Monday 12 July 2021

स्याणे थारे पुरखे थे या थम हो?

यूपी में चुनी हुई महिला पार्षदों के साथ व् हांसी में आंदोलनरत किसान महिलाओं (वो भी दोनों जगह हिन्दू धर्म की ही) के साथ बीजेपी व् संघ के लोगों (विनोद भयाणा व् मनीष ग्रोवर) द्वारा मारपीट से ले अश्लील इशारे व् हरकतें करना इनकी 'देवदासी व् वर्णवादी मानसिकता' का खुला परिचय है| सबूत है कि इनके लिए "हिन्दू एकता व् बराबरी", "भाईचारा" टाइप की इमोशनल बातें व् हवाले, आपको अपने झांसे में फंसा के आपका दिमाग-सोच-वोट-नोट हड़पने का प्रपंच मात्र होते हैं|


यह "हिन्दू एकता व् बराबरी", "भाईचारा", "धर्म-देश के खतरे में होने" की बातें तभी तक करते हैं, जब तक इनको पावर नहीं मिल जाती, जब पावर मिल जाती है तो यह किस क्रूर स्तर का नश्लवाद, अलगाववाद, शूद्र-स्वर्ण वाद, छूत-अछूत वाद, वर्णवाद, दक्षिणी भारत के धर्मस्थलों में पाई जाने वाली "देवदासी वाली वासनायुक्त मंशा" करते-बरतते हैं, यह दोनों घटनाएं इसकी साक्षी हैं| और तो और पावर मिलने पर इनको सेक्युलर कहलाने का शौक चढ़ आता है, जैसे अभी मोहन भागवत ने पिछले हफ्ते ही "हिन्दू-मुस्लिम का DNA एक बता दिया था"| पहले जोर लगा के तुमको कट्टर बना देंगे व् खुद बाद में सेक्युलर-सेकुलर खेलना शुरू करेंगे|

सरदार अजित सिंह, सर छोटूरम, सर फ़ज़्ले हुसैन, चौधरी चरण सिंह, सरदार भगत सिंह, सरदार प्रताप सिंह कैरों, बाबा टिकैत सेक्युलर किसान राजनीति के समानांतर संघी-फंडी तब भी दिखावे के कट्टर थे व् असल में सेक्युलर थे; यहाँ तक कि नेहरू, गाँधी की सेक्युलर राजनीति तक को कोसते आये हैं| यह तब भी सिंध व् बंगाल में मुस्लिम लीग के साथ मिलके सरकारें भी बनाते थे और आज भी इनके लिए हिन्दू-मुस्लिम DNA एक है| आज भी इनकी लाइन नहीं बदली|

परन्तु आपने बदल डाली|

मूढ़ या मूर्ख या रूढ़िवादी नहीं थे, हमारे आपके पुरखे जो इनको समाज, धर्म के नेतृत्व से दूर रखते थे; इनको धिक्कारते थे, नकारते थे| अब सोच लो, स्याणे थारे अक्षरी ज्ञान के तथाकथित अनपढ़ ग्रामीण पुरखे थे या थम अक्षरी ज्ञान के पढ़े लिखे शहरी तथाकथित मॉडर्न हो? पुरखों के बुद्धिबल व् विवेक को धारण कीजिये, इन फंडियों को ठिकाने लगाने का रास्ता उन्हीं के तौर-तरीकों में हैं|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

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