Thursday 13 August 2015

अपनी सभ्यता-संस्कृति के खसम बनो, जमाई नहीं!


आजकल यह मेरे प्रोफाइल की कवर-फोटो की पंच लाइन है| कई दोस्तों ने पूछा है कि भाई "खसम बनो, जमाई नहीं" से क्या मतलब? आप सबके सवाल का जवाब यह है|

हरयाणवी में 'खसम' पति व् घर-खेत के मालिक को कहते हैं| कहावत भी है कि 'खेती खसम सेती!' यह यही वाला खसम है| जमाई का अर्थ तो आप सब जानते ही हैं और इस संदर्भ में भी यही अर्थ है|

तो जैसे जमाई घर में आता है हालाँकि वो घर होता तो उसका भी है, वो उस घर का सदस्य भी है परन्तु घर में उसका किरदार नखरे दिखाने का, आवभगत करवाने का और घर की हर इस-उस बात में सिर्फ नुक्श निकालने का होता है| घर में उसके अनुसार कुछ करने की कहो तो वो करेगा भी नहीं और उसको ऐसा कहना उसकी इज्जत में गुस्ताखी माना जाता है| यानि घर में ले दे के कुछ करना भी है तो घर मालिक यानी खसम ही करेगा, क्योंकि वो समझता है कि वो इसका मालिक है, जिम्मेदार है|

हरयाणवी संस्कृति व् सभ्यता रुपी घर का भी यही हाल है, हर कोई इसका बेटा-बेटी यानी खसम होते हुए भी 95 % मामलों में सब इसके जमाई बने हुए हैं| नुक्श हजार निकालते हों परन्तु जब उसको ठीक करने या उसके निकाले हुए नुक्श को ही ठीक करने की कह दो तो बगलें झाँकनेँ लगते हैं| और इसीलिए "हरयाणा-हरयाणवी-हरयाणत" इसी के बेटे-बेटियों द्वारा सौतेली बना दी गई है|

इसके कारण कुछ भी हों, परन्तु इसको वही संभाल सकता है जो अपने आपको इसका खसम मानता हो, इसको अपना कहने में गर्व व् इसके उत्थान में अपना हित देखता हो| 5 एक प्रतिशत लोग हैं जो इसको ले के सजग और सचेत हैं, वर्ना बाकी 95% तो जाट बनाम नॉन-जाट जैसे राजनैतिक प्रपंचों में आपस में ही उलझे खड़े हैं|

इस चीज का किसी को भान नहीं कि असीमित शरणार्थियों के बीच जैसे मुंबई के मराठों ने अपनी सभ्यता-संस्कृति नहीं रुलने व् खोने दी, ऐसे ही हम हरयाणवी मूलरूप से हमारी दिल्ली-एनसीआर में आ रहे इतने गैर-हरयाणवी शरणार्थियों के बीच अपनी हरयाणवी सभ्यता व् संस्कृति को कैसे चलायमान व् औचित्यमान बनाये रखें|

बस इन्हीं बातों को करने की प्रेरणा हेतु है यह पंच लाइन निर्मित की है कि "अपनी सभ्यता-संस्कृति के खसम बनो, जमाई नहीं!" आप इसके जमाई नहीं हैं, खसम हैं; इसके जमाई तो यह शरणार्थी हैं जो अपना घर व् पेट भरेंगे और कल को हुआ तो यहां खुद की ही संस्कृति फैलाएंगे| इनमें से यह कोई नहीं देखेगा कि हरयाणा-दिल्ली-एनसीआर ने मुझे रोजगार से ले छत तक दी है, इसलिए इसकी सभ्यता-संस्कृति बारे मैं भी कुछ करूँ| वो अंत में हम खसमों को ही करना है|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

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