Sunday 24 July 2016

जातिगत द्वेष की राजनीति का इससे वाहियात और घिनौना रूप शायद ही भारतीय इतिहास में पहले कभी देखने को मिला हो!

11 जुलाई को ही नरसिंह यादव का डोपिंग टेस्ट फ़ैल हो चुका था, पोल खुलने के भय से उसको दबाया जा रहा था| 23 जुलाई तक इंतज़ार किया गया कि किसी तरह डोपिंग का इफ़ेक्ट खत्म हो जाए, परन्तु नहीं हुआ| और 23 जुलाई को फिर से किये गए टेस्ट में फिर से फ़ैल पाये रिजल्ट को पब्लिक करना इस बात के मद्देनजर इनकी मजबूरी हो गई थी कि रियो में डोपिंग टेस्ट से हो के गुजरना ही होगा| और वहाँ जानते-बूझते हुए वो एक डोपिंग में फ़ैल खिलाड़ी को नहीं भेज सकते, वर्ना भारत को अंतर्राष्ट्रीय ओलम्पिक एसोसिएशन से भारी पेनल्टी झेलनी पड़ती| - खबर एक दम अंदर के विश्वस्त सूत्रों से हासिल हुई है|

ऐसे में सवाल यह उठता है कि 17-18 जुलाई को जब रियो टीम की लिस्ट रियो भेजी गई तो उसमें जानते-बूझते हुए एक ऐसे खिलाडी का नाम क्यों भेजा गया जो डोपिंग टेस्ट में फ़ैल हो चुका था? क्या भारत में जातीय-द्वेष की राजनीति इतना गन्दा रूप ले चुकी है कि इन लोगों के लिए देश का मान-सम्मान तक मिटाना कोई बड़ी बात नहीं रह गई? क्या जब 11 जुलाई को ही नर सिंह यादव डोपिंग टेस्ट फ़ैल कर चुका था तो सुशील कुमार को नहीं बुलाया जा सकता था?

और यह हालत इस देश की तब है जब राष्ट्रवाद का दम भरने वालों की सरकार है| हिन्दू एकता और बराबरी के नारे लगाने वालों की सरकार है| क्या इनका यही राष्ट्रवाद है कि बस एक जाति विशेष का खिलाड़ी आगे नहीं जायेगा, बेशक देश का कोटा खाली चला जाए, बेशक देश की नाक कट जाए?

इससे भी बड़ा दुःख इस बात का है कि यह भार केटेगरी ऐसी केटेगरी थी जिसमें मैडल आने की सबसे प्रबल दावेदारी थी| एक दो बार का ओलिंपिक मेडलिस्ट हैट्रिक लगाने की कगार पर था, जो कि लगती तो भारतीय ओलिंपिक इतिहास में अनूठा कीर्तिमान होता|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

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