Thursday, 10 December 2015

माननीय सुप्रीम कोर्ट, जब साक्षी-आदित्यनाथ-प्राची "4-4, 5-5" बच्चे पैदा करो चिल्लाते फिर रहे थे, तब कहाँ था यह "जावेद बनाम हरयाणा सरकार" वाले केस का हवाला?

क्यों नहीं आपने इन बद्जुबानों की जुबानी बंद करी इसका हवाला देते हुए? क्या हर बात पर जनता जब आपका दरवाजा खटखटाये तभी आप बोलेंगे? क्या आपकी अपनी कोई नैतिक जिम्मेदारी नहीं अपने कानूनों को बचाये रखने की? या आप भी यह देख के चलते हैं कि "जावेद बनाम हरयाणा सरकार" जैसे केस के फैसले की धज्जियाँ उड़ाने वाले कौन हैं?

माननीय, शिक्षा क्या है? वह गुण जो एक की समर्थता/दक्षता होता है और दूसरे की असमर्थता/निर्भरता होता है। जैसे आप एक जज हो के भी अपने पेट के अन्न के लिए किसान के ज्ञान पर निर्भर हो, अपने लिए मकान बनाने हेतु एक मजदूर/मिस्त्री के ज्ञान पर निर्भर हो| उसी तरह यह उस किसान और मजदूर की शिक्षा है जो आपको अक्षरी ज्ञान होने पर भी उस पर निर्भर रहने की आपकी अशिक्षा और कमजोरी को दूर नहीं कर पाती। संसार में ऐसा इंसान मिथ्या है जो वो हर प्रकार की शिक्षा रखता हो और जिससे वो दूसरों के ज्ञान पर निर्भर नहीं हो।

अब आता हूँ मर्म की बात पर, माननीय! धर्मवाद, जातिवाद और नश्लवाद थोथे और अर्थहीन होते हैं, मात्र सभ्यताओं को भिड़ाए रखने और नष्ट करने के प्रोपगैंडे होते हैं; यूरोप को यह बात समझने में 18वीं शताब्दी में हुई एक फ़्रांसिसी क्रांति और 20वीं सदी में हुए दो विश्वयुद्ध लगे थे।

ऐसा नहीं है कि भारत ने कभी युद्ध या क्रांति नहीं देखी, इसी नश्लवाद और जातिवाद की वजह से भारत ने ईशा पूर्व पहली सदी से ले 7वीं सदी तक बौद्ध बने हिन्दुओं का हिन्दुओं ही द्वारा जब तक बौद्ध हथियार ले उठ खड़े नहीं हुए तब तक एक-तरफा जघन्य नरसंहार (वो अलग बात है कि बौद्ध जब अपनी शांति समाधी छोड़ उठ खड़े हुए तो मात्र नौ-नौ हजार ने एक-एक लाख आतताइयों को निबटाया और इनके झींगा-लाला हुर्र-हुर्र प्रवृति के तालिबानी रूप को ठंडा किया|) और इन आतताइयों के इन प्रोपगैंडों की रखी नींव पर फिर आठवीं (720 ad) सदी से ले बीसवीं सदी (1947 ad) तक विदेशी आक्रान्ताओं (मुग़ल, अफगान, पठान, डच, पुर्तगीस, फ्रेंच, अंग्रेज) का गुलामी काल।

लेकिन हमारे यहाँ जो आज सत्ता में आन धरे हैं मजाल है जो यह इतिहास से कुछ सीखने को तैयार हों। इस पर फिर कभी या आगे बात करूँगा, फ़िलहाल आप कैसे दिशाहीन हो रहे हैं उस पर प्रकाश डालते हैं।

क्या आपने जब इतना बड़ा असवैंधानिक निर्णय, जो कि बाबा साहेब आंबेडकर के दिए सविंधान के मूल सूत्र के ही बिलकुल विपरीत है, लेते वक्त यह नहीं विचारा कि अगर कल को सविंधान में प्रस्तावित "यूनिफार्म सिविल कोड (UCC)" जब लागू करेंगे तो यह निर्णय स्वत: ही धत्ता पड़ जायेगा? क्योंकि जब यूनीफ़ॉर्मिटी की बात आएगी तो शिक्षा का क्लॉज़ उसमें से बाहर निकालना ही पड़ेगा। क्योंकि शिक्षा "यूनीफ़ॉर्मिटी" का वो पैमाना हो ही नहीं सकता जो सबको यूनिफार्म बना दे।

अच्छा होता आप अगर सरकार को यह आदेश देते कि पहले सबको दसवीं तक शिक्षित करो, फिर यह नियम लागु करने की बात करना। वाह हरयाणा सरकार ने "जावेद बनाम हरयाणा सरकार" का "दो बच्चे पैदा करने" वाला केस अपनी जिरह में आगे रखा और आपने उसी को आधार बना के निर्णय भी दे दिया? जनाब आज के दिन इस "दो बच्चे पैदा करने" वाले नियम की तो खुद आरएसएस और बीजेपी तक के एमपी जैसे कि साक्षी महाराज, साध्वी प्राची, योगी आदित्यनाथ यहां तक कि कई सारे शंकराचार्य और भगवा ब्रिगेड वाले तक भी धज्जियाँ उड़ा के "चार-चार-पांच-पांच" बच्चे पैदा करने के लिए कहते फिर रहे हैं। मेरी समझ से बाहर है कि "जावेद बनाम हरयाणा" वाले मामले का हवाला देते हुए आपने अभी तक इनकी जुबान बंद क्यों नहीं की, जो अब अपनी सुविधानुसार इसको आधार बनाया और सुना दिया एक लोकतान्त्रिक देश के लोक के 70 फीसदी हिस्से को चुनाव लड़ने से ही बाहर करने का तानाशाही फरमान?

गुस्ताखी माफ़ माननीय, परन्तु आपका यह फैसला किसी तानाशाह की भांति ही कहा जायेगा, इसमें आपने ऐसा कोई मर्म नहीं विचारा जिसमें मानवता और वैचारिकता झलके। बिहार के चुनाव और जनादेश को भी आपने धत्ता बता दिया? मेरे विचार से कोर्ट देश की जनता की मंशा को लागु करने हेतु होते हैं, सरकारों के उलजुलूल ड्रामों को जनता पर थोपने हेतु तो नहीं होते? आप स्थाई हैं सरकार स्थाई नहीं। या आपको भी कल न्याय परिसरों से निकल के चुनाव लड़ने जाना है, जो ऐसा फैसला सुनाया?

खैर इस फैसले को तो जनता अगली सरकार में वापिस करवा ही देगी, परन्तु ऐसा होने में फिर आपकी स्वायत्ता पर प्रश्नचिन्ह लग जायेगा। अब तो जो हुआ सो हुआ परन्तु आगे के लिए एक विचार जरूर रखना चाहूंगा कि शिक्षा के पैमाने कर्म के आधार पर निर्धारित होने चाहियें, स्टैण्डर्ड, धर्म या राजनीति के आधार पर नहीं। फ़्रांस, यूरोप, अमेरिका ने इस बात को समझा और लागू किया, आप भी जितना जल्दी समझेंगे उतना जल्दी देश सही दिशा में तरक्की करेगा।

साफ़ दिख रहा है कि आपका यह फैसला जाने में या अनजाने में जैसे भी हो परन्तु देश में वर्णीय, जातीय और नश्लीय कटटरता को बढ़ावा देने वाला है। इसके पीछे जो कोई ताकतें हों परन्तु यह याद रखियेगा अगर कल को भारत में दूसरी फ़्रांसिसी क्रांति हुई, तो आप अपने दामन को दागदार होने से नहीं बचा पाएंगे। और भारत में यह क्रांति हो, इसकी गर्त में अन्य कटटरवादी ताकतों के साथ-साथ आप खुद भी आहुति डाले जा रहे हैं। अगर आपको इसका भान नहीं है तो भान ले लीजिए और समय रहते अपने दामन को छिंटक लीजिये।

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

Tuesday, 8 December 2015

अंधभक्ति कैसे इंसान का महामूर्ख बना देती है, उसका एक उदाहरण देखिये!

पुराण-ग्रन्थ-शंकराचार्य कहते हैं कि गंगा नदी को राजा हरिश्चंद्र की वंशबेल की 16वीं पीढ़ी में पैदा हुए राजा भागीरथ जी धरती पर लाये थे|

और यही ग्रन्थ-पुराण यह भी बोलते हैं कि राजा हरिश्चंद्र को अपना सबकुछ विश्वामित्र को दान दे, पत्नी-बेटे को बेच, खुद को भी बनारस यानि काशी के गंगाघाट के श्मशान घाट पर मुर्दे फूंकने की नौकरी करनी पड़ी थी|

अब कोई समझायेगा कि जब गंगा नदी को धरती पर लाने वाला ही राजा हरिश्चंद्र से 16वीं पीढ़ी में आ के पैदा हुआ, तो राजा हरिश्चंद्र के वक्त बनारस में गंगा कहाँ से आ गई?

विशेष: म्हारे गाम के भीण्डे खाग्गड़ की तरह हर वक्त नथुनों को फुला के रखने वाले अंधभक्त चाहें तो मुझे इस सवाल करने पे पाकिस्तानी, हिन्दू एकता का दुश्मन जो चाहे बरबड़ा सकते हैं| परन्तु विजडम कोई शब्द सीखा हो या तुम्हें अंधभक्त बनाने वालों ने सिखाया हो तो मेरे इस सवाल का जवाब भी दे देना|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

Monday, 7 December 2015

"अनपढ़ जाट पढ़े जैसा, और पढ़ा जाट खुदा जैसा!" - सार्थकता उत्सव - 23 दिसंबर से 9 जनवरी तक


पृथ्वी पर नहीं हुए ऐसे सूरमे-मसीहा दूजे कहीं और! दीन-हीन सेवा, धर्म-देशभक्ति, मानवता के सिरमौर!!

इन 17 दिनों (23 दिसंबर से 9 जनवरी) की अल्पावधि में सिलसिलेवार जुड़ी यह ऐतिहासिक तारीखें, मुझे अहसास दिलाती हैं कि जैसे खापरात्रे और जाटरात्रे इन्हीं दिनों आते हों| इस पर वैसे तो सर्वसमाज से क्योंकि ये हुतात्मा सर्वसमाज के थे फिर भी जाट-समाज से अनुरोध करूँगा कि इन दिनों के दौरान नवरात्रे, रोजे वालों की तरह क्या हम खापरात्रे या जाटरात्रे नहीं मना सकते? जय यौद्धेय! - फूल मलिक




बाजरे का सेवन लाभकारी है।......


- बाजरे की रोटी का स्वाद जितना अच्छा है, उससे अधिक उसमें गुण भी हैं।
- बाजरे की रोटी खाने वाले को हड्डियों में कैल्शियम की कमी से पैदा होने वाला रोग आस्टियोपोरोसिस और हड्डियों के रोग नहीं होंगे-बाजरे में भरपूर कैल्शियम होता है जो हड्डियों के लिए रामबाण औषधि है
- बाजरा खाइए,--खून की कमी यानी एनीमिया नहीं होता।
- बाजरा लीवर से संबंधित रोगों को भी कम करता है।लीवर की सुरक्षा के लिए भी बाजरा खाना लाभकारी है।
- गेहूं और चावल के मुकाबले बाजरे में ऊर्जा कई गुना है।
- बाजरे में आयरन भी इतना अधिक होता है कि खून की कमी से होने वाले रोग नहीं हो सकते।
- खासतौर पर गर्भवती महिलाओं ने कैल्शियम की गोलियां खाने के स्थान पर रोज बाजरे की दो रोटी खाना चाहिए।
- वरिष्ठ चिकित्साधिकारी मेजर डा. बी.पी. सिंह के सेना में सिक्किम में तैनाती के दौरान जब गर्भवती महिलाओं को कैल्शियम और आयरन की जगह बाजरे की रोटी और खिचड़ी दी जाती थी। इससे उनके बच्चों को जन्म से लेकर पांच साल की उम्र तक कैल्शियम और आयरन की कमी से होने वाले रोग नहीं होते थे।
-इतना ही नहीं बाजरे का सेवन करने वाली महिलाओं में प्रसव में असामान्य पीड़ा के मामले भी न के बराबर पाए गए।
- डाक्टर तो बाजरे के गुणों से इतने प्रभावित है कि इसे अनाजों में वज्र की उपाधि देने में जुट गए हैं।
- बाजरे का किसी भी रूप में सेवन लाभकारी है।
- उच्च रक्तचाप, हृदय की कमजोरी, अस्थमा से ग्रस्त लोगों तथा दूध पिलाने वाली माताओं में दूध की कमी के लिये यह टॉनिक का कार्य करता है।
- यदि बाजरे का नियमित रूप से सेवन किया जाय तो यह कुपोषण, क्षरण सम्बन्धी रोग और असमय वृद्ध होने की प्रक्रियाओं को दूर करता है।
- रागी की खपत से शरीर प्राकृतिक रूप से शान्त होता है। यह एंग्जायटी, डिप्रेशन और नींद न आने की बीमारियों में फायदेमन्द होता है। यह माइग्रेन के लिये भी लाभदायक है।
- इसमें लेसिथिन और मिथियोनिन नामक अमीनो अम्ल होते हैं जो अतिरिक्त वसा को हटा कर कोलेस्ट्रॉल की मात्रा को कम करते हैं।
- बाजरे में उपस्थित रसायन पाचन की प्रक्रिया को धीमा करते हैं। डायबिटीज़ में यह रक्त में शकर की मात्रा को नियन्त्रित करने में सहायक होता है।


Courtesy: Attar Kadyan!

Saturday, 5 December 2015

बाबा साहेब आंबेडकर की मृत्यु पर फैलाये जा रहे षड्यंत्र से जाट बचें!

कुछ शरारती तत्वों द्वारा बाबा साहेब की मौत को भरतपुर के पूर्व महाराज बच्चू सिंह से जोड़ कर प्रचारित किया जाता है| ऐसा सिर्फ और सिर्फ जाट-दलित भाईचारे में दरारें डलवा जाट-दलित को अलग-अलग रखने हेतु मंडी-फंडी मति के लोग करते हैं|

क्या अगर वाकई में महाराजा जी ने बाबा साहेब हो संसद में गोली मारी होती तो गांधी को गोली मारने पर जैसे गोडसे की ट्रायल हो के फांसी हो गई थी, महाराजा साहब की भी ऐसे ही ट्रायल नहीं हुई होती क्या?

बाबा साहेब एक तो डायबिटीज के मरीज थे ऊपर से उनकी द्वितीय स्वर्ण पत्नी का इसमें षड्यंत्र बताया जाता है| डायबिटीज या उनको भोजन में दिए गए स्लो पाइजन की वजह से उनकी मौत हुई बताई जाती है|

ठीक वैसे ही जैसे सर छोटूराम को भी मंडी-फंडी षड्यंत्रकारियों द्वारा स्लो-पाइजन दे के मरवाने की चर्चा होती रहती है|

इसलिए नादाँ जाट, इस हीरोगिरी में चढ़ के अपने असली मित्र दलित से दूरी बनाने जैसी ऐसी कोरी षड्यंत्री अफवाओं को सोशल मीडिया पर फैलाने से बचें और अपने नंबर वन दुश्मन मंडी-फंडी के इन प्रोपगैंड़ों के मात्र भावना और घृणा पर सवार हो शिकार होने से बचें!

जय भीम! जय छोटूराम!

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

जाटू उर्फ़ खाप सभ्यता की उत्तरी भारतीय समाज को स्वर्णिम देन!

क्योंकि इसका ग्लोबल स्टैण्डर्ड है, इस हेतु खापलैंड पर रोजगार/आसरे हेतु आन बसने वाली माइग्रेटिड सभ्यताएं, कृपया इसको समझें!



जय यौद्धेय! - फूल मलिक

Friday, 4 December 2015

और इसलिए मुझे मेरी जन्मस्थली निडाना नगरी पर गर्व है!

अभी विगत 1 दिसंबर से 3 दिसंबर 2015 तक मेरे गाँव निडाना नगरी, जिला जींद, हरयाणा में विशाल कबड्डी दंगल सजा| दंगल ऑर्गनाइज करने का खर्च आया करीब 4 लाख रूपये और गाँव में खेल-हाल बनाने हेतु चंदा आया 15 लाख रूपये|

इस चंदे से मेरे गाँव के लोगों ने फैसला लिया कि गाँव-गुहांड के बच्चों को उच्च स्तर का खिलाडी बनाया जा सके इसके हेतु कुश्ती, कबड्डी व् अन्य खेल सुविधाओं से सुसज्जित खेल-हाल बनाया जाएगा|

यानि मेरी नगरी ने अपने पुरखों की स्थापित परम्परा को आगे जारी रखते हुए, फिर से एक ऐसी सार्वजनिक सुविधा बनाने का फैसला लिया है जो कि वाकई में गाँव-गुहांड के सैंकड़ों खिलाडियों का उद्दार करेगी|

हालाँकि किसने कितना चंदा दिया, उसकी सूची मुझे मिल चुकी है परन्तु उसको यहां लिखना व्यक्ति-विशेषों का महिमामंडन हो जायेगा| इसलिए मैं उस पर ना जाते हुए, सीधा यही कहूँगा कि इससे पहले भी मेरे गाँव में ऐसे बड़े स्तर पर चंदा जुटाया जाता रहा है|

ज्यादा पुरानी तो याद नहीं परन्तु पिछले करीब 100 सालों में, नगरी और समाज के लोगों के सहयोग से बनी ऐसी सार्वजनिक सुविधाएँ मुझे याद हैं|

1) जैसे 1936 में दादा चौधरी जागर जी की दान की जमीन और बाकी चंदे से उस जमीन पर बना इलाके का सबसे प्राचीन स्कूल, जिसकी वजह से आसपास के गुहांडों में आज निडाना में सबसे ज्यादा ग्रेडुएट्स हैं| खानपुर महिला विश्वविधालय, गोहाना को इसके संस्थापक भगत फूल सिंह के जमाने से जाने वाला चंदा व् जमीन, विभिन्न गुरुकुलों और गौशालाओं में अविरल जाता रहने वाला अन्न-धन|
2) 1990 में स्वामी रत्नदेव के सानिध्य में बनी 34 कमरों की कन्या कॉलेज की ईमारत (जिसको उनकी मृत्यु उपरांत सरकारी सेकेंडरी स्कूल में तब्दील कर दिया गया था)।
3) इसी दौर में गाँव में सम्पूर्ण शराबबंदी हेतु गाँव के युवाओं की बना "युवा नशामुक्ति दल", जो जब तक सक्रिय रहा, गाँव के किसी भी घर में शराब नहीं रहने दी| इस दल को आज फिर से वापिस क्रियाशील होने की जरूरत है|
4) फिर 1998 में सरकारी पानी सप्लाई की योजना गर्क हो जाने की वजह से बिना सरकार का इंतज़ार किये, गाँव के लोगों द्वारा खुद के चंदे से गली-गली पाइपलाइन बिछा के घर-घर वाटर-सप्लाई का इंफ्रा डेवलपमेंट करना, जिसकी वजह से आज गाँव की कोई भी औरत गाँव की फिरनी से बाहर पानी हेतु भटकती नहीं फिरती|
5) अभी 2008 से स्वर्गीय डॉक्टर सुरेन्द्र दलाल की प्रेरणा व् मार्गदर्शन में शुरू हो निरंतर चल रही अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त "खाप-खेत-कीट-पाठशाला"| जिसकी वजह से गाँव को "कीट-कमांडोज़" का गाँव होने की ख्याति मिल चुकी है|
6) और अब यह अनूठा साहकार| वाह मजा आ गया|

यहां एक बात याद करता हुआ चलूँगा कि जब 1990 के दशक में स्वामी रत्नदेव जी को गाँव ने कन्या कॉलेज के लिए 17 कमरों का चंदा इकट्ठा किया था तो सरकार ने उसको डबल करते हुए 34 कमरों का कर दिया था| तो नगरी और इस परियोजना के मौजिज लोगों को चाहिए कि खटटर सरकार से मिला जाए| मुझे विश्वास है कि ऐसे सार्वजनिक कामों के लिए मिलने वाले चंदे को सरकार दोगुना कर देती है| कम-से-कम पिछली सरकारों ने तो किया है इसमें भी होना चाहिए| अगर हुआ तो खेल-हाल के लिए एकत्रित 15 लाख का 30 लाख तो सीधा मिल जायेगा|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

कौन कहता है कि जाट को बीजेपी/आरएसएस की सरकार आने से सिर्फ नुकसान ही हुआ है?

एकमुश्त आरएसएस/बीजेपी का राज आने से हरयाणा में इतना तो फायदा हुआ है कि कल तक जो दलित जाट में ही अपना सबसे बड़ा दुश्मन देखता था या उसको प्रोपगैंडे करके जाट को उसका सबसे बड़ा दुश्मन दिखाया जाता था, आज उसको असली और सीधा दुश्मन स्पष्ट नजर आने लगा है|

समझ तो पिछड़े को भी आ गया है कि उसका असली दुश्मन कौन है, उदाहरण के तौर पर बिहार; परन्तु हरयाणा में शायद राजकुमार सैनी जैसे प्रोपगैंडा के तहत लांच किये लीडरों की वजह से हरयाणा का पिछड़ा अभी जल्दबाजी में नहीं दिखना चाहता| कोई नी, हर फसल खरीद पर ऐसे ही अभी हाल के हुए "धान खरीद घोटाले" होते रहे तो पिछड़ी जातियों में किसान-वर्ग की जातियों वाले पिछड़े को तो पांच साले होते-होते जरूर दिखने लग जायेगा|

अत: क्या यह फायदा किसी भी बड़ी ग्रांट या योजना से कम है कि इनकी बदौलत दलित को अब सीधा और असली दुश्मन दिखने लगा है| बस जो वर्ण और जाति की उंच-नीचता में पड़ा जाट है, अब वो भी इस उंच-नीचता को उन्हीं पर उड़ेल दे जो इसके रचियता हैं|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

मेरी समझ से बाहर है कि आखिर क्यों आरएसएस से ले विहिप तक के तमाम हिन्दू संगठन "हरयाणा सर्वखाप के बलिदानों" को अपने स्तुतिगानों में जगह नहीं देते?

क्या यह जाटों की थ्योरी और फिलोसोफी रही हैं इसलिए वरना हैं तो यह भी हिन्दू ही?

अब पृथ्वीराज चौहान के हारते ही थोड़े ही आखिरी हार हो गई थी हिन्दुओं की? चार लड़ाइयां तो अकेले मुहम्मद गौरी के उत्तराधिकारी से सर्वखाप ने लड़ी थी|

पहली लड़ाई कुतबुद्दीन ऐबक के 1206 में दिल्ली की गद्दी पे बैठते ही दिपालपुर रियासत के राजा जाटवान जी महाराज (मलिक गठवाला गोती जाट) ने ऐबक को पूरे तीन साल तक नचाये रखा, जब तक वह महान् जाट योद्धा लड़ाई में शहीद नहीं हो गये।

दूसरी लड़ाई में सर्वखाप पंचायत हरयाणा की सेना ने वीर यौद्धेय विजयराव ‘बालियान’ की अगुवाई में ऐबक की सेना को उत्तर प्रदेश के भाजु और भनेड़ा के जंगलों में पछाड़ा|

तीसरी लड़ाई में वीर यौद्धेय भीमदेव राठी की कमान में बड़ौत के मैदान में ऐबक को पीटा|

चौथी लड़ाई में वीर यौद्धेय हरिराय राणा की कमान में दिल्ली के पास टीकरी (आज का हरयाणा-दिल्ली बॉर्डर) में भागने के लिए मजबूर किया।

और यह तो सिर्फ कुतुबुद्दीन ऐबक की सर्वखाप हरयाणा ने क्या दुर्दशा की थी उसका अध्याय है, मुंहमद तुगलक भी जिस तैमूर लंगड़े के आगे हथियार डाल गया था, उसको कैसे पीट-पीट के खदेड़ा था उसका अध्याय तो अपने आप में खापों के "भारतीय स्पार्टन" होने का बखान करता है| आगे का "गॉड गोकुला" का चैप्टर और ऐसे ही दर्जनों अध्याय उठा दूँ तो रोंगटे खड़े हो जाएँ|

क्या मतलब इन आरएसएस या विहिप वालों को कोई लोचा है क्या जाट के साथ? क्या कभी देखे हैं यह अध्याय आरएसएस के "पंचजन्य" में छपे आजतक? और नहीं तो क्यों नहीं?

आखिरकार क्यों पृथ्वीराज को आखिरी हिन्दू सम्राट और गुरु तेग बहादुर को पहला हिन्दू धर्म रक्षक ठहराते हैं यह लोग? यह पृथ्वीराज और गुरु तेगबहादुर के बीच हरयाणा सर्वखाप के बैनर तले विभिन्न समयों पर दी कुर्बानियों को कब कुर्बानियां मानेंगे यह लोग?

क्या वाकई में यह लोग जाटों से इतनी नफरत करते हैं और दोहरा रवैया अपनाते हैं? इनको मुस्लिमों से बचाने के लिए चाहियें तो जाट और हिन्दू वीरों के गान के नाम पे उठाये फिरते हैं या तो पौराणिक किरदारों को या फिर हारे हुए राजाओं को|

शायद यह लोग असली वीर को वीर कहने और लिखने की कभी हिम्मत नहीं पैदा कर पाये, इसीलिए देश गुलामियों पे गुलामियाँ झेलता गया| तब तो तब आज भी इनकी यही लकीर है, कुछ नहीं सीखा इन लोगों ने गुलामी के दौर से| आज के दिन मोदी के अधिनायकवाद महिमामंडन पर मशहूर उद्योगपति रत्न टाटा की वो टिप्पणी बिलकुल सही है कि अगर ऐसे ही थोथे देशभक्ति के माहौल खड़े किये जाते रहे तो देश फिर से गुलाम हो जायेगा|

और कोई नहीं तो क्या अंधभक्त बने और आरएसएस के कच्छे पहने हुए आज के कुछ बावले जाट ले पाएंगे इन लोगों से इन बातों का जवाब?

सोर्स पुस्तक - ‘सर्व खाप पंचायत का राष्ट्रीय पराक्रम’ व ‘भारतीय इतिहास का-एक अध्ययन’, जाट इतिहास

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

XX (female) and XY (Male) chromsomes gimmic is not a hard and fast principle for birth of particular gender!

I have a tripplet (one husband and two wives) in my knowledge. After birth of 5 girls in continuation from first couple, the first wife insisted her husband to marry her cousin sister. And so happened, the couple became tripplet. And here happened what challenges the chromosomic gimmic, the second wife gave birth to a boy from same husband.

Any doctor, scientist or professor, who would like to assess it with any scientific reason?

Man is generally considered responsible for which sex would take birth from his mating with his partner, but above said case side aligned the theory. Fatals the saga that it depends on male's chromosomes if it will be a boy or a girl. Here in this case it proved otherwise.

Phool Kumar Malik

Thursday, 3 December 2015

खप्परभरणा, जा मरखप!

हरयाणा में खप्परभरणा अक्सर उसको कहा जाता है जो बिलकुल ही बेख़ौफ़ और दुर्दांत किस्म का बालक हो| पुराने जमाने में खाप यौद्धेय जैसे दुश्मन की लाशों के खप्पर भर दिया करते थे; ठीक वैसे ही ऐसे लक्षण वाले बालक को खप्परभरणा और बालिका को खप्परभरणी कहा जाता है|

किस अनाड़ी बालक को बार-बार मनाने पर भी जब वो ना माने तो बड़े अक्सर झल्ला के उसको कहते हैं कि 'जा मरखप' यानी तू मरना जरूर परन्तु खाप वालों की तरह नाम कमाते हुए|

कितनी शानदार शब्दावली रही है हरयाणवी, जिनके अंदर आपको गुस्से में कोसा भी जाता है तो इस तरीके से कि आपका गुस्सा-क्रोध-जोश ऐसी दिशा में जा के लगे कि आप महानता ही कमाओ|

नादान हैं वो लोग जो हरयाणवी भाषा को भद्दी या लठैत की भाषा कहते हैं| इनके शब्दों के अर्थ और इनका मर्म जानो तो इस भाषा से स्वत: ही प्यार हो जाए| और मुझे तो फिर होना लाजिमी ही है, क्योंकि हरयाणवी भाषा के असीम ज्ञानकोष मेरी दादी से इन शब्दों के शब्दार्थ जानते हुए बड़ा हुआ हूँ|

जाटनी का जाया हूँ, "दादा खेड़ा" धर्म निभाऊंगा।
ना मूर्ती पूजनी ना पाखंड धारणे, लोकतंत्र आगे बढ़ाऊंगा||
गॉड गोकुला, बाबा धुला बाल्मीकि संग सूरजमल स्मारक बनाऊँगा।
वीर प्रसूता महारानी किशोरी संग भागीरथी और रामप्यारी गुजरी का गूँज उठा नारा है,
कहो गर्व से हम खप्परभरणे हैँ और समस्त खापलैंड हरयाणा है।

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

Wednesday, 2 December 2015

माइग्रेटेड सभ्यताओं को अंगीकार करते-करते खुद हरयाणवी सभ्यता बनी एक चरागाह!

अगर अब भी हरयाणवी जनमानुष ने जाट बनाम नॉन-जाट के अखाड़ों से निकल के इसकी सुध नहीं ली तो वो दिन दूर नहीं जब हरयाणवी के नाम पर उज्जड़-बियाबान के सिवाय कुछ नहीं मिलेगा|

जाट से नफरत करते हो करो, परन्तु हरयाणवी तो तुम भी हो कि नहीं?...
जाट से नफरत करते हो करो, परन्तु हरयाणा के नेटिव घरानों में तो तुम भी पैदा हुए हो कि नहीं?
जाट से नफरत करनी है करो, परन्तु हरयाणवी और हरयाणा की एथिकल आइडेंटिटी पर सवाल उठाने वाले खटटरों को जवाब देना तो तुम्हारा भी बनता है कि नहीं?
जाट से नफरत करनी है करो, परन्तु हरयाणा की हरयाणवी बोली तो तुम भी बोलते हो कि नहीं?
जाट से नफरत करनी है करो, परन्तु हरयाणवी बाणा तो तुम भी पहनते हो कि नहीं?
जाट से नफरत करते हो करो, परन्तु हरयाणा से बाहर दूसरी स्टेट में जा के खुद को हरयाणा का बोलते हो कि नहीं?
जाट से नफरत करनी है तो करो, परन्तु हरयाणा से बाहर हरयाणवी कहलाते हो कि नहीं? तुम छुपाना भी चाहते होगे परन्तु क्या तुम्हारे हाव-भाव तुम्हारे हरयाणवीपने को छुपने देते हैं?


तो आखिर कब वो दिन आएगा जब हम इस जाट बनाम नॉन-जाट के दंगल से बाहर निकल के अपनी हरयाणवीपने की पहचान को कायम रखने हेतु एक दिशा में सोचेंगे?

यह जो माइग्रेटेड हो के आ रहे हैं, यह तो हमारी सभ्यता और संस्कृति को नहीं संजोएंगे, तीन-चार पीढ़ियां भी यहां निकाल लेंगे तो भी नहीं| नहीं यकीन होता मेरा तो मनोहरलाल खट्टर ने हर्याणवियों को लेकर क्या ब्यान दिया वो तो पढ़ा-सुना-समझा होगा? अत: इससे साबित है कि इनके लिए कितने ही अपने संसाधन बंटवा लेना, रोजगार बंटवा लेना परन्तु अंत में तुम्हारी सभ्यता को तो संभालना तुम्हें ही होगा| वो नहीं संभालेंगे जो देश के बॉर्डर पार से आये हों या राज्यपार से|

क्या जाट से नफरत करने के चक्कर में या एक पल को अगर इसको मिटाना भी चाहते हो तो इसको मिटाने के चक्कर में अपनी खुद की एथिकल पहचान तक को मिटा दोगे? हरयाणवी माँ तुम्हारे मुंह को तांक रही है, सुध ले लो इसकी| वरना माँ ही नहीं रही तो अनाथ घूमोगे, बिना पते के पत्र की भांति| हमें जगाना होगा अपने आपको, अपने जनमानस, हमें जगाना होगा ताकि हमारी सभ्यता चरागाह ना बन जाए|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

तथाकथित राष्ट्रवादियों को जब संख्या-पैसा और पावर मिलती है तो!

आपने अक्सर राष्ट्रवादी एजेंटो और इनके कार्यकर्ताओं को यदाकदा आपको रिझाने अथवा अपने प्रभाव में लेने के लिए अक्सर एक माइनॉरिटी रिलिजन की यह कह के बुराई करते हुए आपको डराने के प्रयास करते हुए देखा होगा कि "देखो जब यह 10-15 प्रतिशत होते हैं तो यह आपके नीचे रहते हैं, जैसे ही 25-30% हुए तो आपसे बराबरी करने लगते हैं और सर उठाने लगते हैं और जैसे ही यह 40-50% पहुंचे तो आपको दबाने की कोशिश करते हैं और अगर हुए 50% से ज्यादा तो आपको कुचल देते हैं| इसलिए इनके चलते हम और हमारा धर्म खतरे में हैं, इनको मारो, काटो इनसे नफरत करो; आदि-आदि!"

परन्तु वास्तविक हकीकत यह है कि यह लोग खुद इनसे भी क्रूर हैं| इनकी यह क्रूरता ढंकी रहे, इसलिए इन बातों को माइनॉरिटी रिलिजन का निशाना बना के आमजन को डराते हैं, अधिनायकवाद पैदा करते हैं|

सनद रहे मैं यहां किसी को अच्छा अथवा बुरा साबित नहीं कर रहा, ना तथाकथित राष्ट्रवादियों को, ना माइनॉरिटी को और ना ही खुद को| मैं जो सामने रखना चाहता हूँ वो यह कि बुरों में सबसे बुरा कौन है और अच्छों में सबसे अच्छा कौन और कितना|

तो राष्ट्रवादी इनके द्वारा बताये लोगों से भी अधिक बुरा कैसे है; जब इनको संख्या-पैसा और पावर मिलती है तो यह कैसे विश्व की क्रूरतम सभ्यता साबित होती है उसका पटाक्षेप दिखाना चाहता हूँ|

राष्ट्रवादी जब दीनहीन-कमजोर रहता है तो बैठ के षड्यंत्र रचता है, समाज को विघटित करने की प्रणलियों पर मंथन करता है| फिर इनको समाज में एक्सपेरिमेंट के तौर पर फेंकता है, जोनसा एक्सपेरिमेंट सफल हो जाए फिर उसको उठा के भुनाता है| जब तक इसके हाथ में संसाधन और दौलत नहीं आते, तब तक यह भीख भी मांगता है| जी हजूरी, चापलूसी और चमचागिरी भी करता है, ऐसा नहीं है कि बाकी नहीं करते| परन्तु यह दुसरे को नुक्सान पहुंचाने की मंशा से करते हैं, खुद के फायदे तक करते हों, उस तक सिमिति नहीं रहते। तो जब तक इनकी यह गरज रहेंगी तब तक आपकी ठोडी पे हाथ रख-रख के कब ठोडी के नीचे मुक्का दे मारे, इसका पता आपको तभी चलता है जब आपके पैर उखड़ के ऊपर हो चुके होते हैं| फिर जब धीरे-धीरे इसको सत्ता और पैसा नजदीक आता दीखता है तो समाज को जातपात के नाम पर बाँट कर, हर जाति की दुसरे के प्रति घृणा और कमजोरी को भुना कर आपको विघटित कर देता है| और अंत में जब इसके हाथ में सत्ता होती है तो फिर दिन-दोपहरी दिखा-दिखा के आपपे सितम ढाता है|

अभी देख लो हरयाणा में "धान-खरीद" घोटाला दिन-दोपहरी सबकी आँखों के सामने हुआ है| जब तक सत्ता हाथ नहीं आई थी जाट बनाम नॉन-जाट का जहर दबी जुबान करते थे और अब कैसे खुल्लेआम कर रहे हैं| दलितों पे अत्याचार दोगुने हो चुके हैं| दलितों को कुत्ता तक कह जाते हैं, जाटों को भी लठमार, लठबाज, लठतंत्र और पता नहीं क्या-क्या; जबकि खुद लाठी कंधे पे रख के चलते हैं। फर्क सिर्फ इतना है कि जाट लठ समाजहित में उठाता है और यह लोग समाज के विघटन हेतु।

अत: इनका कोई एजेंट राष्ट्रवाद के नाम पर आपको भड़काने आवे तो उसको बोलो कि जा पहले हिन्दू धर्म में जातीय सेक्युलरवाद ला यानी वर्णव्यस्था और जातीय व्यवस्था को मिटा; वरना तब तक माइनॉरिटी से हमें खतरा है कि नहीं उसकी परवाह करनी तू छोड़ दे| क्योंकि तेरी चिंता करने से ना ही तो सोमनाथ का मंदिर लूटने से बचा था, ना ही पृथ्वीराज की जान बची थी, ना ही बाबर को रोका जा सका था, ना ही तैमूरलंग वापिस भेजा गया था, ना ही बिन कासिम तुझसे रोका गया था| इसलिए जा और किसान-दलित-कमेरे के लिए अपनी सरकार से कुछ करवा सकता हो तो ठीक, अन्यथा यह थोथे थूक कहीं और जा के बिलो| इन तिलों में तेल नहीं जो तू मेरे आगे झाड़ रहा है|

इनको सुपोर्ट, ताकत और पैसा देने का क्या नतीजा होता है, वर्तमान हरयाणा और यहाँ की कृषक जातियों से चल रहे इनके दुर्व्यवहार को देखकर भली-भांति समझा सकता है।

जय यौद्धेय! - फूल मलिक