Friday 5 June 2020

खुद की बजाए, जो कौम को लीडर बनाना चाहे, वह साथ आवे!

"खुद को लीडर बनाने की महत्वाकांक्षाओं" वालों के आदर्श "खुद की बजाए कौम को लीडर बनाने वाले सर छोटूराम" कैसे हो सकते हैं? उनके नाम पर अगर कौम की लीडरी चमकाने की बजाये खुद की चमकानी है तो भला हो, घर बैठो| क्योंकि लीडर-मसीहा कोई खुद के घोषित करने से या प्रचारित करवाने से नहीं बना करते| यह लीडरी तो वह गाज़ी है जो उन्हीं के सर सजा करती है जो "कौम को लीडर" बनाने को टूरदे होवें| उदाहरण: यूनियनिस्ट पार्टी की यूनाइटेड पंजाब में 25 साल की सरकार में सर फ़ज़्ले हुसैन से ले सर सिकंदर हयात खान व् मलिक हिज्र खान टिवाणा तक कोई वह ताजपोशी नहीं पा सका जो सर छोटूराम इन तमामों के कार्यकालों में मंत्री रहते हुए पा गए यानि "रहबर-ए-आज़म सर छोटूराम"| इसलिए सर छोटूराम को आदर्श मानते हो तो खुद के जज्बे-नीत-नियत-विज़न पर यकीं रखते हुए यह त्याग भी करना सीखो कि खुद को औरों पर थोंपना नहीं अपितु चुपचाप काम करते जाना है; इस सिद्द्त से करते जाना है कि फिर बेशक हिन्दू महासभा सर छोटूराम को पंजाब छुड़वाने के प्रोपेगंडा के तहत जम्मूकश्मीर का प्राइम-मिनिस्टर बनवाने का लालच भी देवे तो भी बंदा अपना कॉल-करार अपनी कौम, अपनी जमीन के साथ ना तोड़े और वहीँ जमा रहे, उसी लाइन पर चला-चले| तब जा कर मिलती है मसीहा या रहबर की खलीफाई|

और इस जल्दबाजी में रहते हो कि खुद को लीडर बनना है, तभी भटकन बनी हुई है और अपनी ही स्ट्रैटेजियों में घिर रहे हो| कौम की सोचो कौम की, क्योंकि अपनों के हाथों मारे जाने वाले तो ईसाह मसीह भी, अपनों द्वारा उठा लिए जाते हैं भले अपनों के ही हाथों मारे जाने के बाद ही| इसलिए अपनों के हाथों मरने का खौफ ना खा, बुलंदी लिख और सूली चढ़; तेरे कौल-करार की टीस सच्ची हुई तो सूली पे टंगा-टंगा भी ईसाह मसीह कहलाएगा|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

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