Sunday, 24 November 2024

मैं कुछ पेड पतलचाट यूट्यूबर और एजेंट नेताओं से पूछना चाहता हूं कि महाराष्ट्र में तो कोई बाबू बेटा भी नहीं थे?

 बाबू बेटा बाबू बेटा करने वाले ये उन बाप बेटा की मेहनत की बदौलत ही हरियाणा में अकेले इतनी कांग्रेस की सीट (37 सीट) आई हैं लगभग जितनी महाराष्ट्र, झारखंड और जम्मू कश्मीर तीनों राज्यों की मिलाकर (38 सीट) आई हैं। हरियाणा में कांग्रेस की वोट प्रतिशत 40% के करीब बीजेपी के लगभग बराबर आई हैं। जबकि महाराष्ट्र में कांग्रेस गठबंधन की सिर्फ 34% (कांग्रेस 11.57%) वोट आई हैं बीजेपी गठबंधन की 49% (बीजेपी 26.19%) वोट आई हैं। महाराष्ट्र में लोकसभा में तो कांग्रेस गठबंधन के 48 में से 31 सांसद थे अब 288 विधानसभा सीट में सिर्फ 46 सीट आई हैं, कांग्रेस गठबंधन में 101 सीटों पर चुनाव लड़कर मात्र 16 सीटों पर चुनाव जीतने में कामयाब हुई है हरियाणा में 90 में से 37 सीट, महाराष्ट्र में जीत का स्ट्राइक रेट 16% और हरियाणा में 41% से ज्यादा, अब किसका कसूर काढ़ोगे?


महाराष्ट्र में तो कांग्रेस पार्टी किसी एक परिवार की पार्टी भी नहीं थी?

महाराष्ट्र में तो एक नहीं बल्कि तीन तीन पार्टियों के साथ गठबंधन भी था

महाराष्ट्र में तो किसी एक आदमी ने 72 टिकटें भी नहीं बांटी थी

महाराष्ट्र में तो किसी नेता में अहंकार नहीं हुआ होगा?

महाराष्ट्र में तो कोई फ्री हैंड नहीं होगा

जिनका हरियाणा में अपमान होने की बात कह रहे थे उसका महाराष्ट्र में तो अपमान नहीं हुआ होगा वहां तो पूरी इज्जत और सम्मान दिया था


मगर फिर भी महाराष्ट्र में पार्टी की इतनी बुरी हार क्यों?


 जो लोग बाबू बेटा बाबू बेटा बाबू बेटे की पार्टी का प्रचार दिन रात चला रहे थे यानी वो सब मानते हैं कि अकेले बाबू बेटा ही चुनाव लड़ रहे थे और किसी ने साथ दिया नहीं उल्टा साथ देने की बजाय पार्टी को नुकसान पहुंचाने वाले बयान तक दे रहे थे, तब भी सिर्फ बाबू बेटा ही संघर्ष कर रहे थे बीजेपी से लड़ाई लड़ रहे थे यहां तो अकेले बाबू बेटा ही थे जबकि वहां तो 3- 4 पार्टियां मिलकर चुनाव लड़ रही थी, इतने सारे नेता थे सब मिलकर लड़ रहे थे यहां तो सिर्फ बाबू बेटा ही थे जो इतनी सारी वोट लोगों की लड़ाई लड़कर लेकर आए हैं, बीजेपी के बराबर वोट देने वाले लोगों की भावनाओं का अपमान तो ना करो, उनका सम्मान करो बाबू बेटा को बीजेपी के 56 लाख वोटों के लगभग बराबर 56 लाख ही वोट दे रखी हैं 36 बिरादरी ने, जाट समाज की तो 40% में से मात्र 13% वोट ही कांग्रेस को मिली हैं बाकी 27% तो सभी बिरादरी ने दे रखी हैं। जाट समाज ने टोटल में से 53% कांग्रेस 28% बीजपी और 19% अन्य को वोट दी, अगर लोकसभा की तरह अकेले जाट समाज एकजुट होकर 70% वोट कांग्रेस को दे देता तो सुरते हाल अलग होती हरियाणा में, 52-53 सीटों के साथ कांग्रेस की सरकार होती, बहरहाल जबकि चारों राज्यों में कोई एक नेता बता दो जो हुड्डा साहब की तरह  छत्तीस बिरादरी में मजबूत हो, हुड्डा साहब ही सबसे कद्दावर नेता थे उन्हीं के बल पर हरियाणा में बीजेपी के बराबर वोट आई हैं वो अलग मामला है कि हम चुनाव हार गए उसके लिए बीजेपी के तमाम हथकंडों षड्यंत्रों को श्रेय देना चाहिए कि कैसे धन के बल पर छल किया निर्दलीय खड़े कर वोट बांटे, evm का दुरुपयोग धन के बल पर वोट खरीदे, सारे मर्यादाओं को ताक पर रखकर सजायाफ्ता बाबाओं का सहारा लिया, यंत्र तंत्र का खुलकर दुरूपयोग किया, लोकतंत्र का चीर हरण किया उसके बाद भी लोगों का बाबू बेटे को इतना आशीर्वाद मिला, कि सत्तादल के बराबर वोट आए हैं नंबर गेम में बेशक पिछड़ गए लोगों के प्रेम में नहीं पिछड़े। दीपेंद्र हुड्डा तो वो नेता है जो पूरे हरियाणा में सबसे अधिक वोटों से जीता था और देश में राहुल गांधी के बाद दूसरे नंबर पर सबसे अधिक मार्जन से जीतने वाला कांग्रेस का नेता, विधानसभा में चौ.भूपेंद्र सिंह हुड्डा ऐसे नेता हैं जो पूरे प्रदेश में दूसरे सबसे बड़े मार्जन से जीतने वाले नेता हैं लोगों ने कांग्रेस को खुलकर वोट दी हैं दे रखी हैं उन वोट देने वाले वोटर्स का अनादर अपमान तो मत करो उनके ऊपर अंगुली उठाने वाले नेता दरअसल खुद अपने ऊपर केअंगुली उठा रहे हैं कहीं ना कहीं उनको भी पता है इसके *मैं कुछ पेड पतलचाट यूट्यूबर और एजेंट नेताओं से पूछना चाहता हूं कि महाराष्ट्र में तो कोई बाबू बेटा भी नहीं थे?


बाबू बेटा बाबू बेटा करने वाले ये उन बाप बेटा की मेहनत की बदौलत ही हरियाणा में अकेले इतनी कांग्रेस की सीट (37 सीट) आई हैं लगभग जितनी महाराष्ट्र, झारखंड और जम्मू कश्मीर तीनों राज्यों की मिलाकर (38 सीट) आई हैं। हरियाणा में कांग्रेस की वोट प्रतिशत 40% के करीब बीजेपी के लगभग बराबर आई हैं। जबकि महाराष्ट्र में कांग्रेस गठबंधन की सिर्फ 34% (कांग्रेस 11.57%) वोट आई हैं बीजेपी गठबंधन की 49% (बीजेपी 26.19%) वोट आई हैं। महाराष्ट्र में लोकसभा में तो कांग्रेस गठबंधन के 48 में से 31 सांसद थे अब 288 विधानसभा सीट में सिर्फ 46 सीट आई हैं, कांग्रेस गठबंधन में 101 सीटों पर चुनाव लड़कर मात्र 16 सीटों पर चुनाव जीतने में कामयाब हुई है हरियाणा में 90 में से 37 सीट, महाराष्ट्र में जीत का स्ट्राइक रेट 16% और हरियाणा में 41% से ज्यादा, अब किसका कसूर काढ़ोगे?


महाराष्ट्र में तो कांग्रेस पार्टी किसी एक परिवार की पार्टी भी नहीं थी?

महाराष्ट्र में तो एक नहीं बल्कि तीन तीन पार्टियों के साथ गठबंधन भी था

महाराष्ट्र में तो किसी एक आदमी ने 72 टिकटें भी नहीं बांटी थी

महाराष्ट्र में तो किसी नेता में अहंकार नहीं हुआ होगा?

महाराष्ट्र में तो कोई फ्री हैंड नहीं होगा

जिनका हरियाणा में अपमान होने की बात कह रहे थे उसका महाराष्ट्र में तो अपमान नहीं हुआ होगा वहां तो पूरी इज्जत और सम्मान दिया था


मगर फिर भी महाराष्ट्र में पार्टी की इतनी बुरी हार क्यों?


 जो लोग बाबू बेटा बाबू बेटा बाबू बेटे की पार्टी का प्रचार दिन रात चला रहे थे यानी वो सब मानते हैं कि अकेले बाबू बेटा ही चुनाव लड़ रहे थे और किसी ने साथ दिया नहीं उल्टा साथ देने की बजाय पार्टी को नुकसान पहुंचाने वाले बयान तक दे रहे थे, तब भी सिर्फ बाबू बेटा ही संघर्ष कर रहे थे बीजेपी से लड़ाई लड़ रहे थे यहां तो अकेले बाबू बेटा ही थे जबकि वहां तो 3- 4 पार्टियां मिलकर चुनाव लड़ रही थी, इतने सारे नेता थे सब मिलकर लड़ रहे थे यहां तो सिर्फ बाबू बेटा ही थे जो इतनी सारी वोट लोगों की लड़ाई लड़कर लेकर आए हैं, बीजेपी के बराबर वोट देने वाले लोगों की भावनाओं का अपमान तो ना करो, उनका सम्मान करो बाबू बेटा को बीजेपी के 56 लाख वोटों के लगभग बराबर 56 लाख ही वोट दे रखी हैं 36 बिरादरी ने, जाट समाज की तो 40% में से मात्र 13% वोट ही कांग्रेस को मिली हैं बाकी 27% तो सभी बिरादरी ने दे रखी हैं। जाट समाज ने टोटल में से 53% कांग्रेस 28% बीजपी और 19% अन्य को वोट दी, अगर लोकसभा की तरह अकेले जाट समाज एकजुट होकर 70% वोट कांग्रेस को दे देता तो सुरते हाल अलग होती हरियाणा में, 52-53 सीटों के साथ कांग्रेस की सरकार होती, बहरहाल जबकि चारों राज्यों में कोई एक नेता बता दो जो हुड्डा साहब की तरह  छत्तीस बिरादरी में मजबूत हो, हुड्डा साहब ही सबसे कद्दावर नेता थे उन्हीं के बल पर हरियाणा में बीजेपी के बराबर वोट आई हैं वो अलग मामला है कि हम चुनाव हार गए उसके लिए बीजेपी के तमाम हथकंडों षड्यंत्रों को श्रेय देना चाहिए कि कैसे धन के बल पर छल किया निर्दलीय खड़े कर वोट बांटे, evm का दुरुपयोग धन के बल पर वोट खरीदे, सारे मर्यादाओं को ताक पर रखकर सजायाफ्ता बाबाओं का सहारा लिया, यंत्र तंत्र का खुलकर दुरूपयोग किया, लोकतंत्र का चीर हरण किया उसके बाद भी लोगों का बाबू बेटे को इतना आशीर्वाद मिला, कि सत्तादल के बराबर वोट आए हैं नंबर गेम में बेशक पिछड़ गए लोगों के प्रेम में नहीं पिछड़े। दीपेंद्र हुड्डा तो वो नेता है जो पूरे हरियाणा में सबसे अधिक वोटों से जीता था और देश में राहुल गांधी के बाद दूसरे नंबर पर सबसे अधिक मार्जन से जीतने वाला कांग्रेस का नेता, विधानसभा में चौ.भूपेंद्र सिंह हुड्डा ऐसे नेता हैं जो पूरे प्रदेश में दूसरे सबसे बड़े मार्जन से जीतने वाले नेता हैं लोगों ने कांग्रेस को खुलकर वोट दी हैं दे रखी हैं उन वोट देने वाले वोटर्स का अनादर अपमान तो मत करो उनके ऊपर अंगुली उठाने वाले नेता दरअसल खुद अपने ऊपर अंगुली उठा रहे हैं कहीं ना कहीं उनको भी पता है इसके लिए वो खुद ही जिम्मेदार हैं।


महाराष्ट्र से तो हरियाणा का चुनाव परिणाम ही सौ गुणा अच्छा और प्रभावी रहा है*लिए वो खुद ही जिम्मेदार हैं।


*महाराष्ट्र से तो हरियाणा का चुनाव परिणाम ही सौ गुणा अच्छा और प्रभावी रहा है

      हरियाणा की जनता ने अपनी तरफ से आरएसएस बीजेपी और इसके सहयोगियों को खदेड़ने के लिए भरपूर वोट दी है आरएसएस बीजेपी को वोट डालने वाला कोई भी चाहे कर्मचारी वर्ग हो, किसान वर्ग हो मजदूर वर्ग हो कमेरा वर्ग हो, पेंशनर, डॉक्टर, इंजीनियर, टीचर, पटवारी, सरपंच, बालवाड़ी, सभी तो इस सरकार की पुलिस के लट्ठ खा चुके थे तो भला इनको वोट क्यों देते? किसी ने इस आरएसएस बीजेपी को वोट नहीं दी। गड़बड़ है तो केवल चुनाव आयोग के द्वारा बढ़ाई गई वोट परसेंटेज % और शासन प्रशासन के अधिकारियों से मिलकर के दबाव बनाकर के मेनू प्लेटेड रिजल्ट तैयार करना। उन 14 लाख वोट का डिस्ट्रीब्यूशन हुआ है, जहां जिसको जिताना चाहा उसको जीता दिया, जहां जिसको हराना चाहा हरा दिया। फिर भी अगर किसी पत्तल चाट या यूट्यूबर को कोई शक हो तो चुनाव आयोग से मांग करें किसी एक कांस्टीट्यूएंसी हरियाणा की उठा लो और उस कांस्टीट्यूएंसी के हस्ताक्षर रजिस्टर, हर बूथ के वोटर के सिग्नेचर वाला रजिस्टर उठाकर के टोटल वोट्स पोल्ड का और बोगस वोट पोल्ड का ईवीएम मशीन वी वी पैड की पर्चियां का मिलान करके भला देख तो ले, मिलान हो ही नहीं सकता, क्योंकि 14 लाख वोट बढी पाई गई है। एक्चुअल रिजल्ट तो हस्ताक्षर रजिस्टर ही देगा कि उस बूथ में कितनी वोट पोल हुई है और किस-किस ने वोट डाली है बोगस है या ठीक?सारी घपले बाजी पकड़ी जा सकती है। हर बूथ का हस्ताक्षर रजिस्टर चाहे बोगस वोट डलवाए गए हो या घटाएं तथा बढ़ाएं गए हो सब पकड़ में आ जाएंगे गहरी जांच का विषय है। 

इस आरएसएस बीजेपी सरकार और चुनाव आयोग तथा न्यायपालिका के कुछ जजों की मिली भगत से अमृतकाल की रेवड़ी खाने से ही जनता के वोट का अधिकार को समाप्त कर दिया गया है तथा ऐसा लगता है। कि भारतीय संविधान और लोकतंत्र खतरे की तरफ धकेला जा रहा है। इस सोने की चिड़िया कहलाने वाले भारतवर्ष को कॉरपोरेट्स के हवाले करके, गर्त में डुबोया जा रहा है। कोरिया चीन रूस साउथ अफ्रीका की तरह एक तंत्र शासन स्थापित करने की गहरी साजिश रची जा सकती है!

डॉ ओम प्रकाश धनखड़ प्रधान धनखड़ खाप कोऑर्डिनेटर सर्वखाप पंचायत।

Friday, 22 November 2024

ब्राह्मणवाद सबसे जटिल और चालाक वैचारिक यंत्र!

विचारों के इतिहास में, ब्राह्मणवाद सबसे जटिल और चालाक वैचारिक यंत्र रहा है। उदाहरण के लिए, चुनौतीपूर्ण समय के दौरान, ब्राह्मणवाद अपने भीतर से ब्राह्मण विरोधी संप्रदाय के उदय को बढ़ावा देने या अनुमति देने के द्वारा स्वयं को बनाए रखता है और मतभेद फैला देता है।


ये संप्रदाय ब्राह्मणवाद के प्रभुत्व को चुनौती देते हुए दिखाई देते हैं, लेकिन वास्तव में, असंतोष को फैलाने और नियंत्रित करने के लिए या रणनीतिक रूप से इसके द्वारा समर्थित हैं। एक बार परिस्थितियाँ अनुकूल हो जाने के बाद, ब्राह्मणवाद व्यवस्थित रूप से इन संप्रदायों को समाप्त कर देता है और अपने नग्न आधिपत्य को पुनः स्थापित करता


ऐतिहासिक रूप से, महाजनापद काल में बौद्ध धर्म और जैन धर्म के उदय में यह रणनीति देखी जा सकती है। शुद्रों के बीच ब्राह्मण विरोधी भावनाओं का सामना करते हुए ब्राह्मणवाद ने बुद्ध और महावीर जैसे नेताओं को क्षत्रिय का दर्जा दिया। इसने उनके नेतृत्व को वैध बनाया और उनके तत्वधान में ब्राह्मण विरोधी संप्रदाय के गठन की अनुमति दी। हालाँकि, गुप्त काल के दौरान, जैसे-जैसे ब्राह्मणवाद ने सामाजिक-राजनीतिक प्रभुत्व प्राप्त किया, इन संप्रदायों को व्यवस्थित रूप से दबा दिया गया या ब्राह्मणवाद में आत्मसात किया गया।


इसी तरह ब्रिटिश काल में ब्राह्मणवाद ने आर्य समाज आंदोलन को बढ़ावा देकर उत्तर-पश्चिम में उच्च वर्ग के शूद्रों के बीच बढ़ती ब्राह्मण विरोधी भावनाओं का जवाब दिया था। यद्यपि यह ब्राह्मणवादी रूढ़िवादी को चुनौती देता प्रतीत हुआ, लेकिन आर्य समाज ब्राह्मणवादी संरचना के भीतर कार्य करता था। स्वतंत्रता के बाद जैसे जैसे ब्राह्मणवाद ने अपना प्रभुत्व प्राप्त किया, आर्य समाज आंदोलन को व्यवस्थित ढंग से ध्वस्त कर दिया गया।


मुगल काल के दौरान पंजाब में ब्राह्मणवाद को एक समान चुनौती का सामना करना पड़ा था। सूफी शिक्षाओं से प्रेरित और उत्थान शुद्रों और दलितों ने मजबूत ब्राह्मण विरोधी भावनाओं का विकास किया। जवाब में, ब्राह्मणवाद ने खत्री नेताओं के साथ सहयोग किया, उन्हें क्षत्रिय का दर्जा दिया, और इस असहमति को प्रबंधित करने के लिए सिख संप्रदाय के निर्माण में मदद की। एक बार इस चुनौती को संबोधित किया गया तो ब्राह्मण सिख संप्रदाय को पूरी तरह से दबाने के कगार पर थे। हालांकि, 1857 के विद्रोह के प्रकोप ने अचानक उनके प्रयासों को बाधित कर दिया, क्योंकि अंग्रेजों ने सिखों को बहुमूल्य सहयोगी पाया, सक्रिय रूप से समर्थन दिया और सिख धर्म को ब्राह्मणवाद से मुक्त किया।


यही घटना भागवत संप्रदाय, गोरख संप्रदाय और कई अन्य मामलों में देखी जा सकती है। इस रणनीति ने ब्राह्मणवाद को " विरोधाभास की श्रृंखला बना दिया है। " 

शिवत्व बेनिवाल

Monday, 18 November 2024

Sehrawat Khap National Program - 18-11-2024

हिरण कूदना दिल्ली।


सहरावत खाप के राष्ट्रीय अध्यक्ष चौधरी मूलचंद सहरावत के सम्मान समारोह व विभिन्न राष्ट्रीय विषयों (मुद्दों ), दिल्ली देहात के विषयों(मुद्दो) तथा समाज में व्याप्त कुरीतियों पर सहरावत खाप द्वारा रखी गई राष्ट्रीय सर्व खाप महापंचायत में सभी खापों के प्रधानों ने पहुंच कर सहरावत खाप द्वारा उठाए गए मुद्दों पर अपने विचार रखें और एक मत से सभी मुद्दों के समाधान के लिए एकजुट होकर काम करने के संकल्प को दोहराया।


हिंदुस्तान की सैकड़ों खापों ने सहरावत खाप द्वारा उठाए गई सामाजिक पहल का किया समर्थन।


सहरावत खाप के द्वारा हिरण कूदना दिल्ली में खाप के राष्ट्रीय प्रधान चौधरी मूलचंद सहरावत हिरण कूदना का सम्मान समारोह आयोजित किया गया। खाप के द्वारा दिल्ली देहात के कई मुद्दों, राष्ट्रीय स्तर के मद्दों, सामाजिक मुद्दों के साथ साथ कई ज्वलंत मुद्दों व समाज में व्याप्त कुरीतियों को दूर करने के लिए राष्ट्रीय सर्वखाप महापंचायत का भी आयोजन किया गया। हिंदुस्तान की सैकड़ों खापों के प्रधानों, चौधरियों, खाप प्रतिनिधियों व कई अन्य सामाजिक संगठनों के प्रतिनिधियों ने सहरावत खाप द्वारा रखे गए विषयों पर गहराई से मंथन किया। सभी ने सहरावत खाप द्वारा उठाए गए मुद्दों पर विचार विमर्श उपरान्त एक मत से इन सभी के स्थाई समाधान पर बल दिया। सहरावत खाप के राष्ट्रीय अध्यक्ष चौधरी मूलचंद सहरावत को सम्मान पूर्वक सभी खाप प्रधानों के द्वारा सर्व खाप की तरफ से पगड़ी बांध कर उनको आशीर्वाद व शुभकामनाएं दी। सभी आए हुए मेहमानों का सहरावत खाप की तरफ़ से गर्मजोशी से स्वागत किया। सभी का फूलमालाओं से स्वागत कर उन्हें सम्मान पूर्वक पगड़ी, शॉल, विशिष्ट अतिथि मोमेंटो भेंट कर पधारने का धन्यवाद किया। वयोवृद्ध बुजुर्गों को साथ में डोगा भेंट कर आशीर्वाद लेने का कार्य किया। सभी ने सहरावत खाप द्वारा सामाजिक एकता व भाईचारे को बढ़ावा देने के लिए उठाए गए कदम की प्रशंसा करते हुए धन्यवाद किया। पंचायत की अध्यक्षता खाप के वयोवृद्ध बुजुर्गों बवाना बावनी प्रधान व सहरावत खाप दिल्ली प्रदेश मानद अध्यक्ष मास्टर चौधरी धनीराम सहरावत, चेयरमैन चौधरी अमर सिंह सहरावत कैर व सहरावत खाप महाराष्ट्र राज्य प्रधान चौधरी धनसिंह सहरावत ने संयुक्त रूप से किया। मंच का सफल संचालन खाप के राष्ट्रीय संयोजक चौधरी संदीप सहरावत बिरोहड के मार्गदर्शन में उनके साथ अधिवक्ता श्री वजीर सिंह सहरावत बक्करवाला व बहन मंजू सहरावत हिरण कूदना ने किया। पावन खाप मुहिम के जनक व खाप चबूतरा कमेटी अध्यक्ष मास्टर चौधरी सुदेश सहरावत का धन्यवाद करते हुए सहरावत गौत्र के स्वर्णिम इतिहास के बारे में विस्तार से जानकारी दी गई। डॉ रामनिवास सहरावत बवाना ने खाप द्वारा रखे गए सभी विषयों के बारे में खाप प्रधानों को अवगत कराया। 


सम्मान समारोह बारे 

चौधरी मूलचंद सहरावत जी के परिवार ने उन्हें चांदी का मुकुट पहना कर सम्मानित किया, गांव हिरण कूदना की सरदारी, पचगामा टीकरी खाप, सर्वखाप, जाट महासभा नांगलोई, आम आदमी पार्टी के सांसद श्री सुशील गुप्ता, पूर्व विधायक श्री सुखबीर दलाल, बहादुरगढ़ से पार्षद श्री मोहित राठी, हिरण कूदना से पार्षद श्री, सहरावत खाप दिल्ली प्रदेश की तरफ से पगड़ी व गदा, सभी राज्यों की सरदारी की तरफ से पगड़ी बांध कर, सभी सामाजिक संगठनों के प्रतिनिधियों, रिश्तेदारों, सगे संबंधियों, मित्रों तथा समाज के सभी गणमान्य व्यक्तियों ने उन्हें सम्मानित कर शुभकामनाएं दी।


सहरावत खाप द्वारा उठाए गए प्रमुख विषय (मुद्दे)!

दिल्ली देहात 

दिल्ली देहात में लाल डोरा का दायरा बढ़ाया जाए, पूरे दिल्ली प्रदेश में किसानों की भूमि अधिग्रहण के कलेक्टर रेट एक समान दर से कम से कम 50 करोड़ रुपए प्रति एकड़ तय किए जाएं, सभी जमीनों के मालिकाना हकों की रजिस्ट्रियां की जानी चाहिए, किसान की जमीन का सरकार द्वारा अधिग्रहण किए जाने पर कम से कम 250 वर्ग गज का प्लॉट अलॉट किए जाए, दिल्ली देहात क्षेत्र में हाउस टैक्स पर विचार किया जाए।


राष्ट्रीय स्तर के विषय (मुद्दे) 

प्रेम विवाह (लव मैरिज) कानून बनाया जाए जिसमें शादी के समय दोनों पक्षों के माता पिता/संरक्षक की सहमति का प्रावधान हो, मृत्यु भोज (काज) पर नियन्त्रण किया जाए, प्रदूषण नियन्त्रण पर समाज की क्या भूमिका हो विचार किया जाए, खाप परम्परा के प्राचीन वैभव के बारे में आने वाली पीढ़ियों को अवगत कराया जाए, हिन्दू मैरिज कानून में वर्तमान परिदृश्य के अनुसार संशोधन किया जाए, युवाओं में शिक्षा व सामाजिक मूल्यों का स्तर भी ऊंचा हो, युवाओं में इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों के कारण बढ़ रही नैतिक व सामाजिक विकृतियों को दूर करने पर विचार किया जाए, सभी के द्वारा समाज में हर सामाजिक कार्य में कम से कम 5 पैड पौधे लगाकर प्रकृति को बचाने का प्रयास किया जाना चाहिए।


शादी विवाह समारोह से सम्बन्धित जानकारियां मुख्य विषय (मुद्दे)

विवाह शादियां दिन के समय राखी जानी चाहिए, विवाह शादियों में होने वाले नाजायज खर्चों पर अंकुश लगाया जाना चाहिए, शादी समारोह हो सके तो दिन के समय रखे जाए, बिना दान दहेज के शादी करने वाले युवक युवतियों व उनके परिवारों को समाज द्वारा सम्मानित किया जाते रहना चाहिए, शादी समारोह में हथियार (शस्त्र) लाने पर प्रतिबन्ध लगाया जाए, सभी तरह के कार्यक्रमों में डी जे पर नियन्त्रण किया जाए खासकर फूहड़ गानों पर कन्ट्रोल हो।

सभी प्रवासी भारतीयों का सभी तरह के सामाजिक कार्यों में समाज सुधार हेतु ज्यादा से ज्यादा योगदान हो।


सम्मान समारोह व महापंचायत में मुख्य रूप से शामिल हुए 

चौधरी रामकुमार सोलंकी खाप प्रधान पालम 360, चौधरी हंसराज राठी राठी खाप प्रवक्ता, चौधरी अशोक मलिक महासचिव गठवाला खाप, चौधरी सत्यनारायण नेहरा नेहरा खाप प्रधान, चौधरी जगवंत हुड्डा हुड्डा खाप प्रधान, चौधरी ओमप्रकाश नांदल नांदल खाप प्रधान, डॉ चौधरी रणबीर राठी प्रधान राठी खाप, चौधरी दुलीचन्द कमरूदीन नगर प्रधान, चौधरी महावीर गुलिया प्रधान गुलिया खाप, चौधरी कुलदीप मलिक गठवाला खाप, चौधरी ओमप्रकाश कादयान महासचिव कादयान खाप कोऑर्डिनेटर झज्जर, चौधरी राजपाल कलकल खाप प्रधान कलकल, चौधरी संजय देशवाल राष्ट्रीय अध्यक्ष देशवाल खाप, चौधरी दयानन्द देशवाल प्रधान जाट सभा नांगलोई, चौधरी राजबीर सहरावत महासचिव जाट सभा नांगलोई, चौधरी मलिक राज मलिक मलिक खाप प्रधान, चौधरी श्रीपाल बालंद प्रधान बालंद सतगामा, चौधरी दिलबाग सिंह रूहिल महासचिव रूहिल खाप, चौधरी बलवान सिंह सूंडा राज्य संयोजक एवं सर्वजातीय सूंडा खाप, बलराज पहलवान किसान यूनियन चेयरमैन, श्री भूपेन्द्र बजाड़ दिल्ली देहात विकास मंच, पार्षद श्री मोहित राठी, श्री रामनिवास खेदड़पुर पंचगामी प्रधान, मास्टर देवेन्द्र बुरा उप प्रधान बूरा खाप, बाबा परमेंद्र श्योराण आर्य खाप चौधरी यूपी, कैप्टन विनोद कुमार दांगड़ खाप प्रधान यूपी, चौधरी महेन्द्र राणा बिजवासन प्रधान, चौधरी रणबीर सरोहा प्रधान सरोहा खाप, चौधरी अनार सिंह टीकरी पंचगामा प्रधान, चौधरी जयनारायण प्रधान मुनिरका, चौधरी सत्यवान सहरावत गांधी प्रधान महिपालपुर 12, चौधरी संजय कुमार घणघस युवा प्रधान, चौधरी महेन्द्र यादव समयपुर बादली 12 प्रधान, चौधरी शिशुपाल पहलवान घोड़ा 24 प्रधान, चौधरी देवेन्द्र यादव सूरेहड़ा प्रधान, चौधरी खजान सिंह ढांसा 12 प्रधान, श्रीमती रश्मि चौधरी, चौधरी नफे नंबरदार दीनपुर प्रधान, चौधरी अंकित जावला प्रधान जावला खाप यूपी, चौधरी रणसिंह प्रधान सरोहा खाप, मास्टर चौधरी धनीराम सहरावत बवाना 52 प्रधान व मानद प्रधान सहरावत खाप दिल्ली प्रदेश, चौधरी पृथ्वी सिंह प्रधान 96 महरौली, दानवीर नंबरदार चौधरी जसवंत सिंह सहरावत भेंसरू खुर्द, चौधरी को रमेश मुरथल 24 प्रधान, चौधरी गजेन्द्र सिंह निगम पार्षद, चौधरी जयपाल सिंह दहिया खाप प्रधान, आम आदमी पार्टी सांसद श्री सुशील गुप्ता, पूर्व निगम पार्षद पहलवान श्री सुरेश सहरावत बक्करवाला, चौधरी धर्मवीर रेढू नौगामा खाप प्रधान, जांगडा समाज से श्री राजेन्द्र प्रधान व श्री सतबीर सिंह नांगलोई, भेंसरू खुर्द सहरावत खाप चबूतरा कमेटी, चौधरी अनिल राणा बिजवासन, हिन्द केसरी पहलवान श्री स्वरूप सिंह मुंगेसपुर गांव, रिटायर्ड इंस्पैक्टर श्री राजसिंह श्री संजय चौधरी टीकरी, चौधरी मान सिंह दलाल प्रधान दलाल खाप, चौधरी कंवर सिंह धनखड़ खाप प्रधान  झज्जर 360, श्रीमती विनोद बाला धनखड़ प्रधान महिला खाप प्रदेश अध्यक्ष हरियाणा, चौधरी रामेश्वर प्रधान खरकड़ी रौंध, चौधरी मान सिंह दलाल प्रवक्ता दलाल खाप, डॉ नरेश जी, पूर्व विधायक श्री सुखबीर दलाल, डाबोदा से सतपाल व सचिन पहलवान, श्री धर्मेन्द्र रावता, डॉक्टर कृष्ण, ताई बिमला देवी,  श्री भगत सिंह प्रधान मुरथल, श्री चांद सोलंकी पुठ कलां, श्री महिपाल सिंह दीचाऊ, चौधरी रत्न सिंह, चौधरी मुकेश सहरावत प्रधान चिराग दिल्ली, चौधरी देवेन्द्र सहरावत प्रधान अंबराई, श्री सत्यनारायण प्रजापत मटियाला, श्री अतर सिंह गिल मटियाला, श्री कृपाराम धनखड़, भारतीय कबड्डी टीम कप्तान पवन सहरावत के पिता जी चौधरी राजबीर सहरावत काला बवाना, अधिवक्ता मास्टर अनिल घणघस रोहतक, श्री राजेन्द्र सिंह दूबलधन, सहरावत खाप से दिल्ली प्रदेश प्रधान चौधरी जगदीश सहरावत मटियाला, उत्तर प्रदेश प्रधान चौधरी अर्जुन सहरावत सदरपुर, हरियाणा प्रदेश प्रधान चौधरी यशपाल सहरावत पूर्व सरपंच करहंस, उत्तराखण्ड प्रधान चौधरी रामकुमार सहरावत मंडावली, महाराष्ट्र प्रधान चौधरी धनसिंह सहरावत, राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष चौधरी सत्यवीर सिंह सहरावत गहलब, खाप चबूतरा निर्माण कमेटी हरियाणा कोऑर्डिनेटर चौधरी अशोक सहरावत जर्दकपुर, दिल्ली प्रदेश उपप्रधान चौधरी कर्मबीर सहरावत पोचनपुर, वरिष्ठ सलाहकार ताऊ चौधरी सूरजभान सहरावत हिरण कूदना व ताऊ चौधरी कंवर सिंह सहरावत पोचनपुर, दिल्ली प्रदेश युवा प्रधान विकास सहरावत, उपप्रधान रवींद्र सहरावत, संगठन मंत्री नरेन्द्र पहलवान, कोषाध्यक्ष चौधरी विनय सहरावत सहीपुर, श्री राजेश सहरावत नांगल देवत, श्री सुरेन्द्र सहरावत बडूसराय, गोहाना अनाज मंडी प्रधान चौधरी विनोद सहरावत खंदराई, पानीपत प्रधान चौधरी जगबीर सिंह सहरावत पलड़ी, महासचिव चौधरी सुरेन्द्र सहरावत, संगठन मंत्री चौधरी राजबीर सहरावत फौजी, श्री अजय सहरावत डुमियाना, जींद प्रधान चौधरी रामभज सिंह सहरावत इगराह, भिवानी जिला प्रधान चौधरी सूरजमल सहरावत, उपप्रधान चौधरी राजेन्द्र सहरावत बामला, हरियाणा प्रदेश युवा संयोजक लक्की सहरावत, झज्जर जिला प्रधान चौधरी वीरेन्द्र सहरावत भदानी, उपप्रधान चौधरी अजीत सिंह सहरावत सोलधा,चौधरी सीता सिंह सहरावत टीकरी ब्राह्मण, उत्तर प्रदेश संयोजक चौधरी तेजवीर सहरावत बिटावदा, उपप्रधान चौधरी संजीव सहरावत भोकरहेड़ी, तालमेल कमेटी प्रमुख चौधरी वीर मास्टर जी, जिला उपप्रधान चौधरी चंद्रवीर सिंह सहरावत, युवा तालमेल कमेटी प्रमुख श्री मयंक सहरावत, गुरुग्राम जिला प्रधान नंबरदार चौधरी प्रेम सहरावत माकड़ौला, उपप्रधान चौधरी राजेश सहरावत दिनोकारी, प्रवक्ता सरपंच भाई दिनेश सहरावत धनकोट, श्री जयभगवान सहरावत, श्री ओंकार सिंह सहरावत, श्री विजय सहरावत, श्री मोनू सहरावत, श्री ईश्वर सिंह प्रधान जी, सुखराली की सरदारी से चौधरी आजाद सिंह सहरावत, श्री मुकेश सहरावत, श्री बिजेंद्र सहरावत, श्री ओमवीर सहरावत, दादरी जिला संगठन मंत्री चौधरी दिलबाग सिंह सहरावत कादमा, सोनीपत जिला उपप्रधान चौधरी रामस्नेही सिंह सहरावत, रमजानपुर से चौधरी निरंजन सहरावत, राजबीर सहरावत, जगत सहरावत, राजेन्द्र सहरावत, संदीप सहरावत, पोचनपुर से मुकेश सहरावत, श्री ओम प्रधान, मटियाला से श्री अमरजीत पहलवान जी, ब्रह्मदत्त पहलवान, रोहतक जिला प्रधान चौधरी जयेंद्र सिंह सहरावत, तालमेल कमेटी प्रमुख चौधरी मुख्तियार सिंह सहरावत बक्करवाला व चौधरी कुलदीप सिंह सहरावत भेंसरू खुर्द, चबूतरा निर्माण कमेटी प्रधान पहलवान नरेन्द्र सहरावत, श्री मालहू सिंह सहरावत, ताऊ चौधरी धीर सिंह सहरावत, कोषाध्यक्ष भाई विक्की सहरावत भेंसरू खुर्द, लोक गायक भाई नीटू सहरावत पंजाब खोड़, नंबरदार प्रवीण सहरावत बवाना, श्री जयभगवान सहरावत बवाना, श्री सुरेश सहरावत माकड़ौला, श्री राजबीर सहरावत कोटला, चौधरी सत्यप्रकाश सहरावत कोटला,  श्री मांगे राम सहरावत, श्री रामबीर सिंह सहरावत, भदानी से चौधरी रणबीर सिंह सहरावत, श्री अशोक सहरावत, डॉ कृष्ण सहरावत, नेवी कोच भाई कुलदीप पहलवान, श्री सुरेन्द्र सहरावत कैर, श्री राजबीर सिंह सहरावत कैर, श्री जगदीश प्रधान जर्दकपुर, मोर खेड़ी से चौधरी रत्न सिंह सहरावत, श्री सुरेश सहरावत, श्री जय सिंह सहरावत, श्री चंद्रपाल सिंह सहरावत, श्री नरेन्द्र सहरावत, श्री राहुल सहरावत, श्री प्रतीक सहरावत बवाना, श्री राजेश सहरावत सोलधा, चिराग दिल्ली से नंबरदार सतीश सहरावत, श्री सुरेश सहरावत भेंसरू खुर्द, सभी राज्य इकाईयां,  मण्डल इकाईयां, जिला इकाईयां, समस्त सहरावत सरदारी, क्षेत्र के गणमान्य व्यक्ति, प्यारे बच्चे, मातृ शक्ति, समस्त सरदारी गांव हिरण कूदना व क्षैत्र तथा टीकरी पंचगामा की सरदारी, पत्रकार, छायाकार बंधुओं ने कार्यक्रम की शोभा बढ़ाने का कार्य किया।




Wednesday, 13 November 2024

गोधरा क़े हिन्दू पोस्टर बॉय अशोक मोची बारे तो वीडियो देखा ही होगा आपने. आज बलबीर को जान लीजिए!

बाबरी मस्जिद क़े गुम्बद क़े ऊपर खड़ा ये आदमी अपने हरियाणा क़े पानीपत का रहने वाला राजपूत परिवार से बलबीर सिँह था. बलबीर सिँह ही वो शख्स था जो सबसे पहले बाबरी मस्जिद पे चढ़ा और पहला हथोड़ा चलाया मस्जिद तोड़ने क़े लिए..

बलबीर सिँह क़े पिता एक अध्यापक थे, हाथ करघे का काम था परिवार में, पढ़ाई में होशियार था RSS की शाखाओं में जाने लगा. पिता क़े ना करते करते हिन्दू धर्म का ठेका उठा लिया और फिर शिवसेना का हिस्सा हो गया.. अयोध्या पहुंचने वाले पहले जत्थे का नेतृत्व बलबीर सिँह कर रहा था. मस्जिद तोड़कर ही दम लिया और देश में रामराज्य स्थापित कर दिया.( हीरो जैसा स्वागत हुआ पानीपत में.) ( घर आया बाबू ने बोला -कि तू क्या करक़े आया है अंदाजा है..? और कुर्सी पाने वाले कुर्सी पा जाएंगे तुझे क्या मिलेगा.. देश में दंगे होंगे अलग..)
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बलबीर सिँह को कुछ महीने में एहसास हुआ कि बापू ने ठीक कहा था, फायदा उठाने वाले फायदा उठा गए तुझे क्या मिला..? आहिस्ता आहिस्ता आँखें खुली पश्चाताप से भर गया.. आखिर में इसने खुद ने इस्लाम धर्म कबूल कर लिया और जिस बलबीर को शिक्षक पिता की तर्ज बढ़कर अफसर बनना था, जिसे परिवार का करघे वाला काम संभालना था वो आजकल मोहम्मद आमिर बनकर हैदराबाद में अपने बच्चों संग जीवन बीता रहा है...
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लोग मंदिर मस्जिद बुते बड़ी बड़ी कुर्सियां पा गए. और अशोक मोची व् बलबीर जैसे युवा धर्म का जिम्मा अपने कंधो पे उठा तलवार और हथोड़ा अपने हाथों में लिए,, यूँ ही देश की गलियों में कहीं गुमनाम हो गए...!

Rajesh Malik




Friday, 8 November 2024

बनवारे

 "बनवारे"

वक्त के साथ कितना कुछ बदल गया। गाँव की वे साधारण शादियाँ अब देखने को भी नहीं मिलती। जहाँ परिवार एक सप्ताह या ग्यारह दिन पहले इकट्ठा होता था। गाँव में तो खैर अभी भी परिवार कुनबे बाकी हैं पर शहर में विवाह बस दो दिन के रह गए हैं। एक महीने पहले विवाह का स्थान बुक हो जाता है। ना परिवार वालों को हाथ बंटाने की जरूरत और ना रिशतेदारी में बहू बेटियों को काम करने की जरूरत रह गयी। सब काम ठेकेदारी में हो जाते हैं।
पर, वे विवाह की मीठी रस्में, उनमें बहते परिवार का लाड हम आधुनिकता की अंधी दौड़ में खो रहे हैं। गाँव में विवाह आज भी दस दिन का होता है। पहले पाँच या सात दिन बनवारे निकलते हैं। जब बन्ना या बन्नी बान बैठते हैं तो सारा परिवार इकट्ठा होता है। बुआ, बहनें, मौसियाँ, ताईयाँ, चाचियाँ पहले बान पर सात सुहागनों का लाल धागा बाँधती हैं। इस दिन पूरे परिवार के लिए हलवा, रोटी, पेठे की सब्जी या छोले, मटर-पनीर बनता है। सबसे पहले ओंखली में सवा सेर जौ भरे जाते हैं और बारी- बारी दो सुहागनें मूसल से बिना आवाज किए हल्के हाथ चोट मारती हैं। फिर वही जौ हाथों में हाथ डाल बन्ने या बन्नी की गोद में भरे जाते हैं। अब बन्ने या बन्नी को पाटे पर बैठा कर सरसों का तेल, दही, हल्दी, मेहँदी दूब की घास से भीगो कर, पहले पैरों से होते हुए घुटनों, दोनों कंधों, फिर सिर पर लगाया जाता है। इस वक्त के लिए विशेष लोकगीत होता है। जैसे तेल मैं अपने भाई को चढ़ा रही हूँ तो लोकगीत मेरे नाम से जाया जाएगा।
तेई ए तेलण तेल
म्हारै रै ए चमेली का तेल सै
किसियां की सै धीयड़ियाँ बाई
किसियाँ न तेल चढाईयां
धर्मबीर की सै धीयड़ी बाई
सुनीता न तेल चढाईयां
राणी की न तेल चढ़ाईयां
राजां की न तेल चढाईयां
सुथरी न तेल चढ़ाईयां
और यही तेल अगर घर की बहू चढ़ा रही है तो गीत में मसखरी यानी मखौल आ जाता है। कोई मोटी है तो गाया जाता है....
सूकळी न तेल चढ़ाईयां
सूरी की न तेल चढाईयां
गधड़याँ की न तेल चढाईयां
माँगण्यां की न तेल चढ़ाईयाँ
इस प्रकार सिठने दे देकर खूब गीत गाए जाते हैं। फिर भाभियों, बहनों द्वारा जौ बेसन का उबटन मला जाता है। फिर स्नान होता है। जिसमें गीत गाया जाता है।
ताता पाणी हे संमदरां का
बेटा नहाईयो ए धर्मबीर का
म्हारै पोता नहाईयो ए सीताराम का
ताता पाणी ए संमदरां का
परिवार के सभी आदमियों के नाम गीत में लिए जाते हैं। उसके बाद बुआ या बड़ी बहन आरता करती है। आरता कांसी के बड़े थाल में किया जाता है। गीले आटे का दीया बनाया जाता है और चारों तरफ से ज्योत जलती है। लोहे की उल्टी छलनी से उसे ढका जाता है। यह गीत गाया जाता है
एक हाथ लोटा
गोद बेटा
करै हे सुहागण आरता
हे राहे ना जाणूं
करा ए ना जाणूं
क्यूकर चीतूं ए बरणो आरता
आरता करने के बाद बन्ने या बन्नी का मुँह चीता यानी मुँह पर हल्दी के पाँच टीके किये जाते हैं। सिर पर लाल बंधेज की चुनरी रखी जाती है और गीत गाया जाता है...
ऐ मन्नै लाओ न जमुना का नीर रे
गौरा मुखड़ा चितियां बे
हे मन्नै लाओ न हल्दी की गांठ रे
गौरा मुखडा चितियां बे
हे मन्नै लाओ न जीरी के चावळ रे
गौरा मुखडा चितियां बे
हे मनै लाओ न ढकणी की काळस रे
काजळ घाल्ली नैण भरा बे
हे मन्नै लाओ न हल्दी की गाठज रे
गौरा मुखडा चितियां बे
हे तेरा किन सुहागण चित्या सै मोळज रे
गौरा मुखड़ा चितियां रे
हे तेरा किन सुहागण चित्या सै मोड़ज रे
काजळ घाल्ले नैण भरया बे
हे सिया नथले तै भरी सै माँ ए तो
माँग भरी जग मोतियाँ बे
ए या धर्मबीर की कहिए सै धी ए तो
किसियां साहिबा की कुल बहू ए
हे या सीताराम की कही ए सै धीयड़ ए
शादीराम साहेब कुल बहू ए
बे
हे या किसियां की गाइए सै माळा तो
किसे ए साहेब की गोरडी बे
हे या धर्मबीर की गाईये माळा तो
सुल्तान साहेब गौरड़ी बे
इस प्रकार नहाने से लेकर आरते तक के गीत गाये जाते हैं। बान दूसरे परिवार वाले दें तो बनवारा चुन्नी के नीचे निकलता है। ना कोई ढोलक, ना कोई डी जे की झक झक, बस सादगी भरे गीतों से गली गूंजती हैं। कुंवारी लड़की या लड़के चुन्नी के पल्ले पकड़ते हैं और बन्ना या बन्नी नीचे चलते हैं। गली लोकगीतों के मीठी आवाज से भर भर जाती है।
किसियां बाना ए नोंदियो
घर किसियां कै ए जाए
यो बनवारा हे नोंदियो
रणबीर बाना ए नोंदियो
घर धर्मबीर कै जाए
यो बनवारा ए नोंदियो
चालो चालो ए बाग मैं
नींबू लागे दो चार
यो बनवारा ए नोंदियो
काचे नींबू ना तोड़ियो
मालण देगी ए गाळ
यो बनवारा ए नोंदियो
पाके पाके रे रसे भरे
चूसैं थारोड़ी नार
यो बनवारा ए नोंदिये
ज्यूं ज्यूं खूटी ए सार की
लहरे लेगा ए हार
यो बनवारा ए नोंदियो
कोरा घड़वा ए नीर का
धरती चासैं हे जा
यो बनवारा ए नोंदियो
चातर हो तो पी लियो
नुगरा तिसाया ए जा
यो बनवारा ए नोंदियो
नुगरा मानण ना छेडियो
बिन छेंडें यो छिड़ जाये
यो बनवारा ए नोंदियो
छगण ल्या दयो ए चौंपटी
चारूं पल्लै ए फूल
यो बनवारा ए नोंदियो
फिड्डे मारो ए मोजड़े
चालो नानहोड़ी चाल
यो बनवारा ए नोंदियो
क्रमशः
सुनीता करोथवाल

Narwal Khap - Sikh, Muslim, Arya together

 सोनीपत के कथुरा गांव में हमारी नरवाल खाप का मुख्यालय है। चौधरी भले राम नरवाल जी हमारी खाप के अध्यक्ष हैं। दादा भले राम नरवाल जी ने बड़ी मेहनत से कथूरा गांव में नरवाल भवन बनाया है उसके उदघाटन समारोह में शामिल सिख समाज के नरवाल गोत्र के लोगों का सरोपा पहनाकर सम्मान किया गया। उसी कड़ी में हमारे दादा और खाप के सम्मानित लोगों ने मुझे भी सरोपे से सम्मानित किया।


मेरे इस फोटो को एडिट करके माथे पर तिलक लगाकर मेरे गांव के मेरे चाहने वालों ने लोगों को भ्रमित किया। किसी ने कहा कि आरएसएस ज्वॉइन कर लिया किसी ने कहा कि बीजेपी ज्वॉइन कर ली किसी ने कहा कि धर्म बदल लिया बहुत कुछ कहा गया।


देखने वाली बात ये है कि साथ मे सिख भाई भी सारोपा लिए हुए हैं दूसरी बात किसी के भी माथे पर तिलक नहीं है ना कोई ऐसा प्रोग्राम है जिसमें तिलक लगाने की जरूरत हो। फिर मेरे माथे पर ही तिलक क्यों ?


खैर जो भी हो हम भारत में रहते हैं भारत की संस्कृती का कम या ज्यादा असर होना लाजिमी है। बाकी मेरे अंदर जाट नस्ल का खून है और इस्लाम धर्म में आस्था रखता हूं ये जग जाहिर है। आप मेरे बारे में क्या सोचते हैं क्या इल्जाम लगाते हैं ये मेरे लिए ज्यादा मायने नहीं रखता। मै अपने ईमान के बारे में फिक्र मंद हूं अल्हम्दु लिल्लाह।

जय हिन्द जय किसान

जय भाई चारा। - Nawab Ali Nawada



Tuesday, 5 November 2024

कनाडा में जो मंदिर वाला मुद्दा उछाला गया है, उस पर कोई अटैक नहीं हुआ है!

 कनाडा में जो मंदिर वाला मुद्दा उछाला गया है, उस पर कोई अटैक नहीं हुआ है: सुनने में आया है कि वह एक परी प्लांट मंडी और फंडियों द्वारा हमारे विशेष कर जाट बच्चों के खिलाफ एक रची गई साजिश है अतः हम सर्व खाप पंचायत की तरफ से अपने बच्चों से आग्रह करना चाहेंगे के ऐसे धर्मांध पाखंडी व्यक्तियों से दूर रहे। और आप जिस भी देश में हैं उसे देश के प्रति अपनी वफादारी का सबूत दे किसी बाहरी साजिश का शिकार ना हो आपके माता-पिता ने आप बच्चों को अपना निर्वाह करने के लिए भेजा है। यहां स्वास्थ्य शिक्षा विकास रोजगार सब कुछ समाप्त हो चुका है आपसी संबंध विच्छेद करके भाई किया जा रहा है लोकतंत्र की हत्या देख रहे हैं और उसी को देखते हुए आप अपनी जमीन गिरवी रख के विदेश तक पढ़ाई के लिए, नौकरी के लिए या रोजगार के लिए गए हो तो आप अपनी जिम्मेवारी के प्रति सजग रहे हैं और विशेष कर कनाडा वाले मामले में तो आपने धर्मनिरपेक्षता का पालन करते हुए अपने कौम के प्रति वफादारी निभाते हुए ऐसी घिनौनी पाखंडवादी हरकतों से दूर रहे और कनाडा के प्रति अपनी वफादारी का फर्ज निभाने की कोशिश करें। वहां आपके जाट सिख छोटे भाई भी बहुत मिलेंगे जो आपकी मदद करने के लिए तत्पर रहेंगे,घबराने की कोई आवश्यकता नहीं लगन और मेहनत से कनाडा देश के प्रति वफादारी निभाते हुए अपने कार्य में लीन रहे।

यह खुद पर विक्टिम कार्ड खेलने की सोच रहे थे; परन्तु फ़ैल हो गया है और जो हरयाणा या जाट शब्द के नारे प्रयोग हुए हैं वह सिर्फ इन दोनों शब्दों की "ब्रांड-वैल्यू" से डराने के लिए प्रयोग हुए हैं; जो कि जाट की आड़ में जाट से मिलती-जुलती जातियों के लड़को से करवाए जा रहे हैं; हाँ एक आध% बताए गए हैं आरएसएस बीजेपी समर्थक जाट भी वहां,परन्तु वह अग्रणी नहीं हैं और ना ही उनके पास इतनी फुरसत| 


आपके घर वालों ने जमीनें गिरवी रख के, लोन उठा-उठा के वहां भेजो हो, वहां; यह तथाकथित कोई मनुवादी नहीं आने वाला तुम्हें मुसीबत में पड़ने पर बचाने के लिए और आएगा तो तुम्हारी ही जेबें खाली करवाएगा| सिर्फ लठ तुम्हारे हाथ में फ्री के जरूर पकड़ा देंगे, इसके अन्यथा तुम्हें फाक्का नहीं है| इतने ही तुम इनको प्रिय होते तो यह तुम्हें इंडिया में ही रोजगार दिलवा देते| यहाँ तुम्हारे साथ 35 बनाम 1 करने वाले वहां तुम्हारे कैसे हो जाएंगे? किसान आंदोलन, मणिपुर कांड से ले पहलवान आंदोलन में अपनों का हर्ष देख चुके हो? इसलिए कोई फंडी तुम्हें बहलाने-फुसलाने भी आए तो दूर रहना इनसे;  रोजगार करके, घर की गरीबी दूर करने या जिंदगी सेट करने गए हो तो उसी पे ध्यान रखो| धर्म के नाम पे अपने पुरख-आध्यात्म, अपने पूर्वजों के बताए हुए रास्तों  को आगे रख के चलो, उसी में मुक्ति है इस पॉइंट की! अन्यथा वही बात, आज भी तुम्हारे माँ-बाप कहीं ना कहीं DAP की लाइन में खड़े होंगे; कहो जरा इनको कि उनको खाद ही टाइम पे व् सहूलियत से दिलवा देवें ये; दो मिनट में कितने अपने हैं सब समझ आ जाएगा! यह धर्मांधता आपके भविष्य के लिए कुछ नहीं काम आने वाली।

   11 दिसंबर 1995 का सुप्रीम कोर्ट का भी आदेश है हिंदू कोई धर्म नहीं यह एक जीवन पद्धति है हिंदू शब्द एक गाली गलौच का विदेशी शब्द है

   अतः हमारी प्रार्थना है कि इन सब धर्मवादी भावनाओं में न भर के ना ही इनके बहकावे आएं और इन चीजों से दूर रहकर जिस देश में भी हो उस देश के प्रति वफादारी से अपना कार्य करते रहे और अपना जीवन निर्वाह करें।

  डॉ ओमप्रकाश धनखड़ प्रधान धनखड़ खाप, कोऑर्डिनेटर सर्व खाप पंचायत।

      सुमन हुड्डा प्रदेश अध्यक्ष सर्वखाप महिला विंग हरियाणा, तथा प्रदेश अध्यक्ष भारतीय किसान यूनियन (चडूनी)

     अतर सिंह काध्यान प्रवक्ता काध्यान खाप एवं अध्यक्ष व्यापार मंडल बेरी झज्जर।

इस संदेश को अपने तमाम ग्रुप्स व् सर्किल में फैला दीजिए!

Friday, 1 November 2024

पश्चिमी उत्तर प्रदेश मे रक्षाबंधन बिलकुल भी नही मनता था ,लेकिन भाईदूज पर भाई जरूर जाते थे!

 पश्चिमी उत्तर प्रदेश मे रक्षाबंधन बिलकुल भी नही मनता था ,लेकिन भाईदूज पर भाई जरूर जाते थे । उस समय चिट्ठी और फोन जैसी सुविधा तो थी नही ,तो त्योहार ही एक ऐसा समय होता था ,जब बहन भाई का इंतजार करती थी । बरसात के मौसम के बाद इन दिनो गेंहू की बुआई हो जाती थी ,तो किसान को भी समय मिल जाता था , तब खील बताशे लेकर भाई बहन के घर जाते थे । अगर भाई किसी कारणवश नही जा पाये तो बहन भाई के लिए एक गोला उठाकर रख लेती थी ,क्योंकि गोला लम्बे समय तक खराब नही होता ।जब भी बहन मायके जाती थी तो यही गोला भाई के लिए ले जाती थी । हमारे बागपत ,शामली ,मुजफ्फरनगर, मेरठ मे भाईदूज पुराने समय से मनाया जाता रहा है ।  जबकि हापुड गाजियाबाद, बुलंदशहर अलीगढ इस तरफ भाईदूज का चलन पहले नही था ।ये लोग रक्षाबंधन को ज्यादा महत्व देते हैं । पिछले साल किसी ने लिखा था कि गोबरधन हमारा त्योहार नही है , मै अपने यहां देखती थी गोबरधन पर बडो को कहते सुना है । भाई आज तो म्हारा त्योहार (तुहार ) है । गोवर्धन पर सारे खेती के औजार ,बैल ,दूध ,दही से संबंधित सामान हांडी ,रई,बिलौनी ,हल पात्था गन्ने सब कुछ रखा जाता था । और प्रसाद स्वरूप सबके यहां गन्ना ही बंटता था । गोवर्धन से पहले बाबा किसी को भी गन्ना नही चूसने देते थे । हर क्षेत्र मे त्योहार मनाने का कारण अलग अलग परिस्थितियों पर निर्भर करता था ।


Anita Chaudhary Meerut

Thursday, 31 October 2024

उज्जड़ कुआ बाट देखरया नेज्जू की पनिहारी की।

 उज्जड़ कुआ बाट देखरया नेज्जू की पनिहारी की।

ल्या री सासू दे दे झाकरी ,भर लाऊं मैं पाणी की ।
सच्चे घोट्टे की काढ चूंदड़ी, कंद का दामण भारी दे दे
टूम ठेकरी गळ की गळसरी,गात्ती-पात्ती सारी दे दे।
हाथां के हथफूल काढ दे,जूती पै फुलकारी दे
पिंडी ऊपर मोर मोरणी , कड़ी छैलकड़े भारी दे दे।
नाड़ा दे घूंघरूआं का, तागड़ी मेरी प्यारी दे दे
आंख्या पर दो तिल खिणवादे , ठोड्डी पै टिकारी दे दे।
ऊंचा चूंडा बंधवा दे मेरा नाई की न बुलवा कै
चूंडे ऊपर लगा बोरला मोती मणिए जड़वा कै।
बाळां के मैं किलफ लगा चाँदी की देखै बणवा कै
धोळा कुड़ता पहरूंगी आजदर्जी के पै सिमवा कै।
पाँच शेर की टूम टमोळी आज पहरा मनै तुलवा कैं
संगी सवेहली जेठाणी मेरी देख मन्नै पड़ैं गस खा कैं।
कान कै पाच्छै कर काळा टीका
ना लगै टोक किसे स्याणी की
ल्या री सासू दे दे झाकरी, भर लाऊं मैं पाणी की ।

Sunita करोथवाल

Monday, 28 October 2024

डेह जाट - आफताब अहमद व मामन खान जाट जाति से हैं!

इस बार मेवात क्षेत्र से जो तीन मुस्लिम विधायक बने हैं उनमें से दो आफताब अहमद व मामन खान जाट जाति से हैं, पर इस ओर शायद ही किसी का ध्यान गया हो | इसका कारण है धर्म। नस्ली भाईचारे के बीच धर्म एक बहुत बड़ी दिवार है, जोकि दोनों तरफ से ही खड़ीं की जाती है। अगर कोई अपने को जाट का बेटा कह दे तो धर्मों के ठेकेदार तोहमत लगानी शुरू कर देते हैं, गुरु पीर पैगम्बरों की दुहाई देना शुरू कर देते हैं। लोग अपना कबीला बढ़ाते हैं, परन्तु जाट एक ऐसी जाति है जो अपना ही कबीला घटाने में विश्वास रखती है और इसीलिए देहात में एक आम कहावत है कि “जाटड़ा और काटड़ा (कट्टा) अपने को ही मारते हैं। रहबरे आज़म चौधरी छोटूराम कहते हैं – ‘जट्स एंड संसार (मगरमच्छ) कबील गालदा‘ , यह हमारी कौम की कमजोरी है। हमारे विरोधी सब अवसरों पर इसका लाभ उठाते हैं।

“ का , कबूतर , कम्बो कबील पालदा ,
जाट , मया , संसार कबील गालदा “
बिलकुल सही कहा है, कौवा कबूतर आदि सब अपना कबीला पालते हैं, पर जाट, झोटा, मगरमच्छ ऐसे हैं जो अपने कबीले का ही नुकसान करते हैं। जाट दूसरों के बहकावे में आकर खुद को बांटता आया है। चौधरी छोटूराम एक ऐसे रहबर हुए जिसने इनको एक झंडे निचे एक किया था, इनको इनके एक्के इकलास की ताक़त का एहसास करवाया था। परन्तु अफ़सोस कि उनके जाने के बाद इन्होने बिखरने में महीने भी नहीं लगाये। मैं आज के हरियाणा की बात करूँ तो आज कुछ गिनती के ही लोगों को पता होगा कि हरियाणा के मेवात क्षेत्र में जो मुस्लिम हैं उनमें बहुल संख्या मुस्लिम जाटों की है। गिनती के लोग ही जानते हैं कि अलवर रजवाड़े के विरुद्ध जो आन्दोलन हुआ था वह यूनियनिस्ट पार्टी के चौधरी मोहम्मद यासीन खान की अगुवाई में हुआ था, वह कौन थे किस जाति किस गोत्र के थे? चौधरी मोहम्मद यासीन खान धैंगल 1936 में यूनियनिस्ट पार्टी से पंजाब अस्सेम्ब्ली के सदस्य भी बने थे और इनको चौधरी छोटूराम के 14 हनुमानों में से एक माना जाता था। चौधरी मोहम्मद यासीन खान डागर/धैंगल गोत्र के जाट थे और इन्हीं के पौत्र जाकिर हुसैन इस बार बीजेपी की तरफ से चुनावी मैदान में थे। जाकिर हुसैन चुनाव हार गए और कांग्रेस से आफ़ताब अहमद धैंगल (डागर) चुनाव जीते। ऐसे ही फिरोजपुर झिरका से कांग्रेस के उम्मीदवार मामन खान की जीत हुई। इनके बारे में भी लोग सिर्फ इतना ही जानते होंगे कि कोई मेव मुस्लमान होंगे। जबकि मामन खान भी जाट है और इनका गोत्र गोरवाल है।
धैंगल असल में डागर गोत्र की ही पाल/खाप बताई जाती है। बृज क्षेत्र में जिन जाटों ने धर्म परिवर्तन किया उन्हें डेह कहा जाने लगा। डेह यानि जो डह गया। 11 वीं सदी में मेवात क्षेत्र में लोगों ने इस्लाम अपनाना शुरू किया था। बृज क्षेत्र के डागर पाल के जिन जाटों ने इस्लाम अपनाया उन्हें डेह जाट कहना शुरू कर दिया। डागर पाल के इन मुस्लिम जाटों का गोत्र डागर से धीरे धीरे कब कैसे धैंगल हुआ इसकी जानकारी आज खुद इनके ही लोगों को बहुत कम है।| ऐसे ही मामन खान जिनका गोत्र गोरवाल है, इस गोरवाल का इतिहास यह बताया जाता कि इनकी वंशावली महाराजा सूरजमल से जाकर मिलती है। ऐसे ही हथीन से मरहूम जलेब खान विधायक होते थे, जिनके बेटे इजराइल ने इस बार कांग्रेस की टिकट पर हथीन से चुनाव लड़ा था। जलेब खान अक्सर कहते थे कि मैं रावत गोत्री जाट हूँ।
मेवात में मुस्लिम जाटों को डेह कहने का नुकसान ये हुआ कि अब इन्होने अपने मूल गोत्र की बजाए पाल/खाप के नाम पर ही गोत्र लिखने शुरू कर दिए, जैसे कि धैंगल ,छिरकलोत आदि। मेवात में पालों का नक्शा पोस्ट के साथ लगाया है। मेवात में सहरावत, तंवर, पंवार,देशवाल, डागर,बडगुर्जर आदि ऐसे कई मुस्लिम जाट गोत्रों के गाँव हैं जो साथ लगते पलवल क्षेत्र में हिन्दू जाट गोत्रों के गाँव हैं। ये डेह जैसे बेतुके शब्दों का पूरा-पूरा फायदा उठाया कुछ पोंगा-पंथी इतिहासकारों ने, इन्होने इन मेवाती जाटों के दिमाग में कुछ नया ही इतिहास डाल दिया, जिस कारण आज ये खुद अपने मूल से हटकर पोंगा-पंथी इतिहास का शिकार हो कर अपने मूल से कट चुके हैं। इस लेख में मेरे कहने का सार यह है कि कब तक आखिर ऐसे बंटे रहेंगे? जब रहबरे आज़म चौधरी छोटूराम की बात करते हो तो उनके सूत्र को भी समझो। कबीलदारी कैसे होती है यह सर छोटूराम के फलसफे से समझो, न कि कट्टर पोंगे-पंथियों के फलसफे से। कब तक इन पोंगे पंथियों की बातों में आकर डहते रहोगे? नस्ली इतिहाद ही हमारी असली ताकत है और यही हमारे रहबर चौधरी छोटूराम का सन्देश था। अगर दिल से रहबरे आज़म का सम्मान करते हो तो उनके सन्देश का भी सम्मान करो, वरना फिर उनके प्रति हमारा यह सम्मान सिर्फ ढोंग ही है और यह बात सभी के लिए हैं चाहे वह किसी भी आस्था को मानने वाला हो।
यूनियनिस्ट राकेश सिंह सांगवान

Wednesday, 23 October 2024

#जाट_के_खिलाफ_पैंतीस_बनाम_एक_क्यों___एक_विश्लेषण...

जिस जाति का आर्थिक प्रभुत्व नहीं होता, उसके खिलाफ कभी भी लामबंदी नहीं होती, चाहे उसकी संख्या कितनी भी क्यूं न हो। एक जाट ही नहीं राजपूतों के खिलाफ भी ध्रुवीकरण होता है, आप बाड़मेर, जैसलमेर, शिव ऐसी अनेक जगह देखेंगे जहां राजपूतों के खिलाफ ध्रुवीकरण होता है, हरियाणा में अटेली विधानसभा क्षेत्र देखिए, वहां यादवों के खिलाफ तगड़ा ध्रुवीकरण हुआ, हरियाणा के नांगल चौधरी में यादवों के खिलाफ तगड़ा ध्रुवीकरण हुआ और यह तो यदि कांग्रेस बादशाहपुर में किसी ब्राह्मण व रेवाड़ी में किसी बणिए को टिकट दे दे तो वहां भी तगड़ा ध्रुवीकरण हो जाए... तो जो भी जाति जिसके पास संसाधन होंगे, उसके खिलाफ ध्रुवीकरण होगा ही, यह अकेले जाटों की समस्या नहीं...


अगर हम मीणों की बात करें, तो उनके खिलाफ मीणा बहुल इलाकों में भी वैसा ध्रुवीकरण देखने को नहीं मिलता जैसा जाट इलाकों में जाटों के खिलाफ... क्यों? इसका कारण है, मीणा आपको नौकरियों में तो दिखेंगे, लेकिन अभी इनका बाजारों, दुकानों पर वैसा कब्जा नहीं है, जैसा जाटों का है। दौसा, सिकंदरा जैसे इलाकों में भी मीणाओं की कोई तगड़ी दुकानें नहीं मिलेंगी आपको, बिजनेस में कोई खास भागीदारी नहीं मिलेगी आपको मीणा लोगों की, यहां तक कि ये प्रोपर्टी डीलर भी नहीं हैं, प्रोपर्टी भी ये खरीद जरूर लेते हैं इनके अफसर, कर्मचारी वगैरह ऑनलाइन कहीं किसी कॉलोनी में कोई प्लॉट वगैरह, वो एक अलग बात है... लेकिन ये जाटों की तरह कोई कॉलोनाइजर हैं या इनका रियल एस्टेट का कोई बिजनेस है, ऐसा कोई लफड़ा नहीं है... जबकि जाट कॉलोनाइजर आपको हर छोटे-बड़े शहर में नजर आ जाएंगे, डीएलएफ, इंडिया बुल्स जैसी जाटों की रियल एस्टेट कंपनियां शेयर बाजार तक में लिस्टेड हैं... या कि दौसा से चलने वाली एसी कोच मीणा लोग चलाते हैं, ऐसा भी कुछ नहीं है जबकि इससे इतर जाट लोग ट्रांसपोर्ट के मामले में भी खासी दखल रखते हैं... एजुकेशनल इंस्टीट्यूट्स की बात करें तो आपको नीट-आईआईटी में बणियों के प्रभुत्व वाली एलन कोचिंग के पैरलल जाटों का आकाश एजुकेशनल इंस्टीट्यूट हर शहर में दिखेगा..., सीएलसी, गुरूकृपा जैसे छोटे-मोटे तो कई कोचिंग बन गए जाटों के... तो मीणा लोगों के खिलाफ ध्रुवीकरण इसलिए नहीं होता कि इनका सारा फोकस नौकरियों पर है... 


अब जाटों के साथ समस्या क्या है कि वो फर्नीचर की दुकान भी खोल लेगा, नाई का सैलून भी खोल लेगा, माली वाला काम भी कर लेगा (नर्सरी या सब्जी की दुकान), मिठाई की दुकान भी खोल लेगा,... तो मूल कारण यह है जाटों के विरोध का, जो भी जाति सामाजिक तौर पर, आर्थिक तौर पर वर्चस्वशाली होगी, उसका विरोध होगा ही... अब इससे इतर राजपूत आपको कहीं नहीं मिलेगा जो मिठाई की दुकान खोल लेगा या सब्जी की दुकान खोल लेगा तो राजपुरोहित से या माली से राजपूत का टकराव क्यों होगा? तो ये जो जाटों की समस्याएं हैं, वे आर्थिक वर्चस्व की समस्याएं हैं और ये रहेंगी ही, इस विरोध का अब कोई उपाय नहीं है, इसको आपको अब झेलना ही पड़ेगा, स्वीकार करना ही पड़ेगा...


मतलब बात आ गई दूसरों के अङने वाली, जैसे बणिए हैं, बाजार में हैं, अपना व्यापार कर रहे हैं, उनकी पुरानी दुकानें हैं... दूसरों के अङना कब होता है? जब आप उनके क्षेत्र में जाकर उनकी संपत्ति खरीदो... अब बणिए हैं तो वो अपनी जगह हैं, ऐसे थोड़े ही कर रहे हैं कि वो गांवों में आ गए, वहां जाटों की जमीनें खरीदने लग गये, ट्यूबवेल लगा लिए, ऐसा तो नहीं हुआ न, मतलब जो परंपरागत सामाजिक व्यवस्था है, आर्थिक व्यवस्था है, उसमें असंतुलन जाट पैदा कर रहे हैं, विरोध का मूल कारण यह है... और मुझे नहीं लगता कि इसका कोई इलाज भविष्य में निकलेगा...


इस विरोध से बचने का उपाय तो सिर्फ एक ही है कि या तो जाट भी 5-5 बच्चे पैदा करें, कोई पुचके बेच रहा, कोई बसों में खलासी बन रहा, इस तरह की जेनरेशन पैदा करो ‌या फिर वस्तुस्थिति स्वीकार कर लो...


बाकी जाट बोलने में अक्खड़ है, उस वजह से विरोध है, ऐसा कुछ नहीं है, वो चीजें तो बहुत पीछे छूट चुकी...

तब तक आप इस पुराणे इतिहास को महशुस करी - घेर

ग्रामीण भारत की घर घेर प्रणाली एक मजबूत सामाजिक व्यवस्था का आधार।

हरियाणा के भीतरी इलाकों में घुमने के बाद एक पुरातन व्यवस्था की ओर ध्यान गया जो इस इलाके से लेकर राजस्थान व उत्तरप्रदेश तक प्रचलित है।

रहने के लिए सब जगह जैसे घर होता है यहां घर के अलावा एक घेर भी होता है।

घर पर महिलाओं का अधिपत्य होता है जबकि घेर में पुरुष सत्ता का अधिपत्य होता है।

घेर में उठने बैठने बातें करने और स्वतंत्र रूप से आने जाने की समाजिक सुविधा होती है।


घेर और घर के बीच में एक लॉजिस्टिक सप्लाई लाइन होती है जिसे अक्सर युवा मैनेज करते हैं। चाय खाना जैसे जिसकी जरूरत होती है युवा दौड़ लगाते रहते हैं।

जिन जातियों समाजों ने घर घेर की व्यवस्था बनाई हुई है वो समाजिक रूप से ज्यादा समृद्ध है। उनकी सामाजिक बॉन्डिंग बाजारवाद के इस युग में भी बची हुई है कायम है और मजबूत है।

घर में आने जाने से बाहरी लोग हमेशा परहेज ही करते हैं क्योंकि हमारी संस्कृति ही ऐसी है इसीलिए सब लोग निर्बाध रूप से आ जा सके तो घर के एक्सटेंडेड वर्जन घेर का आविष्कार किया गया था।

कुछ दिन पहले मे जीद जिले म एक मित्र के घेर में रुके था जहां उनके पिता जी और चाचा जी व उसके  मित्रों  से भी मुलाकात हुई थी।

चाय के दौर चलते रहे और हंसी मजाक ठठा भी खूब हुआ।

घेर में आम तौर पर पशु भी होते हैं जहां उनका बेहतर ध्यान रखा जाता है।

मित्र के पिता जी ने आज के मॉडर्न दौर में घेर की प्रासंगिकता पर बात हुई तो उन्होंने बताया कि फ्लैट सिस्टम या एकल घर प्रणाली में जहां घेर नहीं होता है वहां महिलाओं और पुरुषों को एक ही छत के नीचे सारा दिन रहना पड़ता है तो वे ज्यादा खटपट और खिंचाव को महसूस करते हैं।

हम सारा दिन घेर में रहते हैं वहीं से अपने सारे प्रोफेशनल और सोशल अफेयर्स मैनेज करते हैं जिससे घर पर अनावश्यक साईकोलॉजिकल दबाव नहीं बनता है और भाईचारा भी बेहतर मजबूत होता है।

घेर का कंट्रोल सीनियर बुजुर्गों के हाथ में रहता है छोटे बालकों की वहां ट्रेनिंग चलती रहती है। घेर के सभी काम बालकों को सीनियर्स की देख रेख में करने होते हैं


घेर के बिना घर मुझे अधूरे जैसा लगने लगा है।

आज से अगले 10 दिन तक छत्तीसगढ मे कुछ भाइयो से उनके फार्म व घेर पर मुलाकात करने की कोशिश करुगा 

सब भाइयो को नमस्कार राम राम  🙏 सतीश दलाल 🙏

Tuesday, 22 October 2024

हमारे घर में चार धुंए की फैक्टरियां थी!

जब हम छोटे थे तो हमारे घर में चार धुंए की फैक्टरियां थी। उनमें से एक तो पार्ट टाइम थी। यानी चूल्हे पर सुबह- शाम खाना और रोटियां बनती थी। दूसरी फैक्ट्री होती थी, जिसमें गर्म होने के लिए दूध रखते थे, वह लगभग 8 घण्टे धुंआ छोड़ती थी। तीसरी फैक्ट्री थी, जिस पर पशुओं के लिए बिनोले पकते थे। और चौथी फैक्ट्री थी, जिसमें सभी के लिए पानी गर्म होता था। इसके इलावा सर्दियों में गर्मी के लिए खूब भूसा जलाया जाता था। इसके इलावा पशुओं के मच्छरों से बचाव के लिए भी धुआं करते थे। इसके इलावा धान की पैराली भी जलती थी। इसके इलावा, खास कर आज से पंद्रह दिन पहले, कोल्हू भी चलने लगते थे, और वहाँ दिन रात गुड़ पकता था। औऱ ऐसी फैक्टरियाँ घर- घर होती थी। यानी एक गांव में हजारों फैक्टरियाँ ,और अकेले हरियाणा में लगभग 6600 गांव और शायद 9000 के करीब पंजाब में।

लेकिन किसी ने गांव, देहात, किसान को प्रदूषण के लिए आरोपित नही किया। अब लगभग देहात के सभी धुंआ उद्योग बन्द हो चुके हैं। केवल एक पराली जलाते हैं लेकिन इन हराम खोरों ने किसान को बदनाम कर के रख दिया। उल्टा चोर कोतवाल को डांटे।सारा प्रदूषण केवल और केवल इंडस्ट्री/उद्योग/ फैक्ट्री से होता और बदनाम गरीब किसान को करते हैं। और ऐसे ही ये कर्णधार हैं, जिनको हम ही चुन कर भेजते हैं। और ज्यादातर हैं भी गांव देहात से, लेकीन चु भी नही करते।
Dr Mahipal Gill