Wednesday 9 March 2016

"जाट चैंबर ऑफ़ कॉमर्स" और "पैसा तुम्हारा, जमीन हमारी"!

जाट आरक्षण एजिटेसन से और इस पर स्टेट से लेकर सेंटर तक की सरकारों ने जाट को दबाव में लेने हेतु जो षड्यंत्र पर षड्यंत्रों की झड़ी लगाई, उससे जो अगला कदम जाट समाज के लिए सर्वोत्तम हो सकता है वो इस लेख का शीर्षक हैं|

'फिक्की' (Federation of Indian Chambers of Commerce & Industry) और 'डिक्की' (Dalit Indian Chamber of Commerce & Industry) की तर्ज पर अब वक्त आ गया है कि सर्वधर्म का जाट 'जिक्की' (Jat Indian Chamber of Commerce & Industry) बनाये|

'फिक्की' जहां सरकारी संस्था है, वहीँ 'डिक्की' दलित समाज के उधमियों की अपनी स्वायत संस्था है| 'डिक्की' के मोटे तौर पर जो काम सामने आये हैं वो हैं दलित वर्ग के मेधावी छात्रों और व्यापार के इच्छुक लोगों को न्यूनतम इंटरेस्ट पर पैसा मुहैया करवाना व् इसके साथ ही व्यापार में नए-नए उतरे दलित व्यापारियों को व्यापार संबंधी लीगल व् कारोबारी कंसल्टेशन और सहायता उपलब्ध करवाना| 'डिक्की' के बारे यहां तक सुना है कि यह लोग दलित एंटरप्रिन्योर को जीरो इंटरेस्ट पे फाइनेंस और फ्री लीगल और कारोबारी कंसल्टेशन और हेल्प मुहैया करवाते हैं| 'डिक्की' को मुख्यत: दलित उधमी व् समाज ही अपने दान-चंदे से चलाते हैं और आज के दिन यह 3000 करोड़ रूपये से ज्यादा का संगठन है|

अब समय आ गया है कि जाट भी इन माता-वाताओं की चौकियों-जगरातों-जागरणों में पैसा फूंकने की बजाये इस दिशा में अपने पैसे और बौद्धिक तंत्र को मोड़ें| साथ ही अभी तक जो जाट संस्थाएं व् सभाएं ज्यादातर सामाजिक सरोकारों और प्रोपकारों पर ही ध्यान व् धन देती आई हैं वो भी 'जिक्की' बनाने हेतु एकजुट होकर एक 'मिनिमम कॉमन एजेंडा' (minimum common agenda) के तहत अपनी आने वाली पीढ़ी या वर्तमान पीढ़ी के मेधावी व् व्यापारिक प्रतिभा के बच्चों-वयस्कों के लिए अग्रसर हों|

इसके साथ ही हरयाणा-एनसीआर में व्यापारिक गतिविधियों की वजह से अप्रत्याशित गति से बदलते कारोबारी व् रोजगारी स्वरूपों में खुद को व् अपनी आने वाली पीढ़ियों को ढालने हेतु, मात्र पैसे के ऐवज में अपनी जमीनें प्राइवेट व्यापारियों को ना थमावें| अगर कोई आता है तो उसको 'पैसा तुम्हारा, जमीन हमारी, मिलके करें, विकास में साझेदारी!' फार्मूला के तहत साझे में कारोबार करने का ऑफर दें| बल्कि मुनासिब हो तो जाट समाज खुद भी सरकारों को सरकार की "सबका साथ, सबका विकास" पालिसी के तहत यह फार्मूला सुझा सकता है| परन्तु सीधी सी बात है जमीन रहेगी जाट की मल्कियत में क्योंकि जमीनें, किसी का दान में दिया मंदिर नहीं, वरन आपके पुरखों ने पीढ़ियों-पे-पीढ़ियां गला के हाड़तोड़ मेहनत से बंजर व् पथरीली धरती को समतल व् हराभरा बनाया था| पीढ़ी-दर-पीढ़ी आपके पुरखों-बाप-दादाओं ने ईमानदारी से मुचलके-टैक्स-दरखास भरी हैं इसके लिए; इसलिए अपनी धरती पर अपनी पूरी रॉयल्टी से अपना हक जताएं|

हालाँकि जाट आंदोलन की वजह से अन्य समाजों के साथ-साथ जाट समाज को सबसे ज्यादा जान-माल की हानि हुई है परन्तु इससे एक अच्छी बात निकल कर यह सामने आई है कि जाट एकजुट हो के चलें तो सरकार तक को अपनी मांग मनवा सकते हैं| इसलिए इस सकारात्मक पक्ष की ताकत को समझते हुए व् जाट आरक्षण पर हो रही सरकार की गतिविधियों पर नजर रखते हुए, पूरा समाज अब इन दो बिन्दुओं पर मंथन करे, ताकि आरक्षण का मसला सुलझते ही, सीधा इन मुद्दों पर कोई ऐसी ढील ना रहे कि फिर से 23-24 साल यानी पूरी एक पीढ़ी यूँ ही निकल जाए और फिर कोई ऐसा ही आंदोलन करना पड़े|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

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