यह घटना 1688 ईस्वी से शुरू होती है जब सौंख गोवर्धन क्षेत्र पर जाट राजा ठाकुर सुखपाल सिंह तोमर का अधिपत्य था। उनके कुँवर हठी सिंह तोमर थे। जब भारत के अन्य सभी राजा मुगलो को अपनी बहिन बेटी दे कर समझौता कर चुके थे। लेकिन जाटों को यह गुलामी मंजूर नही थी आज़ादी की यह ज़िंदगी उन ही अमर शहीद जाट वीरो की सौगात है।
अपने कल्चर के मूल्यांकन का अधिकार दूसरों को मत लेने दो अर्थात अपने आईडिया, अपनी सभ्यता और अपने कल्चर के खसम बनो, जमाई नहीं!
Saturday, 9 December 2023
जाट राजा ठाकुर सुखपाल सिंह तोमर , कुँवर हठी सिंह तोमर
Wednesday, 6 December 2023
कई लोग कहते हैं, 35 बनाम 1 अब खत्म हो चुका; लेकिन यह तो 2023 में भी उछाला जा रहा है!
उछाला जा रहा है, बाकी ऐसा कोई हव्वा नहीं है धरातल पर| उछाला जा रहा है ताकि 1 वाले को अकेला रह जाने का मानसिक डरावा दे कर सकपकाए रखा जा सके व् इसी मानसिक भय में उसको ज्यादा-से-ज्यादा अपना पिछलग्गू बना लिया जाए| दिवंगत गोगामेड़ी की विधवा के मुख से 35 को फिर से उछलवाना; फंडियों की इसी गहरी manipulation का हिस्सा है| यह सब एक reverse psychology के तहत 1 को submissive mode में लाने हेतु किया जा रहा है|
सिख धर्म में 60-65% जाट, धन्नावंशी -वैरागी -स्वामी में 95% जाट, विश्नोई सम्प्रदाय में 90-95% जाट, आर्यसमाज में 75-80% जाट, कबीरपंथी 90-95% जाट , जसनाथ सम्प्रदाय में 100% जाट है (आंकड़े अर्जुन अहलावत भाई की पोस्ट के हैं), और भी कई सम्प्रदाय और ग्रुप है जिनमें जाट बहुलता में है, इनमें से कई संप्रदायों ने अपनी अलग आईडेंटिटी बना ली, कुछ आज भी अपने रूट्स से जुड़े है|
परन्तु इनमें से कोई अपराध करता है तो उसको माना जाट ही जाता है; जैसे रोहित गोदारा आज के दिन स्वामी है, परन्तु क्योंकि वह जाट से स्वामी बना है, फिर भी उसकी आइडेंटिटी जाट ही आई निकल के| यह वीडियो इस बात का सबूत है|
तो फिर क्यों नहीं यह सारे अपने-अपने आध्यात्मिक धड़े में रहते हुए, "जाट" शब्द की अम्ब्रेला बॉडी बना लेते मिल के? इससे होगा यह कि इनमें बाकी जो जातियां जुडी हुई हैं जो कि अधिकतर किसान-कामगार वर्गों से ही आती हैं, वह भी आप से जुड़ जाएंगी अथवा जुड़ा हुआ महसूस करेंगी| मैं तो अक्सर हर बाबा-संत जो भी मेरे से सम्पर्क में है, उसको यही कहता हूँ कि जब तक आप लोग इन डेरों-मतों की एक साझी बॉडी नहीं बनाओगे; आपकी मार्किट फंडी ऐसे ही खाता रहेगा|
कई लोग कहते हैं, खासकर पोलिटिकल पार्टीज वाले की 35 बनाम 1 अब खत्म हो चुका; जबकि मेरे जैसे बार-बार कहते हैं कि यह खत्म नहीं हुआ, बल्कि बढ़ाया जा रहा है| और इसका हरयाणा 2016 से निकल 2023 में सीधा जयपुर में जा के किसी की मरगत पे बुलवाया जाना, ना सिर्फ यह कहता है कि यह जिन्दा है अपितु फंडी समझता है कि इसमें अभी भी दम है| तो जब तक इसको प्रत्यक्ष-परोक्ष-गुप्त रूप से अड्रेस करते हुए पॉलिटिकल पार्टीज अपना एजेंडा नहीं बनाएंगी, किसान राजनीति वालों, को तो खासतौर से आगे की ठाह नहीं मिलनी|
इस एक को भी अपनी इस ब्रांड-वैल्यू भी कीमत व् अहमियत समझनी होगी, क्या चीज है यह जो फंडी को दिन-रात सोने नहीं देता| इतनी दुश्मनी-नफरत तो फंडी को मुस्लिम से नहीं, जितनी इस 1 से दिखती है? मतलब किसी के यहाँ मरगत हो रखी है व् वहां बजाए बाकी सुख-दुःख कहने-सुनने के, 35 कहलवाया जा रहा है, दिवंगत की विधवा से? ऐसा तो तभी होता है जब किसी की किनशिप-कल्चर-फिलोसॉफी-दर्शनशास्त्र दूसरे से बिल्कुल भिन्न हो व् इस बात का अहसास फंडी को तो है परन्तु उसको ही नहीं है जिसकी यह है|
यह 35 बनाम 1 में ही इस 1 की ताकत छुपी है; बशर्ते यह 1 इस शगूफे के मानसिक व् भावुक दबाव में ना आते हुए; इसको अपने पक्ष में प्रयोग करना शुरू कर दे| और वह हमारे ग्रुप ने करके देखा है, छोटे-छोटे एक्सपेरिमेंट्स में; जहाँ किया वहीँ 100% सफलता मिली हमें|
जय यौधेय! - फूल मलिक
Thursday, 30 November 2023
राष्ट्रपति राजा महेंद्र प्रताप सिंह ठेनुआ
(Dec 1, 1886 - April 29, 1979)
सन् 1915 में गांधी जी भारत आए थे। जिस दौरान में गांधी जी भारत आए थे, उस दौरान सन् 1915 में राजा महेंद्र प्रताप सिंह भारत से बाहर ब्रिटिश हुकूमत को उखाड़ने के लिए लॉबीइंग कर रहे थे और इसी दौरान 1 दिसम्बर 1915 , अपने जन्मदिन वाले दिन उन्होंने अफगानिस्तान में पहली निर्वासित सरकार का गठन किया, और राजा साहब को उस सरकार का राष्ट्रपति बनाया गया, मौलवी बरकतुल्लाह को राजा का प्रधानमंत्री घोषित किया गया और अबैदुल्लाह सिंधी को गृहमंत्री। राजा साहब की इस काबुल सरकार ने बाकायदा ब्रिटिश सरकार के खिलाफ जेहाद का नारा दिया। लगभग हर देश में राजा की सरकार ने अपने राजदूत नियुक्त कर दिए, पर यह सरकार सिर्फ़ प्रतीकात्मक बन कर रह गई।
हालाँकि, गांधी जी कोंग्रेसी थे पर राजा साहब और उनके बीच बहुत नज़दीकियाँ थी। राजा साहब 32 साल के लम्बे अंतराल के बाद जब भारत की धरती पर उतरे तो उनको लेने सरदार पटेल की बेटी मनिबेन गई थी, जिसके साथ राजा साहब सीधे गांधी जी से मिलने वर्धा पहुँचे।
राजा महेंद्र प्रताप सिंह ने क्रांति की अलख के लिए 'निर्बल सेवक' नाम से देहरादून से समाचार पत्र शुरू किया। इस पत्र में जर्मनी के पक्ष में लिखने के कारण ब्रिटिश हुकूमत ने राजा साहब पर 500 रुपए जुर्माना लगा दिया, जो राजा साहब ने अदा तो कर दिया पर उसके बाद राजा साहब के मन में देश आज़ादी की इच्छा प्रबलतम होती गई। राजा साहब ने देश छोड़ने की सोच ली। अब पास्पोर्ट की दिक़्क़त, हुकूमत ने इन्हें पास्पोर्ट जारी नहीं किया। थोमस कुक एंड संस के मालिक बिना पास्पोर्ट के उनको अपनी दूसरी कम्पनी के पी. एण्ड ओ स्टीमर द्वारा इंगलैण्ड ले गए। राजा साहब ने हंगरी, तिब्बत, चीन, रूस, टर्की कई मुल्कों का भ्रमण किया। सन् 1929 में जापान में 'वर्ल्ड फ़ेडरेशन' नाम से पत्रिका निकाली। जब राजा साहब जर्मनी पहुँचे तो वहाँ के शासक ने उन्हें 'Order of the Red Eagle' से नवाज़ा। राजा साहब ने कुछ दिन पोलैंड की सीमा पर सेना व युद्धाभ्यास की जानकारी के लिए एक मिलिटेरी कैम्प गए। बताते है कि उसके बाद राजा साहब ने आईएनए की स्थापना की थी। हालांकि, इस फौज को जमीनी तौर पर दूसरे विश्व युद्ध के समय सिंगापुर में जनरल मोहन सिंह घुम्मन ने खड़ा किया था, जिसकी कमान बाद में नेता जी सुभाष चंद्र बोस को सौप दी थी। सिंगापुर की इस लड़ाई में मेरे दादा शहीद चौधरी बलदेव सिंह सांगवान और उनके साथ मेरे गांव से सात अन्य लोग भी थे, जोकि जाट रेजिमेंट में थे, वो भी जनरल मोहन सिंह जी घुम्मन के आह्वान पर आईएनए से जुड़े थे। इन कुल आठ में से चार वही जंग में शहीद हो गए थे, जिनकी लाशें भी नहीं आई, और चार कुशल घर वापिस लौटे थे।
राजा साहब का विवाह सन् 1902 में जींद रियासत की राजकुमारी बलवीर कौर से हुआ था। जींद रियासत सिक्ख जाट रियासत थी। उनके सन् 1909 में पुत्री हुई, जिसका नाम भक्ति रखा गया और सन् 1913 में पुत्र हुआ, जिसका नाम प्रेम रखा गया।
शिक्षा के क्षेत्र में राजा साहब का बहुत बड़ा योगदान रहा। सन् 1909 में वृन्दावन में राजा साहब ने प्रेम महाविद्यालय की स्थापना की, जो तकनीकी शिक्षा के लिए भारत में प्रथम केन्द्र था। वृन्दावन में ही एक विशाल फलवाले बाग़ को जो 80 एकड़ में था, सन् 1911 में आर्य प्रतिनिधि सभा उत्तर प्रदेश को दान में दे दिया। जिसमें आर्य समाज गुरुकुल है और राष्ट्रीय विश्वविद्यालय भी है। इसके ईलावा राजा साहब ने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (एएमयू)को भी भूमि दान में दी थी।
राजा साहब ने 'प्रेम धर्म' नाम से एक अलग धर्म की शुरुआत भी की थी। वे जाति, वर्ग, रंग, देश आदि के द्वारा मानवता को विभक्त करना घोर अन्याय, पाप और अत्याचार मानते थे। ब्राह्मण-भंगी को भेद बुद्धि से देखने के पक्ष में नहीं थे। इस धर्म के अनुयायियों का एक ही उद्देश्य था कि प्रेम से रहना, प्रेम बांटना और प्रेम भाईचारे का संदेश देना। अकबर बादशाह के दीन-ए-इलाही की तरह प्रेम धर्म भी उसको चलाने वाले के साथ ही गुमनामी में खो गया।
राजा साहब का नाम नॉबेल पुरस्कार के लिए नॉमिनेट किया गया था। पर ऐसा इत्तफ़ाक़ हुआ कि उस साल किन्हीं कारणों से यह पुरस्कार किसी को नहीं दिया गया और पुरस्कार की राशि किसी स्पेशल फ़ंड में दे दी गई।
राजा साहब संसद सदस्य भी रहे। सन् 1957 के लोकसभा चुनावों में राजा साहब ने भारतीय जन संघ पार्टी के उम्मीदवार अटल बिहारी वाजपेयी जी की जमानत तक जब्त करा दी थी। बाद में यही अटल बिहारी वाजपई जी भारत देश के प्रधानमंत्री बने। राजा साहब अखिल भारतीय जाट महासभा के अध्यक्ष भी रहे।
राजा साहब का जीवन बड़ा ही संघर्ष वाला रहा पर तारीख़ व सरकार ने इनको वो सम्मान नहीं दिया जिसके वे असल हक़दार थे।
- राकेश सिंह सांगवान
Wednesday, 29 November 2023
भरतपुर आले ज़ाट, कैप्टन पीटमेन क़ो लड़ाई में मारते हुये, सन 1825-26 ऐंग्लो-जाट वॉर पेंटिंग।
भरतपुर आले ज़ाट, कैप्टन पीटमेन क़ो लड़ाई में मारते हुये, सन 1825-26 ऐंग्लो-जाट वॉर पेंटिंग।
Tuesday, 28 November 2023
दानवीर सेठ चौधरी छाजूराम!
दानवीर सेठ चौधरी छाजूराम का जन्म 28 नवम्बर 1861 को जाट परिवार के लाम्बा गोत्र में अलखपुरा गाम बवानीखेड़ा तहसील जिला भिवानी में हुआ। इनके पिता का नाम चौधरी सालिगराम था जोकि एक जमींदार थे।
सेठ छाजूराम का विवाह सांगवान खाप के हरिया डोहका गाम जिला भिवानी में कड़वासरा खंडन की दाखांदेवी के साथ हुआ था| लेकिन विवाह के कुछ समय बाद ही इनकी पत्नी का देहांत हैजे की बीमारी के कारण हो गया। दूसरा विवाह सन् 1890 में भिवानी जिले के ही बिलावल गांव में रांगी गोत्र की दाखांदेवी नाम की ही लड़की से हुआ| लेकिन बाद में उनका नाम बदलकर लक्ष्मीदेवी रख दिया गया| इन्होंने आठ संतानो को जन्म दिया, जिनमें पांच पुत्र व तीन पुत्रियां हुईं, लेकिन चार संतानें बाल्यावस्था में ही ईश्वर को प्यारी हो गई| सबसे बड़े सज्जन कुमार थे, जिनका युवावस्था में ही स्वर्गवास हो गया। उसके बाद दो लडक़े महेंद्र कुमार व प्रद्युमन कुमार थे। उनकी बड़ी बेटी सावित्री देवी मेरठ निवासी डॉ. नौनिहाल से ब्याही गई थी।
चौधरी छाजूराम ने अपने प्रारंभिक शिक्षा बवानीखेड़ा के स्कूल से 1877 में प्राप्त की। मिडल शिक्षा भिवानी से 1880 में पास करने के बाद उन्होंने रेवाड़ी से मैट्रिक(दसवीं) की परीक्षा 1882 पास की। मेधावी छात्र होने के कारण इनको स्कूल में छात्रवृतियां मिलती रहीं लेकिन परिवार की आर्थिक स्थिति कमजोर होने के कारण आगे की शिक्षा प्राप्त नहीं कर पाए। इनकी संस्कृत,अंग्रेजी,हिंदी और उर्दू भाषाओं पर बहुत अच्छी पकड़ थी।उस समय भिवानी में एक बंगाली इंजीनियर एसएन रॉय साहब रहते थे, जिन्होंने अपने बच्चों की ट्यूशन पढ़ाने के लिए चौधरी छाजूराम को एक रूपया प्रति माह वेतन के हिसाब से रख लिया। जब सन् 1883 में ये बंगाली इंजीनियर अपने घर कलकत्ता चले गए तो बाद में चौधरी छाजूराम को भी कलकत्ता बुला लिया। जिस पर इन्होंने इधर-उधर से कलकत्ता के लिए किराए का जुगाड़ किया तथा इंजीनियर साहब के घर पहुंच गए। वहां भी उसी प्रकार से उनके बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने लगे। साथ-साथ कलकत्ता में मारवाड़ी सेठों के पास आना-जाना शुरू हो गया, जिन्हें अंग्रेजी भाषा का बहुत कम ज्ञान था। लेकिन चौधरी छाजूराम ने उनकी व्यापार संबंधी अंग्रेजी चिट्ठियों के आदान-प्रदान में सहायता शुरू की, जिस पर मारवाड़ी सेठों ने इसके लिए मेहनताना देना शुरू कर दिया। थोड़े से दिनों में चौधरी छाजूराम मारवाड़ी समाज में एक गुणी मुंशी तथा कुशल मास्टर के नाम से प्रसिद्ध हो गए।इन्हें जूट-किंग भी कहा जाता था।चौधरी छाजूराम लाम्बा कलकत्ता के 24 बड़ी विदेशी कम्पनियों के शेयर होल्डर थे। इनसे चौधरी साहब को 16 लाख रुपए प्रति वर्ष लाभ मिलता था।
एक समय में इनकी सम्पति 40 मिलियन को पार कर गयी थी|
इन्होंने 21 कोठी कलकत्ता में (14 अलीपुर, 7 बारा बाजार) में बनवायी| इन्होंने एक महलनुमा कोठी अलखपुरा में व एक शेखपुरा (हांसी) में बनवायी| चौधरी साहब ने हरियाणा के पांच गाँव भी खरीदे तथा भिवानी, हिसार और बवानीखेड़ा के शेखपुरा, अलीपुरा, अलखपुरा, कुम्हारों की ढाणी, कागसर, जामणी, खांडाखेड़ी व मोठ आदि गाँवों 1600 बीघा ज़मीन भी खरीदी| इनके पंजाब के खन्ना में रुई तथा मुगफली के तेल निकलवाने के कारखाने भी थे| उस जमाने में रोल्स-रॉयस कार केवल कुछ राजाओं के पास होती थी, लेकिन यह कार इनके बड़े बेटे सज्जन कुमार के पास भी थी|
कलकत्ता में रविन्द्र नाथ टैगोर के शांति निकेतन विश्वविद्यालय से लाहौर के डीएवी कॉलेज तक उस समय ऐसी कोई संस्था नहीं थी, जिसमें सेठ छाजूराम ने दान न दिया हो।
हरिद्वार में गुरुकुल कांगड़ी की स्थापना में दिल खोल कर दान दिया ।1909 में भिवानी में अनाथालय खोलने में दिल खोलकर दान दिया। 1925 में कालिका रंजन कानूनगो द्वारा जाटों का इतिहास प्रकाशित करने के खर्च का एक बड़ा हिस्सा चौधरी छाजूराम जियों ने वहन किया।
सेठ चौधरी छोजूराम ने 1928 में पांच लाख रूपए की लागत से अपनी स्वर्गीय बेटी कमला की यादगार में लेडी हैली हॉस्पीटल बनवाया, जिस जगह पर आज भिवानी में चौधरी बंसीलाल सामान्य अस्पताल खड़ा है।
चौधरी साहब ने रोहतक में जाट एंग्लो वैदिक हाई स्कूल की स्थापना में 61000 का योगदान दिया और मंच से घोषणा की जो बच्चा मैट्रिक में प्रथम रहेगा उसे एक सोने का मेडल ओर 12 रुपए मासिक वजीफा दिया जाएगा
यह सम्मान चौधरी सूरजमल हिसार ने प्राप्त किया था
सन् 1918 में हिसार में सी ए वी स्कूल की स्थापना में 61000 हजार दान दिया, हिसार में जाट एंग्लो वैदिक हाई स्कूल की स्थापना में 500000 rs दान दिया,
ऐसे न जाने कितने समाजिक कार्यो में चौधरी साहब ने लाखों
दान दिए।
गांधी जी के हर आंदोलन में सबसे बड़ा दान चौधरी छाजूराम लाम्बा जी देते थे।
सुभाष चन्द्र बोस को भी उनके द्वारा चलाए गए आजादी के हर आंदोलनों में सबसे अधिक दान देते थे।।
भरतपुर के महाराजा सर कृष्ण सिंह को 1926 में 2,50 लाख की भेंट दी ।
17 दिसंबर 1928 को सांडर्स की हत्या के बाद सरदार भगतसिंह और भाभी दुर्गा सेठ छाजूराम की कोठी कलकत्ता में लगभग ढ़ाई महीने तक रूके थे।
क्रांतिकारी भगतसिंह को चौधरी साहब की धर्मपत्नी लक्ष्मी स्वयं बना कर भोजन देती थी।
चौधरी साहब की मुलाकात गाजियाबाद स्टेशन पर दीनबंधु चौधरी छोटूराम से हुई।इस मुलाकात में ही चौधरी साहब ने दीनबंधु छोटु राम का पढ़ाई का सारा खर्च उठाने की हा की
छोटूराम ने चौधरी छाजूराम को धर्म का पिता मान लिया। इन्होंने रोहतक में चौ. छोटूराम के लिए नीली कोठी का निर्माण भी करवाया। छोटूराम दीनबंधु नहीं होते और यदि दीनबंधु नहीं होते तो आज किसानों के पास जमीन भी नहीं होती। चौधरी छाजूराम नही होते तो भगतसिंह लोगो मे देशभक्ति की आग न लगा पाते
चौधरी छाजूराम लाम्बा न होते तो सुभाष चन्द्र बोस आजाद हिंद फौज को सुचारू रूप से नहीं चला पाते
चौधरी छाजूराम लाम्बा न होते तो महात्मा गांधी अंग्रेजो के खिलाफ जनमानस की आवाज न उठा पाते।
चौधरी छाजूराम के बड़े पुत्र सज्जन कुमार बहुत ही होनहार थे| वह चौधरी साहब का व्यापार संभालने में भी माहिर थे, लेकिन 27 सितंबर 1937 को जब उनकी अकस्मात मौत हुई तो इस हादसे ने चौधरी साहब को अंदर से तोड़ दिया| और फिर 7 अप्रैल 1943 को चौधरी साहब लंबी बीमारी के कारण दुनिया को छोड़ के चले गए।आज चौधरी साहब की जयंती है।
पोस्ट को लिखने वाला - सागर खोखर
अपनी युवा पीढ़ी को पुरखो से अवगत कराएं। आज समाज को सेठ छाजूराम लाम्बा जी जैसे दानवीरों की जरूरत है
भामाशाहों के भामाशाह दानवीर सेठ चौधरी छाजूराम लांबा!
टाटा-बिड़ला-छाजूराम - एक वक्त वह था, जब यही तीन देश के सबसे धनाढ्य व्यापारी हुए! आज उनके जन्मदिवस (28 नवंबर 1861) पर इनके जीवन को दर्शाती इस कविता के माध्यम से दादा को नमन:
चौधरी छोटूराम के धर्म पिता तुम, उनके फ़रिश्ता-ए-रोशनाई थे,
भारत के धनाढ्यों की त्रिमूर्ति में, सबसे रौबदार ब्यौपारी थे|
भामाशाहों के भामाशाह दानवीर सेठ आप, रसूखदार शाही थे,
जब उदय हो चले अलखपुरा से, जा छाए आसमान-ए-कलकत्ताई थे||
जी. डी. बिड़ला, लाला लाजपतराय रहे किरायेदार आपके, ऐसे रहनुमाई थे,
कलकत्ते के सबसे बड़े शेयरहोल्डर आप, सब साहूकारों की अगुवाई थे|
सरदार भगत सिंह को मिली पनाह आपके यहाँ, वो खुदा-ए-रहबराई थे,
नेताजी सुभाष को दे आर्थिक सहायता, जर्मनी की राह पहुंचाई थे||
दानवीरता की टंकार हुई ऐसी, कई भामाशाह अकेले में समाईं थे,
बाढ़-अकाल-बीमारी-लाचारी-गरीबी में, दिए जनता बीच दिखाई थे|
लाहौर से कलकत्ता तक, स्कूल-कॉलेजों की दिए लाईन लगाई थे,
कौमी-इतिहास लिखवाया कानूनगो से, गजब आशिक-ए-कौमाई थे||
तेरे जूनून-ए-इंसानी-भलाई का, यह फुल्ले भगत बारम्बार कायल हुआ,
वो जज्बा हमें भी देता जाइए, जो धार संकट धरती-माँ का दूर किया!
अपना चून, अपना पुन के धोतक, आपने पूरा आलम सहार दिया!
धन कमाओ और अपनी निगरानी में सेवा उठाओ, संदेश खूब बाँट दिया!
जय यौधेय! - फूल मलिक!
Sunday, 26 November 2023
कीरत करो, नाम जपो, वंड छको!
सप्ताब यानि 'पंजाब + दोआब' यानी 'मिसललैंड + खापलैंड' के हर गाम को बसाने वाले गाम के प्रथम पुरखों की निशानी "दादा नगर खेड़ों/भैयों/भूमियों" का एक सिद्धांत है कि हर "गाम-नगर खेड़े" में इतनी मानवता अवश्य पाली जाए कि गाम का कोई भी धर्म-जाति का बाशिंदा भूखा-नंगा ना सोए|
इसीलिए सदियों से कहावत चलती आई कि यहाँ के गामों में आपको कोई भिखारी नहीं मिलता|
यह फिलोसॉफी बाबा नानक जी की दी हुई, "कीरत करो, नाम जपो, वंड छको" सीख का हूबहू रूप है| इस कहावत के रूप में सिखी सिर्फ पंजाब में ही नहीं अपितु पूरे सप्ताब के हर गाम-खेड़े में बसती व् बरती जाती है|
आप सभी को गुरुपरब यानि सिखी के संस्थापक गुरु नानक देव जी के प्रगटदिवस की हार्दिक शुभकामनाएं!
जय यौधेय! - फूल मलिक
Tuesday, 21 November 2023
गिहूँआ की जिब करी बिजाई
गिहूँआ की जिब करी बिजाई
गेल फूट म्हं होई कंडाई

Saturday, 11 November 2023
औद्योगिकता संगत आध्यात्मिकता ही फब्ती है!
Happy Kolhu-Dhok! Happy Girdi-Dhok! Happy Diwali!
औद्योगिकता संगत आध्यात्मिकता ही फब्ती है:
एक बड़ई-लुहार अपने औजारों की धोक लगाता है| एक कुम्हार चाक की धोक लगाता है|ऐसे ही किसान-जमींदार भी औद्योगिकता संगत आध्यात्मिकता मनाता आया है| उसी के तहत आज "कोल्हू-धोक दिन", "पचंगड़ा दिन", "परस-चौपाल-थ्याई धोक दिन" की "दिवाली" के साथ-साथ आप सभी को बधाई! कल मनाए गए "गिरड़ी-धोक-दिन" व् "पशु-सिंगार दिन" की भी लगे हाथों आप सभी को बधाईयां! लक्ष्मी को अर्जित करके देने वाले उद्योगों व् उनके औजारों की धोक लगाएंगे तो लक्ष्मी स्वत: चली आएगी; यही पुरख-दार्शनिकता व् आध्यात्म बताता है!
कोई तुम्हारी उदारता को "कंधे से ऊपर की कमजोरी ना ठहरा दे" इसके लिए जरूरी है कि अपने कॉपीराइट कल्चर को सर्वोपरि रखा जाए, और यह झक-मार के भी ऊपर रखना होगा; क्योंकि आपकी धन-दौलत आपको "कंधे से ऊपर मजबूत" नहीं कहलवा सकती”; वह सिर्फ आप तभी कहलाओगे जब पुरखों के दिए "कॉपीराइटेड तीज-त्यौहार” सर्वोपरि रख के गर्व से मनाओगे"! हमारे पुरखों का संदेश रहा है कि अपना " कॉपीराइटेड कल्चर" सर्वोपरि रखें व् "शेयर्ड-कल्चर" का आदर करें, उनको भी मनाएं-मनवाएं! मात्र किसान की औलाद कहलवाना है या औद्योगिक किसान की औलाद, चॉइस आपकी!
आज गिरड़ी, तड़कै कोल्हू, हीड़ो रै हीड़ो! - आज गिरड़ी, तड़कै दवाळी, हीड़ो रै हीड़ो!
जय यौधेय! - फूल मलिक!
Wednesday, 8 November 2023
7 Dimensional (7D) Unique benefits of ‘Gaam-Gaut-Guhaand Norm’ of Shared Kinship of Khapland
खापलैंड की साझी किनशिप के ‘गाम-गौत-गुहांड मानदंड’ के 7 आयामी (7D) अद्वितीय लाभ:
7 Dimensional (7D) Unique benefits of ‘Gaam-Gaut-Guhaand Norm’ of Shared Kinship of Khapland:
आजकल उज़मा बैठक द्वारा प्रायोजित कात्यक-न्हाण-खापरते चले हुए हैं, कल ही बैठक ने पाँचवा खापरता मनाया; जिसकी Literature and Folklores Concert Series 2023 के तहत शोध-विषय था, "खापलैंड किन अनोखी वजहों से जानी गई"| इसके तहत "7 Dimensional (7D) Unique benefits of ‘Gaam-Gaut-Guhaand Norm’ of Shared Kinship of Khapland" के शीर्षक से फूल मलिक व् धीरेन्द्र डांगी द्वारा एक शोध प्रस्तुत किया गया| इस रिसर्च के तथ्यों ने वह खजाना बताया जिससे जवाब मिला एक ऐसी उत्सुकता का जिसको ले के बड़े-बड़े साहित्यविद व् दर्शनशास्त्री कयास ही लगाते दीखते हैं| कयास कि ऐसा क्या था कि किसान आंदोलन के दौरान 28 जनवरी 2021 को ग़ाज़ीपुर बॉर्डर पर पुलिस एक्शन होता है चौधरी राकेश टिकैत जी के धरने पे परन्तु दहल ऊठती है पूरी खापलैंड व् मिसललैंड| कुछ इस अंदाज में दहली कि जैसे किसी ने मकड़जाल के किसी एक तार को हिलाया हो व् सारा मकड़जाल सनसना उठा? रातों-रात ग़ाज़ीपुर बॉर्डर पर लाखों की भीड़ उमड़ पड़ी, धुर हिसार-सिरसा से ले कर अलवर-भरतपुर, मुज़फ्फरनगर-लखीमपुर से ले पूरे पंजाब तक? व् कुछ यही बानगी मई 2023 के पहलवान बेटियों के आंदोलन की रही; उन्होंने एक कॉल दी व् पूरी खापलैंड व् मिसललैंड के लोगों के जंतर-मंत्र पर दौरे शुरू हो गए|
शोधकर्ताओं ने इसकी जड़ें जोड़ के दिखाई खापलैंड की एक अनूठी परम्परा से, जिसको कि "गाम-गौत-गुहांड" कहते हैं| एक इस परम्परा की वजह से जो 7 D थ्योरी प्रस्तुत की गई, उससे सभी श्रोतागण सहमत व् गदगद थे| आपने अक्सर यह तो सुना ही है कि जेनेटिक-डिसऑर्डर न हो जाए इसलिए दूर ब्याह गाम-गुहांड से दूर ब्याह करते हैं| परन्तु इसके अतिरिक्त भी बहुत सारे फायदे हैं जो अक्सर सिर्फ इस एक जेनेटिक-डिसऑर्डर वाले तर्क में या तो दब के रह जाते हैं या दार्शनिक नजरिए से विरले ही विचारे जाते हैं| विभिन्न साक्षात्कारों से निकल कर आया है कि जिनके ब्याह या उनकी अन्य रिश्तेदारियां न्यूनतम 40-50 किलोमीटर दूर हो रखे हैं, उनके बच्चों का ‘Cultural Exchange Index' बाकियों से काफी बेहतर होता है| दूर रिश्ते होने से सिर्फ विभिन्न गोतों की ब्लड-लाइन्स ही नहीं जुड़ती वरन उनसे जो आपसी सामुदायिक गठजोड़ व् भाई-बिरादरी की भावुकता जुड़ती है, वह पूरे क्षेत्र को वह अतिरिक्त नैतिक बल देती है; जो पुरख-किनशिप का एक मकड़जाल उत्तपन्न करता है| ऐसा मकड़जाल कि ऊपर बताए उदाहरण की भांति एक ग़ाज़ीपुर बॉर्डर हिले तो करंट पूरी खापलैंड व् मिसललैंड में जाता है| तो ज्यादा देर ना करते हुए, आईए जानते हैं इस 7D-थ्योरी के 7 D के बारे में:
- DNA (Diaspora): जेनेटिकल-डिसऑर्डर से बचने वाले ऐतिहासिक कारण के साथ-साथ वृहद क्षेत्र तक वंश-फैलाव की अनुभूति से अपने कल्चर के प्रति जरूरी स्वाभिमान व् गर्व विकसित होता है|
- Dialect: बच्चे भाषाई अंतर्, भाषा के लहजे, बोलियों के शब्द व् लहजे बिना किसी खर्चे व् कोशिश के सीख जाते हैं| उदाहरणार्थ: कोई सोनीपत के किसी गाम में बसता है, उसका ब्याह हो रखा हो भिवानी किसी गाम में, नानका हो जींद किसी गाम में, दादका हो बागपत किसी गाम में, बहन-बेटियां-बुआ ब्याह रखी हों करनाल-शामली-कैथल-रोहतक-दादरी कहीं| और यह इतना वंश-फैलाव सिर्फ एक गाम-गौत-गुहांड नियम की वजह से| तो समझने वाली बात है कि इतने भर से उसको हरयाणवी भाषा की खादर-खड़ी बोली-बांगरू-बागड़ी-देसाळी बोलियां तो रिश्तेदारियों में बचपन से घूमते-फिरते ही कंठस्थ हो जाती हैं| उनके लहजे सीख जाता है, भाव-भंगिमा सीख जाता है| यह रिश्तेदारियों के क्षेत्र-फैलाव के फायदों का उदाहरण नीचे के D में भी समरूपता से लागू करते हुए, इनको समझें|
- Diet: दादके-नानके समेत बुआ-बहन-दादी बुआ के यहाँ के खानपान की भिन्नताओं बारे बच्चे बिना किसी विशेष प्रयास के ही जान जाते हैं|
- Dress: विभिन्न प्रकार के पहनावे, पहनावों के अंतर् उनकी आँखों के आगे होते लेन-देन से देख-समझ जाते हैं| जो नहीं समझ आता तो पूछने या बताने के जरिए सहजता से सीखने को मिल जाता है|
- Dwelling: घर-मकान-हवेलियों के प्रकार, गली-बगड़-चौराहे, घेर-गितवाड़, दरवाजे-बैठक-नोहरे, परस-चौपाल-थ्याई, खेतों में बने कोठड़े-चौबारे-झोंपड़ी आदि की वास्तुकला, इनके इस्तेमाल बारे सीखते हैं व् हर तरफ की रिश्तेदारी की इन चीजों की सटीक तुलना भी करने में सक्षम हो जाते हैं|
- Dance (songs & folks): उदाहरणार्थ ब्रज में जाओ तो लूर, रसिया; बागड़ में आओ तो बागड़ का घूमर, बांगर-देसाळी का धमाल, देसाळी-खादर का खोड़िया; यदि इन क्षेत्रों में ब्याह हो रखे हों तो बच्चे दोनों तरफ के नाच-गाने सब खेल-खेल में सीख जाते हैं| ऐसे ही इनके गीत, लोकगीत, रागनियां आदि की सुरताल व् लहजे एक न्यूनतम जायज समझ बनती जाती है|
- Devotion: रिश्तों में आपसी समर्पण व् आदर ज्यादा रहता है| व् इससे भाईचारे की भावना बलवती होती है| वह भावना व् जुड़ाव होता है जो कि ऊपर दिए गए दो किसान आंदोलन व् पहलवान आंदोलन वाले उदाहरणों में उमड़े जनसैलाब के पीछे के दार्शनिक शास्त्र को बड़ी सहजता से समझा जाता है| और यही भावना व् विश्वास कहीं न कहीं पूर्णत: ना सही परन्तु आंशिक तौर पर जरूर इस धरती के लोगों का बेल्ट की नौकरियों (पुलिस-फ़ौज) से ख़ास लगाव व् आत्मविश्वास बढ़ाती है|
जय यौधेय! - फूल मलिक
Wednesday, 1 November 2023
हरियाणवी बोलचाल में प्रयुक्त कहावतें!
Sunday, 29 October 2023
निडाणा गाम, जिला जींद के ठोळे-ढूंग व् नंबरदारों की सूची!
सांजरण पान्ना:
राहतस ठोळा:
1 - घरद्याला ढूंग - दादा लछमन नंबरदार परिवार|
2 - उन्ह्यान ढूंग - दादा स्वरुप सिंह नम्बरदार परिवार|
- भजन, रुलिया, हरपत
- बालू
- गड़गे, मुंशी, प्रह्लाद, स्वरुप सिंह, मुकन्दी
- भानू, ठोईया, जुगला
- ज्वाला (बेऔलादा)
मलवा ठोळा:
1 - हेतम ढूंग - दादा झुन्डा सिंह नंबरदार
- लाक्के - दादा बाऊ, मांगा, श्योदयाल, सूधन, तास्से
- आस्सा - कुंदन, मुंशी टुण्डलिया
2 - मनोहर ढूंग:
- दादा जागर - जिन्होनें स्कूल में दान दिया था, चत्तर सिंह, फतेह सिंह
- गिरधारी
लखमीर पान्ना:
चेतू ठोळा – दादा रामफल बांडा नम्बरदारी परिवार
- शद्दा ढूंग: धूपल, शेरा बांगा (सतपाल), मखा, सहीराम (स्वामी रतन देव), दादी घसो आली परिवार
- कल्लू ढूंग: नन्नू बाबडिया, बुल्ला
- मुकन्दी, बोहना ढूंग
- जाती - पल्ला ढूंग
- तोता (बेऔलादा – चेतु के आधे का हकदारी) ढूंग
- बदलू (सेठ के दादा), मोखा (मान्ना के दादा), चुनी (चन्दर – खलड़ीए) ढूंग
रघुनाथ ठोळा - दादा मन्नी नंबरदार
- गंडे ढूंग: दुन्नी, द्योला, मनफूल, हवा
- मन्नी ढूंग: देशा (श्योकरण बोली)
- भैड़े ढूंग
- फ़ाददु ढूंग
गड्डू ठोळा - दादा शेर सिंह नम्बरदार
- दादा श्योजी (सबसे बड़ा नाता), जैला, दरिया, ठकुरिये
भंता ठोळा - दादा भरथा नंबरदार (मास्टर रतन सिंह परिवार)
- गुलाब
- ज्ञानी, ह्रदया, लालू
- मेदा, जयकरण, सुल्तान, नाथू
- भोले (नजदीकी)
कटारु ठोळा - दादा इन्दर सिंह नम्बरदार - हरजस परिवार
काले ठोळा - दादा महा सिंह नंबरदार
- कूड़ा: महा सिंह
- बेल सिंह: पाल्ले, इंद्र (रण सिंह), मीठिया (बलवान-महावीर)
मंदरूप ठोळा - दादा संता नंबरदार
- रत्ना सरपंच
- बनी सिंह
- मड़कन - बीर सिंह (पूनिया के)
- कुंदा
- दैया/दात्ता: झुर्री, लाँडै के (जागर बूटी, जहाज), रामचंद, दयोकराम
- राठी
शोभा नम्बरदार - दादा हरद्वारी परिवार (ब्राह्मणों में)
- मोहनलाल
- कोकोबगडी
- कोड़ा
नम्बरदारी रविदासियों में दादा चतरा के परिवार में|
इनफार्मेशन सोर्स: स्वर्गीय दादा चतर सिंह, भंता पन्ना - निडाणा व् बबला मलिक
शोध व् संकलनकर्ता: फूल कुमार मलिक
Saturday, 28 October 2023
भारत की खापलैंड व् मिसललैंड के खेती-किसानी मॉडल का सामाजिक-कल्चरल पहलू यूरोप-अमेरिका के खेती-किसानी मॉडल जैसा ही है!
1 - दोनों ही जगह खेत का मालिक, खुद खेत में काम करता/करती है; अपने सीरी-साझी (सामंती जमींदारों की भाषा में नौकर) के साथ
2 - दोनों उदारवादी जमींदारी के मॉडल हैं
3 - दोनों में सामूहिक परवार परम्परा है, परवार का मुखिया होता है
4 - दोनों के बच्चे उच्च शिक्षा के लिए शहरों में जाते हैं
5 - दोनों के बच्चे, बच्चों के बच्चे छुट्टियों में अपने गाम-खेतों में दादा-दादी, नाना-नानी के यहाँ छुट्टियां बिताते हैं
इसके साथ ही और भी कई सारी समानताएं हैं|
और यह भारत के खापलैंड व् मिसललैंड से बाहर के राज्यों में पाए जाने वाले सामंती-जमींदारी मॉडल से उल्ट हैं|
जय यौधेय! - फूल मलिक