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1947 में पाकिस्तान से लूटी-पिटी हिन्दू कम्युनिटीज आई, जाट ने सबसे ज्यादा अपनी दरियादिली व् पुरुषार्थ से अपनी छाती पर बसाई, इतनी बसाई कि न्यूनतम समय में यह कम्युनिटीज बहाल हो गई| 1984 में पंजाब में आतंकवाद हुआ तो 1986 से 1992 तक कुछ कम्युनिटी विशेष हिन्दू (5%), का पंजाबी सिखों ने मार-मार भूत उतारा व् वहां से भगाया, वह भी जाट ने सबसे ज्यादा अपनी छाती पर बसाया| 1990 के आसपास बाल ठाकरे ने मुंबई-महाराष्ट्र में उत्तर-पूर्व भारतीय के नाम पर बिहारी-बंगालियों को पीटना शुरू किया, साथ में मोदी-शाह के गुजरातियों ने यही गुजरात में किया तो उनको भी यही जाट-बाहुल्य धरती ने अपनाया| 1993 में कश्मीरी पंडित जब भागे तो उनको देख लो सबसे ज्यादा कहाँ शरण मिली हुई है, इसी जाट बाहुल्य धरा पर| सभी को ऐसा अपनाया कि आज तक धर्म-भाषा-क्षेत्रवाद की ऐसी कोई बड़ी चिंगारी नहीं भड़की, जैसे 1947, 1984, 1990, 1993 में भड़की|
तो मीडिया वालो मत डंडा दो, जाट है यह; "जितना बढ़िया फसल बोना जानता है, उससे अच्छे से काटना जानता है"| यूँ ही नहीं कहा जाता कि 'जाट को सताया को ब्राह्मण भी पछताया"| सन 1761 में पुणे के ब्राह्मण पेशवाओं ने पानीपत की तीसरी लड़ाई के वक्त जाट महाराजा सूरजमल का अपमान किया था, यह तंज मारते हुए कि, "दोशालो पाटो भलो, साबूत भलो ना टाट; राजा भयो तो का भयो रह्यो जाट-को-जाट| ऐसी हाय लगी थी पेशवाओं को उस जाट को सताये की कि 1761 की पानीपत की तीसरी लड़ाई के मैदान में दिन-धौळी हार गए थे| और फिर उन अब्दाली से लूटे-पिटे-छिते पेशवाओं को इसी जाट के यहाँ मरहम-पट्टियाँ मिली थी| तो कोई ना जाट तो ऐसा ही नरम है उसके तो अपमान के बदले भी कुदरत अपने ढंग से ले लिया करे| तुम्हें किस बळ सेधेगी इसका पानीपत की तीसरी लड़ाई वाले सदाशिवराव भाऊ की भाँति तब पता चलेगा जब वह हार चुका था और हरयाणे की लुगाईयों ने भाऊ की जगह 'हाऊ' कहना शुरू कर दिया था| और हाऊ बोल के बच्चों को डराबा बालकों को सुलाने का प्रतीक बना दिया था| तुम क्यों बदनाम करो, यह बदनामी करना जाट और उसकी जाटनी तुमसे बेहतर जानती हैं| जब आएंगे इस नेगेटिव मार्केटिंग पर तुम्हारी तो तुम भाऊ से हाऊ बना दिए जाओगे|
या फिर सिर्फ जाट का ही क्यों, बाकी सबका भी बता दो कि किस जात-बिरादरी ने किसको वोट दिया?
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
1947 में पाकिस्तान से लूटी-पिटी हिन्दू कम्युनिटीज आई, जाट ने सबसे ज्यादा अपनी दरियादिली व् पुरुषार्थ से अपनी छाती पर बसाई, इतनी बसाई कि न्यूनतम समय में यह कम्युनिटीज बहाल हो गई| 1984 में पंजाब में आतंकवाद हुआ तो 1986 से 1992 तक कुछ कम्युनिटी विशेष हिन्दू (5%), का पंजाबी सिखों ने मार-मार भूत उतारा व् वहां से भगाया, वह भी जाट ने सबसे ज्यादा अपनी छाती पर बसाया| 1990 के आसपास बाल ठाकरे ने मुंबई-महाराष्ट्र में उत्तर-पूर्व भारतीय के नाम पर बिहारी-बंगालियों को पीटना शुरू किया, साथ में मोदी-शाह के गुजरातियों ने यही गुजरात में किया तो उनको भी यही जाट-बाहुल्य धरती ने अपनाया| 1993 में कश्मीरी पंडित जब भागे तो उनको देख लो सबसे ज्यादा कहाँ शरण मिली हुई है, इसी जाट बाहुल्य धरा पर| सभी को ऐसा अपनाया कि आज तक धर्म-भाषा-क्षेत्रवाद की ऐसी कोई बड़ी चिंगारी नहीं भड़की, जैसे 1947, 1984, 1990, 1993 में भड़की|
तो मीडिया वालो मत डंडा दो, जाट है यह; "जितना बढ़िया फसल बोना जानता है, उससे अच्छे से काटना जानता है"| यूँ ही नहीं कहा जाता कि 'जाट को सताया को ब्राह्मण भी पछताया"| सन 1761 में पुणे के ब्राह्मण पेशवाओं ने पानीपत की तीसरी लड़ाई के वक्त जाट महाराजा सूरजमल का अपमान किया था, यह तंज मारते हुए कि, "दोशालो पाटो भलो, साबूत भलो ना टाट; राजा भयो तो का भयो रह्यो जाट-को-जाट| ऐसी हाय लगी थी पेशवाओं को उस जाट को सताये की कि 1761 की पानीपत की तीसरी लड़ाई के मैदान में दिन-धौळी हार गए थे| और फिर उन अब्दाली से लूटे-पिटे-छिते पेशवाओं को इसी जाट के यहाँ मरहम-पट्टियाँ मिली थी| तो कोई ना जाट तो ऐसा ही नरम है उसके तो अपमान के बदले भी कुदरत अपने ढंग से ले लिया करे| तुम्हें किस बळ सेधेगी इसका पानीपत की तीसरी लड़ाई वाले सदाशिवराव भाऊ की भाँति तब पता चलेगा जब वह हार चुका था और हरयाणे की लुगाईयों ने भाऊ की जगह 'हाऊ' कहना शुरू कर दिया था| और हाऊ बोल के बच्चों को डराबा बालकों को सुलाने का प्रतीक बना दिया था| तुम क्यों बदनाम करो, यह बदनामी करना जाट और उसकी जाटनी तुमसे बेहतर जानती हैं| जब आएंगे इस नेगेटिव मार्केटिंग पर तुम्हारी तो तुम भाऊ से हाऊ बना दिए जाओगे|
या फिर सिर्फ जाट का ही क्यों, बाकी सबका भी बता दो कि किस जात-बिरादरी ने किसको वोट दिया?
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
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