Saturday 13 June 2015

यह सब सिर्फ जाट ही क्यों थे?


(स्वछंद मति की थ्योरी बनाम निर्देशित मति की थ्योरी)

एक जाति-विशेष ने उनके खुद के इतिहास में ऐसे जंगी-विजयी रिकॉर्ड जैसे कि जाटों के इतिहास में अलंकृत हैं नहीं होने के अकाल से ग्रस्त और कुंठित हो इसकी कुछ अप्रत्याशित सी कमी पूरी करने हेतु अब जाटों को अपना वंशज कहना शुरू कर दिया है| भरतपुर से ले पटियाला, लाहौर से ले जींद, धौलपुर से ले कुचेसर, हर्षवर्धन से ले कनिष्क, पोरस से ले चन्द्रगुप्त, दादा बाला से दादा रामलाल, दादा जाटवान से दादा हरवीर, नाहर सिंह से ले बाबा शाहमल तोमर, गॉड गोकुला से ले सूरजमल, जवहारमल से ले पीटर प्रताप मतलब एक भी तो जाट को यह जाट नहीं छोड़ रहे, सभी को तो लपेट लिया अपनी जाति में|

कुंठा रे कुंठा, कभी दूसरों की निर्देशित मति पे चलने की बजाये जाटों की स्वछंद मति की तरह कार्य किये होते तो यूँ जाटों सी वीरता पाने को जाटों के वीरों पे दावे ना ठोंकने पड़ते| जलते-भुनते कभी जाटों की स्वछँदता से तंग आकर जाटों को खुद के एंटी बोलने वाले आज जाटों से वीरता उधार लेने को घूम रहे|

और आगे बढ़ने और इनके दावों को तार्किक तरीके से खारिज करने से पहले मैं इस जाति-विशेष की कुंठा पर दो मार्मिक शब्द कहना चाहूंगा कि देखो आप लोग किस हद तक जाटों से वीरता और उनकी विजयी कहानियां गिरवी लेने को लालायित हो| आप और आपकी रॉयल्टी तो आप और आपके तथाकथित मार्गदर्शकों द्वारा अपने मुंह-मिया मिठ्ठू बनने वाली ही रही; जबकि जाट को तो अंग्रेज और मुसलमानों ने भी रॉयल माना| वो इतिहास में साफ़ लिख के जा चुके हैं कि जाटों से आप हो सकते हो, जाट आपसे नहीं|

अब आता हूँ आपके दावों को ख़ारिज करने की थ्योरी पे| सारा भारतीय इतिहास का साहित्य साक्षी है कि आप लोगों ने एक जाति विशेष द्वारा लिखा हुआ इतिहास ही माना| उस जाति ने जो लिख दिया उसको प्रमाण और सत्यवचन माना| उस जाति ने जो किले-रजवाड़े सर पे बिठा दिए वही आपके अनुसार रॉयल कहलाये| उस जाति ने जिस साधारण इंसान को भी महानायक बना दिया, आप लोगों ने उसी को मान्यता दे दी| यहां ध्यान दीजियेगा कि आप लोगों ने मान्यता दी, जाट या अन्य सभी जातियों ने भी दी हो ऐसा मैंने नहीं कहा| और ना मैं यहां आपकी जाति का नाम लेने वाला और ना उस जाति का जिसने ऊपर लिखित सारे कार्य किये| इस लेख में जाति के नाम से तो सिर्फ जाट का ही नाम लूँगा| इसकी वजह भी साफ़ है मुझे आपके दावों को ख़ारिज करना है आपका अपमान नहीं| और जब आपके दावे ख़ारिज होंगे तो आप खुद भी जान जाओगे कि यहां जाट के अलावा और कौनसी जातियों का जिक्र हो रहा है| चिंता ना करें और ना ही इस लेख को पढ़ते हुए उत्तेजित होवें क्योंकि जाट जाति का गौरवान्वित अंश होते हुए जानता हूँ कि ऐसे संवेदनशील मामलों में जातीय शब्द की हिंसा और अनादर ना दिखाते हुए कैसे ऐसे दावे करने वालों को निरस्त करना होता है|

तो अब बढ़ता हूँ आपके दावों को ख़ारिज करने पे| बड़े सिंपल लॉजिक्स के साथ आपकी बातों का खंडन करूँगा|

1) आप लोग कहते हो कि महाराजा हर्षवर्धन जाट नहीं अपितु आपकी जाति के थे| तो मान्यवर अगर ऐसा था तो हर्षा ने 643 में खाप सिस्टम को वैधानिक मान्यता कैसे दे दी? क्योंकि आपकी मार्गदर्शक जाति ने जो निर्देशित कर दिया, उससे बाहर जाने का तो आपका इतिहास नहीं| और खाप-सिस्टम ठहरा टोटली उसके एंटी? तो ऐसे में फिर हर्षा आपकी जाति का होते हुए यह उददण्डता करने की जुर्रत कैसे कर गए कि उन्होंने वरन सबके परन्तु मूलरूप से जाट लोकतान्त्रिक थ्योरी के खाप सिस्टम को वैधानिकता दी? हर्षा तो अनुयायी भी बुद्ध धर्म के थे, उसी बुद्ध धर्म के जिसके विरुद्ध कार्य करने का आपका इतिहास रहा है| ध्यान दीजियेगा ऐतिहासिक तथ्य प्रमाणित करते हैं कि दसवीं सदी के इर्द-गिर्द माउंट आबू के ऐतिहासिक यज्ञ से आपकी उतपत्ति बताई जाती है| फिर भी आपकी बात का मान रखते हुए कहूँगा कि एक पल को अगर हर्षा जाट बेशक ना भी थे परन्तु आपकी जाति के तो कदापि नहीं थे| क्योंकि आपकी जाति के होते तो आपका इतिहास लिखने वालों ने आज उनको भी सर्वोच्च राजाओं की श्रेणी में रखा होता| राणाओं के राणा, महाराजाओं के महाराजा बताया होता, क्योंकि उनका इतिहास ही इतनी उपलब्धियों भरा है|

2) आप लोग कहते हो कि 1024 में महमूद ग़ज़नवी से सिंध के मैदानों में सोमनाथ मंदिर से उसका लूटा हुआ खजाना लूटने वाली खाप आर्मी और उस आर्मी के लीडर ‘दादावीर बाला जाट जी महाराज’ भी आपकी ही जाति से थे| तो मान्यवर आपने अभी तक उनके बुत क्यों नहीं लगवा दिए शहरों-गाँवों के चौराहों पर? अभी तक उनकी कोई जयंती क्यों नहीं मनाने की परम्परा सुनी मैंने आपके यहां?

3) आप लोग कहते हो कि 1206 में मोहमद गौरी को घेरने वाली खाप आर्मी और गौरी को मारने वाले ‘दादावीर रामलाल जी खोखर महाराज’ भी आपकी जाति से थे, तो अभी तक इतना मत्वपूर्ण आदमी आपके इतिहास की किताबों से गायब कैसे रह गया? अब ऐसा तो नहीं हो सकता कि जो आपका इतिहास लिखने वाली जाति रही है उसकी नजरों से इतना महत्वपूर्ण नायक छूट गया हो? उसकी अनुशंषा, प्रशंसा, महानता में कुछ घड़ा ही ना गया हो?

4) आप लोग कहते हो कि पृथ्वीराज के शासन के पतन के तुरंत बाद मोहम्मद गौरी के सेनापति कुतबुद्दीन ऐबक को 1193 में नाकों चने चबाने वाले ‘दादावीर जीवन जाटवान जी गठवाला महाराज’ भी आपकी जाति से थे? तो जनाब अभी तक उनको प्रथम हिन्दू धर्म-रक्षक के नाम से क्यों नहीं जाना गया? क्यों नहीं आपका इतिहास लिखने वाली जाति ने आजतक उनको अपनी लेखनी में स्थान दिया?

5) 1669 में औरंगजेब की जड़ें हिलाने वाले 'गॉड गोकुला' भी आप ले लोगे यार तो फिर जाटों के पल्ले छोड़ोगे क्या? कहो तो हम लोग शाक्का कर लेवें? वैसे माँ कसम हमने शाक्के कभी नहीं किये, हमने तो जहाँ भी हमारी चली हमारी औरतों तक को नहीं करने दिए| असल में गलती आपकी नहीं है क्योंकि आपके जो गुरुलोग हैं उनको हमेशा से दो ही चीजें आई हैं एक तो दूसरों के क्रेडिट पे डाका मारना और दूसरा डाके से नहीं मिलता तो छीना-झपटी पे उतरा आना| अब उनकी सोहबत का इतना प्रभाव तो लाजिमी है ना|

6) आप दावे करते हो कि जींद-पटियाला का जाट राजघराना आप लोगों का वंशज है, तो जनाब क्यों जींद के दोनों किले गिरवा दिए गए? क्यों आप वालों की तरह उनपे भी रख-रखाव लगवा के पर्यटन नहीं कमाया गया? क्यों नहीं जींद रियासत को भी वही मान-सम्मान मिला जो इससे भी कहीं निम्न दर्जे की रियासतों को मिला हुआ है? मतलब महाराजा ने आपकी जाति से भाईचारा दिखाने हेतु कुछ कह भी दिया होगा तो क्या, मतलब पूरी रियासत ही अपनी जाति की लिखने लग जाओगे क्या?

7) आप दावे करते हो भरतपुर वाले भी आपके हैं? ……. जा के कभी भरतपुर की धरोहरों की हालत देखी है? अगर यह आप वालों के होते तो उसी तरह चमक-दमक रहे होते, जैसे आपके चमक रहे हैं| क्योंकि फिर जो सरकारी धन आप वालों की तरफ मोड़ा गया है उसका कुछ हिस्सा इनकी तरफ भी मुड़ता|

नादान जाटों सुध ले लो अपनी इन धरोहरों की, और नहीं तो पर्यटन के बहाने ही सही, भरतपुर देख के आया करो| दावा करता हूँ ब्रिटेन के बकिंघम पैलेस और फ्रांस के वरसाई पैलेस में खड़ा हो के भी वो गरूर नहीं आता जो उन दीवारों पे खड़ा हो के आस्मां निहारने में आता है जहां से जाटों के दो छोरों ने गौरों के नौ-नौ कमांडरों को धूल चटा, ब्रिटिशराज का सूरज थामा था|

तो आगे बढ़ता हूँ| जब यह तर्क दिए जाते हैं और कुछ जवाब नहीं बनता है तो शायद चिड़न व् कुंठावश आप तथाकथित सभ्यों का असभ्य व् लीचड़ तर्क आता है कि जाट तो हमारी नाजायज औलाद हैं| जो औरतें हमारे यहां विधवा हो जाती थी जाट उनसे ब्याह करते थे और उन्हीं से फैले या पैदा हुए, जो भी तर्क आप देते हैं| तो तर्कों के धनी तर्काधीश्वरो फिर यह भी आप ही बता दो कि आपके दावेनुसार वो प्रथम विधवा कौन थी जिन्होनें जाट से ब्याह किया? और वो सर्वप्रथम विधवा से शादी करने वाला सर्वप्रथम जाट कौन था? और अगर वो पहले से मौजूद था तो फिर वो आपसे कैसे पैदा हुआ?

मतलब आप कहना चाहते हैं कि आपकी विधवा औरतों ने आपके शाक्कों का विरोध किया होगा और जब जान बचाने हेतु पनाह ढूंढी होगी तो जाटों ने उनको संभाला होगा, क्योंकि एक सामान्य परिस्थिति में तो आप उसको सति होने वाली चिता से उठ के जाने देने से रहे| और आप जाने भी देते होंगे तो आपको मार्दर्शन देने वाले तो जरूर ऐसा करने से रोकते होंगे| कम से कम फ्रांकोइस बर्नियर की डायरी तो यही कहती है| तो भाई जीवनदान के लिए भाग के आये को शरण देने का काम तो पुण्य का काम हुआ ना, मानवता का काम हुआ ना, तो इससे जाट भला कैसे पीछे हट जाते| बल्कि यह तो उल्टा जाटों की स्वछँदता ही साबित करता है कि जिनके निर्देशन से आप लोग ऐसा करते रहे होंगे उन्हीं के निर्देशन को ताक पे रख के मानवता की चादर ढूंढ रही औरतों को चादर ओढ़ाई|

वैसे कमाल है विधवाओं पे काम करने के लिए खासतौर पर गाये गए और उठाये गए राजा राम-मोहनरॉय की नजर और अनुशंषा से वो प्रथम जाट या ऐसे तमाम जाट कैसे बच गए? मैंने तो आजतक यही पढ़ा और जाना कि उन्नीसवीं सदी के इस नायक से पहले किसी ने विधवाओं का कोई उद्दार नहीं किया? धन्य हो आप लोगों का जो ऐसे पुण्य कार्य सर्वप्रथम जाटों ने किये थे ऐसा कहने की हिम्मत और निष्पक्षता रखते हो| वर्ना तो जिन्होनें राजाराम मोहनरॉय को लिखा, उन्होंने जाटों को तो इस फ्रंट पे भी हमेशा की तरह दरकिनार ही रखा|

वैसे जाटों के यहां तो स्वेच्छा के बिना कोई विधवा होती ही नहीं, क्योंकि उसको पुनर्विवाह की आज्ञा है| और होती भी है तो अपने पति की घर-सम्पत्ति में ठाठ से बसती है| यह विधवाओं को समाज से बाहर कर और उनको आश्रमों में भेजने की रीत तो आपके यहां रही है, हमारे यहां थोड़े ही| ना औरत की शाक्का करने वाली रीत हमारी बनाई हुई थी, ना ही नवजन्मा को दूध के कड़ाहों में डूबा के मारने की रीत हमारी बनाई हुई थी| यह भी आप और आपके गुरुलोगों की ही समाज को अनोखी देन रही हैं (ना यकीन हो तो शाहजहाँ और औरंगजेब के फ्रांसीसी डॉक्टर फ्रांकोइस बर्नियर की डायरी खोल के पढ़ लो)| अत: आप लोग इस दावे से क्या साबित करना चाहते हो या फिर यह औरतों के प्रति अपने ऐतिहासिक क्रूरतम रवैये को जाटों को स्थांतरित करना चाहते हो? ऐसे थोड़े ही होता है महानुभाव| कृपया अपना क्रेडिट अपने पास रखिये, हम हमारे वाले से खुश हैं|

जाटों को नीचे दिखाने का अगला तर्क आप देते हो कि जाट तो हमारे यहां नौकर रहे हैं| जनाब मेरी हरयाणा तरफ की धरती पे तो मामला उल्टा है| यहां तो आप वाली जाति वाले मेरे यहां नौकर रहते आये हैं| ना यकीन हो तो मेरे गाँव में बसने वाली और आपकी बिरादरी की होने की कहने वाली जाति से साक्षात मिलवा भी दूंगा| तो यह तर्क तो यहीं पर उत्तर-कैतर यानी न्यूट्रल हो गया|

अब आप ऐसा ही एक और घटिया दावा उठा के लाते हो कि तुम्हारी औरतों को तो मुग़लों ने कुचला| उदाहरण देख लो कलानौर रियासत का| अब यह तो कुछ ज्यादा ही हो जायेगा| यह तो वही बात हो गई कि सिख को यह कहा जाए कि तुम सिख क्यों बने? बाई गॉड सिख जो भी जवाब देगा उनमें एक यह भी देगा कि हिन्दू औरतों (ध्यान दीजियेगा वो जाती-विशेष की नहीं वरन तमाम हिन्दू औरतों की बात करता है) पे विदेशी आक्रान्ताओं के जुल्मों के चलते वो हिन्दू से सिख बना| और मुझे कहने की भी जरूरत नहीं कि आधे से ज्यादा सिख भी जाट ही है| और हमने सिख ना बनते हुए भी कलानौर जैसी रियासत तोड़ के मूल-जाट रहते हुए कौम-हित के काम किये, तो इसमें उलाहना या कटाक्ष कैसा?

कुंठा की भी तो कोई हद होती है ना, क्योंकि आप लोगों ने किसी ऐसी रियासत को तोडा हो तो सामने वाले का बलिदान और क़ुरबानी समझ आवे| वैसे मुस्लिम कोई निशानी करके हिन्दू औरतों से बदसलूकी नहीं करते थे| जैसा कि अभी ऊपर कहा वो 36 कौम की हिन्दू औरतों से बदसलूकी करते थे| हाँ परन्तु इस मामले में एक बात में हम तुमसे फिर भी ऊपर हैं| जाटों के राजघरानों ने कभी मुग़लों को औरतें नहीं दी, बल्कि उल्टी उनकी ब्याही| उदाहरण स्वरूप गढ़-ग़ज़नी की बेगम से लव-मैरिज करने वाले गठवाला जाट दादा मोमराज जी महाराज; महमूद ग़ज़नवी की बहन से शादी करने वाले साहू जाट, अहमदशाह अब्दाली की नाक तले दिल्ली को हरा संधि स्वरूप दिल्ली की राजकुमारी का ब्याह स्वीकारने वाले महाराजा जवहारमल जी, और ऐसे ही बहुतेरे उदाहरण|
गठवाला (मलिक) जाटों की तो वो टोर होती थी कि मुस्लिमों ने कभी उनकी बारात के धौंसे (तुरई-टामक और नगाड़े बजते जाया करते थे पुराने जमाने की बारातों में) नहीं रोके, फिर उनसे कोले पुजवाने की तो बात दूर की है| हाँ 1620 में गठवालों की बेटी की डोली रोकने की हिमाकत करी थी कलानौर वालों ने तो ऐसी धूल में मिलाई थी पूरी रियासत कि आजतक इतिहास में मोटी स्याही में तारीख मौजूद है|

अब देखो यार बाल की खाल तो मुझे निकालनी आती नहीं| ना ही तुम्हारी तरह वो हमारी हरयाणवी कहावतानुसार 'चूचियों में हाड टोहने (ढूंढने)' आते| फिर भी अगर इससे भी तुम्हारा पेट्टा नहीं भरा यानी संतुष्टि नहीं हुई हो तो इतिहास की वो तारीखें और निकाल के तुम्हारे सामने रख दूंगा, जब बार-बार जाटों ने तुम्हारी आन और इज्जत बचाई (वैसे वैसी कुछ तारीखें तो इस लेख में दे दी हैं, जैसे गौरी को मारने वाली)|

तो ऐसा है बंधू हमें आपकी वीरता से स्नेह है, क्योंकि हम उन ब्रिटिशों के विजयरथ रोकने वाली कौम होते हैं जिनके बारे तारीखों ने कहा कि ब्रिटिशराज का सूरज कभी छिपा नहीं करता, इसका रथ कभी रुका नहीं करता| अब यार 1804-05 में भरतपुर में इनके रथ को 4 महीने तक रोक के रखने और फिर इनसे ‘treaty of equality and friendship’ sign करवाने वाले तो कम से कम आप नहीं हो सकते| पीछे के इतिहास में तो लाख झोलमेल-घालमेल करने की कोशिश करके तुम किसी को भी किसी का वंशज बताओ, परन्तु इसपे तो तुम कम से कम दावा नहीं ठोंक सकते| और जिन्होनें अंग्रेजों से बराबरी का सम्मान पाया हो, वो तो कम से कम तुम से ना तो बहादुरी में कम हो सकते और ना रॉयल्टी में|

अरे हमने तो ब्रिटिश ही क्या आपका मार्गदर्शन करने वालों के निर्देश पर सजी एक लाख की आर्मी को मात्र 9000 गठवाले जाटों में से सिर्फ 1500 गठवाले जाट कुर्बान कर हराया था| साहस और शौर्यता का यह अदम्य करिश्मा देख कर तो हमें अरब के खलीफाओं के प्रतिनिधियों तक ने उनके यहां रॉयल्टी की सबसे उच्च पदवी 'मलिक' बराबरी के स्थान के साथ नवीस की थी| ना यकीन हो तो अपने इतिहासवेत्ताओं व् मार्गदर्शकों से पूछवा लो|

सही कहा ना, अगर ऐसे कार्य आप लोगों के भी नाम रहे होते तो आप लोगों ने इसपे ग्रन्थ के ग्रन्थ लिखवा दिए होते| तो निराधार बातें छोड़िये और इस तथ्य को समझिए कि जाट आपसे तो कम से कम नहीं हैं|
अपने आपको बहादुर कहलाते हो, रॉयल भी कहलाते हो तो रोयलों जैसा ही बर्ताव करो| या फिर जो आपको मार्गदर्शन देते हैं उनको छोड़ के अपनी मति से कार्य करना शुरू करो; तब शायद पहचान सको कि जाट औरों से अपेक्षाकृत इतना गौरवशाली इतिहास कैसे लिए हुए है| और जाट से बड़ा आपका मित्र भी कोई नहीं हुआ इतिहास में| परन्तु पहले उनको छोडो जो आपका कन्धा प्रयोग करके आपको जाट से भिड़ाते हैं, तब जा कर यह बातें समझ आएँगी| जाट तो वो किंगमेकर रहे हैं जिन्होनें आज़ादी के बाद भी आपके दो-दो किंग बनाये और आप जाटों से ही घृणा रखते हो| नहीं मेरे भाईयो इसको त्यागो| और जो धारणा जाट के प्रति आप लोग रखते हैं जाट बिलकुल उसके विपरीत आपके लिए साबित हुए हैं|

चलते-चलते भावावेश और आवेश में बह के सोशल मीडिया पर तैरने वाले जाट-युवानों से एक निवेदन है कि आप लोग इन बेकार के तर्कों में उलझने से पहले, जितना हो सके उतना अपने इतिहास का अध्यन करो| मैडिटेशन और मनन करो| और सच कहूँ तो इन दावा करने वालों से ज्यादा यह लेख मैंने आप लोगों के लिए लिखा है| आलोचना करने वाले को जवाब देने की कला का अभ्यास करो| और हो सके तो इस लेख को दूर-दूर तक शेयर करना, इतना शेयर करना कि हर जाट को इन कुतर्कों की वजह से न्यून ना देखना पड़े| और ऐसे झूठे दावे करने वाले समझ जाएँ कि उनके दावे कितने खोखले हैं; उनकी भाषा कितनी असभ्य है और उनका व्यवहार कितना कुंठित और मनोरोगी है|

जय योद्धेय! - फूल मलिक

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