Thursday 8 December 2016

विमुद्रीकरण के बाद जमीन अधिग्रहण का "गुजरात मॉडल" में लागू "मनुवादी" कानून अब हरयाणा में भी लाने की सुगबुगाहट!

आज दैनिक जागरण के मुख्य पृष्ठ पर एक खबर थी कि हरयाणा सरकार ने हरयाणा में "गुजरात मॉडल" वाला जमीन अधिग्रहण कानून लागू करने हेतु सरकारी अधिकारियों को उसको स्टडी करने को कहा है| यह कानून कहता है कि किसान की मर्जी हो या ना हो, अगर किसी को कोई जमीन इंडस्ट्री लगाने के लिए पसन्द आई तो वह उसको दे दी जाएगी| मुवावजा भी मनमर्जी का दिया जायेगा, उसमें किसान की पूछ नहीं होगी| पहली तो बात यह|

दूसरी, मैंने इसको मनुवादी क्यों कहा? "मनुवाद कहता है कि सवर्ण को दलित-किसान की कमाई हुई प्रॉपर्टी-पैसा छीनने का हक़ है व् दलित-किसान को प्रॉपर्टी-पैसा रखने का हक़ नहीं"| यह छीनने के हक का कांसेप्ट आपने अभी विमुद्रीकरण में भी देख लिया, कि कैसे लाखों-करोड़ों का लोन हजम किये बैठे सवर्णों के तो सब पैसे माफ़ और आप के हजार-पांच सौ भी बैंकों में भरवा के उनके और भी करोड़ों करोड़ के लोन अभी फ़िलहाल ही माफ़ किये हैं| और अब यह मनुवादी डंडा 'गुजरात-मोडली जमीन-अधिग्रहण' ला के करने की भरपूर कोशिश करने वाले हैं|

मुझे तो अचरज हुआ यह जान के कि जिस गुजरात मॉडल की शेखियां इतने महीनों-साल से बघेरी जा रही हैं वो असल में मनुवादी मॉडल है|

थोड़े दिन पहले मेरे लेख में जो कहा था कि विमुद्रीकरण तो सिर्फ ट्रेलर है, अभी असली पिक्चर तो गुजरात मॉडल वाले जमीन-अधिग्रहण कानून को यहां लागु करके दिखाई जाएगी,वह आज की खबर से सच होती प्रतीत लगी| सेण्टर में तो पिछले साल जब बीजेपी आते ही इस अधिग्रहण कानून को लागु कर रही थी तो विपक्ष ने बचा लिया था परन्तु हरयाणा में कौन बचाएगा?

हो जाओ करड़े, असली कड़वी दवाई तो अभी तैयार हो रही है| खुद पियोगे या उल्टी इन्हीं को पिला दोगे?

 जय यौद्धेय! - फूल मलिक

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