Wednesday 5 August 2015

दोशालों पाट्यो भलो, साबुत भलो ना टाट, राजा भयो तो का भयो, रह्यो जाट गो जाट!


हमारे कुछ जाट भाई पता नहीं कैसे इन पेशवा ब्राह्मणों के संगठन आरएसएस पर मोहित हो रखे है | जबकि इतिहास गवाह है कि इन पेशवा ब्राह्मणों ने कभी जाट को सम्मान नहीं दिया और ना ही कभी सम्मान की नजर से देखा | इसके इतिहास में प्रमाण हैं | औरंगजेब की मृत्यु के बाद अहमदशाह अब्दाली ने मराठों पर हमला कर दिया था | वर्ष 1707 में पुना में पेशवा सदाशिवराव भाऊ शासक था | पेशवा ने अब्दाली का मुक़ाबला करने के लिए सभी का आह्वान किया | महाराजा सुरजमल ने युद्ध कैसे लड़ा जाए इस पर अपने सुझाव रखे | तब पेशवा भाऊ ने कहा कि ' दोशालों पाट्यो भलो , साबुत भलो ना टाट , राजा भयो तो का भयो , रह्यो जाट गो जाट ' |

और उसके खुद के राजा होने का उसका घुमान तब टूटा जब महाराजा सूरजमल की सलाह ना मान, जा चढ़ा अब्दाली के आगे पानीपत में, हार के बाद खुद रोया था कि उस जाट राजा की मान ली होती तो इतनी मुंह की ना खानी पड़ती।

इन लोगों कि नजर शुरू से ही सर छोटूराम के पंजाब पर रही है , पंजाब के बँटवारे की ज़िम्मेवार जितनी मुस्लिम लीग थी उतनी ही आरएसएस थी और यहीं कारण था कि 24 जनवरी 1947 को पंजाब की यूनियनिस्ट सरकार ने इन दोनों संगठनों पर बैन लगा दिया था | ये दोनों ही संगठन पंजाब में धर्म के नाम से दुकान चलाना चाहते थे जोकि सर छोटूराम के जिंदा रहते इन्हे सफलता नहीं मिल पा रही थी | जिन्नाह सर छोटूराम के रहते पंजाब में कामयाब नहीं हो पा रहा था तो इसके लिए इन पेशवा ब्राह्मणों ने एक खेल और खेला था , इन लोगों ने अपने एजेंट मास्टर तारा सिंह जोकि खत्री जाति से थे को पंजाब में अकाली नेता के रूप में उतारा , मास्टर तारा सिंह ने सिक्ख धर्म के नाम पर अलग देश की मांग की | मास्टर तारा सिंह इनके एजेंट कैसे थे उसका प्रमाण हैं जब गांधी जी की हत्या हुई तो आरएसएस के कई नेता गिरफ्तार किए गए , इनमें वीर सावरकर भी शामिल था | सावरकर के लिए मास्टर तारा सिंह ने सिर्फ वकील ही नहीं किया बल्कि उसकी फीस तक अपनी जेब से भरी और उसकी हर तारीख पर खुद भी कोर्ट में हाजिर रहता था | इसका जिक्र विस्तार में दूसरे किसी लेख में करूंगा |
मतलब साफ है कि इनकी नजर में जाट राजा नहीं हो सकता , इनकी नजर में हमारे लिए ना कभी कोई सम्मान था और ना ही होगा इसका प्रमाण हरियाणा के ताजा हालात हैं |

इनके संगठन में भी यह बात साफ देखने को मिलती हैं , कुछ जाट ऐसे हैं जो इनके संगठन से 25-30 साल से जुड़े हुए हैं पर संगठन में उनका ओहदा क्या हैं सबको पता है | 25-30 साल हो गए इनकी दरी बिछाते पर आज भी वहीं के वहीं हैं , हरियाणा में ठोकर लग ली पर अक्ल इनके अब भी नहीं आ रही | संगठन में ऊपर के स्तर पर सिर्फ उंच वर्ण के ही मिलेंगे , क्योंकि जाट तो रह्यो जाट को जाट | इन लोगों का खेल आम जाट की समझ से परे है , हरियाणा के बाद अब इनका खेल पंजाब में शुरू हो गया है | छोटे होते टीवी पर पंजाब के उग्रवाद पर एक सिरियल आता था जिसका थीम सॉन्ग कुछ इस प्रकार था ' एनु मैली ना करना एह मेरे पंजाब दी मिट्टी है .... ' | इन लोगों की चाल को समझों और अपने रहबर सर छोटूराम की मिट्टी को मैली होने से बचाओ !

 Author: Rakesh Sangwan

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