अल्ट्रासाउंड और एक्स-रे मशीन हरयाणा में वस्तुत: कब से भ्रूण जांचने में प्रयोग होनी शुरू हुई इसकी सटीक तारीख तो शायद भगवान ही बता पाये, परन्तु मोटे-तौर पर कहूँ तो हरयाणा में 'भ्रूण-जाँच' का यह बाजार 25, हद मार के 30 साल ही पुराना है|
इस काल से पहले जन्मों की लिस्ट पे नजर डालता हूँ तो मौटे तौर पर एक चीज जरूर देखता हूँ कि मेरे पिता की पीढ़ी में खुद मेरी रिश्तेदारियों में अधिकतर ऐसे परिवार हैं जिनके यहां 2 लड़के 5 बहनें, 3 लड़के 4 बहनें, 1 लड़का 5 बहनें हैं| और नेटिव हरयाणवी नश्लों में यह कहानी सिर्फ मेरे परिवार और रिश्तेदारी ही नहीं, मेरी जाति और सम्प्रदाय ही नहीं वरन अन्य सम्प्रदायों में भी इस तरह के ही लड़का-लड़की के अनुपात रहते आये हैं| हालाँकि परिवारों में ऐसे भी अनुपात रहे हैं जहां लड़कों की संख्या लड़कियों से ज्यादा रही है|
अब कुछ रोबोटिक सोच के मननकारी अपनी सोच के अहम को ऊपर रखने हेतु, इसके पीछे लड़का पाने की चाह में लड़कियों-पे-लड़कियां पैदा करने को भी वजह बता सकते हैं| इसको तो मैं इस तर्क से भी नलिफाई कर सकता हूँ कि क्योंकि उस ज़माने में परिवार-नियोजन का कोई जरिया नहीं होता था इसलिए ज्यादा बच्चे हो जाते थे| खैर वो जो भी वजह बताएं परन्तु एक बात तो सच है कि हरयाणा में भारत के ट्रेडिशनल रियासती हल्कों की उच्च जातियों की तरह 'नवजन्मा को दूध के कड़ाहों में डुबो' के मारने की प्रथा तो नहीं ही थी| तर्क भी है कि अगर होती तो मेरे पिता की पीढ़ी में हरयाणा में इतने पर्याप्त उदाहरण नहीं मिलते जितने कि मैंने ऊपर बताये| पिता से आगे चलो तो दादा और पड़दादा की पीढ़ी में भी पिता की पीढ़ी वाली ही कहानी है|
अब का तो कारण सम्मुख है कि एक्स-रे/अल्ट्रासाउंड से 'भ्रूण-जाँच' करके उसको गर्भ में ही लुढ़का दिया जा रहा है| परन्तु उस जमाने में जब यह मशीनें नहीं थी (माफ़ करना अगर कोई ग्रन्थ-शास्त्र का ज्ञाता अपनी पंडोकलियों-पौथियों में ऐसी कोई तकनीक दबाये बैठा हो जिससे कि जांच भी होती रही हो और गर्भ गिरवा भी दिए जाते रहे हों, इससे मैं अनजान हूँ) तब गर्भ में तो कोई मार नहीं सकता था, पैदा होने के बाद हरयाणा में कोई बेटी को मारता नहीं था फिर भले ही रोबोटिक सोच वाले फिलोसोफरों के अनुसार बेटे की चाहत में बेटियों-पे-बेटियां पैदा क्यों ना करता रहा हो परन्तु कम से कम लड़की को गर्भ और पैदा होने की दोनों अवस्थाओं में मारते तो नहीं थे|
तो अब बात है इतिहास और वर्तमान दोनों के परिपेक्ष में यह पहलु समझना कि आखिर हरयाणा में क्या ऐतिहासिक और वर्तमान वजहें हैं जिनकी वजह से यहां लिंगानुपात इतना चरमराया हुआ है?
ऐतिहासिक कारणों में तो सबसे बड़ा जाँच का पहलु यही है कि प्राचीन हरयाणा की राजधानी दिल्ली हमेशा हर विदेशी आक्रांता-लुटुरे-शासक की लालसा का केंद्र रहने के साथ-साथ विस्थापितों और शरणार्थियों की शरण-स्थली भी हरयाणा ही रहा है| भारतीय इतिहास की सबसे बड़ी लड़ाइयों का मैदान यमुना नदी के दोनों तरफ बसने वाला यही वास्तविक हरयाणा रहा है| विश्व-इतिहास इस बात का साक्षी है कि जब-जब धरती पर युद्ध हुए हैं, औरतें-बच्चे भी दुश्मन के निशाने पे रहे हैं| युद्ध के बाद जिस भी पक्ष की जीत होती है वो हारे हुए पक्ष की औरतों से बच्चों तक के कत्ल करते रहे हैं| जैसा कि ऊपर कहा युद्ध के साथ आता है शरणार्थी-विस्थापित या खुद युद्ध के बाद वहीँ बस जाने वाला युद्ध सैनिक| अब आधुनिक काल में इस विस्थापन की वजहों में शुमार हो गई हैं बेहतर रोजगार की तलाश में हरयाणा चले आना|
आधुनिक काल में देखूं तो हरयाणा में ऐसे चार ऐतिहासिक विस्थापन हुए हैं| एक 1763 पानीपत की तीसरी लड़ाई के बाद मराठों का महाराष्ट्र वापिस लौटने की बजाये हरयाणा में ही बस जाना| मान्यता है कि हरयाणा की वर्तमान 'रोड' जाति यही लोग हैं| दूसरा विस्थापन होता है 1947 में पाकिस्तानी शरणार्थियों का, तीसरा विस्थापन होता है 1984-86 में पंजाब से खदेड़े गए उन पाकिस्तानी शरणार्थियों का जो कि 1947 में वहाँ आ के बसे थे, परन्तु उस वक्त के आतंकवाद के चलते उनको वहां से खदेड़ा गया और इन्होनें फिर हरयाणा और दिल्ली में ही शरण ली| और चौथा और हरयाणा के इतिहास का सबसे बड़ा शरणार्थी विस्थापन तो अब पूर्वोत्तर राज्यों से चल ही रहा है|
दिखती दिखाती बात है कि ना तो पानीपत के तीसरे युद्ध के बाद जो मराठा सैनिक हरयाणा में बसे वो अपनी औरतों के साथ थे| उनमें से जिसकी भी शादी हुई होगी जिसने भी घर बसाये होंगे हरयाणा के लोगों से ही रिश्ते बना के बसाये होंगे| हरयाणवी मराठा की मामले में एक बात सुखद है कि यह लोग हरयाणवी समाज का अभिन्न अंग बन गए हैं, इस सभ्यता में ऐसे रम गए हैं कि जाट-गुज्जर-राजपूत और रोड में कोई अंतर नहीं बता सकता| परन्तु यहां जो लिंगानुपात पे असर पड़ा उसकी कोई गणना नहीं करना चाहता| जब दूसरा विस्थापन पाकिस्तान से हुआ तो सब जानते हैं कि बहुत मार-काट हुई थी| अंदाजतन पुरुष दो तिहाई इधर आ पाये होंगे तो औरतें एक तिहाई| और इसकी झलक आज भी इनकी बस्तियों में झुण्ड-के-झुण्ड में कुंवारे लड़कों-छड़ों के रूप में ठीक वैसे ही देखी जा सकती है जैसे ग्रामीण हरयाणा में|
अब सब जानते हैं कि मजदूर-कर्मचारी कोई भी जो पूर्वोत्तर से इधर आ रहा है वो 70 फीसदी अकेला आता है यानी अपनी औरत और परिवार को साथ नहीं लाता| तो ऐसे में यह कौन गिनेगा कि इनमें से जिन्होनें हरयाणा में वोट बनवा लिया है, उनमें इनकी कितनों की औरतें या परिवार साथ में रहते हैं? और यह इस बात से समझा जा सकता है कि रिवाड़ी-गुड़गांव-झज्जर-फरीदाबाद बेल्ट में सेक्स रेश्यो की सबसे खस्ता हालत है और हरयाणा के इन्हीं इलाकों में यह लोग सबसे ज्यादा विस्थापित हुए हैं|
विस्थापन और शरणार्थी पहलु के अतिरिक्त अति-आधुनिक काल के अन्य कारणों पर नजर डालें तो वजहें कुछ इस प्रकार हो सकती हैं:
1) सबसे बड़ी तो यही कि कितने प्रतिशत लोग कन्या-भ्रूण हत्या करवा रहे हैं?
2) परिवार नियोजन के चलते, नई पीढ़ी में अगर पहला बच्चा लड़का हो जाता है तो 50 प्रतिशत से ज्यादा दूसरा बच्चा करते ही नहीं हैं| यानि वो इस योगदान को समझते ही नहीं कि तुम्हें तुम्हारे लड़के के लिए दुल्हन चाहिए तो उसके बदले एक लड़की यानी दुल्हन समाज को तुम भी पैदा करो|
3) हरयाणा का शहरी लिंगानुपात ग्रामीण से भी डांवाडोल है तो इसमें दो चीजों की जाँच होनी चाहिए| एक तो कि इसकी तमाम वजहें क्या हैं और दूसरा कि शहरी समाज का कौनसा तबका ऐसा है जो इस स्थिति को इतनी भयावह बनने में सबसे ज्यादा योगदान दे रहा है|
4) इसके बाद नंबर आता है रोबोटिक सोच के फिलोसोफरों की घिसाई-पिटाई हुई वजहें जैसे कि दहेज़-लड़की की सुरक्षा-घरो में बेटा-बेटी का भेदभाव, सिर्फ औरत को समाज की शालीनता और मर्यादा की रक्षक की जिम्मेदारी आदि-आदि|
5) यह बिंदु पढ़ा जाए कि केरल में 1000 लड़कियों पर सिर्फ 924 लड़के क्यों हैं? अब इस मामले में हरयाणा को एकमुश्त बिसराहने वाले लीचड़ों की तरह लीचड़ बनते हुए मैं यह तो नहीं कह सकता कि वहाँ लड़का-भ्रूण हत्या होती होगी या यही इसकी एकमुश्त वजह होगी| इन मामलों में कुछ योगदान प्रकृति का भी होता है| और उस प्रकृति के योगदान को आधार मान के केरल में 1000-924=76 लड़के कम होने की वजह के बराबर हरयाणा में 76 लड़कियां कम होने का एक्सक्यूज नुलीफाई (excuse nullify) कर दूँ तो मामला बचता है 924-881 (हरयाणा का लिंगानुपात)= 43| यानी प्रति 1000 लड़कों पे 43 लड़कियों का घालमेल है इस लेख में चर्चित गैर-प्राकृतिक यानी कृतिम व् मानवीय वजहों से हरयाणा में|
जय यौद्धेय! जय हरयाणा! - फूल मलिक
No comments:
Post a Comment