क्योंकि वैसे भी धर्म वाले को देखो तो उसने यही आरक्षण लागू कर रखा कि बस हमारी ही बिरादरी का पुजारी-पंडित-महंत बनेगा|
क्योंकि वैसे भी व्यापारी को देखो तो उसने यही आरक्षण लागू कर रखा कि बस कोई भी उत्पाद हो (चाहे इन्होनें उगाया-बोया-बनाया-मैनुफैक्चर भी ना किया हो, उदाहरणत: किसान की फसल) उसका विक्रय मूल्य यह तय करेंगे|
"जिन्हें अपने ज्ञान और मेहनत पर भरोसा नहीं होता वही आरक्षण माँगा करते हैं" की दलीलें देने वालो, बोलो अगर यह मेरा बताया आरक्षण भी लागू कर लेवें तो अपने पेट तो भर लोगे ना इस घमंड भरी दलील से?
और ज्ञान का इतना ही घमंड है तो बिना पर्ची के दान (जगह-जगह दान-पेटियां रख के) क्यों लेते हो? ज्ञान का इतना ही घमंड है तो तमाम तरह की धर्म के नाम की सर्विसों की लिखित गारंटी और रिटर्न क्लेम की फैसिलिटी क्यों नहीं देते हो?
ज्ञान का इतना ही घमंड है तो विकास के नाम पे विकास के पापा से करोड़ों रूपये की सब्सिडयां और मुवावजे क्यों लेते हो? वैसे भी तुम्हारी तो सारी मैनुफैक्चरिंग छतों के नीचे होती है, किसान की तरह खुले आस्मां के नीच थोड़े ही कि ओले-बारिश टाइप की प्राकृतिक आपदा नुक्सान कर देती हो| परन्तु फिर भी देश में सबसे ज्यादा मुवावजे और सब्सिडी डकारते हो और धौंस दिखाते हो ज्ञान की?
तुम्हारा ज्ञान, ज्ञान, और किसान-मजदूर का ज्ञान पानी? कभी एक सीजन तपती धूप और ठिठुरती रातों में खुले आसमान तले भगवान भरोसे रह के फसल उगा के देखो, सारे ज्ञान के मायने ही ना बदल जाएँ तो|
पेट भरने के लिए भोजन उगाने के ज्ञान से ले तन ढांपने के लिए कपास उगाने के ज्ञान तक तुम किसान के ज्ञान पे निर्भर हो, फिर भी अपने ज्ञान की धौंस दिखाते हो? परजीवी ज्ञान वाली ज्ञानियों की श्रेणी का ज्ञान रखते हो और परजीवी को भी जो पाल दे उस ज्ञान वाले के ज्ञान को धत्ता बताते हो| आखिर सामाजिक गैर-जिम्मेदारी, बेशर्मी और अहसानफ़रामोशी की भी कोई हद्द होती है|
चिपकाओ ऐसी दलीलें देने वालों की हर एक की वाल पे इस तर्क को| देखें क्या जवाब आता है|
जय योद्धेय! - फूल मलिक
क्योंकि वैसे भी व्यापारी को देखो तो उसने यही आरक्षण लागू कर रखा कि बस कोई भी उत्पाद हो (चाहे इन्होनें उगाया-बोया-बनाया-मैनुफैक्चर भी ना किया हो, उदाहरणत: किसान की फसल) उसका विक्रय मूल्य यह तय करेंगे|
"जिन्हें अपने ज्ञान और मेहनत पर भरोसा नहीं होता वही आरक्षण माँगा करते हैं" की दलीलें देने वालो, बोलो अगर यह मेरा बताया आरक्षण भी लागू कर लेवें तो अपने पेट तो भर लोगे ना इस घमंड भरी दलील से?
और ज्ञान का इतना ही घमंड है तो बिना पर्ची के दान (जगह-जगह दान-पेटियां रख के) क्यों लेते हो? ज्ञान का इतना ही घमंड है तो तमाम तरह की धर्म के नाम की सर्विसों की लिखित गारंटी और रिटर्न क्लेम की फैसिलिटी क्यों नहीं देते हो?
ज्ञान का इतना ही घमंड है तो विकास के नाम पे विकास के पापा से करोड़ों रूपये की सब्सिडयां और मुवावजे क्यों लेते हो? वैसे भी तुम्हारी तो सारी मैनुफैक्चरिंग छतों के नीचे होती है, किसान की तरह खुले आस्मां के नीच थोड़े ही कि ओले-बारिश टाइप की प्राकृतिक आपदा नुक्सान कर देती हो| परन्तु फिर भी देश में सबसे ज्यादा मुवावजे और सब्सिडी डकारते हो और धौंस दिखाते हो ज्ञान की?
तुम्हारा ज्ञान, ज्ञान, और किसान-मजदूर का ज्ञान पानी? कभी एक सीजन तपती धूप और ठिठुरती रातों में खुले आसमान तले भगवान भरोसे रह के फसल उगा के देखो, सारे ज्ञान के मायने ही ना बदल जाएँ तो|
पेट भरने के लिए भोजन उगाने के ज्ञान से ले तन ढांपने के लिए कपास उगाने के ज्ञान तक तुम किसान के ज्ञान पे निर्भर हो, फिर भी अपने ज्ञान की धौंस दिखाते हो? परजीवी ज्ञान वाली ज्ञानियों की श्रेणी का ज्ञान रखते हो और परजीवी को भी जो पाल दे उस ज्ञान वाले के ज्ञान को धत्ता बताते हो| आखिर सामाजिक गैर-जिम्मेदारी, बेशर्मी और अहसानफ़रामोशी की भी कोई हद्द होती है|
चिपकाओ ऐसी दलीलें देने वालों की हर एक की वाल पे इस तर्क को| देखें क्या जवाब आता है|
जय योद्धेय! - फूल मलिक
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