Thursday 23 July 2015

हरयाणवी-पंजाबी-राजस्थानी समाज की रीढ़ की हड्डी होते हुए भी जाटों पे इतनी भीड़ क्यों पड़ी?

सुप्रीम कोर्ट में जाट आरक्षण रद्द होना, जाट व् तमाम किसान पे लैंडबिल की तलवार अभी भी लटके हुए होना, नई सरकार के आते ही फसलों के दाम धरती में मिल जाना, यूरिया के कट्टों के लिए जाट व् तमाम किसान को लाइन हाजिर करवा लेना और अब ओबीसी के कुछ नेताओं द्वारा जाट और ओबीसी में सदियों पुराने भाईचारे को तोड़ने की तलवार सत्तारूढ़ दल द्वारा लटकवा देना, आखिर क्या वजहें हैं इसकी?

1) अपनी संस्कृति-इतिहास और सभ्यता का आधुनिक तरीके से प्रचार व् प्रसार करने में रुचि ना होने की वजह से|

2) खाप जैसा विश्व का सबसे प्राचीन व् बड़ा लोकतान्त्रिक सोशल इन्जिनीरिंग सिस्टम का आधुनिकीकरण ना करने व् इनको रीस्ट्रक्चर व् रिऑर्गनाइज़ करके इनकी एसजीपीसी की भांति कोई अम्ब्रेला बॉडी ना बनाने की वजह से|

3) खुद की जाति के हितों की रक्षा, दिशा व् संवर्धन हेतु कोई बॉर्डर लाइन, लिमिट लाइन व् डिसाइडिंग लाइन ना होने की वजह से|

4) जाट सीएम रहे या पीएम, राजा रहे या महाराजा, खाप चौधरी रहे या पंचायती, जवान रहे या किसान, किसी भी तरह के फॉर्मेट में जो लोकतान्त्रिक प्रणाली के तहत सर्वसमाज को प्रतिनिधत्व के मौके दिए उनकी मार्केटिंग ना करने की वजह से|

5) औरतों के अधिकारों व् सम्मान को ले के प्रैक्टिकल में भारत की सबसे खुले विचार व् स्थान की जाति होते हुए भी उस प्रक्टिकलिटी को थ्योरी व् लिटरेचर में ढालने की ओर ध्यान ना देने की वजह से|

6) खुद के समाज में घर कर चुकी धर्म आधार, भाषा आधार, क्षेत्र आधार, स्टैण्डर्ड आधार व् राजनैतिक आधार की बांटनें वाली धारणाओं के बीच भी जाट के नाम पे एक बने रहने की प्रयोगशालाएं ना बनाने की वजह से|

7) ब्राह्मण की तरह खुद के समाज के टैलेंट को लॉन्चिंग-पैड जैसी सुविधा-सुरक्षा व् आगे बढ़ने की उनकी लॉबिंग कर भारत रत्न के सम्मान तक उठा देने की नीति-जज्बा व् विधि निर्धारित ना करने की वजह से|

8) सर्वसमाज के मुद्दे होते हुए भी उन मुद्दों को सिर्फ जाट के नाम पे थोंपनें हेतु जब मीडिया जाट के आगे माइक ले के खड़ा हुआ तो बजाय मीडिया वाले की जाति पूछ उसी मुद्दे पर उसके समाज में क्या स्थिति है रुपी प्रश्नात्मक उत्तर देने के, उसके आगे डिफेंसिव मोड में आ अपनी सफाई और एक्सप्लेनेशन में लग जाने के भोलेपन कहूँ या नादानी कहूँ या कमजोरी, जो भी थी और अभी भी है, उसकी वजह से|

9) 21 वीं सदी में अपनी कंस्यूमर पावर (उपभोक्ता शक्ति) की ताकत को ढाल बना लड़ने की बजाये, आज भी रेल-रोड जाम करने वा जेल भरने या दूध-पानी रोकने जैसे पुराने आउटडेटिड हो चुके धरना-प्रदर्शन के तरीकों की वजह से|

10) आगंतुकों-शरणार्थियों-रिफुजियों के साथ आने वाले कल्चर व् सभ्यता से जाट व् हरयाणवी सभ्यता की शुद्धता को बचाये रखने की विवेचनाएं ना होने की वजह से|

11) अपने घरों में औरतों के माध्यम से पीछे के कहो या चोर दरवाजे से माता-मसानी वालों की चौकियों-चाकियों-पाखंडियों-ढोंगियों की एंट्री को प्रश्न ना करने की वजह से|

12) आज़ादी के 68 साल हो आने पर भी अभी तक अपनी फसलों के विक्रय मूल्य निर्धारित करने के अधिकार को अपने हाथ में लेने हेतु कृषक समाज में कोई आंदोलन या विचार-विवेचना शुरू ना करवाने की वजह से|

13) ओबीसी में आरक्षण की मांग शुरू करने से पहले 'जाट ने बाँधी गाँठ, पिछड़ा मांगे सौ में साठ' जैसे नारे उठा ओबीसी को अपने विश्वास में ले के ना चलने की वजह से| ओबीसी को यह समझाने में फेल होने की वजह से कि अगर हम ओबीसी में आये तो आज के 27% से फिर 60% की लड़ाई लड़ेंगे| फिर चाहे भले 60% में भी जाति आधारित लाइन लगवा लेना|

14)  खेती-किसानी तुच्छ होती है, मुश्किल काम होता है, यह काम करने वाले का आदर-मान नहीं होता आदि-आदि जैसी मंडी-फंडी द्वारा फैलाई गई अफवाहों की काट ढूंढ के अपने कार्य के सम्मान और प्रतिष्ठा को बनाये रख उसके प्रति अपनी पीढ़ियों में आदर व् सम्मान की सोच ना बोने की वजह से। इसके ना होने की वजह से जब भी किसी किसान का बेटा पुश्तैनी कार्य छोड़ किसी दूसरे कार्य में जम जाता है तो वो विरला ही मुड़ के अपने पिछोके की सुध लेता है। जबकि इसी भावना को जिन्दा रख, जहां एक तरफ बाकी अग्रणी वर्गों में कोई किसी भी कार्यक्षेत्र में जाए परन्तु समाज और कौम के शब्द से अविरल व् अटूट जुड़ा रहता है, वहीँ जाट का शहर की तरफ मुख और स्थापन हुआ नहीं कि अधिकतर पीछे मुड़ के अपने पिछोके को देखना ही नहीं चाहता है, ऐसा हो जाता है।

मोटी-मोटी और बहुत ही गंभीर वजहें यही नजर आती हैं, हालाँकि वजहें और भी बहुत हैं परन्तु प्रथमया इन पर काम होवे तो होमवर्क पूरा होवे|

शब्दावली: हरयाणवी यानी पूर्वी हरयाणा (पश्चिमी यूपी) मध्य हरयाणा (दिल्ली) और पश्चिमी हरयाणा (वर्तमान राजनैतिक हरयाणा)!

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

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