Wednesday 14 July 2021

वर्तमान किसान आंदोलन की सफलता के उस पार "राष्ट्रीय किसान राजनीति का आगे का स्वर्णिम भविष्य" मुंह बाए बाट जोह रहा है; इसको स्टेट पॉलिटिक्स में ना ही रोळा जाए तो बेहतर!

सन 1907 में सरदार अजित सिंह के "पगड़ी संभाल जट्टा" किसान आंदोलन से शुरू हो सर छोटूराम व् सर फज़ले हुसैन की जोड़ी से होती हुई सरदार प्रताप सिंह कैरों व् चौधरी चरण सिंह (साउथ-ईस्ट इंडिया से भी बड़े नाम जोड़ लीजिये) से होते हुए 2011 में बाबा महेंद्र सिंह टिकैत के जाने के वक्त से जो "राष्ट्रीय किसान राजनीति" रुपी नाव इसके खेवनहार की जो बाट जोह रही है, उस खेवनहार/ उन खेवनहारों को देने का माद्दा रखती है वर्तमान किसान आंदोलन की सफलता|


हालाँकि खेवनहार तो राज्य-स्तरीय और भी बहुत नाम हुए परन्तु 20वीं सदी में राष्ट्रीय किसान राजनीति में अमूल-चूक परिवर्तनों के धोतक ऊपर दिए नाम ही कहे जा सकते हैं| दसवीं सदी से ले बीसवीं सदी के बीच किसान क्रांतियों का डंका सर्वखाप आर्मी व् सिख मिसलों ने लगभग हर दूसरे शासक के विरुद्ध बजाया|

राष्ट्रीय किसान राजनीति के आगे का स्वर्णिम भविष्य निर्धारित होने में किसान आंदोलन की सफलता इसको वह क्रेडिबिलिटी प्रदान करेगी कि SKM (सयुंक्त किसान मोर्चा) जिस किसी पार्टी या कैंडिडेट पर हाथ धर देगा या खुद के भी कैंडिडेट उतार देगा तो सीधा सेण्टर सत्ता यानि लोकसभा में पहुंचेगा| और 3 काले कृषि बिल व् MSP गारंटी कानून सेण्टर से बनने हैं, स्टेट से नहीं| इन तीन बिलों के मामले में एक स्टेट सरकार जितना कर सकती थी, उसके लगभग पंजाब सरकार पहले ही कर चुकी है तो ऐसे में एक स्टेट जीत भी ली जाएगी तो कितना लाभ होगा; जब समस्या सेंटर से हल होनी है तो?

इसलिए लाजिमी है कि SKM न्यूनतम 2024 तक गैर-राजनैतिक हो कर ही चले व् वर्तमान केंद्र सरकार को हर राज्य चुनावों में हरवावे| इससे या तो यह मांगें मानेंगे अन्यथा तो तब होगा असली लोहा आजमाने का वक्त तो; क्योंकि तब तक लोगों के इस सरकार से जुड़े रहे-सहे भ्रम भी टूट चुके होंगे व् सब समझ चुके होंगे कि अब लोकसभा चुनावों में जा के जनमत हासिल कर ही हल मिल सकेगा| उस वक्त चाहे तो SKM खुद उम्मीदवार उतारे या संभावित राजनैतिक पार्टियों के साथ "लीगल गारंटी इलेक्शन बांड" साइन करवा के उनको समर्थन दे|

अभी जल्दबाजी नहीं की जा सकती क्योंकि एक तो क्रेडिबिलिटी कच्ची है, दूसरा आम जनता भी कह उठेगी कि राजनीति में कूदने की ऐसी भी क्या जल्दी थी| खुद से नहीं कहेगी तो गोदी मीडिया कहलवा देगा व् सारा आंदोलन तीतर-बितर होने की भेंट चढ़ता दिखेगा|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

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