Thursday 8 December 2016

जातिवाद इतनी बड़ी समस्या नहीं है, जितनी कि वर्णवाद है!

क्योंकि नश्लीय, छूत-अछूत का भेदभाव वर्ण स्तर पर होता है, जातीय स्तर पर नहीं|

ब्राह्मण वर्ण में अगर कोई आसाम की तरफ की सात सिस्टर स्टेट के नयन-नक्श-रंग-कद-काठी का भी ब्राह्मण है या हरयाणा/पंजाब/वेस्ट यूपी के नयन-नक्श-रंग-कद-काठी का ब्राह्मण है या बिहार-बंगाल-उड़ीसा के नयन-नक्श-रंग-कद-काठी का ब्राह्मण है या दक्षिण भारतीय नयन-नक्श-रंग-कद-काठी का ब्राह्मण है या द्विवेदी-त्रिवेदी-चतुर्वेदी आदि जातियों का ब्राह्मण है या त्यागी-कायस्थ-भूमिहार-सारस्वत-वैष्णव-शैव-द्रविड़-मराठी जातियों का ब्राह्मण है तो भी वह ब्राह्मण वर्ण में 99% समान आदर-व्यवहार-आचार-विचार से बरता-देखा-समझा जाता है|

आपके वर्ण में आपका नयन-नक्श-रंग-कद-काठी चाहे कुछ भी हो, कोई भी आपके वर्ण में आपसे यह नहीं पूछेगा कि तू हमारे ही वर्ण का होते हुए चिपटी नाक का क्यों है, तू लम्बी नाक का क्यों है या तू गोरा क्यों है या काला क्यों है; तू लम्बा क्यों है या तू नाटा क्यों है|

इसी तरह क्षत्रिय जाति में राजपूत किसी भी कुल-वंश-जाति-वर्ण का हो वह उस वर्ण में बराबर बरता-देखा-समझा जाता है| हाँ इनके यहां विवाह के वक्त थोड़ी आपसी बन्दिशें जरूर पाई जाती हैं|

इसी तरह वैश्य वर्ण में व्यापारी जातियों को लगभग समान बरता-देखा-समझा जाता है, सिवाय व्यापारिक कॉम्प्टीशन के|

इसी तरह शुद्र वर्ण में दलित व् ओबीसी को समझा जाता है, सिवाय ओबीसी व् दलित में कारोबारी फर्कों के|
और इसी तरह पांचवें वर्ण या कहो कि ऐतिहासिक पृष्ठभूमि से मूर्ती-पूजा को ना मानने वाले अवर्ण कहलाने वाला जाट समूह है| मूर्ती-पूजा विरोधी होने की वजह से इस समूह को ब्राह्मण वर्ण यदकदा एंटी-ब्राह्मण भी बोलता आया है तो दूसरी तरफ महर्षि दयानंद जैसे ब्राह्मण जाट को जाट के इस मूर्ती-पूजा व् आडम्बर विरोधी गुण की वजह से "जाट-जी" व् "जाट-देवता" तक कहते-लिखते रहे हैं| बताता चलूँ कि उनके द्वारा ब्राह्मण-सभा ने जाट की यह स्तुति इसलिए करवाई थी ताकि जाट सिख धर्म में ना जावें| वर्णीय स्तर की एकता और बराबरी इस समूह में सर्वोच्च कोटि की है| गौत-खाप-गाँव-खेड़े यहां तक कि धर्म के आधार पर इनके वर्गीकरण में जो गण्तांत्रिकता पाई जाती है वह अद्भुत है| बाकी वर्ण जहां अंतर-धार्मिक विवाह में परहेज कर जाते हैं, जाट इस मामले में सबसे लिबरल हैं| सबसे ज्यादा इस वर्ण में अंतर्धार्मिक विवाह स्वीकारे जाते हैं|

खैर, तो इस ऊपरचर्चित विवेचना से स्पष्ट है कि जाति मिटाने से पहले वर्ण मिटाना जरूरी है| जाति तो खामखा का हव्वा बना रखा है, असली भेदभाव तो वर्ण-स्तर पर होता है| लेकिन वर्ण स्तर के लोग वर्णीय भेदभाव को जातीय भेदभाव से ढंके रखना चाहते हैं| और जब तक यह ढंका है तब तक हमारे यहां जो नश्लीय स्तर का भेदभाव है वह दुनिया में सबसे घातक स्तर का बना रहेगा| इसलिए सबसे पहले कुछ खत्म करना-करवाना है तो इस वर्णीय भेदभाव को खत्म करवाना होगा|

 जय यौद्धेय! - फूल मलिक

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