व्यवहार व् भावनाओं के आधार भाषा तीन प्रकार की होती है:
अपने कल्चर के मूल्यांकन का अधिकार दूसरों को मत लेने दो अर्थात अपने आईडिया, अपनी सभ्यता और अपने कल्चर के खसम बनो, जमाई नहीं!
Monday, 7 September 2020
भाषा-भाषा का अंतर् समझिये व् इसी के अनुसार चलिए!
आदरणीय कृष्णचन्द्र दहिया सर आपकी "जाट कृषि व् इतिहास" बारे लेखनी में एक छोटा सा सुझाव!
क्योंकि आप शुद्ध जाट इतिहास पर पुस्तक लिख रहे हैं तो इसको इसके शुद्धतम रूप तक ले जाने बारे कुछ विचार आये, जो इस प्रकार हैं|
Wednesday, 2 September 2020
"माइथोलॉजी मिक्स" से बाहर निकाल "वास्तविक जाट इतिहास" लिखते 20th व् 21st शताब्दी के चेहरे:
इस केटेगरी में भी सिर्फ उन लेखकों का जिक्र होगा जो archeological प्रूफ्स के साथ अपनी लेखनी लिखे हैं|
Friday, 28 August 2020
हिंदी मूवमेंट के जैसे हरयाणवी मूवमेंट!
हिंदी मूवमेंट के जैसे हरयाणवी मूवमेंट:
अगर चलाया जाए तो फंडी इस तरह की किल्की तो नहीं मारेंगे कि:
Wednesday, 19 August 2020
आज पंजाबी फिल्म "मंजे-बिस्तरे" देखी और ऐसी देखी कि बचपन की सौधी से ले फ्रांस आने तक की तमाम बारातें जेहन में घूम गई, वो भी जिनमें बाराती बन के गए और वो भी जो अपने गाम-रिश्तेदारियों में आई|
और एक चीज बड़ी जंची कि आज वाले तथाकथित मॉडर्न लोग, इकनोमिक मॉडल के नाम के सबसे बड़े गधे हैं| बारातों की इकॉनमी तो पुराने पुरखे मैनेज करते थे, आज वाले तो बोर और चौड़ के भूखे, ऐरे-गैरे-नत्थू-खैरों के कारोबार चलवाते हैं, ब्याह-शादी के नाम पर अपने घर का धोना सा धर के| देखो पहले पुरखों के ब्याह-शादियों के इकनोमिक मैनेजमेंट और तुम आज वाले तथाकथित अक्षरी ज्ञान से पढ़े-लिखे परन्तु दिमाग से पैदलों के मैनेजमेंट:
Tuesday, 11 August 2020
अस्थल बोहर मठ, रोहतक के महा-मंडलेश्वर को तीन दिन एक टांग पर खड़ा रहने पर भी नहीं मिली थी निडाना गाम से एक रूपये की भी भिक्षा!
जानिए वह किस्सा कि कैसे बोहर वाले मठ के महामंडलेश्वर को निडाना गाम मोड्डे-बाबाओं के नाम का "छुट्टा हुआ सांड घोषित करना पड़ा था"|
निडाना की झोटा फ़्लाइंग; जो रखती थी गाम में फंड-पाखंड फ़ैलाने वालों की नकेल कस के!
जानिये फंडी क्यों बोलते थे कि "निडाना के जाट तो कसाई सें"|
Wednesday, 5 August 2020
तुम्हारे कल्चर-सिविलाइज़ेशन पर कटाक्ष करने वालों के मुंह व्यक्तिगत टॉपर्स से बंद ना होने, यह होंगे आपसी सर-जोड़ मुहिमों से!
Sunday, 2 August 2020
हरयाणवी सलूमण (सलूणे) यानि हिंदी की राखी!
हरयाणवी पोहंची यानि हिंदी की राखी: हरयाणवी में इसको पोहंची बोलते हैं क्योंकि यह हाथ के पोहंचे (हिंदी में कलाई) पर बंधती है| हिंदी में राखी शायद इसको रक्षा बंधन बोलने से निकाला गया होगा|
वैसे एक राखी थाईलैंड में भी मनाई जाती है: क्योंकि थाईलैंड की सबसे बड़ी इकॉनमी "वेश्यावृति" से चलती है तो वहां सुनने में आता है कि भाई, बदमाश ग्राहकों से अपनी बहन की रक्षा हेतु यह त्यौहार मनाते हैं| खैर, यह उनका उद्देश्य, वह जानें| और अगर यह उद्देश्य और इस वजह से नाम है इसका "राखी" या "रक्षा बंधन" " तो इससे तो म्हारा "सलूमण" नाम ही बेहतर भी और सुथरा-सूचा भी|
चित्र में सलंगित हैं, मेरी बुआओं द्वारा उनके हाथों से बनी, मुझे भेजी, फूंदों वाली शुद्ध हरयाणवी पोहंचीं| वो बुआ-भाण का प्यार ही क्या हुआ जो बाजार की तरफ भागने की बजाये अगर अपने भाई-भतीजों के लिए अपने हाथों से पोहंचीं बुनने की जेहमत नहीं उठा सकती| वैसे पोस्टें-तख्तियां लगाएंगे की "प्यार कोई पैसों से नहीं खरीद सकता"; अरे 90% से ज्यादा खरीद तो रही हो कई दशकों से, हर "सलूमण" पे|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक