जाट (ताऊ देवीलाल) द्वारा 2-2 बार राजपूत (VP Singh and Chandershekhar)
प्रधानमंत्री बनाये गए, राजस्थान में भैरों सिंह शेखावत मुख्यमंत्री बने तब
उनको भी ताऊ देवीलाल की जनता दल और विधानसभा में दातारामगढ़ से निर्दलीय
विधायक अजय सिंह ने अपना वोट दे मुख्यमंत्री के लिए जरूरी बहुमत दिलवाया
था| तो ऐसे इतिहास से भी अगर किसी राजपूत को यह समझ नहीं आता कि कौन जाति
उनके नफे की है और कौन उनके नुक्सान की, तो फिर मैं तो क्या हजार जाट भी
मिलके राजपूत को जाट के खिलाफ फंडी वाली भाषा बोलने से नहीं रोक सकते।
वैसे कई बार देखने में आया है कि ऐसे आईडीज़ के पीछे एंटी-जाट ताकतों के एजेंट बैठे होते हैं, जो यह जानते हैं कि जब तक वो अजगर (अहीर-जाट-गुज्जर-राजपूत) की फूट को भुना रहे हैं तब तक जिन्दा हैं। खैर वो आईडीज़ के पीछे बैठे हों या वास्तव में किसी राजपूत को जाट के प्रति भड़का के बैठाते हों, जब तक ऐसे लोग अपनी फसलों के दामों और किसानी अधिकारों बारे संजीदा हो अजगर एकता के महत्व को नहीं समझेंगे, अपने और अपनी कौम समेत अजगर के अस्तित्व रुपी पैर पर अपने हाथों कुल्हाड़ी मारने वाला काम करते रहेंगे। ऐसे लोगों को खुद का समाज ही सम्मान नहीं देता| हाँ इनको सिर्फ मंडी-फंडी यानी अजगर एकता विरोधी ताकतें जरूर तवज्जो देती हैं।
ऐसी एंटी-जाट पोस्टों पर जाट भी गर्म-जोशी में अपनी प्रतिक्रिया देने से पहले, अपने आपको तार्किक बनाएं और ऐतिहासिक तथ्यों से अपनी बात रखें तो जरूर सामने वाले पर असर होगा। वर्ना भड़काऊ के बदले भड़काऊ जवाब देने से तो फिर आप भी मंडी-फंडी के मन की चाही कर रहे हैं।
इसीलिए दोनों ही समुदायों के युवाओं को ऐसे दुष्प्रचारों और घृणाओं में पड़ने से पहले बागरु (मोती-डूंगरी) की कुशवाहा राजपूत और भरतपुर के जाटों के आपसी सहयोग व् खापों के सहयोग के ऐतिहासिक किस्सों समेत 'अजगर' इतिहास को आगे रख के दोनों तरफ के दिशाहीन युवकों व् अनुभवियों को दोनों की आपसी समरसता और सहयोग की जरूरत पर जोर दिलवाना चाहिए। किसान इधर भी हैं और किसान उधर भी। आप लोगों की यह नादानियाँ किसानों के हितों हेतु दोनों समुदायों को एक हो के लड़ने के इरादों पर पानी फेरती हैं। इसीलिए जितना हो सके, ऐसी बहसों को नकारते हुए व् दरकिनार करते हुए चलना चाहिए।
अरे जब कॉमन इंटरेस्ट सेम, इतिहास में आपसी सहयोग के किस्से सेम तो फिर यह मंडी-फंडी को फूट रुपी जहर भरी दुनाली चलाने को अपने कंधे क्यों इस्तेमाल करने देना?
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
वैसे कई बार देखने में आया है कि ऐसे आईडीज़ के पीछे एंटी-जाट ताकतों के एजेंट बैठे होते हैं, जो यह जानते हैं कि जब तक वो अजगर (अहीर-जाट-गुज्जर-राजपूत) की फूट को भुना रहे हैं तब तक जिन्दा हैं। खैर वो आईडीज़ के पीछे बैठे हों या वास्तव में किसी राजपूत को जाट के प्रति भड़का के बैठाते हों, जब तक ऐसे लोग अपनी फसलों के दामों और किसानी अधिकारों बारे संजीदा हो अजगर एकता के महत्व को नहीं समझेंगे, अपने और अपनी कौम समेत अजगर के अस्तित्व रुपी पैर पर अपने हाथों कुल्हाड़ी मारने वाला काम करते रहेंगे। ऐसे लोगों को खुद का समाज ही सम्मान नहीं देता| हाँ इनको सिर्फ मंडी-फंडी यानी अजगर एकता विरोधी ताकतें जरूर तवज्जो देती हैं।
ऐसी एंटी-जाट पोस्टों पर जाट भी गर्म-जोशी में अपनी प्रतिक्रिया देने से पहले, अपने आपको तार्किक बनाएं और ऐतिहासिक तथ्यों से अपनी बात रखें तो जरूर सामने वाले पर असर होगा। वर्ना भड़काऊ के बदले भड़काऊ जवाब देने से तो फिर आप भी मंडी-फंडी के मन की चाही कर रहे हैं।
इसीलिए दोनों ही समुदायों के युवाओं को ऐसे दुष्प्रचारों और घृणाओं में पड़ने से पहले बागरु (मोती-डूंगरी) की कुशवाहा राजपूत और भरतपुर के जाटों के आपसी सहयोग व् खापों के सहयोग के ऐतिहासिक किस्सों समेत 'अजगर' इतिहास को आगे रख के दोनों तरफ के दिशाहीन युवकों व् अनुभवियों को दोनों की आपसी समरसता और सहयोग की जरूरत पर जोर दिलवाना चाहिए। किसान इधर भी हैं और किसान उधर भी। आप लोगों की यह नादानियाँ किसानों के हितों हेतु दोनों समुदायों को एक हो के लड़ने के इरादों पर पानी फेरती हैं। इसीलिए जितना हो सके, ऐसी बहसों को नकारते हुए व् दरकिनार करते हुए चलना चाहिए।
अरे जब कॉमन इंटरेस्ट सेम, इतिहास में आपसी सहयोग के किस्से सेम तो फिर यह मंडी-फंडी को फूट रुपी जहर भरी दुनाली चलाने को अपने कंधे क्यों इस्तेमाल करने देना?
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
1 comment:
Sir, i am a rajput and am from the far state of jharkhand . Now, coming to the problem you have mentioned in the post. The problem persists we all know, while i come across both jats and rajputs from rajasthan , they dont like each other(sorry to say that), they dont know abot ajgar. Now, there are many jats and rajputs who know about this and try to have good relationship with each other. Again one thing is that how can we join together , can we sit together and think on that. Just talking about the problem will not help, we need to take initiative. So, we should think about how to initiate. Again one thing is that many historians have established that Jats and Rajputs are the same people and share the same ancestory ,if it is true( i am not an authority on the subject), then who stops us. Should not we sit together and think why we seperated if we were together. And one thing is clear that needs are also common
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