Friday, 27 November 2015

दिन-रात जाटों के खिलाफ पड़ी बीजेपी, आरएसएस और मीडिया का जाट-विरोधी तबका महर्षि दयानंद से सीख लेवे!

जाटलैंड के ब्राह्मण समाज को समझाना चाहिए इन आरएसएस, नागपुर और बाकी के क्षेत्रों से आने वाले ब्राह्मणों को कि ऐसा नहीं है कि जाट ब्राह्मण का आदर नहीं करता या उसको इज्जत नहीं देता, बशर्ते कि वो ब्राह्मण जाटों के साथ महर्षि दयानंद जैसा आचरण करता हो, महर्षि दयानंद की भांति अपनी पुस्तकों में जाटों की स्तुति करता हो, जाट के सकारात्मक पहलुओं की इस हद तक प्रशंसा करता हो कि वो जाट के अच्छेपन से आल्हादित होकर जाट को अपनी सत्यार्थ प्रकाश में "जाट जी" तक लिख डालता हो| जाटों की इन बातों को अंगीकार कर इनका समर्थन करता हो|

महर्षि दयानंद ने भले ही जाट को सिख धर्म में जाने से रोकने हेतु अपनी लेखनी में जाट का ऐसा बखान किया हो, परन्तु जाट ने उसको लौटाया सूद-समेत। आज तक पूरी जाटलैंड पे महर्षि दयानंद जितना सम्मानित दूसरा कोई और ब्राह्मण नहीं हुआ। और यह सब इसलिए हुआ क्योंकि उन्होंने जाटों को अपने व्यवहार और लेखनी दोनों में वो इज्जत बख्शी जिसके कि जाट वास्तव में अधिकारी होते आये। 

आप लोग डरें नहीं और ना ही जाटों को ऐसा समझें कि जाट वजह हो या बेवजह हो, हर वक्त उददंड ही होते हैं इसलिए इनको सिर्फ उद्दंड ही बोलते-लिखते जाओ। कभी महर्षि दयानंद जैसा जज्बा भी ठान के लिख के देखो, पूरे विश्वास से कहता हूँ जाट तुम्हें सूद समेत वापिस करेंगे, ठीक वैसे ही जैसे महर्षि दयानंद को किया है।

और नहीं तो भाई इसी परिपाटी पे चलना है तो हम फिर यही समझेंगे कि तुम्हारी निगाह हमारी सामाजिक साख गिराने, हमारा सामाजिक दायरा समेटने और हमारे और हमारे पुरखों के द्वारा हाड़तोड़ मेहनत से बनाये संसाधनों और सुविधाओं को लूटने अथवा मिटाने पर है।

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

Thursday, 26 November 2015

भाजपा और आरएसएस की कूटनीति!

जाट सावधान!

भाजपा अपने सांसद राजकुमार सैनी से जाटों को अपशब्द और अपमानजनक बयान दिलवा रही है। परन्तु जाट संयम से सब देख रहे हैं, ऐसे में आरएसएस-बीजेपी का एक भी पाशा सीधा ना पड़ता देख यह लोग कुछ ऐसा करने की चाल चलेंगे|

इसके बाद जाटो के नाम पर फर्जी प्रोफाइल और पेज बनाकर सोशल मीडिया पर सैनी को मारने काटने का आह्वान किया जायेगा। इसके बाद भाजपा स्वयं राजकुमार सैनी पर हमला करवाएगी और नाम जाटों के लगा देगी। जो जाट आमिर खान के बयान के बाद घनघोर राष्ट्रवादी बन रहे हैं उनके हलक से जुबाँ नहीं निकलती जब उनकी पार्टी का एक सांसद जाटों के खिलाफ इतना जहर उगलता फिर रहा है|

चिंता ना करो राजकुमार सैनी, तुम जाटों की हिटलिस्ट पे ना कभी थे और ना हो सकते| जाटों की हिटलिस्ट पे जो होते आये हैं वो भली भांति जानते हैं और वो यह भी जानते हैं कि वो जाटों को परेशान करके बहुत बड़ी गलती कर चुके हैं और डरे-सहमे आपके जरिये उन पर से ध्यान हटाना चाहते हैं| परन्तु हमारा ध्यान वहीँ रहेगा जहां होता आया यानी मंडी-फंडी पर| हम तुम्हारे रुकने का इंतज़ार नहीं कर रहे, हम तो मंडी-फंडी किस हद तक जाता है वो देख रहे हैं|

तुम भोंकते जाओ राजकुमार सैनी, क्योंकि तुम्हारा भोंकना और जाट का तुमको ना टोकना मंडी-फंडी की कुलमुलाहट बढ़ाएगा, बेचैनी बढ़ाएगा और इनको इनके ही जाल में फांसता हुआ भयभीत करता जायेगा| जाटों धैर्य रखना, यह परीक्षा हमारी टॉलरेंस की नहीं, इनके पेशेंस की है|

अब इनके भोंकने की गागर स्वत: ही छलकने लगी है, इसके फूटने का वक्त है, धैर्य बांधे रखना, ताकि यह इन पर ही फूटे| हम तो भोले हैं, विष पी के भी भस्मासुर और रावणों को वर दे दिया करते हैं परन्तु जब तांडव मचाएंगे तो ना यह भष्मासुर रुपी सैनी नजर आएगा और ना इसको शय देने वाले रावणबुद्धि इसके आका|

Phool Malik - JaiYoddhey‬

कब थे आप सहिष्णु?

कौनसे युग, कौनसी सदी में?
किस कालखंड में सहिष्णु थे आप?
देवासुर संग्राम के समय?
जब अमृत खुद चखा
और विष छोड़ दिया
उनके लिए,
जो ना थे तुमसे सहमत?
दैत्य, दानव, असुर, किन्नर, यक्ष, राक्षस
क्या क्या ना कहा उनको?
वध, मर्दन, संहार
क्या क्या ना किया उनका?
.......................
तब थे आप सहिष्णु?
जब मर्यादा पुरुषोत्तम ने काट लिया था
शम्बूक का सिर?
ली थी पत्नी की चरित्र परीक्षा
और फिर भी छोड़ दी गई
गर्भवती सीता
अकेली वन प्रांतर में?
.......................
या तब, जब
द्रोण ने दक्षिणा में कटवा दिया था
आदिवासी एकलव्य का अंगूठा?
जुएं में दांव पर लगा दी गयी थी
पांच पांच पतियों की पत्नी द्रोपदी
और टुकर टुकर देखते रहे पितामह?
.......................
या तब थे आप सहिष्णु?
जब ब्रह्मा ने बनाये थे वर्ण
रच डाली थी ऊँच नीच भरी सृष्टि?
या तब, जब विषमता के जनक ने
लिखी थी विषैली मनुस्मृति?
जिसने औरत को सिर्फ
भोगने की वस्तु बना दिया था
शूद्रों से छीन लिए गए थे
तमाम अधिकार
रह गए थे उनके पास
महज़ कर्तव्य
सेवा करना ही
उनका जीवनोद्देश्य
बन गया था
और अछूत
धकेल दिये गए थे
गाँव के दख्खन टोलों में
लटका दी गई थी
गले में हंडिया और पीठ पर झाड़ू
निकल सकते थे वे सिर्फ भरी दुपहरी
ताकि उनकी छाया भी ना पड़े तुम पर
इन्सान को अछूत बनाकर
उसकी छाया तक से परहेज़!
क्या यह नहीं थी असहिष्णुता?
.......................
आखिर आप कब थे सहिष्णु?
बौद्धों के कत्लेआम के वक़्त
या महाभारत युद्ध के दौरान
लंका में आग लगाते हुए
या खांडव वन जलाते हुये
कुछ याद पड़ता है
आखिरी बार कब थे आप सहिष्णु?
..............................
अछूतों के पृथक निर्वाचन का
हक छीनते हुए
मुल्क के बंटवारे के समय
दंगों के दौरान
पंजाब, गुजरात, कश्मीर, पूर्वोत्तर,
बाबरी, दादरी, कुम्हेर, जहानाबाद
डांगावास और झज्जर
कहाँ पर थे आप सहिष्णु?
सोनी सोरी के गुप्तांगों में
पत्थर ठूंसते हुए
सलवा जुडूम, ग्रीन हंट के नाम पर
आदिवासियों को मारते हुए
लोगों की नदियाँ, जंगल,
खेत, खलिहान हडपते वक़्त
आखिर कब थे आप सहिष्णु?
दाभोलकर, पानसरे, कलबुर्गी के
क़त्ल के वक़्त
प्रतिरोध के हर स्वर को
पाकिस्तान भेजते वक़्त
फेसबुक, ट्वीटर, व्हाट्सएप
किस जगह पर थे आप सहिष्णु?
.......................
प्राचीन युग में,
गुलाम भारत में,
आजाद मुल्क में,
बीते कल और आज तक भी,
कभी नहीं थे आप कतई सहिष्णु
सहिष्णु हो ही नहीं सकते है आप
क्योंकि आपकी संस्कृति, साहित्य, कला
धर्म, मंदिर, रसोई, खेत, गाँव, घर
कहीं भी नहीं दिखाई पड़ती है सहिष्णुता
सच्चाई तो यह है कि आपके
डीएनए में ही नहीं
सहिष्णुता युगों युगों से
.......................
- भंवर मेघवंशी (स्वतंत्र पत्रकार)

राजकुमार सैनी "सूअर" कहे या "शूरवीर"; ईटीवी जैसा मीडिया इसको किस जाति पे बतावे और किसपे नहीं, इससे जाटों का क्या लेना-देना?

हम सिर्फ इतना जानते हैं कि जितना समृद्ध और खुशहाल दलित-पिछड़ा हरयाणा की धरती पर कहो या पूरी जाटलैंड पर कहो, रहा है इतना पूरे भारत में कहीं नहीं| फिर भी सैनी अपने दावों में इतना दम भरते हैं कि नहीं ऐसा ही है, तो जरा पेश करें पूरे देश दलित-पिछड़े के राज्यवार आकंड़े| बैठे-बिठाए ही दूध का दूध और पानी का पानी हो जायेगा|

शायद बिहार में भी जाट ही बसते होंगे, जहां के पिछड़ों ने उनसे तंग आ के लालू को चुन लिया? क्यों सैनी महाशय सही कहा ना? या फिर जनाब ने जरूर यह बयान कहीं छत्तीसगढ़, झारखण्ड, बिहार, कर्नाटका आदि को लेकर कहा होगा, जहां के स्वर्ण दलितों को संसद तो क्या जंगलों से ही नहीं निकलने देते|

वैसे भाईयो, किसी के पास हरयाणा में जाट सीएम होते हुए कितने पिछड़े-दलित सरकार में मंत्री-एमएलए-एमपी रहे, किसी भाई के पास इसकी एनालिटिकल लिस्ट हो और फिर ऐसी ही लिस्ट नॉन-जाट सीएम रहते हुए की हो, खासकर अब वाले खट्टर रिजाइम की तो उपलब्ध करवाना भाई| ताकि जरा इन महोदय की बात का सही से अवलोकन किया जा सके| खट्टर के रिजाइम में कितने ब्राह्मण-बनिए-अरोड़ा-खत्री-दलित-ओबीसी सरकार में मंत्री हैं, इसकी भी डिटेल हों तो बहुत ही बढ़िया रहे| देखें कौन कितनी जनसंख्या का होते हुए कितने पद लिए बैठा है|

सैनी महाशय आपका धन्यवाद, जो हमें ऐसे-ऐसे जिनपे हम शायद ही कभी सोचते-विचारते, पहलुओं पर हमारा ध्यान आकर्षित कर, ज्ञानवर्धन और इंटेलिजेंस डेवेलोप करने को मोटीवेट कर रहे हो| जाट भाइयो, इस इंटेलिजेंस और इनफार्मेशन गैदरिंग पे इस वक्त अपनी ऊर्जा लगाते हैं, क्योंकि इसमें ही आधे से ज्यादा तर्क मिल जायेंगे, इन जनाब को एक जगह बैठे-बैठे ही गलत साबित करने के|

अरे भाई बीजेपी वालो, यह तुम्हारा जाटों के खिलाफ खड़ा किया वाचक, किसी और का औढ़ा ले के तुमसे मंत्रिपद मांग रहा है, दे दो भाई, ताकि हरयाणा की जान छूटे इससे| संसद में ना सही तो हरयाणा विधानसभा में दे दो, वरना आज तो बिना नाम लिए "सूअर" कहा किसी को, हो सकता है कल को तुम्हारा नाम ही रख दे, कि इन बीजेपी वालों ने रोका मुझे मंत्री बनने से| सिर्फ जाटों के खिलाफ जहर उगलवाते रहे, और अंत में दिया क्या "बाबा जी का ठुल्लु"? दे दो भाई इनको एक पद दे दो| इतनी मेहनत का बेचारे को कुछ तो सिला दो|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

Wednesday, 25 November 2015

सोचो क्या टोर रही होगी उस महामानव की!

जब मुहम्मद अली जिन्नाह और नेहरू ने गांधी के आगे तब के यूनाइटेड पंजाब के बंटवारे की बात रखी तो गांधी ने एकमुश्त जवाब दिया कि, "पंजाब को छोड़ के बाकी के भारत में जो चाहे करवा लो, पंजाब मेरे काबू से बाहर की चीज है; क्योंकि वहाँ छोटूराम की मर्जी के बिना पत्ता भी नहीं हिलता|"

जब उस महामानव छोटूराम को जिन्नाह की पंजाब को तोड़ने की मंशाओं का पता चला तो उसको पंजाब से तड़ीपार कर, बॉम्बे भिजवा दिया था| और सख्त लहजे में कह दिया था कि ख़बरदार जो मेरे पंजाब को तोड़ने की मंशा रखी तो|

जिन्नाह ने इसपे गांधी को एप्रोच किया तो गांधी ने कहा कि उसके आगे तो मैं भी लाचार हूँ, तू अभी बॉम्बे ही रह, कुछ होगा तो देखूंगा|

इस ममतामयी तरीके से बैठा था अपने पंजाब की जनता को सहेजे हुए वो महामानव, ठीक वैसे ही जैसे मुर्गी अपने अण्डों को सेते वक्त उन पर बैठती है|

काश ऊपरवाला सर चौधरी छोटूराम को 1945 में बुलाने की बजाये, ज्यादा नहीं तो बस 2-4 साल और बाद बुलाता तो, आज उत्तरी भारत का भूगोल कुछ और होता|

आज फिर एक ऐसा ही ममतामयी महामानव चाहिए हमारी धरती को|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

आमिर खान की बेगम किरण राव को जाटों से सीखना चाहिए!

मैडम असली असहिषुणता देखनी और सीखनी है तो हरयाणा में आ के देखो, जहां तुम्हें मुस्लिम-बनाम-हिन्दू में तो झाँकने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी, क्योंकि यहां हिन्दू खुद अपने में ही जाट बनाम नॉन-जाट के अखाड़े सजा के जाट जाति को निशाने पे ले के दिन-रात जाटों पर अपनी असहिषुणता दिखाते रहते हैं| परन्तु जाट हैं कि ठाठी के बन्दे कभी नहीं कहते कि असहिषुणता बढ़ रही है| ना इन कुकरमुत्तों के बनाये जाट-घृणा के माहौल से खौफ खाते| क्योंकि जाट अच्छे से जानते हैं कि "ऊँट (नॉन-जाट का माहौल बनाने वाले) तो सदा रिडान्दे ही लदे और हाथी (जाट) सदा झूमते ही चले"।

ये देखो यहां हरयाणा में यह आरएसएस और बीजेपी के मनोहरलाल खट्टर, राजकुमार सैनी और रोशनलाल जैसे चमचे जाटों के खिलाफ कितना बजते हैं पर मजाल है जो यह जाटों को थोड़ा सा भी विचलित कर पाते हों|

आप घबराओ मत किरण राव मैडम, यह इनका असहिषुणता का ड्रामा और कुछ नहीं सिवाय अपने खुद के हिन्दू धर्म के अंदर इन्हीं द्वारा फैलाई गई असहिषुणता को हिन्दू-बनाम-मुस्लिम का चोगा पहना के ढांपने के|

वैसे सुना है आप तो हिन्दू ब्राह्मण हो, फिर भी इतना डर रही हो? कोई नी फिर भी ज्यादा डर लगता हो तो खुद को जाट घोषित कर लो, सुरक्षित ना सही परन्तु निडर और निर्भीक जरूर बनी रहोगी|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

लव-जिहाद के झण्डादारी अंधभक्तो यह बाबा रामदेव ने क्या कह दिया कि किरण-आमिर की शादी सहनशीलता का प्रतीक?

क्यों क्या बाबा को मारने को नहीं दौड़ोगे? या गरीब की बहु सबकी भाभी की तरह तुमको निशाने पर सिर्फ वही लोग लेने आते हैं जो मानवीय हों परन्तु गरीब हों और ऐसी शादियों को लव-जिहाद का नाम देने की बजाय सही ठहराते हों?

क्या बाबा को सेक्युलर नहीं बोलोगे? क्या बाबा को देशद्रोही नहीं बोलोगे? क्या बाबा को हिन्दू विरोधी नहीं बोलोगे? क्या बाबा को पाकिस्तान नहीं भेजोगे?

फिर पूछते हैं कि देश की सहिषुणता में क्या गड़बड़ी है, सब ठीक तो है| हाँ भाई जिनके प्रेरणा पुरुष पल में पाला पलटने वाले हों, उनकी अपनी कटिबद्धता का क्या ठोर-ठिकाना|

आशा है कि भगतों में जो भी लॉजिकल होगा, उनको समझ आ रहा होगा कि तुमको जिन मुद्दों पे घुट्टी पिला के आतंक की मशीन में परिवर्तित जो करते हैं वो खुद अपनी विचारधारा को ले के कितने विचलित होते हैं|

वैसे क्या आमिर और किरण फाइव स्टार कपल ना हो के किसी गली-चौराहे पे तुम्हारे बीच रहने वाले आम इंसान होते तो अब तक तो तुमने अपने इन्हीं आकाओं को खुश करने के लिए उनकी बलि ना ले ली होती? तो अब किसकी लोगे, दोनों तरफ फाइव-स्टार मामला है; इस मैरिज को सहनशलीता का प्रतीक बताने वाले की या इस कपल की?

वास्तविकता तो यह है कि परम्परागत सेक्युलर और इन नए फूटे कट्टरों में फर्क सिर्फ इतना है कि परम्परागत सेक्युलर सिर्फ जुबान से ही नहीं कर्म से भी सेक्युलर हैं और यह नए-नए फूटे कट्टर सिर्फ जुबान से कटटर हैं, वरना रियल सिचुएशन फेस करने पे यह भी सेक्युलर ही हैं| और बाबा बामदेव ओह नो सॉरी रामदेव का आज का बयान इसको प्रमाणित करता है|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

और हमारे देश और धर्म की सदियों से कड़वी सच्चाई है ही यह कि!

ना हमारे धर्माधीस सहिष्णु हैं, और ना ही देश को जातिवाद के जहर के दम पे देश चलाने वाले सहिष्णु हैं| वो कैसे, उसकी एक झलक इस कड़वी सच्चाई में झांक के खुद का चेहरा आईनें में देखने की भांति स्वत: ही देख लीजिये|

दलितो के अत्याचार पर देश मे असहिष्णुता का माहौल क्यो नही बना?

वर्षो से आजादी के बाद से आज तक दलितो पर अत्याचार हो रहे है। देश का ऐसा कोई कोना नही जहाँ इन्होने अपमान ना झेला हो। इनके घर की औरतो को हवस का शिकार नही बनाया गया हो। तरह-तरह से प्रताडित किया जाता रहा है। ये समाज आज भी आजादी की लडाई लड रहा है। इतना सब होने के बाद भी भारत मे असहिष्णुता नजर नही आयी। किसी ने इस पर अवार्ड नही लौटाया। किसी ने मार्च नही निकाला। किसी बुद्विजीवी प्राणी, सेलिब्रिटी, राजनीतिक पार्टी या किसी फेसबुकिया गिरोह ने इस पर चर्चा नही की। जिन टी.वी चैनलो पर लम्बे टाईम से असहिष्णुता पर बहस जारी है उन्होने इस पर बात करना ठीक नही समझा। ये सब इसलिए है क्योकि वो दलित् है? और ये सब झेलना तो उनका अधिकार है।

आश्चर्य की बात तो ये है कि जो दलित आज की असहिष्णुता पर हल्ला मचा रहे है वो अपने समाज पर बढ रही असहिष्णुता समझ ही नही पाये है। उन्हे ऊपर के सवालो पर सोचना चाहिए। साथ मे ये भी कि आज तक कितने लोग उनके प्रति इस असहिष्णुता पर आगे आये है? उन्हे बहती गंगा मे हाथ न धोकर कुछ जरुरी तर्क भी करने चाहिए।

दलितो पर अत्याचार सबकी सरकारो मे होते है। लेकिन सफाई देने के अलावा किसी ने कुछ नही किया। ये असहिष्णुता सिर्फ एक विशेष धर्म के लिए ही क्यो? इतनी हमदर्दी दलितो के लिए क्यो नही? क्या दलितो को कोई अपना नही समझता?

Phool Malik

Tuesday, 24 November 2015

यह है असली असहिषुणता, अगर किसी नेता-अभिनेता-लेखक से इसपे आवाज उठाई जाती हो तो उठा लो!

असहिषुणता का असली मुद्दा अगर किसी को उठाना है तो वो मरते किसान की, आत्महत्या करते किसान की आवाज के साथ उठाओ, मैं गारंटी देता हूँ या तो कोई तुम्हारा विरोध नहीं करेगा अन्यथा वास्तव में असहिष्णु लोगों के चेहरे सामने आ जायेंगे|

लो मैं कहता हूँ देश का किसान मर रहा है, कहीं आत्महत्या करके तो कहीं भूख से तो कहीं कर्जे से तो कहीं सूखे और अकाल से तो कहीं उसकी मेहनत पर मची लूट से|

क्या किसी को चुपचाप मरते देखना असहिषुणता नहीं होती? किसी के दर्द को और बढ़ाना, उसको जानबूझकर फसलों के दाम ना देना और फसल का सीजन जाते ही फसलों के दोगुने दाम कर लेना, क्या यह असहिषुणता नहीं इस बात की कि किसान की जेब में उसकी मेहनत के बराबर तक का भी पैसा मत जाने दो, पंरतु अपनी जेबें भर लो?

ताजा उदाहरण चाहिए किसी को तो हरयाणा में आ के देख लो, महीना भर पहले जिस धान (चावल) की फसल को सरकार और व्यापारी 1200 रूपये में भी नहीं खरीद रहे थे, आज उसी धान का भाव वापिस 3000 रूपये चल रहा है| अगला सीजन आएगा तो इसको फिर से यह बीजेपी और आरएसएस वाले 1200 करवा देंगे और सीजन निकलते ही वापिस 3000|

लगता है असहिषुणता शब्द को भुनाने वालों ने जानबूझकर इसकी दिशा बदली हुई है और ऐसे लोगों के बयानों पे इस शब्द को टिका रहे हैं, जिनके बोलने से आमजन को कुछ फर्क नहीं पड़ना| शायद यह जानते हैं कि ऐसे शब्दों को उधर नहीं मोड़ा गया तो कहीं किसान-कमेरे-दलित की आवाज ना फूट पड़े और इनके कान बहरे हो जाएँ| इन फाइव-स्टार लोगों की असहिषुणता सुनने और उसको भुनाने से किसी को फुर्सत मिल जाए तो यह मेरे वाली उठाई असहिषुणता की तरफ भी ध्यान घुमा लेना|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

Monday, 23 November 2015

किसानों के भगवान एक बार फिर हो आणा हो!

किसानों के भगवान एक बार फिर हो आणा हो,
खा गए मंडी-फंडी तेरे अन्नदाता का दाणा हो|

अनपढ़ जाट पढ़े जैसा, पढ़ा जाट खुदा जैसा,
वो खुदाई दुनिया ने दादा, आपमें पाई थी|
पढ़ा ब्रामण समाज तोड़े, पढ़ा जाट समाज जोड़े,
किसान-दलित की ऐसी जोट तूने बनाई थी||
आ फिर से समाज जोड़ना, ना तो हो जा धिंगताणा हो|
खा गए मंडी-फंडी तेरे अन्नदाता का दाणा हो|

दमनचक्र काले अंग्रेजों का,
गौरों की लय पे चढ़ आया है|
मंडी के हितैषी गांधी-लाजपत खड़े,
इनके आगे अड़ने का बुलावा आया है||
आजा सपूत साँपले के, घना अँधेरा छाँट जा हो|
खा गए मंडी-फंडी तेरे अन्नदाता का दाणा हो|

किसानों के भाव देते ना,
किसानों को भाव देते ना!
अंग्रेजों से अड़ के जिद्द पे जैसे,
किवंटल पे 6 के 11 दिलवाए थे|
ऐसे ही आज, इन काले अंग्रेजों से दिलवाना हो|
खा गए मंडी-फंडी तेरे अन्नदाता का दाणा हो|

हिन्दू बाँट दिया, मुसलमान बाँट दिया,
मंडी ने बाँट दिया, फंडी ने बाँट दिया|
कहीं आपसी नादानी ने, जहर जख्म का टांट दिया,
जिन्ना-नेहरुओं ने मिलके, बाग़ तेरा उजाट किया||
हरयाणा-पंजाब एक रखने को, जिन्नाओं को बॉम्बे भगाना हो,
खा गए मंडी-फंडी तेरे अन्नदाता का दाणा हो|

अजगर-ब्राह्मण-सैनी-खाती-छिम्बी सबकी,
पक्की किसानी-मल्कियत करवाई थी|
बंधुवा और बालमजदूरी के संग,
साहूकारी-कर्जदारी की जड़ उखड़वाई थी|
सबसे पहले लाहौर सचिवालय में,
दलित-पिछड़ों की आरक्षण पे नौकरी लगाई थी|
उसी आरक्षण को अब, जनसंख्या अनुपात में करवाना हो,
खा गए मंडी-फंडी तेरे अन्नदाता का दाणा हो|

जज्बे की बात कर ज्या,
दादा हो जज्बात भर ज्या|
खाली तेरा डेरा हो रह्या,
किसानां का भाग सो रहया||
तेरे भोलों के हक पे बैठा, यह काग उड़ाणा हो,
खा गए मंडी-फंडी तेरे अन्नदाता का दाणा हो|

तेवर वही चाहियें फिर से,
जिनसे गांधीं थर-थर ठिठकें,
'फुल्ले-भगत' के जज्बात छलकें,
मंडी-फंडी को कैसे लूँ डट के,
इनको होश में लाऊँ कैसे, इसका राहगोर बनाणा हो,
खा गए मंडी-फंडी तेरे अन्नदाता का दाणा हो|

किसानों के भगवान एक बार फिर हो आणा हो,
खा गए मंडी-फंडी तेरे अन्नदाता का दाणा हो|

जय योद्धेय! - फूल मलिक

Special tribute to Sir Chhoturam on thou birth anniversary (24th Nov, 1881)!

जरूर दूसरा पक्ष नॉन-जाट रहा होगा, इसलिए जाति नहीं बताई!

वर्ना मोटे-मोटे अक्षरों में कुछ इस तरह का लिखा आता कि, "दबंग जाटों ने दलित को खिलाया गोबर!"

दलित खुद फैसला कर लें और समझें अब इस वाले राज को| जाट सीएम होता था तो भी अगर जाट से झगड़ा हुआ तो जाट के नाम के साथ उसकी जाति जरूर आती थी| और अब देख लो अब तो आप लोगों को यह भी पता नहीं लगने दिया जाता कि कौनसी जाति वाले ने दलित उत्पीड़न किया|

तो क्या था यह मीडिया और दलित हमदर्दी का खेल? सिर्फ और सिर्फ जाटों को आपका नंबर वन दुश्मन दिखाकर, जाट-दलित के वोट तोड़कर, दलित का वोट लेकर सत्ता हासिल करना और फिर ऐसे उत्पीड़न हों दलितों पर तो उत्पीड़न करने वाले की जाति का नाम तक अखबारों में ना आने देना|

मानता हूँ जाटों-दलितों में मनमुटाव होते आये हैं, परन्तु क्या इनसे भी बुरे तरीके से कि आज तो दलित उत्पीड़न करने वाले की जाति अगर जाट ना हो तो सबको सिर्फ "दबंग बनाम दलित" से ढांप दे रहे हैं|


फूल मलिक

 

Sunday, 22 November 2015

सर छोटूराम को अंग्रजों का पिट्ठू कहने वाले अपने कानों के पट खोल के सुनें!

यह जो नीचे सर छोटूराम द्वारा पास करवाये जिन कानूनों की फेहरिश्त रख रहा हूँ, यह ना ही तो किसानों के लिए किसी गांधी ने पास करवाये, ना ही किसी नेहरू ने, ना ही किसी शंकराचार्य-महंत आदि ने, ना ही किसी आर.एस.एस. वाले ने, ना ही किसी जिन्नाह ने; अंग्रेजों को लट्ठ दे के यह पास करवाये तो सिर्फ और सिर्फ सर छोटूराम ने| और उनके इस गट के आगे "सर' तो उनके लिए बहुत छोटी उपाधि है, उनको "किसानों का भगवान" भी कहूँ तो अतिश्योक्ति नहीं|

डालें नजर जरा इन पर राजकुमार सैनी और रोशनलाल आर्य जैसे मंडी-फंडी के इशारों पर बरगलाते फिर रहे लोग| आप लोग अपनी सरकार-सत्ता और ताकत होते हुए इन जैसा एक भी कानून अगर किसान बिरादरी के लिए पास करवा दो, तो ताउम्र आपकी वंदना करूँ| जब गांधी-जिन्नाह-लाला लाजपत राय जैसे लोग मंडी-व्यापारियों के हितों हेतु कभी असहयोग आंदोलन तो कभी साइमन कमीशन का विरोध कर रहे थे, जब बालगंगाधर तिलक और गांधी वर्ण व् जातीय व्यवस्था को ज्यों-का-त्यों कायम रख पाखंडियों के हितों हेतु "पूना पैक्ट" कर रहे थे, जब आर.एस.एस. वाले अपने बिलों में घुसे बैठे रहा करते थे, तब इस शेर जाटनी के जाए ने, अंग्रेजों के हलक से निकाल यह कानून दिलवाए थे किसान-कमेरे को, पढ़ो इनको और सोधी में आओ कुछ:

साहूकार पंजीकरण एक्ट - 1938 - यह कानून 2 सितंबर 1938 को प्रभावी हुआ था । इसके अनुसार कोई भी साहूकार बिना पंजीकरण के किसी को कर्ज़ नहीं दे पाएगा और न ही किसानों पर अदालत में मुकदमा कर पायेगा। इस अधिनियम के कारण साहूकारों की एक फौज पर अंकुश लग गया।

गिरवी जमीनों की मुफ्त वापसी एक्ट - 1938 - यह कानून 9 सितंबर 1938 को प्रभावी हुआ । इस अधिनियम के जरिए जो जमीनें 8 जून 1901 के बाद कुर्की से बेची हुई थी तथा 37 सालों से गिरवी चली आ रही थीं, वो सारी जमीनें किसानों को वापिस दिलवाई गईं। इस कानून के तहत केवल एक सादे कागज पर जिलाधीश को प्रार्थना-पत्र देना होता था। इस कानून में अगर मूलराशि का दोगुणा धन साहूकार प्राप्‍त कर चुका है तो किसान को जमीन का पूर्ण स्वामित्व दिये जाने का प्रावधान किया गया।

कृषि उत्पाद मंडी अधिनियम - 1938 - यह अधिनियम 5 मई, 1939 से प्रभावी माना गया। इसके तहत नोटिफाइड एरिया में मार्किट कमेटियों का गठन किया गया। एक कमीशन की रिपोर्ट के अनुसार किसानों को अपनी फसल का मूल्य एक रुपये में से 60 पैसे ही मिल पाता था। अनेक कटौतियों का सामना किसानों को करना पड़ता था। आढ़त, तुलाई, रोलाई, मुनीमी, पल्लेदारी और कितनी ही कटौतियां होती थीं। इस अधिनियम के तहत किसानों को उसकी फसल का उचित मूल्य दिलवाने का नियम बना। आढ़तियों के शोषण से किसानों को निजात इसी अधिनियम ने दिलवाई।

व्यवसाय श्रमिक अधिनियम - 1940 - यह अधिनियम 11 जून 1940 को लागू हुआ। बंधुआ मजदूरी पर रोक लगाए जाने वाले इस कानून ने मजदूरों को शोषण से निजात दिलाई। सप्‍ताह में 61 घंटे, एक दिन में 11 घंटे से ज्यादा काम नहीं लिया जा सकेगा। वर्ष भर में 14 छुट्टियां दी जाएंगी। 14 साल से कम उम्र के बच्चों से मजदूरी नहीं कराई जाएगी। दुकान व व्यवसायिक संस्थान रविवार को बंद रहेंगे। छोटी-छोटी गलतियों पर वेतन नहीं काटा जाएगा। जुर्माने की राशि श्रमिक कल्याण के लिए ही प्रयोग हो पाएगी। इन सबकी जांच एक श्रम निरीक्षक द्वारा समय-समय पर की जाया करेगी।

कर्जा माफी अधिनियम - 1934 - यह क्रान्तिकारी ऐतिहासिक अधिनियम दीनबंधु चौधरी छोटूराम ने 8 अप्रैल 1935 में किसान व मजदूर को सूदखोरों के चंगुल से मुक्त कराने के लिए बनवाया। इस कानून के तहत अगर कर्जे का दुगुना पैसा दिया जा चुका है तो ऋणी ऋण-मुक्त समझा जाएगा। इस अधिनियम के तहत कर्जा माफी (रीकैन्सिलेशन) बोर्ड बनाए गए जिसमें एक चेयरमैन और दो सदस्य होते थे। दाम दुप्पटा का नियम लागू किया गया। इसके अनुसार दुधारू पशु, बछड़ा, ऊंट, रेहड़ा, घेर, गितवाड़ आदि आजीविका के साधनों की नीलामी नहीं की जाएगी।

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

मंडी-फंडी पर किसानी एकता का चाबुक रहना बहुत जरूरी है!

वर्ना यह बेलगाम बेदिशा बेदर्दी से लूटते हैं। किसानों को राजकुमार सैनी और रोशनलाल आर्य जैसे कठपुतली नेताओं को यह बात समझानी होगी, वरना ऐसे नेता जाट को कोसने के नाम पर किसान बिरादरी की इतनी अपूर्णीय क्षति कर देंगे कि सर छोटूराम - चौधरी चरण सिंह - ताऊ देवीलाल और बाबा महेंद्र सिंह टिकैत एक साथ पैदा हों तब ही जा के पूरी हो पाये।

अब क्योंकि चारों किसान नेता जाट जाति से हैं तो इसमें भी जातिवाद के कीड़े के काटे हुए लोग जाति मत देखने लग जाना, क्योंकि हकीकत यही है कि किसान और कमेरी जातियों के लिए जो-जो लड़ाईयां यह लोग लड़ गए और जो-जो कानून यह लोग बना गए, आज तक कोई और किसान नेता नहीं बनवा पाया, फिर चाहे वो किसी जाति से क्यों ना आता हो। और अगर उत्तर भारत में इनसे बड़ा कोई किसान मसीहा हुआ हो तो मैं जरूर उसका नाम जानना चाहूंगा।

लेख के शीर्षक पर आगे बढ़ते हुए कहना चाहूंगा कि जब गुलामी के दौर में मंडी-फंडी पर अंग्रेजों का चाबुक रहता था तो यह कंट्रोल में रहते थे। बेशक हम उनके गुलाम थे परन्तु किसान के दर्द और दुःख से वो कभी भी इस तरह विमुख हो कर या तो खुद ही नहीं बैठते थे और अगर यदि बैठते थे तो सर छोटूराम जैसे मसीहा उनको विवश कर देते थे किसानों की सुनने के लिए।

अंग्रेजों के जाने के बाद, मंडी-फंडी के खुल्ले बारणे हुए और 1300 साल की घोर गुलामी से कुछ भी प्रेरणा ना लेते हुए मंडी-फंडी लग गया किसानी एकता को तोड़ने पर। और इसमें भी तल्लीन तरीके से किसानी एकता की धुर्री जाट जाति को इससे अलग करने पर। इनको पहली बड़ी कामयाबी तब मिली थी जब 1990 में इन्होनें वीपी सिंह (एक राजपूत) और ताऊ देवीलाल (एक जाट) की जोड़ी को तोड़ा था। उसके बाद से ही यह लग गए किसान जातियों में से जाट का प्रभाव खत्म करने पर। हालाँकि बाबा टिकैत ने फिर भी किसानों को एक पिरोये रखा, पंरतु बाबा के जाने के बाद और उनके जैसे जज्बे का कोई उत्तराधिकारी अभी तक किसानों को नहीं मिलने की वजह से आज किसान बिलकुल अनाथ सा भटक रहा है।

राजकुमार सैनी और रोशनलाल आर्य जैसों के माध्यम से तो अब मंडी-फंडी किसान के बिल्कुल वही हालात लाने की ओर अग्रसर है जब ना किसानों में एकता रहे और ना ही किसान हकों की कोई बात भी उठाने वाला रहे। सिर्फ इतना ही नहीं इनकी मंजिल जाती है किसानों में इतनी हीन-भवन भरने तक कि कोई किसान नेता किसानों की बात करने तक से घबराये। अभी जो सैनी और आर्य जैसे कठपुतली नेताओं के जरिये से चल रहा है यह मंडी-फंडी का यही मिशन चल रहा है कि किसानों में तुम्हारे नाम का इतना भय बैठा दिया जाए कि किसान सिर्फ तुम्हारा बंधुआ मजदूर बनके रहे जाए। और अगर ऐसा हुआ तो सैनी और आर्य जैसे लोग इसके जिम्मेदार होंगे।

जरूर सैनी और आर्य जैसे लोगों में किसान-कमेरे का नेता बनने की ललक होगी, परन्तु इन्होनें जो रास्ता अख्तियार कर रखा है वो एक दम गलत है। इनको अगर वाकई में किसान का मसीहा बनना है तो इन ऊपर चर्चित किसान मसीहाओं की जीवनी इन्हें पढ़नी चाहिए। वर्ना तो जाट को कोसने के रस्ते चलके यह खुद को कितने ओबीसी के शुभचिंतक साबित कर पाएंगे यह तो ओबीसी ही जाने, परन्तु किसान की किस्मत में अँधेरे-ही-अँधेरे भर देंगे यह जरूर सुनिश्चित है।

हालाँकि ताऊ देवीलाल के सानिध्य में राजनीति के गुर सीखे हुए लालू यादव, शरद यादव और नितीश कुमार से बिहार चुनाव के बाद से कुछ आस जगी है, परन्तु यह कितना इन किसान मसीहाओं जैसा साबित कर पाएंगे, यह भी देखने वाली बात रहेगी| सच कहूँ तो आज के दिन एक ऐसे वक्त में जब बाकी के किसान नेता सत्ता में नहीं हैं तो इन लोगों के पास मौका है उत्तर भारत में किसानों के अगला मसीहा बनने का और किसानी एकता को मजबूत कर मंडी-फंडी पर इस एकता का चाबुक चलाने का|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक