Wednesday 21 October 2015

एक मित्र ने चैट पे पूछा, फूल तू जातिवादी कब से बन गया?

मैंने बड़ी विनम्रता से जवाब दिया कि भाई मैं जातिवादी नहीं बना अपितु मेरी जाति की ओर थोड़ा जागरूक और चिंतित हुआ हूँ| मैं आज भी ना सिर्फ धार्मिक सेक्युलर हूँ वरन जातीय सेक्युलर भी हूँ|

उसने कहा तो फिर आमतौर पर शांत रहने वाला और अपनी लाइफ में बिजी रहने वाला फूल यकायक राजनैतिक, धार्मिक और सामाजिक मामलों में इतना सक्रिय कैसे हो गया? पिछले कई दिनों से तेरी पोस्टों से देखने में आ रहा है कि तू खट्टर, बीजेपी और आरएसएस के तो जैसे बिलकुल हाथ धो के पीछे पड़ गया है? ऐसा क्यों?

मैं इसपे अपना पक्ष रखते हुए बोला कि हालाँकि इस जागरण की परतें तो काफी वक्त से बनती आ रही थी, परन्तु ऐसा चुप्पी तोड़ने वाला परिवर्तन तब से आया है जब से खट्टर साहब ने "हर्याणवियों को कंधे से नीचे मजबूत और ऊपर कमजोर" का तंज मारा है| अब तक मैं तो यही सोचता था कि 3-4 पीढ़ी हो गई खट्टर साहब के समाज को हरयाणा में बसते हुए सो अब तो हरयाणवी सभ्यता को समझने लगे होंगे, मानने नहीं लगे होंगे तो इसका सम्मान तो जरूर करते होंगे| क्योंकि जो खुद को सभ्य कहने पे गर्व करना जनता हो, वो अन्य सभ्यता को मान देना तो जरूर जनता होगा, ऐसा मेरा मानना था| जब सीएम बने तो हर हरयाणवी समाज ने इनका स्वागत किया, परन्तु इनके इस कंधे के ऊपर-नीचे वाले बयान ने मुझे अंदर तक झकझोर के रख दिया| तो मुझे सोचने पर विवश होना पड़ा कि क्या मेरी जाति और सभ्यता के साथ सब कुछ ठीक चल रहा है?

दोस्त ने फिर कहा कि किसी एक व्यक्ति के कहने से पूरी सोसाइटी का विचार थोड़े ही झलकता है?

मैंने कहा, “बेशक वो कहने वाले का विचार होता है परन्तु जिसके बारे कहा उसने वो तो पूरी सभ्यता के बारे था ना?" और वैसे भी जब बंदा सीएम जैसी पोस्ट पे होते हुए ऐसा बोले तो फिर उसका मायना समाज में यही जाता है| ताऊ देवीलाल, चौटाला जी, हुड्डा जी, बंसीलाल जी सबके सीएम होते हुए भी उनकी बातों को, कार्यों को हर कदम पे जब समाजों ने जाटपन कहा तो खट्टर साहब अतिश्योक्ति कैसे छोड़े जा सकते हैं?

और आरएसएस, उन्होंने क्या बिगाड़ा है आपका?

खट्टर के हरयाणवी रिमार्क के बाद जब यह देखा कि यह किस ब्रांड का प्रोडक्ट है तो आरएसएस फोकस में आई| और पाया कि आरएसएस मेरे समाज का भावुक दोहन करने पर आमादा है| यूँ तो आरएसएस के हिन्दुवाद को मुस्लिमों से बचाने के लिए इनको जाट चाहियें, परन्तु जब एक जातिवाद से विहीन संगठन होने के दावे के विपरीत जा के आरएसएस विभिन्न जातियों के महापुरुषों व् इतिहास पर पुस्तकें निकालती है तो उसको जाट समाज का ना इतिहास नजर आता और ना ही इस समाज के महापुरुष याद आते|

जबकि आरएसएस और बीजेपी में जो यह इतना आत्मविश्वास भरा है वो मुज़फ्फरनगर के बाद जाटों के इनसे जुड़ने की वजह से भरा, वर्ना आज आरएसएस और बीजेपी को यह पता लग जाए कि जाट उसे छोड़ रहे हैं तो दावे से कहता हूँ इनके माइनॉरिटी का दमन करने के हौंसले आधे से कम हो जायेंगे| जाट ताकत और ब्रांड का मिसयूज कर रहे हैं यह लोग|

जरूरत पड़े तो जाट समाज की महत्ता दर्शाते और बघारते वक्त तोगड़िया यह तक कह दे कि, "जब जाट की ही बेटी सुरक्षित नहीं तो किसी भी हिन्दू की नहीं|" परन्तु जब जाट समाज को सम्मान देने, उसपे पुस्तक लिखने की बात आये तो सब कुछ नदारद| पीएम मोदी की आगरा रैली तो आपको याद ही होगी, जिसमें मुज़फ्फरनगर के नायकों को सम्मानित किया गया था? ऐसे मौकों पर इनको ना कोई जाट याद आता और ना ही कोई खाप चौधरी, बजाये ऐसे लोगों का सम्मान करते दीखते हैं जो असली रण छिड़ने पर दस-दस दिन तक अंडरग्राउंड हो गए थे|

यानी वीरता और शौर्यता की शेखी बघारने वाले यह लोग जब चरम शौर्यता हासिल करने की बात आती है तो जाट को याद करते हैं, अन्यथा इनसे जाट इनके अनुसार चार वर्णों में से कौनसे वर्ण में आते हैं पूछो तो पक्के से और अश्वस्तता से बता भी नहीं पाते कि इस वर्ण में आते हैं|

इसलिए मैं आरएसएस द्वारा फ्री-फंड में हो रहे जाट के भावुक दोहन को लेकर व्यथित हूँ|

दोस्त ने फिर पूछा और बीजेपी, उसने क्या बिगाड़ा है?

मैंने कहा बीजेपी और जाट का रिश्ता जानना चाहते हो तो याद करो 2014 के हरयाणा इलेक्शन में पीएम मोदी तक ने, हरयाणा में हरयाणा को एक जाति विशेष (जाट) के राज से मुक्ति के नाम पर कैसे खुल्लेआम वोट मांगे थे| तो एक समझदार जाट के लिए तो बीजेपी से दूर रहने के लिए इतना कारण ही बहुत बड़ा है| उस दिन से पहले कहीं-कहीं थोड़ी बहुत जो इनके लिए अटैचमेंट उभरती थी वो भी मोदी की उस बात से सौ प्रतिशत जाती रही| क्योंकि जब यह लोग इतना खुल के जाट को साइड लगाने की बात सीधे पीएम के मुंह से कहलवाते हैं या पीएम खुद कहता है तो इसके बाद इनसे जुड़ा रहने का कोई मोरल रीज़न भी नहीं बचता|

और ऐसा कहते वक्त बीजेपी और मोदी सबको यह भूल भी पड़ जाती है कि जाट भी उसी हिन्दू समाज का हिस्सा हैं जिसकी एकता और बराबरी तुम्हारी टैग लाइन है।

इन सब वजहों की वजह से ही इस निष्कर्ष पर पहुंचा हूँ कि यह लोग जाट का भावनात्मक दोहन करने के अलावा उसके लिए कुछ सकारात्मक नहीं कर रहे| जाट के इतिहास, महापुरुषों पर पुस्तकें लिखवाने की तो छोड़ो, हरयाणा में जा के देखो जाटों से चिड़ की वजह से फसलों के दाम तक इतने गिरा दिए कि जाट तो जाट, नॉन-जाट किसान तक की भी फसल उत्पादन की लागत पूरी नहीं हो रही|

वो बेचारे भी अब ऐसे फंसे हुए हैं कि जाट का नुकसान हो रहा है बस इसी ख़ुशी में इस सरकार को झेले जा रहे हैं| परन्तु इस चक्कर में उनको भी फसलों के दाम ना मिलने की वजह से उनके घर की इकॉनमी जो खस्ता हुई जा रही है उसपे उनका ध्यान ही नहीं| इसलिए इस प्रकार बीजेपी द्वारा जाट से नफरत के वेग में चढ़ाये उन नॉन-जाट किसानों का भी नुकसान हो रहा है, वर्ना वो अपने घर की इकॉनमी की तरफ देख के सोचेंगे तो जाट से पहले उनका मन करेगा बीजेपी को वापिस भेजने का|

फूल मलिक

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