Thursday 5 March 2020

हरयाणवी होळी, होळ (अधपके चने के दाने) भूनकर खाने का त्यौहार है!

कोई होलिका नामक बहन-बुआ को सरेआम आग में जलाने का नहीं| तब भी नहीं अगर वह वाकई में जैसा माइथोलॉजी बताती है वैसी कुल्टा भी रही होगी तो|

उदारवादी जमींदारों की औलादो, अपने पिछोके में झाँकों; तुम्हारे पुरखे हल की फाल के आगे आ जाने वाले टटीरी के अण्डों तक के लिए खूड छोड़ देने वाले दयालु लोग रहे हैं| वह ऐसे सामाजिक-सार्वजनिक वाहियात ड्रामे करने वाले लोग नहीं थे| हाँ, व्यक्तिगत तौर पर हिंसाएं कोई बेशक करता हो, परन्तु अगर यह होलिका को जलाना ऐसी भी कोई हिंसा थी तो भी उदारवादी जमींदारी हिंसाओं के उत्सव नहीं मनाती| सनद रहे युद्ध व् हिंसा-अत्याचार-अमानवीय सजाओं में दिन-रात का फर्क होता है|

यह उन्हीं "झींगा-ला-ला-हुर्र-हुर्र" टाइप मेंटालिटी वालों के लिए छोड़ दो जिन्होनें यह बेहूदगियाँ घड़ी हैं| बुराई हर युग हर काल में स्थाई रूप से विद्यमान होती आई है, यह हिंसाओं के उत्सव मना के क्या संदेश देना चाहते हो कि होलिका इस विश्व की आखिरी अपराधन थी, उसके बाद मानवता पर अपराध ही नहीं हुए?

स्वधर्मी होने का मतलब यह नहीं कि फंडी जो भी बकवास भौंकेगा, तुम उसको आत्मसात करोगे| धर्म से भी झाड़-पिछोड के ग्रहण करने वालों की औलादें हैं उदारवादी जमींदार, इसलिए अपने पुरखों की आन-शान पर चलो और हर त्यौहार में जो भी हिंसक बात हो उसको साइड करो|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

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