Friday 12 June 2015

धर्म के नाम पर इन्वेस्ट करना है तो!


धर्म को चलाने वाला रिटर्न में रोजगार और सम्मान दोनों पाता है|

धर्म में इन्वेस्ट करने वाला व्यापारी रिटर्न में व्यापार पाता है|

परन्तु धर्म के नाम धन-दान, ताकत-बल, भावना-जज्बात तीनों को एक साथ इन्वेस्ट करने वाला रिटर्न में सिर्फ जेल, रोते-बिलखते परिवार, दंगों की भेंट चढ़े आग में जले उजाड़ घर पाता है, अलगाव और पछतावा पाता है|

वह धर्म नहीं हो सकता जो किसी के उजड़ने-बरबाद होने व् जेल जाने का सबब बने| वह कोरी राजनीति होती है सिर्फ और सिर्फ राजनीति| कोई समझे तो समझे, ना समझे तो ना समझे; माने तो माने, ना माने तो ना माने|
धर्म में हाथ डालना है तो पहले इतने प्रो-रिलिजन बनो कि या तो रिटर्न में रोजगार ही पाओ, या आय ही पाओ या सम्मान तो कम से कम जरूर पाओ| जो इस इन्वेस्टमेंट से एक भी रिटर्न नहीं निकालता वो मानव-योनि में पैदा हुआ चलता-फिरता वो जानवर है, जिसको धर्म के नाम पर पशुओं की भांति कोई भी किधर भी किसी भी दिशा में हाँक सकता है|

धर्म के नाम पर इन्वेस्ट करना है तो एक वक्त में एक ही चीज करो, या तो धन-दान इन्वेस्ट करो या ताकत-बल इन्वेस्ट करो या भावना-जज्बात इन्वेस्ट करो| तीनों एक साथ इन्वेस्ट किये तो समझ लेना खुद भी वेस्ट हो जाओगे| एक वक्त में एक चीज इन्वेस्ट करोगे तो इस बात पर बराबर नजर रहेगी कि रिटर्न क्या आएगा या आने वाला है या आया| और नहीं आया तो क्यों-क्या नहीं आया| धर्म में तीनों एक साथ डालना, समझो शरीर से पत्थर बाँध कर झील में कूद जाना|

और कोई माने या ना माने, परन्तु अगर धर्म में वित्तीय रिटर्न ना हो तो ना तो कोई धर्मालय खोल के बैठे और ना ही कोई व्यापारी इनको बनवाने हेतु इनमें इन्वेस्ट करे| तो जब यह दोनों ही वित्तीय रिटर्न को सामने रख के इन्वेस्ट करते हैं तो किसान-कमेरे-दलित भी वित्तीय रिटर्न को सामने रख के ही इनमें इन्वेस्ट करें|

अन्यथा मन की शांति और आध्यात्म की तृष्णा-तृप्ति हेतु तो अपने पारिवारिक देई-द्योते बहुत हैं| धर्म की वो शास्वत परिभाषा ही बहुत है जो कहती है कि तर्कशील बुद्धि से तार्किकता और विवेचना के आधार पर लिया गया निर्णय और मार्ग ही इंसान का धर्म है| इसलिए अगर वित्तीय रिटर्न की जगह धार्मिक रिटर्न ही चाहिए तो अपने आपको तर्कशील बनाने में इन्वेस्ट किया जाए|

जय योद्धेय! - फूल मलिक

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