उत्तरी-पूर्वी भारतीय, मुंबई के मराठी के हाथों साम्प्रदायिकता, भाषावाद और क्षेत्रवाद की मार का अनुभव हरयाणा में हरयाणा-हरयाणवी और हरयाणत पर दानावल बनके उतरा है। आखिर ऐसी क्या वजहें हैं कि मुंबई में खुद ही के हिन्दू भाईयों के हाथों छित्तर खाने वाला यह तबका हरयाणा, एनसीआर में आ के इतना विश्वस्त व् आश्वस्त हो कर हिंदुत्व की राष्ट्रवादिता का नाटक खेल रहा है? आखिर यह मुंबई में इसकी पिटाई के अनुभव को हरयाणा (पश्चिमी-मध्य-पूर्वी तीनों हरयाणा) में कैसे इस्तेमाल कर रहा है? वहाँ इसको खुद की सुरक्षा के लाले पड़े रहते थे और यहां स्थानीय समाज को विखंडित कर रहा है?
मैं इस पर डिबेट चाहता हूँ। कृपया अपने अनुभव साझा करें, ताकि स्थानीय हरयाणवी को यह समझने में आसानी हो कि आखिर वो अपनी 'हरयाणा-हरयाणवी-हरयाणत' की रक्षा करने में चूक कहाँ और क्यों रहा है?
यह शरणार्थी आखिर स्थानीय हरयाणवी से चाहते क्या हैं?
साथ ही जोड़ दूँ, कि इसके निशाने पर सिर्फ हरयाणा ही नहीं पंजाब भी है। इसलिए पंजाब-हरयाणा के बाशिंदे दोनों मिलकर इस पर अपने विचार रखें।
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
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