Sunday, 29 November 2015

खाली, ठाल्ली, निखट्टू, निठ्ठले मोडे/बाबाओं/पुजारियों आदि को और काम ही क्या है?

सबसे पहले तो बता दूँ कि आपको जानकार आश्चर्य होगा कि यह लाइन "नफरत की सोशल थ्योरी ऑफ़ प्रतिकर्षण" के तहत खुद मोडे/बाबाओं/पुजारियों ने ही समाज में फैलवा रखी है| ताकि लोग बाहर से खाली, ठाल्ली बैठे दिखने वाले इन लोगों को खाली, ठाल्ली की गाली देने में ही अपनी ऊर्जा गंवाते रहें और उस रहस्य रुपी अध्यात्म और ध्यान को ना जान पाएं, जो यह इस खाली/ठाल्ली की मुद्रा में बैठ के करते हैं| और एक जगह बैठे-बैठे और खाली/ठाल्ली से घूमते दिखने से ही सारे समाज के चप्पे-चप्पे का ज्ञान अर्जित कर जाते हैं|

मोडे/बाबाओं/पुजारियों को इस खाली/ठाल्ली से इतना तक प्यार है कि जब बुद्धकाल में जाट और दलित बौद्ध भिक्षु बन हर गाँव-गली चौराहे पर ध्यानमग्न नजर आने लगे थे तो इनमें कोहराम मच गया| यह लोग अंदर से अशांत हो गए और चिंता में पड़ गए कि जिस "खाली ठाल्ली" के टैटू के पीछे छुप के हम इतना गहन कार्य किया करते थे अब अगर यह लोग भी इसको करने लगे तो हमारी तो सत्ता ही खत्म| बहुत ध्यान भटकाने की कोशिशें करी, बुद्ध की बेइज्जती तक करवाई, उनकी जितनी हो सके उतनी आलोचना करवाई, परन्तु फिर भी लोग नहीं माने, तो अपनी इस विधा की रक्षा हेतु इन्होनें ब्राह्मण राजा पुष्यमित्र सुंग, राजा शशांक, राजा चच और उसके बेटे राजा दाहिर के हाथों बुद्ध भिक्षु बने जाटों और दलितों के कत्ले-आम करवाये| बौद्ध मठ तक तोड़े गए| इतना क्रूर तांडव मचवाया कि कहावतें चल पड़ी, "ले भाई मार दिया मठ", "हो गया मठ" आदि-आदि|

क्योंकि बुद्ध धर्म सम्पूर्णत: शांति का संदेश देता है, तो जाट तपस्या में लीन रहते हुए भी कटते गए, परन्तु कुछ ना बोले| अब तक यह एक ऐसा मैदान लड़ रहे थे, जिसमें दूसरा पक्ष तो अभी तक हथियार उठाया ही नहीं था| तब जब लगा कि कहीं अस्तित्व ही खत्म ना हो जावे, तब जा कर जाटों ने अपनी भृकुटि यानी तीसरी आँख खोली और भारतीय स्पार्टन यानी खापों ने एक हो इनको जवाब देने की ठानी| मशहूर इतिहासकार श्री के. सी. यादव कहते हैं कि पांचवीं सदी में एक ऐसी विध्वंशकारी लड़ाई हुई जिसमें एक तरफ इनकी एक लाख सेना और दूसरी तरफ जाटों की मात्र नौ हजार सेना थी| युद्ध बहुत ही विघटनकारी हुआ परन्तु जाटों ने जब तांडव मचाया तो मात्र पंद्रह सौ जाट खोते हुए अत्याचारियों की पूरी की पूरी सेना को धूल चटा दी| तब जाकर यह लोग रुके थे बुद्धों पर अत्याचार करने से|

और यह सब था किसलिए, सिर्फ इस लेख के शीर्षक में कही बात की रक्षा के लिए| इसके बाद यह ऊपर से तो शांत बैठ गए, परन्तु जिस मुद्रा को हम अक्सर निठ्ठला और खाली बैठना कह देते हैं, उसमें बैठे-बैठे लगातार षड्यंत्र करते रहे| वक्त गुजरा और सिख धर्म की स्थापना हुई| अधिकतर जाट सिख धर्म में पलायन करने लगा| परन्तु इतिहास से सीख लेते हुए इन्होनें अबकी बार मारकाट के रास्ते की बजाये, पूना में ब्राह्मण सभा कर, महर्षि दयानंद के जरिये आर्य समाज का फुलप्रूफ पैकेज उतारा और आर्य समाज की पुस्तक "सत्यार्थ प्रकाश" में "जाट जी" जैसे शब्दों के साथ जाट की स्तुति करवाई गई| मान-सम्मान को सुरक्षित समझ जाट सिख धर्म में पूर्णत: पलायन करने से रुक गया|

जाट की स्वछँदता का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि आर्य समाज में रहते हुए जाट ने शादी-बयाह में फेरे करने, शांत-शीतल जगहों पर बैठ के चिंतन-मनन-ध्यान लगाने जारी रखे| और हमारे समाज में सब कुछ ठीक रहा|

लेकिन मोडे/बाबाओं/पुजारियों लोग चिंतन-मनन-ध्यान को ठाल्ली-निट्ठलों का काम है, ऐसी लाइन हमारे समाज के बच्चों-बुड्ढों की जुबान पर फिर से लाने में कामयाब रहे| और आज हालत यह है कि दस में से शायद ही दो जाट चिंतन-मनन-ध्यान में बैठते हों| और जब से यह विधि-पद्धति हमारे समाज से लुप्तप्राय होने को आई है, तब से जाट समाज का ह्रास ही होता चला जा रहा है|

अत: आज के सिर्फ जाट ही नहीं अपितु तमाम किसान और दलित युवा/युवती से विनती है कि इस पद्धति को पकड़े रखो, इसको छोडो मत| और नहीं तो यह कह के कि चिंतन-मनन-ध्यान किया करो कि "या तो बुद्ध को हिन्दू धर्म का नौवां अवतार कहना बंद करो, पीएम से विदेशों में भारत को ब्रह्मा-विष्णु-महेश आदि की बजाय बुद्ध का देश कहलवाना बंद करवाओ अन्यथा मुझे बुद्ध की शरण में जाने दो|"

और सच कहूँ तो "बुद्धम शरणम गच्छामि" मतलब भी यही होता है कि आपको खुद की बुद्धि की शरण में जा के चिंतन करना है। किसी इंसानी सेल्फ-स्ट्य्लेड गुरु/गॉडमैन के आगे नतमस्तक हो के चमचागिरी वाली भगति नहीं करनी|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

जाट से चिड़ के कारण ही सही, परन्तु बीजेपी-आरएसएस को सैनी को बढ़ावा देना, अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारने वाला साबित हो सकता है!

दिल्ली में राजकुमार सैनी की कल की रैली में मुझे जो अचम्भित करने वाली बात लगी वो थी कि उस रैली पर ना ही तो बीजेपी-आरएसएस का कोई झंडा दिखा और ना ही राजकुमार सैनी को छोड़ के कोई बड़ा नुमाईन्दा दिखा|

महात्मा ज्योतिबा फुले की जयंती पर उनको श्रद्धांजलि और श्रद्धासुमन अप्रित करने लोग पहुंचे| और क्योंकि बीजेपी और आरएसएस का कोई स्लोगन/झंडा प्रयोग नहीं किया गया तो गैर बीजेपी पार्टियों का पिछड़ा भी समारोह में जरूर पहुंचा होगा| परन्तु अब इससे बीजेपी-आरएसएस के जो मंसूबे कभी पूरे नहीं होंगे वो कुछ इस प्रकार होंगे:

1) आरएसएस/बीजेपी की अंदरखाते मन में दबी आरक्षण को खत्म करवाने की मंशा अब कभी पूरी नहीं होगी| हालाँकि लालू यादव जैसा पहाड़ पहले से ही उनकी राह में था परन्तु अब सैनी को और खड़ा करके आरएसएस/बीजेपी ने अपनी ही राह में कांटे बोये हैं| क्योंकि अब जहां एक तरफ इनको रह-रह के आरक्षण खत्म करने का इनका इरादा भीतर से परेशान करके रखेगा, वहीँ दूसरी तरफ जाट के प्रति नफरत फैलाने के चक्कर में पिछड़े को आरक्षण की आवश्यकता पर खुद ही और ज्यादा जागरूक कर दिया है। शायद इसी को कहते हैं कि बोये पेड़ बबूल के तो आम कहाँ से होए| भाई नफरत बोवोगे तो बदले में या तो नफरत मिलेगी या कुंठा| अब आरएसएस/बीजेपी इस कुंठा में जियेगी कि तुम्हारे आरक्षण को खत्म करने के मिशन का क्या होगा|

2) और इधर जिस आरक्षण को ज्यादा बढ़ाने (27 to 54 or 60%) की आस सैनी ने पिछड़ों में जगा दी है उसको बीजेपी/आरएसएस कभी पूरा नहीं करेगी| तो ऐसे में पिछड़े का बीजेपी और यहां तक राजकुमार सैनी भी से जल्द ही मोह भंग हो जाये, इसके पूरे आसार रहेंगे| हरयाणा में साल-छ महीने में इलेक्शन होने होते तो शायद इस बिंदु को भुना के फिर से बीजेपी को वोट मिल जाता| परन्तु 2019 तक भी यही स्थिति रहेगी, इसका मुझे संदेह है|

3) यह आस पूरी नहीं हुई तो पिछड़ा वर्ग आरएसएस से उल्टा हट सकता है या ऊब सकता है| और ऐसे में जब जाट को यह पहले से ही ताक पे रख के चल रहे हैं तो पिछड़ा भी इनसे उल्टा हटा तो फिर यह वापिस सिमित समूह बनने तक सिकुड़ जाएगी|

अब देखने वाली बात यह होगी कि खाली जाटों से नफरत के षड्यंत्र पर, सैनी कब तक पिछड़े को आरएसएस/बीजेपी से बांधे रख पाएंगे? क्योंकि आज का पिछड़ा इतना तो जागरूक हो ही रखा है कि उसको खाली किसी के खिलाफ उसकी भावनाओं का दोहन करके लम्बे समय तक बांधें नहीं रखा जा सकता| बीजेपी/आरएसएस ने जाट के प्रति नफरत सुलगाने के चक्कर में सैनी के जरिये उनमें जो अप्रत्याशित सी आस जगा दी है वो पूरी नहीं हुई तो या तो राजकुमार सैनी खुद ही पिछड़े को ले के अलग पार्टी बना लेंगे या फिर किसी अन्य दल में शामिल होने की जुगत ढूंढेंगे अन्यथा बिना यह जगी हुए आसें पूरी करवाये भी यहीं के यही रहे तो पिछड़ा इनको छोड़ दे, ऐसा भी होने का भय रहेगा| 

इन सबके बीच जो अच्छी बात हुई वह यह कि कल की सभा में यह फैलसा लिया गया कि अगले वर्ष भी महात्मा ज्योतिबा फुले की जयंती ऐसे ही बड़ी सभा करके मनाई जाएगी|

मैं तो चाहता हूँ कि जाट भी अब अपनी राजनैतिक व् राजशाही हस्तियों के अलावा सामाजिक, और खाप हिस्ट्री में हुए हुतात्माओं की भी जयंती पर एक विशाल सामूहिक "सर्वजाट खाप" के स्तर का कोई वार्षिक उत्सव मनाना शुरू कर देवें| जिसमें "दादा बाला जी महाराज (जिनके ऊपर हनुमान का किरदार ढांप दिया गया है)", "दादा रामलाल खोखर जी", "दादा जाटवान जी गठवाला महाराज", "दादा हरवीर सिंह गुलिया जी", "दादिरानी भागीरथी देवी जी", "दादिरानी समाकौर गठवाला जी", "गॉड गोकुला जी", "बाबा शाहमल तोमर जी" आदि-आदि बहुत से और भी खाप इतिहास से और "भगत धन्ना जाट जी", "गरीबदास" जी जैसे भक्ति आंदोलन के जाट हुतात्माओं पर कम से कम एक हफ्ते भर लम्बा उत्सव जरूर मनाना शुरू कर देना चाहिए|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

कर्नाटक में देवदासी प्रथा रोकने बारे जवाब न देने पर केंद्र पर 25 हजार का जुर्माना!

न्यायालाय ने NGO एसएल फाउंडेशन की जनहित याचिका पर पिछले साल केंद्र सरकार से जवाब-तलब किया था। इस याचिका में केंद्र और कर्नाटक सरकार को राज्य के देवनगर जिले के उत्तांगी माला दुर्गा मंदिर में 13 फरवरी, 2014 की आधी रात को देवदासी समर्पण को रोकने के लिये तत्काल कदम उठाने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया था। न्यायालय को सूचित किया गया था कि यह गतिविधि कर्नाटक देवदासी समर्पण निषेध कानून, 1982 के खिलाफ है और इससे किशोर के अधिकारों का हनन होता है।

उस समय न्यायालय ने कर्नाटक के मुख्य सचिव को 14 फरवरी, 2014 के भोर पहर में होने वाले इस कार्यक्रम में, जहां दलित किशोरियों को देवदासी के रूप में समर्पित किया जाना था, के संबंध में सभी एहतियाती उपाय करने का निर्देश दिया था। पीठ ने इस जनहित याचिका पर कर्नाटक सरकार से भी जवाब मांगा था। इस याचिका में देवदासी प्रथा रोकने के लिये दिशानिर्देश बनाने का अनुरोध करते हुए कहा गया था कि यह राष्ट्रीय शर्म की बात है। NGO ने आरोप लगाया था कि देवदासी प्रथा के खिलाफ कानून होने के बावजूद देश के विभिन्न हिस्सों में यह कुप्रथा जारी है। इस संगठन ने न्यायालय से इसमें हस्तक्षेप करने का अनुरोध किया था।

आपको बता दें कि देवदासी "धार्मिक वेश्या" को कहते हैं, जिसके तहत पुजारी-महंत लोग दलितों की सुन्दर बेटियों को उनकी व् उनके विशिष्ट लोगों की वासना पूर्ती हेतु मंदिर में रखते हैं| सुदूर दक्षिण भारत से ले महाराष्ट्र-एमपी और पूर्व में बंगाल तक के विभिन्न मंदिरों में यह व्यवस्था आज भी चल रही है|

थैंक्स टू जाट्स एंड खापस्, जिन्होनें इस कुक्तृत्य को कभी उत्तरी भारत में पैर नहीं पसारने दिए| अब प्लीज कोई इस थैंक्स गिविंग में भी जातिपाती मत ढूंढने लग जाना| मैं किसी दूसरी जाति में भी पैदा हुआ होता तो इस मामले में यह थैंक्स इनको फिर भी बोलता|

भगतो जरा बताना यह कौनसे वाली सहिषुणता की श्रेणी में आता है आपके लिए कि इसके पक्का सबूत होते हुए भी आप लोगों का खून उबाल नहीं मारता?

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

Saturday, 28 November 2015

और जो समझदार पिछड़ा होगा वो यह बात बड़े अच्छे से जानता होगा!

राजकुमार सैनी साहब, यह पिछड़े और दलित पर जाति और वर्ण-व्यवस्था के नाम पर उत्पीड़न का पिटारा जाट पर ना फोड़िए, उन पर फोड़िए जो इसके जनक हैं|

आपका स्तर सिर्फ इतना है कि जिसकी आप पीपनी बनके बज रहे हैं जाटों को वो "जाट जी" लिखते आये हैं| ऐसा अपने से ऊपर का सम्मान उन्होंने राजपूतों तक को नहीं दिया, जो जाटों को "जाट जी" कह के दिया|

भले ही जाट को सिख धर्म में जाने से रोकने के चक्कर में दिया, परन्तु सिख तो अन्य हिन्दू भी बहुत बने, तो फिर इनको जाटों को "जाट जी" कह के क्यों रोके रखना पड़ा? घुन्ने हैं पर फिर भी सच्चाई जानते हैं, हिन्दू धर्म में जाट नहीं तो कुछ नहीं| आपको क्या लगता है जैसे आप जाटों को आँखें दिखाने का डर बना के डराने का बहम पाले बोलते चले जा रहे हैं, यह खुद नहीं कर सकते थे ऐसा? नहीं, यह जानते थे, जाट को इतिहास में आँख दिखा के कोई नहीं दबा सका, सिर्फ सद्व्यवहार और सत्कार से ही जाट रोका जा सकता है|

सबूत के तौर पर मूल शंकर तिवारी उर्फ़ महर्षि दयानंद का "सत्यार्थ प्रकाश" पढ़ लीजियेगा|

और आपके जरिये जो इनको हासिल करना है वो है दलित-पिछड़ा और जाट की एकता में फूट| कल को आपको इसके ऐवज में भले ही "कुत्ते को हड्डी" फेंकने के स्टाइल में मंत्रिपद भी मिल जाए, परन्तु जब-जब दलित-पिछड़ा उन्हीं हकों के लिए जिनके लिए आप थोथी आवाज बने फिर रहे हैं, इनकी सही में बात उठा के लड़ाई लगी, तब-तब पिछड़े-दलित को जाट की जरूरत होगी और जब वो देखेंगे कि राजकुमार सैनी ने तो इतने बड़े गड्डे खोद दिए जाट-पिछड़े की बीच की अब जाट को अपने से मिलाएं कैसे तो आपको कोसेंगे और गालियां दिया करेंगे|

जिस दिन इन उत्पीड़नों पर इनके जनकों से सीधी आँख में आँख डाल के बातें करना सीख जाओ, उस दिन मान लेना कि जाट के बराबर पहुँच गए हो| वरना इस कुम्हार की कुम्हारी पे तो पार बसावे ना, जा के गधे के कान खींचे, की परिपाटी पर चल के तो बन लिए आप पिछड़ों के मसीहा; क्योंकि अंत में आज जिन अधिकारों की बातें उठाते फिर रहे हो, वो आपको जाटों से लड़ के नहीं, इन्हीं से लड़ के मिलेंगे यानी मंडी-फंडी से| और जो समझदार पिछड़ा होगा वो यह बात बड़े अच्छे से जानता होगा|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

"बीटिंग अराउंड दी बुश" छोड़िये राजकुमार सैनी!

1) पिछड़ों का नौकरियों में जो बैकलॉग होता है उस पर सबसे ज्यादा डाका डालता है मंडी-फंडी, निशाना फिर भी राजकुमार सैनी का जाट समाज पर|
2) पिछड़ों की जनसख्या अनुपात के आंकड़े सार्वजनिक जो नहीं कर रहा वो है मंडी-फंडी, निशाना फिर भी राजकुमार सैनी का जाट समाज पर|
3) पिछड़ों को जनसंख्या के अनुपात में 27 से 54 प्रतिशत आरक्षण जो नहीं लेने दे रहा वो है मंडी-फंडी, निशाना फिर भी राजकुमार सैनी का जाट समाज पर|
4) आरक्षण की पुनर्विवेचना करने की बात जो कर रहा है वो है मोहन भागवत, निशाना फिर भी राजकुमार सैनी का जाट समाज पर|
5) संसद में सविंधान के प्रीएमबल को बदल उसमें मूलभूत बदलाव हेतु बहस करवाना चाहती है खुद राजकुमार की पार्टी बीजेपी, निशाना फिर भी राजकुमार सैनी का जाट समाज पर|
6) पिछड़े समाज के किसानों की धान 1200 के भाव से खरीदते ही 3000 से ऊपर के भाव कर 2015 का धान खरीद घोटाला करती है बीजेपी, निशाना फिर भी राजकुमार सैनी का जाट समाज पर|
7) बीजेपी ने आते ही किसानों के खिलाफ घातक लैंड आर्डिनेंस निकाला, निशाना फिर भी राजकुमार सैनी का जाट समाज पर|
8) पिछड़ों को वर्ण व जाति व्यवस्था में कहीं शूद्र तो कहीं चांडाल ना ही तो जाट ने लिखा और ना ही कहा| जिन्होनें कहा उन पर निशाना ना होने की बजाय, निशाना फिर भी राजकुमार सैनी का जाट समाज पर|
9) जिन मंडी-फंडी की स्तुति राजकुमार सैनी कर रहे हैं, उन्होंने कभी भी अंग्रेजों से सैनी समाज को जमीन की मल्कियत दिलवाने हेतु लड़ाई नहीं लड़ी| यह लड़ाई लड़ी और यह हक दिलवाया तो एक जाट सर छोटूराम ने और निशाना फिर भी राजकुमार सैनी का जाट समाज पर|
10) पिछड़ों-दलितों को हक देने वाली साईमन कमीशन का लाला लाजपत राय की अगुवाई में विरोध करने वाले थे मंडी-फंडी| सर छोटूराम ने साईमन कमीशन का स्वागत किया, निशाना फिर भी राजकुमार सैनी का जाट समाज पर|
11) आज़ादी के बाद मंडी-फंडी से लड़ के पिछड़ों-किसानों के लिए सबसे ज्यादा कानून बनवाए चौधरी चरण सिंह और ताऊ देवीलाल ने, निशाना फिर भी राजकुमार सैनी का जाट समाज पर|
12) भारतीय किसान यूनियन बना के किसान-पिछड़े के हकों के लिए मंडी-फंडी से लड़े बाबा महेंद्र सिंह टिकैत, निशाना फिर भी राजकुमार सैनी का जाट समाज पर|

क्या सैनी साहब आज के दिन किसानों की सभी समस्याएं हल हो गई या कोई समस्या है ही नहीं किसान को, यहां तक कि और नहीं तो आपके खुद के समाज के किसान को भी नहीं?

आखिर क्यों इन सब मुद्दों से "बिल्ली को देख कबूतर की भांति आँखें मूंदे" राजकुमार सैनी ऐसे सभाएं करते फिर रहे हैं जैसे कल ही इलेक्शन होने वाले हों? क्या यह मौका सभाएं करते फिरने का है या फिर इन मुद्दों पर संसद में बहस से ले, अपनी खुद की पार्टी की केंद्र और राज्य सरकारों से इन पर काम करवाने का?

इनमें से एक भी मुद्दा ऐसा नहीं है जो जाट को आरक्षण ना मिलने से हल हो जायेगा| या फिर पिछड़ा समाज सिर्फ जाट से नफरत निभा के पेट पाल लेगा? क्या पिछड़ों में कोई भी राजकुमार सैनी को समझाने वाला बुद्धिजीवी नहीं कि जाट समाज से नफरत करोगे तो कृषि और कृषक दोनों का भविष्य अंधकारमय बना दोगे?
क्योंकि मंडी-फंडी यह बात अच्छे से जानता है कि अगर पिछड़े और कृषक समाज पर उनको राज करना है तो पिछड़े समाज को जाट समाज से तोड़ के रखना होगा|

शरद यादव जैसे पिछड़े समाज के नेता का मानना है कि अगर पिछड़ों को जनसँख्या के अनुपात में आरक्षण चाहिए तो मंडी-फंडी से लड़ने हेतु जाट को साथ लेना होगा| और राजकुमार सैनी हैं कि बिलकुल उनके विचार के उल्ट चल रहे हैं| वो पिछड़ों को यह समझने ही नहीं दे रहे हैं कि एक बार जाट को ओबीसी में आ लेने दो फिर नारा देंगे कि "किसान-कमेरों ने बाँधी गाँठ, अब चाहिए सौ में साठ|"

ऊपर गिनाये 12 बिन्दुओं में से अगर एक पर भी सैनी साहब आवाज उठा रहे हों तो मुझ तसल्ली हो कि जनाब वाकई में पिछड़े के लिए कुछ कर रहे हैं| और राजकुमार सैनी ऐसा नहीं करके सिर्फ खुद को मंडी-फंडी का प्यादा साबित करने से ज्यादा कुछ करते नजर नहीं आते|

तो क्या ऐसे में पिछड़ा वाकई इस सोच का है कि वो राजकुमार सैनी को सिर्फ जाटों से नफरत करने के नाम पर ही अपना नेता मान लेगा? अगर ऐसा होता है तो फिर तो यही कहा जायेगा कि भारत पूरी दुनिया में एक ऐसा अनूठा देश है, जहां नेता बनने का यह भी एक पैमाना है कि आप किसी दूसरे समाज से कितनी नफरत करते हो| परन्तु क्या इससे कृषि और कृषक के मुद्दे भी हल हो जायेंगे?

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

Friday, 27 November 2015

जाट की साइंस 16x2=8 का अर्थ!

पहले बताता चलूँ कि जैसे सिखों के ऊपर "12 बज गए" वाला जुमला (इसके वास्तविक महत्व को न्यून करने हेतु घड़ा गया) उनका मजाक उड़ाने हेतु बनाया गया, ऐसे ही एंटी-जाट विचारधारा की पनप है, "जाट यानी 16x2=8"। जाट की साइंस जिनको पल्ले नहीं पड़ती वो फिर ऐसा ही बोलते हैं।

चलिए अब आपको जाट की साइंस में इस 16x2=8 का मतलब समझाते हैं।

आप किसी भी ट्राली बनाने वाली वर्कशॉप में जाएँ, वहाँ आपको ट्राली का फर्श बनाने वाली लोहे की 16 फुट लम्बी चददरें मिलेंगी, उनको देखना। जब इन चददरों से ट्राली का फर्श बनता है तो उसको डबल फोल्ड किया जाता है, जिससे 16 फुट लम्बी चद्दर दो टाइम फोल्ड हो के 8 फुट की रह जाती है यानी 16x2=8 आउटपुट आता है।

अब क्योंकि उत्तरी भारत में खेती में जाट सबसे बड़ा और माना हुआ समाज है तो इसकी अधिकतर कहावतें जाट से ही जुड़ी हुई मिलती हैं। और ऐसे में एंटी-जाट विचारधारा को कुछ ना कुछ चाहिए ही तो उठा के घड़ दिया "जाट यानी 16x2=8|

अब यह भी तो सोचने की बात है ना कि यह 16x2=8 ही क्यों कहा गया; 14x2=7 या 18x2=9 आदि-आदि क्यों नहीं कहा गया? कारण ऊपर बता दिया है।

हालाँकि की यह साइंस तो कृषि की है परन्तु जोड़ी जाट से जाती है तो पोस्ट के टाइटल में इसको जाट की साइंस लिख के कहा। वरना ऐसा भी नहीं कि अन्य जातियों के किसान किसी और तरीके या फार्मूला से ट्राली बनवाते हैं, इसी तरीके से बनवाते हैं, परन्तु उत्तरी भारत में जहां कृषि की सकारात्मक कहावतें भी जाट पे बनती हैं तो साथ ही कुछ ऐसी नकारात्मक मजाक उड़ाने वाली भी एंटी-जाट विचारधारा द्वारा किसान या कृषि से ना जोड़ के जाट से ही जोड़ दी जाती हैं|

As per Manbir Redhu Ji: चदर की मोटाई मापने का एक स्पेशल पैमाना होता है ।उसे कहते है गेज ।एक इंच की मोटाई में जितनी चदर आसके वो संख्या उस चदर का गेज होगी। यानि 16 चदरों की मोटाई एक इंच है तो वो चदर 16 गेज की है ।और यदि उस चदर से दोगुनी मोटी चदर लेंगे तो वो एक इंच में 8 ही आएंगी यानि 8 गेज, इस तरह से होता है 16×2 =8

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

दिन-रात जाटों के खिलाफ पड़ी बीजेपी, आरएसएस और मीडिया का जाट-विरोधी तबका महर्षि दयानंद से सीख लेवे!

जाटलैंड के ब्राह्मण समाज को समझाना चाहिए इन आरएसएस, नागपुर और बाकी के क्षेत्रों से आने वाले ब्राह्मणों को कि ऐसा नहीं है कि जाट ब्राह्मण का आदर नहीं करता या उसको इज्जत नहीं देता, बशर्ते कि वो ब्राह्मण जाटों के साथ महर्षि दयानंद जैसा आचरण करता हो, महर्षि दयानंद की भांति अपनी पुस्तकों में जाटों की स्तुति करता हो, जाट के सकारात्मक पहलुओं की इस हद तक प्रशंसा करता हो कि वो जाट के अच्छेपन से आल्हादित होकर जाट को अपनी सत्यार्थ प्रकाश में "जाट जी" तक लिख डालता हो| जाटों की इन बातों को अंगीकार कर इनका समर्थन करता हो|

महर्षि दयानंद ने भले ही जाट को सिख धर्म में जाने से रोकने हेतु अपनी लेखनी में जाट का ऐसा बखान किया हो, परन्तु जाट ने उसको लौटाया सूद-समेत। आज तक पूरी जाटलैंड पे महर्षि दयानंद जितना सम्मानित दूसरा कोई और ब्राह्मण नहीं हुआ। और यह सब इसलिए हुआ क्योंकि उन्होंने जाटों को अपने व्यवहार और लेखनी दोनों में वो इज्जत बख्शी जिसके कि जाट वास्तव में अधिकारी होते आये। 

आप लोग डरें नहीं और ना ही जाटों को ऐसा समझें कि जाट वजह हो या बेवजह हो, हर वक्त उददंड ही होते हैं इसलिए इनको सिर्फ उद्दंड ही बोलते-लिखते जाओ। कभी महर्षि दयानंद जैसा जज्बा भी ठान के लिख के देखो, पूरे विश्वास से कहता हूँ जाट तुम्हें सूद समेत वापिस करेंगे, ठीक वैसे ही जैसे महर्षि दयानंद को किया है।

और नहीं तो भाई इसी परिपाटी पे चलना है तो हम फिर यही समझेंगे कि तुम्हारी निगाह हमारी सामाजिक साख गिराने, हमारा सामाजिक दायरा समेटने और हमारे और हमारे पुरखों के द्वारा हाड़तोड़ मेहनत से बनाये संसाधनों और सुविधाओं को लूटने अथवा मिटाने पर है।

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

Thursday, 26 November 2015

भाजपा और आरएसएस की कूटनीति!

जाट सावधान!

भाजपा अपने सांसद राजकुमार सैनी से जाटों को अपशब्द और अपमानजनक बयान दिलवा रही है। परन्तु जाट संयम से सब देख रहे हैं, ऐसे में आरएसएस-बीजेपी का एक भी पाशा सीधा ना पड़ता देख यह लोग कुछ ऐसा करने की चाल चलेंगे|

इसके बाद जाटो के नाम पर फर्जी प्रोफाइल और पेज बनाकर सोशल मीडिया पर सैनी को मारने काटने का आह्वान किया जायेगा। इसके बाद भाजपा स्वयं राजकुमार सैनी पर हमला करवाएगी और नाम जाटों के लगा देगी। जो जाट आमिर खान के बयान के बाद घनघोर राष्ट्रवादी बन रहे हैं उनके हलक से जुबाँ नहीं निकलती जब उनकी पार्टी का एक सांसद जाटों के खिलाफ इतना जहर उगलता फिर रहा है|

चिंता ना करो राजकुमार सैनी, तुम जाटों की हिटलिस्ट पे ना कभी थे और ना हो सकते| जाटों की हिटलिस्ट पे जो होते आये हैं वो भली भांति जानते हैं और वो यह भी जानते हैं कि वो जाटों को परेशान करके बहुत बड़ी गलती कर चुके हैं और डरे-सहमे आपके जरिये उन पर से ध्यान हटाना चाहते हैं| परन्तु हमारा ध्यान वहीँ रहेगा जहां होता आया यानी मंडी-फंडी पर| हम तुम्हारे रुकने का इंतज़ार नहीं कर रहे, हम तो मंडी-फंडी किस हद तक जाता है वो देख रहे हैं|

तुम भोंकते जाओ राजकुमार सैनी, क्योंकि तुम्हारा भोंकना और जाट का तुमको ना टोकना मंडी-फंडी की कुलमुलाहट बढ़ाएगा, बेचैनी बढ़ाएगा और इनको इनके ही जाल में फांसता हुआ भयभीत करता जायेगा| जाटों धैर्य रखना, यह परीक्षा हमारी टॉलरेंस की नहीं, इनके पेशेंस की है|

अब इनके भोंकने की गागर स्वत: ही छलकने लगी है, इसके फूटने का वक्त है, धैर्य बांधे रखना, ताकि यह इन पर ही फूटे| हम तो भोले हैं, विष पी के भी भस्मासुर और रावणों को वर दे दिया करते हैं परन्तु जब तांडव मचाएंगे तो ना यह भष्मासुर रुपी सैनी नजर आएगा और ना इसको शय देने वाले रावणबुद्धि इसके आका|

Phool Malik - JaiYoddhey‬

कब थे आप सहिष्णु?

कौनसे युग, कौनसी सदी में?
किस कालखंड में सहिष्णु थे आप?
देवासुर संग्राम के समय?
जब अमृत खुद चखा
और विष छोड़ दिया
उनके लिए,
जो ना थे तुमसे सहमत?
दैत्य, दानव, असुर, किन्नर, यक्ष, राक्षस
क्या क्या ना कहा उनको?
वध, मर्दन, संहार
क्या क्या ना किया उनका?
.......................
तब थे आप सहिष्णु?
जब मर्यादा पुरुषोत्तम ने काट लिया था
शम्बूक का सिर?
ली थी पत्नी की चरित्र परीक्षा
और फिर भी छोड़ दी गई
गर्भवती सीता
अकेली वन प्रांतर में?
.......................
या तब, जब
द्रोण ने दक्षिणा में कटवा दिया था
आदिवासी एकलव्य का अंगूठा?
जुएं में दांव पर लगा दी गयी थी
पांच पांच पतियों की पत्नी द्रोपदी
और टुकर टुकर देखते रहे पितामह?
.......................
या तब थे आप सहिष्णु?
जब ब्रह्मा ने बनाये थे वर्ण
रच डाली थी ऊँच नीच भरी सृष्टि?
या तब, जब विषमता के जनक ने
लिखी थी विषैली मनुस्मृति?
जिसने औरत को सिर्फ
भोगने की वस्तु बना दिया था
शूद्रों से छीन लिए गए थे
तमाम अधिकार
रह गए थे उनके पास
महज़ कर्तव्य
सेवा करना ही
उनका जीवनोद्देश्य
बन गया था
और अछूत
धकेल दिये गए थे
गाँव के दख्खन टोलों में
लटका दी गई थी
गले में हंडिया और पीठ पर झाड़ू
निकल सकते थे वे सिर्फ भरी दुपहरी
ताकि उनकी छाया भी ना पड़े तुम पर
इन्सान को अछूत बनाकर
उसकी छाया तक से परहेज़!
क्या यह नहीं थी असहिष्णुता?
.......................
आखिर आप कब थे सहिष्णु?
बौद्धों के कत्लेआम के वक़्त
या महाभारत युद्ध के दौरान
लंका में आग लगाते हुए
या खांडव वन जलाते हुये
कुछ याद पड़ता है
आखिरी बार कब थे आप सहिष्णु?
..............................
अछूतों के पृथक निर्वाचन का
हक छीनते हुए
मुल्क के बंटवारे के समय
दंगों के दौरान
पंजाब, गुजरात, कश्मीर, पूर्वोत्तर,
बाबरी, दादरी, कुम्हेर, जहानाबाद
डांगावास और झज्जर
कहाँ पर थे आप सहिष्णु?
सोनी सोरी के गुप्तांगों में
पत्थर ठूंसते हुए
सलवा जुडूम, ग्रीन हंट के नाम पर
आदिवासियों को मारते हुए
लोगों की नदियाँ, जंगल,
खेत, खलिहान हडपते वक़्त
आखिर कब थे आप सहिष्णु?
दाभोलकर, पानसरे, कलबुर्गी के
क़त्ल के वक़्त
प्रतिरोध के हर स्वर को
पाकिस्तान भेजते वक़्त
फेसबुक, ट्वीटर, व्हाट्सएप
किस जगह पर थे आप सहिष्णु?
.......................
प्राचीन युग में,
गुलाम भारत में,
आजाद मुल्क में,
बीते कल और आज तक भी,
कभी नहीं थे आप कतई सहिष्णु
सहिष्णु हो ही नहीं सकते है आप
क्योंकि आपकी संस्कृति, साहित्य, कला
धर्म, मंदिर, रसोई, खेत, गाँव, घर
कहीं भी नहीं दिखाई पड़ती है सहिष्णुता
सच्चाई तो यह है कि आपके
डीएनए में ही नहीं
सहिष्णुता युगों युगों से
.......................
- भंवर मेघवंशी (स्वतंत्र पत्रकार)

राजकुमार सैनी "सूअर" कहे या "शूरवीर"; ईटीवी जैसा मीडिया इसको किस जाति पे बतावे और किसपे नहीं, इससे जाटों का क्या लेना-देना?

हम सिर्फ इतना जानते हैं कि जितना समृद्ध और खुशहाल दलित-पिछड़ा हरयाणा की धरती पर कहो या पूरी जाटलैंड पर कहो, रहा है इतना पूरे भारत में कहीं नहीं| फिर भी सैनी अपने दावों में इतना दम भरते हैं कि नहीं ऐसा ही है, तो जरा पेश करें पूरे देश दलित-पिछड़े के राज्यवार आकंड़े| बैठे-बिठाए ही दूध का दूध और पानी का पानी हो जायेगा|

शायद बिहार में भी जाट ही बसते होंगे, जहां के पिछड़ों ने उनसे तंग आ के लालू को चुन लिया? क्यों सैनी महाशय सही कहा ना? या फिर जनाब ने जरूर यह बयान कहीं छत्तीसगढ़, झारखण्ड, बिहार, कर्नाटका आदि को लेकर कहा होगा, जहां के स्वर्ण दलितों को संसद तो क्या जंगलों से ही नहीं निकलने देते|

वैसे भाईयो, किसी के पास हरयाणा में जाट सीएम होते हुए कितने पिछड़े-दलित सरकार में मंत्री-एमएलए-एमपी रहे, किसी भाई के पास इसकी एनालिटिकल लिस्ट हो और फिर ऐसी ही लिस्ट नॉन-जाट सीएम रहते हुए की हो, खासकर अब वाले खट्टर रिजाइम की तो उपलब्ध करवाना भाई| ताकि जरा इन महोदय की बात का सही से अवलोकन किया जा सके| खट्टर के रिजाइम में कितने ब्राह्मण-बनिए-अरोड़ा-खत्री-दलित-ओबीसी सरकार में मंत्री हैं, इसकी भी डिटेल हों तो बहुत ही बढ़िया रहे| देखें कौन कितनी जनसंख्या का होते हुए कितने पद लिए बैठा है|

सैनी महाशय आपका धन्यवाद, जो हमें ऐसे-ऐसे जिनपे हम शायद ही कभी सोचते-विचारते, पहलुओं पर हमारा ध्यान आकर्षित कर, ज्ञानवर्धन और इंटेलिजेंस डेवेलोप करने को मोटीवेट कर रहे हो| जाट भाइयो, इस इंटेलिजेंस और इनफार्मेशन गैदरिंग पे इस वक्त अपनी ऊर्जा लगाते हैं, क्योंकि इसमें ही आधे से ज्यादा तर्क मिल जायेंगे, इन जनाब को एक जगह बैठे-बैठे ही गलत साबित करने के|

अरे भाई बीजेपी वालो, यह तुम्हारा जाटों के खिलाफ खड़ा किया वाचक, किसी और का औढ़ा ले के तुमसे मंत्रिपद मांग रहा है, दे दो भाई, ताकि हरयाणा की जान छूटे इससे| संसद में ना सही तो हरयाणा विधानसभा में दे दो, वरना आज तो बिना नाम लिए "सूअर" कहा किसी को, हो सकता है कल को तुम्हारा नाम ही रख दे, कि इन बीजेपी वालों ने रोका मुझे मंत्री बनने से| सिर्फ जाटों के खिलाफ जहर उगलवाते रहे, और अंत में दिया क्या "बाबा जी का ठुल्लु"? दे दो भाई इनको एक पद दे दो| इतनी मेहनत का बेचारे को कुछ तो सिला दो|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

Wednesday, 25 November 2015

सोचो क्या टोर रही होगी उस महामानव की!

जब मुहम्मद अली जिन्नाह और नेहरू ने गांधी के आगे तब के यूनाइटेड पंजाब के बंटवारे की बात रखी तो गांधी ने एकमुश्त जवाब दिया कि, "पंजाब को छोड़ के बाकी के भारत में जो चाहे करवा लो, पंजाब मेरे काबू से बाहर की चीज है; क्योंकि वहाँ छोटूराम की मर्जी के बिना पत्ता भी नहीं हिलता|"

जब उस महामानव छोटूराम को जिन्नाह की पंजाब को तोड़ने की मंशाओं का पता चला तो उसको पंजाब से तड़ीपार कर, बॉम्बे भिजवा दिया था| और सख्त लहजे में कह दिया था कि ख़बरदार जो मेरे पंजाब को तोड़ने की मंशा रखी तो|

जिन्नाह ने इसपे गांधी को एप्रोच किया तो गांधी ने कहा कि उसके आगे तो मैं भी लाचार हूँ, तू अभी बॉम्बे ही रह, कुछ होगा तो देखूंगा|

इस ममतामयी तरीके से बैठा था अपने पंजाब की जनता को सहेजे हुए वो महामानव, ठीक वैसे ही जैसे मुर्गी अपने अण्डों को सेते वक्त उन पर बैठती है|

काश ऊपरवाला सर चौधरी छोटूराम को 1945 में बुलाने की बजाये, ज्यादा नहीं तो बस 2-4 साल और बाद बुलाता तो, आज उत्तरी भारत का भूगोल कुछ और होता|

आज फिर एक ऐसा ही ममतामयी महामानव चाहिए हमारी धरती को|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

आमिर खान की बेगम किरण राव को जाटों से सीखना चाहिए!

मैडम असली असहिषुणता देखनी और सीखनी है तो हरयाणा में आ के देखो, जहां तुम्हें मुस्लिम-बनाम-हिन्दू में तो झाँकने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी, क्योंकि यहां हिन्दू खुद अपने में ही जाट बनाम नॉन-जाट के अखाड़े सजा के जाट जाति को निशाने पे ले के दिन-रात जाटों पर अपनी असहिषुणता दिखाते रहते हैं| परन्तु जाट हैं कि ठाठी के बन्दे कभी नहीं कहते कि असहिषुणता बढ़ रही है| ना इन कुकरमुत्तों के बनाये जाट-घृणा के माहौल से खौफ खाते| क्योंकि जाट अच्छे से जानते हैं कि "ऊँट (नॉन-जाट का माहौल बनाने वाले) तो सदा रिडान्दे ही लदे और हाथी (जाट) सदा झूमते ही चले"।

ये देखो यहां हरयाणा में यह आरएसएस और बीजेपी के मनोहरलाल खट्टर, राजकुमार सैनी और रोशनलाल जैसे चमचे जाटों के खिलाफ कितना बजते हैं पर मजाल है जो यह जाटों को थोड़ा सा भी विचलित कर पाते हों|

आप घबराओ मत किरण राव मैडम, यह इनका असहिषुणता का ड्रामा और कुछ नहीं सिवाय अपने खुद के हिन्दू धर्म के अंदर इन्हीं द्वारा फैलाई गई असहिषुणता को हिन्दू-बनाम-मुस्लिम का चोगा पहना के ढांपने के|

वैसे सुना है आप तो हिन्दू ब्राह्मण हो, फिर भी इतना डर रही हो? कोई नी फिर भी ज्यादा डर लगता हो तो खुद को जाट घोषित कर लो, सुरक्षित ना सही परन्तु निडर और निर्भीक जरूर बनी रहोगी|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

लव-जिहाद के झण्डादारी अंधभक्तो यह बाबा रामदेव ने क्या कह दिया कि किरण-आमिर की शादी सहनशीलता का प्रतीक?

क्यों क्या बाबा को मारने को नहीं दौड़ोगे? या गरीब की बहु सबकी भाभी की तरह तुमको निशाने पर सिर्फ वही लोग लेने आते हैं जो मानवीय हों परन्तु गरीब हों और ऐसी शादियों को लव-जिहाद का नाम देने की बजाय सही ठहराते हों?

क्या बाबा को सेक्युलर नहीं बोलोगे? क्या बाबा को देशद्रोही नहीं बोलोगे? क्या बाबा को हिन्दू विरोधी नहीं बोलोगे? क्या बाबा को पाकिस्तान नहीं भेजोगे?

फिर पूछते हैं कि देश की सहिषुणता में क्या गड़बड़ी है, सब ठीक तो है| हाँ भाई जिनके प्रेरणा पुरुष पल में पाला पलटने वाले हों, उनकी अपनी कटिबद्धता का क्या ठोर-ठिकाना|

आशा है कि भगतों में जो भी लॉजिकल होगा, उनको समझ आ रहा होगा कि तुमको जिन मुद्दों पे घुट्टी पिला के आतंक की मशीन में परिवर्तित जो करते हैं वो खुद अपनी विचारधारा को ले के कितने विचलित होते हैं|

वैसे क्या आमिर और किरण फाइव स्टार कपल ना हो के किसी गली-चौराहे पे तुम्हारे बीच रहने वाले आम इंसान होते तो अब तक तो तुमने अपने इन्हीं आकाओं को खुश करने के लिए उनकी बलि ना ले ली होती? तो अब किसकी लोगे, दोनों तरफ फाइव-स्टार मामला है; इस मैरिज को सहनशलीता का प्रतीक बताने वाले की या इस कपल की?

वास्तविकता तो यह है कि परम्परागत सेक्युलर और इन नए फूटे कट्टरों में फर्क सिर्फ इतना है कि परम्परागत सेक्युलर सिर्फ जुबान से ही नहीं कर्म से भी सेक्युलर हैं और यह नए-नए फूटे कट्टर सिर्फ जुबान से कटटर हैं, वरना रियल सिचुएशन फेस करने पे यह भी सेक्युलर ही हैं| और बाबा बामदेव ओह नो सॉरी रामदेव का आज का बयान इसको प्रमाणित करता है|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक