Wednesday 22 April 2020

धर्म इतना ही कि, "मंगता-साधु भूखा मरे नहीं, इससे ज्यादा जो मांगे उसके दो लठ रखने में डरें नहीं"!

साधू भी सच्चे वाला, फंडी बदमाश नहीं!

गाम-समाज के नाम पर एक गाम या एक पंचायत का एक ही गामी/सरकरी/पंचायती/दागा हुआ झोटा/सांड छोड़ा जाता है| अगर किसान-जमींदार हर जानवर को गामी-सरकारी-दागा हुआ खुला सांड या झोटा छोड़ दे तो वह उसके खेत-घर-क्यार-नोहरे-दरवाजे सब क्याहें का खोसण उठा दें| यही दशा धर्म की होती है| सरकारी के नाम पर अपने पुरखों के बनाये सर्वमान्य दादे खेड़ों को रखो क्योंकि मानवता और जेंडर सेंसिटिविटी पे यही सबसे बेहतर हैं| और इन बाकी सबको इनके गले में बाँध-बाँध बेल खोरों-खूँटों पे बाँध के रखो और इनसे यथाशक्ति काम लेते रहो और उसी हिसाब से खुराक दो| जैसे दूध देने वाली भैंस/गाय से दूध लेने का काम व् बदले में बढ़िया चाट (डांगरों वाला चाट, कहीं रेहड़ियों पे मिलने वाला चाट समझ लो) वाला खाना| जो दूध ना दे उसको जोड़ो हल-बुग्गी वगैरह में|

प्रैक्टिकल बता दी, यह करोगे तो सुखी रहोगे क्योंकि तुम्हारे पुरखे इसी तरह सुखी रहे और जाट जी व् जाट देवता कहलाये| अन्यथा तो यह इसका उल्टा तुम्हारे साथ करने में एक पल ना लगाएंगे| इसका एक्साम्प्ल भी गामी झोटा/सांड ही से लो, एक खुला चरता है तो तुम्हें भी पता नहीं लगता; सारे जानवर खुले चरने छोड़ दिए तो छोड़ेंगे कोई डिक्का तुम्हारे लिए खेतों में? आधी खा गेरेंगे और आधी छड़ गेरेंगे|

ये अपने बाप के सगे ना होते, तुम्हारे तो तब से होंगे| भगवान तक के नाम से डरा के तुमसे हफ्ता वसूली कर जाते हैं और तुम बेबे सा मुंह बनाये, थोथी धार्मिक होने की फील में ग्याभण हुए रह जाते हो| ग्याभण भी वो "विकास" टाइप वाले जो 2014 से ले आज 6 साल हो गए परन्तु आज तक हो के नहीं दे लिया|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

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