Thursday 4 August 2016

‘तीज रंगीली री सासड़ पींग रंगीली’!

चन्दन की पाटड़ी
री सासड़,
रेशम की द्यई झूल।
...
खुसीए मनावैं
री सासड़ गाणे गांवैं,
मद जोबन की गाठड़ी
री सासड़,
ठेस लगै जा खूल।
तीज रंगीली
री सासड़ पींग रंगीली,
बनिए कैसी हाटड़ी
री सासड़
ब्याज मिल्या ना मूल।
पतिए मिल्या ना
री सासड़ च्यमन खिल्या ना,
खा कै त्यवाला जा पड़ी
री सासड़,
मुसग्या चमेली केसा फूल।
लखमीचंद न्यू गावै
री सासड़ साँग बनावै,
जिसका गाम सै जाटड़ी
री सासड़,
गाणै मैं रहा टूल|

पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सावन गीत - हरियाणवी (खड़ी बोली)

"गळियों तो गळियों री बीबी मनरा फिरै"
हेरी बीबी मनरा को लेओ न बुलाय।
चूड़ा तो मेरी जान, चूड़ा तो हाथी दाँत का।
...
काळी रे जंगाळी मनरा ना पहरूँ
काळे म्हारे राजा जी के बाळ
चूड़ा तो हाथी दाँत का ।
हरी रे जंगाळी मनरा ना पहरूँ
हरे म्हारे राजा जी के बाग,
चूड़ा तो हाथी दाँत का ।
धौळी जंगाळी रे मनरा ना पहरूँ
धौळा म्हारे राजा जी का घोड़ा,
चूड़ा तो हाथी दाँत का ।
लाल जंगाळी रे मनरा ना पहरूँ
लाल म्हारे राजा जी के होंठ,
चूड़ा तो हाथी दाँत का ।
सासू नै सुसरा सै कह दिया –
ऐजी थारी बहू बड़ी चकचाळ
मनरा सै ल्याली दोस्ती,
चूड़ा तो हाथी दाँत का ।

"नन्हीं-नन्हीं बुँदियाँ रे"
सावण का मेरा झूलणा
एक सुख देखा मैंने अम्मा के राज में
हाथों में गुड़िया रे, सखियों का मेरा खेलणा
नन्हीं-नन्हीं बुँदियाँ रे…
एक सुख देखा मैंने, भाभी के राज में
गोद में भतीजा रे गळियों का मेरा घूमणा
नन्हीं-नन्हीं बुँदियाँ रे…
एक सुख देखा मैंने बहना के राज में
हाथों में कसीदा रे फूलों का मेरा काढ़णा
नन्हीं-नन्हीं बुँदियाँ रे…
एक दु:ख देखा मैंने सासू के राज में
धड़ी- धड़ी गेहूँ रे चक्की का मेरा पीसणा
नन्हीं-नन्हीं बुँदियाँ रे…
एक दुख देखा मैंने जिठाणी के राज में
धड़ी- धड़ी आट्टा रे चूल्हे का मेरा फूँकणा
नन्हीं-नन्हीं बुँदियाँ रे
सावण का मेरा झूलणा

सौजन्य: देवेन्द्र कुमार और फूल मलिक

साम्मण अर मींह की कहावतें:
1.आई तीज बोगी बीज!
2.सास्सु का नाक तोड़ ल्याणा! (इतनी ऊँची पींघ झूलने की हिम्मत की पींघ पेड़ की टहनियों में जा लगे|)
...
3.साढ़ सूखा ना सामण हरा!
4.जब स्यमाणा चौगरदे कै एक-सा निसर ज्या, मींह जोर का बरस ज्या!
5.मंद बूँदा की झड़ी, मरी खेती भी हो ज्या खड़ी!
6.जय्ब चींटी अंडा ले चलै, चिड़िया नहावे धूळ मैं,
कहें स्याणे सुण भाई, बरसें घाग जरूर! (When ants carry eggs, sparrows play in sand - then it should be presumed that rains are very near)
7.चैत चिरपड़ो और, सावन निर्मलो|
8.ज्यब चमकै पच्छम-उत्तर की ओर, तब जाणो पाणी का जोर|
9.बांदर नै सलाह दे, अर बैया आपणा ऐ घर खो ले! (बरसदे मींह म्ह अपणे घोंसले तैं बैये द्वारा बरसात म्ह बिझते बन्दर को घर बनाने की सलाह देने पे, बन्दर उसी का घोंसला तोड़ फेंकता है|)

साम्मण के दोहे:
1.होइ न्यम्बोली पाक कै, इबके मिट्ठी खूब,
मौसम कै स्यर पै धरी, साम्मण नै आ दूब|
2. पड्या साढ़ का दोंगड़ा, उट्ठी घणी सुगंध,
जोड़ घटा तै यू गया, साम्मण के संबंध।
3. मन का पंछी उड़ चल्या, बाबुल की दल्हीज़,
कितने सुख-दुख दे गई, या हरियाली तीज।
4. आ भैया बरसें नैन, बादल उठ्ठें झीम,
साम्मण में मीठा होया, फल कै कडुआ नीम।
5. जीवन भर इब तार ये राखणे पड़ें सहेज,
पाछले साम्मण चढ़ गई, बाहण अगन की सेज।
6. उडे हवा मैं चीर है, अर चढ़ी गगन तक पींग,
बाद्दल सा पिय का प्यार सै, तन-मन जावै भीग।
7. री ननदी तू ना सता रही घटा या छेड़,
बरस पड़े जै नैन ये कडै बचेगी मेड़|
8. घेवर देवर तै दिया साम्मण का उपहार,
पिया आपणे तै दिया रुक्खा-सुक्खा प्यार।
9. पा कै माँ की ‘कोथली’ भूल गई सब क्लेस,
मन पीहर में जा बस्या तन ही था इस देस।

Source: प्रोफेसर राजेंद्र गौतम और फूल मलिक

Jai Yauddhey! - Phool Malik

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