हर साल की तरह इस बार भी 14 व 15 अगस्त को भारत व पाकिस्तान में अंग्रेजों से मुक्ति का जश्न बड़ी धूमधाम से मनाया गया | इस खुशी के साथ ही उस समय के लगभग 1.5 करोड़ लोगों ( जिनके बारे में आंकड़ों और कारणों का मैं इस लेख में विस्तार से वर्णन कर रहा हूं ) की बर्बादी की दास्तान जुड़ी हुई है | अगर वर्तमान की जनसंख्या के हिसाब से अनुमान लगाया जाए तो भारतीय उपमहाद्वीप के लगभग 6 करोड लोगों के परिवारों से ये बर्बादी की यादें जुड़ी हुई हैं | इस बारे में उसी समय एक लेख लिखने का विचार आया था लेकिन फिर मन में आया कि इस खुशी के मौके पर निराशाजनक यादों को याद दिलाना ठीक नहीं है| इसलिए तय किया कि या तो सितम्बर के प्रथम सप्ताह या फिर सितंबर के दूसरे सप्ताह में इस पर लेख लिखूंगा | इसलिए आज 12 सितंबर को मैं प्रवीन कुमार, तहसील बादली,जिला झज्जर ये लेख लिख रहा हूं जो संभवत: कल तक पूरा कर लूंगा |
अपने कल्चर के मूल्यांकन का अधिकार दूसरों को मत लेने दो अर्थात अपने आईडिया, अपनी सभ्यता और अपने कल्चर के खसम बनो, जमाई नहीं!
Friday, 21 April 2023
अगस्त 1947 में भारतीय उपमहाद्वीप से अंग्रेजों की विदाई और सितम्बर से लगभग 1.5 करोड़ लोगों की बर्बादी की शुरूआत!
आज "ईद-उल-फितर" के मौके पर आईए जानते हैं कि वेस्टर्न यूपी के मुस्लिम भारत-पाकिस्तान बंटवारे के वक्त पाकिस्तान ना जा के यहीं क्यों रह गए थे!
एक लाइन का जवाब है: सर्वखाप पंचायत के चौधरियों की वजह से| एक चींटी तक नहीं फटकने दी थी सर्वखाप ने इस हिंसा-हेय के नाम पर खापलैंड में, वेस्टर्न यूप में तो खासतौर से|
आप जब खाप-पंचायतों का इतिहास पढ़ते हैं तो आपको 1947 में "कांधला सर्वखाप पंचायत" का चैप्टर मिलता है| हुआ यह था कि उस वक्त जब हिन्दू-मुस्लिम मारकाट चल रही थी व् दक्षिण से ले मध्योत्तर भारत से मुस्लिमों को पाकिस्तान जाने का रास्ता अधिकतर पंजाब बॉर्डर से था जहाँ से दोनों तरफ से धर्म-आधारित जनसंख्या के पलायन हो रहे थे व् देश के नए बॉर्डर की तरफ कई जगह भारी दंगे भड़क गए थे| और क्योंकि खाप-पंचायतें, हमेशा मानवता पर नश्लीय हेय व् हिंसक अति होने के विरुद्ध रही हैं; क्योंकि यह बसासत में गणतांत्रिक हैं व् न्याय यानि सोशल-सिक्योरिटी देने में लोकतान्त्रिक तो जब खाप चौधरियों ने यह देखा तो तुरंत "कांधला" में सर्वखाप पंचायत बुलाई गई और ऐलान हुआ कि खापलैंड से कोई पलायन नहीं होगा; जो जहाँ है वहीँ रहे| इसका वेस्टर्न यूपी में तो इतना जोरदार संदेश गया कि ना तो एक भी दंगा हुआ व् शायद ही कोई-कोई मुस्लिम पाकिस्तान गया इधर से|
और यही वह गणतांत्रिक व् लोकतान्त्रिक सोशियोलॉजी थी, जिस पर तब के यूनाइटेड पंजाब में सर छोटूराम व् यमुनापार चौधरी चरण सिंह की धर्मरहित राजनीति इतनी परवान चढ़ी कि एक ने आज़ादी से पहले ही यूनाइटेड पंजाब पर 25 साल निरतंर राज किया व् दूसरा आज़ादी के बाद देश का प्रधानमंत्री बना|
बंधे रहिए सभी धर्म व् जातियों के साथ, इस एकता व् पुरख-सोशियोलॉजी से व् इसकी प्रमोशन कीजिए!
आप सभी को "ईद मुबारक"!
जय यौधेय! - फूल मलिक
Tuesday, 18 April 2023
सत्यपाल मलिक जी का इंटरव्यू, क्षत्रिय व् अवर्णीय का फर्क क्रिस्टल क्लियर कर देता है!
अवर्णीय यानि पांचवा वर्ण यानि जो ना स्वभाव से, ना कल्चर से, ना DNA से, ना किनशिप से चतुर्वर्णीय व्यवस्था में फिट बैठता और ना बैठा कभी| ऐसा व्यक्ति चतुर्वर्णियों के साथ काम कर भी लेगा तो उसका प्रोटोस्टेंट स्वभाव फायर-बैक करेगा-ही-करेगा| कर्ण थापर का इंटरव्यू इसकी बानगी है| J&K 370 हटना, UT बनना, सरकार भंग करना; सब वहां इनके कार्यकाल में हुआ व् इन्हीं को देश में Z सिक्योरिटी नहीं तो फिर कौन डिसर्व करता है? व् इसी से उनके आत्म-सम्मान को ठेंस लगी है व् उनका भय भी सच्चा है कि क्या मुझे यह लोग ऐसे मुफ्त में ही निबटाना चाहते हैं? जनता ने भी अब सुनी उनकी बात, वरना 2 बार टीवी पे तो वो 2019 में ही बोल चुके थे| खैर, बीजेपी ने इनके साथ जो व्यवहार किया व् उसपे जिस तरह से आरएसएस चुप है; इससे इतना तो है कि कोई भी सत्यपाल जी की बिरादरी का जो इनसे साथ जुड़ा है वह यह नहीं कह सकेगा कि हमें आरएसएस में यथोचित स्थान व् सम्मान दोनों हैं व् उसकी गारंटी भी है|
इधर, अपमान व् डिग्रडेशन तो जो पहले गृहमंत्री थे फिर दूसरे नंबर से तीसरे पे डिफेंस में खिसका दिए गए; मोदी ने सरेआम कितनी बार उनका पब्लिकली अपमान भी किया तो भी वह एडजस्ट करके चलते आ रहे हैं| क्योंकि क्षत्रिय को चतुर्वर्णीय व्यवस्था में शिक्षा ही यह है कि चुप रहो| वीरता भी दिखानी है तो जब बोला जाए तब|
तो यही है अवर्णीय व् क्षत्रिय का फर्क| नादाँ हैं यह "अवर्णीय" जो खामखा अपने DNA, किनशिप एथिक्स सब से लड़ते हैं व् ऐसी व्यवस्था में घुसने को आतुर हैं जो इनकी अंतरात्मा को स्वीकार हो ही नहीं सकती; हकीकत सामने आने पर वह ऐसे ही उबाल मारती है जैसे सत्यपाल मलिक जी की ने मारा|
लोग कहते तो हमें भी है कि हम तो अपनी जॉब या बिज़नेस सिक्योरिटी के चलते इनमें शामिल होते हैं; इतना भर हो तो सही भी है परन्तु यह लोग इनका प्रचार, प्रसार व् आत्मसात करने तक पहुँच जाते हैं; जिसका सीधा-सीधा असर इनके बच्चों पर पड़ता है व् इसी को "शूद्रता" कहते हैं|
जिनको शूद्र कहा गया है उनको भी इनके इस शब्द को ओढ़ने से बचना चाहिए; अन्यथा तो आप इसको ओढ़ के इनके इस शब्द को सत्य स्थापित करते हो; जो कि मानवता के ऊपर सबसे भीषण प्रहार है|
जय यौधेय! - फूल मलिक
Monday, 17 April 2023
"जिस महामानव के कारण 60 के दशक में दुनिया के 100 करोड़ लोग भूखे मरने से बचे, आओ आज उनको जानें…"
आज हम बात कर रहे हैं "हरित क्रांति" के अग्रदूत विश्व विख्यात कृषि वैज्ञानिक राव बहादुर डॉ रामधन सिंह हुड्डा जी की:-

अतीक अहमद के कत्ल ने मोदी की "पसमांदा मुस्लिम्स" को लुभाने की पॉलिटिक्स तहस-नहस कर दी है; साथ ही अखिलेश यादव से भी मुसलमानों का मोह भंग होता दिख रहा है!
विवेचना: क्या अब मुस्लिम "जय श्री राम" वालों की बजाए, "हे राम" या "हर-हर महादेव + अल्लाह-हू-अकबर" वाले अपने पुराने समीकरणों की तरफ तो नहीं मुड़ेगा?
Thursday, 6 April 2023
लंगर व् भंडारे में फर्क!
लंगर: गुरु नानक देव जी के जमाने से चल रहा है| दाता का नाम, पता, ओहदा गुप्त होता है| शुद्ध मानवता की सेवा की सही वाली निस्वार्थ नियत से लगाया जाता है| आसपास जो कोई किसी भी धर्म-जात से भूखा हो, वह खा सकता है|
भंडारा: नाम की भूख, पाप धोने का लालच, बोल रखा था इसलिए खिलाना, तथाकथित मन्नत पूरी हुई तो खिलाना या किसी बात का भय दूर भगाने हेतु खिलाना आदि-आदि| भंडारा स्थल पर सबको पता होगा कि कौन खिला रहा है, अथवा अगला स्वत: ही बड़ा बैनर लगाए मिलता है कि मैं खिला रहा/रही हूँ| इसके साथ एक और अवधारणा जुडी है कि इसको जरूर इलेक्शन लड़ने होंगे, बड़ा समाजसेवक दिखाना चाहता/चाहती है खुद को आदि-आदि| निस्वार्थ शब्द झलका कहीं इसके उद्देश्यों में? बल्कि इसमें तमाम वो वजहें हैं जो लोगों को कम्पटीशन की भावना में डाल के जो इसको नहीं भी करना चाहते हों, उनको भी इसको करने को मजबूर करती हैं| अन्यथा तान्ने एक्स्ट्रा तैयार मिलते हैं कि "के धरती म्ह हाथ टिक रे सें", "कीमें धर्म-कर्म भी कर लिया करो", "धर्म नैं मानदे ए कोन्या के" आदि-आदि|
भंडारों से अच्छा तो म्हारे पुरखों का सदियों पुराना यह सिद्धांत रहा है कि "गाम-नगर खेड़े में कोई भूखा-नंगा नहीं सोना चाहिए" - इसके तहत मैंने मेरी दादी समेत गाम की बहुत औरतों-मर्दों को गाम के किसी भी लाचार व्यक्ति को खाना-कपड़ा देते बालकपन से देखा| गाम की परस में कोई राह चलता रैन-बसेरे रुका तो उसको खाना पहुंचाते/पहुंचवाते देखा (परन्तु वाकई में राहगीर हुआ तो, वरना कोई फंडी-फलहरी इस बात का फायदा उठाने हेतु आया तो वह लठ भी खूब खा के जाता देखा)| और यह लाचार व्यक्ति चाहे जिस किसी जाति-धर्म का रहा हो गाम से, सबके बारे हमारे दादे/दादी यही कहते थे कि "खेड़ों की सदियों पुरानी बसावट से नगर-खेड़ों (भैयों-भूमियों) का यह सिद्धांत रहता आया है| इसका सबसे बड़ा फायदा यह होता था कि अगर गाम-की-गाम में कोई बेऔलादा, निर्धन या बेवारसा बूढा/बुढ़िया/मंदबुद्धि आदि भूखा होता तो वह हक से भी गाम के किसी भी घर में जा के खा सकता था या कोई-कोई घर ऐसे किसी भी जरूरतमंद को स्थाई तौर पर खाना देते रहते थे| घर के आगे से या गली से निकलते वक्त मुलाकात होती तो आगे से पूछ लेते थे कि आज खाना खाया तो सामने वाला बता देता था व् पूछने वाला उसको अपने घर से आदरसहित बिना दिखावे के खाना दे देता था| और यही वह सिद्धांत रहा है "गाम-नगर खेड़े में कोई भूखा-नंगा नहीं सोना चाहिए" जिसके चलते खापलैंड बारे यह कहावत मशहूर हुई कि, "यहाँ के गाम-नगर खेड़ों में कोई भिखारी नहीं मिलता/होता"| अगले की हालत देख, आगे से खुद ही हाथ बढ़ा के बिना तंज-ताने के उसको खाना दे देना; ताकि अगले की सेल्फ-एस्टीम व् सेल्फ-रेस्पेक्ट भी कायम रहे|
आज हम इसको कितना पाल रहे हैं, पता नहीं| आज तो खाना खिलाना भी प्रदर्शन का विषय जो हो चला है या कहो कि फंडियों के फैलाए इस भंडारे के कांसेप्ट ने इससे मानवता निकाल कोरी प्रसिद्धि व् स्वार्थसिद्धि की लालसा का सौदा बना छोड़ा है; जो पूरी हुई कि नहीं यह खुद इसको लगाने वाले अधिकतर को नहीं पता चल पाता|
विशेष: आशा है कि मैंने भंडारे की तमाम सम्भव परिभाषा देने की कोशिश करी है, फिर भी कोई अन्यत्र पक्ष रह गया हो तो इसमें बिना तू-तू मैं-मैं के शांति से बता दीजिएगा; मैं सीखने को हर वक्त तैयार रहता हूँ| हाँ, भंडारे में इतनी ईमानदारी तो है कि सामने वाला घोषित करके बता चुका होता है कि मैं यह इस स्वार्थसिद्धि के लिए कर रहा हूँ; यही इसका पॉजिटिव एंगल है; बाकी धर्म-कर्म का इसमें कोई बीज तब तक आ ही नहीं सकता, जब तक इसमें "निस्वार्थ" का कांसेप्ट नहीं डलेगा; वह डला तो यह लंगर या खेड़ों वाला ऊपर बताया कांसेप्ट हो जाएगा| धर्म किसी भी कम्पटीशन से बाहर रहने का नाम है; वह धर्म कैसे हो जाता है जहाँ कम्पटीशन-जलनवश या लोगों के तानों से बचने हेतु चीजें की जाती हों? भंडारा वही तो है या कहीं धर्म का भी कुछ है इसमें? अच्छी बात है स्वार्थ के लिए भंडारे लगाओ परन्तु फिर इसको धर्म का चोला क्यों पहनाते हो; यह पहनाते हो इसीलिए तुम्हारे आंतरिक भय-क्लेश-द्वेष-लोभ-लालसा कट नहीं पाते व् आजीवन भरमते फिरते हो|
जय यौधेय! - फूल मलिक
Saturday, 25 March 2023
खालिस्तान किसी जाट या जट्ट का कांसेप्ट कभी था ही नहीं और ना हो सकता!
यह कांसेप्ट जगजीत सिंह चौहान का है व् उसी का यह मूवमेंट रहता है; फंडियों के इशारे पे|
फंडी की फिलॉसोफी है कि इसको लोकतंत्र व् गणतंत्र से खासी चिढ है यह इसके जेनेटिक रूप से अपोजिट है| संत भिंडरावाला की मांग हमेशा स्टेटस को ज्यादा राइट्स देने की रही (अमेरिका की तर्ज पर), जिससे कि लोकतंत्र व् गणतंत्र जिन्दा होता है| इससे बचने के लिए फंडी इस मुद्दे को एक काल्पनिक सोच तक ले जाता है जो इसकी एक्सट्रीम फंडी लोग मानते हैं| कि आज स्टेटस को राइट्स दे दिए तो कल को हमारे को कौन पूछेगा| यह पेंशन स्कीम बंद करने जैसा मामला है कि लोगों को आर्थिक तौर पर इतने संबल होने ही मत दो कि वह अपनी रोजी-रोटी को छोड़ लोकतंत्र बारे सोचने का वक्त भी पा सकें, बुद्धि चलाने तक तो पहुंचना ही नहीं चाहिए|
इनको चिढ़ है जब कोई सामाजिक तौर पर समाज में इनसे ज्यादा रेपुटेशन रखता हो या रखने लग जाए| किसान आंदोलन 2020-21 ने इसमें जो भी अग्रणी जातियां या संस्थाएं रही जैसे कि जाट-जट्ट व् खाप और गुरूद्वारे; इन चारों का विश्व स्तर पर रुतबा बढ़ा है| और इसको बढ़ाने में सहायक किसान आंदोलन के क्योंकि सूत्रधार सिख थे तो अब यह खालिस्तान का फिर से मुद्दा इनका हवा दिलवाया हुआ है देश व् विदेश दोनों जगह| ताकि जट्टों की रेपुटेशन डाउन की जाए व् इनसे जाट हतोत्साहित हो जट्टों से अलग हो जाए| इससे ज्यादा कुछ भी नहीं है यह मामला|
संत भिंडरावाला हो या कोई और जट्ट उसने हमेशा खालसराज की बात करी; इसको एक स्टेप आगे के पंख फंडी लगवाते हैं लोगों को पैसे फेंक कर| फिर भी किसी खालसा वाले को कहना ही है तो वह यह लाईन ले कि हम पूरे देश को ही खालिस्तान बनाएंगे जैसे यह हिन्दू राष्ट्र बनाना चाहते हैं| और जो वाकई में फंडियों से लड़ने की सोच रखता होगा वह इस लाइन पे चल के ही काम करेगा और ऐसे संत भिंडरावाला जी ने किया था|
दूसरा पार्ट यह भी देखो कि यह किसी जाट या जट्ट का कांसेप्ट क्यों नहीं है? क्योंकि खालिस्तान में पाकिस्तानी पंजाब का भी आधा पार्ट आता है, क्या उधर कोई हलचल दिखती है? नहीं, hence proved, it has been a purely fandi agenda!
जय यौधेय! - फूल मलिक
Friday, 24 March 2023
इस पर अब शायद ही कोई शंका हैं कि बिश्नोई पंथ के संस्थापक जांभोजी का जन्म जाट जनजाति में हुआ!
इस पर अब शायद ही कोई शंका हैं कि बिश्नोई पंथ के संस्थापक जांभोजी का जन्म जाट जनजाति में हुआ।
नमन प्रणाम आसन, शशांक आसन और नमाज; तीनों को करने की पोजीशन व् उद्देश्यों में समानता देखिए!
फंडियों का बचकानापन देखिये:
नमन प्रणाम आसन व् शशांक आसन, हिन्दू करे तो योगा;
और इन्हीं दोनों आसनों में मुस्लिम नमाज अदा करते वक्त होता है|
परन्तु स्वमहिमा में अंधे फंडी क्या बर्गलाएँगे, उसका क्या-क्या कह के मजाक बनाया जाता है कहने की जरूरत नहीं|
बर्गलाएँगे कि हम जो करते हैं वह योग है, तप है; परन्तु उसी को मुस्लिम करे तो उपहास उड़ाएंगे; जबकि मुस्लिम वाले में वह एक नहीं बल्कि दो कार्य सिद्धि एक साथ कर रहा होता है; एक तो अल्लाह को प्रार्थना व् दूसरा जो योग वाले के साथ कॉमन है यानि दिमाग में ब्लड-सर्कुलेशन बढ़ाना|
और जब इसको करने की बात आती है तो देखें कि किस धर्म वाले इसको करने में सबसे अधिक नियमित हैं? हर कोई कहेगा मुस्लिम| यह लोग रोज दिमाग में ब्लड-सर्कुलेशन कर लेते हैं व् योग वाले कितने % करते हैं; शायद कुल के 10% भी नहीं|
आज के मुस्लिम इसके पीछे क्या तर्क देते हैं, एक तर्क देते हैं या दोनों तर्क देते हैं; परन्तु यह माइंड में ब्लड-सर्कुलेशन सबसे नियमित करते हैं| इनके जिस भी पैगंबर ने यह तरीका इनको दिया, जब भी दिया कमाल का दिया है|
ऐसे ही इनका खतने का सिद्धांत है, इस पर फिर कभी लिखूंगा| और खतना भी सिर्फ मर्द का नहीं, औरत का भी| इसका भी खूब मजाक उड़ाते हैं लोग, परन्तु यह प्रैक्टिस कितने मानसिक-शारीरक-मनोवैज्ञानिक बल बढ़ाने के फायदे देती है; जानोगे तो हैरान रह जाओगे|
फ़िलहाल बात यह है कि कोई किसी का मजाक तभी उड़ाता है जब उसको सामने वाले से इन्फेरियरिटी काम्प्लेक्स हो; अब फंडी जब खुद योगा में यही करते हैं जो मुस्लिम नमाज में करते हैं तो फंडी ही क्यों नमाज की पोजीशन का मजाक करते पाए जाते हैं? मुस्लिम तो नहीं देखे कभी नमन योगा व् शशांक योगा पर उपहास करते। बस यही गंभीरता इनको विश्व में एज देती है|
बाकी कोई रोता-पीटता इस पोस्ट तक पे भी कुछ भी बकता रहे!
जय यौधेय! - फूल मलिक
Wednesday, 22 March 2023
कैसे तोड़ा तथाकथित 35 बनाम 1 करके सरपंची का चुनाव जीतने की चाह रखने वाले फंडियों का सपना!
फरवरी 2016 में नया ईजाद हुआ 35 बनाम 1 का प्रपंच, कईयों में आखिरी तीर व् आश की तरह आज भी बचा हुआ पाया गया है| ऐसे में हमने भी 2-4 गांव में इन प्रपंचियों के सपनों को कुछ निम्नलिखित तरीके से पानी पिलाया| 35 बनाम 1 बार-बार लिखूंगा तो लम्बा शब्द हो जाएगा, इसलिए इससे आगे इसको "फंडी" पढ़ें!
Wednesday, 15 March 2023
15 मार्च 1206 यानि आज का दिन!
15 मार्च 1206 यानि आज का दिन - वह ऐतिहासिक दिन जब खोखर खाप चौधरी दादावीर रायसाल खोखर जी व् उनकी खाप-आर्मी ने 1192 में मारे किंग पृथ्वीराज चौहान के कातिल मोहम्मद ग़ोरी को मारा था!
त्यौहार-उत्सव मनाने हैं तो इन तारीखों के मनाया करो; इन वास्तव में हो के गए पुरख-यौधेय सकल भगवानों के मनाया करो; उस खाप-मिल्ट्री कल्चर के मनाया करो, जिससे यह बनते आये| बाकी भी मना लो, जो मनाना हो परन्तु इनको मनाने व् भगवान मानने से कौन रोकता है या रोक सकता है?
बताओ जिन कामों के लिए तथाकथित बड़े-बड़ों के हांगे लाग लिया करते; इहसे-इहसे काम म्हारे चौधरी चालते-फिरते कर दिया करते| बाकी चौधरियों ने जब-जब राजे-रजवाड़े भी बनाये तो ऐसे ही बेमिसाल बनाये, चाहे वो पंजाब की मिसलों के बनाये हों या थानेसर-भरतपुर-बल्लबगढ़-मुरसन आदि वाले खाप-चौधरियों के हों!
जय यौधेय! - फूल मलिक
Saturday, 11 March 2023
Jat People Chronology
- राजा पोरस (सिकन्दर को हराया)
- राजा यशोधर्मन विर्क (हूणों को हराया)
- राजा स्कंद्रगुप्त (यूरोप में जाकर राज किया)
- राजा कनिष्क (पहली सर्वखाप मीटिंग सौंख)
- राजा विक्रम पंवार (21 देशों को जीता)
- राजा समुद्रगुप्त (जाट राज विस्तार)
- रानी तोमिरिस (साइरस को मारा)
- हर्षवर्धन (जाट सर्वखाप पुनर्गठन)
- अनंगपाल सिंह 1st (इंद्रप्रस्थ बनाया)
- सलक्षपाल (चौधराहट प्रणाली लागू की)
- अनंगपाल 2nd (8 खेरे और दिल्ली बसाई)
- जाटवान मलिक (ऐबक हराया)
- रायसाल खोखर (गौरी मारा)
- नाहरपाल (खिलजी हराया)
- बच्छराज(मेरा खेरा बाबा)
- सुरत सिंह (राणा कुब्बा हराया)
- गोकुल जाट (औरंगजेब हराया)
- सुखपाल सिंह (औरंगजेब हराया)
- राजाराम(सिकंदरा खोदा)
- रामकी चाहर (औरंगजेब हराया)
- हठी सिंह (जयपुर मेवात हाड़ौती बलूच मुगल हराए)
- चूरामन (फर्रुख्धियर हराया)
- सूरजमल जाट (जो भिड़ा वही हराया)
- जवाहर सिंह (जो भिड़ा वही हराया)
- फौंदा सिंह (अब्दाली भगाया, राजपूत हराए)
- बनारसी सिंह (दौसा, करौली, अलवर जीते)
- अनूप सिंह (मुगल राजपूत पठान हराए)
- तोफा सिंह (70 हज़ार पठान हराए)
- शीशराम (सआदत खां हराया)
- बच्चू सिंह (फिरंगी भगाए)
- रणजीत सिंह (जो भिड़ा वही कूटा)
- नलवा (जो भिड़ा वही कूटा)
Thursday, 9 March 2023
प्रोटैस्टेंट (Protestants) ईसाईयों व् खाप यौधेयों में समानताएं!
1 - दोनों में मर्द-पुजारी रहित धोक-ज्योत की परम्परा है| जैसे खापलैंड के दादा नगर खेड़ों-भैयों-भूमियों के मूल-सिद्धांत में मर्द-पुजारी कांसेप्ट नहीं है, ऐसे ही प्रोटेस्टेंट्स की चर्च में पादरी नहीं होते|
2 - दोनों के मूल सिद्धांतों में माइथोलॉजी नहीं मानी जाती|
3 - दोनों साइंटिफिक व् तार्किक रहे हैं|
4 - दोनों मूर्ती-पूजा को मिथ्या कहते हैं|
5 - दोनों जहाँ-जहाँ बसते हैं अथवा बसते आये हैं; वो उस देश-जगह के सबसे खुशहाल, वर्णवाद टाइप की बीमारी से न्यूतम ग्रस्त व् साधन-सम्पन्न इलाके हैं; जैसे इंडिया में खापलैंड व् मिसललैंड और यूरोप में नार्डिक देश (डेनमार्क, नॉर्वे, आइसलैंड, फिनलैंड), आयरलैंड, स्वीडन, इंग्लैंड, नीदरलैंड| वर्ल्ड हैप्पीनेस इंडेक्स की लिस्ट में यही देश टॉप लिस्ट में हैं|
विशेष: इस पोस्ट से कोई यह बेसिरपैर मत मारना कि अब तुम हमें ईसाई बनाओगे क्या? मैंने सिर्फ एक रिसर्चर के तौर पर एक सकारात्मक पहलुओं की तुलनात्मक बात रखी है| इंडिया से इस पहलु पर कुछ वर्ल्ड स्टैण्डर्ड का है तो इन पैमानों से जीने वाले समाजों की यह थ्योरी उनमें से एक है|
सावधान: खापलैंड जो इन पहलुओं पर सदियों से जागरूक रही है व् इनसे मुक्त रही है; उसको अब फंडी पुरजोर लगा के इसी गर्त में खींच रहे हैं| प्रोटेस्टेंट्स ने इस गर्त से 1500वीं सदी में लगभग दो सदी के खून-खराबे के बाद छुटकारा पाया था; जबकि खापलैंड वालो आप कभी से इनसे मुक्त रहे हो| परन्तु अब इन्हीं में घेरे जा रहे हो; इसलिए सचेत-सतर्क-सावधान हो जाओ| वरना कोई फायदा नहीं, कि इन फंड-पाखंडों से मुक्त समाज-धरती को पहले ऐसी गर्त में डलवाने का व् बाद में अगली पीढ़ियां इसी से मुक्ति पाने को संघर्ष करने में अपनी जिंदगी खोवें; ऐसी स्थितियां उनको दे के मत जाओ|
जय यौधेय! - फूल मलिक