जो काफी लोगों को तकलीफ़ भी देती हैं।
अपने कल्चर के मूल्यांकन का अधिकार दूसरों को मत लेने दो अर्थात अपने आईडिया, अपनी सभ्यता और अपने कल्चर के खसम बनो, जमाई नहीं!
Monday, 21 October 2024
आज जो प्लेन जमीन आपको दिखाई देती हैं।
Sunday, 20 October 2024
Jat and Festival Economy!
जब हम भाई बहन टीवी में किसी व्रत या त्योहार का सेलिब्रेशन देख उत्साहित होते तो हमारी माँ डाँट लगाते हुए कहतीं, “ये सब बाहमन बनिया के काम हैं.”
Other side of Karwa Chauth
ऐतिहासिक तौर पर जिन समाजों में विधवा औरत को पुनर्विवाह की इजादत नहीं रही है, जिनमें विधवा औरत को मनहूस बता के काल-कोठरों में रखने की रीत रही है व् जिन समाजों में विधवा औरत को अपशकुनी मान ब्याह-शादी जैसे पारिवारिक मौकों से घरों में दूर रखा जाता है; जहाँ सती-प्रथा व् जोहर-प्रथा रही हैं; उन समाजों का त्यौहार रहा है "करवा-चौथ"| उन समाजों की औरतें उनके यहाँ की विधवा औरतों के दयनीय हालात देख के, उनके वहां की विधवा वाली जिंदगी ना जीनी पड़ जाए; इसलिए डर के मारे यह त्यौहार मनाती हैं| खाप-खेड़े-खेतों की उदारवादी जमींदारी मानने वाले समाजों में तो औरत पर यह सब जुल्म व् भेदभाव रहे ही नहीं कभी| इनके यहाँ तो ऐसे सिस्टम रहे कि जिनके चलते कहवाते रही कि, "जाटणी कभी विधवा नहीं होती"; जिनका ब्याह के वक्त ही यह सीटनें बोल के भय 'विधवा-की-उपविदित-दर्दनाक-जिंदगी-जीने' का भय निकाल के विदा किया जाता रहा है कि, "लाडो हे ले ले फेरे, यू मर गया तो और भतेरे"|
हमें दिक्क़त नहीं, कि कौन समाज इस त्यौहार को मनाते हैं, हो सकता है उनके पास इसको अच्छा बताने के बेहतर कारण भी मिल जाएं; परन्तु अगर अपनी कल्चर-किनशिप की इन थ्योरियों को समझे बिना इन त्योहारों मनाओगे तो 35 बनाम 1 में भी फंसोगे व् कंधे से ऊपर कमजोर भी कहे जाओगे| क्योंकि कॉपीराइटेड त्यौहार तो तुम्हारा यह है नहीं, इम्पोर्टेड त्यौहार है व् इम्पोर्टेड त्यौहार बनाम कॉपीराइटेड त्यौहार कौन समाज कितने मनाता है यह भी एक पैमाना है, भारतीय समाज में आपकी कंधे से ऊपर की मजबूती मापने का|
और ऊपर से हास्यास्पद यह भी कि "आज जिस चाँद में पति ढूंढेंगी, कल उसी में बच्चों को चंदा-मामा भी दिखाएंगी"| फिर ही जो जहाँ खुश हो, वह रहे! परन्तु हमारे लिए यह औरत के अंदर भय संचालित करने, उसको और ज्यादा नाजुक बनाने का तंत्र ज्यादा है; उसको मर्दवाद में धकेलने का मोहब्ब्ती लहजा है|
Friday, 18 October 2024
धुर्र फिटे मुंह तेरा, यह दुःख कम क्यों नहीं होता रे - ये जाट तो यहाँ भी हाथ मार रहे हैं
"धुर्र फिटे मुंह तेरा, यह दुःख कम क्यों नहीं होता रे - ये जाट तो यहाँ भी हाथ मार रहे हैं" - तथाकथित 35 बनाम 1 के पटे पे चढ़ के बीजेपी को वोट देने वाले एक चिंटू का दर्द!
निसंदेह 2014 के बाद कल कोई रेगुलर भर्ती की बीजेपी ने हरयाणा में, C व् D ग्रुप में 25000 लोगों की| और इसमें भी 5435 जाट लग गए 21.7% लगभग हरयाणा में इनकी जनसंख्या के अनुपात के नजदीक ही मानिये जो कि 24-25% बताया जाता है, यादव भाई भी लगे 1242 (लगभग 5%, यादव भाईयों की हरयाणा में जनसंख्या है 8% के लगभग)|
ये बीजेपी वाले 35 बनाम 1 की नफरत पे सवार हो इनको वोट देने वालों का सरकार बनते ही पहले ही दिन से मजाक लग गए बनाने? इतने जाट लगाने पे इनको तो कोई जाटराज, जाटों की सरकार कह के भी नहीं कोस सकता; जो कि अगर इतने जाट, कांग्रेस या इनेलो सरकार में लगे होते तो हर 35 बनाम 1 की बीमारी से ग्रस्त चिंटू "जाटराज-जाटराज" चिल्ला रहा होता!
परन्तु इस सब के बीच एक गंभीर समस्या बीजेपी दे रही है हरयाणा को; जिस पर इस हर 35 बनाम 1 की नफरत में सुलग रहे चिंटू को सोचनी होगी; और वह यह कि 129 जजों की भर्ती में 80% से भी ज्यादा बाहर के लगाए बता जा रहे हैं और उधर एक और दूसरी भर्ती में BDPO की 8 पोस्ट, 7 भर्ती किए, जिसमें 4 बाहर के, 3 हरयाणा के। तुम हरयाणवी ऐसे ही बीजेपी के दिए इस 35 बनाम 1 के नफरती शिगूफे में टूल-टूल इनकी सरकार बनवाते रहना; और इस तरह यह एक दिन तुम्हें अंग्रेजों के जमाने में ले जाएंगे, जहाँ A व् B ग्रेड जॉब पे अंग्रेज होते थे व् बाकी पे भारतीय; ऐसे तुम हरयाणवी होने वाले हो, A व् B ग्रेड जॉब पे गैर-हरयाणवी व् तुम हरयाणवी सिर्फ C व् D ग्रेड पे|
Sunday, 13 October 2024
मां बता रही हैं कि दादी के जमाने में रिश्ता करने से पहले!
लड़की वाले लड़के वालों के खेत देखकर आते और खेत में चिंटियों के बिल देखते इससे अनुमान लगाते घर खाता पिता है।घर पर आकर बटोड़ा(पशुओं के गोबर के गोसे से बना) देखकर यह अनुमान लगाते कि गृहिणी चतर व मेहनती है।यानि इस घर में सब कुछ मिलेगा।अपनी बेटी को उस घर में ब्याह देते।
Friday, 11 October 2024
”थारा तो सिर्फ दीवा था! दीये में तेल और बत्ती तो मेरी आपणी थी” - लहरी सिंह
तेल और बती तो मेरी आपणी थी “!🤣🤣🤣
वर्ष 1960, 61…. मैंने जाट हीरोज मेमोरियल एंगलो संस्कृत हायर सेकेंडरी स्कूल रोहतक आठवीं क्लास में दाखिला लिया कोई खास ज्ञान नहीं था, छोटे-छोटे बच्चे थे, हमने देखा कि प्रातः प्रातः सुबह एक नेताजी वाली ड्रेस में हाथ में छड़ी लिए हुए एक सुंदर व्यक्तित्व का धनी,उसके पीछे-पीछे एक बंदूक वाला खाकी ड्रेस में और उनके साथ एक जर्मन शेफर्ड अल्सेशन कुत्ता प्रतिदिन स्कूल के ग्राउंड में देखा करते थे।हम उस समय फुटबॉल ग्राउंड में जाते थे, बहुत वक्त से सुबह-सुबह हाथ अंधेरे प्रैक्टिस करते थे। उस समय मेरे साथी फुटबॉल खिलाड़ी महावीर हुड्डा, मेरे ही गांव का मेरा फुटबॉल गोलकीपर भगवान सिंह, मेरे साथ लडायन गांव का मेरा साथी खिलाड़ी राजरूप सिंह, अतर सिंह बाल्मीकि, ताले राम, वीरेंद्र सिंह, जगबीर खेड़ी आसरा, चांद, ओम प्रकाश, भगता भागी बिरोहड़, पहलवान वेदपाल मोर हमारी फुटबॉल टीम का बैक, दयानंद सांगवान, इत्यादि ग्राउंड में खेलते थे,और कभी-कभी हमारे कोच फुटबॉल इंचार्ज श्री रन सिंह नरवाल जी कथुरा उनसे ग्राउंड में खड़े होकर वार्तालाप किया करते थे। एक दिन हमने हमारे फुटबॉल इंचार्ज कोच से हिम्मत करके मैंने पूछ ही लिया कि गुरुजी यह कौन है? उस दिन हमने पहली दफा जाना उस व्यक्ति के बारे में! अब जब आज के नेताओं को देखते हैं तो वह शख्सियत बड़ी याद आती है काश कि आज के युग में भी जिंदा होती! उन दिनों में पार्टीयों को कोई नहीं पूछता था नेता के कार्यकलाप की ही प्रशंसा होती थी, आजकल कल के नेताओं की तरह नहीं कि जितना बड़ा बदमाश उतना अच्छा नेता?????पोस्ट छोटूराम इरा में चौधरी लहरी सिंह की गिनती रोहतक जिले के प्रभावशाली नेऔर अग्रणी नेताओं मैं होती रही है!
असुलों के!सिद्धांतों के पक्के! मज़बूत इरादे!
1965 के भारत पाक युद्ध के परांत इंदिरा जी ने पंजाबी सूबे के मसले को सुलझाने के लिए सरदार हुकम सिंह की अध्यक्षता मैं एक कमेटी कांस्टिट्यूट की और इस कमेटी में हरयाणा के पक्ष के प्रतिनिधित्व के लिए चौधरी बंसीलाल और चौधरी लहरी सिंह को बतौर मेंबर रखा!
उस समय चौधरी बंसीलाल राज्य सभा के सदस्य थे और चौधरी लहरी सिंह जनसंघ के सिंबल ” दीये ” पर रोहतक संसदीय क्षेत्र से सांसद निर्वाचित हुए थे!
पंजाबी सूबे की मांग के मामले में जनसंघ पार्टी की सोच अकालियों की सोच से भिन्न थी! अकाली अलग पंजाबी सूबे की मांग कर रहे थे और जनसंघ की मांग थी कि ” महापंजाब ” का गठन किया जाये जिसमें सिख अल्पमत में आ जाएँ और पंजाबी हिन्दू का बहुमत हो!
पर चौधरी लहरी सिंह की इस मामले में सोच अलग थी! उनकी शुरू से ही सोच थी कि अगर स्वतंत्र हरयाणा प्रदेश का गठन कर दिया जाये तो हरयाणा वासियों के हित अधिक सुरक्षित रहेंगे! अपनी इस सोच पर वो अडिग रहे और हुकमसिंह कमेटी में चौधरी लहरी सिंह ने अलग हरयाणा प्रदेश के गठन की मांग की! 👍👍👍
हालांकि उस दौर में बहुत से कोंग्रेसी भी अलग हरयाणा प्रदेश की मांग के बारे में मुखर नहीँ थे!🫢🫢🫢
चौधरी लहरी सिंह की इस सोच की, इस विचारधारा की, उस समय की जनसंघ पार्टी के शीर्ष नेतृत्व ने आलोचना की! उनका विरोध किया! उनको उलाहना दिया कि हमारे चुनाव चिन्ह दीये पर निर्वाचित हो हमारा ही विरोध!🫢🫢🫢
चौधरी लहरी सिंह बहुत ही सपष्ट, निर्भीक, मज़बूत जनाधार और सिद्धांतों के पक्के नेता थे!
उनका जवाब था!” थारा तो सिर्फ दीवा था! दीये में तेल और बत्ती तो मेरी आपणी थी!”
ज़ाहिर था चुनाव उन्होंने अपने जनाधार एवं लोकप्रियता के दम पर जीता था ना क़ि जनसंघ पार्टी के दम पर!
इतने निर्भीक थे हमारे पूर्वज़!
सलाम ऐसे निर्भीक और परिपक्व सोच के नेताओं को!
आज़के फसली बटेर इन बुज़ुर्गो से कोई प्रेरणा ले सकें तो उनका भी कल्याण हो जाये! उनके पाप कट जाएँ!
आज समय की मांग है की इन विदेशी यूरेशियन नस्ल के भारतवर्ष के झूठे, लुच्चे लफंगे, बदमाश, बलात्कारी, व्यभिचारी, दुराचारी, भ्रष्टाचारी शासको को इस देश से जड़ मूल से उखाड़ कर फेंकने की आवश्यकता है।
Thursday, 10 October 2024
ठगी बाजार की सैर!
सरकार बीजेपी की बनी है, कांग्रेस हारी है लेकिन कोई उत्सव बीजेपी भी नहीं मना पा रही है। पहली बार देख रहा हूं कि जो जीत गए है वो भी डर में है और जो हारे वो सदमे में हैं कैसे हारे। कल तक बीजेपी के लोग अपनी 20 सीट भी नहीं बता रहे थे और वो अपने नए नए नायक खडे कर रहे हैं, जिनको बीजेपी चुनाव में लाने तक में शर्म महसूस कर रही थी।
Farmers and Labourers unity and Haryana Election 2024
Farmers and Labourers मे एकता न होने के कारण कांग्रेस को इन सीटों का नुकसान हुआ है 👇👇👇👇👇
1• विधानसभा नरवाना -
▪भाजपा उम्मीदवार को वोट मिले - 59474 ( 11499 से जीता )
▪कांग्रेस उम्मीदवार को वोट मिले 47975 ( 11499 से हार )
▪इनैलो को वोट मिले - 46303
▪इनैलो + कांग्रेस = 47975 + 46303 = 94278
94278 - 59474 = 34804
▪अगर नरवाना के जाट एक होकर वोट करते तो भाजपा 100% हारती। नरवाना से।
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2• विधानसभा उचाना
▪भाजपा को मिले वोट - 48968 ( 32 वोट से जीत )
▪कांग्रेस को मिले वोट - 48936 ( 32 वोट से हार )
▪निर्दलीय विरेन्द्र घोघडीयां को मिले वोट - 31456
▪निर्दलीय विकास ( काला ) को मिले वोट - 13458
▪निर्दलीय दिलबाग संडील को मिले वोट - लगभग 7500
▪दुष्यंत को वोट मिले - लगभग 7500
31456+ 7500+7500+13458 = 59914
▪लगभग 60,000 वोट खराब कर दिए जाटों ने अपने।
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3• सफीदों विधानसभा
▪भाजपा को कुल वोट- 58983
▪कांग्रेस को कुल वोट - 54946
▪भाजपा की जीत - 4037
▪आजाद को मिले वोट 👇
▪जसबीर देशवाल- 20114
▪बच्चन आर्य - 8807
8807 + 20114 = 28121 वोट जाटों ने अपने खराब किए।
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4• लाडवा विधानसभा -
▪अगर जाट और जट सिख यहां एकता दिखाते तो और अपने वोट न बांटते तो सीएम नायब सैनी भी अपनी सीट नही बचा पता।
▪भाजपा उम्मीदवार नायब सैनी को मिले वोट - 70177
▪भाजपा की जीत 16054 वोट से-
▪कांग्रेस उम्मीदवार मेवाराम को मिले वोट- 54123
▪इनैलो उम्मीदवार सपना बडशामी को मिले वोट - 7439
▪आप उम्मीदवार विक्रमजीत सिंह चीमा को मिले वोट - 11191
▪जाटों ने वोट खराब करे - 7439+ 11191 = 18630
▪अगर ये वोट का प्रयोग भाजपा को हराने के लिए करते तो नायब सैनी की 2000 से हार होती।
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5• विधानसभा बाढडा-
▪भाजपा को मिले वोट - 59315
▪कांग्रेस को मिले वोट - 51739
▪आजाद उम्मीदवार सोमवीर घोसेला को मिले वोट - 26730
▪कांग्रेस 7585 वोट से हारी।
▪अगर जाट अपने 26730 वोट खराब न करते तो बाढडा मे कांग्रेस जीतती।
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6• बरवाला विधानसभा - भाजपा 26942 वोट से जीती।
▪भाजपा को वोट मिले - 66843
▪कांग्रेस को वोट मिले - 39901
▪इनैलो को वोट मिले - 29055
▪कांग्रेस + इनैलो = 39901+29055 = 68956
अगर जाटों ने अपने वोट कांग्रेस और इनैलो मे न बांटे होते तो आराम से भाजपा हारती यहां से
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7• गोहाना विधानसभा
▪भाजपा जीती - 10429 से
▪आजाद उम्मीदवार को वोट मिले
▪हर्ष छिक्कारा - 14761
▪राजबीर दहिया - 8824
14761 + 8824 = 23585
23585 मे से कम से कम 18000 जाट वोट थे जो जाटों ने आजाद उम्मीदवार वोट देकर खराब दिए।
8• पुंडरी विधानसभा
▪भाजपा उम्मीदवार को मिले वोट - 42805
▪आजाद उम्मीदवार सतबीर भाणा को मिले वोट - 40608
▪आजाद उम्मीदवार सज्जन ढुल को मिले वोट - 5000
▪कांग्रेस को मिले वोट - 26341
▪इसके अलावा सिखों ने अपने उम्मीदवार गुरिंदर सिंह को 8100 वोट दिए।
▪इस सीट पर भाजपा 2197 वोट से जीती है। अगर जाट और सिख अपने वोट एक जगह डालते। तो यहां भाजपा को हराकर आजाद उम्मीदवार सतबीर भाणा जीत सकता था।
Tuesday, 8 October 2024
मेरे हिसाब से हरयाणा 2024 assembly polls में उथल-पुथल के यह कारण रहे
1 - कांग्रेस द्वारा इंडिया अलायन्स को सीटें देने की कंजूसी, 2-4 सीटों पर आप वाले भी उलझाए रखे जाते तो perception बनी रहती, सभी के साथ होने की
2 - कांग्रेस का पुराने घोड़ों पर हद से ज्यादा दांव, एक भी नहीं बदला
3 - बीजेपी का दलित में SC व् DSC का विभाजन
4 - रामरहीम फैक्टर
5 - दोनों तरफ बीजेपी व् कांग्रेस निर्दलीय बागी फैक्टर
6 - 13 फरवरी 2023 से हरयाणा-पंजाब बॉर्डर्स पर लगवाए किसान धरनों के जरिए बीजेपी यह संदेश देने में कामयाब रही कि इनको हमने ठिकाने लगा दिया है; जबकि मैंने बिना पूरे SKM के इस आंदोलन को सिर्फ 2-4 सगंठनों द्वारा चलाने पे ही यह बात कह दी थी कि यह बीजेपी प्रायोजित है, हरयाणा इलेक्शन को देखते हुए
7 - सेंट्रल कांग्रेस द्वारा सीएम चेहरा घोषित ना करना
8 - जाट, नॉन-जाट इतना ज्यादा नहीं था, क्योंकि यह विगत लोकसभा चुनाव में ही लगभग ध्वस्त हो चुका था
9 - काउंटिंग के दिन इलेक्शन मशीनरी का भरपूर दुरूपयोग; ऐसा पहली बार हुआ जब से हरयाणा बना है कि 12 बजे तक जहाँ सब सीटों के रिजल्ट आ जाते थे, वहां शाम होने तक भी रिजल्ट्स पूरे नहीं हुए हैं
10 - किसान संगठनों द्वारा कोई एक रणनीतिक समर्थन बना के ना चलना व् ना ही कांग्रेस द्वारा किसान संघटनों से सही तालमेल बिठाना; एक-आध को भी सेट कर देते 1-2 सीटों पर तो किसान वोट में इतनी अफरातफरी, कहीं अतिआत्मविश्वास तो कहीं पशोपेश ना बना होता; जो कि गलत संदेश दे के गया!
Jai Yauddhey! - Phool Malik
Monday, 23 September 2024
बैरी , बाजरा और बुलावा
आज्या बैरी टेम काढले दोनूं हँस बतळावांगे

Wednesday, 18 September 2024
"थारा तो सिर्फ दीवा था! तेल और बती तो मेरी आपणी थी "!🤣🤣🤣
वर्ष 1960, 61.... मैंने जाट हीरोज मेमोरियल एंगलो संस्कृत हायर सेकेंडरी स्कूल रोहतक आठवीं क्लास में दाखिला लिया कोई खास ज्ञान नहीं था, छोटे-छोटे बच्चे थे, हमने देखा कि प्रातः प्रातः सुबह एक नेताजी वाली ड्रेस में हाथ में छड़ी लिए हुए एक सुंदर व्यक्तित्व का धनी,उसके पीछे-पीछे एक बंदूक वाला खाकी ड्रेस में और उनके साथ एक जर्मन शेफर्ड अल्सेशन कुत्ता प्रतिदिन स्कूल के ग्राउंड में देखा करते थे।हम उस समय फुटबॉल ग्राउंड में जाते थे, बहुत वक्त से सुबह-सुबह हाथ अंधेरे प्रैक्टिस करते थे। उस समय मेरे साथी फुटबॉल खिलाड़ी महावीर हुड्डा, मेरे ही गांव का मेरा फुटबॉल गोलकीपर भगवान सिंह, मेरे साथ लडायन गांव का मेरा साथी खिलाड़ी राजरूप सिंह, अतर सिंह बाल्मीकि, ताले राम, वीरेंद्र सिंह, जगबीर खेड़ी आसरा, चांद, ओम प्रकाश, भगता भागी बिरोहड़, पहलवान वेदपाल मोर हमारी फुटबॉल टीम का बैक, दयानंद सांगवान, इत्यादि ग्राउंड में खेलते थे,और कभी-कभी हमारे कोच फुटबॉल इंचार्ज श्री रन सिंह नरवाल जी कथुरा उनसे ग्राउंड में खड़े होकर वार्तालाप किया करते थे। एक दिन हमने हमारे फुटबॉल इंचार्ज कोच से हिम्मत करके मैंने पूछ ही लिया कि गुरुजी यह कौन है? उस दिन हमने पहली दफा जाना उस व्यक्ति के बारे में! अब जब आज के नेताओं को देखते हैं तो वह शख्सियत बड़ी याद आती है काश कि आज के युग में भी जिंदा होती! उन दिनों में पार्टीयों को कोई नहीं पूछता था नेता के कार्यकलाप की ही प्रशंसा होती थी, आजकल कल के नेताओं की तरह नहीं कि जितना बड़ा बदमाश उतना अच्छा नेता?????
पोस्ट छोटूराम इरा में चौधरी लहरी सिंह की गिनती रोहतक जिले के प्रभावशाली नेता और अग्रणी नेताओं मैं होती रही है!
असुलों के!सिद्धांतों के पक्के! मज़बूत इरादे!
1965 के भारत पाक युद्ध के उपरांत इंदिरा जी ने पंजाबी सूबे के मसले को सुलझाने के लिए सरदार हुकम सिंह की अध्यक्षता मैं एक कमेटी कांस्टिट्यूट की और इस कमेटी में हरयाणा के पक्ष के प्रतिनिधित्व के लिए चौधरी बंसीलाल और चौधरी लहरी सिंह को बतौर मेंबर रखा!
उस समय चौधरी बंसीलाल राज्य सभा के सदस्य थे और चौधरी लहरी सिंह जनसंघ के सिंबल " दीये " पर रोहतक संसदीय क्षेत्र से सांसद निर्वाचित हुए थे!
पंजाबी सूबे की मांग के मामले में जनसंघ पार्टी की सोच अकालियों की सोच से भिन्न थी! अकाली अलग पंजाबी सूबे की मांग कर रहे थे और जनसंघ की मांग थी कि " महापंजाब " का गठन किया जाये जिसमें सिख अल्पमत में आ जाएँ और पंजाबी हिन्दू का बहुमत हो!
पर चौधरी लहरी सिंह की इस मामले में सोच अलग थी! उनकी शुरू से ही सोच थी कि अगर स्वतंत्र हरयाणा प्रदेश का गठन कर दिया जाये तो हरयाणा वासियों के हित अधिक सुरक्षित रहेंगे! अपनी इस सोच पर वो अडिग रहे और हुकमसिंह कमेटी में चौधरी लहरी सिंह ने अलग हरयाणा प्रदेश के गठन की मांग की! 👍👍👍 चौधरी रणबीर सिंह संविधान सभा के सदस्य श्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के पिताजी भी उन दिनों में उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलते थे जबकि पार्टियां अलग थी। इस रोहतक क्षेत्र की यही एक विशेषता थी की मिलकर चलना आपसी भाईचारा प्रेम सद्भाव समाज सेवा सरोपरी माना जाता था।
हालांकि उस दौर में बहुत से कोंग्रेसी भी अलग हरयाणा प्रदेश की मांग के बारे में मुखर नहीँ थे!🫢🫢🫢
चौधरी लहरी सिंह की इस सोच की, इस विचारधारा की, उस समय की जनसंघ पार्टी के शीर्ष नेतृत्व ने आलोचना की! उनका विरोध किया! उनको उलाहना दिया कि हमारे चुनाव चिन्ह दीये पर निर्वाचित हो हमारा ही विरोध!🫢🫢🫢
चौधरी लहरी सिंह बहुत ही सपष्ट, निर्भीक, मज़बूत जनाधार और सिद्धांतों के पक्के नेता थे!
उनका जवाब था!" थारा तो सिर्फ दीवा था! दीये में तेल और बत्ती तो मेरी आपणी थी!"
ज़ाहिर था चुनाव उन्होंने अपने जनाधार एवं लोकप्रियता के दम पर जीता था ना क़ि जनसंघ पार्टी के दम पर!
इतने निर्भीक थे हमारे पूर्वज़!
सलाम ऐसे निर्भीक और परिपक्व सोच के नेताओं को!
आज़के फसली बटेर इन बुज़ुर्गो से कोई प्रेरणा ले सकें तो उनका भी कल्याण हो जाये! उनके पाप कट जाएँ!
आज समय की मांग है की इन विदेशी यूरेशियन नस्ल के भारतवर्ष के झूठे, लुच्चे लफंगे, बदमाश, बलात्कारी, व्यभिचारी, दुराचारी, भ्रष्टाचारी शासको को इस देश से जड़ मूल से उखाड़ कर फेंकने की आवश्यकता है।
प्रधान धनखड़ खाप, कोऑर्डिनेटर सर्व खाप पंचायत।
Thursday, 12 September 2024
कुत्तुब्बुद्दीन ऐबक बनाम दादावीर चौधरी जाटवान मलिक जी गठआळा (गठवाला)
बैटल ऑफ हांसी - 13 सिंतबर 1192 AD - सर्वखाप बनाम कुतुबमीनार बनवाने वाले कुत्तबुद्दीन ऐबक
कुत्तुब्बुद्दीन ऐबक बनाम दादावीर चौधरी जाटवान मलिक जी गठआळा (गठवाला) - आज उस देदीप्यमान दिवस की बेला पर ऐतिहासिक literary तथ्यों के साथ विशेष प्रस्तुति!
सन् 1192 ई० में मोहम्मद गौरी ने दिल्ली के सम्राट् पृथ्वीराज चौहान को तराइन के स्थान पर युद्ध में हरा दिया और दिल्ली पर अधिकार कर लिया। मोहम्मद गौरी ने अपने सेनापति कुतुबुद्दीन ऐबक को दिल्ली का शासन सौंप दिया और स्वयं गजनी लौट गया । कुतुबुदीन ऐबक ने आम जनता पर तरह तरह के कर लगा दिए और अत्याचार करने शरू कर दिए जाटो को ये अत्याचारी अधर्मी नया शासक सहन नही हुआ और उन्होंने खाप-यौधेय दादावीर जाटवान मलिक जी के नेतृत्व में विद्रोह कर दिया। जाट इतिहास पृ० 714-715 पर ठा० देशराज ने दादावीर जाटवान के विषय में लिखा है कि इसी समय हांसी के पास दीपालपुर में गठवालों ने अपने नेता दादावीर जाटवान मलिक के साथ कुतुबुदीन ऐबक के सेनापति नुसुरतुदीन को हांसी में घेर लिया और मार दिया। गठवाले उसे भगाकर अपने स्वतन्त्र राज्य की राजधानी, हांसी को बनाना चाहते थे। इस खबर को सुन कर कुतुबुद्दीन पूरी सेना लेकर एक ही रात में 12 फसरंग (ध्यान रहे 1 फसरंग 12 km के बराबर होती हैं ) का सफर करके अपने सेनापति का बदला लेने के लिए हांसी पहुंचा
(“हसन निजामी जो कुतुबुद्दीन के दरबारी लेखक थे जो अपनी किताब तुमुल सिमिर / Taju-l Ma-asir में pp 218 पे लिखते हैं जिसका इंग्लिश अनुवाद :- " When the 3rd day of honoured month of Ramazan, 588 H ( according to today that is 13th of September 1192 AD ), the season of mercy and pardon, arrived, fresh intelligence was received at the auspicious Court, that the accursed Jatwan, having admitted the pride of Satan into his brain, and placed the cup of chieftainship and obstinacy upon his head, had raised his hand in fight against Nusratu-d din, the Commander, under the fort of Hansi, with an army animated by one spirit." Digressions upon spears, the heat of the season, night, the new moonday , and the sun. — Kutbu-d din mounted his horse, and " marched during one night twelve parasangs.") ”
तो दादावीर जाटवान मलिक ने संख्याबल और हथियारों की कमी को देखते हुए छापामार युद्ध कौशल का प्रयोग किया, धीरे धीरे कुतुबुदीन को अपने चक्रव्यूह खानक की पहाड़ियों (जिस आजकल डाडम या तोशाम की पहाड़िया कहा जाता हैं) जिसमे संख्याबल महत्वहीन हो गया दोनों सेनाये 3 दिन 3 रात तक अपना अपना युद्ध कौशल दिखाती रही खुद Taju-l Ma-asir /तुमुल सिमिर के मुस्लिम लेखक हसन निजामी आगे लिखते हैं “The armies attacked each other " like two hills of steel, and the field of battle became tulip-dyed with the blood of the warriors." — The swords, daggers, spears, and maces struck hard. - The locals were completely defeated, and their leader Jatwan slain but he showed tremendous bravery.”
युद्ध बहुत घमासान हुआ जैसे दो पहाड़ आपस में टकरा गए हों। धरती रक्त से लाल हो गई थी। बड़े जोर के हमले होते थे |जाट थोड़े थे पर फिर भी वो खूब लड़े| सुल्तान स्वयं घबरा गया। जाटवान ने उसको निकट आकर नीचे उतरकर लड़ने को ललकारा। किन्तु सुल्तान ने इस बात को स्वीकार न किया। जाटवान ने अपने चुने हुए साथियों के साथ हमारे गोल में घुसकर उन्हें तितर-बितर करने की चेष्टा की और मारा गया |
एक अत्याचारी की खिलाफ पहली तलवार उठाने वाला योद्धा दुर्भाग्य से तीसरे दिन, रात को युद्ध में शहीद गया| बेशक हार हुई पर गुलाम वंश यह मुस्लिम बादशाह युद्ध में हुई इस अप्रत्याशित क्षति को देखकर बोला कि “अगर मैं इस यौद्धा को संधि करके बहका लेता तो अपने साम्राज्य का बहुत विस्तार कर सकता था” और दिल्ली को राजधानी बनाने का विचार त्याग कर लाहौर चला गया| जाटवान के बलिदान होने पर गठवालों ने हांसी को छोड़ दिया और दूसरे स्थान पर आकर गोहाना के पास आहुलाना, छिछड़ाना आदि गांव बसाये। वीर जाटवान के बेटे हुलेराम ने संवत् 1264 (सन् 1207 ई०) में ये गांव बसाये| जाटवान मलिक के मारे जाने के बाद शाही सेना ने भयंकर तबाही मचाई जिससे गठवालो का यह गढ़ टूट गया, हजारों परिवारों को दूर जा कर बसना पड़ा। इसके बाद मलिक जाट अलग अलग दिशाओं में विभक्त हो कर उत्तरी भारत में फ़ैल गया। एक शाखा गोहाना, सोनीपत, पानीपत,रोहतक के आस पास फ़ैल गई। काफी संख्या में मलिक यमुना पार कर शामली, बडोत,मुज्जफर नगर,मेरठ तक बस गए, एक शाखा बीकानेर नागौर में जा बसी जिन्हें अब गिटाला, गथाला, गाट, घिटाला नाम से भाषा भेद के कारण जाना जाता है, इसी तरह एक शाखा बहादुरगढ़,दिल्ली,नोएडा,गाजियाबाद तक गई।वर्तमान में यदि सीमाओं को हटा कर बात की जाए तो गठवाला को 640 गांव का सबसे बड़ा खेड़ा भी कहा गया है, आज गठवाला गौत को मलिक के अलावा 12 से ज्यादा नामों से जाना जा सकता है।
दादा वीर जाटवान मलिक अपने हजारों साथियों के साथ बलिदान हुए और अपने वीरतापूर्ण जीवन के साहस एवं शौर्य से उन्होंने अपने पूर्वजों को गौरवान्वित किया जो सदा ही आने वाली नस्लो के लिए प्रेरणापुंज की तरह काम करता रहेंगा। यह बात शत-प्रतिशत सही है कि जिस कौम का इतिहास लिपिबद्ध नहीं होता, वह मृतप्राय हो जाती है। उसका स्वाभिमान और गौरव नष्ट हो जाता है। आज सर्वखाप के समाजों में गौरव और स्वाभिमान की भावना पैदा करने के लिए अति आवश्यक है कि ऐसे यौधेयों-यौधेयाओं की गौरवगाथाओं को लिपिबद्ध कर प्रचारित किया जाए, जिन्होंने अपनी अणख व् धरती हेतु और मानवीय मूल्यों की रक्षा के लिए सर्वशः बलिदान कर दिया ताकि आने वाली संतान संरक्षित और गौरव का अनुभव कर सके।
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Wednesday, 4 September 2024
खाप के प्रधान नही खाप महत्वपूर्ण होती है!
खाप के प्रधान नही खाप महत्वपूर्ण होती है! व्यक्ति नही सामूहिकता महत्वपूर्ण होती है! समस्या है कि हम व्यक्ति की तरफ जा रहे हैं सामूहिकता की तरफ नही!