Monday, 8 June 2015

मुझे हिन्दू धर्म के ज्ञाता-प्रणेता एक बात बताएं!


जब रामायण काल में एक दलित महर्षि शम्बूक की सिर्फ इस बात पे क्योंकि उन्होंने शास्त्रार्थ किया, शास्त्रों का अध्ययन और शिष्यों व् जनता में प्रवचन किया, राजा राम द्वारा उनकी हत्या करवा दी जाती है| तो ऐसे में यह कैसे सम्भव हो गया कि एक दलित बाल्मीकि इतना शास्त्रार्थ भी कर गए कि वो ना सिर्फ महर्षि बन गए वरन उनकी लिखी पूरी रामायण को भी धर्माधीसों ने मान्यता दे डाली? और इससे भी बड़ी बात उनको रामायण लिखने भी दी गई, वो भी निर्विरोध|

और जब उस काल में एक दलित का शास्त्रार्थ करना, अध्यापक बनना वर्जित था, वो भी इस हद तक वर्जित कि ऐसा दुःसाहस करने पर सीधी राजा द्वारा उनकी हत्या करवा दी जाती थी तो फिर महर्षि बाल्मीकि कौन थे, क्या वो वाकई दलित थे?

Such loop-holes make me to consider these creations as mythology i.e. the work of fiction (imagination) only. Such work is similar to America’s Disney and France’s Asterix character work. Only difference is that American and French are honest and sincere in accepting and admitting the work of imagination as imagination, history as history and then religion as religion; whereas ours, I think in front of examples like above, I don’t need to comment further.

Though curious to get my query clarified if any religious guru could make me understand on such a blunderous contradiction cited above.

Jai Yoddheya! - Phool Malik

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