Saturday 30 January 2016

विभिन्न डिबेटों में खापों पे गरज के टूट पड़ने वाली कविता कृष्णन को जब खुद के समाज के कुकृत्यों पे बोलना हुआ तो कैसे मुद्दे को जनरलाइज़ करती हुई दिखी!

इस नोट में लिखी बातों को समझने से पहले, नोट के अंत में दी वीडियो को देखें!

जब यह मैडम खाप-जाट और हरयाणा के मुद्दों पर बोलती हैं तो स्टूडियो में ऐसा कोहराम मचाती हैं कि क्या मजाल कि कोई और इनकी बात को काट जाए; और दूसरा इनको वो बुराई जिस पर बहस हो रही होती है, वो सिवाय और सिवाय जाट और खाप समाज के अलावा किसी अन्य समाज में नजर आ जाये? नजर आ जाए तो दूर, मैडम तो यह तक साबित करने पर आमादा हो जाती हैं कि जैसे इस सामाजिक बुराई की जड़ बस और बस जाट और खाप समाज ही हों|

लेकिन जब अपनी खुद की ब्राह्मण जाति की फैलाई बुराई पे बोलने की बात आई तो मैडम के सुर-ताल नम्र, बात को रखने का तरीका शालीनता भरा और मुद्दे को मुद्दे की जड़ पर केंद्रित रखने की बजाये कैसे जनरलाइज़ करती दिखीं, जरा नोट कीजिये (साथ ही एंकर महोदया के भी सुर-ताल नोट कीजियेगा):

1) जैसे किसी को जब कोई अटका हुआ काम निकलवाना हो, तो वो बहुत ही चिकलाती-चिकनी-चुपड़ी नरम-मरी हुई सी जुबान में बोलता है, ठीक यही टोन मैडम की रही पूरी डिबेट में| एक पल को भी गुस्सा और आँखें दिखाने और ऊँगली घुमाने की तो नौबत ही नहीं आई| किसी को यह फर्क समझना है तो एक तो इस वीडियो को देख लेवें और एक इनकी किसी खाप की डिबेट वाली वीडियो को देख लेवें|
2) मुद्दे की जड़ थी ब्राह्मणों द्वारा शनि मंदिर में औरतों के तेल चढाने पर प्रतिबंध बारे| गौ (गाय) की जाई के मुंह से जो अगर एक बार भी ब्राह्मण शब्द निकला हो तो| और जब डिबेट हो खाप और जाट की, विरली ही कोई ऐसी लाइन फूटती है इनके मुंह से जिसमें यह दोनों शब्द ना हों|
3) सबसे अहम कैसे ब्राह्मणों के मुद्दे को जनरलाइज़ करके सर्वधर्म में जा घुसाया| समस्या हिन्दू धर्म के शनि मंदिर में ब्राह्मण की वजह से और इसमें घुसा लाई मुस्लिम और ईसाई धर्म को भी|

कोई दो पल रुक के भी इन लोगों को देख ले तो पहले ही झटके समझ आता है कि यह लोग कितने जहर के भरे हुए होते हैं, जाटों और खापों के प्रति| वो भी बावजूद इसके कि इनके खुद के समाज सामाजिक बुराईयों की दलदल में जाट और खाप समाज से तो कोसों गहरे तक गड़े बैठे हैं|

विशेलषण: मैं मैडम की बुराई नहीं कर रहा, इन फैक्ट मैं भी इनकी जगह होता और मुद्दा जाट और खाप का होता तो बिलकुल इन्हीं की तरह मुद्दे को जनरलाइज़ करके सबसे पहले तो जाट और खाप से फोकस हटा के मुद्दे को सर्वसमाज पे ले जाता| उदाहरण के तौर पर हॉनर किलिंग पे बात होती तो बताता कि क्या जाट, क्या ब्राह्मण, क्या राजपूत, क्या ओबीसी, क्या दलित, यह तो सबकी समस्या है, अकेली खाप की थोड़े ही| और मेरे ख्याल से हर जाट और खाप बुद्धिजीवी को भी यह तकनीकें सीखनी चाहियें; क्योंकि टीवी डिबेटों में आप जिस खूबसूरती से अपने पक्ष को जनरलाइज़ करके डिफेंड करोगे, धरातल पर बैठे आपको सुन रहे आपके समाज का मोराल उतना ही मजबूत और सुरक्षित रहेगा|

बाकी समाज की बुराइयों के नाम पर बरती जाने वाली आक्रामकता कैसे बदल जाती है यह मैडम कविता कृष्णन जी से भली-भांति सीखा जा सकता है कि जब मुद्दा खुद की जाति-समाज का हो तो कितनी विनम्रता से बोलना है और जब मुद्दा जाट-खाप जैसों का हो तो कैसे आगे धर के लेना है|

विशेष: इस नोट को संबंधित मैडम तक पहुँचाने वाले का धन्यवाद!

डिबेट की वीडियो: http://khabar.ndtv.com/video/show/prime-time/prime-time-devendra-fadnavis-meets-women-activists-on-shani-temple-401037

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

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