हास्यास्पद तो यह है कि बेटियों को बेचने वाले, विधवाओं को आश्रमों में
भेजने वाले, विवाहिता की देखभाल के नाम पर 'कच्छा-टांग' संस्कृति पालने
वाले, नवजन्मा को दूध के कड़ाहों में डुबो के मारने वाले, दलितों की बेटियों
को देवदासी के नाम पर वेश्या बनाने वाले समाजों व् क्षेत्रों से आने वाले
लोग न्यूजरूम्ज और एनजीओज में बैठ के हरयाणा को 'बेटी बचाओ', 'हॉनर
किलिंग', 'वुमन एम्पावरमेंट', 'वुमन रेस्पेक्ट' और 'वुमन सेफ्टी' के लेक्चर
देते हैं|
और इसपे भी मजे की बात तो यह है कि हरयाणा वाले जब से ऐसे लोगों की सुनने लगे, तब से हरयाणा में औरत के खिलाफ हर अपराध ने दिन दोगुनी रात चौगुनी तरक्की करी है| मुझे तो डर है कि यह कच्छा-टांग और देवदासी पालने वाली संस्कृति के लोग हरयाणा में औरत का मान बढवावें या ना बढवावें परन्तु यहां देवदासियां जरूर पलवा देंगे|
जब से हरयाणा में, "छाज तो बोलै, छालनी भी के बोलै जिसमें बाहत्तर छेद!" जैसे झन्नाटेदार जवाब दे, कुबुद्धि व् दुर्बुद्धि दुष्टों का मुंह थोबने (बंद करने) वाले खामोश हुए हैं तब से इन छद्म समाजसुधारकों की समाज में पौ-बारह हुई पड़ी है|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
और इसपे भी मजे की बात तो यह है कि हरयाणा वाले जब से ऐसे लोगों की सुनने लगे, तब से हरयाणा में औरत के खिलाफ हर अपराध ने दिन दोगुनी रात चौगुनी तरक्की करी है| मुझे तो डर है कि यह कच्छा-टांग और देवदासी पालने वाली संस्कृति के लोग हरयाणा में औरत का मान बढवावें या ना बढवावें परन्तु यहां देवदासियां जरूर पलवा देंगे|
जब से हरयाणा में, "छाज तो बोलै, छालनी भी के बोलै जिसमें बाहत्तर छेद!" जैसे झन्नाटेदार जवाब दे, कुबुद्धि व् दुर्बुद्धि दुष्टों का मुंह थोबने (बंद करने) वाले खामोश हुए हैं तब से इन छद्म समाजसुधारकों की समाज में पौ-बारह हुई पड़ी है|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
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