Wednesday 8 July 2015

दक्षिण भारतीय हिन्दू वैवाहिक परम्परा - खुलेपन की निशानी अथवा औरत की जुबान बंद करने की चालाकी?

एक लाइन में: औरत द्वारा जमीन-जायदाद में हिस्से के लिए आवाज ना उठाने का रास्ता!

इसको समझने के लिए पहले नजर डालते हुए चलते हैं कि दक्षिणी भारत में किस-किस प्रकार के नजदीकी रिश्तेदारों में विवाह हो सकते हैं!

1) मामा अपनी भानजी यानी बहन की बेटी से विवाह कर सकता है- कारण साफ़ है ताकि बहन  जमीन-जायदाद में हिस्सा ना मांगने लग जाए, इसलिए बहन की बेटी ब्याह के सब घर-की-घर में रख लो। 
2) बुआ की लड़की से शादी - कारण साफ़ है ताकि बुआ जमीन-जायदाद में हिस्सा ना मांगने लग जाए, इसलिए बुआ की बेटी ब्याह के सब घर-की-घर में रख लो।

साफ़ है कि हकीकत में दक्षिणी भारतीय हिन्दू मर्द उत्तरी भारतीय मर्द से कहीं ज्यादा प्रो-पुरुषवादी है और इतना ज्यादा पुरुषवादी कि औरतों द्वारा जमीन-जायदाद में हक की बात करने की नौबत ही नहीं आने देते।

उत्तरी भारत में भी स्वघोषित धर्मध्वजा वाहक समुदाय व् व्यापारिक समुदायों में कुछ-कुछ ऐसी ही चालाकी देखने को मिलती है, लेकिन अधिकतर लव मैरिज के मामलों में ही। जब कोई एक ही परिवार या स्वगोत में ऐसा लव मैरिज के केस का पेंच फंसता है तो यह लोग लड़की को मामा का गोत (गोत्र) दिलवा कर मामला नक्की करवा डालते हैं। लड़के का गोत नहीं बदला जाता क्योंकि

1) एक तो लड़का कुल-वंश का दीपक होता है|
2) दूसरा उसका गोत बदला तो खानदान की लाइन फिर किसी और ही गोत पे चली जाएगी। और फिर लड़के के प्रॉपर्टी राइट्स ट्रांसफर करने का लफड़ा। 
3) तीसरा लड़का फिर कहीं जो उसको अपना गोत देता है उसकी प्रॉपर्टी में हक ना क्लेम कर बैठे।

लड़की का क्या है मामा का गोत ले या बाप का, भेजना तो लड़के के साथ है, जिसमें प्रॉपर्टी देने का तो बाई-डिफ़ॉल्ट ऑप्शन ही नहीं होता। वैसे कायदे से देखो तो लड़की ने जिस भी रिश्तेदार का गोत अडॉप्ट किया, उसको अडॉप्ट करना तो तभी कहा जायेगा ना जब अडॉप्ट करने वाला परिवार लड़की को अपनी जमीन-जायदाद में भी हिस्सा देवे। ऐसा करने वाले इन डेढ़ स्यानों को यह भी नहीं इल्म रहता कि लड़की ने अगर अडॉप्ट करने वाले की प्रॉपर्टी में क्लेम कर दिया तो? खैर क्लेम तो बेचारी तब करेगी ना जब यह एडॉप्शन ऑफिसियल होता हो। कई लोग इसको लव मैरिज समस्या का आसान हल बताते हैं, परन्तु वास्तव में है यह औरत की प्रॉपर्टी को अपने कब्जे में बनाये रखने की चालाकी।

ऐसे में भारत में औरत को सबसे अधिक व् पक्षपात रहित हक देने वाली वैवाहिक प्रणाली है तो वह है जाट-कौम की। हालाँकि ऐसा नहीं है कि इसमें सुधारों की गुंजाइश नहीं| है, परन्तु इतनी नहीं जितनी कि इन औरों के यहां है। 

1) जहां इन ऊपर बताये समुदायों में माँ के गोत की कोई कद्र ही नहीं, वहीँ जाट सभ्यता कहती है कि माँ-बाप दोनों के गोत बराबरी की अहमियत से छूटेंगे।
2) जहां ऊपर बताये समुदायों की वैवाहिक प्रणाली औरत को उसकी जायदाद को बिना अवरोध के धूर्त चालाकी से अपने कब्जे में रखने की है, वहीँ जाट इसमें ज्यादा ईमानदारी बरतता है कि वो कम से कम औरत की जमीन को हथियाये रखने के लिए गोत टालने के वैज्ञानिक कारणों को ताक़ पे नहीं रखता है। उदाहरण के तौर पर पश्चिमी बंगाल की जलपाईगुड़ी इलाके की टोटो जनजाति जिनमें मामा-चाचा के बच्चों {नजदीकी खून के गोतों (गोत्रों)} की शादी की जाती है, जिसकी वजह से व् कोलकाता के नेताजी सुभाष चंद्र कैंसर रिसर्च सेंटर की शोध के अनुसार इस समुदाय में 56 फीसदी लोग थैलीसीमिया के शिकार हैं। दयानंद मेडिकल कॉलेज, लुधियाना पंजाब के प्रोफेसर सोबती के शोध के अनुसार इन्हीं वजहों के चलते पाकिस्तान पंजाब से आई नश्लों में भी 7.5% लोग थैलिसीमिया की बीमारी से ग्रस्त हैं| यहां तक कि विश्व के ईसाई समुदाय में भी नजदीकी खून व् सगोतीय विवाह वैज्ञानिक आधार पर मान्य नहीं हैं।
3) जाट समुदाय में औरत का सम्पत्ति हक विवाह से पहले पिता के यहां रहता है और विवाह पश्चात पति की सम्पत्ति में स्थानांतरित हो जाता है। जबकि इनके यहां औरत के विधवा होने पर उसको उसके पति की सम्पत्ति से बेदखल कर विधवा-आश्रमों में भेजने की परम्परा है| जो साबित करता है कि इन्होनें औरत को यह हक किसी  भी सूरत में दिए ही नहीं हैं जबकि जाटों के यहां उसके पति की विरासत तो उसकी रहती-ही-रहती है साथ-साथ उसको पुनर्विवाह की भी अनुमति रहती है। 

ऐसे ही अन्य और भी बहुत से पहलु हैं जो जाट वैवाहिक प्रणाली ने ज्यादा खूबसूरती व् निष्पक्षता से पाले हुए हैं।

आखिर 2005 में यह कानून क्यों बनवाया गया कि औरत को पैतृक सम्पत्ति में हक होना चाहिए?:  वजह साफ़ है इन समुदायों को इस कानून से कोई खतरा ही नहीं, क्योंकि भतीजी-भांजियों से ब्याह करने की परम्परा होने की वजह से इनकी स्थिति में कोई बदलाव आना नहीं। इनके यहां औरत आवाज उठाएगी भी तो सम्पत्ति स्थांतरित कहाँ होएगी …… वहीँ घर की घर में ही? तो फिर अचानक यह औरत की प्रॉपर्टी के हक बारे जुबान को इतनी चालाकी से अपने ही घर में लपेट लेने वाले इतने प्रो-औरत कैसे बन गए? कारण साफ़ है ताकि युगों-युगों से भारत की सबसे प्रो-औरत कम्युनिटी जाट (हालाँकि सुधारों की गुंजाइस इनके यहां भी है) के यहां सामाजिक व् पारवारिक ताने-बाने में उथल-पुथल मचाई जा सके। वरना यह लोग और प्रो-औरत, क्यों मजाक करते हो भाई। और ज्यादा तो छोडो इनसे सिर्फ एक इतना करवा दो कि यह अपनी विधवा औरतों को उनके पतियों की सम्पत्ति से बेदखल कर विधवा आश्रमों में भेजना बंद कर दें, फिर विचार करूँगा कि इनका यह बदला रूप वाकई में निश्छल है।

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

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