Sunday 26 June 2016

"बोलना नहीं आता" जाट को चुप कराने/रखने का टैग मात्र है!

वर्ना ऐसा कुछ नहीं कि दुनिया की सबसे हंसोकडी भाषा "हरयाणवी" के सरदार को बोलना ना आता हो!
इसकी गम्भीरता इसी बात से समझ लीजिए कि "जाटों को बोलना नहीं आता है" की बात वही लोग कहते हैं जो जाट को शुद्र, चांडाल, लुटेरे, सोलह दूनी आठ और मोलड़ इत्यादि कहते/लिखते हैं|

असल में 'बोलना नहीं आता' इनका वो हथियार है जिससे यह जाट को चुप कराकर, जाट द्वारा उसकी आलोचना होने के सारे मार्ग बंद कर देते हैं और जाट बैठा रहता है इस सदमे में कि क्या मुझे वाकई बोलना नहीं आता?

और यह ऐसा करते भी इसलिए हैं क्योंकि यह जानते हैं कि जाट को भय या डर दिखा के चुप नहीं कराया जा सकता, वो तुम्हारी पोल-पट्टी खोलने पे लग गया तो फिर अंत तक जायेगा| इसलिए उसका दुष्प्रचार कर दो, उसके आगे बेचारे वाली मुद्रा में आ जाओ; परन्तु खुद को पीड़ित दिखाते हुए, लाचार कुत्ते की भांति कुंह-कुंह जरूर मचाओ|

हाँ, इतना जरूर कहता हूँ कि जाट इनकी भांति ऐसे अभद्र और जलील कर देने वाले शब्द इनके लिए सीधे प्रयोग ना करें; बल्कि डिप्लोमेटिक शब्दों का चयन करें| जानता हूँ जाट सीधे-सीधे जो शब्द प्रयोग करता है वो एक दम सत्य होते हैं, परन्तु उनसे यह बेचारे घबरा जाते हैं, कांपने लगते हैं और डरते हुए और अपने बचाव हेतु व् आपके सवाल का जवाब देने से बचते हुए इनकी भाषा वाले ब्रह्मास्त्र की भांति फिर यही सगुफा छोड़ देते हैं कि "जाट को तो बोलना ही नहीं आता!"

यानि दुश्मन वैसे मरता ना दिखे तो उसका दुष्प्रचार कर दो उसको मिथ्या ठहरवा दो| यह बहुत बड़ी विधा है जो इनकी जड़ है; जाट या तो इस विधा से ही इनका सामना करे अन्यथा डिप्लोमेटिक शब्दों का चयन करे| इल्जाम लगाने, आरोप-प्रत्यारोप लगाने की शैली से बचा जाए|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

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