1947 में सबसे ज्यादा पंजाबी खत्री हरियाणा की धरती पर आ कर बसा और हमने बड़े स्नेह से गले लगा के अपने भाईयों को हमारे यहां बसाया| मेरी स्वर्गीय दादी जी के बताये किस्से मुझे आज भी याद हैं कि कैसे वो हमारी निडाना नगरी (गैर-हरयाणवियों की भाषा में गाँव) में बसने वाले पाक्सस्तानी (उस जमाने में इसी नाम से इन भाइयों को पुकारा जाता था; हालाँकि वो अलग बात है कि आज तीसरी पीढ़ी हो चली है भाइयों की हरयाणा में, परन्तु हरयाणा की धरती पर जन्म लेने के बावजूद आज भी संस्कृति से भले ना सही परन्तु जन्म से भी खुद को हरयाणवी कहने में झिझक रखते हैं) भाईयों की कैसी-कैसी आर्थिक और मानवीय मदद किया करती थी| और कैसे अल्पसंख्यक होते हुए भी कभी भी स्थानीय शरारती व् गैर-सामाजिक तत्वों द्वारा आप लोगों (पंजाबी खत्री) पर ताने गए भाषवाद अथवा क्षेत्रवाद के मुद्दों को हवा नहीं लेने दी| और एकमुश्त हो अपने सगे भाईयों की तरह सीने से लगाया|
लेकिन अगर इस भाईचारे को भुला, आज यही पंजाबी भाई जाटों के आरक्षण के विरोध में उतर रहे हैं तो अब जाट समाज को भी इस पर कड़ा रूख अख्तियार कर लेना चाहिए| वैसे भी सर्वविदित है कि हरयाणा में जो जाट बनाम नॉन-जाट का जहर बोया जाता है उनमें आप पंजाबी भाई सबसे अग्रणी भूमिका निभाते सुने गए हैं| और अब ऐसे विषय को ले के जिससे कि जाटों को ओ.बी.सी. में आरक्षण मिलने अथवा ना मिलने से आप पर कोई प्रभाव भी नहीं पड़ना, फिर भी आप लोग हमारे विरोध में उतर रहे हैं तो अब जाटों को कम से कम आप में से उन पंजाबी भाइयों के वापिस पंजाब में चले जाने की मांग को पुरजोर से उठाना शुरू करना चाहिए, जिन्होनें कि 1984-86 में पंजाब के आतंकवाद से ग्रस्त माहौल से सुरक्षित माहौल हेतु हरयाणा की जी. टी. रोड बेल्ट पर आकर शरण ली थी| हालाँकि यह लिखते हुए मैं इतनी मानवता जरूर रखना चाहूंगा कि जो 1947 में पाकिस्तान से सीधे हरयाणा में आये थे वो हरयाणा में रहें, परन्तु जो 1984-86 में पंजाब में आतंकवाद के चलते हरयाणा में शरण लिए थे, उनको अब वापिस पंजाब में चला जाना चाहिए, क्योंकि अब वहाँ आतंकवाद ख़त्म हो चुका है और स्थिति सामान्य हो चुकी है|
एक तरफ जहां सरकारों से ले के समाज तक जम्मू-कश्मीर से आतंकवाद के चलते विस्थापित कश्मीरी पंडितों की घर-वापसी की बात करते हैं, और आपको हरयाणा का माहौल ऐसे ही बिगाड़ना है तो फिर ऐसे ही आपकी भी घर-वापसी हो और आप लोग पंजाब में वापिस लौट जाएँ|
क्योंकि अगर जाट और हरयाणा की दरियादिली का आप लोगों ने हमें यही सिला देना है तो फिर इसका यही एक रास्ता बचता है कि आप लोग कृपया पंजाब में वापिस लौटें और फिर यह जातिगत जहर उगलें या ना उगलें, वहाँ जा कर सोचें| धुर ईसा पूर्व तीसरी सदी के सिकंदर से ले के और आजतक हम जाटों ने अपने हरयाणा को हर प्रकार के जातिवाद, धर्मवाद और भाषावाद के उन्माद से बचा के रखा है| और आप लोग इतने कम समय में बेशक आपकी अपनी मेहनत से इतने समर्थ बने तो इसमें हमारी इस सदियों पुरानी रीत का भी योगदान है| और इससे बड़ी मानवीय समरसता की मिशाल जाट और अन्य तमाम हरियाणवी कोई दे नहीं सकते|
परन्तु अब अगर आप लोगों को बिना वजह और बेतुके ही जाटों से भिड़ना है, वो भी तब जबकि जिस मुद्दे को ले के आप जाटों से भिड़ रहे हो उससे आपका कोई नफ़ा-नुक्सान नहीं, तो फिर अब जाट के लिए यही रास्ता बचता है कि आप जितने भी पंजाब के आतंकवाद के चलते हरयाणा में शरण लिए, आपको वापिस पंजाब भेजने हेतु आवाज उठाई जावे|
वाह रे पंजाबी खत्री भाइयों, आप लोगों को आतंकवाद से शरण लेने को सबसे सुरक्षित जगह चाहिए तो वो जाटों और तमाम हरियाणवियों का हरयाणा और बिना-वजह जिसका कि कोई तुक ही नहीं बनता उसपे लड़ने को चाहिए तो वो भी जाट| इससे साबित होता है कि हरयाणा में जाट बनाम नॉन-जाट का जो जहर फैलाया हुआ है, उसमें आप लोग ही सबसे अग्रणी हो|
खैर, तथाकथित राष्ट्रवादियों के उकसाए हुए राजकुमार सैनी जैसे सांसद क्या पहले से कम थे, जो अब आप लोग भी सींग पिना चले आये| खाम्खा ही यह कहावत कही जाती है कि "जाटड़ा और काटड़ा अपने को मारे"| यह कहावत तो ऐसे होनी चाहिए कि, "जाट जिसको भाई मान के शरण और सुरक्षित माहौल दे, वही जाट की गोभी खोदे|"। हाँ यह सुरक्षित माहौल हम जाटों की वजह से ही आप लोगों को हरयाणा में मिला था जब आप पंजाब के आतंकवाद से उकताए हुए पलायन ढूंढ रहे थे और हमने कभी इसकी रॉयल्टी भी नहीं मांगी, ठीक वैसे ही जैसे आज व्हट्स अप्प और फेसबुक जैसों से मोबाइल कंपनियां इंफ्रा के नाम पे रॉयल्टी और प्रॉफिट शेयरिंग मांग रही हैं|
मेरा निवेदन है पंजाबी खत्री समाज के उन बुद्धिजियों से जो जाट को भाई मानते हैं कि वो इन मनचलों को समझावें और मेरे और आपके हरयाणा को एक और जातीय जंग का अखाडा ना बनावें| क्योंकि अगर मेरे जैसे पंजाबी कौम को अपना सुदृढ़ मित्र मानने वाले को यह बात आघात पहुंचा सकती है तो फिर आम जाट का क्या होगा| मेरी बचपन से पंजाबी लड़कों से गहरी दोस्ती रही है और आपको इस-उस वक्त "रफूज" या "रफूजी" कहने वाले दोस्तों-तत्वों का पुरजोर विरोध किया है और उनको समझाया है| तो मैंने अगर यह विरोध किये थे आपके पक्ष में तो आज यह सुनने के लिए नहीं कि आपके समाज के कुछ मनचले मेरे ही समाज के विरुद्ध उस चीज के लिए खड़े हो जायेंगे कि जिसके हमें मिलने या ना मिलने से आप लोगों को कोई फर्क ना पड़ता हो|
अंत में उन बचपन से ले के आजतक के मेरे तमाम पंजाबी दोस्तों से मेरा अनुरोध है कि आप लोग समझाए इन आपके समाज के बहके हुए लोगों को कि कुछ नहीं मिलना इन चूचियों में हाड ढूंढने के चिलतरों से, सिवाय आपके और मेरे बीच और खटास पैदा करने के|
जय यौद्धेय! -फूल मलिक
Please see photo news in reference which became the reason behind writing of this article:
No comments:
Post a Comment