वाला अंदाज याद आ रहा है!


हुआ यूँ कि जब चौधरी बंसीलाल हरयाणा के मुख्यमंत्री हुआ करते थे तो, पंजाब ने अम्बाला से चंडीगढ़ जीरकपुर के रास्ते, जो कि पंजाब से होकर गुजरता है उस पर से हरयाणा रोडवेज की बसों की आवाजाही पर पाबन्दी लगा दी।

चौधरी बंसीलाल ने इसका शालीनता भरा जवाब देते हुए पहले अम्बाला कैंट से वाया शहजादपुर-बरवाला-पंचकुला चंडीगढ़ तक हफ्ते भर के भीतर-भीतर सड़क बना, हरयाणा रोडवेज का चंडीगढ़ कनेक्शन बहाल किया और फिर पंजाब रोडवेज की तमाम बसों की पंजाब-दिल्ली वाया हरयाणा एंट्री बैन कर दी।

पंजाब सरकार ने दो-एक दिन तो जोश-जोश में चंडीगढ़ वाया पश्चिमी यूपी दिल्ली तक बसें चलाई, परन्तु इतना लम्बा-उबाऊ और थकाऊ रास्ता होने की वजह से पंजाब रोडवेज को सवारियां ही नहीं मिली। और ऐसे पंजाब सरकार से नहले-पे-दहले स्टाइल में उनको उनका निर्णय वापिस लेने को मजबूर किया।

काश! आज खट्टर-बीजेपी की जगह चौधरी बंसीलाल होते तो मौकापरस्त राजनीति के वाहक अरविन्द केजरीवाल को जन्म से एक हरयाणवी होने और हरयाणा की पानी की समस्याओं से बचपन से वाकिफ होने के बावजूद पंजाब में मात्र पोलिटिकल माइलेज लेने के चक्कर में SYL का समर्थन करने का मजा चखाते। जो पंजाब छोड़, कभी दिल्ली सचिवालय तो कभी केंद्र सरकार के दफ्तरों के आगे हरयाणा से दिल्ली के पानी दिलाने बारे धरने पे बैठा ना मिलता तो। बाकी SYL पे बीजेपी का जो स्टैंड है वो तो सबको दिख ही रहा है।

कभी-कभी सोचता हूँ हमारे बॉलीवुड वाले तो नहीं उतर आये सड़कों पे राजनीति करने; फुलटूस 24 इनटू 7 नॉन-स्टॉप शो। बंदर बना के नचा दिया इन लोगों ने देश का।

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

आरक्षण का विरोध कौन कर रहे हैं!

1. आरक्षण का विरोध मुसलमान नहीं कर रहे हैं।
2. आरक्षण का विरोध सिख नहीं कर रहे हैं।
3. आरक्षण का विरोध ईसाई नहीं कर रहे हैं।

आरक्षण का विरोध तो छुआछूत फैलाने वाले कर रहे हैं। भेदभाव फैलाने वाले कर रहे हैं। जात-पात का अंतर करने वाले कर रहे हैं। साम्प्रदायिकता फैलाने वाले कर रहे हैं।आरक्षण का विरोध क्यों कर रहे हैं क्योंकि उनके अंदर लालच है और ऊँच--नीच की भावना है।वो मनुवादी हैं । मनुवाद खत्म होगा तो मानवतावाद का जन्म होगा और हम हैं मानवतावादी।

अंग्रेजों ने भारत पर 150 वर्षों तक राज किया ब्राह्मणों ने उनको भगाने का हथियार बन्द आंदोलन क्यों चलाया? जबकि भारत पर सबसे पहले हमला मुस्लिम शासक मीर काशीम ने 712ई. किया! उसके बाद महमूद गजनबी, मोहम्मद गौरी, चन्गेज खान ने हमला किये और फिर कुतुबद्दीन एबक, गुलाम वंश, तुग्लक वंश, खिल्जी वंश, लोदी वंश फिर मुगल आदि वन्शजों ने भारत पर राज किया और खूब अत्याचार किये लेकिन ब्राम्हणों ने कोई क्रांति या आंदोलन नहीं चलाया! फिर अन्ग्रेजों के खिलाफ़ ही क्यो क्रांति कर दी
जानिये क्रांति और आंदोलन की वजह

1- अंग्रेजो ने 1795 में अधिनयम 11 द्वारा शुद्रों को भी सम्पत्ति रखने का कानून बनाया।
2- 1773 में ईस्ट इंडिया कम्पनी ने रेगुलेटिंग एक्ट पास किया जिसमें न्याय व्यवस्था समानता पर आधारित थी। 6 मई 1775 को इसी कानून द्वारा बंगाल के सामन्त ब्राह्मण नन्द कुमार देव को फांसी हुई थी।
3- 1804 अधिनीयम 3 द्वारा कन्या हत्या पर रोक अंग्रेजों ने लगाई (लडकियों के पैदा होते ही तालु में अफीम चिपकाकर, माँ के स्तन पर धतूरे का लेप लगाकर, एवम् गढ्ढा बनाकर उसमें दूध डालकर डुबो कर मारा जाता था)|
4- 1813 में ब्रिटिश सरकार ने कानून बनाकर शिक्षा ग्रहण करने का सभी जातियों और धर्मों के लोगों को अधिकार दिया।
5- 1813 में अंग्रेजों ने दास प्रथा का अंत कानून बनाकर किया।
6- 1817 में समान नागरिक संहिता कानून बनाया (1817 के पहले सजा का प्रावधान वर्ण के आधार पर था। ब्राह्मण को कोई सजा नहीं होती थी ओर शुद्र को कठोर दंड दिया जाता था। अंग्रेजो ने सजा का प्रावधान समान कर दिया।)
7- 1819 में अधिनियम 7 द्वारा ब्राह्मणों द्वारा शुद्र स्त्रियों के शुद्धिकरण पर रोक लगाई। (शुद्रों की शादी होने पर दुल्हन को अपने यानि दूल्हे के घर न जाकर कम से कम तीन रात ब्राह्मण के घर शारीरिक सेवा देनी
पड़ती थी।)
8- 1830 नरबलि प्रथा पर रोक ( देवी -देवता को प्रसन्न करने के लिए ब्राह्मण शुद्रों, स्त्री व पुरुष दोनों को मन्दिर में सिर पटक पटक कर चढ़ा देता था।)
9- 1833 अधिनियम 87 द्वारा सरकारी सेवा में भेद भाव पर रोक अर्थात योग्यता ही सेवा का आधार स्वीकार किया गया तथा कम्पनी के अधीन किसी भारतीय नागरिक को जन्म स्थान, धर्म, जाति या रंग के आधार पर पद से वंचित नही रखा जा सकता है।
10-1834 में पहला भारतीय विधि आयोग का गठन हुआ। कानून बनाने की व्यवस्था जाति, वर्ण, धर्म और क्षेत्र की भावना से ऊपर उठकर करना आयोग का प्रमुख उद्देश्य था।
11-1835 प्रथम पुत्र को गंगा दान पर रोक (ब्राह्मणों ने नियम बनाया की शुद्रों के घर यदि पहला बच्चा लड़का पैदा हो तो उसे गंगा में फेंक देना चाहिये।पहला पुत्र ह्रष्ट-पृष्ट एवं स्वस्थ पैदा होता है।यह बच्चा ब्राह्मणों से लड़ न जाय इसलिए पैदा होते ही गंगा को दान करवा देते थे।
12- 7 मार्च 1835 को लार्ड मैकाले ने शिक्षा नीति राज्य का विषय बनाया और उच्च शिक्षा को अंग्रेजी भाषा का माध्यम बनाया गया।
13- 1835 को कानून बनाकर अंग्रेजों ने शुद्रों को कुर्सी पर बैठने का अधिकार दिया।
14- दिसम्बर 1829 के नियम 17 द्वारा विधवाओं को जलाना अवैध घोषित कर सती प्रथा का अंत किया।
15- देवदासी प्रथा पर रोक लगाई।ब्राह्मणों के कहने से शुद्र अपनी लडकियों को मन्दिर की सेवा के लिए दान देते थे। मन्दिर के पुजारी उनका शारीरिक शोषण करते थे। बच्चा पैदा होने पर उसे फेंक देते थे।और उस बच्चे को हरिजन नाम देते थे। 1921 को जातिवार जनगणना के आंकड़े के अनुसार अकेले मद्रास में कुल जनसंख्या 4 करोड़ 23 लाख थी जिसमें 2 लाख देवदासियां मन्दिरों में पड़ी थी। यह प्रथा अभी भी दक्षिण भारत के मन्दिरों में चल रही है।
16- 1837 अधिनियम द्वारा ठगी प्रथा का अंत किया।
17- 1849 में कलकत्ता में एक बालिका विद्यालय जे ई डी बेटन ने स्थापित किया।
18- 1854 में अंग्रेजों ने 3 विश्वविद्यालय कलकत्ता, मद्रास और बॉम्बे में स्थापित किये। 1902 में विश्वविद्यालय आयोग नियुक्त किया गया।
19- 6 अक्टूबर 1860 को अंग्रेजों ने इंडियन पीनल कोड बनाया। लार्ड मैकाले ने सदियों से जकड़े शुद्रों की जंजीरों को काट दिया ओर भारत में जाति, वर्ण और धर्म के बिना एक समान क्रिमिनल लॉ ला़गू कर दिया।
20- 1863 अंग्रेजों ने कानून बनाकर चरक पूजा पर रोक लगा दिया (आलिशान भवन एवं पुल निर्माण पर शुद्रों को पकड़कर जिन्दा चुनवा दिया जाता था इस पूजा में मान्यता थी की भवन और पुल ज्यादा दिनों तक टिकाऊ रहेगें।
21- 1867 में बहु विवाह प्रथा पर पुरे देश में प्रतिबन्ध लगाने के उद्देश्य से बंगाल सरकार ने एक कमेटी गठित किया ।
22- 1871 में अंग्रेजों ने भारत में जातिवार गणना प्रारम्भ की। अजीब दोगलापन है, लोगो को आरक्षण से चिड़ है लेकिन अपनी जाति के उच्च होने पर गर्व है!

सब्जी खरीदते समय जाति नहीं देखी जाती मगर उसी सब्जी को खिलाते समय जाति देखी जाती हैं।। फसल कटाई पर जाति नहीं देखते मगर उसकी बनी रोटियां खिलाते समय जाति देखी जाती हैं।। मकान बनबाने के लिए जाति नहीं देखते मगर जब मकान बन जाये तो उसमे बैठाने के लिए जाति देखते हैं।। मंदिर बनबाने के लिए जाति नहीं देखते मगर उसमें जाने के लिए जाति देखते हैं।। स्कूल या कॉलेज बनबाने के लिए जाति नहीं देखते लेकिन पढ़ाई के वक़्त जाति देखी जाती हैं।। कपङे खरीदते समय जाति नहीं देखते मगर उन्हीं कपड़ों को पहनकर उनसे दूर भागते हैं।। साथियों ये भारत देश हैं,, जहाँ कुछ मूर्ख लोग कहते हैं कि जाति व्यवस्था खत्म हो गई है। बुद्धिजीवियों का सामाजिक दायित्व...

"इंसान जीता है,पैसे कमाता है,खाना खाता है और अंततः मर जाता हैं। जीता इसलिए है ताकि कमा सके... कमाता इसलिए है ताकि खा सके... खाता इसलिए है ताकि जिन्दा रह सके... लेकिन फिर भी एक दिन मर ही जाता है... अगर सिर्फ मरने के डर से कमाकर खाते हो तो अभी मर जाओ,मामला खत्म,मेहनत बच जायेगी। मरना तो सबको एक दिन हैं ही, नहीं तो समाज के लिए जियो, ज़िन्दगी का एक उद्देश्य बनाओं, गुलामी की जंजीरो में जकड़े समाज को आज़ाद कराओं। अपना और अपने बच्चों का भरण पोषण तो एक जानवर भी कर लेता हैं। मेरी नज़र में इंसान वही है जो समाज की भी चिंता करे और समाज के लिये कार्य भी करे। नहीं तो डूब मरे ,अगर जिंदगी सिर्फ खुद के लिये ही जी रहे हैं तो"..................

इस मैसेज को इतना फैलाओ कि दुनिया के सभी समाज जाति के लोगों के पास पहुंच जाये और उन्हें पता चल जाये आरक्षण क्यों जरुरी हे।

Wednesday 16 March 2016

यू खट्टर भी ना 'तनु वेड्स मनु' वाली कंगना की भांति 'घणा बावळा' हो लिया!


बता तीन दिन के लिए रोहतक के स्कूल-कॉलेज बंद करवा दिए, कल से सारे रोहतक समेत हरयाणा के कई शहरों में आरएएफ (RAF) के कमांडो घूम रहे हैं। और आज खबर रही है कि पूरे हरयाणा में NSA (नेशनल सिक्योरिटी एक्ट) लागु किया जा रहा है। एनएसए यानी किसी को भी मात्र संदेह के आधार पर उठा के जेल में ठोंक दो।

अरे बावले, जाट तो जेल-भरो आंदोलन की वैसे ही तैयारी किये बैठे हैं। कोनी, काम करे थारी यह स्ट्रेटेजी भी जाटों को डराने की। बता, दो हफ्ते पहले पुलिस-फ़ौज-आर्मी बुला के जाट डराना चाहे, तो डरे क्या, जो अब जेल का डर दिखा रहे हो?

ऐसा है कंधे से ऊपर मजबूत जी, या तो जो काम की बात है वो करो, कि विधानसभा में फटाफट जाट आरक्षण बिल पास करो और मामला नक्की करो या फिर जेलों में कम से कम दो-चार महीने का राशन-पानी तो ही भरवा दो क्योंकि जाट आपके एनएसए के बिना ही जेल भरने हेतु आन लग रहे हैं।

यार समझ में नहीं आ रही कि यह बीजेपी और आरएसएस वाले वाकई में कोई राजनीति खेल रहे हैं या बौखलाहट में आगे-से-आगे स्वघाती कदम उठाये जा रहे हैं। जिस स्टेट में ब्राह्मण-बनिया-अरोड़ा/खत्री जैसी समाज की सबसे धनाढ्य जातियों तक को आरक्षण है, और सिर्फ जाट (आर्यसमाजी-सिख-बिश्नोई-मुस्लिम), रोड व् त्यागी ही इसके बिना बचे हैं तो दिक्क्त क्या हो रही है, इनको भी आरक्षण देने में?

जनाब अगर आपको यह बहम बचा हो कि थोड़ा और "पैंतीस बनाम एक" खेल लूँ तो चेत जाईये, क्योंकि अब धरातल पर जबरजसत, बामसेफ, बसपा, मुस्लिम और ओबीसी-ए की कई जातियों ने इसकी हवा निकालनी शुरू कर दी है। अब जितनी देरी या आनाकानी करोगे, उससे अपना ही राजनैतिक नुकसान करोगे।

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

राजकुमार सैनी की 'बेताल पैंतिसी' की जमीन खिसकती जा रही है!

जाट आंदोलन के दौरान बहन मायावती जी द्वारा जाट आरक्षण को समर्थन देने के बाद कई लोग अटकलें लगा रहे थे कि राजनैतिक स्टंट है| परन्तु अब इस पर विराम लगाते हुए बहुजन समाज के सबसे बड़े सामाजिक व् गैर-राजनैतिक संगठन 'बामसेफ' की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में 'बामसेफ' के अध्यक्ष माननीय वामन मेश्राम व् कई खापों और जाट संगठनों के बीच कल गुड़गांव में बैठक हुई| और इसमें यह निर्णय लिए गए:

1) जाट आरक्षण आन्दोलन को बामसेफ हर तरह से समर्थन करता है और अपने जाट भाईयों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर हर स्तर पर साथ है।

2) इसके लिए चाहे धरातल पर आन्दोलन को समर्थन देना हो व साथ धरने पर बैठना हो, या इस दमनकारी सरकार की दमन की आवाज के विरुद्ध लड़ना हो, या निर्दोषों पर दर्ज झूठे मुकदमें वापिस लेने हेतु आंदोलन करना हो, 'बामसेफ' हर मोर्चे पर जाट-समाज के साथ खड़ा होगा|

3) जाट-दलित-मुस्लिम गठजोड़ का संदेश बामसेफ व् खापें अपने कैडर व् नेटवर्क के जरिये पूरे हरयाणा में फैलाएंगे|

रै भाई रलदू, राजकुमार सैनी से जरा पता करवा कि पैंतीस में से कितने रह गए? जबरजसत और मुस्लिम के बाद अब बसपा और बामसेफ जाट के साथ आ चुके हैं| और सुना है कि ओबीसी- ए श्रेणी की भी बहुत सारी जातियां राजकुमार सैनी व् ट्रैंड कबूतरों के पैंतीस बनाम एक वाले फार्मूला से सहमत नहीं हैं| आशा है कि वो भी जल्द ही इन समाज को कभी धर्म तो कभी जाति के नाम पे तोड़ने वालों का साथ छोड़ जाट समाज से आन मिलें|

राजकुमार सैनी साहब, पूरा इतिहास उठा के देख लो जाटों ने सदियों से भाईचारे को एक माँ की भांति पाला है और कोई माँ अपने बच्चों को गोदी से ऐसे छीन ले जाने देगी क्या, जैसे आप उतारू हुए फिर रहे हो? अब भी वक्त है सम्भल जाओ वर्ना कहीं ऐसा ना हो कि पैंतीस के चक्कर में आखिरी दिन अकेले ही रह जाओ|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

खाप अपने रंग में आती दिख रही हैं अब, दस महीने से लटकते आ रहे अटाली मस्जिद के मसले को किया चुटकियों में हल!


अपनी धर्मनिरपेक्ष-जातिविहीन प्रवृति का परिचय देते हुए व् कुछ कटटरवादी ताकतों की वजह से पिछले दस महीने से अटाली, बल्लबगढ़ के तनावपूर्ण माहौल को विराम लगाते हुए हिसार हरियाणा से आयी "कालिरमन खाप" के संयोजक चौधरी रामस्वरूप और प्रधान सज्जन कुमार ने कहा मस्जिद जहाँ बन रही थी वहीँ बनेगी और हम बनवायेंगे|

याद दिल दें, कि 25 मई, 2015 को मस्जिद की नींव भरने पर विवाद हो गया था। जिसमें औवेसी, तपन सेन, संजय सिंह ठाकुर, आशुतोष शर्मा, साध्वी प्राची ठाकुर आदि ने ख़ूब राजनीतिक रोटियाँ सेंकी, पर विवाद को सुलझाया नही|

खाप ने असलियत को भांपा और हरयाणा का माहौल बिगाड़ने को फ़ड़फ़ड़ा रहे ट्रैंड कबूतरों को हड़काते हुए विवाद को सुलझवा दिया।

साथ ही आशंका जताई कि हो सकता है फिर कुछ ट्रैंड कबूतर इसमें टाँग अड़ाएं और इसको हिन्दू-मुस्लिम के बीच आग लगाने का मुद्दा बनाएं| विलास राव शर्मा, जो मस्जिद की जगह बदलने की कह रहे थे, उन्होंने तो पंचायत में इसकी कोशिश भी की परन्तु उनको चुप बैठा दिया गया|

और कहा कि जगह भी वही होगी, और बनवाएँगे भी सब लोग मिलकर| और कहा कि हरयाणा के भाईचारे को कभी धर्म तो कभी जाति के नाम पर खराब करने वालों से अब खापें सख्ती से निपटेंगी| खाप ने कहा कि अब समाज के विघटनकारी तत्वों का तांडव बहुत हुआ, समाज को और नहीं टूटने देंगे|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

Monday 14 March 2016

आरक्षण बारे गुजरात वाली तलवार हरयाणा में लटकाने की सुगबुगाहट!

वाह! राजकुमार सैनी OBC-B की जनसंख्या तो सिर्फ 6.5 के करीब और आरक्षण लिए बैठे हो 11% यानि अपनी जनसंख्या का लगभग दोगुना, जबकि OBC-A की जनसंख्या करीब 35% और उनको आरक्षण सिर्फ 16%; यह कैसी दिग्भर्मित करने वाली आवाज है आपकी OBC के अधिकारों को बचाने की आवाज उठाने के बहाने के पीछे? कि OBC-A का इस पर ध्यान ही ना जावे कि OBC-B जनसख्या का दोगुना आरक्षण ले रहे हैं?

जैसा कि हम सबको विदित होगा कि गुजरात में अभी हाल ही में ऐसा प्रावधान किया गया है कि आरक्षित वर्ग वाले सामान्य वर्ग में जॉब अप्लाई नहीं कर सकते| तो यह तो अपने आपमें ही जनरल का आरक्षण करने वाली बात हो गई ना, क्योंकि आरक्षित उसमें अप्लाई करेंगे नहीं तो सारा किसके खाते, जनरल के? क्या नायाब तरीका है गुजरात सरकार का जनरल को आरक्षण देने का! और अब कुछ-कुछ ऐसा ही हरयाणा बारे भी किये जाने की सुगबुगाहटें आ रही हैं|

तमाम जाट आरक्षण समितियों, संगठनों और खापों से अनुरोध है कि इस पर कड़ी निगरानी रखें|

आईये! आपको हरयाणा में आरक्षण समूहों की जनसंख्या व् इनको मिले आरक्षण के अनुपात बारे बताते चलें:

1) SC/ST जनसंख्या 18-19% के करीब, जबकि इनका आरक्षण 20%
2) OBC- B केटेगरी जनसंख्या (सैनी-यादव आदि 5 जातियां) 6.5% के करीब, जबकि इनका आरक्षण 11%
3) OBC-A केटेगरी जनसंख्या (धोबी-नाई-कुम्हार-लुहार-खाती इत्यादि 71 जातियां) 24-25% के करीब, जबकि इनका आरक्षण सिर्फ 16%
4) EWS केटेगरी जनसंख्या (ब्राह्मण-बनिया-अरोड़ा/खत्री-राजपूत) 15-16% के करीब, जबकि इनका आरक्षण 10%

और जो हरयाणा में आरक्षण से फ़िलहाल बाहर हैं और जिनको आरक्षण देने की कवायद चल रही है यानि जाट-जाट सिख -बिश्नोई-रोड-त्यागी की जनसंख्या 35% के करीब और आरक्षण देने की तैयारी है सिर्फ 10% OBC-C में मिले या SBC में उसपे मंथन चल रहा है|

तो ऐसे में सबसे घाटे में तो अब भी यह आखिरी वाला समूह ही रहने वाला है| और इसपे सुगबुगाहट यह भी कि इनको 10% में बाँध के जनरल में लड़ने से बाधित कर दिया जायेगा?

माननीय खटटर सरकार से अपील है कि 'दूध का दूध और पानी का पानी' की तर्ज पर सही न्याय करें, ताकि अब इसके बाद हरयाणा राज्य को इस मुद्दे पर फिर से कोई जनांदोलन जैसा विरोधाभास ना देखना पड़े|

वैसे राजकुमार सैनी की तो पोल खुल के सामने आ गई| मैं भी कहूँ कि हरयाणा के यादव, लालू यादव की 'जनसंख्या के अनुपात' में आरक्षण; यहां तक कि यूनियनिस्ट मिशन की बार-बार उठाई गई "जाटों ने बांधी गांठ, पिछड़ा मांगे सौ में साठ" की बात पे उनका समर्थन देने की बजाये चुप्पी क्यों खींचे हुए हैं| ओहो! तो जब यह वर्ग पहले से ही हरयाणा में जनसंख्या का लगभग दोगुना आरक्षण लिए जा रहे हैं तो क्यों बोलेंगे| OBC-A भी कृपया सैनी से सावधान, उसको पूरे OBC से कोई मतलब नहीं है, वो सिर्फ यह OBC-B के जनसंख्या से डबल आरक्षण को बचाने के चक्कर में पूरी OBC का मोर बनाये हुए है, बस|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

Friday 11 March 2016

"पैसा तुम्हारा, जमीन हमारी" का फार्मूला हकीकत में सम्भव है, पढ़िए प्रैक्टिकल केस स्टडी!

आईये आपसे मेरे एक मित्र द्वारा भेजी गई ईमेल में दिए उदाहरण को साझा करता हूँ| देखें इसमें कि कैसे जब मित्र से प्राइवेट व्यापारी जमीन खरीदने आये तो उसने ना सिर्फ कीमत ली अपितु 15% की साझीदारी के तहत डेवलप्ड लैंड भी ली और आज उसमें वो खुद प्लॉट्स काट के बेच रहा है|

"Dear phool kumar ji as u may know, I belong to Modinagar, distt. Ghaziabad, U.P. which is the part of N.C.R. and my hometown is only 45kms from Delhi. My village is only 2kms from G.T. road Modinagar in the west.

2 years before some builders came to us for buying our 28 Bigha land for the development of a colony. They agreed to pay 50 lacs per bigha. The amount was quite a good but we insisted that they have to fulfill two more conditions, one is colony should be approved by GDA, another is we will have PARTNERSHIP in it. They agreed. We got the money and bought the land and also shares of 15%, which is much more than the money. We got through sale of 85% land to them. We are selling 15% our developed land @the rate INR 21000 per yard. - Your friend Ashok Kumar"

इसलिए अब से हर किसान का बेटा-बेटी ठान ले कि कुछ भी हो जाये, मात्र पैसों के लिए जमीन नहीं बेचेंगे| बिज़नेस के ऑफर के हिसाब से बिज़नेस में पार्टनरशिप तय करने वाले से ही इन मामलों में डील करें| और फैक्ट्री या बिज़नेस बिल्डिंग लगाने जैसे मामलों में तो जमीन पूरी ही अपनी पास रखें और फैक्ट्री की कमाई में साझेदारी के साथ बन्दे को फैक्ट्री लगाने का ऑफर देवें|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

व्यापारिक हो या कृषि-संबंधी, सबके नुकसान संबंधित सर्वे, मुवावजे और भुगतान एक ही पैटर्न पर होने चाहियें!


हाल-ही में हुए हरयाणा दंगों में हुए व्यापारिक नुकसान बारे हो रहे सर्वे, मुवावजे और इनके आवंटन के तरीकों से देश की तमाम किसान यूनियनों, संगठनों एवं किसानों द्वारा भी उनके नुकसानों की भी ऐसे ही भरपाई बारे आवाज उठानी और मांग करनी चाहिए| जैसे:

1) आज हरयाणा कैबिनेट मिनिस्टर कविता जैन ने लोकल बॉडीज डिपार्टमेंट्स की मीटिंग ली, जिसमें हरयाणा दंगों में शहरों में हुए नुकसान के सर्वे के लिए समिति बनाई गई है| इसमें रोचक बात यह है कि इसमें हर शहर से एक मेंबर मार्किट एसोसिएशन का लिया गया है ताकि व्यापारियों को ज्यादा मुवावजा दिलवाया जा सके| इससे पहले किसानों की फसलों के कभी बाढ़, कभी बारिश, कभी सूखा तो कभी बीमारी के चलते नुकसान के कितने ही सर्वे हुए, परन्तु कभी नहीं सुनने-देखने में आया कि ऐसे सर्वे वाली कमेटियों में कोई किसान यूनियन या संघटनों का सदस्य भी रहा हो| तो अब से किसानों की हर संस्था-संगठन को इस पर भविष्य के लिए सतर्क भी रहना चाहिए और इसकी मांग उठानी चाहिए कि जब-जब किसानों का नुकसान हो तो उनका भी सर्वे इसी तर्ज पर हो|
 

2) व्यापारियों का नुकसान हुआ तो 25% मुवावजा राशि एडवांस में जारी कर दी गई, परन्तु जब किसानों के नुकसान होते हैं तो एडवांस तो दूर, वक्त पे मुवावजा ही मिल जाये तो गनीमत है| इसलिए किसान संगठनों को इस पर भी संज्ञान लेना चाहिए और ऐसा ही कानून या प्रावधान किसानों के लिए हो कि भविष्य में नुकसान होते ही 25% मुवावजा राशि तुरंत जारी हो जाए|

3) सुना है एमएलए लोगों की एक महीने की तनख्वाह इन दंगों के लिए ली जा रही है या एमएलए लोगों ने खुद दी है| किसान संगठनों को चाहिए कि ऐसी ही दरियादिली यह लोग तब भी दिखावें जब किसान का नुकसान होवे|

4) जितनी तीव्रता और कम समय कहिये या जिस भी समयावधि में यह कार्य इस बार हो रहे हैं, इसको नोट करना चाहिए और इसी तरीके की संवेदनशीलता और तीव्रता से किसानों के मामले में कार्यवाही होनी चाहिए|
आज सरकार ने सफेद मक्खी से पीड़ित किसानों के लिये 972 करोड़ रूपये का पैकेज घोषित किया है, इसको इन ऊपर बताये तरीकों की तर्ज दिलवाने हेतु आवाज उठाने का प्रैक्टिकल बनाया जा सकता है|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

मैं भाईचारे की माँ हूँ, गोदी से बच्चा कैसे छीन ले जाने दूँ!

पहली कक्षा से ले के अंत तक मेरी पूरी पढाई शहर में हुई, परन्तु जब भी छुट्टियों में गाँव जाता था तो वहाँ सिर्फ मेरा घर नहीं अपितु पूरी 36 बिरादरी के घर-लोग मेरे होते थे| आज जब बीजेपी वालों की गंदी राजनीति के चलते कहीं पैंतीस बनाम एक तो कहीं जाट बनाम नॉन-जाट छिड़ा हुआ है, ऐसे में यह यादें सर चढ़ के बोल रही हैं| और कह रही हैं क्या यूँ बैठे-बिठाए ही यह राजनेता तुम्हारे भाईचारे को ऐसे छीन ले जायेंगे, जैसे एक माँ की गोदी से बच्चा? आईये जरा बताऊँ आपको, मेरे हरयाणे की भाईचारे की परिभाषा दिखलाऊं आपको:
 
1) दादी रिशाले की डूमणी : जब अपनी मधुर वाणी में आल्हों-छंद-टेक के रूप में एक साँस में मलिक गठवाला जाटों (लेखक मलिक गठवाला जाट है) का 'यो घासीराम का पोता' की टेक लगा के इतिहास बखाया करती तो तन-मन का रोम-रोम पुलकित हो उठता था| दादी जी जब तक जीयी सिर्फ मेरी निडाना नगरी (हिंदी में गाँव) ही नहीं अपितु मलिक जाटों के सोनीपत से ले रोहतक-हिसार तक के गाँवों में बेपनाह इज्जत पाती रही और वो भी बावजूद मुस्लिम धर्म की होने के|
 
2) दादा मोजी बनिया का परिवार (general): हमारे घर के बिलकुल सामने घर है| सब सीतापुर व् दिल्ली शिफ्ट हो चुके हैं| परन्तु जब भी गाँव आना होता है तो खाना-पीना-सोना सब हमारे घर पे होता है| अपने घर की जिम्मेदारी भी हमपे छोड़ी हुई है| हर ब्याह-शादी, दुःख-सुख में आना-जाना आज भी जारी है|
 
3) ताऊ रामचन्द्र छिम्बी (राजपूत - obc): जींद की पुरानी कचहरी के बगल वाली मार्किट में एक बनिए की कपड़ों की दुकान के स्थाई टेलर| एक बार दादी ने इनके बारे बताया तो मोह इतना बना रहा कि जब भी उधर जाता तो उस दुकान पे इनको देखने और मिलने जरूर जाता| शायद गाँव की संस्कृति और गरिमा का ही मोह था जो उधर खींच के ले जाता था| गाँव में इनके परिवार से आज भी वही आत्मीयता है| बचपन में इनके घर अक्सर दादी भेजती रहती थी| रामचन्द्र ताऊ मेरे लिए गांव के चंद उन पुरुषों में हैं जो हरयाणवी संस्कृति के धोतक माने जाते हैं|
 
4) ताऊ मेषरा ऐहड़ी (कश्यप राजपूत – sc/st): मेरे पिता जी के साथ इनका अक्सर कम्पटीशन रहता था कि कौन ज्यादा काम करता है (हरयाणा में बिहार-बंगाल का सामंतवाद ढूंढने वाले लेफ्टिस्ट भी ध्यान देवें इस बात पे)| हमारे यहां सीरी रहे (हरयाणवी में सीरी यानी काम में पार्टनर, हिंदी व् गैर-हरयाणवी लोगों की भाषा में नौकर)। इनके बच्चे भी सीरी रहे| ताई के तो कहने ही क्या| इतनी आत्मीयता में भरी औरत, बस एक बार इनके घर के आगे से गुजर जाओ, आपसे पहले खुद ही 'आइये रे मेरा बेटा फूल' की झोली देते हुए बुला लेंगी| बैठा के आवभगत करना और घर-गाँव-गुहांड की बताना| ताई खुद भी हंसोकड़ी हैं और इनके हंसी-मिजाज के किस्से भी बहुत मशहूर हैं पूरे निडाना में|
 
5) दादा जल्ले लुहार (हिन्दू -obc): गाँव में जब छुट्टियों में जाता था तो पिता जी अक्सर इनके पास खेती के औजारों को धार लगवाने या मरम्मत के लिए गए औजार लाने भेजा करते थे| इनकी पत्नी यानि दादी जी घर के सदस्य से भी बढ़कर आवभगत करती थी|
 
6) दादा नवाब लुहार (मुस्लिम): इनकी बूढी माँ होती थी, जब भी इनके घर की तरफ जाता तो मुझे बुला के अक्सर गोदी में बैठा के लाड करती थी| इनके घर में चारपाई की बड़ी चद्दर से बना हुआ बड़ा सा पंखा होता था, जिसको टूलने में मुझे बड़ा मजा आता था|
 
7) काका लीला कुम्हार (मुस्लिम): बचपन में इनकी दुकान मेरे घर के बिलकुल सामने होती थी, खेलता-खेलता गली में निकल आता तो अपनी सगी औलाद की भांति, इनकी अपनी दुकान पे कम और मुझ पर ज्यादा नजर रहती थी कि कहीं कोई व्हीकल या जानवर लड़के को नुकसान ना कर जाए| बड़ा हुआ तो इनके घर स्वत: अक्सर चला जाता था| इनकी अम्मा यानी मेरी दादी और इनकी धर्मपत्नी यानी मेरी काकी, खूब अच्छे से खिलाती पिलाती थी| बहुत बार तो जैसे बच्चा अपने घर में बिना किसी से पूछे रसोई से रोटी उठा के खा लेता है, सीधा इनकी रसोई में घुस जाता और खुद ही उठा के खा लेता| बहुतों बार जब भी काका आक पे पकने के लिए बर्तन चढ़ाते थे तो साथ लग के चढ़वाता था|
 
8) ताऊ पृथ्वी कुम्हार (मुस्लिम): लीला काका के ही बड़े भाई, आज भी गाँव के सबसे व्यस्तम चौराहे पर, मेरे घर के सामने दुकान है इनकी| बचपन से मेरे घर का खुला खाता चलता है|
 
9) ताऊ पाल्ले नाई (obc): पिता की भांति सख्त आदमी, नारियल के जैसे| यह दादा-पिता जी की हेयर-ड्रेसिंग करते आये और इनकी पत्नी यानि ताई जी दादी-बुआ-माँ की| बाकी नाईयों से बिलकुल भिन्न, कभी सर नहीं चढ़ाया, परन्तु जायज बात पे पीठ थपथपाई और गलत पे धमकाया भी|
 
10) दादा कलिया कुम्हार (हिंदू - obc): हमारे घर के कुम्हार| इनका और इनकी पत्नी का जोड़ा, आज भी गाँव के सुंदरतम जोड़ों में गिना जाता है| जब भी इनके घर जाना होता तो हमेशा अपनों-सी-आवभगत मिलती|
 
11) दादा जिले ब्राह्मण (general): हमारे खेतों के पड़ोसी| खेतों में जाटों के बाद किसी के साथ सबसे ज्यादा काम में हाथ बंटवाया तो इनके साथ|
 
12) दादा छोटू तेल्ली (मुस्लिम): गाँव के सबसे शालीन, मृदुल भाषी बुजुर्ग| घर पे अक्सर आते| घर-खेत-घेर सबकी रखवाली करते| गाँव की प्राचीन बातें और इतिहास बहुत जानते थे| जब यह घर आते थे, तो मैं अक्सर सारे काम छोड़ के इनके पास बैठ जाता और गाँव की संस्कृति और इतिहास की बातें खोद-खोद के सुनता रहता|
 
13) ताऊ लख्मी झिम्मर (sc/st): हमारे गाँव का सबसे पुराना तेल का कारखाना, उन्नसवीं सदी की मशीनें हैं आज भी इनकी चक्की में| जितना इनका हम से लगाव, उससे कहीं ज्यादा इनके बच्चों का| हमारे यहां अक्सर जब भी बिहारी मजदूर आते हैं तो इन्हीं की चक्की से आटा पिसवाया जाता है| घर में जब चक्की खराब हो जाती है तो इन्हीं के यहां जाता है| सरसों का तेल निकलवाना तो भी| मेरी आदत है इंवेस्टिगेट करने की, जब भी इनकी चक्की पे गया, पूरी वर्कशॉप में ऐसे छानबीन करते घूमता हूँ जैसे मेरे घर की चक्की हो|
 
14) दादा भीमा खाती (obc): मेरे दादा जी के सबसे पुराने और गूढ़ साथियों में एक| हमारे घर के लकड़ी के काम से ले के मकान बनाने तक के सबसे ज्यादा कार्य इन्होनें और इनके बेटे दादा रमेश ने किये हैं| जब भी इनके घर जाना हुआ, दादी ने कभी भी बैठा के बातें करना नहीं छोड़ी| मेरे दादा जी कैसे बारातों में हमारे 'गाम-गोत-गुहांड' संस्कृति के तहत जिस गांव में बारात गई, वहाँ हमारे गाँव की 36 बिरादरी की बेटियों की मान करने सबसे आगे होते थे, सब कुछ इत्मीनान से बताया करते थे| मेरे पिताजी हमें कभी डांट लगाते और दादा जी देखते होते तो मेरे पिता जी को भी फटकारने से पीछे नहीं हटते थे, इतना हक़ और दखल होता था दादा का हमारी पारिवारिक जिंदगी में|
 
15) दादा रामकरण खाती (obc): बच्चों से लाड करने के मामले में, यह वाले दादा तो आज भी बड़े नहीं हुए हैं| क्या मैं और क्या अब मेरे भतीजे-भांजी देखते ही दूर से ऐसे आवाज लगाएंगे कि 'आईये छोटे साहब, क्या हाल हैं; खूब कुप्पा हो गया हमारा साहब!'| गली में से निकलते हों और बालकनी में हम में से कोई खड़ा हो तो इनको देख के हमें भी जोश चढ़ता और देखते ही नमस्ते करते| और यह गली में तब तक ऊँची आवाजों से हमसे बतलाते चले जाते, जब तक कि आँखों से ओझल नहीं हो जाते|
 
16) काका इंद्रा ऐहड़ी (कश्यप राजपूत – sc/st): ऐहड़ियों में दूसरे ऐसे व्यक्ति जो सबसे ज्यादा सीरी रहे हमारे यहां| वैध जी के कई सारे देशी नुश्खे भी जानते होते थे| काकी के तो कहने ही क्या| व्यवहार की शालीनता और अपनापन, आज भी यूँ का यूँ याद है| इनके घर बैठे हों, ऊपर से कोई हवाई जहाज निकल जाए तो कह उठती कि एक दिन फूल भी इन्हीं में उड़ेगा| आज सोचता हूँ कि कहीं ना कहीं काकी की दुआओं का भी हाथ है मुझे विदेश तक पहुंचाने में|
 
17) राजपाल ऐहड़ी (कश्यप राजपूत – sc/st): शायद पांच साल सीरी रहा| ऊत मानस, नाते में भाई लगता है तो मेरा जो जी करे कहूँ| खेत के काम में परफेक्ट, हंसी-मखौल में अव्वल और शरारतें करने में उस्ताद| जब ज्यादा काइयाँपने पे उतरता तो इसको तो मैं अक्सर कह दिया करता, मखा मालिक तू सै कि मैं| तो फिर कहता भाई आप्पाँ तो सीरी-साझी यानि पार्टनर हैं| मखा हैं, पर तेरी रग-रग मैं जानू, जब तक ना दबाऊं, तूने सीधा चलना नहीं होता| ऐसा हंसी-मखोल की नोक-झोंक भरा रिश्ता| आज भी गाँव जाऊं, सामने टकरा जाए तो बन्दे की मिलने और बात करने की आत्मीयता दिल छू जाती है|
 
18) दादा भुण्डा चमार (sc): "अनुराधा बेनीवाल को फूल मलिक का जवाब" वाले मेरे लेख में बताया था कि मेरे गाँव में चमारों की 50-60 साल पुरानी जाटों को टक्कर देती दो हवेलियां खड़ी हैं, उनमें से एक इन्हीं दादा की है| मेरे घर में मेरी देखत में सबसे ज्यादा सीरी रहे हैं| वो कहावत है ना कि "चमार आधा जाट होता है|" वो ऐसे ही चमारों बारे बनी है| नंबर एक नसेड़ी माणस, दारू पीने लग जाए तो तीन-तीन महीने काम पे ना आये| इनमें सबसे बड़ी क्वालिटी होती थी जानवरों को अच्छे से संभालने की| इनकी ब्रांड वैल्यू यह है कि जिसके घर यह सीरी लग गए, समझो उस घर की गाय-भैंसे दो महीने में ही मोटी हो जाएँगी| मेरे लिए सबसे डेडिकेटेड आदमी| पिता-दादी से किसी वजह से रूठ जाएँ तो भी मेरे कहने पे हरदम तैयार| स्वर्गीय दादा जी के मोस्ट-फेवरेट सीरियों में होते थे| इनकी पत्नी और माँ की आत्मीयता आज भी हृदय में लिए चलता हूँ|
 
19) काका धीरा चमार (sc): दादा भुण्डा के साथ अक्सर ये ही जोड़ी में सीरी रहते थे| दोनों कम से कम छ-सात साल एक साथ सीरी रहे| इनकी अक्सर बड़े भाई से भिड़ंत होती थी और वो भी कौनसे वाली| मान लो पिता जी खेत से चले गए और बड़ा भाई खेत में है तो वो अक्सर ट्रेक्टर को छेड़ेगा, तो यह कहेंगे कि 'तेरा बाब्बू मेरे भरोसे छोड़ के गया है, किममें तोड़-फोड़ ना कर दिए इसमें|' और बड़ा भाई इनसे उलझता कि मुझे क्या समझ नहीं है| और ऐसी ही छोटी-छोटी नोंक-झोंक, परन्तु काका के दिमाग में अपने साझी के नुकसान की चिंता|
 
20) काका धर्मबीर चमार (sc): जब मैं बारहवीं करता था तो ये बीए करते थे, अक्सर मजदूरी पर आते थे| मैं इनकी शिक्षा के प्रति लगन से बहुत प्रभावित था| बड़े अच्छे मित्र थे और यकीं है कि आज भी हैं|
 
21) काका सुरेश चमार (sc): आज के दिन गाँव के सरपंच हैं| मेरी माँ के फेवरेट| सबसे ज्यादा छोटी मजदूरी पर यही आते रहे हैं| घर-खेत में मजदूरी के अलावा, रख-रखाव और सुरक्षा की अपनों जैसी चिंता| इनके पिताजी तो देखते ही गले लगा लिया करते थे| दिखा नहीं कि आइये रे मेरे फूल पोता| और फिर गांव-गलिहार की नई-पुरानी बातें बताने लग जाते|
 
22) दादा चंदन चमार (sc): बचपन में हमारे घर के आगे अपनी जूती गांठने की स्टाल लगाया करते थे| लंच करने घर जाते तो सारा सामान समेट के हमारे घर रख जाते (रात को तो रखना होता ही था)| इनको छोटे बच्चों को चुहिया की आवाज निकाल के उससे डराने का बड़ा शौक होता था| सयाने और शातिर दोनों के लिए फेमस थे|
 
23) काका महेंद्र धाणक (sc): यह और इनके पिताजी दादा किदारा धाणक, पूरे परिवार के साथ सीरी-साझी का रिश्ता रहा| हमेशा अपनी औलाद की भांति व्यवहार मिला| दादी-काकी सब बड़ी ही आत्मीयता से बोलती और मान देती|
 
24) दादा दयानंद धाणक (sc): अभी जब 2014 में इंडिया गया था तो इनके पास बैठ के पूरे गाँव के इतिहास के अनखुले, अनुसने पन्ने लिख के लाया था| मेरे पिता-दादा के साथ मेरे व्यवहार को भी खूब सराहा| जब तक बैठा रहा, 15-20 लोग मेरे इर्दगिर्द रहे| उठ के जाने का टाइम हुआ तो मैंने ही चाय के लिए कहा| कहने लगे कि बिलकुल अपने पिता पे गया है| उस आदमी (मेरे पिता जी) ने भी दलित के हाथ की चाय पीने से, दलितों के बच्चे गोद में ले के खिलाने से कभी परहेज नहीं किया| मुझसे माफ़ी के लहजे में बोले कि भाई आप विदेश में रहते हो तो हमें लगा कि कहाँ हमारे घर की चाय पिओगे| उस चाय का स्वाद आज भी साथ है|
 
25) आटा चक्की वाला काका संजय बनिया (general): खूब मोटा और हमेशा आटे की चक्की के चून में सफेद हुआ रहना, यही पहली तस्वीर उभरती है, जब इनके बारे दिमाग में आया तो| खड्डे वाले बनिए बोलते थे इनको, आज जींद शिफ्ट हो चुके| परन्तु घर औरतों का व्यवहार आज भी यूँ का यूँ जारी है|
 
26) दादा हांडा सुनार (obc): गाँव का सबसे खड़कू आदमी| बच्चे डरते थे इनसे| सुनार की दूकान के साथ-साथ टायर-पंचर की दुकान भी चलाते थे| मेरी अक्सर साइकिल में हवा भरने पे इनसे लड़ाई होती थी| परन्तु लड़-झगड़ के फिर खुद ही भर देते थे| और घुरकी देते कि तू तो बालक है, तेरे से क्या अड़ूं, तेरे बाबू को भेजियो फिर देखता हूँ| और इतनी हंसी आती कि पेट फट जाते|

बाकी मैं (लेखक) खुद जाट हूँ तो जाटू संस्कृति की मिलनसारिता और मधुरिमा का उधर वाला पक्ष भी लिखने लगूंगा तो फिर कहानी अंतहीन लम्बी हो जाएगी|
तो अरे ओ नादानों, समाज को कभी धर्म तो कभी जाति में तोड़ के राज करने की कुमंशा रखने वालो, तुम्हें क्या लगता है तुम माँ की गोदी से बच्चा छीनोगे और हम यूँ बैठे-बिठाए ही छीन ले जाने देंगे? इतनी कमजोर नहीं हमारी संस्कृति, यह हरयाणा है, होश करो|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक

Wednesday 9 March 2016

Haryana prima-facie needs these laws to tackle current scenario in the state!


  1. Social Jury System: To fight caste, class and varna hegemony in society
  2. Anti-trust law for Society: e.g. The Sherman Antitrust Act prohibits monopolies and restraint of trade. Same the society needs to tackle derogatory conspiracies like Jat versus non-Jat or so called 35 versus 1 biradari.
  3. Prevention of Psychological Atrocities Law: A law which prohibits use of caste/religion words by media, politicians and religious reps alike SC/ST Act, to further nail them from illegal, impartial and derogatory media trials and mental tortures.
Note: If these laws already exist in our constitution then public needs to be sensitive and aware enough to force the system to get these acts in practice.

Jai Yauddhey! - Phool Kumar Malik

"जाट चैंबर ऑफ़ कॉमर्स" और "पैसा तुम्हारा, जमीन हमारी"!

जाट आरक्षण एजिटेसन से और इस पर स्टेट से लेकर सेंटर तक की सरकारों ने जाट को दबाव में लेने हेतु जो षड्यंत्र पर षड्यंत्रों की झड़ी लगाई, उससे जो अगला कदम जाट समाज के लिए सर्वोत्तम हो सकता है वो इस लेख का शीर्षक हैं|

'फिक्की' (Federation of Indian Chambers of Commerce & Industry) और 'डिक्की' (Dalit Indian Chamber of Commerce & Industry) की तर्ज पर अब वक्त आ गया है कि सर्वधर्म का जाट 'जिक्की' (Jat Indian Chamber of Commerce & Industry) बनाये|

'फिक्की' जहां सरकारी संस्था है, वहीँ 'डिक्की' दलित समाज के उधमियों की अपनी स्वायत संस्था है| 'डिक्की' के मोटे तौर पर जो काम सामने आये हैं वो हैं दलित वर्ग के मेधावी छात्रों और व्यापार के इच्छुक लोगों को न्यूनतम इंटरेस्ट पर पैसा मुहैया करवाना व् इसके साथ ही व्यापार में नए-नए उतरे दलित व्यापारियों को व्यापार संबंधी लीगल व् कारोबारी कंसल्टेशन और सहायता उपलब्ध करवाना| 'डिक्की' के बारे यहां तक सुना है कि यह लोग दलित एंटरप्रिन्योर को जीरो इंटरेस्ट पे फाइनेंस और फ्री लीगल और कारोबारी कंसल्टेशन और हेल्प मुहैया करवाते हैं| 'डिक्की' को मुख्यत: दलित उधमी व् समाज ही अपने दान-चंदे से चलाते हैं और आज के दिन यह 3000 करोड़ रूपये से ज्यादा का संगठन है|

अब समय आ गया है कि जाट भी इन माता-वाताओं की चौकियों-जगरातों-जागरणों में पैसा फूंकने की बजाये इस दिशा में अपने पैसे और बौद्धिक तंत्र को मोड़ें| साथ ही अभी तक जो जाट संस्थाएं व् सभाएं ज्यादातर सामाजिक सरोकारों और प्रोपकारों पर ही ध्यान व् धन देती आई हैं वो भी 'जिक्की' बनाने हेतु एकजुट होकर एक 'मिनिमम कॉमन एजेंडा' (minimum common agenda) के तहत अपनी आने वाली पीढ़ी या वर्तमान पीढ़ी के मेधावी व् व्यापारिक प्रतिभा के बच्चों-वयस्कों के लिए अग्रसर हों|

इसके साथ ही हरयाणा-एनसीआर में व्यापारिक गतिविधियों की वजह से अप्रत्याशित गति से बदलते कारोबारी व् रोजगारी स्वरूपों में खुद को व् अपनी आने वाली पीढ़ियों को ढालने हेतु, मात्र पैसे के ऐवज में अपनी जमीनें प्राइवेट व्यापारियों को ना थमावें| अगर कोई आता है तो उसको 'पैसा तुम्हारा, जमीन हमारी, मिलके करें, विकास में साझेदारी!' फार्मूला के तहत साझे में कारोबार करने का ऑफर दें| बल्कि मुनासिब हो तो जाट समाज खुद भी सरकारों को सरकार की "सबका साथ, सबका विकास" पालिसी के तहत यह फार्मूला सुझा सकता है| परन्तु सीधी सी बात है जमीन रहेगी जाट की मल्कियत में क्योंकि जमीनें, किसी का दान में दिया मंदिर नहीं, वरन आपके पुरखों ने पीढ़ियों-पे-पीढ़ियां गला के हाड़तोड़ मेहनत से बंजर व् पथरीली धरती को समतल व् हराभरा बनाया था| पीढ़ी-दर-पीढ़ी आपके पुरखों-बाप-दादाओं ने ईमानदारी से मुचलके-टैक्स-दरखास भरी हैं इसके लिए; इसलिए अपनी धरती पर अपनी पूरी रॉयल्टी से अपना हक जताएं|

हालाँकि जाट आंदोलन की वजह से अन्य समाजों के साथ-साथ जाट समाज को सबसे ज्यादा जान-माल की हानि हुई है परन्तु इससे एक अच्छी बात निकल कर यह सामने आई है कि जाट एकजुट हो के चलें तो सरकार तक को अपनी मांग मनवा सकते हैं| इसलिए इस सकारात्मक पक्ष की ताकत को समझते हुए व् जाट आरक्षण पर हो रही सरकार की गतिविधियों पर नजर रखते हुए, पूरा समाज अब इन दो बिन्दुओं पर मंथन करे, ताकि आरक्षण का मसला सुलझते ही, सीधा इन मुद्दों पर कोई ऐसी ढील ना रहे कि फिर से 23-24 साल यानी पूरी एक पीढ़ी यूँ ही निकल जाए और फिर कोई ऐसा ही आंदोलन करना पड़े|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

Monday 7 March 2016

अनुराधा बेनीवाल को जाटों को फटकारने बारे फूल मलिक का जवाब!

इस छोरी के विचार और पोलिटिकल एफिलिएशन (political affiliation) जानने के बाद इसी निष्कर्ष पर पहुँचा हूँ कि यह लड़की पी.के. फिल्म की भांति रॉंग कनेक्शन (wrong connection) की पोलिटिकल मिस्सकन्नेक्शन (political misconnection) का नतीजा है। जैसे तपते रेगिस्तान में मींह की बूँद की आस में मुंह बाए आदमी के मुंह में पानी की बूँद तो आई नहीं, परन्तु कोई कव्वा बीट कर गया और उसके लिए यह छोरी कोसने मंड री है जाटों को।

मैं कुछ और भाईयों की भांति ना ही तो इसके व्यक्तिगत जीवन पर कोई टिप्पणी करूँगा, क्योंकि इसने पब्लिक डोमेन (public domain) में बात करी है तो उसी लाइन पे चलूँगा। ना मैं और भाईयों की भांति भाह्ण, बेबे, दीदी, जीजी जैसे वर्ड्स (words) के साथ इसको सर पे बैठाऊंगा, क्योंकि मेरी जाटू संस्कृति के अनुसार पांच प्रकार की बहनों में से यह किसी में भी फिट नहीं बैठती। पांच कौनसी? गाम-गोत-गुहांड-सगी-धर्म। यानि गाम की मेरे यह नहीं, गोत की मेरे यह नहीं, गुहांड की मेरे यह नहीं, सगी बहन मेरी यह नहीं, और इसको धर्म की बहन कहूँ, ऐसा महान इसने काम नहीं कर रखा और ना ही जाटों पे 'तेल पिए हुए काट्ड़े की भांति बुरकाने' का काम करके, इसने छटा ऑप्शन दोस्ती वाला कार्य किया।

हाँ, हो सकता है मेरे इस उत्तर को पढ़ के यह मुझे दुश्मन बनाने जरूर भागे। या आदत से मजबूर अपनी मुंहफट शैली में मुझे कोसने जरूर चले कि देख्या थारे पै एक छोरी बोलती कोणी देखी जांदी, थामनैं एक छोरी बोल पड़ी या बात-ए कोनी सुहाई, एंड बला-बला (and bla-bla)।

इस पर मैं शुरू से ही यह बिंदु स्पष्ट करता हुआ चलूँगा कि मेरी आपकी बोली या आपकी शैली से कोई कटुता नहीं| कुछ है जिसपे आपको ले के बोलना है तो उस आइडियोलॉजी के सॉफ्टवेयर पर जो एक पोलिटिकल मिस्सकन्नेक्शन के तहत आपमें बचपन से फिट किया गया है। और इसी पे मेरे लेख का फोकस है।

वैसे भी कुछ दिनों पहले इस छोरी की पाथी (हिंदी में लिखी) हुई किताब "आज़ादी मेरा ब्रांड" पे टिप्पणी करने बारे मेरे पास कई दोस्तों की अपील आई थी परन्तु मैंने मना कर दिया था। एकाध ने ज्यादा जोर दिया तो उस किताब के रिव्यु देखे और उससे संबंधित इस छोरी की फेसबुक वाल पे पोस्ट्स देखे, तो भी मैंने यह कहते हुए मना कर दिया कि मखा क्यों बावले हो रे सो, छोरी स्टूडेंट लाइफ में बस-कॉलेज में हुई ईव-टीजिंग (eve-teasing) और छेड़खानी के उलाहने दे रही है, देने दो। मखा ऐसे-ऐसे मुद्दे भी पब्लिक में चर्चा हेतु आने चाहियें। और रही बात जो या छोरी न्यू कह रही है अक हरयाणे में पब्लिक में तो बेबे कह्वेंगे और एकांत मिलते ही पिछवाड़े पे हाथ मारण के बहाने टोहवैंगे, तो इसपे भी मैंने यह कह दिया था कि यह हर सोसाइटी की बीमारी है, भावुक मत होवो, यह मत सोचो कि यह तुम्हारी ही सोसाइटी की समस्या है, अपितु यह हर सोसाइटी की समस्या है।

परन्तु इब जो इसने किया वो किया इसके दिमाग के सॉफ्टवेयर में गड़बड़ वजह से। पता किया तो पाया कि यह छोरी लेफ्ट-आइडियोलॉजी के परिवेश से है। जहाँ हरयाणवी लेफ्ट-विंग के गुरु हैं बंगाल-बिहार की सामंतवादी सोच की बंगाली-बिहारी ब्राह्मण-ठाकुर लॉबी।

बस सारी गड़बड़ इसमें छुपी है। एक लाइन में कहूँ तो यें लेफ्ट वाले कदे हरयाणा में यही नहीं समझ पाये कि तुम यहां से कौनसा सामंतवाद मिटाना चाहते हो| क्योंकि बंगाली-बिहारी आइडियोलॉजी के ब्राह्मण लेफ्टिस्ट जिस तरह का सामंतवाद इनको दिखाते रहे, उसको तो सर छोटूराम लगभग एक सदी पहले हरयाणा से उखाड़ के जा चुके। क्योंकि यह सामंतवाद बंगाल-बिहार में अभी भी बाकी है तो यह लोग इन हरयाणवी लेफ्टिस्टों को यही दिखाते आ रहे हैं और यही है, यह पोलिटिकल मिस्सकन्नेक्शन; जिसकी वजह से लेफ्ट वाले हरयाणा में गलियों में बाल्टियों में चून मांगने के किरदार से ख़ास ज्यादा कभी कुछ कर ही नहीं पाये। अब चलेंगे बंगाली-बिहारी ब्राह्मण सामंतवादी सोच से तो, इनको एक जाट छोटूराम थोड़े ही नजर आएगा।

अब इस आइडियोलॉजीकली रॉंग कनेक्शन से क्या होता है कि बिहारी-बंगाली ब्राह्मण लेफ्टिस्ट जाटों को हरयाणा में बिहार-बंगाल के ब्राह्मण-ठाकुर के बराबर दिखाते हैं कि देखो जी जैसे उधर ब्राह्मण-ठाकुर दलित-मजदूर पर जो अत्याचार करते हैं वही हरयाणा में जाट करते हैं। और यही वो सॉफ्टवेयर है जो इस छोरी में फिट हो रखा है, यह सोचती है कि जाट तो हरयाणा के बिहारी-बंगाली स्टाइल वाले ब्राह्मण हैं, ठाकुर हैं। इसीलिए यह बोली कि थाहमें की बावले थे, थाहमें के सोच नहीं सको थे। थांनैं लाहौर कोनी फूंका, आपणा घर फूंक्या सै। कोई भड़कावे था तो थाहमें क्यों भड़के? इब थारै कूण फैक्ट्री लाण आवैगा एंड बला-बला।

यहां दो धाराओं में लेख को आगे बढ़ाऊंगा। एक तो छोरी न्यू बता, जै कोई तैने बस में छेड्या करदा तो के जुल्म होग्या था जो तैने पूरी किताब-ए पाथ कें धरदी उन मुद्द्यां पै? तू के बावळी थी? ऊँ तो तू इतनी क्रन्तिकारी बनै अक जाटों का औढ़ा ले के हरयाणा की इन बुराइयों पर लोगों को बोलने हेतु प्रेरित करै अर दूसरी तरफ तू जाट्टां नैं उनके अधिकार की आवाज भी ना उठाने दे रही? के बात छोरी, तूने जाटों को 'फॉर गारंटीड' ले रखा है क्या, कि मेरे ब्ट्यो थामनैं न्यूं बळ भी बासुंगी अर न्यूं बळ भी? अगर तूने सर छोटूराम को पढ़ा होता तो जानती होती कि लाहौर जाटों के लिए कितने सम्मान की जगह है, जाट क्यों सर छोटूराम की कर्मस्थली में आग लगाएंगे, पहाड़ी बुच्छी?

दूसरी बात, छोरी अपणे दिमाग के सॉफ्टवेयर को या तो रेक्टीफाई कर ले या पूरा सिस्टम रिप्लेस कर ले। क्योंकि बंगाल-बिहार का ब्राह्मण-ठाकुर सामंतवाद हरयाणा में नहीं और ना ही तू बिहार बंगाल स्टाइल वाली हरयाणा की ब्राह्मण या ठाकुर है। वो कैसे वो ऐसे:

बिहार-बंगाल का सामंतवाद बनाम हरयाणा का सीरी-साझीवाद:

1) बिहार-बंगाल में आज भी ब्राह्मण-ठाकुर खेत के किनारे खड़ा हो के मजदूर से कार्य करवाता है, जबकि तेरे हरयाणा का जाट अपने सीरी के साथ लग के खेतों में काम करता है।

2) बिहार-बंगाल में 'नौकर-मालिक' का रिश्ता है, जबकि हरयाणा में 'सीरी-साझी' यानी पार्टनर का। जानती है ना गूगल जैसी कंपनी भी जाटों के वर्किंग कल्चर पे चलती है, उसमें भी एम्प्लोयी को एम्प्लोयी नहीं बल्कि पार्टनर कहते हैं?

3) बिहार-बंगाल में ब्राह्मण-ठाकुर के जुल्म की वजह से वहाँ महादलित भी हैं। जबकि हरयाणा में सिर्फ दलित और वो भी ऐसी हैसियत और स्वछँदता के कि साला किसी की बेफाल्तू में दाब ना मानते।

4) बिहार-बंगाल के सामंतवाद से तंग हो के वहाँ के दलित हरयाणा-पंजाब में रोजगार ढूंढने और करने आते हैं। एक आर्ट फिल्म है 'दामुल' वा देख लिए फर्दर डिटेल्स के लिए।

5) बिहार-बंगाल में कोई दलित ढंग के मकान की सोच भी ना सकता, जबकि दो चमारों की जाटों को टक्कर देती पचास-साठ साल पहले बनी दो हवेलियां तो मेरे गाँव निडाना, जिला जींद हरयाणा में आज भी खड़ी हैं। और ऐसी ही कहानी लगभग हर हरयाणवी गाँव की है।

6) बिहार-बंगाल का ब्राह्मण-ठाकुर आज भी बेगार करवाता है वहाँ दलित-महादलित से। जबकि तेरे हरयाणा का अधिकतर जाट बाकायदा बनिए की बही के जरिये लिखित के सालाना कॉन्ट्रैक्ट के जरिये सीरी रखता आया है और आजकल तो कच्ची रजिस्ट्री पर भी रखने लगे हैं।

7) बिहार-बंगाल में जहां दलित-महादलित ब्राह्मण-ठाकुर के आसपास भी फटकने की नहीं सोच सकता, हरयाणा में खेत में जाट दलित के साथ बैठ के खाता आया है और बहुत से एक ही थाली में खाते हैं। इब इसपै तू न्यूं बरडान्दी होई ना चढ़ जाईये, अक फेर घर में थाली न्यारी क्यूँ हो सै सीरी की। इसका कारण यही है कि तेरी माँ तेरे ताऊ-चाचा की झूठी थाली तीज-त्यौहार को छोड़ के रोज-रोज ना मांज सकती। हाँ जाट-किसान इतने अमीर होंदे कोनी अक घर में कासण मांजन ताहीं नौकर राखदे हों। बड़ै सै किमैं बुत में अक नी?

तो सबसे पहले यह बंगाल-बिहार की ब्राह्मण लेफ्ट आइडियोलॉजी का सॉफ्टवेयर अपने दिमाग से डिलीट मार दे कि तू हरयाणा की ब्राह्मण है। दूसरा हरयाणा के लेफ्ट वालों को बोल कि जहां से सर छोटूराम जी काम अधूरा छोड़ गए थे, उससे आगे काम को उठावें। बंगाली-बिहारी ब्राह्मणों की आइडियोलॉजी की चापलूसी में एक जाट सर छोटूराम की कहीं बेहतर और कारगर आइडियोलॉजी को ना ठुकरावें या नजरअंदाज करें। और गारंटी देता हूँ आज लेफ्ट वाले सर छोटूराम को उठा लेवें, अगर अगले पांच-दस साल के भीतर-भीतर हरयाणा में सरकार ना बना जावें तो।

इन थोड़े से बिन्दुओं पर विचार कर लिए अर ना तो बावली-ख्यल्लो, न्यू-ए "काटड़ा और जाटड़ा अपने को ही मारे" वाली केटेगरी में गिनी जाया करेगी, इतिहास में। और घणी चौड़ी मत ना होईये इस बात पे अक तेरे को इतने अवार्ड मिले, फलाने बड्डे अवार्ड मिले अक धकडे बड्डे अवार्ड मिले; क्योंकि यह अवार्ड्स की वो केटेगरी है जिसको एक सोसाइटी के लिए नेगेटिव तो एक के लिए पॉजिटिव लिटरेचर बोलते हैं, सैचुरेटेड, न्यूट्रल या इम्पार्सियल लिटरेचर नहीं।

Special: I have tried to write this note mapping your sattire of writing, especially its Haryanvi part. Hope you won't create a new nuissance out of it uselessly and would talk to the point.

Note: I shall also try to send this note to this girl, even then thanks a lot for sending it to her on my behalf.

Author: Phool Kumar Malik

712 ईस्वी का इतिहास आज 2016 में फिर से जाटों और ब्राह्मणों के बीच दोहराया जा रहा है!


निचोड़: हरयाणा का जाट बनाम नॉन-जाट कहो या पैंतीस बनाम एक बिरादरी कहो, यह सिवाय मनुवाद बनाम जाटवाद की लड़ाई के कुछ और है ही नहीं| यह सैनी वैगेरह तो सिर्फ मोहरे हैं|

आज जो ब्राह्मण संचालित आरएसएस और बीजेपी हरयाणा में जाटों के खिलाफ कर रहा है, यही 712 ईस्वी में हुए ब्राह्मण राजा दाहिर ने तब के बुद्ध धर्मी जाटों व् दलितों के साथ किया था| तब उससे तंग आकर जाटों ने इस्लाम अपना लिया था| और ब्राह्मणों का जाटों के खिलाफ यही रवैया देश की गुलामी का कारण बना|

महमूद ग़ज़नी के इतिहासकार अलबेरूनी लिखते हैं कि, "Mahmood Ghazni looted Somnath Temple in 1024 A.D. And in Sindh, Jats looted him back and recovered the booty of Somnath. These Jats were Muslims and got converted to this faith in 712 A.D. not by Muhammad Bin Quasim but Raja Dahir, a Brahmin who oppressed the peace loving Budhist Jats in their own majority, where more than 90% were Jats. Last 17th attack of Mahmood Ghazni on India was not to loot but punish the Jats."

ब्राह्मणों ने मुग़ल और अंग्रेजों के एक हजार वर्षों के गुलामी काल से कुछ नहीं सीखा, वही ढाक के तीन पात| पहले ब्राह्मण, जाट कौम के साथ जैसे आज हरयाणा में पैंतीस बनाम एक बिरादरी का अखाडा सजाया हुआ है, ऐसे अलगाव पैदा करके जाटों को रूष्ट करते हैं और जब इनसे अकेले स्थिति नहीं संभाली जाती तो फिर विदेशियों के आगे सर्रेंडर करते रहे हैं| और फिर इनकी नाकामयाबी को जाटों को ही धोना पड़ता रहा है| जैसे जब ब्राह्मण हर तरह से ग़ज़नी के आगे असहाय हो गए तो सोमनाथ की लूट को अंत में जाटों ने ग़ज़नी से छीन देश से बाहर जाने से रोका|

मेरे ख्याल से जाट अंग्रेजों से नई-नई मिली आज़ादी के उत्साह में और सर छोटूराम की अनुपस्थिति में यह भूल ही गए थे कि अभी सिर्फ मुग़ल और अंग्रेज से आज़ादी पाई है, इनके आने से पहले जिससे लड़ाई चलती थी, उस मनुवाद से आज़ादी पाना तो अभी बाकी ही था| खैर देर आयद, दुरुस्त आयद; अब जाट को दलित से मिलकर मनुवाद से आज़ादी के बिगुल को सहारा और समर्थन देना होगा| आना तो ओबीसी को भी इस लड़ाई में जाट और दलित के साथ था, परन्तु अभी शायद ब्राह्मण द्वारा उसको जाट से नफरत की पिलाई घूंटी का असर जाते-जाते वक्त लगे| भगवान करे कि ओबीसी पर से इस घूंटी का असर जल्दी उतरे और जाट-दलित के साथ मनुवाद से आज़ादी की लड़ाई में जल्दी आन जुड़े|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

बहन मायावती जी के जाट-आरक्षण को समर्थन के जवाब में जाटों ने उठाया जाट-दलित-मुस्लिम एकता का बीड़ा!


कुछ-एक दलित बुद्धिजीवी अतिरेक में आ के यह कहते देखे जा रहे हैं कि जाट इससे पहले कहाँ थे, अभी क्यों इनको दलित-जाट एकता की याद आई| जाट-दलित भाईचारे को आगे बढ़ाने हेतु जाट आरक्षण को समर्थन दे के, बहन मायवती ने जो सीधी लाइन रख दी है, ऐसे लोग उससे अलग दिखने की नादानी भरी गलती कर रहे हैं| ऐसे भाईयों को इतिहास के हवाले से दो-चार चीजें बताना चाहूंगा:

1) 1398 में सर्वखाप हरयाणा ने तैमूरलंग के खिलाफ विजयी जंग लड़ी थी, इसके दो उपसेनापतियों में एक दादावीर धूला भंगी जी थे| आजतक जाट-बाहुल्य सर्वखाप के अलावा किसी राजा का इतिहास नहीं, जिसने एक दलित को इतनी बड़ी जिम्मेदारी के लायक समझा हो| मेरे पास ऐसे ही अन्य दलित यौद्धेयों की सूची है जो खापों में बिना किसी पक्षपात के सम्मान से अपना किरदार अदा करते रहे|

2) मुझे नाम याद नहीं है, परन्तु भरतपुर के महाराजा सूरजमल के खजांची एक दलित हुए हैं| पूरे भारत के इतिहास में कोई ऐसा राजा नहीं, जिसके बारे यह सुनने को आता हो कि उसने किसी दलित को खचांजी जैसी उच्तम पदवी पर बैठाया हो|

3) सर छोटूराम और बाबा साहेब आंबेडकर की जोड़ी ने उस वक्त के संयुंक्त पंजाब में जाट-दलित भाईचारे को स्थापित किया था| ऐसे कानून जो बाबा साहेब बाकी के देश में आज़ादी के बाद लागू कर पाये, सर छोटूराम सयुंक्त पंजाब में आज़ादी से पहले लागू कर गए थे और इसीलिए दलितों ने उनको 'दीनबंधु सर छोटूराम' का नाम दिया था| यह दुर्भाग्य रहा कि मंडी-फंडी ताकतों द्वारा एक साजिस के तहत इन दोनों महापुरुषों को लेखों-फिल्मों में अलग-अलग दिखाया गया| वर्ना आज भी वो सरकारी दस्तावेज मौजूद हैं जब साइमन कमीशन का स्वागत करने वालों में यह दोनों हुतात्मा सबसे अग्रणी थे और एक थे|

4) वजह जो भी रही हो, परन्तु पीछे के कुछ सालों में बहन मायावती जी की हरयाणा में कई ऐसी रैलियां हुई जिनमें उनके मुंह से यह बुलवाया गया कि वो हरयाणा में नॉन-जाट सीएम का समर्थन करती हैं या ऐसा चाहती हैं| तो ऐसे में अभी तक वो माहौल बन ही नहीं पाया था कि जाट दलितों के समर्थन में खुलकर आ पाते|

और अब मायावती जी द्वारा जाट-आरक्षण को खुलकर समर्थन देने से, ऐसा सम्भव हुआ है तो जाट आगे बढ़े हैं| और जाटों ने ठाना है कि अब जाट-दलित-मुस्लिम एकता आ के रहेगी| तो ऐसे भाई, जरा इन ऐतिहासिक परिपेक्ष्यों को मद्देनजर रखते हुए अपनी बात रखेंगे तो मुझे उम्मीद है कि वो ऐसा उलाहना नहीं दे पाएंगे|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

Wednesday 2 March 2016

जाट कौम को "जाटरात्रे" मनाने बारे एक सुझाव!

बहुत हुआ यह किसी के नवरात्रों पे तो किसी के फलाने-धकड़े रात्रों पे कूल्हे मटकाना और गले फाड़ना| आओ सारी जाट-बिरादरी अब से हर साल 19-20-21-22 फ़रवरी को "जाटरात्रे" के रूप में मनाना शुरू कर देवें| इन चारों दिनों पे जो गतिविधियाँ की जावें वो कुछ इस प्रकार हो सकती हैं:

1) चार-के-चार दिन किसी भी प्रकार की कोई दुकानदारी कोई शॉपिंग-ओप्पिंग नहीं की जाएगी|
2) बल्कि हमारे घर के बने सामानों के साथ ही "जाटरात्रे" मनाये जायेंगे| चाहे जो भी सामान इन रात्रों को मनाने में लगे वो शुद्ध रूप से जाट के घर का होगा, जाट और जाटणियों का बनाया हुआ होगा|
3) इन चारों तारीखों पर नाटक लेखन व् मंचन किये जायेंगे कि कैसे किधर सरकार व् अन्य विरोधियों ने हमारे बालकों पर गोलियां चलवाई और किस बहादुरी से हमारे बालक डट के लड़े, इन पर स्क्रिप्ट बना के इन चार दिनों में से एक दिन इन पर थिएटर मंचन होंगे|
4) एक दिन हमारी खापों, राजाओं और आम जाटों में जितने भी ऐतिहासिक महापुरुष और शहीद हुए हैं और जितनी भी ऐतिहासिक लड़ाइयां हुई हैं, उनपे पूरी जाटलैंड पे ऐसे ही नाटक-मंचन और बाणियां रची और गाई जाएँ|
5) एक दिन शुद्ध जाटू सभ्यता के विभिन्न सामाजिक-सामरिक-आर्थिक पहलुओं पर इसी प्रकार नाटक-मंचन होंगे|
6) और आखिरी दिन देश की एकता और अखंडता को बनाये और बढ़ाये रखने बारे जाट समाज के योगदान और
देश के भविष्य में आगे क्या और कैसे योगदान जाट समाज देगा इसपे कन्फेरेन्सेस और डिबेट्स होंगी|

इस प्रस्तावना पर अपने विचार जरूर देवें|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक - यूनियनिस्ट मिशन

Tuesday 1 March 2016

तुम्हारा टैलेंट, टैलेंट, बाकियों का टैलेंट साइलेंट, माय फुट!

ये टैलेंट-टैलेंट चिल्लाने वाले अपने पारम्परिक पेशे से बाहर निकल के एक बार अपने टैलेंट को फ़ौज-पुलिस और खेती में भी आजमावें; ना अगर डेड गज लम्बी जीभ घुटनों पर जा के धरी जावे तो कहना| तुम्हारा टैलेंट, टैलेंट, बाकियों का टैलेंट साइलेंट, माय फुट!

खाम्खा में टैलेंट शब्द के पीछे अपनी कमजोरी मत छुपाओ| मल्टीटैलेंटेड तो किसान-कमेरा होता है जिसको खेत में अड़ा लो या फ़ौज में, व्यापार में अड़ा लो या एडमिनिस्ट्रेशन में; हर जगह तुम से बेहतर और ज्यादा ईमानदार परफॉरमेंस देता है| और देखी है तुम्हारे टैलेंट की परफॉरमेंस भी, इस देश के 90% से ज्यादा घोटाले-घपले-भ्रष्टाचार, और जहां देखो वहाँ भाई-भतीजावाद सब तुम्हारे नाम, यही है क्या तुम्हारा टैलेंट?

तुम अपने पारम्परिक पेशों की सेफ्टी चाहते हो इसीलिए टैलेंट-टैलेंट की आड़ में अपनी कमजोरी छुपाते हो और रिजर्वेशन का विरोध करते हो| क्योंकि तुम्हारे पारम्परिक काम के बाहर कुछ करना तुम्हारे बस का ही नहीं| वर्ना तो आज तुम भी फ़ौज-पुलिस या खेती के लिए रिजर्वेशन मांग रहे होते|

जाट समाज से सविनय निवेदन: जाट बिरादरी, आपके बालकों पर गोली चलवाने वालों को खून मत देना| हर जाट युवा से अपील है कि बहुत सारे खून के कैंप लगेंगे, कोई भी इनमें खून देने ना जावे| पहले गोली से मरवाये म्हारे बालक और अब इनको खून भी चाहिए हमारा| सिर्फ और सिर्फ फ़ौज और अपने घायल भाईयों के लिए ही अपना खून दान कीजिये, बाकी सबके आगे ऐसे ही दरवाजे बंद कर दीजियेगा जैसे झज्जर में ओपी धनखड़ के आगे बंद कर दिए थे|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक