Friday 24 January 2020

सौदा-ए-कुछ नी!

आखिर यह बात बार-बार क्यों कहलवाई जा रही है नारनौंद विधायक गौतम जी से? वैसे तो यह बात हर हरयाणवी उसमें भी हरयाणवी बाह्मण व् जाट को तो खासतौर से पकड़ने की जरूरत है|

गौतम जी का शुरू में एक प्रेस-कांफ्रेंस में दर्द झलका, चलो अच्छी बात थी झलका के हुए निफराम| परन्तु बार-बार यह सिलसिला सा ही क्यों बनता जा रहा है? और अबकी बार तो उस पार्टी के विधायकों के बीच बैठकर यह बात कही गई जिन्होनें गौतम जी को टिकट ही नहीं दी और शायद वह पार्टी काफी वक्त से छोड़ी हुई है उन द्वारा? एक तरफ आप शिकायत करते हो कि, "खोपर, और उसका बाबू, इलेक्शन रिजल्ट आते ही गुड़गाम्मा अम्बिएंस मॉल में बीजेपी से जा मिले"? और आप क्या कर रहे हो, उसी बीजेपी के विधायकों के बीच बैठ कर "सौदा-ए-कुछ नी" टाइप की बयानबाजी आगे-से-आगे बढ़ाये जा रहे हैं?

मुश्किल से तो जाट-बाह्मण-दलित-मुस्लिम-सिख व् बहुत से अन्य समुदायों ने एक हो के वोट किये थे अबकी बार की विधानसभा चुनावों में| उसमें भी आम जाट व् बाह्मण का स्पेशल जिक्र इसलिए क्योंकि भड़कने वाला बाह्मण है और जिसपे भड़का हुआ है वह जाट है| आम हरयाणवी जाट व् हरयाणवी बाह्मण के विचारने की बात है कि तुम्हारी यह एकता किसको सबसे ज्यादा अखरी होगी? निःसंदेह गौतम जी जिनके साथ बैठ के इन बयानबाजियों को दोहरा रहे हैं उनको तो कन्फर्म रड़की होगी?

मसा सी बिल्ली के भागों खटटर जैसों की फरसा काण्ड वाली "तेरा गला काट दूंगा" जैसी बदबुद्धि टाइप बदजुबानी के चलते जाट-बाह्मण एक हो के वोट किये थे अन्यथा तो इनको एक ही कौन कर ले और अब इस एकता की जरूरत हेतु पैदा हुई संवेदनशीलता पर क्या यह रोज-रोज के ऐसे बयान पानी नहीं फेर रहे? हो ली जा ली, दुष्यंत के इतना काबू की बात होती तो उसने खुद के गेल ही शपथ दिलवा देनी थी गौतम जी को मंत्री की| परन्तु ऐसा हो जाता तो जाट-बाह्मण एकता और मजबूत होती जो कि बीजेपी-आरएसएस कभी नहीं चाहेंगे| कोई बेशक अभिमन्यु का नाम आगे अड़ाए कि वह नहीं बनने दे रहा| ऐसे नाम तो कवच की भाँति होते हैं आगे अड़ाने को असली वजह बीजेपी-आरएसएस नहीं चाहती थी कि गौतम जी के मंत्री बनने से हरयाणवी जाट-बाह्मणों में मधुरता और बढ़े व् यह और एक होते चले जाएँ|

और ऐसा नहीं होने देने वाले माइंडस किसके और कितके? कुछ गुजराती और बाकी उन्हीं महाराष्ट्री पेशवा चितपावनियों के जो कुछ मेरे हरयाणवी बाह्मण मित्रों की बनिस्पद हरयाणवी बाह्मण को तो बाह्मणों शामिल भी नहीं मानते| बल्कि हरयाणवी मंदरों तक में हरयाणवी बाह्मण को नहीं बैठने दे रहे पुजारियों की पोस्टों पर|
चलो खैर पुजारी पोस्ट इतना बड़ा मसला ना भी हो, क्योंकि पुजारी तो मुश्किल से 10% बाह्मण बेशक बनता हो अन्यथा तो 90% हरयाणवी बाह्मण तो आज भी किसान है, हाळी-पाळी है| और इस 90% का फायदा तभी हो सके है जब किसान हित की योजनाएं बनें| अन्यथा तो देख लो गामों में जा के जितना भी बाह्मण किसान है उसके घरों की हालत किसी जाट-यादव-राजपूत-गुज्जर-सैनी आदि किसान से कोई ज्यादा अच्छी ना मिलनी| दर्द इन 90% को भी है क्योंकि जब से यह सरकार आई है सिर्फ नॉन-बाह्मण किसानों के ही ब्योंत नहीं घटे अपितु इन 90% बाह्मण किसानों के भी घटे हैं|

इसलिए आशा की जाए कि अब यह व्यर्थ का खुद के सुवाद लेने-देने टाइप सिलसिला बंद होवे| वरना खट्टर जैसे फिर सुवाद लेंगे थारे वह "हरयाणवी कंधे से ऊपर-नीचे वाला" ब्यान बोल-बिगो के| समझिये कि कहीं आपको कोई खिलहा तो नहीं रहा? मानता हूँ हरयाणवी जीन्स में अपने सुवाद खुद लेने टाइप की घाव खुद कुरेदने की नकारात्मकता होती है परन्तु हद इतनी भी नहीं हो जानी चाहिए कि "सूत-ना-पूणी और जुलाहे गेल लठ्ठमलठ्ठा" वाली लगने लगे|

विशेष: मुझे देखने को मिलता है कि फंडी-पाखंडियों के भन्डेफोड करने वाली मेरी पोस्टों के चलते लोग यह परसेप्शन बना लेते हैं कि यह तो एक खास समुदाय के खिलाफ है| हाँ, मैं हूँ उस ख़ास समुदाय के खिलाफ जो धर्म के नाम पर समाज में समाज को तोड़ने - बिखेरने - दिमागों में भय भरने - भाई-भाई में घर की घर में हेय-घृणा भरने के फंड-पाखंड-प्रपंच रचते हैं परन्तु किसी जाति के नहीं| और फंडी की कोई जाति नहीं होती वह कहीं भी मिल सकता है|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

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