खाप के प्रधान नही खाप महत्वपूर्ण होती है! व्यक्ति नही सामूहिकता महत्वपूर्ण होती है! समस्या है कि हम व्यक्ति की तरफ जा रहे हैं सामूहिकता की तरफ नही!
अपने कल्चर के मूल्यांकन का अधिकार दूसरों को मत लेने दो अर्थात अपने आईडिया, अपनी सभ्यता और अपने कल्चर के खसम बनो, जमाई नहीं!
Wednesday, 4 September 2024
खाप के प्रधान नही खाप महत्वपूर्ण होती है!
Tuesday, 3 September 2024
पगड़ी बांधने की प्रथा सिर्फ व्यक्ति को आदर देने की प्रथा ही नहीं है, बल्कि उन्हें नेतृत्व प्रदान करने की संज्ञा भी है
इलियट ने 1830 में जाटों के लिए लिखा है कि "पगड़ी बांधने की प्रथा सिर्फ व्यक्ति को आदर देने की प्रथा ही नहीं है, बल्कि उन्हें नेतृत्व प्रदान करने की संज्ञा भी है।"
Sunday, 1 September 2024
विश्व हिंदू परिषद और आरएसएस कराते थे कश्मीर में आतंकवादी घटनाएं!
ऐसा खुद उनका अपना ही एक पूर्व कार्यकर्ता कोर्ट में एफिडेविट दे कर बोल रहा है
इस खबर से जुड़ी हुई हिंदुस्तान टाइम्स में छपी खबर का लिंक कमेंट बॉक्स में दिया जा रहा है जिसमें कांग्रेस ने इस मुद्दे पर भाजपा के ऊपर हमला बोला है
पढ़िए पत्रकार पंकज चतुर्वेदी की यह पोस्ट -
'राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के एक पदाधिकारी, यशवंत शिंदे ने भारतीय राज्य महाराष्ट्र में नांदेड़ अदालत में एक हलफनामा दायर किया है कि वह बम विस्फोट प्रशिक्षण का गवाह था और आरएसएस देश भर में बम विस्फोटों में शामिल था।
यशवंत शिंदे ने हलफनामे में कहा कि आरएसएस भारत में सभी बम विस्फोट कर रहा था।
“1999 में, जब आवेदक महाराष्ट्र में था, इंद्रेश कुमार ने उससे कहा कि वह कुछ लड़कों को पकड़कर जम्मू ले जाए जहाँ उन्हें आधुनिक हथियारों के इस्तेमाल का प्रशिक्षण दिया जाएगा। इस उद्देश्य के लिए लड़कों का चयन करने के लिए ठाणे (महाराष्ट्र) में विश्व हिंदू परिषद (विहिप) की राज्य स्तरीय बैठक हुई। उस बैठक में आवेदक का परिचय नांदेड़ के एक हिमांशु पांसे से हुआ। उस समय हिमांशु पांसे गोवा में विहिप के पूर्णकालिक कार्यकर्ता थे। उन्हें और उनके 7 दोस्तों को प्रशिक्षण के लिए चुना गया था। आवेदक हिमांशु और उसके 7 दोस्तों को लेकर जम्मू गया। वहां उन्होंने भारतीय सेना के जवानों से आधुनिक हथियारों का प्रशिक्षण प्राप्त किया,” हलफनामे में लिखा है।
“इन दो व्यक्तियों ने आवेदक को सूचित किया कि बम बनाने का एक प्रशिक्षण शिविर शीघ्र ही आयोजित होने वाला था और उसके बाद, पूरे देश में बम विस्फोट करने की योजना थी। उन्होंने प्रस्ताव रखा कि देश के विभिन्न भागों में अधिक से अधिक बम-विस्फोट करने की जिम्मेदारी उन्हें लेनी चाहिए। वे चौंक गए लेकिन अपने चेहरे पर नहीं दिखा और उनसे हल्के-फुल्के अंदाज में पूछा कि क्या यह 2004 के लोकसभा चुनाव की तैयारी थी। उन्होंने जवाब नहीं दिया, ”हलफनामे में लिखा है।
हलफनामे के मुताबिक एक राकेश धावड़े उसे ट्रेनिंग के स्थान पर लाकर वापस ले जाता था. वह वही धावड़े था जिसे बाद में मालेगांव 2008 विस्फोट मामले में गिरफ्तार किया गया था। “प्रशिक्षण के बाद आयोजकों ने विस्फोटों की रिहर्सल करके बमों का परीक्षण करने के लिए प्रशिक्षुओं को एक वाहन में एक सुनसान वन क्षेत्र में ले गए। प्रशिक्षु एक छोटा गड्ढा खोदते थे, उसमें टाइमर के साथ बम लगाते थे, उसे मिट्टी और बड़े शिलाखंडों से ढँक देते थे और बम को विस्फोट कर देते थे। उनके परीक्षण सफल रहे। हलफनामे में कहा गया है कि बड़े विस्फोट हुए और पत्थरों को लंबी दूरी तक फेंक दिया गया।
हलफनामे के अनुसार, आवेदक कई बार नांदेड़ गया और हिमांशु पानसे को बम-विस्फोट में शामिल न होने के लिए मनाने की कोशिश की, क्योंकि यह चुनाव में भाजपा की जीत सुनिश्चित करने के लिए संघ परिवार की साजिश थी। “आरएसएस और भाजपा नेताओं ने जानबूझकर इस परियोजना में आवेदक को शामिल किया था क्योंकि वे जानते थे कि अगर वह चाहता तो वह पूरे देश में विस्फोट कर सकता है। उनका महाराष्ट्र में 'गर्जना', जम्मू-कश्मीर, पंजाब, हरियाणा, असम और यूपी में 'हिंदू युवा छात्र परिषद', कर्नाटक में 'श्री राम सेना' और पश्चिम बंगाल में तपन घोष जैसे वरिष्ठ नेताओं के साथ संपर्क था।" हलफनामा पढ़ें।
“अगर वह चाहता तो 500-600 बम विस्फोट कर सकता था। लेकिन जैसा कि वह नेताओं के गुप्त इरादों को जानता था, उसने उनकी योजना को विफल कर दिया और उसे सफल नहीं होने दिया। उन्होंने तपन घोष को नेताओं की गलत मंशा के बारे में भी आश्वस्त किया। तपन घोष ने उनकी बात मान ली और इन नापाक हरकतों से खुद को दूर कर लिया। इसी तरह कर्नाटक के श्री राम सेना के प्रमोद मुतालिक जो तपन घोष के करीबी थे, उन्होंने भी कुछ नहीं किया। इस प्रकार, आवेदक ने आरएसएस और भाजपा की विनाशकारी योजना को विफल कर दिया और कई निर्दोष हिंदुओं, मुसलमानों और ईसाइयों की जान बचाई, ”हलफनामे में कहा गया है।
“चूंकि आरएसएस और विहिप की पूरे देश में विस्फोट करने की योजना उतनी सफल नहीं थी जितनी उम्मीद की जा रही थी कि भाजपा को राजनीतिक रूप से फायदा नहीं हुआ। नतीजतन 2004 के चुनावों में कांग्रेस पार्टी को बहुमत मिला। मिलिंद परांडे जैसे व्यक्ति जो मुख्य साजिशकर्ता थे, डर गए और भूमिगत हो गए, लेकिन वे गुप्त रूप से साजिश रचते रहे। भूमिगत रहकर उन्होंने देश भर में कई बम-विस्फोट किए और पक्षपाती पुलिस और एक तरफा मीडिया की मदद से मुसलमानों पर दोष मढ़ दिया। इससे उन्हें 2014 के लोकसभा चुनाव में मदद मिली।'
हलफनामे के मुताबिक, 2014 में बीजेपी ने केंद्र की सत्ता हासिल की और नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने. इसके परिणामस्वरूप विहिप और आरएसएस से संबंधित सभी भूमिगत विनाशकारी ताकतें अचानक सक्रिय हो गईं। "आवेदक देख सकता था कि पश्चिम बंगाल, जम्मू और कश्मीर, उत्तर प्रदेश, आदि में आतंकवादी विरोधी-संवैधानिक गतिविधियों के पीछे वही लोग थे और जानबूझकर पूरे देश में अविश्वास और भय का माहौल बनाने की कोशिश कर रहे थे।"
हलफनामे के अनुसार, आवेदक इस मामले में एक महत्वपूर्ण गवाह है, क्योंकि वह इस मामले में शामिल आरोपियों के साथ सिंहगढ़ में आतंकी प्रशिक्षण शिविर में शामिल हुआ था। "इसके अलावा, जहां तक आवेदक को पता है, इस मामले में मुख्य साजिशकर्ता जैसे। 1) मिलिंद परांडे, 2) राकेश धवाडे, जो पुणे के पास सिंहगढ़ में प्रशिक्षण शिविर के मुख्य आयोजक थे और 3) रवि देव (मिथुन चक्रवर्ती) जिन्होंने आरोपियों को बम बनाने का प्रशिक्षण दिया था, उन्हें गिरफ्तार नहीं किया गया है और उन्हें आरोपी बनाया गया है। इस मामले में।"
हलफनामे के अनुसार, मिलिंद परांडे वर्तमान में विहिप के 'केंद्रीय संघटक' (राष्ट्रीय आयोजक) हैं। वह विहिप के मुख्य कार्यालय आर.के. पुरम, नई दिल्ली। राकेश धवाडे पुणे के रहने वाले हैं। उन्हें मालेगांव 2008 विस्फोट मामले और कुछ अन्य विस्फोट मामलों में गिरफ्तार किया गया था। फिलहाल वह जमानत पर है। रवि देव (मिथुन चक्रवर्ती) हरिद्वार में रहते हैं और उनका मोबाइल नंबर 9411786614 है।
हलफनामे में, आवेदक ने कहा है कि जिन तीन व्यक्तियों का उल्लेख किया गया है, वे 2006 के नांदेड़ विस्फोट मामले में मुख्य साजिशकर्ता हैं। "आवेदक अनुरोध करता है कि उन्हें इस मामले में आरोपी बनाया जाए और उन पर मुकदमा चलाया जाए।" हलफनामे में कहा गया है।'
Pankaj Chaturvedi
Source: https://www.facebook.com/share/p/VyV6XG3ms1b8AMUN/?mibextid=oFDknk
Saturday, 24 August 2024
ज्ञानवापी मंदिर तोड़ने का फरमान औरंगज़ेब ने जारी किया था 👇👇👇 *****
पर आप जानते हैं - क्यों?
कच्छ की महारानी के साथ मंदिर के महन्त ने बलात्कार की कोशिश की थी
मंदिर के तहखाने में अनेक औरतें और लाशें बंद पाई गई थीं
मंदिर तोड़ने से पहले औरंगज़ेब ने महारानी से पूछा था कि क्या करना है, महारानी ने जब तोड़ने की अनुमति दी तब फरमान जारी हुआ था
देखिए
इतिहासकार बी द्वारा एन पांडेय के अनुसार: कच्छ की 8 रानियां बनारस शहर में काशी विश्वनाथ के दर्शन के लिए गईं, जिनमें से सुंदर रानी का ब्राह्मण महंतों द्वारा अपहरण कर लिया गया
कच्छ के राजा द्वारा औरंगजेब को इसकी सूचना दी गई, जिन्होंने कहा कि यह उनका धार्मिक व व्यक्तिगत मामला है।वह उनके आपसी मामलों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहते, लेकिन जब कच्छ के राजा ने शिकायत की, तो औरंगजेब ने सच्चाई का पता लगाने के लिए कुछ हिंदू सैनिकों को भेजा, लेकिन महंत के लोगों ने औरंगजेब के सैनिकों को मार डाला, डांटा और भगा दिया।
जब औरंगजेब को इस बात का पता चला तो उसने स्थिति का जायजा लेने के लिए कुछ विशेषज्ञ सैनिकों को भेजा, लेकिन मंदिर के पुजारियों ने उनका विरोध किया। मुगल सेना भी लड़ाई में आ गई, मुगल सैनिक और महंत मंदिर के अंदर फंस गए और युद्ध में मंदिर क्षतिग्रस्त हो गया।तीसरे दिन सैनिकों को सुरंग में प्रवेश करने में सफलता मिली और वहां हड्डियों की कई संरचनाएं मिलीं। जो केवल महिलाओं के थे
सैनिकों ने मंदिर में प्रवेश किया और लापता रानी की तलाश शुरू कर दी।
इस संबंध में, मुख्य मूर्ति (देवता) के पीछे एक गुप्त सुरंग की खोज की गई थी जो बहुत जहरीली गंध छोड़ रही थी। दो दिन तक दवा छिड़ककर बदबू दूर करने की कोशिश करते रहे और सैनिक देखते रहे।
कच्छ की लापता रानी का शव भी उसी स्थान पर पड़ा हुआ था, उसके शरीर पर एक कपड़ा भी नहीं था। मंदिर के मुख्य महंत को गिरफ्तार कर लिया गया और कड़ी सजा दी गई
(बी. एन. पाण्डेय, खुदाबख्श मेमोरियल एनविल लेक्चर्स, पटना, 1986 द्वारा उद्धृत। ओम प्रकाश प्रसाद: औरंगज़ेब एक नई दृष्टि, पृष्ठ 20, 21)
~ Prof. Dr. Arun Prakash Mishra
Thursday, 22 August 2024
हरियाणा के प्रवक्ता और विशेषज्ञों ध्यान दो !
ये लंबी-चौड़ी जानकारी से भरी पोस्ट इसलिए लिख रहा हूं क्योंकि कुछ दिनों से ऐसे लोग हरियाणा के विशेषज्ञ और प्रवक्ता बनकर TV डिबेट में बैठ रहे हैं, जिन्हें हरियाणा का 'ह' तक नहीं पता।
Wednesday, 21 August 2024
मामा की पुत्री से विवाह के उदाहरण!
अर्जुन ने अपने मामा की लड़की सुभद्रा से विवाह किया जिससे उसका पुत्र अभिमन्यु पैदा हुआ। कुन्ती और सुभद्रा के पिता सगे भाई-बहन थे, दोनों शूरसेन की सन्तान थे। कुन्ती का वास्तविक नाम पृथा था, राजा कुन्तीभोज ने पिता शूरसेन से गोद लेने के कारण कुन्ती पड़ा। इसलिए तो अर्जुन को पार्थ कहा जाता है।
Monday, 19 August 2024
विनेश सिर्फ वह खिलाडी नहीं है जो पेरिस में मैडल से चूकी हो!
किसी के भीतर का तथाकथित राष्ट्रवाद तो इसी बात के साथ खत्म हो जाता है, जब वह पेरिस ओलिंपिक जैसे स्टेज पे जा के देश का देश के झंडे का प्रतिनिधित्व करने वाली बेटी के भी विरुद्ध बोलने का जज्बा ढूंढ लाते हैं| क्या यह बात राष्ट्रवाद की परिभाषा में निहित नहीं होती कि कोई अगर आपके देश को एक इंटरनेशनल स्टेज पर रिप्रेजेंट कर रहा है तो वह आप समेत, हर एक देशवासी को रिप्रेजेंट कर रहा है? उसकी जीत में ख़ुशी व् उसकी हार में दुःख समेत उस खिलाडी को पुचाकरना-संभालना खुद को राष्ट्रवादी कहने का दम्भ भरने वाले की पहली भावना होनी चाहिए? अगर नहीं है तो ऐसे 'राष्ट्रवाद शब्द' को हाईजैक करके इसका अपने प्रोपेगंडा में इस्तेमाल करने वाले तमामों को फांसी पर टांग देना चाहिए| फांसी इसलिए कि पहले तो राष्ट्रवाद शब्द से चिपके क्यों और चिपकने के बाद उसी शब्द की परिभाषा के विरुद्ध व्यवहार करते हो? यह तक नहीं समझते कि जीते हुए से ज्यादा आपके हारे हुए भाई-बहन के साथ खड़ा होना होता है? इसको सीखने को कहीं आस्मां पे जाने की जरूरत नहीं है, बस सप्ताब (वेस्ट-यूपी, दिल्ली, हरयाणा, पंजाब, नार्थ-राजस्थान) के हर गाम-गली का कल्चर देख आओ जा के; शर्म करने लगोगे खुद को राष्ट्रवादी कहने पर| म्हारे पुरखे ऐसे नौसिखियों के लिए जो "उघाड़े" शब्द दे के गए हैं, वह गलत नहीं दे के गए|
और विनेश सिर्फ वह खिलाडी नहीं है जो पेरिस में मैडल से चूकी हो, अपितु वह वो खिलाडी है जिसने स्पोर्ट्स-सिस्टम को सुधारने हेतु, दिल्ली के जंतर-मंत्र पर ठीक वैसे ही आवाजें उठाई जैसे इसके पुरखे उठाते आए| विनेश के कौम-कल्चर-किनशिप का इतिहास उठा के देख लो, सन 714 वाले मुहम्मद-बिन-कासिम से ले आज वाले मोदी-शाह के राज तक; कोई शताब्दी ऐसी नहीं मिलेगी, जब इस कौम-कल्चर-किनशिप ने तमाम शासकों को उनकी गलतियां ना दिखाई हो, व् ज्यादा अड़ियल को ना झुकाया हो| और यह जज्बा जा नहीं सकता, क्योंकि यह कौम-कल्चर-किनशिप से ले जेनेटिक्स तक से आता है|
फूल मलिक
हमें गर्व हैं कि हमने हमारी पहलवान बेटी के लिए आन्दोलन किया
हमें गर्व हैं कि हमने हमारी पहलवान बेटी के लिए आन्दोलन किया, जिसने ओलंपिक्स में एक ही दिन में संसार की तीन धुरंधर पहलवानों को धूल चटाई। भले ही वो किसी कारण मेडल नहीं जीत पाई, पर उसने हमारा दिल जीता।
सलुमण का मतलब
सलुमण का मतलब आज 90साल से ऊपर एक बुजुर्ग ताई से पूछा तो उन्होंने जवाब दिया कि इसका मतलब है सावन का त्योहार जो रिश्तेदारियों में तीज पर सिंधारा,कोथली के बाद मनाया जाता था,बेटी बहन कभी भी शादी के तुरंत बाद आने वाले सामन में अपनी ससुराल न रुक कर अपने मायके रुका करती थी और अपनी पहचान बना सारा घर लीपा करती और एक तागा या ज्योत घर के आंगन,दहलीज,देहल,पशुओं के ठान या खेत में बने दो ईंटों के बीच बने दादा खेड़ा को पूजा करती और कहती हे मालिक आगे सुख राखिए,इस घर बार जहां मैने जन्म लिया उसकी मेर बनाए राखिए और बाबू,भाई घर के बड़े के एक तागा बांध दिया करती। कहीं कहीं आपस में इकट्ठी हो पिंग झूल लेती और देशी गीत गा लिया करती। चमासे में गुड तेल के गुलगुले,सुहाली खाने का अलग ही मजा था जो तीज वाले दिन या आगे पीछे बारिश आने में ज्यादा मात्रा में बना लिए जाते थे।कुल मिला कर सामन में सलूमण बहन भाई के संयुक्त परिवार के आनंद रंगचाह का दिन हुआ करता जो किसान परिवारों में हजारों वर्षों से इसके रीति रिवाज परंपराओं सभ्यता संस्कृति का प्रतीक रहता आया है,गांव में रक्षा बंधन आजादी के बाद ही आया है।भाई बहन का प्यार इसकी सबसे बड़ी खूबी है तो वहीं बहन बेटी के ससुराल के परिजनों द्वारा यह पूछा जाना कि बता थारे घर से रक्षा बंधन पर तुझे क्या क्या मिला?यह बुराई भी है जबकि एक बहन भाई से अपेक्षा तो रखती है मगर कभी भी लालच नहीं करती,भाई की आर्थिक स्थिति को वह सदा समझती है।अपने घर पर अपने मां बाप के जिंदा रहते पूरा अधिकार समझती है मगर मां बाप के चले जाने के बाद यह अधिकार भाभी की वजह से कम या ज्यादा हो जाता है।कुल मिला कर यह त्यौहार परिवारों को प्यार सहित जोड़े रखने का है इसका महत्व सावन माह से ही है,लेकिन आप सभी को पता है असल में नकल तो घुस ही पड़ी है।आप सभी भाई बहनों बड़े छोटों को यह त्यौहार मुबारक हो।
Thursday, 15 August 2024
कितना भाग्यवान व् शुभकारक है विनेश खेलों के सिस्टम व् देश के लिए कि देश में ना सही परन्तु ओलिंपिक के नियमों में बदलाव करवाने का कारक बनी!
विनेश को किस्मत की मारी, बेचारी आदि कहने बारे, थोड़ा ठीक-ठीक तोल के बोलेन, कहीं आपकी यह इतनी भावुकता आपकी बेटी को मूर्ख साबित ना कर दे! दुःख होना स्वाभाविक है, परन्तु उसको बुद्धि पे हावी करके भावुक हो के हताश होना कतई सही नहीं; वह क्यों नीचे पढ़ें|
क्योंकि जो लड़की अप्रैल-2024 में बाक़ायदा ट्वीट करती है कि मेरे साथ धोखा हो सकता है, तो उसको इतनी तो नादाँ व् मूर्ख तो नहीं ही समझो कि किसी ऐसे व्यक्ति के हाथों कुछ भी खाने-पीने का ले लेगी, जिसपे उसको शक रहा होगा| व् ऐसे बना के प्रतीत करने लगे हो कि जैसे साजिशकर्ता इंडिया से ही पीछे पड़ लिए होंगे, व् उसने उनको स्पेस दे भी दिया होगा? इतनी नादाँ या मूर्ख मान रहे हो क्या अपनी बेटी को? ठीक-ठीक लगा लो|
और ना ही मोदी एंड कंपनी को इतना ज्यादा शातिर व् तेज मानो कि सब उसकी स्क्रिप्ट से ही हो गया होगा| कहीं ना डंका बज रहा उसका कि उस लेवल पे जा के कोई ओलिंपिक का विदेशी अधिकारी उसके कहे से ऐसी साजिश कर देगा, हाँ देश वालों की गारंटी नहीं| तो कहीं तो अपने बालकों की अक्ल का भी हाथ ऊपर रखो| क्योंकि फाइनल में पहुंचने तक तो उसके साथ कोई गड़बड़ हुई नहीं, या कहो वह इतनी सतर्क थी कि होने नहीं दी| कितने ही तो डोप-टेस्ट्स से गुजरी होगी, स्क्रीनिंग से गुजरी होगी; तो इंडिया वाले उसको वहां तो किसी लेवल पर रोकने में कामयाब हुए नहीं, और ओलिंपिक में हो जाएंगे?
कई कह रहे हैं कि प्री-क्वार्टरफईनल में ही जापान वाली सबसे ताकतवर से भिड़वाना भी साजिश थी; इन कयासों को नकारात्मक डायरेक्शन में किस स्तर तक ले जाओगे; आप तो किसी ऐसी माँ की भांति व्यवहार करने लगे कि जैसे उसकी लाड़ली औलाद के लाड़ में वह इतना डूब जाती है कि उसके बच्चे को कुदरती तौर पर भी खरोंच आ जाए तो उसमें भी दिमाग में सिर्फ साजिशों के अम्बार बना बैठती है|
प्री-क्वार्टरफईनल में सुसाकी भी तो किसी के बांटें आनी थी या वर्ल्ड-टॉप थी तो इसका मतलब यह तो नहीं था कि उसको सीधा फाइनल में ही भिड़ने आना था; या मोदी वहीँ से साजिश करवा चुका होगा, इतना भी डंका नहीं है या है? क्यास के अलावा इस बात का कोई तथ्यात्मक ठहराव है? नेगेटिव-पॉजिटिव का बैलेंस कीजिए किसी बिंदु पे तो| राऊटर-सिस्टम जैसा कुछ होता है उसके तहत आ गई वो विनेश के बांटे, पहली भिड़ंत में|
दूसरा, ऊपर बता ही दिया; जिस तरीके से सचेत हो कर वह चल रही थी, तो क्या लगता है उसने ऐसे ही किसी के भी हाथ से कुछ भी ले के खा लिया होगा? या उसके विदेशी कोच ने कोई खाने की चीज उसके पास ऐसे ही फटकने दी होगी; एक बार को इंडियन-स्टाफ पे भरोसा नहीं भी करो तो? उसका पति तक साए की तरह उसके साथ था, तो इतना तो इर्दगिर्द का ध्यान उसने भी रखा होगा कि कम-से-कम खाने के जरिए कोई उसको गलत ना खिला जाए|
हाँ, जहाँ मोदी, नीता अम्बानी व् पीटी ऊषा व् IAO को दोष देना है तो वह यह इंसिडेंट होने के बाद से शुरू होता है; वह चाहे उनके ब्यान रहे हों, मोदी का ट्वीट आने का वक्त व् मौका रहा हो, केस को कोर्ट में डालने में उनका गायब रहना रहा हो; वहां दोष रखो| इतना मत सब इनके ही पल्ले जड़ दो कि यह तो पता नहीं धरती के ऐसे कौनसे षड्यंत्रकारी हो गए कि एक भी दांव छोरी का कामयाब ना हुआ हो| ऐसा करके जाने कहो या अनजाने में आप विनेश को, उसके कोच को मंदबुद्धि मानने की दिशा में जा रहे हो; थाम्बो इसको यहीं, कण्ट्रोल करो अपनी भावनाओं को| और लड़की की बदकिस्मती की लकीर भी इतनी मत बढ़ाओ कि जैसे वह पहली भुग्तभोगी थी इस नियम की; वह जो 4-5 और पहले के भुग्तभोगी पहलवानों के भी तो ट्वीट्स व् मेसेज आए थे, जूरी उनसे भी तो डरी होगी कि इसको मैडल दिया तो फिर वो मोर्चा खोल के बैठेंगे, उनको भी मैडल देने होंगे|
बल्कि विनेश को इस मामले में भाग्यशाली कहो कि इंडिया में जैसे वह सिस्टम ठीक करने को लड़ी, उसी भांति ओलिंपिक का भी सिस्टम ठीक करने का कारक बनी; जूरी ने कहा कि आगे कोई ऐसा केस आवे, उससे पहले ही यह नियम बदल लिए जावें| यह क्रेडिट दो अपनी बेटी को कि नेशनल हो या इंटरनेशनल स्तर वह दोनों जगह सिस्टम की खामियां उजागर करने का कारक तो बनी ही, इंटरनेशनल वाले को तो उसकी वजह से सुधारा भी जाने वाला है| हाँ यहाँ नेशनल वाले यानि मोदी गवर्नमेंट को कोस सकते हो कि ओलिंपिक बॉडी व् CAS से सीखे मोदी सरकार व् WFI हमारी पहलवान वहां के कानून बदलवाने में कामयाब हुई परन्तु अपने देश के ही ना बदलवा सकी; और वह भी 40 दिन धरने पे बैठ के ही नहीं अपितु तब से अब तक डेड साल होने को आया तब भी नहीं, जबकि CAS ने 7 दिन में ही किसी 'खाप-पंचायतों वाली एक ही सिटींग में न्याय कर देने की परम्परा' जैसे 7 दिन में ही केस का फैसला भी कर दिया, डेड साल के आगे 7 दिन तो एक ही सिटींग जितना ही मान सकते हैं?
अत: मायूसी जरूर है; परन्तु उसको हताशा के स्तर तक बढ़ाने से बचें; 17 अगस्त को बेटी आ रही है इंडिया, उस दिन इतना हजूम खड़ा कर दो कि अगर कोई साजिशकर्ता वाकई में कामयाब हुआ भी होगा, तो उसको भी झटका लगे कि कैसा यह समाज है व् कैसा इनका कल्चर कि हम साजिश कर-कर थक गए परन्तु इनके हैं कि हौंसले डाउन के बजाए ऊपर-ही-ऊपर और ऊपर जाए-जाते हैं!
जय यौधेय! - फूल मलिक
Tuesday, 13 August 2024
Vinesh medal and IOA chief P T Usha stand
इस भाषण 👆का मतलब तो यही हुआ, कि जो राष्ट्रभक्ति का ठेका सिर्फ वचनों में उठाने वाले हैं; इनके कहे का उल्टा समझना चाहिए! कहाँ, इस आदमी का यह भाषण और कहाँ आज घर-आए-उए मेडल्स तक बचाने की बजाए; इन्हीं के शासन तले IOA की चीफ पीटी उषा यह कह के पल्ला झाड़ लेती है कि वजन बढ़ने-घटने की जिम्मेदारी खुद खिलाडी व् उसके कोच की होती है? और कोई उससे प्रतिउत्तर लेने वाला नहीं कि अगर ऐसा है तो फिर डाइटीशियन, फिसिओथिरेपिस्ट किसलिए भेजे जाते हैं, खिलाडियों के साथ?
खिलाडी का काम खेलना होता है व् कोच का काम उसको संबंधित खेल जैसे कि विनेश के मामले में कुश्ती; उसके दांव-पेंच सिखाने होते हैं| कोच का काम खिलाड़ी की डाइट में इतना तक ही हो सकता होगा कि वह अपने उस खेल बारे लाइफटाइम अनुभव से यह बता दे कि इसको यह खिलाओ, वह खिलाओ; परन्तु कितना व् कब खिलाओ; आखिर यह एक कोच की जिम्मेदारी कैसे हो सकती है? और हो सकती है तो फिर वही बात, यह डाइटीशियन व् फिसिओथिरेपिस्ट किसलिए भेजे जाते हैं साथ?
इन IOA वालों की रूल्स एंड रेगुलेशंस की बुक उठवा के एनालाइज की जाए, क्या-क्या क्लॉज हैं इनके व् क्या-क्या ड्यूटी हैं; ऐसे थोड़े ही कि झाड़ के पल्ला हुई एक तरफ खड़ी| वह भी राष्ट्रभक्ति का डंका पीटने वालों की सरकार में; यही राष्ट्रभक्ति है क्या कि देश का नाम बदनाम हो रहा है पेरिस जैसी इंटरनेशनल जगह पर व् यह लोग एक मिनट नहीं लगाते पल्ला-झाड़ने में?
जय यौधेय! - फूल मलिक
Thursday, 8 August 2024
आपकी सामलात की जमीनों के कानून पहले ही बदल चुके हैं, गामों के लाल-डोरे तोड़ दिए हैं; आप तो नहीं चुस्के, परन्तु मुस्लिम समाज चुस्का व् बचा ली अपनी जमीनें; आप पड़े रहो फंडियों की जागरण-कथाओं की अफीम सूंघ के! देखो नीचे कैसे:
*आपकी सामलात की जमीनों के कानून पहले ही बदल चुके हैं, गामों के लाल-डोरे तोड़ दिए हैं; आप तो नहीं चुस्के, परन्तु मुस्लिम समाज चुस्का व् बचा ली अपनी जमीनें; आप पड़े रहो फंडियों की जागरण-कथाओं की अफीम सूंघ के! देखो नीचे कैसे:*
★ "वक़्फ़ संशोधन बिल" लोकसभा में पास नहीं हुआ... इस बिल का पास नहीं होना Pm नरेंद्र और आरएसएस गैंग की शिकस्त है..एक और शिकस्त..
◆ माहौल कुछ बनाया गया था कि "वक़्फ़ बोर्ड" ने ग़ैरक़ानूनी तरीक़े से ज़मीन पर क़ब्ज़ा कर लिया है..तो फिर राज्य सरकारों और केंद्र सरकार में "वक़्फ़ मिनिस्टर" क्यों रखा है? वक़्फ़ तो सरकारी है..
👉 एक सवाल : अगर एक हिंदू अपनी ज़मीन किसी को हिंदू धर्म के लिए दान करता है तो क्या सरकार उस ज़मीन में "मुस्लिम ट्रस्टी" रखने देगी?
👉 क्या सिखों की "गुरुद्वारा प्रबंधक कमिटी (SGPC), बुद्ध/जैन मंदिर, पारसी मंदिरों में दूसरे धर्म के ट्रस्टी हो सकते हैं?
👉 तो फिर एक मुस्लिम की धर्म के लिए दान की गई ज़मीन में "2 हिंदू ट्रस्टी" क्यों रहेंगे? कुछ तो शर्म रखनी चाहिए..
★ और वक़्फ़ की 9.4 लाख एकड़ के 70% हिस्से में मसाजिद, क़ब्रिस्तान, स्कूल, कॉलेज, मदरसे, यूनिवर्सिटी, लाइब्रेरी, यतीमख़ाने हैं..और ये ऑलरेडी सरकारी क़ब्ज़े में ही हैं..करना क्या चाहते थे?
◆ एक और सवाल : ये "2 हिंदू ट्रस्टी" कौन होंगे? RSS या अडानी-अम्बानी के लोग नहीं होंगे इस की क्या गारंटी है? और अगर RSS या अडानी-अम्बानी के लोग ट्रस्टी बनाए गए तो वक़्फ़ या'नि भारत की ज़मीनों का क्या होगा ये समझना बहुत आसान है!! आज के दिन अयोध्या में सेना की 13000 हजार एकड़ जमीन अडानी-रामदेव व् रविशंकर ढोलकापड़िये को पूज दी है, इसी से समझ जाईए इनकी मंशा
👉 और जिन्हें लगता है कि ये क़ानून सिर्फ़ वक़्फ़ के लिए है वो लोग "मा'सूम मूर्ख" हैं..ऐसा ही क़ानून दूसरे मज़हबों पर भी लागू कर देंगे..यही इन का रिकॉर्ड है.. कल को इसी कानून के तहत, तमाम *जाट शिक्षण संस्थाओं व् अन्य जातियों की भी ऐसी ही तमाम संस्थाओं की जमीन से ले आर्यसमाजी गुरुकुलों व् गौशालाओं की जमीन* RSS या अडानी-अम्बानी को चढ़ा देंगे तो कहाँ जाओगे?
● पहले रोज़ से मोदी की नज़र ज़मीन पर है..ज़मीन क़ानून, किसान क़ानून के बा'द यह मोदी की ज़मीनों पर क़ब्ज़ा करने की तीसरी कोशिश थी..आगे भी कोशिश जारी रहेगी..
● अगर विपक्ष मज़बूत रहा होता तो किसान कृषि बिल जैसे देश को बरबाद करने वाले क़ानून पास नहीं होते और नाही इतनी नफ़रत फैलती.. परन्तु आज विपक्ष मजबूत है तो रोक दिया है इस कानून को!
✋ भारत की 'अवाम का शुक्रिया कि मोदी की साज़िश को देर होने के बावजूद समझा और विपक्ष को मज़बूत बना दिया..देश में नफ़रत फैलाने और ज़मीन लूटने की सब से बड़ी साज़िश नाकामयाब हो गई..जय हिंद..
जय यौधेय! - फूल मलिक
Tuesday, 6 August 2024
बीजेपी सांसद रामचंद्र जांगड़ा को कोई यह आकंड़े दिखाओ!
इस आदमी के नाम के आगे श्री या पीछे जी तो क्या ही लगाऊं, क्योंकि इसका काम नहीं ऐसा; जैसा इसने दो दिन पहले थर्ड-क्लास गंवारों वाला भाषण दिया है राज्यसभा में, वह भी अपनी ही होमस्टेट व् एथनिसिटी यानि हरयाणत का फूहड़ मजाक उठाते हुए|
एक मिथ का भी पर्दाफाश करता हुआ, यह आंकड़ा दिखाओ इस मोलड़ को| अक्सर फैलाया जाता है कि सबसे ज्यादा IAS बिहार-बंगाल से आते हैं, यहाँ तक कि गुजरात तक को यह माना जाता है कि वहां से भी ज्यादा IAS आते होंगे; परन्तु यहाँ तो आंकड़ा कुछ और ही कहता है; देखें सलंगित डाटा| सबसे ज्यादा जनसंख्या अनुपात में तो IAS दिल्ली-हरयाणा-पंजाब से आते हैं| बिहार से तो हरयाणा-पंजाब के आधे भी नहीं आते! बंगाल-गुजरात की हालत तो और खस्ता है| यानि स्पोर्ट्स-हब के साथ-साथ IAS हब भी हरयाणा-पंजाब ही हैं| यह ऐसा झूठ फैला के कोई मनोवैज्ञानिक दबाव बनाया जाता है क्या इन राज्यों वालों पे|
और इस दबाव बनवाने में खुद इन्हीं राज्यों के MP सबसे पहले ताल ठोंकते हैं; अभी दो दिन पहले BJP सांसद रामचंद्र जांगड़ा का हरयाणा बारे फूहड़ केटेगरी वाला थर्ड क्लास गँवारपणे से भरपूर भाषण तो सुना होगा? क्या मतलब इस जांगड़ा साहब में हरयाणवी-स्वाभिमान की ओंस भी कभी पास से नहीं निकली क्या; या इनको यह लगता है कि हरयाणवी का मतलब सिर्फ एक जाति है, हरयाणा का मजाक उड़ाओ तो उसको उड़ेगा; तुम्हारा कुछ नहीं उड़ेगा? समझाओ कोई ऐसे गंवारों को कि जन्मे-पले-बड़े तो तुम भी उसी स्टेट में हो; वह भी पीढ़ियों से! कोई शरणार्थी ऐसा गोबर फेंकता तो समझ भी आती; हरयाणा का मूल-निवासी होने के बाद; संसद जैसी जगह खड़ा हो के ऐसी बेहूदगी दिमाग में|
दो जोक्स सुनाए इसने, दोनों थर्ड क्लास, लगता है यह अपनी जिंदगी में ऐसी ही हरकतें करता रहा है|
जय यौधेय! - फूल मलिक