Friday, 4 December 2015

और इसलिए मुझे मेरी जन्मस्थली निडाना नगरी पर गर्व है!

अभी विगत 1 दिसंबर से 3 दिसंबर 2015 तक मेरे गाँव निडाना नगरी, जिला जींद, हरयाणा में विशाल कबड्डी दंगल सजा| दंगल ऑर्गनाइज करने का खर्च आया करीब 4 लाख रूपये और गाँव में खेल-हाल बनाने हेतु चंदा आया 15 लाख रूपये|

इस चंदे से मेरे गाँव के लोगों ने फैसला लिया कि गाँव-गुहांड के बच्चों को उच्च स्तर का खिलाडी बनाया जा सके इसके हेतु कुश्ती, कबड्डी व् अन्य खेल सुविधाओं से सुसज्जित खेल-हाल बनाया जाएगा|

यानि मेरी नगरी ने अपने पुरखों की स्थापित परम्परा को आगे जारी रखते हुए, फिर से एक ऐसी सार्वजनिक सुविधा बनाने का फैसला लिया है जो कि वाकई में गाँव-गुहांड के सैंकड़ों खिलाडियों का उद्दार करेगी|

हालाँकि किसने कितना चंदा दिया, उसकी सूची मुझे मिल चुकी है परन्तु उसको यहां लिखना व्यक्ति-विशेषों का महिमामंडन हो जायेगा| इसलिए मैं उस पर ना जाते हुए, सीधा यही कहूँगा कि इससे पहले भी मेरे गाँव में ऐसे बड़े स्तर पर चंदा जुटाया जाता रहा है|

ज्यादा पुरानी तो याद नहीं परन्तु पिछले करीब 100 सालों में, नगरी और समाज के लोगों के सहयोग से बनी ऐसी सार्वजनिक सुविधाएँ मुझे याद हैं|

1) जैसे 1936 में दादा चौधरी जागर जी की दान की जमीन और बाकी चंदे से उस जमीन पर बना इलाके का सबसे प्राचीन स्कूल, जिसकी वजह से आसपास के गुहांडों में आज निडाना में सबसे ज्यादा ग्रेडुएट्स हैं| खानपुर महिला विश्वविधालय, गोहाना को इसके संस्थापक भगत फूल सिंह के जमाने से जाने वाला चंदा व् जमीन, विभिन्न गुरुकुलों और गौशालाओं में अविरल जाता रहने वाला अन्न-धन|
2) 1990 में स्वामी रत्नदेव के सानिध्य में बनी 34 कमरों की कन्या कॉलेज की ईमारत (जिसको उनकी मृत्यु उपरांत सरकारी सेकेंडरी स्कूल में तब्दील कर दिया गया था)।
3) इसी दौर में गाँव में सम्पूर्ण शराबबंदी हेतु गाँव के युवाओं की बना "युवा नशामुक्ति दल", जो जब तक सक्रिय रहा, गाँव के किसी भी घर में शराब नहीं रहने दी| इस दल को आज फिर से वापिस क्रियाशील होने की जरूरत है|
4) फिर 1998 में सरकारी पानी सप्लाई की योजना गर्क हो जाने की वजह से बिना सरकार का इंतज़ार किये, गाँव के लोगों द्वारा खुद के चंदे से गली-गली पाइपलाइन बिछा के घर-घर वाटर-सप्लाई का इंफ्रा डेवलपमेंट करना, जिसकी वजह से आज गाँव की कोई भी औरत गाँव की फिरनी से बाहर पानी हेतु भटकती नहीं फिरती|
5) अभी 2008 से स्वर्गीय डॉक्टर सुरेन्द्र दलाल की प्रेरणा व् मार्गदर्शन में शुरू हो निरंतर चल रही अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त "खाप-खेत-कीट-पाठशाला"| जिसकी वजह से गाँव को "कीट-कमांडोज़" का गाँव होने की ख्याति मिल चुकी है|
6) और अब यह अनूठा साहकार| वाह मजा आ गया|

यहां एक बात याद करता हुआ चलूँगा कि जब 1990 के दशक में स्वामी रत्नदेव जी को गाँव ने कन्या कॉलेज के लिए 17 कमरों का चंदा इकट्ठा किया था तो सरकार ने उसको डबल करते हुए 34 कमरों का कर दिया था| तो नगरी और इस परियोजना के मौजिज लोगों को चाहिए कि खटटर सरकार से मिला जाए| मुझे विश्वास है कि ऐसे सार्वजनिक कामों के लिए मिलने वाले चंदे को सरकार दोगुना कर देती है| कम-से-कम पिछली सरकारों ने तो किया है इसमें भी होना चाहिए| अगर हुआ तो खेल-हाल के लिए एकत्रित 15 लाख का 30 लाख तो सीधा मिल जायेगा|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

कौन कहता है कि जाट को बीजेपी/आरएसएस की सरकार आने से सिर्फ नुकसान ही हुआ है?

एकमुश्त आरएसएस/बीजेपी का राज आने से हरयाणा में इतना तो फायदा हुआ है कि कल तक जो दलित जाट में ही अपना सबसे बड़ा दुश्मन देखता था या उसको प्रोपगैंडे करके जाट को उसका सबसे बड़ा दुश्मन दिखाया जाता था, आज उसको असली और सीधा दुश्मन स्पष्ट नजर आने लगा है|

समझ तो पिछड़े को भी आ गया है कि उसका असली दुश्मन कौन है, उदाहरण के तौर पर बिहार; परन्तु हरयाणा में शायद राजकुमार सैनी जैसे प्रोपगैंडा के तहत लांच किये लीडरों की वजह से हरयाणा का पिछड़ा अभी जल्दबाजी में नहीं दिखना चाहता| कोई नी, हर फसल खरीद पर ऐसे ही अभी हाल के हुए "धान खरीद घोटाले" होते रहे तो पिछड़ी जातियों में किसान-वर्ग की जातियों वाले पिछड़े को तो पांच साले होते-होते जरूर दिखने लग जायेगा|

अत: क्या यह फायदा किसी भी बड़ी ग्रांट या योजना से कम है कि इनकी बदौलत दलित को अब सीधा और असली दुश्मन दिखने लगा है| बस जो वर्ण और जाति की उंच-नीचता में पड़ा जाट है, अब वो भी इस उंच-नीचता को उन्हीं पर उड़ेल दे जो इसके रचियता हैं|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

मेरी समझ से बाहर है कि आखिर क्यों आरएसएस से ले विहिप तक के तमाम हिन्दू संगठन "हरयाणा सर्वखाप के बलिदानों" को अपने स्तुतिगानों में जगह नहीं देते?

क्या यह जाटों की थ्योरी और फिलोसोफी रही हैं इसलिए वरना हैं तो यह भी हिन्दू ही?

अब पृथ्वीराज चौहान के हारते ही थोड़े ही आखिरी हार हो गई थी हिन्दुओं की? चार लड़ाइयां तो अकेले मुहम्मद गौरी के उत्तराधिकारी से सर्वखाप ने लड़ी थी|

पहली लड़ाई कुतबुद्दीन ऐबक के 1206 में दिल्ली की गद्दी पे बैठते ही दिपालपुर रियासत के राजा जाटवान जी महाराज (मलिक गठवाला गोती जाट) ने ऐबक को पूरे तीन साल तक नचाये रखा, जब तक वह महान् जाट योद्धा लड़ाई में शहीद नहीं हो गये।

दूसरी लड़ाई में सर्वखाप पंचायत हरयाणा की सेना ने वीर यौद्धेय विजयराव ‘बालियान’ की अगुवाई में ऐबक की सेना को उत्तर प्रदेश के भाजु और भनेड़ा के जंगलों में पछाड़ा|

तीसरी लड़ाई में वीर यौद्धेय भीमदेव राठी की कमान में बड़ौत के मैदान में ऐबक को पीटा|

चौथी लड़ाई में वीर यौद्धेय हरिराय राणा की कमान में दिल्ली के पास टीकरी (आज का हरयाणा-दिल्ली बॉर्डर) में भागने के लिए मजबूर किया।

और यह तो सिर्फ कुतुबुद्दीन ऐबक की सर्वखाप हरयाणा ने क्या दुर्दशा की थी उसका अध्याय है, मुंहमद तुगलक भी जिस तैमूर लंगड़े के आगे हथियार डाल गया था, उसको कैसे पीट-पीट के खदेड़ा था उसका अध्याय तो अपने आप में खापों के "भारतीय स्पार्टन" होने का बखान करता है| आगे का "गॉड गोकुला" का चैप्टर और ऐसे ही दर्जनों अध्याय उठा दूँ तो रोंगटे खड़े हो जाएँ|

क्या मतलब इन आरएसएस या विहिप वालों को कोई लोचा है क्या जाट के साथ? क्या कभी देखे हैं यह अध्याय आरएसएस के "पंचजन्य" में छपे आजतक? और नहीं तो क्यों नहीं?

आखिरकार क्यों पृथ्वीराज को आखिरी हिन्दू सम्राट और गुरु तेग बहादुर को पहला हिन्दू धर्म रक्षक ठहराते हैं यह लोग? यह पृथ्वीराज और गुरु तेगबहादुर के बीच हरयाणा सर्वखाप के बैनर तले विभिन्न समयों पर दी कुर्बानियों को कब कुर्बानियां मानेंगे यह लोग?

क्या वाकई में यह लोग जाटों से इतनी नफरत करते हैं और दोहरा रवैया अपनाते हैं? इनको मुस्लिमों से बचाने के लिए चाहियें तो जाट और हिन्दू वीरों के गान के नाम पे उठाये फिरते हैं या तो पौराणिक किरदारों को या फिर हारे हुए राजाओं को|

शायद यह लोग असली वीर को वीर कहने और लिखने की कभी हिम्मत नहीं पैदा कर पाये, इसीलिए देश गुलामियों पे गुलामियाँ झेलता गया| तब तो तब आज भी इनकी यही लकीर है, कुछ नहीं सीखा इन लोगों ने गुलामी के दौर से| आज के दिन मोदी के अधिनायकवाद महिमामंडन पर मशहूर उद्योगपति रत्न टाटा की वो टिप्पणी बिलकुल सही है कि अगर ऐसे ही थोथे देशभक्ति के माहौल खड़े किये जाते रहे तो देश फिर से गुलाम हो जायेगा|

और कोई नहीं तो क्या अंधभक्त बने और आरएसएस के कच्छे पहने हुए आज के कुछ बावले जाट ले पाएंगे इन लोगों से इन बातों का जवाब?

सोर्स पुस्तक - ‘सर्व खाप पंचायत का राष्ट्रीय पराक्रम’ व ‘भारतीय इतिहास का-एक अध्ययन’, जाट इतिहास

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

XX (female) and XY (Male) chromsomes gimmic is not a hard and fast principle for birth of particular gender!

I have a tripplet (one husband and two wives) in my knowledge. After birth of 5 girls in continuation from first couple, the first wife insisted her husband to marry her cousin sister. And so happened, the couple became tripplet. And here happened what challenges the chromosomic gimmic, the second wife gave birth to a boy from same husband.

Any doctor, scientist or professor, who would like to assess it with any scientific reason?

Man is generally considered responsible for which sex would take birth from his mating with his partner, but above said case side aligned the theory. Fatals the saga that it depends on male's chromosomes if it will be a boy or a girl. Here in this case it proved otherwise.

Phool Kumar Malik

Thursday, 3 December 2015

खप्परभरणा, जा मरखप!

हरयाणा में खप्परभरणा अक्सर उसको कहा जाता है जो बिलकुल ही बेख़ौफ़ और दुर्दांत किस्म का बालक हो| पुराने जमाने में खाप यौद्धेय जैसे दुश्मन की लाशों के खप्पर भर दिया करते थे; ठीक वैसे ही ऐसे लक्षण वाले बालक को खप्परभरणा और बालिका को खप्परभरणी कहा जाता है|

किस अनाड़ी बालक को बार-बार मनाने पर भी जब वो ना माने तो बड़े अक्सर झल्ला के उसको कहते हैं कि 'जा मरखप' यानी तू मरना जरूर परन्तु खाप वालों की तरह नाम कमाते हुए|

कितनी शानदार शब्दावली रही है हरयाणवी, जिनके अंदर आपको गुस्से में कोसा भी जाता है तो इस तरीके से कि आपका गुस्सा-क्रोध-जोश ऐसी दिशा में जा के लगे कि आप महानता ही कमाओ|

नादान हैं वो लोग जो हरयाणवी भाषा को भद्दी या लठैत की भाषा कहते हैं| इनके शब्दों के अर्थ और इनका मर्म जानो तो इस भाषा से स्वत: ही प्यार हो जाए| और मुझे तो फिर होना लाजिमी ही है, क्योंकि हरयाणवी भाषा के असीम ज्ञानकोष मेरी दादी से इन शब्दों के शब्दार्थ जानते हुए बड़ा हुआ हूँ|

जाटनी का जाया हूँ, "दादा खेड़ा" धर्म निभाऊंगा।
ना मूर्ती पूजनी ना पाखंड धारणे, लोकतंत्र आगे बढ़ाऊंगा||
गॉड गोकुला, बाबा धुला बाल्मीकि संग सूरजमल स्मारक बनाऊँगा।
वीर प्रसूता महारानी किशोरी संग भागीरथी और रामप्यारी गुजरी का गूँज उठा नारा है,
कहो गर्व से हम खप्परभरणे हैँ और समस्त खापलैंड हरयाणा है।

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

Wednesday, 2 December 2015

माइग्रेटेड सभ्यताओं को अंगीकार करते-करते खुद हरयाणवी सभ्यता बनी एक चरागाह!

अगर अब भी हरयाणवी जनमानुष ने जाट बनाम नॉन-जाट के अखाड़ों से निकल के इसकी सुध नहीं ली तो वो दिन दूर नहीं जब हरयाणवी के नाम पर उज्जड़-बियाबान के सिवाय कुछ नहीं मिलेगा|

जाट से नफरत करते हो करो, परन्तु हरयाणवी तो तुम भी हो कि नहीं?...
जाट से नफरत करते हो करो, परन्तु हरयाणा के नेटिव घरानों में तो तुम भी पैदा हुए हो कि नहीं?
जाट से नफरत करनी है करो, परन्तु हरयाणवी और हरयाणा की एथिकल आइडेंटिटी पर सवाल उठाने वाले खटटरों को जवाब देना तो तुम्हारा भी बनता है कि नहीं?
जाट से नफरत करनी है करो, परन्तु हरयाणा की हरयाणवी बोली तो तुम भी बोलते हो कि नहीं?
जाट से नफरत करनी है करो, परन्तु हरयाणवी बाणा तो तुम भी पहनते हो कि नहीं?
जाट से नफरत करते हो करो, परन्तु हरयाणा से बाहर दूसरी स्टेट में जा के खुद को हरयाणा का बोलते हो कि नहीं?
जाट से नफरत करनी है तो करो, परन्तु हरयाणा से बाहर हरयाणवी कहलाते हो कि नहीं? तुम छुपाना भी चाहते होगे परन्तु क्या तुम्हारे हाव-भाव तुम्हारे हरयाणवीपने को छुपने देते हैं?


तो आखिर कब वो दिन आएगा जब हम इस जाट बनाम नॉन-जाट के दंगल से बाहर निकल के अपनी हरयाणवीपने की पहचान को कायम रखने हेतु एक दिशा में सोचेंगे?

यह जो माइग्रेटेड हो के आ रहे हैं, यह तो हमारी सभ्यता और संस्कृति को नहीं संजोएंगे, तीन-चार पीढ़ियां भी यहां निकाल लेंगे तो भी नहीं| नहीं यकीन होता मेरा तो मनोहरलाल खट्टर ने हर्याणवियों को लेकर क्या ब्यान दिया वो तो पढ़ा-सुना-समझा होगा? अत: इससे साबित है कि इनके लिए कितने ही अपने संसाधन बंटवा लेना, रोजगार बंटवा लेना परन्तु अंत में तुम्हारी सभ्यता को तो संभालना तुम्हें ही होगा| वो नहीं संभालेंगे जो देश के बॉर्डर पार से आये हों या राज्यपार से|

क्या जाट से नफरत करने के चक्कर में या एक पल को अगर इसको मिटाना भी चाहते हो तो इसको मिटाने के चक्कर में अपनी खुद की एथिकल पहचान तक को मिटा दोगे? हरयाणवी माँ तुम्हारे मुंह को तांक रही है, सुध ले लो इसकी| वरना माँ ही नहीं रही तो अनाथ घूमोगे, बिना पते के पत्र की भांति| हमें जगाना होगा अपने आपको, अपने जनमानस, हमें जगाना होगा ताकि हमारी सभ्यता चरागाह ना बन जाए|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

तथाकथित राष्ट्रवादियों को जब संख्या-पैसा और पावर मिलती है तो!

आपने अक्सर राष्ट्रवादी एजेंटो और इनके कार्यकर्ताओं को यदाकदा आपको रिझाने अथवा अपने प्रभाव में लेने के लिए अक्सर एक माइनॉरिटी रिलिजन की यह कह के बुराई करते हुए आपको डराने के प्रयास करते हुए देखा होगा कि "देखो जब यह 10-15 प्रतिशत होते हैं तो यह आपके नीचे रहते हैं, जैसे ही 25-30% हुए तो आपसे बराबरी करने लगते हैं और सर उठाने लगते हैं और जैसे ही यह 40-50% पहुंचे तो आपको दबाने की कोशिश करते हैं और अगर हुए 50% से ज्यादा तो आपको कुचल देते हैं| इसलिए इनके चलते हम और हमारा धर्म खतरे में हैं, इनको मारो, काटो इनसे नफरत करो; आदि-आदि!"

परन्तु वास्तविक हकीकत यह है कि यह लोग खुद इनसे भी क्रूर हैं| इनकी यह क्रूरता ढंकी रहे, इसलिए इन बातों को माइनॉरिटी रिलिजन का निशाना बना के आमजन को डराते हैं, अधिनायकवाद पैदा करते हैं|

सनद रहे मैं यहां किसी को अच्छा अथवा बुरा साबित नहीं कर रहा, ना तथाकथित राष्ट्रवादियों को, ना माइनॉरिटी को और ना ही खुद को| मैं जो सामने रखना चाहता हूँ वो यह कि बुरों में सबसे बुरा कौन है और अच्छों में सबसे अच्छा कौन और कितना|

तो राष्ट्रवादी इनके द्वारा बताये लोगों से भी अधिक बुरा कैसे है; जब इनको संख्या-पैसा और पावर मिलती है तो यह कैसे विश्व की क्रूरतम सभ्यता साबित होती है उसका पटाक्षेप दिखाना चाहता हूँ|

राष्ट्रवादी जब दीनहीन-कमजोर रहता है तो बैठ के षड्यंत्र रचता है, समाज को विघटित करने की प्रणलियों पर मंथन करता है| फिर इनको समाज में एक्सपेरिमेंट के तौर पर फेंकता है, जोनसा एक्सपेरिमेंट सफल हो जाए फिर उसको उठा के भुनाता है| जब तक इसके हाथ में संसाधन और दौलत नहीं आते, तब तक यह भीख भी मांगता है| जी हजूरी, चापलूसी और चमचागिरी भी करता है, ऐसा नहीं है कि बाकी नहीं करते| परन्तु यह दुसरे को नुक्सान पहुंचाने की मंशा से करते हैं, खुद के फायदे तक करते हों, उस तक सिमिति नहीं रहते। तो जब तक इनकी यह गरज रहेंगी तब तक आपकी ठोडी पे हाथ रख-रख के कब ठोडी के नीचे मुक्का दे मारे, इसका पता आपको तभी चलता है जब आपके पैर उखड़ के ऊपर हो चुके होते हैं| फिर जब धीरे-धीरे इसको सत्ता और पैसा नजदीक आता दीखता है तो समाज को जातपात के नाम पर बाँट कर, हर जाति की दुसरे के प्रति घृणा और कमजोरी को भुना कर आपको विघटित कर देता है| और अंत में जब इसके हाथ में सत्ता होती है तो फिर दिन-दोपहरी दिखा-दिखा के आपपे सितम ढाता है|

अभी देख लो हरयाणा में "धान-खरीद" घोटाला दिन-दोपहरी सबकी आँखों के सामने हुआ है| जब तक सत्ता हाथ नहीं आई थी जाट बनाम नॉन-जाट का जहर दबी जुबान करते थे और अब कैसे खुल्लेआम कर रहे हैं| दलितों पे अत्याचार दोगुने हो चुके हैं| दलितों को कुत्ता तक कह जाते हैं, जाटों को भी लठमार, लठबाज, लठतंत्र और पता नहीं क्या-क्या; जबकि खुद लाठी कंधे पे रख के चलते हैं। फर्क सिर्फ इतना है कि जाट लठ समाजहित में उठाता है और यह लोग समाज के विघटन हेतु।

अत: इनका कोई एजेंट राष्ट्रवाद के नाम पर आपको भड़काने आवे तो उसको बोलो कि जा पहले हिन्दू धर्म में जातीय सेक्युलरवाद ला यानी वर्णव्यस्था और जातीय व्यवस्था को मिटा; वरना तब तक माइनॉरिटी से हमें खतरा है कि नहीं उसकी परवाह करनी तू छोड़ दे| क्योंकि तेरी चिंता करने से ना ही तो सोमनाथ का मंदिर लूटने से बचा था, ना ही पृथ्वीराज की जान बची थी, ना ही बाबर को रोका जा सका था, ना ही तैमूरलंग वापिस भेजा गया था, ना ही बिन कासिम तुझसे रोका गया था| इसलिए जा और किसान-दलित-कमेरे के लिए अपनी सरकार से कुछ करवा सकता हो तो ठीक, अन्यथा यह थोथे थूक कहीं और जा के बिलो| इन तिलों में तेल नहीं जो तू मेरे आगे झाड़ रहा है|

इनको सुपोर्ट, ताकत और पैसा देने का क्या नतीजा होता है, वर्तमान हरयाणा और यहाँ की कृषक जातियों से चल रहे इनके दुर्व्यवहार को देखकर भली-भांति समझा सकता है।

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

Sunday, 29 November 2015

खाली, ठाल्ली, निखट्टू, निठ्ठले मोडे/बाबाओं/पुजारियों आदि को और काम ही क्या है?

सबसे पहले तो बता दूँ कि आपको जानकार आश्चर्य होगा कि यह लाइन "नफरत की सोशल थ्योरी ऑफ़ प्रतिकर्षण" के तहत खुद मोडे/बाबाओं/पुजारियों ने ही समाज में फैलवा रखी है| ताकि लोग बाहर से खाली, ठाल्ली बैठे दिखने वाले इन लोगों को खाली, ठाल्ली की गाली देने में ही अपनी ऊर्जा गंवाते रहें और उस रहस्य रुपी अध्यात्म और ध्यान को ना जान पाएं, जो यह इस खाली/ठाल्ली की मुद्रा में बैठ के करते हैं| और एक जगह बैठे-बैठे और खाली/ठाल्ली से घूमते दिखने से ही सारे समाज के चप्पे-चप्पे का ज्ञान अर्जित कर जाते हैं|

मोडे/बाबाओं/पुजारियों को इस खाली/ठाल्ली से इतना तक प्यार है कि जब बुद्धकाल में जाट और दलित बौद्ध भिक्षु बन हर गाँव-गली चौराहे पर ध्यानमग्न नजर आने लगे थे तो इनमें कोहराम मच गया| यह लोग अंदर से अशांत हो गए और चिंता में पड़ गए कि जिस "खाली ठाल्ली" के टैटू के पीछे छुप के हम इतना गहन कार्य किया करते थे अब अगर यह लोग भी इसको करने लगे तो हमारी तो सत्ता ही खत्म| बहुत ध्यान भटकाने की कोशिशें करी, बुद्ध की बेइज्जती तक करवाई, उनकी जितनी हो सके उतनी आलोचना करवाई, परन्तु फिर भी लोग नहीं माने, तो अपनी इस विधा की रक्षा हेतु इन्होनें ब्राह्मण राजा पुष्यमित्र सुंग, राजा शशांक, राजा चच और उसके बेटे राजा दाहिर के हाथों बुद्ध भिक्षु बने जाटों और दलितों के कत्ले-आम करवाये| बौद्ध मठ तक तोड़े गए| इतना क्रूर तांडव मचवाया कि कहावतें चल पड़ी, "ले भाई मार दिया मठ", "हो गया मठ" आदि-आदि|

क्योंकि बुद्ध धर्म सम्पूर्णत: शांति का संदेश देता है, तो जाट तपस्या में लीन रहते हुए भी कटते गए, परन्तु कुछ ना बोले| अब तक यह एक ऐसा मैदान लड़ रहे थे, जिसमें दूसरा पक्ष तो अभी तक हथियार उठाया ही नहीं था| तब जब लगा कि कहीं अस्तित्व ही खत्म ना हो जावे, तब जा कर जाटों ने अपनी भृकुटि यानी तीसरी आँख खोली और भारतीय स्पार्टन यानी खापों ने एक हो इनको जवाब देने की ठानी| मशहूर इतिहासकार श्री के. सी. यादव कहते हैं कि पांचवीं सदी में एक ऐसी विध्वंशकारी लड़ाई हुई जिसमें एक तरफ इनकी एक लाख सेना और दूसरी तरफ जाटों की मात्र नौ हजार सेना थी| युद्ध बहुत ही विघटनकारी हुआ परन्तु जाटों ने जब तांडव मचाया तो मात्र पंद्रह सौ जाट खोते हुए अत्याचारियों की पूरी की पूरी सेना को धूल चटा दी| तब जाकर यह लोग रुके थे बुद्धों पर अत्याचार करने से|

और यह सब था किसलिए, सिर्फ इस लेख के शीर्षक में कही बात की रक्षा के लिए| इसके बाद यह ऊपर से तो शांत बैठ गए, परन्तु जिस मुद्रा को हम अक्सर निठ्ठला और खाली बैठना कह देते हैं, उसमें बैठे-बैठे लगातार षड्यंत्र करते रहे| वक्त गुजरा और सिख धर्म की स्थापना हुई| अधिकतर जाट सिख धर्म में पलायन करने लगा| परन्तु इतिहास से सीख लेते हुए इन्होनें अबकी बार मारकाट के रास्ते की बजाये, पूना में ब्राह्मण सभा कर, महर्षि दयानंद के जरिये आर्य समाज का फुलप्रूफ पैकेज उतारा और आर्य समाज की पुस्तक "सत्यार्थ प्रकाश" में "जाट जी" जैसे शब्दों के साथ जाट की स्तुति करवाई गई| मान-सम्मान को सुरक्षित समझ जाट सिख धर्म में पूर्णत: पलायन करने से रुक गया|

जाट की स्वछँदता का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि आर्य समाज में रहते हुए जाट ने शादी-बयाह में फेरे करने, शांत-शीतल जगहों पर बैठ के चिंतन-मनन-ध्यान लगाने जारी रखे| और हमारे समाज में सब कुछ ठीक रहा|

लेकिन मोडे/बाबाओं/पुजारियों लोग चिंतन-मनन-ध्यान को ठाल्ली-निट्ठलों का काम है, ऐसी लाइन हमारे समाज के बच्चों-बुड्ढों की जुबान पर फिर से लाने में कामयाब रहे| और आज हालत यह है कि दस में से शायद ही दो जाट चिंतन-मनन-ध्यान में बैठते हों| और जब से यह विधि-पद्धति हमारे समाज से लुप्तप्राय होने को आई है, तब से जाट समाज का ह्रास ही होता चला जा रहा है|

अत: आज के सिर्फ जाट ही नहीं अपितु तमाम किसान और दलित युवा/युवती से विनती है कि इस पद्धति को पकड़े रखो, इसको छोडो मत| और नहीं तो यह कह के कि चिंतन-मनन-ध्यान किया करो कि "या तो बुद्ध को हिन्दू धर्म का नौवां अवतार कहना बंद करो, पीएम से विदेशों में भारत को ब्रह्मा-विष्णु-महेश आदि की बजाय बुद्ध का देश कहलवाना बंद करवाओ अन्यथा मुझे बुद्ध की शरण में जाने दो|"

और सच कहूँ तो "बुद्धम शरणम गच्छामि" मतलब भी यही होता है कि आपको खुद की बुद्धि की शरण में जा के चिंतन करना है। किसी इंसानी सेल्फ-स्ट्य्लेड गुरु/गॉडमैन के आगे नतमस्तक हो के चमचागिरी वाली भगति नहीं करनी|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

जाट से चिड़ के कारण ही सही, परन्तु बीजेपी-आरएसएस को सैनी को बढ़ावा देना, अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारने वाला साबित हो सकता है!

दिल्ली में राजकुमार सैनी की कल की रैली में मुझे जो अचम्भित करने वाली बात लगी वो थी कि उस रैली पर ना ही तो बीजेपी-आरएसएस का कोई झंडा दिखा और ना ही राजकुमार सैनी को छोड़ के कोई बड़ा नुमाईन्दा दिखा|

महात्मा ज्योतिबा फुले की जयंती पर उनको श्रद्धांजलि और श्रद्धासुमन अप्रित करने लोग पहुंचे| और क्योंकि बीजेपी और आरएसएस का कोई स्लोगन/झंडा प्रयोग नहीं किया गया तो गैर बीजेपी पार्टियों का पिछड़ा भी समारोह में जरूर पहुंचा होगा| परन्तु अब इससे बीजेपी-आरएसएस के जो मंसूबे कभी पूरे नहीं होंगे वो कुछ इस प्रकार होंगे:

1) आरएसएस/बीजेपी की अंदरखाते मन में दबी आरक्षण को खत्म करवाने की मंशा अब कभी पूरी नहीं होगी| हालाँकि लालू यादव जैसा पहाड़ पहले से ही उनकी राह में था परन्तु अब सैनी को और खड़ा करके आरएसएस/बीजेपी ने अपनी ही राह में कांटे बोये हैं| क्योंकि अब जहां एक तरफ इनको रह-रह के आरक्षण खत्म करने का इनका इरादा भीतर से परेशान करके रखेगा, वहीँ दूसरी तरफ जाट के प्रति नफरत फैलाने के चक्कर में पिछड़े को आरक्षण की आवश्यकता पर खुद ही और ज्यादा जागरूक कर दिया है। शायद इसी को कहते हैं कि बोये पेड़ बबूल के तो आम कहाँ से होए| भाई नफरत बोवोगे तो बदले में या तो नफरत मिलेगी या कुंठा| अब आरएसएस/बीजेपी इस कुंठा में जियेगी कि तुम्हारे आरक्षण को खत्म करने के मिशन का क्या होगा|

2) और इधर जिस आरक्षण को ज्यादा बढ़ाने (27 to 54 or 60%) की आस सैनी ने पिछड़ों में जगा दी है उसको बीजेपी/आरएसएस कभी पूरा नहीं करेगी| तो ऐसे में पिछड़े का बीजेपी और यहां तक राजकुमार सैनी भी से जल्द ही मोह भंग हो जाये, इसके पूरे आसार रहेंगे| हरयाणा में साल-छ महीने में इलेक्शन होने होते तो शायद इस बिंदु को भुना के फिर से बीजेपी को वोट मिल जाता| परन्तु 2019 तक भी यही स्थिति रहेगी, इसका मुझे संदेह है|

3) यह आस पूरी नहीं हुई तो पिछड़ा वर्ग आरएसएस से उल्टा हट सकता है या ऊब सकता है| और ऐसे में जब जाट को यह पहले से ही ताक पे रख के चल रहे हैं तो पिछड़ा भी इनसे उल्टा हटा तो फिर यह वापिस सिमित समूह बनने तक सिकुड़ जाएगी|

अब देखने वाली बात यह होगी कि खाली जाटों से नफरत के षड्यंत्र पर, सैनी कब तक पिछड़े को आरएसएस/बीजेपी से बांधे रख पाएंगे? क्योंकि आज का पिछड़ा इतना तो जागरूक हो ही रखा है कि उसको खाली किसी के खिलाफ उसकी भावनाओं का दोहन करके लम्बे समय तक बांधें नहीं रखा जा सकता| बीजेपी/आरएसएस ने जाट के प्रति नफरत सुलगाने के चक्कर में सैनी के जरिये उनमें जो अप्रत्याशित सी आस जगा दी है वो पूरी नहीं हुई तो या तो राजकुमार सैनी खुद ही पिछड़े को ले के अलग पार्टी बना लेंगे या फिर किसी अन्य दल में शामिल होने की जुगत ढूंढेंगे अन्यथा बिना यह जगी हुए आसें पूरी करवाये भी यहीं के यही रहे तो पिछड़ा इनको छोड़ दे, ऐसा भी होने का भय रहेगा| 

इन सबके बीच जो अच्छी बात हुई वह यह कि कल की सभा में यह फैलसा लिया गया कि अगले वर्ष भी महात्मा ज्योतिबा फुले की जयंती ऐसे ही बड़ी सभा करके मनाई जाएगी|

मैं तो चाहता हूँ कि जाट भी अब अपनी राजनैतिक व् राजशाही हस्तियों के अलावा सामाजिक, और खाप हिस्ट्री में हुए हुतात्माओं की भी जयंती पर एक विशाल सामूहिक "सर्वजाट खाप" के स्तर का कोई वार्षिक उत्सव मनाना शुरू कर देवें| जिसमें "दादा बाला जी महाराज (जिनके ऊपर हनुमान का किरदार ढांप दिया गया है)", "दादा रामलाल खोखर जी", "दादा जाटवान जी गठवाला महाराज", "दादा हरवीर सिंह गुलिया जी", "दादिरानी भागीरथी देवी जी", "दादिरानी समाकौर गठवाला जी", "गॉड गोकुला जी", "बाबा शाहमल तोमर जी" आदि-आदि बहुत से और भी खाप इतिहास से और "भगत धन्ना जाट जी", "गरीबदास" जी जैसे भक्ति आंदोलन के जाट हुतात्माओं पर कम से कम एक हफ्ते भर लम्बा उत्सव जरूर मनाना शुरू कर देना चाहिए|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

कर्नाटक में देवदासी प्रथा रोकने बारे जवाब न देने पर केंद्र पर 25 हजार का जुर्माना!

न्यायालाय ने NGO एसएल फाउंडेशन की जनहित याचिका पर पिछले साल केंद्र सरकार से जवाब-तलब किया था। इस याचिका में केंद्र और कर्नाटक सरकार को राज्य के देवनगर जिले के उत्तांगी माला दुर्गा मंदिर में 13 फरवरी, 2014 की आधी रात को देवदासी समर्पण को रोकने के लिये तत्काल कदम उठाने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया था। न्यायालय को सूचित किया गया था कि यह गतिविधि कर्नाटक देवदासी समर्पण निषेध कानून, 1982 के खिलाफ है और इससे किशोर के अधिकारों का हनन होता है।

उस समय न्यायालय ने कर्नाटक के मुख्य सचिव को 14 फरवरी, 2014 के भोर पहर में होने वाले इस कार्यक्रम में, जहां दलित किशोरियों को देवदासी के रूप में समर्पित किया जाना था, के संबंध में सभी एहतियाती उपाय करने का निर्देश दिया था। पीठ ने इस जनहित याचिका पर कर्नाटक सरकार से भी जवाब मांगा था। इस याचिका में देवदासी प्रथा रोकने के लिये दिशानिर्देश बनाने का अनुरोध करते हुए कहा गया था कि यह राष्ट्रीय शर्म की बात है। NGO ने आरोप लगाया था कि देवदासी प्रथा के खिलाफ कानून होने के बावजूद देश के विभिन्न हिस्सों में यह कुप्रथा जारी है। इस संगठन ने न्यायालय से इसमें हस्तक्षेप करने का अनुरोध किया था।

आपको बता दें कि देवदासी "धार्मिक वेश्या" को कहते हैं, जिसके तहत पुजारी-महंत लोग दलितों की सुन्दर बेटियों को उनकी व् उनके विशिष्ट लोगों की वासना पूर्ती हेतु मंदिर में रखते हैं| सुदूर दक्षिण भारत से ले महाराष्ट्र-एमपी और पूर्व में बंगाल तक के विभिन्न मंदिरों में यह व्यवस्था आज भी चल रही है|

थैंक्स टू जाट्स एंड खापस्, जिन्होनें इस कुक्तृत्य को कभी उत्तरी भारत में पैर नहीं पसारने दिए| अब प्लीज कोई इस थैंक्स गिविंग में भी जातिपाती मत ढूंढने लग जाना| मैं किसी दूसरी जाति में भी पैदा हुआ होता तो इस मामले में यह थैंक्स इनको फिर भी बोलता|

भगतो जरा बताना यह कौनसे वाली सहिषुणता की श्रेणी में आता है आपके लिए कि इसके पक्का सबूत होते हुए भी आप लोगों का खून उबाल नहीं मारता?

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

Saturday, 28 November 2015

और जो समझदार पिछड़ा होगा वो यह बात बड़े अच्छे से जानता होगा!

राजकुमार सैनी साहब, यह पिछड़े और दलित पर जाति और वर्ण-व्यवस्था के नाम पर उत्पीड़न का पिटारा जाट पर ना फोड़िए, उन पर फोड़िए जो इसके जनक हैं|

आपका स्तर सिर्फ इतना है कि जिसकी आप पीपनी बनके बज रहे हैं जाटों को वो "जाट जी" लिखते आये हैं| ऐसा अपने से ऊपर का सम्मान उन्होंने राजपूतों तक को नहीं दिया, जो जाटों को "जाट जी" कह के दिया|

भले ही जाट को सिख धर्म में जाने से रोकने के चक्कर में दिया, परन्तु सिख तो अन्य हिन्दू भी बहुत बने, तो फिर इनको जाटों को "जाट जी" कह के क्यों रोके रखना पड़ा? घुन्ने हैं पर फिर भी सच्चाई जानते हैं, हिन्दू धर्म में जाट नहीं तो कुछ नहीं| आपको क्या लगता है जैसे आप जाटों को आँखें दिखाने का डर बना के डराने का बहम पाले बोलते चले जा रहे हैं, यह खुद नहीं कर सकते थे ऐसा? नहीं, यह जानते थे, जाट को इतिहास में आँख दिखा के कोई नहीं दबा सका, सिर्फ सद्व्यवहार और सत्कार से ही जाट रोका जा सकता है|

सबूत के तौर पर मूल शंकर तिवारी उर्फ़ महर्षि दयानंद का "सत्यार्थ प्रकाश" पढ़ लीजियेगा|

और आपके जरिये जो इनको हासिल करना है वो है दलित-पिछड़ा और जाट की एकता में फूट| कल को आपको इसके ऐवज में भले ही "कुत्ते को हड्डी" फेंकने के स्टाइल में मंत्रिपद भी मिल जाए, परन्तु जब-जब दलित-पिछड़ा उन्हीं हकों के लिए जिनके लिए आप थोथी आवाज बने फिर रहे हैं, इनकी सही में बात उठा के लड़ाई लगी, तब-तब पिछड़े-दलित को जाट की जरूरत होगी और जब वो देखेंगे कि राजकुमार सैनी ने तो इतने बड़े गड्डे खोद दिए जाट-पिछड़े की बीच की अब जाट को अपने से मिलाएं कैसे तो आपको कोसेंगे और गालियां दिया करेंगे|

जिस दिन इन उत्पीड़नों पर इनके जनकों से सीधी आँख में आँख डाल के बातें करना सीख जाओ, उस दिन मान लेना कि जाट के बराबर पहुँच गए हो| वरना इस कुम्हार की कुम्हारी पे तो पार बसावे ना, जा के गधे के कान खींचे, की परिपाटी पर चल के तो बन लिए आप पिछड़ों के मसीहा; क्योंकि अंत में आज जिन अधिकारों की बातें उठाते फिर रहे हो, वो आपको जाटों से लड़ के नहीं, इन्हीं से लड़ के मिलेंगे यानी मंडी-फंडी से| और जो समझदार पिछड़ा होगा वो यह बात बड़े अच्छे से जानता होगा|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

"बीटिंग अराउंड दी बुश" छोड़िये राजकुमार सैनी!

1) पिछड़ों का नौकरियों में जो बैकलॉग होता है उस पर सबसे ज्यादा डाका डालता है मंडी-फंडी, निशाना फिर भी राजकुमार सैनी का जाट समाज पर|
2) पिछड़ों की जनसख्या अनुपात के आंकड़े सार्वजनिक जो नहीं कर रहा वो है मंडी-फंडी, निशाना फिर भी राजकुमार सैनी का जाट समाज पर|
3) पिछड़ों को जनसंख्या के अनुपात में 27 से 54 प्रतिशत आरक्षण जो नहीं लेने दे रहा वो है मंडी-फंडी, निशाना फिर भी राजकुमार सैनी का जाट समाज पर|
4) आरक्षण की पुनर्विवेचना करने की बात जो कर रहा है वो है मोहन भागवत, निशाना फिर भी राजकुमार सैनी का जाट समाज पर|
5) संसद में सविंधान के प्रीएमबल को बदल उसमें मूलभूत बदलाव हेतु बहस करवाना चाहती है खुद राजकुमार की पार्टी बीजेपी, निशाना फिर भी राजकुमार सैनी का जाट समाज पर|
6) पिछड़े समाज के किसानों की धान 1200 के भाव से खरीदते ही 3000 से ऊपर के भाव कर 2015 का धान खरीद घोटाला करती है बीजेपी, निशाना फिर भी राजकुमार सैनी का जाट समाज पर|
7) बीजेपी ने आते ही किसानों के खिलाफ घातक लैंड आर्डिनेंस निकाला, निशाना फिर भी राजकुमार सैनी का जाट समाज पर|
8) पिछड़ों को वर्ण व जाति व्यवस्था में कहीं शूद्र तो कहीं चांडाल ना ही तो जाट ने लिखा और ना ही कहा| जिन्होनें कहा उन पर निशाना ना होने की बजाय, निशाना फिर भी राजकुमार सैनी का जाट समाज पर|
9) जिन मंडी-फंडी की स्तुति राजकुमार सैनी कर रहे हैं, उन्होंने कभी भी अंग्रेजों से सैनी समाज को जमीन की मल्कियत दिलवाने हेतु लड़ाई नहीं लड़ी| यह लड़ाई लड़ी और यह हक दिलवाया तो एक जाट सर छोटूराम ने और निशाना फिर भी राजकुमार सैनी का जाट समाज पर|
10) पिछड़ों-दलितों को हक देने वाली साईमन कमीशन का लाला लाजपत राय की अगुवाई में विरोध करने वाले थे मंडी-फंडी| सर छोटूराम ने साईमन कमीशन का स्वागत किया, निशाना फिर भी राजकुमार सैनी का जाट समाज पर|
11) आज़ादी के बाद मंडी-फंडी से लड़ के पिछड़ों-किसानों के लिए सबसे ज्यादा कानून बनवाए चौधरी चरण सिंह और ताऊ देवीलाल ने, निशाना फिर भी राजकुमार सैनी का जाट समाज पर|
12) भारतीय किसान यूनियन बना के किसान-पिछड़े के हकों के लिए मंडी-फंडी से लड़े बाबा महेंद्र सिंह टिकैत, निशाना फिर भी राजकुमार सैनी का जाट समाज पर|

क्या सैनी साहब आज के दिन किसानों की सभी समस्याएं हल हो गई या कोई समस्या है ही नहीं किसान को, यहां तक कि और नहीं तो आपके खुद के समाज के किसान को भी नहीं?

आखिर क्यों इन सब मुद्दों से "बिल्ली को देख कबूतर की भांति आँखें मूंदे" राजकुमार सैनी ऐसे सभाएं करते फिर रहे हैं जैसे कल ही इलेक्शन होने वाले हों? क्या यह मौका सभाएं करते फिरने का है या फिर इन मुद्दों पर संसद में बहस से ले, अपनी खुद की पार्टी की केंद्र और राज्य सरकारों से इन पर काम करवाने का?

इनमें से एक भी मुद्दा ऐसा नहीं है जो जाट को आरक्षण ना मिलने से हल हो जायेगा| या फिर पिछड़ा समाज सिर्फ जाट से नफरत निभा के पेट पाल लेगा? क्या पिछड़ों में कोई भी राजकुमार सैनी को समझाने वाला बुद्धिजीवी नहीं कि जाट समाज से नफरत करोगे तो कृषि और कृषक दोनों का भविष्य अंधकारमय बना दोगे?
क्योंकि मंडी-फंडी यह बात अच्छे से जानता है कि अगर पिछड़े और कृषक समाज पर उनको राज करना है तो पिछड़े समाज को जाट समाज से तोड़ के रखना होगा|

शरद यादव जैसे पिछड़े समाज के नेता का मानना है कि अगर पिछड़ों को जनसँख्या के अनुपात में आरक्षण चाहिए तो मंडी-फंडी से लड़ने हेतु जाट को साथ लेना होगा| और राजकुमार सैनी हैं कि बिलकुल उनके विचार के उल्ट चल रहे हैं| वो पिछड़ों को यह समझने ही नहीं दे रहे हैं कि एक बार जाट को ओबीसी में आ लेने दो फिर नारा देंगे कि "किसान-कमेरों ने बाँधी गाँठ, अब चाहिए सौ में साठ|"

ऊपर गिनाये 12 बिन्दुओं में से अगर एक पर भी सैनी साहब आवाज उठा रहे हों तो मुझ तसल्ली हो कि जनाब वाकई में पिछड़े के लिए कुछ कर रहे हैं| और राजकुमार सैनी ऐसा नहीं करके सिर्फ खुद को मंडी-फंडी का प्यादा साबित करने से ज्यादा कुछ करते नजर नहीं आते|

तो क्या ऐसे में पिछड़ा वाकई इस सोच का है कि वो राजकुमार सैनी को सिर्फ जाटों से नफरत करने के नाम पर ही अपना नेता मान लेगा? अगर ऐसा होता है तो फिर तो यही कहा जायेगा कि भारत पूरी दुनिया में एक ऐसा अनूठा देश है, जहां नेता बनने का यह भी एक पैमाना है कि आप किसी दूसरे समाज से कितनी नफरत करते हो| परन्तु क्या इससे कृषि और कृषक के मुद्दे भी हल हो जायेंगे?

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

Friday, 27 November 2015

जाट की साइंस 16x2=8 का अर्थ!

पहले बताता चलूँ कि जैसे सिखों के ऊपर "12 बज गए" वाला जुमला (इसके वास्तविक महत्व को न्यून करने हेतु घड़ा गया) उनका मजाक उड़ाने हेतु बनाया गया, ऐसे ही एंटी-जाट विचारधारा की पनप है, "जाट यानी 16x2=8"। जाट की साइंस जिनको पल्ले नहीं पड़ती वो फिर ऐसा ही बोलते हैं।

चलिए अब आपको जाट की साइंस में इस 16x2=8 का मतलब समझाते हैं।

आप किसी भी ट्राली बनाने वाली वर्कशॉप में जाएँ, वहाँ आपको ट्राली का फर्श बनाने वाली लोहे की 16 फुट लम्बी चददरें मिलेंगी, उनको देखना। जब इन चददरों से ट्राली का फर्श बनता है तो उसको डबल फोल्ड किया जाता है, जिससे 16 फुट लम्बी चद्दर दो टाइम फोल्ड हो के 8 फुट की रह जाती है यानी 16x2=8 आउटपुट आता है।

अब क्योंकि उत्तरी भारत में खेती में जाट सबसे बड़ा और माना हुआ समाज है तो इसकी अधिकतर कहावतें जाट से ही जुड़ी हुई मिलती हैं। और ऐसे में एंटी-जाट विचारधारा को कुछ ना कुछ चाहिए ही तो उठा के घड़ दिया "जाट यानी 16x2=8|

अब यह भी तो सोचने की बात है ना कि यह 16x2=8 ही क्यों कहा गया; 14x2=7 या 18x2=9 आदि-आदि क्यों नहीं कहा गया? कारण ऊपर बता दिया है।

हालाँकि की यह साइंस तो कृषि की है परन्तु जोड़ी जाट से जाती है तो पोस्ट के टाइटल में इसको जाट की साइंस लिख के कहा। वरना ऐसा भी नहीं कि अन्य जातियों के किसान किसी और तरीके या फार्मूला से ट्राली बनवाते हैं, इसी तरीके से बनवाते हैं, परन्तु उत्तरी भारत में जहां कृषि की सकारात्मक कहावतें भी जाट पे बनती हैं तो साथ ही कुछ ऐसी नकारात्मक मजाक उड़ाने वाली भी एंटी-जाट विचारधारा द्वारा किसान या कृषि से ना जोड़ के जाट से ही जोड़ दी जाती हैं|

As per Manbir Redhu Ji: चदर की मोटाई मापने का एक स्पेशल पैमाना होता है ।उसे कहते है गेज ।एक इंच की मोटाई में जितनी चदर आसके वो संख्या उस चदर का गेज होगी। यानि 16 चदरों की मोटाई एक इंच है तो वो चदर 16 गेज की है ।और यदि उस चदर से दोगुनी मोटी चदर लेंगे तो वो एक इंच में 8 ही आएंगी यानि 8 गेज, इस तरह से होता है 16×2 =8

जय यौद्धेय! - फूल मलिक